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वर्ष २०११ जिला गोरखपुर की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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दिल चटका अब!

"कहाँ से आया है?" उसने पूछा,

"गोरखपुर से" मैंने कहा,

उसने ज़ोर लगाया,

"गोरखपुर से तो एक आया है, लेकिन उसका नाम सुमेश नहीं है" उसने कहा,

"कौन आया है?" मैंने पूछा,

"बलेंदु आया है" उसने बताया,

''साथ में कोई लड़की भी थी क्या?" मैंने पूछा,

"नहीं" उसने कहा,

"वो तो नौकरी करता था वहाँ" उसने बताया,

"नहीं वो नहीं है" मैंने कहा,

"क्या बोले आप, बाबा लहना?" उसने पूछा,

"हाँ" मैंने कहा,

"लाहीन तो नहीं?" उसने पूछा,

"नहीं, लहना नाम है उसका" मैंने बताया,

अब उसने और ज़ोर लगाया दिमाग पर!

काश कि बात बन जाए! यही सोच रहा था मैं!

 

काश कि कुछ याद आ जाए जोगन को! काश कि बात बन जाए! मेरे मन में ऐसे सवाल लगातार आते चले गए! जोगन बार बार सोचती और फिर और का नाम लेती! बार बार में एक ही नाम बता बता का उकता गया था अब! आखिर में बात नहीं बनी! बहुत दिमाग खापी किया यहाँ, लेकिन नतीजा वही सिफर का सिफर! अब केवल एक ही सहारा बचता था, वो कारिंदे का, लेकिन कारिंदा उस अमुक के बारे में बताता तो है, लेकिन उसके पास आसपास की निशानियाँ ही होती हैं, और उसमे मेहनत भी बहुत लग जाती है, यहाँ तीन किरदार थे, पहला


   
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श्रीशः उपदंडक
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वो सुमेश बंगाली बाबा, दूर ये बाबा लहना और तीसरी वो लड़की पूनम! इनके बारे में जानकारी तो थी, लेकिन वो पर्याप्त नहीं थी, कि कैसे उन तक पहुंचा जा सके! अब तो वो व्यक्ति भी सारी बात सुन रहा था, उसने अब जोगन से बंगाली भाषा में बातें करनी शुरू कीं, शर्मा जी हमारे बंगाली भाषा समझ भी लेते हैं और बोल भी लेते हैं! ज्यादा नहीं तो बोलचाल की भाषा तो जान ही लेते हैं! मैं उठने लगा तो उन्होंने मेरे घुटने को दबा कर बैठे रहने का इशारा किया, मैं कुछ समझा! और बैठ गया! तभी शर्मा जी ने उस जोगन से बंगाली में कुछ सवाल किया, जोगन चौंकी! और फिर उससे बोलना शुरू किया, शर्मा जी और उसका वार्तालाप चल निकला! ये वार्तालाप करीब पांच-सात मिनट चला! और शर्मा जी मेरी ओर देखकर बोले,

"ये कह रही हैं कि एक ऐसा बंगाली बाबा आया तो था, लेकिन वो यहाँ के एक तांत्रिक बुक्कन के साथ चला गया था" वे बोले,

"कौन बुक्कन तांत्रिक?" मैंने पूछा,

अब शर्मा जी ने उस जोगन से पूछा,

जवाब मिल गया,

"ये कह रही हैं बुक्कन यहीं रहता था लेकिन अब नहीं रहता वो यहाँ से थोड़ा दूर रहता है, पता नहीं मिले या नहीं मिले हम लोगों से" वे बोले,

"नहीं, ये बुक्कन उस बंगाली बाबा को जानता है क्या?" मैंने पूछा,

उन्होंने जोगन से पूछा,

जवाब मिल गया!

"बुक्कन अब बड़ा तांत्रिक है, वो अब यहाँ नहीं रहता, वो अब बड़े बड़े डेरों में रहता हैं बड़े बड़े बाबाओं के साथ" वे बोले,

"कहाँ मिलेगा ये बुक्कन?" मैंने पूछा,

अब उन्होंने पूछा,

जवाब मिला,

अब शर्मा जी ने कागज़ पर जगह का नाम लिख लिया, नाम भी ऐसा था कि हिंदी में कुछ और बंगाली में बोलो तो कुछ और!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"चलो, यहीं चलते हैं" मैंने कहा,

अब खड़े हो गए हम!

