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वर्ष २०११ जिला गोरखपुर की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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"कमाल करते हो आप भी, आइये मेरे साथ"वो बोला,

हम उसके साथ चल पड़े!

वो अपने कक्ष में ले आया हमको,

हम बैठे,

उसने एक सहायक को बुलाया और चाय-नाश्ते के लिए कहा, सहायक गया लेने के लिए!

"आज तो बारिश पड़ने के आसार हैं" मैंने कहा,

"हाँ, पड़ जाए तो थोड़ा चीन सा पड़े!" वो बोला,

"हाँ, खुल जाएगा मौसम" मैंने कहा,

और तभी मोटी मोटी सिक्केनुमा बारिश की बूँदें पड़ीं!

"लो! हो गयी बारिश!" मैंने कहा,

"हाँ जी!" वो बोला,

और फिर बारिश तेज हो गयी! खिड़कियाँ बंद करनी पड़ गयीं! जीवेश और मैंने खिड़कियाँ बंद कीं!

तभी सहायक चाय-नाश्ता ले आया!

बढ़िया था चाय-नाश्ता!

हमने मजे से खाया और चाय पी!

बरसात का मौसम और कुछ चटपटा हो साथ जैसे पकौड़े और चाय, तो मजा आना स्वाभाविक ही है! यही हुआ!

सहायक फिर आया, बर्तन लेने,

"अरे किशन, सुन और ले आ एक एक कप चाय और नाश्ता!" बोला जीवेश,

वो बर्तन उठाकर और मुस्कुराता हुआ चला गया!

"आप लोगे न और चाय?" उसेन पूछा,

"हाँ, चलेगी!" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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बाहर बारिश झमाझम पड़ रही थी! पानी नालियां बनाये बह रहा था, छत से नीचे गिरता पानी, पतनाले से, बहुत दूर तक जा रहा था! यानि कि बारिश बहुत तेज थी!

सहायक आ गया चाय-नाश्ता लेकर, और हम फिर से हुए शुरू!

"अरे हाँ, आप कल बता रहे थे उस लड़की के बारे में और उस बंगाली बाबा के बारे में, वो भगा के ले गया?" उसने पूछा,

"हाँ जीवेश" मैंने कहा,

"हरामखाना साल कुत्ता कहीं का, जिस थाली में खाया उसी में छेद कर दिया!" वो बोला,

"हाँ!" मैंने कहा,

"ढूंढ लो साले को और साले की जीभ खींच के उसके गले में ही लटका कर फंदा बना दो फांसी का!" वो बोला,

मुझे हंसी आ गयी!

ज़रा सोच के देखिये जो उसने कहा!

"ये साले सारे ऐसे ही हैं, यहाँ भी बहुत हैं, साले हर जगह फैले हुए हैं, लगता है जैसे बंगाल में इनकी खेती हो रही है!" वो बोला,

"हाँ, ऐसा ही कुछ है!" मैंने कहा,

"या मुझे ले चलना, कितनी दूनी तेरह होते हैं, सब बता देगा! वो बोला,

"मैं ढूंढ लूँगा उसको!" मैंने कहा,

"आज ही ढूंढो जी!" वो बोला,

"हाँ! आज ही" मैंने कहा,

"बारिश रुक जाए तो भिड़ा दो देख, देखो कहाँ है हरामज़ादा!" वो बोला,

"हाँ, बारिश रुक जाए बस!" मैंने कहा,

"वैसे लड़की का तो शोषण कर दिया होगा कुत्ते ने!" वो बोला,

"हाँ, यही अफ़सोस है" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"नहीं जी, ढूंढो साले को!" वो बोला,

मैं चुप हुआ, शोषण के मसले पर सोच में डूब गया, न जाने कितनी होंगी बेचारी ऐसी जो बहकावे में आकर ऐसे कमीन बाबाओं के चक्कर में आकर अपनी ज़िंदगी तबाह कर लेती हैं और फिर उनका होता है अदल-बदल! शोषण! कुछ और भी शब्द हो तो वो ही!

