चेलों ने उठाया उसका, उसने अपनी नाक और मुंह साफ़ किये, हांफ रहा था तेज तेज! बदहवास सा!
“साले बचा लिया, नहीं तो यहीं जान दे देता अपनी!” जीवेश ने कहा,
उसने चेले डर के खड़े रहे वहाँ! लाठी डंडे सब गिरा दिया हाथों से!
“बता? कहाँ है वो लड़की?” जीवेश ने पूछा,
उसने हाथ के इशारे से कहा कि अभी बतायेगा!
“पानी पिलाओ इसको” जीवेश ने कहा,
चेला भागा पानी लेने! और ले आया पानी घड़े में से!
“पिला इसको” जीवेश ने कहा,
चेले ने पानी पिला दिया!
“हाँ बाबा! अब बता कहाँ है वो लड़की?” जीवेश ने पूछा,
बाबा ने दम साधा अपना अब!
“हाँ! चल अब बता लड़की कहाँ है?” जीवेश ने पूछा,
उसने साँसें थामी अपनी अब!
“जल्दी बता? इतना समय नहीं है हमारे पास” शर्मा जी ने कहा,
“कौन सी लड़की?” उसने पूछा,
”साले फिर से हरामगर्दी?” शर्मा जी ने कहा,
“मैंने पूछा कि कौन सी लड़की?” उसने कहा,
“साले कुत्ते! तुम सालो यही काम करते हो? कितनी लडकियां हैं यहाँ?” शर्मा जी ने पूछा,
डर गया वो!
“तेरी माँ की **! साले वही गाँव की लड़की जिसको तेरा ये चेला, ये माँ का ** भगा ले लाया था उसके गाँव से?” शर्मा जी ने कहा,
उसने ज़ोर लगाया दिमाग पर!
“कितने दिन हुए?” उसने पूछा,
“हरामज़ादे एक साल हो गया पूरा!” वे बोले,
अब बाबा ऐसे काँप रहा था जैसे ठंड में ठिठुरता कोई कुत्ता!
“नाम क्या बताया?” उसने पूछा,
“देख ओये, सीधे सीधे बता, नहीं तो साले यहीं से उठाके ले जाऊँगा बाबा चौरंग नाथ के यहाँ और वहाँ साले कोल्हू पिलवा दूंगा!” शर्मा जी ने कहा,
घबरा गया वो!
“सोमेश” मैंने कहा,
“हाँ, वो कोलकाता में है” उसने कहा,
“यहीं? ये जो पता है?” शर्मा जी ने पूछा,
“हाँ यही पता है” वो बोला,
“फ़ोन नहीं है उसके पास?” मैंने पूछा,
“नहीं है” वो बोला,
“क्या करता है ये वहाँ?” जीवेश ने पूछा,
“क्या करता होगा साला, वही हरामगर्दी!” शर्मा जी बोले,
“हां? क्या करता है?” मैंने पूछा,
“रहता है वो वहाँ” वो बोला,
“अच्छा!” जीवेश ने कहा,
“और लड़की कहाँ है अब ये बता?” शर्मा जी ने पूछा,
“लड़की का मुझे नहीं पता” वो बोला,
“किस को पता है?” मैंने पूछा,
चुप हो गया!
“इस सोमश को पता है?” मैंने पूछा,
चुप!
“बता?” मैंने पूछा,
“हाँ, पता होगा” वो बोला,
“अब तू हमारी कैसे मदद करेगा?” जीवेश ने पूछा,
फिर से चुप!
“बोल बे?” जीवेश ने कहा,
चुप!
“कैसे मदद करेगा?” उसने फिर पूछा,
अब रहा न गया शर्मा जी से, उन्होंने एक झापड़ रसीद कर दिया उसको! वो कुर्सी से नीचे गिर गया! सभी खड़े हुए वहाँ सींकची घबरा गए!
“तेरे बाप के नौकर बैठे हैं हम जो बार बार बताएँगे तुझे?” शर्मा जी उसको उठाते हुए बोले! वो अपना गाल सहलाता हुआ उठा!