उनको नमस्ते की!

और निकल आये!

रास्ता उनसे पूछा ही लिया था, सो अब वहीँ जाना था!

निकल पड़े!

सवारी मिल गयी! सो बैठ गए, अब सवारी वाले से ही पूछा तो उसने भी बता दिया सही रास्ता, ये एक आश्रम सा था, कोई आता-जाता नहीं था वहाँ, अक्सर कोई यहाँ वाला तो, काहिर, उस सवारी वाले ने हमको उतार दिया एक जगह, और वहाँ से रास्ता बता दिया वहाँ जाने का, हम तीनों चल पड़े वहाँ से उस आश्रम की ओर अब!

पैदल पैदल टहलते टहलते आखिर हम वहाँ आ पहुंचे! यहाँ एक नव-निर्मित मंदिर बना था, शक्ति का मंदिर! दूर-दराज में एकदम हटकर था ये मंदिर! यहीं इसके आसपास कुछ रिहाइशी स्थान था, टीन आदि से बने कमरे थे वहाँ और कुछ पक्का निर्माण भी चल रहा था, लगता था जैसे सजाया जा रहा हो इस स्थान को किसी आयोजन के लिए! हम अंदर चले! अंदर गए तो मजदूर लोग बैठे हुए थे, दोपहर का आराम चल रहा था शायद, ईंटों से बने चूल्हे भी थे, जो अब ठंडे थे, शायद रात को खाना बनता था वहाँ! वहाँ हमने मजदूरों से पूछा, उन्होंने हमको आगे भेज दिया, पक्के स्थान के तरफ, यहाँ कुछ ज्यादा ही रौनक थी, फलदार पेड़ पौधे सभी थे यहाँ, फुलवारी भी थी!

तभी एक आदमी दिखायी दिया हमको, वो हमारे पास ही चला आया! कोई पैंतीस साल का रहा होगा!

"किसी से मिलना है?" उसने पूछा,

"हाँ बुक्कन बाबा से" मैंने कहा,

"बुक्कन बाबा अभी नहीं आये" वो बोला,

"कब आयेंगे?" मैंने पूछा,

"शाम तक" उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"कितने बजे तक?" मैंने पूछा,

"छह बजे तक" उसने कहा,

पांच घंटे थे छह बजने में! क्या करें?

"वौसे आप कहाँ से आए हो?" उसने पूछा,

अब सम्भाली कमान जीवेश ने! बता दिया किसी बंगाली बाबा ने बताया था बाबा के बारे में हम शहर से आये हैं, बहुत ज़रूरी काम है

"कोई नंबर है उनका?'' शर्मा जी ने पूछा,

"हाँ है" वो बोला,

"उनका नंबर दे दो, बात कर लेंगे उनसे" शर्मा जी ने कहा,

अब उसने अपनी जेब से अपना फ़ोन निकाला और शर्मा जी को दे दिया और बता दिया कि नंबर के आखिर में बाइस पचपन है, शर्मा जी ने ढूँढा और नंबर अपने मोबाइल में फीड कर लिया!

हो गया काम!

अब हम चले वापिस!

पैदल पैदल आये वापिस,

और फिर सवारी ली, सवारी के इंतज़ार में पौना घंटा लग गया! लेकिन मिल गयी! शहर तक ही! और हमको वहीँ तक जाना था!

आखिर हम पहुँच गए अपने डेरे वापिस!

पहुँचते ही मैं और शर्मा जी अपने अपने बिस्तर पर गिर गए! थक गए थे बहुत! जूते खोले और लेट गए!

"कहानी में बहुत होल-झोल आ गया है!" वे बोले,

"हाँ शर्मा जी" मैंने कहा,

तभी सहायक खाना ले आया! साथ में जीवेश भी था, भूख लगी थी ज़ोर से, सो खाना खाया अब!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"बुक्कन से पता चला जाए तो बात बन जाए!" बोला जीवेश,

"हाँ,लेकिन ये बाबा वही हो तो है कोई बात" मैंने कहा,

"हाँ ये तो सही कहा" वो बोला,

खाने से फारिग हुए और अब लेट गए!