"बंगाल का है न?" उनसे पूछा,

"हाँ" मैंने कहा,

"मेरे हैं वहाँ जानकार, ज़रुरत पड़े तो बता देना!" वो बोला,

"मेरे भी हैं, ज़रूरत पड़ी, तो ज़रूर बताऊंगा!" मैंने कहा,

चाय-नाश्ता खत्म हुआ!

मैंने बाहर देखा, बारिश अभी भी ज़ोर से पड़ रही थी!

"आज तो कमाल का बरसा है!" जीवेश बोला,

"अब आ चला है मौसम बारिशों का!" मैंने कहा,

"हाँ जी, चलो गर्मी से कुछ निजात तो मिली" वो बोला,

"हाँ ये तो है" मैंने कहा,

"अच्छा, भोजन का बताइये?" उसने पूछा,

"अभी तो नाश्ता किया है, दोगुना!" मैंने कहा,

"बाद की कह रहा हूँ, कुछ विशेष?" उसने पूछा,

"कुछ विशेष नहीं जीवेश!" मैंने कहा,

"तो एक काम करना, यहीं आ जाना, मैं यहीं मिलूंगा!" वो बोला,

"हाँ, ठीक है" मैंने कहा,

वो उठा और चला गया बाहर! खिड़की के शीशों से मुझे वो गैलरी में जाता दिखायी दिया,

"साला मिल तो जाए एक बार!" शर्मा जी बोले,

"ज़िंदा होगा तो ज़रूर मिलेगा!" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"ज़िंदा ही होगा साला! ऐसे लोगों को मौत नहीं आती!" वे बोले,

अब मैं बैठ गया टांगें ऊपर करके बिस्तर पर!

बाहर देखने लगा, बारिश!

 

उस दिन जम कर बारिश हुई थी, आकाश फट पड़ा था जैसे, ये शाम तक ऐसे ही रहा, कभी छिटपुट तो कभी ताबड़तोड़! कोई आठ बजे करीब रात को बारिश ने सांस ली थी! मैंने बाहर जाकर देखा, आकाश में बादल बने हुए थे, ऐसी में कोई क्रिया नहीं की जा सकती थी, तो उस रात तो केवल इंतज़ार ही करना था बारिश रुकने का! उस रात यही किया, बस वही खाना-पीना और वही बातें! रात को बाद में सो गए हम!

सुबह नींद खुली हमारी, स्नानादि से फारिग हुए, तभी जीवेश आ गया वहाँ, मुस्कुराता हुआ, किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था शायद! कमरे में आते ही फ़ोन बंद किया और बोला,"आइये, नाश्ता कर लें"

"चलो" मैंने कहा,

हम चल पड़े उसके पीछे,

उसके कक्ष तक आये,

और बैठ गए!

चाय-नाश्ता लगवा दिया गया!

आज मौसम साफ़ था, हालांकि आकाश में बादल तो थे, लेकिन उनमे बरसने लायक जान नहीं थी! आज रात तक न बरसते तो मैं जांच कर सकता था! यही कामना की मैं उस समय तो!

नाश्ता कल की तरह ही बढ़िया था!

नाश्ता कर लिया हमने! सहायक आया और बरतन ले गया वहाँ से!

"आज बारिश न हो तो बात बने" मैंने कहा,

"हाँ, वैसे आसार तो नहीं लग रहे" जीवेश बोला,

"बस न ही हो तो जांच करूँ" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"नहीं होनी चाहिए वैसे तो" शर्मा जी बाहर देखते हुए बोले,

"आओ घुमा लाऊं?" जीवेश ने पूछा,

"कहाँ जा रहे हो?" मैंने पूछा,

"शहर" वो बोला,

"आप ही चले जाओ जीवेश!" मैंने कहा,

"आ जाओ, यहाँ क्या करोगे बैठे बैठे?" उसने पूछा,

"बस ऐसे ही, आप चले जाओ" मैंने कहा,

"ठीक है, मैं जाता हूँ, कुछ लाना तो नहीं वहाँ से?" उसने पूछा,

"नहीं" मैंने कहा,

"ठीक है, दोपहर तक आ जाऊँगा" वो बोला,

"ठीक है" मैंने कहा और खड़े हुए हम अब वहाँ से!