“हां बे! अब बता कैसे मदद करेगा हमारी?” जीवेश ने पूछा,
“कैसी मदद?” उसने पूछा,
“बताता हूँ” जीवेश ने कहा,
अब जीवेश खड़ा हुआ,
“गुरु जी! इस साले को उठा के ले चलते हैं डेरे पर, ये वहाँ बकेगा सबकुछ!” जीवेश ने कहा,
बाबा घबराया!
जीवेश ने उसके बाल पकड़े!
“साले! बंगाली बाबा! कुत्ते ऐसे धंधे किया करता है तू?” जीवेश ने कहा,
“छोड़ दो इसको, अब कुछ नहीं करेगा ये” मैंने कहा,
जीवेश ने छोड़ दिया!
“सुन अगर तूने उस सोमेश को खबर की, तो साले तू कहीं भी छिप जाइयो, तेरी माँ ** ** फाड़कर भी बाहर निकाल लूँगा तुझे!” जीवेश ने कहा!
बाबा डर गया!
और चेले तो जैसे भाग छूटने को तैयार!
“चलो यहाँ से अब” मैंने कहा,
“चलो” जीवेश ने कहा,
“सुन ओये? साले अगर मुझे वो नहीं मिला वहाँ, तो तुझे उठाकर ले जाऊँगा यहीं से, तेरी वो हालत करूँगा कि तू खुद को भी पहचान नहीं पायेगा!” वे बोले,
बाबा अब रोने को तैयार!
“चलो जीवेश” मैंने कहा,
अब हम उठे!
और चले बाहर की तरफ!
चेलों ने चिरते हुए रास्ता छोड़ा!
और हम वापिस बाहर आ गए!
“ये तो मिल गया, अब वो मिलना चाहिए” शर्मा जी ने कहा,
“वो भी मिल जाएगा” मैंने कहा,
हम फिर से वापिस हुए! पैदल पैदल!
किसी तरह बाहर आये मुख्य सड़क तक! अब वहाँ से एक बस मिल गयी, बस में बैठे और वापिस हुए! और फिर हम पहुँच गए चौरंग नाथ के डेरे!
अपने कक्ष में पहुंचे!
“कब चलना है अब कोलकाता?” शर्मा जी ने कहा, हाथ खुजला रहे थे उनके शायद!
“जीवेश को आने दीजिये” मैंने कहा,
लहना से जो जानना था सो जान लिया था, हाँ, ये नहीं पता था कि वो हमारी बात समझ चुका है या नहीं! खैर, इसका पता भी चल ही जाना था, अब अगला मुक़ाम था हमारा उस बंगाली बाबा को कोलकाता में जा दबोचना! उसी से उस लड़की का पता चलता!
तभी जीवेश आ गया अंदर, बैठा वहीँ, मैं भी बैठ गया, वो चाय के लिए कह कर आया था, तो साथ में एक सहायक चाय भी ले आया, हमने चाय पी, साथ में कुछ खाया भी!
“जीवेश, अब बताओ कब चलना है?” मैंने पूछा,
“आप बताइये?” उसने पूछा,
“कल ही निकलते हैं” मैंने कहा,
“ये भी ठीक है” वो बोला,
“कोलकाता में हैं मेरे जानकार” जीवेश ने कहा,
“मेरे भी है जीवेश” मैंने कहा,
“इस बार मेरे साथ!” वो बोला,
“ठीक है” मैंने कहा,
“वैसे ये पता है कहाँ का?” उसने पूछा,
अब शर्मा जी ने अपनी डायरी निकाली, और जीवेश को वो जगह बतायी, जगह का नाम था तो अजीब सा ही, मैंने नहीं सुना था पहले कभी!