"साला कहाँ छिपा बैठा है!" जीवेश बोला!

"बेचारी वो लड़की" मैंने कहा,

"ज़िंदगी खराब कर दी साले ने" वो बोला,

"इस साले की भी ज़िंदगी खराब होने वाली है अब!" शर्मा जी बोले,

"वो तो है ही" जीवेश बोला!

"इस बुक्कन से कब बात करनी है?" शर्मा जी ने पूछा,

"कर लेना छह बजे करीब" मैंने कहा,

"ठीक है" वे बोले,

अब जीवेश भी उठा और चला गया आराम करने!

"मिल जाए साला एक बार" शर्मा जी ने कहा,

"यहाँ तक आ गए तो ढूंढ के ही छोड़ेंगे!" मैंने कहा,

"हाँ!" वे बोले,

अब उनकी भी आँखें बोझिल हुईं और मेरी भी, आखिर हम सो ही गए!

 

आँख खुली, छह बजे थे! मैंने शर्मा जी को जगाया, वे जागे, मैंने तब ही उनको बुक्कन से बात करने को कहा, शर्मा जी ने फ़ौरन ही नंबर लगाया, नंबर मिल गया, बुक्कन से बात चल निकली, शर्मा जी ने अपना परिचय दिया और फिर शोमा जोगन का भी, वो शोमा जोगन को पहचान गया और फिर शर्मा जी ने उस से असली मुद्दे की बात की, काफी बातें हुईं, काफी नाम आये लेकिन वो नहीं मिला जिसकी ज़रुरत थी, नहीं मिला वो बन्गाली बाबा! वो अभी भी कहीं महफूज़ बैठा था, बाबा लहना के पास, बुक्कन बाबा भी नहीं बता पाया उस बाबा लहना के बारे


   
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श्रीशः उपदंडक
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में! उसको मालूम ही नहीं था उसके बारे में, अब इसके दो कारण थे, या तो हमारे पास नाम सही नहीं थे, और गलत आदमी की जांच हो रही थी, या फिर वो इतने प्रभाव वाला था कि कोई उसके बारे में नहीं बता रहा था! अब केवल कारिंदा ही बचता था जो मदद करता! आखिर में बुक्कन से हमारा कोई लेना देना नहीं रहा! वे दोनों अभी भी हमारी पहुँच से बाहर थे!

तभी कमरे में जीवेश ने प्रवेश किया,

नमस्कार हुई,

वो बैठा,

साथ में फल थे उसके पास, उसने फल वहीँ बिस्तर पर रखे और हम खाने लगे!

"बात हुई उस बुक्कन से?" उसने पूछा,

"हाँ" मैंने कहा,

"पता चला?" उसने पूछा,

"कुछ नहीं" मैंने कहा,

अब सारी बात बता दी हमने उसको जो भी बात हुई थी, वो भी निराश सा हुआ, हमारी तरह!

और तभी शर्मा जी का फ़ोन बजा, ये फ़ोन उस लड़की के पिता जी का था, वे जानना चाहते थे, शर्मा जी ने उन्हें सबकुछ बता दिया, और कह दिया कि जल्दी ही उनकी बेटी का पता चल जाएगा और उनको समझाया बुझाया, उस वक़्त तो हम यही कह सकते थे! यही कहा,

"अब?" जीवेश ने पूछा,

"अब वही!" मैंने कहा,

"खोजी?" उसने पूछा,

"हाँ" मैंने कहा,

"हाँ, अब यही ठीक है, यहाँ तो कुछ पता नहीं चल रहा" वो बोला,

"यही करूँगा" मैंने कहा,

मित्रगण!


   
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श्रीशः उपदंडक
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सार दिवस ऐसे ही काटा! संध्या हुई तो मैं क्रिया-स्थल गया, जीवेश ने समस्त प्रबंध करा दिया था! मैं क्रिया-स्थल में स्थान-पूजन और गुरु-नमन पश्चात अब अपना खोजी हाज़िर करना चाहता था, मैंने रुक्का पढ़ दिया उसका, सुजान हाज़िर हुआ, अब सुजान को मैंने उसको लड़की पूनम और उन दोनों की खोजबीन करने का उद्देश्य बताया, अपना उद्देश्य जान सुजान उड़ चला! मुझे उम्मीद थी कि इस बार अवश्य ही मेरे हाथ कुछ पुख्ता जानकारी मिलेगी!