बाहर आ गये,

जीवेश ने ताला लगा दिया अपने कमरे को और चला गया,

अब हम अपने कमरे में आ गए,

बैठे,

"वैसे लगता तो नहीं बारिश आएगी आज, धूप निकल आयी है" वे बोले,

"ये अच्छा हुआ!" मैंने कहा,

फिर हम बैठे रहे, कुछ बातें करते रहे, उस लड़की के बारे में!

दोपहर बीती,

जीवेश आ गया वापिस,

आते ही मिला हमसे!

"सामान लाया था वहाँ से, दो-चार काम भी थे, सो निबटा दिए" वो बोला,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"चलो अच्छा हुआ!" मैंने कहा,

"आइये, खाना खाते हैं" वो बोला,

"चलो" मैंने कहा,

उसने कमरा खोला और सहायक को आवज़ देकर बुलाया और खाना लगाने को कह दिया, थोड़ी ही देर में खाना लगा दिया गया, हमने खाना खाया! और फिर कुछ बातें हुईं और हम अपने कमरे में आ गये!

अब हुई रात!

मौसम साफ़ था! शुक्र था!

तारे झाँक रहे थे!

मैं सीधा गया जीवेश के पास, वो अपने कक्ष में नहीं था, मैंने उसको ढूँढा तो मिल गया, वो रसोईघर में सामान रखवा रहा था!

"आइये" वो बोला,

"जीवेश, मौसम साफ़ है, मुझे क्रिया-स्थल दिखाइये" मैंने कहा,

"चलो" वो बोला,

सहायकों को कुछ निर्देश देकर वो मुझे लेकर चला!

हम पहुंचे वहाँ!

"यहाँ" वो बोला,

अब हम कक्ष में घुसे! काफी बड़ा कक्ष था! यहाँ कई वेदियां सी बनी थीं! अलख थीं वे सब की सब! बढ़िया इंतज़ाम था!

"ठीक है न?" उसने कहा,

"हाँ, एकदम!" मैंने कहा,

"मैं भोग मंगवा देता हूँ" उसने कहा,

"ठीक है" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"अब मैं चलता हूँ, मिलता हूँ बाद में, किशन आकर भोग दे जाएगा!" वो बोला और चला गया!

अब मैंने जूते उतारे अपने, साथ ही नल था, हाथ-मुंह धोये और कुल्ला किया फिर केशों पर पानी लगाया!

अब मैं एक जगह बैठा!

स्थान बढ़िया था!

किशन आ गया वहाँ, मेरे हाथ में भोग का सारा सामान पकड़ा दिया,

अब मैंने भोग सजाया!

और फिर,

मैंने सुजान का रुक्का पढ़ा!

सुजान हाज़िर हुआ!

वो दुपट्टा साथ लाया था मैं! सूजन ने दुपट्टे को देखा, गंध ली और अपना उद्देश्य जानकार उड़ चला! मेरा खोजी सिपहसालार!

करीब दस मिनट के बाद वो हाज़िर हुआ!

मैं खड़ा हो गया!

उसने मुझे उस लड़की के बारे में बता दिया! सबकुछ! कहाँ है, कैसी है? सबकुछ! उस बंगाली बाबा के बारे में भी! अब वो बंगाली बाबा एक स्थान पर जाकर तांत्रिक बन बैठा था! लड़की उसके साथ नहीं थी, वो लड़की उस बंगाली बाबा के गुरु के साथ थी, उसके गुरु का नाम लहना था! और ये लहना पहले एक बड़ा तांत्रिक रह चुका था! लहना, अपने ही स्थान में रहता था, ये स्थान भी उसको किसी ने दिया था दान! लहना के पास ऐसी और भी लडकियां थीं! उसके चेले ऐसा ही काम किया करते थे! लहना ही था असली खिलाड़ी तो! मुझे जो जानकारी चाहिए थी वो मिल गई थी! सुजान ने अपना भोग लिया और वापिस हुआ!