“अच्छा! चलो लग जाएगा पता इसका भी” वो बोला,
“हाँ, लग जाएगा पता” मैंने कहा,
“सोमेश बंगाली बाबा!” वो बोला,
“हाँ यही है!” मैंने कहा,
“ठीक है, कल सुबह निकलते हैं” वो बोला,
“ठीक है” मैंने कहा,
अब वो उठा और चला गया!
इसके बाद मैं और शर्मा जी आराम करने के लिए लेट गये!
रात हुई,
रात को फिर से खाना-पीना हुआ और हमने आगे की रणनीति बनायी, क्या करना है, कैसे करना है आदि आदि!
और फिर देर रात सो गए हम!
सुबह उठे,
स्नानादि से फारिग हुए!
फिर बाबा चौरंग नाथ के पास गए, अपना सामान उठा लिया था हमने! बाबा ने देखा हमको, हम जाने की तैयारी में थे! बाबा से बात की और उनसे फिर विदा ली, और हम वहाँ से बाहर आ गए!
अब हमारी मंजिल थी कोलकाता!
हमने सवारी पकड़ी और स्टेशन तक आ गये, टिकट लिए गाड़ी आने में अभी डेढ़ घंटा था, हमने इंतज़ार किया, गाडी आयी और हम गाड़ी में घुस गये, एक अधिकारी से ले-देकर सीट का जुगाड़ किया और सीट मिल गयी! अब सफर आराम से कटना था! हमारी सीट दो एक साथ थीं और एक आगे की तरफ, जीवेश ने इसका भी जुगाड़ कर लिया, एक साथ बैठे सज्ज्न को वहाँ भेज दिया और हम अब फिर से तिकड़ी बन गये!
“शाम तक ही पहुंचेंगे” जीवेश ने कहा,
“हाँ” मैंने उत्तर दिया,
“अब चल पड़े हैं तो पहुँच ही जायेंगे” शर्मा जी बोले,
“ये तो है ही” मैंने कहा!
फिर चाय ले ली गयी, चाय पीने लगे!
गाड़ी में लोग ऊंघ रहे थे, कुछ तो अभी तक सोकर उठे भी नहीं थे, खैर हमने तो अपनी अपनी सीट ले ही ली थी, ज़रुरत पड़ने पर अपना बर्थ खोलो और सो जाओ! यही फायदा होता है रेलगाड़ी का, इसीलिए हमने रेलगाड़ी से जाना ही उचित समझ था!
सोते, ऊंघते, बैठे आखिर शाम को हम पहुँच गए कोलकाता! वहाँ उतारते ही सबसे पहले भोजन किया और फिर वहाँ से जीवेश ने हमको उसके जानकार के यहाँ चलने को कहा, ये भी कोलकाता में एक दूर स्थान था, हमने बाहर आकर सवारी पकड़ी और फिर चल दिए, जीवेश आता रहता था यहाँ सो उसके साथ चलने में हमको दिक्कत नहीं हुई कोई, और कोई डेढ़-दो घंटे के बाद हम पहुँच गए उसके एक जानकार के डेरे पर! जिनका ये डेरा था वे भी जीवेश के पिता जी के जानकार थे, वहीँ वाराणसी से ही, नाम था, शिब्बू बाबा! मैंने नाम तो सुना था लेकिन मिला कभी नहीं था उनसे!
और इस तरह हम डेरे पर पहुँच गए! डेरा छोटा तो था, लेकिन बहुत बढ़िया बना हुआ था! दुमंजिला था! जीवेश हमको सीधे ही शिब्बू बाबा के पास ले गया, उसने नमस्कार हुई, वहाँ बैठे, फिर अनेक बातें हुईं, शिब्बू बाबा ने एक सहायक को बुलाया और हमको उसके साथ जाने को कह दिया, सहायक हमको ऊपर की मंजिल के लिए ले गया, वहाँ हमको अगल-बगल के दो कक्ष दे दिए गए! हमने अपना सामान रखा और फिर लेट गए!
“लो भाई जीवेश! आ गए कोलकाता!” मैंने कहा,
“हाँ जी!” वो बोला,
तभी वो सहायक पानी ले आया, पानी पीकर जान में जान आ गयी! प्यास लगी थी बहुत ज़ोर से!