और कोई दस मिनट के बाद सुजान हाज़िर हुआ, मैं खड़ा हुआ, और अब सुजान ने मुझे बताना शुरू किया, मैं सुनता गया, सुनता गया और अब मेरे हाथ वास्तव में कुछ पुख्ता जानकारी लग गयी थी! मैं सुजान से खुश हुआ, मेरे खोजी ने बढ़िया काम कर दिखाया था, अब उसने भोग लिया और फिर लोप हुआ!

जो कुछ सुजान ने बताया था वो काफी अहम् था! इसके सहारे हम वहाँ तक पहुँच सकते थे, उसमे दो जगहों के नाम थे, अब आगे इनके बारे में मुझे बाबा चौरंग की मदद की दरकार थी! मैं वापिस हुआ और स्थान नमन किया फिर गुरु नमन करते हुए वहाँ से निकल पड़ा, सीधा पहुंचा शर्मा जी के पास, वहाँ जीवेश भी बैठा था!

"पता चला?" उसने छूटते ही पूछा,

"हाँ" मैंने कहा,

"अच्छा!" वो बोला,

अब मैंने दोनों को वो सारी बातें बतायीं!

"चलो बाबा के पास!" वो बोला,

"चलो" मैंने कहा,

हम बाबा के पास पहुंचे,

बाबा उस समय अपने कक्ष के बाहर कुर्सी पर बैठे थे, साथ में दो लोग नीचे बैठे थे, हम पहुंचे, नमस्कार की, बाबा ने अंदर बैठने को कहा और खुद भी खड़े होकर अंदर आ गए!

अब जीवेश ने उनसे दो स्थानों के बारे में पूछा, बाबा ने तपाक से वो दोनों स्थान बता दिए! ये दोनों ही स्थान एक दूसरे के पास थे, ये भी ठीक था, एक बात और, उनमे से एक स्थान पर बाबा चौरंग के एक मित्र का डेरा भी था! ये सबसे बढ़िया बात थी! अब लगता था कि ऊपर से मदद आ रही है और कड़ियाँ अब जुड़ने लगी हैं! बस अब देर थी तो बस उस जगह जाने की!


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब हम बाबा का धन्यवाद किया, नमस्कार की और वहाँ से निकल पड़े!

अपने कक्ष में आये!

बैठे,

"अब बताइये क्या करना है आगे?" जीवेश ने पूछा,

"कल चलते हैं उस जगह" मैंने कहा,

"हाँ, ठीक है" वो बोला,

"फिर करते हैं उस से बात!" मैंने कहा,

"लहना से?" उसने पूछा,

"हाँ" मैंने कहा,

"लहना मान जाएगा?" उनसे पूछा,

"नहीं मानेगा!" मैंने कहा,

"फिर?" उसने पूछा,

"ज़रूरी है उस से मिलना!" मैंने कहा,

"जैसी आपकी इच्छा!" वो बोला,

अब बनायी हमने रणनीति!

और फिर जीवेश ने सहायक को बुलाया, माल-मसाला मंगवाने के लिए, सहायक लाया और हम हो गए शुरू!

"साला! आ ही गया पकड़ में!" शर्मा जी बोले!

"आना ही था!" मैंने कहा,

"अब फिरे दिन साले के! विराम लग गया अय्याशी पर!" वे बोले,

"कल साले को हड़काते हैं वहीँ जाकर!" जीवेश बोला,

"हाँ!" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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महफ़िल बढ़ चली आगे!

"जीवेश, वहाँ बाबा चौरंग के मित्र हैं, उनसे भी मिल लेंगे" मैंने कहा,

"हाँ, ज़रूर!" वे बोले,

और हम खाते पीते रहे! बातें करते रहे!

लहना से मिलने को अब हम बेताब थे!

 

सुबह हुई!

हम जागे! स्नानादि से फारिग हुए, आज जाना था हमको उस स्थान के लिए, सुबह जल्दी ही निकलना ठीक था, इसीलिए मैंने जीवेश का इंतज़ार किया, थोड़ी देर में जीवेश आ गया, नमस्कार हुई, और फिर हमने चाय-नाश्ता किया और फिर मैंने जीवेश को अपनी मंशा बताई, उसको मेरी सलाह ठीक लगी, शर्मा जी तो पहले से ही तैयार थे!