जिस स्थान पर अभी ये लहना था वो बंगाल में एक दूर-दराज का स्थान था! वहाँ उस इलाके में मेरा कोई जानकार नहीं था! न ही आसपास! सुजान भी उस स्थान में घुसा नहीं था, बस जांच लाया था!

अब मैं खड़ा हुआ!


   
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श्रीशः उपदंडक
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स्थान को नमन किया!

और बाहर आया!

फिर से हाथ-मुंह धोये और वहाँ से निकल पड़ा! अपने कक्ष के लिए!

कक्ष में पहुंचा!

शर्मा जी खड़े हुए!

"कुछ पता चला?" उन्होंने पूछा,

अब मैंने शर्मा जी को सबकुछ बता दिया!

वे चौंक पड़े!

"हरामज़ादा कहीं का!" वे बोले,

मैं धम्म से बैठ गया बिस्तर पर!

 

"कहाँ है ये लहना बाबा वहाँ?" उन्होंने पूछा,

"मालदा में है, लेकिन एक दूरदराज के इलाके में" मैंने कहा,

"अच्छा, तो पहुँच तो है अपनी?" वे बोले,

"हाँ, है तो" मैंने कहा,

"तो मालूम करते हैं" वे बोले,

"करना ही पड़ेगा!" मैंने कहा,

तभी कमरे में जीवेश आ पहुंचा!

"कुछ पता चला?" उसने बैठते हुए पूछा,

"हाँ, चल गया" मैंने कहा,

"कहाँ है?" उसने पूछा,

"जिला मालदा" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"अच्छा! तो यहाँ छिपा बैठा है वो!" वो बोला.

"हाँ" मैंने कहा,

"तो साले को पकड़ लो?" उसने कहा,

"यही सोच रहा हौं" मैंने कहा,

"इसमें सोचना क्या? मालदा में तो है आपके जानकार?" उसने पूछा,

"हाँ हैं" मैंने कहा,

''तो क्या परेशानी है!" वो बोला,

"नहीं, परशानी तो कोई नहीं" मैंने कहा,

"तो बताओ कैसे करना है? मैं चलूँ?" उसने पूछा,

आप क्या करोगे चल कर?" मैंने पूछा,

"मैंने वैसे ही पूछा, मेरे भी हैं वहाँ जानकार" वो बोला,

"ठीक है फिर" मैंने कहा,

"बताओ, कब चलना है?" उसने पूछा,

"देख लो, जब की टिकट मिल जाए, निकल पड़ते हैं" मैंने कहा,

"मैं पता कर लेता हूँ" वो बोला,

मैं जानता था कि जीवेश ज़रूर चलेगा, वो दिल का भला आदमी है बहुत! किसी का अहित कभी सोचता नहीं और हित के लिए जान भी दे दे! यही मुझे उसको सबसे बड़ी खूबी जंचती है, इसीलिए मैं जीवेश को पसंद भी करता हूँ!

"अब चिंता छोडो महाराज! अब मैं देख लूँगा, आओ ज़रा मेरे साथ!" वो बोला,

मैं खड़ा हुआ,

शर्मा जी को भी उसने चलने को कहा,

और हम चल पड़े उसके साथ!

उसके कमरे में आये,


   
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श्रीशः उपदंडक
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उसने सहायक को सामान-सट्टा लाने को कहा और फिर बैठ गया हमारे साथ!

"मालदा में मेरे जो जानकार हैं, वे अक्सर यहीं आते हैं, वहीँ चलना मेरे साथ, बढ़िया रहेगा" वो बोला,

"ठीक है" मैंने कहा,

एक तरह से ठीक है, ये जीवेश था तो वैसे जुगाड़ू ही, इसके रहते कोई समस्या नहीं हो सकती थी!