जीवेश ने उस सहायक को चाय लाने को कहा, और फिर सहायक चला गया, थोड़ी देर बाद चाय ले आया! हमने चाय पी!
“अब बाबा से पता कर लो, कि ये पता कहाँ का है?” मैंने कहा,
“हाँ, अब तो सुबह ही चलेंगे?” वो बोला,
“हाँ” मैंने कहा,
“तो सुबह ही पता कर लूँगा” वो बोला,
“ठीक है” मैंने कहा,
तब जीवेश खड़ा हुआ, और बाद में आने को कह गया, चला गया!
“तो साला यहाँ है वो सोमेश!” शर्मा जी ने कहा,
“हाँ, यहीं छिपा है” मैंने कहा,
“कहाँ तक छिपेगा साला!” वे बोले,
“हाँ!” मैंने कहा,
रात हो ही चुकी थी, जीवेश रात्रि समय आया, खाने का सामान लेकर और साथ में माल-मसाला लेकर भी! हमने खाना खाया और मदिरापान भी किया! और फिर कल यहाँ से सुबह नौ बजे निकलने का कार्यक्रम निर्धारित हो गया!
रात को सो गए हम!
सुबह होते ही अपने स्नान आदि से फारिग हुए, चाय-नाश्ता किया और फिर मैंने और शर्मा जी जीवेश के कमरे में पहुंचे, वो स्नान कर रहा था, हम वहीँ बैठ गए, वो बाहर आया, वस्त्र पहने और फिर तैयार हो गया!
“आइये मेरे साथ” वो बोला,
हम बाहर आये, दोनों कक्षों को ताला लगाया, और जीवेश के साथ चले! जीवेश सीधा बाबा के कक्ष में ले गया हमको, नमस्कार हुई, उन्होंने चाय मंगवा ली, अब जीवेश ने सारी कहानी बता दी बाबा को, बाबा की त्यौरियां चढ़ गयीं! उन्होंने भी उस बंगाली बाबा को गालियां बकीं! और जीवेश के पूछने पर उन्होंने वो स्थान बता दिया हमको, अब हम उठे, तभी बाबा ने अपने एक साथी को हमको वहाँ तक गाड़ी में ले जाने को कहा, ये बढ़िया हुआ, गाड़ी से जाना सही था, जल्दी भी पहुँचते और काम भी निबटा आते! और फिर वो जो गाड़ी ले जा रहा था, वो इस स्थान से वाक़िफ़ भी था! करीब साढ़े नौ बजे हम वहाँ से निकल पड़े उस बंगाली बाबा सोमेश की खबर लेने!
ये एक दूर-दराज का क्षेत्र था, जहां हमको जाना था, हमारी गाड़ी भीड़ भरे रास्तों से गुजरे जा रही थी, भीड़ बहुत थी वहाँ जैसे कोई त्यौहार का अवसर हो! लोग जैसे सभी जल्दी में थे, तांता लगा था वाहनों का! क्या छोटे और क्या बड़े! दुपहिया वाहनों में होड़ सी लगी थी! हम भी धीरे धीरे यातायात में फंसे आगे बढ़ते जा रहे थे! कभी रुकते कभी रोक दिए जाते! यही है महानगरों की असल ज़िंदगी! भीड़-भाड़ और ऐसी आपाधापी जैसे शाम तक शहर खाली हो जाएगा!