"निकलें?" मैंने पूछा,

"चलो, नेक काम में देरी क्यों!" जीवेश ने कहा,

और फिर हम कोई सुबह आठ बजे ही उस स्थान के लिए निकल पड़े! बाबा चौरंग को ये बात बता दी गयी थी, तो नाम लेकर ऊपरवाले का हम निकल पड़े वहाँ से!

बाहर आये, और सवारी पकड़ी, कल हम पूर्व में गये थे आज पश्चिम में जाना था! और वहीँ था वो स्थान जहां ये बाबा लहना रहा करता था! लहना से बात हो जाती तो उस कथित बंगाली बाबा का भी पता चला जाता! और फिर उस से निबट लेते हम! लड़की मिल जाए तो साथ ही ले आते उसको! यही सोचा था हमने!

रास्ता बड़ा बढ़िया था, आसपास पेड़ लगे थे, तरावट का माहौल था, जंगली फूल खिले थे वहाँ पर और लोगबाग अपने कामों में लगे थे, छोटे छोटे से खेतों में! बकरियां चारा चर रही थीं, गाय-भैंस सब खुले में चारा चर रही थीं! असली भारत दिखायी देता था वहाँ! शहरी बनावट से दूर! हम आपस में बातचीत करते हुए चले जा रहे थे! और तभी सवारी रुकी, उस सवारी वाले ने हमे उस जगह उतार दिया, हम उतर गए, यहाँ छोटी छोटी दुकानें और खोमचे थे, ऐसे ही एक खोमचे से पूछताछ की, तो पता चल गया, कुछ निशानी थी मेरे पास, उसी के सहारे आगे बढ़ रहे थे हम!


   
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श्रीशः उपदंडक
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यहाँ से हम पैदल पैदल चल पड़े, आसपास से गुजरते लोग हम शहरियों को देख कर रुक जाते थे, वे शायद मदद करने को तैयार थे बस हमारे पूछने की देर थी! आगे गए तो दो रास्ते हो गए, सामने से आते तो लड़कों से हमने एक पता पूछा, एक ने बता दिया और हम वहाँ से दायें हो लिए! खुला क्षेत्र था ये, गाँव होंगे आसपास, ऐसा लगता था! लोग आ जा रहे थे, कुछ विद्यालय के छात्र-छात्राएं भी जा रहे थे हमारे आगे आगे! हम चलते रहे, करीब दो किलोमीटर चल चुके होंगे, तब सामने से एक गाड़ी आती दिखायी दी, रास्ता संकीर्ण था, सो हम एक बटिया पर चढ़ गए, वहाँ से गाड़ी वाले ने मुस्कुरा के गाड़ी निकल ली वहाँ से, हम भी मुस्कुरा पड़े!

हम और आगे चले, तभी मुझे मेरी एक निशानी दिखायी दे गयी! एक बड़ा सा ॐ लिखा था एक बड़े से दरवाज़े पर! दरवाज़ा लोहे का था, ये एक आश्रम सा ही लग रहा था, आसपास खेत-खलिहान थे और फिर नितांत जंगल!

"यही है" मैंने कहा,

"अच्छा!" जीवेश ने कहा,

हम उसके सामने जाकर रुक गए!

"चलो? अंदर चलते हैं?" जीवेश ने कहा,

"हाँ चलो" मैंने कहा,

अब जीवेश ने दरवाज़ा पीटा!

दो आदमी अंदर से आये वहाँ दरवाज़े तक!

"दरवाज़ा खोलो?" जीवेश ने कहा,

"क्या काम है?" उनमे से एक ने पूछा,

"अबे काम है तभी तो आये हैं यहाँ?" जीवेश ने कहा,

"किस से मिलना है?" उसने पूछा,

"पहले दरवाज़ा तो खोलो भाई?" जीवेश ने कहा,

"किस से मिलना है?" वो फिर बोला,

"लहना बाबा से मिलना है!" जीवेश ने कहा,

"कहाँ से आये हो?" उसने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"सारी बात यहीं पूछ लेगा?" जीवेश ने गुस्से से कहा,

"कहाँ से आये हो?" उसने पूछा,

"कोलकाता से आये हैं, यहाँ मालदा में ठहरे हैं" मैंने कहा,

उन दोनों ने आपस में एक दूसरे को देखा!