सामान आ गया, सहायक सारा सामान ले आया, और हम हो गए फिर शुरू! बातें करते और खाते-पीते जाते, रात अब काफी हो चुकी थी, सो खाने-पीने के बाद हम अपने कमरे में जाकर आराम से सो गए!

सुबह उठे,

करीब बारह बजे, जीवेश आया, उसने बताया कि उसने दो दिन बाद की टिकट करवा ली है और वहाँ अपने जानकार से भी बात कर ली है, उनको बता दिया गया है कि हम तीन लोग आ रहे हैं वहाँ! कुछ बहुत ही ज़रूरी काम है!

"ये बहुत अच्छा किया!" मैंने कहा,

"इस बहाने मैं भी यहाँ से थोड़ी सी मुक्ति पा जाऊँगा!" वो बोला,

"बढ़िया है!" मैंने कहा!

और फिर मैंने तैयारियां शुरू कीं, कुछ मंत्र आदि जागृत किये और फिर कुछ विद्याएँ सँवारीं! बहुत ज़रूरी था ये!

मित्रगण!

ठीक दो दिन बात हमने गाड़ी पकड़ ली, और मालदा के लिए रवाना हो गए! हमको पहले कोलकाता जाना था और फिर वहाँ से मालदा, यही इंतज़ाम हुआ था, रास्ता लम्बा तो था लेकिन काटना ही था, कोलकाता तक तो कोई परेशानी नही थी, हाँ आगे का रास्ता कैसा हो ये ही दिक्क़त थी बस! यहाँ से बारह घंटे की यात्रा और फिर वहाँ से आठ घंटे की यात्रा, खैर, सफ़र काट तो लेते ही बातचीत करके! और यही किया!

हम रात को कोलकाता पहुँच गए!


   
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श्रीशः उपदंडक
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वहाँ मैं अपने एक जानकार के पास गया! हम तीनों वहीँ ठहरे उस रात, यहाँ मेरे जानकार भी बहुत अच्छे और समझदार थे! यहाँ रात काटनी थी और कल फिर मालदा के लिए निकलना था! रात को बढ़िया खाना-पीना हुआ और आराम किया, सफ़र में सो न सके थे, कभी इस करवट और कभी उस करवट! सो बढ़िया नींद आयी!

सुबह उठे, स्नानादि से फारिग हुए, चाय-नाश्ता किया और फिर हम उनसे विदा लेकर चले मालदा की तरफ! हमने गाड़ी पकड़ी और सवार हो गए!

शाम से थोड़ा बाद हम वहाँ पहुंचे, रास्ते की थकावट ने हड्डियां चरमरा दीं, वहाँ से हम जीवेश के जानकार के पास जाने के लिए निकल पड़े! और इस तरह हम पहुँच गए करीब आठ बजे अपने ठिकाने पर! यहाँ के जानकार जीवेश के रिश्तेदारों से भी अधिक निकले! पूरा सम्मान किया उन्होंने हमारा! हम भी भावाभिभूत हुए! रात को जश्न हुआ और जमकर खाना-पीना हुआ! ये डेरा एकांत में बसा हुआ था, बहुत बड़ा बसेरा था थे! और यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य का तो जवाब ही नहीं था! बेनज़ीर!

"आ ही गये जीवेश हम यहाँ आखिर!" मैंने कहा,

"आना ही था!" वो बोला,

"अब रह गया बाबा लहना!" मैंने कहा,

"इस से ही निबटने आये हैं, देखते हैं कहाँ जाता है!" शर्मा जी ने कहा,

"मैं कल पूछूंगा इस बाबा के बारे में, हो सकता है कोई जानता हो?" जीवेश ने कहा,

"पूछ लो" शर्मा जी ने कहा,

"कल पूछता हूँ" वो बोला,

"ज़रूर!" मैंने कहा,

"आपने उस लड़की का क्या नाम बताया था?" जीवेश ने पूछा,

"पूनम" मैंने कहा,

'अच्छा, पूनम" उसने कहा,

"हाँ," मैंने कहा,

"एक साल हुआ न?" उसने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हाँ" एक साल" मैंने कहा,

"उस बंगाली बाबा का नाम सुमेश है?" उसने पूछा,

"हाँ" मैंने कहा,

"ठीक है" वो बोला,

"अब आप कीजिये आराम, सुबह मिलते हैं" वो बोला,

और खड़ा हुआ!