बड़ी मुश्किल से हम शहर से बाहर हुए, अब जाकर थोड़ी राहत सी मिली थी, अब गाड़ी एक स्थिर गति से आगे बढ़ रही थी, अब ये क्षेत्र कुछ देहाती सा लगने लगा था! आगे जाकर एक जगह, गाडी चला रहे आशीष ने किसी से पता पूछा, उसने बताया और हम फिर से आगे बढ़
गये! करीब पांच किलोमीटर चलने के बाद एक मंदिर से बाएं हो गए हम, यहाँ आबादी छिटपुट सी थी, वहाँ आशीष ने रुक कर फिर से पता पूछा एक व्यक्ति से ओ उसने हमको वापिस जाने को कहा, मंदिर से दायें, गाडी वापिस घुमाई, और वापिस आये, अब यहाँ से दायें हुए, यहाँ भी आबादी न के बराबर ही थी, कहीं कहीं कोई इक्का-दुक्का मकान दिखायी दे जाता था, नहीं तो पेड़ ही पेड़ थे वहाँ! यहाँ रास्ता भी ठीक नहीं था, पथरीला रास्ता था, हम फिर भी धीरे धीरे हिचकोले खाते हुए आगे बढ़ते चले गए! अब फिर से गाड़ी रोकी गयी, फिर से किसी से पूछा, उसने और आगे जाने को कह दिया, हाँ, यहाँ से ये पता चल गया कि जिस जगह हम जा रहे थे वो एक पुराना मंदिर है, वहाँ बाबा और दूसरे क़िस्म के लोग रहा करते हैं, और ये सोमेश यहीं था!
हम आगे बढ़ चले! और कोई आधे घंटे के बाद हम वहाँ पहुँच गए, यहाँ छोटे छोटे से प्राचीन मंदिर बने हुए थे, लगता था कि शायद वहाँ कभी कोई नदी बहा करती होगी, जो कि अब लुप्त है! वहाँ झुग्गियां सी बसी हुई थीं, कोई पक्का मकान नहीं था, बस जुगाड़ किया गया था किसी तरह सर छिपाने का!
हमारी गाड़ी एक जगह रुकी, अब आशीष ने उस सोमेश का पता पूछा, नहीं पता चल सका, शायद ये नाम उसका असल नाम नहीं था, या उसने यहाँ नाम बदल लिया था, उस व्यक्ति ने एक और आदमी के पास जाने के लिए कहा हमको, नाम था दर्शन अब पूरा नाम क्या था पता नहीं, वहाँ उसको दर्शन ही कहा जाता था, हमने दर्शन का पता पूछा, उसने बता दिया, हम वहीँ के लिए चल पड़े!
दर्शन के स्थान के पास कुछ खोमचे से बने थे, दूकान जैसे खोमचे, यहाँ औरतें सर पर टीका लगाए आ-जा रही थीं, शायद कोई मंदिर था वहाँ, अब हम उतरे वहाँ, और एक औरत से दर्शन के बारे में पूछा, बंगाली भाषा में, उस औरत ने बता दिया, हम अब चल पड़े दर्शन से मिलने! जहां ये दर्शन था वो एक पूजा-पाठ का स्थान था, और दर्शन यहाँ पुजारी था, वो अवश्य ही जानता होगा सोमेश को! यही सोच के हम उसके यहाँ चले गए! दर्शन एक दरम्याने क़द का व्यक्ति था, कोई पचपन वर्ष का, सर पर कपडा बाँध रखा था, धूपबत्ती सुलग रहीं थीं वहाँ, कुछ फूल आदि भी बिखरे पड़े थे! हम अंदर गए तो वहाँ मौजूद सभी लोग हमे ही देखने लगे! अब आशीष ने बंगाली भाषा में उस सोमेश के बारे में पूछा, मुझे बस गोरखपुर शब्द ही समझ आया, या फिर उस सोमेश का नाम!
आखिर में पता चल गया! हमारे कान खड़े हो गए! अब आशीष ने पूछा उसके बारे में, अब उस दर्शन ने तफ्सील से सबकुछ बता दिया कि वो बंगाली बाबा कहाँ मिलेगा इस समय हमको! यही तो जानना चाहते थे हम लोग! हमे पता चल गया, मैंने अपनी जेब से एक सौ का नोट
निकाल वहाँ रखी पूजा की थाली में भेंट चढ़ा दिया! और उस दर्शन का धन्यवाद करते उए हम वहाँ से निकले! दर्शन मुझे ईमानदार आदमी लगा, उसने हमारी न केवल मदद की थी बल्कि उसने उस बंगाली बाबा को पहचान भी लिया था, नाम सोमेश ही था उसका! अब हम दर्शन के बताये हुए स्थान के लिए चल पड़े! वो स्थान वहाँ से कुछ दूर था, सो गाड़ी में बैठे और चले गए आगे! धीरे धीरे!
