गोरखपुर!
गोरखपुर का एक दूरस्थ श्मशान!
लोगों की आवजाही तो थी वहाँ लेकिन सुबह शाम के वक़्त काफी कम रहा करती है, अक्सर आसपास रहने वाले ही लोग आ जाएँ तो अलग बात है, नहीं तो यातायात कम ही हो जाया करता है वहाँ! इसमें मैं शमशान भी नहीं कहूंगा, ये एक डेरा कहा जा सकता है, उस दिन मैं यहाँ दिन में करीब एक बजे पहुंचा था, ये दूर-दराज में बसाया हुआ एक डेरा था, था तो काफी पुराना लेकिन दो भाइयों के बीच तनातनी होने से उसका समग्र विकास नहीं हो पा रहा था! मेरी जानकारी वहाँ रहने वाले औघड़ बाबा धनी राम से थी, वे मेरे पुराने जानकार थे, मैं अक्सर नेपाल जाते समय उनसे अवश्य ही मिलता था, शहर यहाँ से दूर था, और जल्द ही सवारी पकड़ना ज़रूरी था, लेकिन फिर भी निकलते निकलते रात के नौ बज चुके थे, मुझे गोरखपुर में अपने एक जानकार के यहाँ रुकना था और उसके बाद ही मेरी अगले दिन वापसी थी दिल्ली के लिए, मैं बाहर आया विदा लेकर तो साथ में बाबा धनी राम का एक सहायक औघड़ बाहर तक छोड़ने आया, हम जैसे ही दरवाज़े पर पहुंचे, एक महिला वहाँ खड़ी थीं, वे हमको देखते ही हमारे पाँव छूने पहुंची, वे मेरी माता समान थीं, मैंने फ़ौरन ही अपने पाँव हटा लिए और उनको पकड़ लिया, उनकी आँखों में आंसू भर आये उसी क्षण, मुझे बहुत अटपटा सा लगा! शर्मा जी को भी बड़ा अजीब सा लगा!
“क्या बात है माता जी?” मैंने पूछा,
“अरे छोड़िये ना? ये पागल है, सबसे अपनी बेटी के बारे में पूछती है, यहीं आ जाती है सुबह सुबह और फिर जो भी निकलता है उसके पाँव पकड़ कर उस से यही पूछती है” वो औघड़ बोला,
मैंने कोई ध्यान नहीं दिया उसकी बात पर!
“चल! चल यहाँ से? दिमाग खराब करके रख दिया है इसने!” वो औघड़ बोला,
“रुक जाओ” मैंने कहा,
वो रुक गया!
“हाँ माता जी? क्या बात है?” मैंने पूछा,
माता जी शब्द सुना तो और बिफर पड़ीं, लगे लग गयीं, मैंने उनको शांत किया,
“बताइये माता जी? क्या बात है?” मैंने पूछा,
वे सिसक रही थीं, सांस बन नहीं रही थी, सो मैंने उनके संयत होने का इंतज़ार लिया, थोड़ी देर बाद वो संयत हुईं,
“क्या बात है?” मैंने पूछा,
“मेरी बात सुनिये” वे बेचारी हाथ जोड़ कर बोलीं,
“कहिये?” मैंने कहा,
“मेरी बेटी, मेरी बेटी” वे बोलीं,
“क्या हुआ आपकी बेटी को?” मैंने पूछा,
“बंगाली ले गया भगा कर” वे बोली,
“कौन बंगाली?” मैंने पूछा,
“सुमेश बंगाली बाबा” वे बोलीं,
“सुमेश?” मैंने पूछा,
“हाँ, सुमेश बंगाली बाबा” वे बोलीं,
“आपने रपट करवायी?” मैंने पूछा,
“हाँ” वे बोलीं,
“कितने दिन हुए?” मैंने पूछा,
“एक साल” वे बोलीं,
एक साल! इतना अरसा!
“अरे चलिए ना आप, कहाँ इसकी बातों में आ गए?” वो औघड़ बोला,
“रुक जाओ” अब शर्मा जी बोले,
“यहाँ किसलिए आती हो आप?” मैंने पूछा,
“ये बाबा लोग हैं, ये बता देंगे, बुला देंगे उसको” वो बोलीं,
इतना भोलापन! मेरा जी अंदर से रो पड़ा ये सुनकर…..
“आइये, अंदर आइये” मैंने कहा,
‘अरे सुनिये तो सही?” वो औघड़ बोला,
“हटो सामने से” मैंने कहा,
वो हट गया!