और हम लेटे अब!

"लीजिये गुरु जी, आ ही गए हम!" वे बोले,

"हाँ शर्मा जी" मैंने कहा,

"अब कहाँ जाएगा साला ये बंगाली बाबा!" वे बोले,

"कल देखते हैं कहाँ है वो" मैंने कहा,

"हाँ जी" वे बोले,

और ऐसे ही बातें करते हुए सो गये हम!

 

और फिर सुबह हुई!

नींद जल्दी ही खुल गयी! मौसम बहुत बढ़िया था, शीतल हवाएं चल रही थीं, हम स्नानादि से निवृत हो चुके थे, हम अपने कक्ष में ही बैठे थे कि तभी एक सहायक आया, साथ में चाय-नाश्ता लिए, चाय कड़क थी! मजा आ गया, साथ में जो नाश्ते में था वो भी बढ़िया था, मैंने उस सहायक से जीवेश के बारे में पूछा, उसने कहा कि वो भेज देगा उनको यहाँ, अभी हम बात ही कर रहे थे कि जीवेश आ गया वहाँ! सहायक को और चाय-नाश्ता लाने को कहा, वो चला गया और फिर थोड़ी देर बाद ले आया चाय-नाश्ता, हमने चाय-नाश्ता किया! जीवेश ने पूछा कि नींद कैसी आयी आदि आदि!

"जीवेश? ज़रा उसके बारे में मालूम तो करो?" मैंने पूछा,

"अभी करता हूँ, आप भी चलो साथ?" उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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सलाह तो अच्छी थी!

"चलो" मैंने कहा,

और हम खड़े हुए!

चले उसके साथ!

वे बाबा चौरंग नाथ थे जिनका ये डेरा था! जीवेश के पिता जी के अभिन्न मित्र थे और उनका आना-जाना लगा रहता था उनके यहाँ, कैलाश बाबा के यहाँ! सो जीवेश यहाँ भी ऐसे ही था जैसे कि अपने डेरे में!

हम उनके कक्ष में गए!

बाबा कोई साथ वर्ष के रहे होंगे!

हमने नमस्कार की!

उन्होंने नमस्कार ली!

और बैठने को कहा!

हम बैठ गये!

अब जीवेश ने बाबा को सारी बात बताई! बाबा ने सारी बात गौर से सुनी, और फिर उभाणे कहा कि उभाणे कभी सुना नहीं किसी बाबा लहना के नाम का यहाँ, हाँ, एक जोगन है, वो अक्सर इन बंगाली बाबाओं के साथ रहा करती है, नाम है शोमा, वो जानती होगी यदि हुआ तो, अब शोमा वहाँ से कोई बीस किलोमीटर दूर रहती थी, चारा तो कोई था नहीं, अतः वहाँ जाना ही था, हाँ, बाबा ने ये कह दिया था कि शोमा से उनके बारे में बता दें नाम लेकर, वो जानती होगी तो ज़रूर मदद कर देगी!

इतनी भी मदद बहुत थी! डूबते को तिनके का सहारा! सो हमने बाबा से विदा ली और फिर जीवेश के साथ हम चल पड़े उस शोमा जोगन के पास! किसी तरह से पहुंचे, ऊंचा-नीचा स्थान था वो! सवारी मिल गयी थी, गनीमत थी! आबादी भी कम ही थी, यहाँ तो मुझे हर औरत जोगन ही लगी! वहीँ सब ठेठ बंगाली हिसाब-किताब!