और फिर एक जगह रुके, जहां दर्शन ने बताया था! गाड़ी एक जगह रुकी, वहाँ एक तरफ लगाईं और हम गाडी से उतरे! सामने कुछ कच्चे-पक्के से मकान बने थे, छिटपुट आबादी वाले, गाँव था ये कोई! हमने एक औरत से पूछा उसके बारे में, उसने बता दिया, वो जगह ज्यादा दूर नहीं थी वहाँ से!
बस! अब नसें फड़क उठीं हमारी! जीवेश और शर्मा जी खबीस की तरह से गुस्से में आ गये! उनका बस चले तो उस कमीने सोमेश को घर से निकाल कर लात-घूंसे बजाते हुए गोरखपुर तक ले आते!
ये एक पुराना सा मकान था, कोई रहता भी होगा, लग नहीं रहा था, तभी उस लकड़ी से बने एक जर्जर दरवाज़े पर थाप लगायी जीवेश ने! एक मर-गिरल्ला सा आदमी आया वहाँ, अब मोर्चा जीवेश ने सम्भाला!
“बाबा सोमेश हैं क्या?” उसने पूछा,
“आप कहाँ से आये?” उसने पूछा,
अब आशीष ने बताया कि कोलकाता शहर से!
उसने दरवाज़ा खोल दिया!
हम चारों अंदर घुस गये!
“कहाँ हैं सोमेश बाबा?” जीवेश ने पूछा,
उस व्यक्ति ने बता दिया कि किस कमरे में है!
बस!
फिर क्या था!
मुस्तैद जवानों से हम अपने जूते खड़काते हुए उस कमरे में घुड़ गए! कमरे में एक जगह एक चटाई पर एक व्यक्ति बैठा था, लम्बी दाढ़ी-मूंछ रखे! कमरे में अलमारी बनीं थीं, उनमे कांच
और प्लास्टिक से बने जार रखे थे, सभी में जड़ी-बूटियां सी रखी थीं! ये था बंगाली बाबा का दवाखाना!
“सोमेश तू ही है?” शर्मा जी ने पूछा,
वो घबराया, सिकुड़ गया!
अब आशीष ने बाहर जाकर दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया! और उस सूखे पहलवान को भी अंदर कर लिया खींच कर! दोनों ही घबरा कर बैठ गए!
“बता ओये? तू है है सोमेश बंगाली बाबा?” शर्मा जी ने पूछा,
कुछ न बोला वो!
समझ न सका कि ये क्या हो रहा है!
“ये ऐसे नहीं बतायेगा!” जीवेश आगे बढ़ते हुए बोला, और जीवेश ने उसको उसकी दाढ़ी पकड़ते हुए उठाया, फिर एक झापड़ रसीद किया उसके! वो कांपने लगा! फिर से एक और झापड़! और फिर एक और झापड़!
“हाँ? तू ही है सोमेश?” जीवेश ने पूछा,
उसने डर के मारे गर्दन हिलायी अपनी कि हाँ!
बस!
उसके हाँ कहते ही आशीष, जीवेश और शर्मा जी टूट पड़े उस पर! कोई जगह ऐसी नहीं बची उसके शरीर की जिस पर लात-घूंसे न खाये हों! साले को उठा उठा के फेंका तीनों ने! वो सूखा पहलवान थर थर कांपते हुए अपने वैद्याचार्य को खरल में पिसते हुए देखता रहा!
“बस! रुक जाओ!” मैंने कहा,
उन्होंने छोड़ दिया उसको!