“आइये माता जी” मैंने कहा,
धुंधलका था, शायद उनको कम दीखता था, इसीलिए मैंने उनका हाथ पकड़ा और अंदर ले आया, अंदर एक जगह बिठाया,
“सुनो, एक गिलास पानी मंगवाइये इनके लिए” मैंने उस औघड़ से कहा,
वो गुस्से से हुंह करके चला वहाँ से,
और फिर एक सहायक एक गिलास पानी ले आया,
मैंने पानी हाथ में लिया और उस महिला को दिया,
“ये ले, अब जग में लेकर आ” मैंने कहा,
मैंने उनको पानी दिया, उन्होंने पिया,
“कहाँ रहती हो आप?” मैंने पूछा,
“यहीं पास के एक गाँव में” वो बोलीं,
“वो बाबा गाँव में ही रहता था?” मैंने पूछा,
“हाँ, गाँव में आ के रह रहा था” वे बोलीं,
“आपकी बेटी की क्या उम्र रही होगी?” मैंने पूछा,
“उन्नीस साल होगी, या बीस” वे बोलीं,
”अच्छा, और उस बाबा की?” मैंने पूछा,
“कोई चालीस साल” वे बोलीं,
“घर में और कौन कौन हैं?” मैंने पूछा,
“एक छोटा लड़का है, उसके पिता हैं” वे बोली,
”अच्छा, आपने ढूँढा उसको?” मैंने पूछा,
“हाँ, लेकिन कोई पता नहीं चला” वे बोलीं,
“यहाँ किसी ने नहीं बताया?” मैंने पूछा,
“कोई बात भी नहीं करता, मजाक, मजाक उड़ाते हैं” वे बोलीं,
मैं समझ सकता था, ये दुनिया है, इसके रंग से कोई अछूता नहीं! सभी हमाम में नंगे होकर नाच रहे हैं! इंसानियत का चीर-हरण हो रहा है! वो चिल्ला रही है, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं! सब उसका मजाक उड़ाने वाले ही हैं!
“माता जी, मुझे अपने गाँव का पता बताइये, जहां आना है, उसका नाम लिखवाइए” मैंने कहा,
अब शर्मा जी ने झट से सारा ब्यौरा लिख लिया!
“मैं कल आउंगा आपके गाँव, वहीँ और बातें करूँगा” मैंने कहा,
उनके आंसू छलक आये!
मुझे भी दुःख हुआ!
एल माँ बेचारी दर-बदर धक्के खा रही थी अपनी बेटी के लिए! और सुनने वाला कोई नहीं! कोई भी नहीं! ये बाबा लोग भी नहीं! कहाँ के बाबा! बस नाम के बाबा!
“आप यहाँ से कैसे जाएंगी?” मैंने पूछा,
“मैं चली जाउंगी” वे बोली और खड़ी हुईं,
मैं उनके साथ दरवाज़े तक गया, और उनको भेज दिया,
फिर मैं वापिस हुआ,
अब शहर नहीं जाना था,
किसी का दर्द आड़े आ गया था!
“गुरु जी?” शर्मा जी बोले,
“हाँ?” मैंने कहा,
“कुछ नहीं!” वे हंसके टाल गए!
मैं समझ गया!
और अब!
वापिस हुआ बाबा धनी राम के कमरे की तरफ! उनसे बात करनी थी इस बारे में! देखें, क्या बोलते हैं!
और हम दोनों चल पड़े उनके कमरे की तरफ!
हम दोनों बाबा धनी राम के पास चले गए, कमरे में देखा तो तो कमरे में वे ही बैठे थे, सामने उनके एक और व्यक्ति बैठा था, हम अंदर चले आये, बाबा ने बिठाया, वे समझ गए कि हम शहर नहीं गए हैं और वहीँ रुकने वाले हैं, उन्होंने उस व्यक्ति को फारिग किया और हमसे मुखातिब हुए!
“क्या बात है, गये नहीं?” उन्होंने पूछा,
“हाँ, नहीं जा पाये” मैंने कहा,
“मैंने तो पहले ही कहा था, रुक जाओ रात यहाँ, सुबह चले जाना” वे बोले,
“हाँ, कहा तो सही था, लेकिन एक बात जाननी थी मुझे” मैंने कहा,
“क्या बात?” उन्होंने पूछा,
“आज मेरे जाते समय दरवाज़े पर एक महिला मिलीं, उन्होंने बताया कि वो काफी समय से यहाँ अ रही हैं, कुछ मालूम करना है उन्होंने, लेकिन किसी ने आज तक कोई मदद क्यों नहीं की?” मैंने पूछा,
“अच्छा, वो पड़ोस के गाँव की महिला?” उन्होंने पूछा,
“हाँ” मैंने कहा,
“हाँ, वो आती है रोज यहाँ, लेकिन उसकी क्या मदद करें?” उन्होंने पूछा,
“क्यों नहीं बताते कि उसकी बेटी कहाँ है?” मैंने कहा,
“अब हमे क्या पता कहाँ है? हमसे पूछ के गयी थी क्या?” वे बोले,
बड़ा अजीब सा जवाब था! मुझे अच्छा नहीं लगा उनका ये जवाब, फिर भी मैंने अपने भाव आने नहीं दिए चेहरे पर,
“पूछ के क्या मतलब है? अरे कम से कम ये तो बताया ही जा सकता था कि ज़िंदा है या नहीं? ज़िंदा है तो कैसी है? कहाँ है?” मैंने कहा,
“देखो, जवान लड़की है, अब भाग गयी किसी के साथ तो हम क्या करें?” वे बोले,
“ठीक है जी, कुछ नहीं किया जा सकता!” मैंने मन मार कर कहा, अब और कुछ कहना बेमायनी था!