मैंने एक औरत से उस जोगन शोमा के बारे में पूछा, उसने नहीं पहचाना उसको, उन्स एऔर किसी से पूछने को कह दिया, तभी सामने से एक और औरत आ रही थी, उस औरत से पूछा तो


   
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श्रीशः उपदंडक
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उसने बताया कि शोमा यहाँ से कोई किलोमीटर दूर रहती है, उसने एक जगह का नाम भी बताया, हाँ, वो रहती यहीं थी पहले!

अब चले वहाँ के लिए, टूटा-फूटा रास्ता! एक किलोमीटर ऐसा लगा जैसे दस किलोमीटर चल के आये हों, वहाँ पहुंचे, ये एक बंगाली गाँव था, देहात! हम गाँव में गए तो एक तालाब से कुछ आते हुए लोगों से उस शोमा जोगन के बारे में पूछा, उन्होंने अब बता दिया पक्का उस बारे में! मेहनत रंग लायी! और फिर उन्ही आदमियों ने मदद करते हुए हमको शोमा जोगन के पास ले जाया गया! उसके घर के सामने से ही बता दिया कि यही घर है और जोगन का! अब हम जैसे ही सीढ़ियां चढ़ने लगे, तभी एक लड़की बाहर निकली घर से, हमको देख चौंक पड़ी, अंदर भागी! अब हम चौंके! वहीँ खड़े हो गए!

तभी अंदर से एक व्यक्ति बाहर आया!

उसने हमे देखा!

उम्र में कोई पचास साल का रहा होगा, सर पर कपडा बांधे!

वो सामने तक आया,

"क्या बात है?" उसने पूछा,

"जी हमको शोमा जोगन से मिलना है, बाबा चौरंग ने भेजा है" जीवेश ने कहा,

"अच्छा! अच्छा! आ जाओ, आ जाओ!" उसने हम खुले मन से कहा,

अब हम अंदर गए!

अंदर तो जादूगरी का सा सामान रखा था! उल्लू के पंख, चील के पंख, पहाड़ी चूहे के कांटे या पूरी खाल ही थी, मोर के पंक्ष बांधे गये थे हर कोने पर! पिंजरे भी रखे थे! किसी मदारी का घर सा लगता था वो!

"बैठो" वो बोला,

हम बैठ गए, ये एक चारपाई थी, जिसके नीचे ईंटें रखीं गयीं थीं, शायद कुछ सामान था उसके नीचे!

"अभी बुलाता हूँ" वो बोला,

और अंदर गया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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फिर से वो लड़की आयी और पानी ले आयी, हमने पानी पिया!

"हमे देख के क्यों भाग गयी थी?" जीवेश ने पूछा,

वो हंसी तो ज़रूर लेकिन कुछ कहा नहीं उसने!

और तभी खांसते हुए एक मोटी सी औरत वहाँ आयी! नीचे बिछी गुदड़ी पर बैठ गयी! यही थी शोमा जोगन!

"आप ही हैं शोमा जोगन?" मैंने पूछा फिर भी!

"हाँ, मैं ही हूँ" उसने कहा,

अब जीवेश ने उसको बताया कि उनको बाबा चौरंग ने भेजा है, किसी काम में मदद चाहिए उसकी!

उसने अब काम के बारे में पूछा,

"किसी बाबा लहना को जानती हो?" मैंने पूछा,

उसने ज़ोर लगाया दिमाग पर!

"नहीं" उसने कहा,

दिल दरका मेरा!

"वो बाबा है कोई बंगाली सुमेश, उसका गुरु है वो" मैंने बताया,

"सोमेश?" उसने पूछा,

"जी सुमेश" मैंने कहा,

"सोमेश बंगाली बाबा?" उसने पूछा,

"हाँ जी" मैंने कहा,

"सोमेश था तो पहले लेकिन उसको तो चार-पांच साल हो गए यहाँ से गये हुए" वो बोली,

गलत आदमी पकड़ा था जोगन ने!

"नहीं नहीं! ये तो अभी साल भर पहले ही आया है इधर" मैंने कहा,

"यहाँ तो ऐसा कोई नहीं है" उसने कहा,


   
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