"खोल भाई खोल" जीवेश ने कहा,

अब एक ने जेब से चाबी निकाली और ताला खोल दिया! हम अंदर आ गए,

"तू तो ऐसे सवाल कर रहा था जैसे हम तलाशी लेने आये हैं यहाँ?" जीवेश ने कहा,

मैंने चुप कराया उसको!

"आओ मेरे साथ" उनमे से एक बोला,

हम उसके साथ चले!

वो हमको एक कमरे ले गया! कमरा ऐसा था जैसे वहाँ सामान रखा जाता हो, चारा आदि पड़ा था वहाँ, हम नहीं बैठे वहाँ!

"अभी आता हूँ" वो बोला,

हम वहीँ खड़े रहे!

दूसरे दो तीन लोग वहीँ खड़े हो गए! जैसे चौकसी कर रहे हों!

"बाबा है या आतंकवादी!" जीवेश ने कहा,

मुझे हंसी आ गयी!

शर्मा जी भी हंसने लगे!

"हाँ सही बात है!" शर्मा जी बोले,

तभी वो आदमी आया,

"आओ मेरे साथ" वो बोला,

अब हम चले!


   
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श्रीशः उपदंडक
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वो हमको घुमाता-फिराता एक जगह ले गया, यहाँ कुछ गाय बंधी थीं और वहाँ एक दाढ़ी-मूंछों वाला व्यक्ति बैठा था, दाढ़ी-मूंछ सफ़ेद थीं उसकी! आसपास कमरे बने थे! वो आदमी हमको उसी आदमी के पास ले गया!

उसने उस आदमी के पाँव पड़े!

हमने नमस्ते की!

उसने भी की!

फिर एक ही नज़र से मेरा, जीवेश और शर्मा जी का मुआयना कर लिया!

वो आदमी एक चारपाई ले आया, बिछा दी, और हम बैठ गए!

"आप ही हैं बाबा लहना?" जीवेश ने पूछा,

"हाँ, मैं ही हूँ" वो बोला,

"बड़े जतन किये आपसे मिलने के लिए!" जीवेश ने कहा,

"आपको पता किसने दिया यहाँ का?" उसने झट से सवाल पूछा,

"कौन नहीं जानता जी आपको!" शर्मा जी बोले अब!

वो झेंप सा गया!

आखिर लहना हाथ लग गया था!

"किस काम से आये हैं?" उसने पूछा,

"काम तो बहुत बड़ा है, लेकिन आप मदद करें तो हो जाएगा!" जीवेश ने कहा,

"काम बताइये" उसने कहा,

"एक बंगाली बाबा है आपके यहाँ सुमेश, है या नहीं?" जीवेश ने पूछा,

"हाँ है, सोमेश है उसका नाम" वो बोला,

"वही वही!" जीवेश ने कहा,

"हाँ, क्या काम है उस से?" उसने पूछा,

"उसी से काम है, ज़रा मिलना है उस से" जीवेश ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"काम तो बताओ?" उसने पूछा,

"आप बुलाओ तो सही?" जीवेश ने कहा,

"काम की बात करो, नहीं तो जाओ यहाँ से!" बाबा ने कहा,

बड़ा गुस्सा आया हम तीनों को!

"उसको बुलाओ तो सही?" जीवेश ने कहा,

"उठो यहाँ से?" उसने कहा,

गुस्से में आ गया वो!

"आराम से बाबा जी!" जीवेश ने हाथ जोड़े उसके!

"काम बताओ पहले?" उसने कहा,

बड़े कड़े लहजे में पूछा था!

"बताता हूँ!" जीवेश ने कहा,

"बताओ?" उसने कहा,

"वो गोरखपुर के पास एक गाँव से एक लड़की को भगा के लाया है, हम उस लड़की को लेने आये हैं" जीवेश ने कहा,

"कोई लड़की नहीं है यहाँ" उसने कहा,

अनुभव क्र.५६ भाग २

By Suhas Matondkar on Wednesday, September 3, 2014 at 2:47pm

उसके कहने से ही उसका झूठ पकड़ा गया था!