बाबा का तो रूप ही संवार दिया था उन्होंने! उसके बाल और दाढ़ी दोनों ही नोंच डाली थीं! बाबा नीचे पड़ा ‘हाय!हाय!’ चिल्ला रहा था, कभी गर्दन इधर ढुलकाता और कभी उधर!
“खड़ा करो इसको” मैंने कहा,
अब आशीष ने उसके बाल पकड़ के खड़ा कर दिया!
हाथ जोड़ने लगा!
आंसू बह निकले! लेकिन मैं नहीं पसीजा! मैंने उस माँ के भी आंसू देखे थे जिसकी आँखों में आशा थी, इसके आंसू क्या थे? जाने बचाने के लिए घड़ियाली आंसू!
पाँव पड़ने की कोशिश करता रहा वो!
“ओये बंगाली बाबा?” जीवेश ने कहा,
उसने सर उठाया अपना! और इधर से एक झापड़ दिया जीवेश ने! वो फिर से नीचे गिर पड़ा! फिर से उठाया जीवेश ने उसको!
“साले, जैसा पूछता जाऊं वैसा जवाब देते जाना, नहीं तो ये सारी जड़ी-बूटियां तेरी ** से डालकर मुंह से निकाल दूंगा हाथ से खींच कर!” जीवेश ने कहा,
बाबा कांपा!
“तू गोरखपुर गया था न एक गाँव में?” पूछा जीवेश ने!
बाबा ने गर्दन हिलायी!
हाँ कहा गरदन हिला कर!
“साले मुंह से बोल, नहीं तो तेरी ये खरल घुसेड़ दूंगा तेरे मुंह में!” जीवेश ने धमकाया उसको खरल उठाते हुए!
“हाँ” वो बोला,
अब उसकी समझ में मामला आ गया! समझ गया कि ये चार परकाले किसलिए आये हैं यहाँ!
“तू वहाँ से अपनी बहन को भगा के लाया था, कहाँ है वो लड़की?” जीवेश ने पूछा,
अब बगलें झांके वो!
तभी शर्मा जी ने साले की छाती पर एक लात जमा दी! उसके मुंह से गिरने से पहले ‘हुह’ निकला और पीछे गिर गया!
“उठ बहन के **?” शर्मा जी ने कहा उसको!
वो संतुलन बनाता हुआ उठ गया!
“बता, कहाँ है वो लड़की?” शर्मा जी ने पूछा,
कमीन आदमी बोले ही नहीं!
“नहीं बतायेगा?” जीवेश ने पूछा,
अब जीवेश ने पास में रखा हुआ एक सोटा उठा लिया और ज़ोर से उसके घुटने में दे मारा! चीख निकल गयी उसकी!
फिर एक और!
एक और!
ढोल बजा दिया उसका!
“जल्दी बोल? नहीं तो ये पूरा घुसेड़ दूंगा तेरे मुंह में!” सोटा दिखाते हुए जीवेश ने कहा!
“बता?” शर्मा जी ने कहा,
नहीं बोला वो!
अब शर्मा जी के सब्र का बाँध टूट गया! उन्होंने उसको उठाया बाल से पकड़ कर और दिए लगातार कई झापड़ और घूंसे!
“डाल लो साले को गाडी में, और पूछ कर इसके हाथ-पाँव तोड़ डालो!” शर्मा जी ने कहा,
“यही करना पड़ेगा!” जीवेश ने भी कहा!
अब धमकी का असर हुआ उस पर!
हाथ जोड़ने लगा!
मारा धक्का शर्मा जी ने उसको सामने की तरफ! वो सामने अपने रखे हुए जारों से टकराया और जार उसके साथ नीचे गिरे!
फिर से उठाया, और एक झापड़ लगाते हुए उसको बिठा लिया नीचे!
“हाँ? कहाँ है वो लड़की?” मैंने पूछा,
उसने मुंह पोंछा अपना!
और अब पहली बार मुंह खोला!
“नरना के पास है” वो बोला,
“नरना? कौन नरना?” जीवेश ने पूछा,
“बाबा है वो” उसने कहा,
“कहाँ रहता है बहन का ** ये नरना?” शर्मा जी ने पूछा,
अब वो तोते की तरह से बताता चला गया!
पता चल गया! नरना बाबा कोलकाता से पश्चिम कोई चालीस किलोमीटर दूर रहता था! यहीं थी वो लड़की!
“क्या कह के लाया था तू उसको?” शर्मा जी ने पूछा,
“काम सिखाने के लिए” उसने कहा,
“कौन सा काम?” पूछा शर्मा जी ने!
“यही, यही मेरा काम” वो बोला,
उसके शब्द अटक रहे थे! पिटाई का असर था! और कुछ खौफ भी था उसको! फिर भी हम समझ रहे थे उसके शब्द!
“ये हींग-फिटकरी वाला काम?” उन्होंने उसकी जड़ी-बूटी उठाके पूछा,
“हाँ” उसने कहा,
साले के मुंह पर फेंक के मारी वो जड़ी-बूटियां!
“और जो न मिली वहाँ ये लड़की तो?” उन्होंने पूछा,
अब उसने कसमें खायीं! और यही कहा कि लड़की वहीँ है!
“सुन ओये बहन के **! मिल गयी तो ठीक है, नहीं मिली तो साले तो नहीं बचेगा ज़िंदा!” उन्होंने कहा,
आखिर उसने कहा कि लड़की वहीं है!
“साले कुत्ते कमीन इंसान! जिस थाली में खाते हो उसी में छेद करते हो तुम लोग?” शर्मा जी ने एक लात जमाते हुए कहा उसको!
और एक बार फिर से शर्मा जी और जीवेश ने उसको निचोड़ दिया! अब उसकी हालत हुई पतली! कहीं साला मर ही न जाए इसलिए छोड़ दिया उसको!
“जीवेश? क्या करना है इसका?” मैंने पूछा,
“मैं तो कहता हूँ साले को बधिया कर दो, काट डालो साले के **! और फिर डालो फ़ालिज़! जो ज़िंदगी भर सड़ सड़ के मरे, मौत मांगे हर पल!” जीवेश ने कहा,
अब रोया वो बाबा!
समझ गया कि क्या होने वाला है आगे!
“जीवेश, तुम इसको अधरंग डालो!” मैंने कहा,
जीवेश ने सुना! और फिर आँखें बंद कर लीं! बाबा रोये, दया की भीख मांगे! गिड़गिड़ाये! कौन सी दया? कहाँ की दया?
अब जीवेश ने भंजन-मंत्र पढ़ते हुए थूक दिया उस पर!
बाबा पीछे झुकता चला गया! महीने भर में ही उसके कमर से नीचे के सारे जोड़ खुल जाने थे अपने आप!
“अब इसको धन्वंतरि ही ठीक करें तो करें! नहीं तो इसका कोई इलाज नहीं!” जीवेश ने कहा,
अब हम मुड़े! वो दूसरा व्यक्ति हमे देख रो पड़ा!
“जा! भाग जा यहाँ से! इस से सीख ले! जा!” जीवेश ने कहा,
वो आदमी भागा वहाँ से!
और हम बाहर आये!
गाड़ी में बैठे और चल पड़े! बाबा नरना के पास!
अब बाबा नरना से मिलना था! ये साले हर जगह फैले हुए थे! हम कहाँ से कहाँ तक आ गए थे लेकिन अभी तक लड़की नहीं मिली थी! अब नरना के के पास इसीलिए जा रहे थे, देखें क्या कहता है ये बाबा नरना! बाबा नरना जहां रहता था वो ये आशीष जानता था जगह, ये सही था, आशीष बहुत मदद कर रहा था हमारी! स्थानीय भाषा में बात करके वो पहुँच जाता था मंजिल पर! जब हम निकले तो हम मुख्य मार्ग पर आये, अब कुछ चाय-पानी का समय था,