"अरे बाबा! झूठ क्यों बोलते हो?" जीवेश ने कहा,

"निकलो यहाँ से?" वो खड़ा हुआ!

"सुन बाबा! जहां है वहीँ बैठ जा! साले नहीं तो तुझे मार माके यहीं पेड़ पर लटका दूंगा तेरी सारी बाजीगरी तेरी ***** में घुसेड़ दूंगा!" जीवेश ने कहा,

अब घबराया बाबा!


   
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"साले कुत्ते को बुला यहाँ? ये न समझियो कि हम अकेले हैं यहाँ, चौरंग नाथ का सारा डेरा यहीं आ जाएगा अभी, एक ही आवाज़ में, समझा?" जीवेश ने कहा,

उसने चौरंग नाथ का नाम सुना तो ढीला पड़ा!

हाँ, उसके आदमी वहाँ आ खड़े हुए थे! लाठी-डंडे लेकर!

मैंने सभी को देखा, कुल पांच थे वो! साले हड्डी कहीं के, एक एक लात पड़ती तो पांच मुक़द्दमे दर्ज़ होते क़त्ल के!

बाबा पशोपेश में पड़ा!

चौरंगनाथ का नाम फैला हुआ था वहाँ! कम से कम ये ओझा, तांत्रिक और गुनिया तो जानते ही थे!

"तेरा कोई भी आदमी कुछ नहीं कर सकेगा, साला यहीं तड़प तड़प के जान दे देगा, बस थूकने की देर है!" उसने कहा,

बाबा चुप!

समझ गया कि हम भंजन-विद्या ज्ञाता हैं!

"कहाँ है वो कुत्ते का बच्चा?" अब शर्मा जी ने कहा,

"वो यहाँ नहीं है" वो बोला,

"कहाँ है?" उन्होंने पूछा,

"कोलकाता में है" वो बोला,

"कोलकाता में कहाँ?" उन्होंने पूछा,

अब पता बताया उसने! शर्मा जी ने लिख लिया!

"फ़ोन कर साले को अभी?" शर्मा जी ने कहा,

"फ़ोन नहीं है उसके पास" वो बोला,

"उस बहन * ** के पास फ़ोन नहीं है? झूठ बोलता है?" शर्मा जी ने कहा,

"सच कह रहा हूँ, नहीं है फ़ोन" उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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उसके आदमियों की सिट्टी-पिट्टी गुम! कौन आ गए यहाँ! क्या होगा आज यहाँ?

"और वो लड़की कहाँ है?" शर्मा जी ने पूछा,

"मुझे नहीं पता" उसने कहा,

"साले तू ऐसे नहीं मानेगा, नहीं मानेगा न?" शर्मा जी ने पूछा, गुस्से से!

वो चुप!

"गुरु जी, करो साले का इलाज!" वे बोले,

"जीवेश, सिखाओ इसको पाठ!" मैंने कहा,

अब जीवेश ने भंजन-मंत्र पढ़ा! थूक इकठ्ठा किया! और जैसे ही बाबा भागने को हुआ जीवेश ने थूक दिया उस पर, थूक उसके चेहरे पर पड़ा! तड़पता हुआ वो नीचे गिरा, उसके चेले भागे उसकी तरफ!

"रुक जाओ!" जीवेश चिल्लाया!

वे डरकर वहीँ ठहर गए!

अब जीवेश उठा! और उस तड़पते हुए बाबा को लातें जमा दीं तीन चार! वो बाबा बार बार 'आह आह' चिल्ला रहा था! उसके चेले सकते में थे!

"बतायेगा?" जीवेश ने पूछा,

और एक लात जमाई कमर पर!

"बतायेगा या नहीं?" जीवेश ने पूछा,

अब उसने गर्दन हिलायी, ज़मीन पर हाथ मारा कि बता देगा!

तब जीवेश ने भंजन-मंत्र वापिस लिया!

तड़पना बंद हो गया उसका!

"ओ! उठाओ साले को!" जीवेश ने उसके चेलों से कहा,

चेलों ने उठाया उसका, उसने अपनी नाक और मुंह साफ़ किये, हांफ रहा था तेज तेज! बदहवास सा!


   
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