मैं खड़ा हो गया, शर्मा जी भी खड़े हो गए,
“रुकिए” बाबा बोले,
“जी?” मैंने कहा,
“उस औरत के चक्कर में मत पड़ो, क्यों ख्वामाखाँ पचड़े में पड़ते हो, रो पीट के शांत हो जायेगी” वे बोले,
“ठीक है” मैंने कहा,
और क्या कहता मैं?
गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन वे बुज़ुर्ग थे और अपनी भाषा नहीं बोल रहे थे, उनके सहायक औघड़ों ने सिखा रहा होगा उनको! और ये तो उनके लिए मामूली सी बात थी!
लेकिन मेरे लिए नहीं!
“गोविन्द के पास जाओ, वो बता देगा आपको रुकने की व्यवस्था” वे बोले,
“धन्यवाद” मैंने कहा और वहाँ से निकल पड़ा,
गोविन्द के पास पहुंचा,
उसको बताया,
उसने कक्ष के विषय में बताया, और हमे वहाँ लेकर चला, हम भी चले, और अपने कक्ष में आ गए,
गोविन्द ने खान एके विषय में पूछा, तो मैंने हाँ कही, साथ में कुछ लेकर भी आना था उसको, वो भी बता दिया,
“एक बात कहूं गुरु जी?” शर्मा जी ने कहा,
“बोलिये?” मैंने कहा,
“इन सालों के दीन-ईमान है या नहीं? इन कुत्तों के साथ ऐसा हो तो पता चले इनको, वो साला औघड़ और वो बाबा, सब साले एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं!” वे बोले,
मुझे हंसी आयी!
“मैं समझ गया आप क्या कहना चाहते हैं” मैंने कहा,
“मुझे बहुत गुस्सा आया, बोला कि रो पीट के शांत हो जायेगी” वे बोले,
“गुस्सा तो मुझे भी आया, लेकिन कर कुछ नहीं सकता” मैंने कहा,
“भाड़ में जाने दो इन सबको, आप उस लड़की का पता लगाइये यदि लग सके तो गुरु जी” वे बोले,
“हाँ, पता लगाऊंगा मैं, इसीलिए यहाँ रुक गया हूँ” मैंने कहा,
“बहुत पुण्य का काम है ये गुरु जी” वे बोले,
“हम्म” मैंने कहा,
तभी खाना आ गया, खाना लगा दिया गया, और साथ में एक बोतल भी ला दी गयी, साथ में हरी पुदीने की चटनी और प्याज, और कुछ सलाद भी, कुल मिलाकर गोविन्द ने मजे बाँध दिए!
“बनाइये शर्मा जी” मैंने कहा,
“अभी लीजिये” वे बोले,
और हमारे पैग शुरू हुए!
हमारी इसी विषय पर बातें होती गयीं और हमने खाना खा लिया, मदिरा भी समाप्त कर ली, इसके पश्चात हम सो गए!
रात अच्छी और गहरी नींद आयी थी, सुबह थोड़ा देर से उठे हम, साढ़े सात हो चुके थे, हम नहाने धोने चले और फिर नित्य कर्मों से बी निवृत हुए, अब कक्ष में आकर बैठे, गोविन्द ने चाय भिजवा दी थी साथ में कुछ पकौड़े भी, चाय पी और पकौड़े भी खाये, उसके बाद वहीँ बैठे थोड़ी देर,
“चलें उस गाँव?” मैंने कहा,
“चलिए” वे बोले,
मैंने गोविन्द को बुलाया, गोविन्द आया, उस से गाँव का पता पूछा, उसने बता दिया, तो हम निकल पड़े उस गान के लिए, उस गाँव के लिए कोई सवारी नहीं थी, गाँव पैदल ही जाना था, कमसे कम चार किलोमीटर! अब जाना था सो जाना था, सो चल पड़े! मुख्य सड़क से मुड़ चले गाँव के रास्ते पर और फिर पैदल पैदल चल पड़े गाँव की तरफ!
“शर्मा जी?” मैंने कहा,
“जी?” वे बोले,
“क्या कहते हो? लड़की अपने आप गयी होगी?” मैंने पूछा,
“हो भी सकता है, लेकिन बहकाये में आ गयी होगी लड़की!” वे बोले,
“हो सकता है” मैंने कहा,
“जाकर मालूम करते हैं कि हुआ क्या था?” वे बोले,
“हाँ, ये तो गाँव से ही पता चलेगा” मैंने कहा,
“साला वो बंगाली बाबा!” वे बोले,
“हाँ! देखते हैं कौन था वो और कहाँ है?” मैंने कहा,
“चलिए पहले गाँव पहुँच जाएँ” वे बोले,
“हाँ जी” मैंने कहा,
और मित्रगण!
हम यूँ ही बातें करते करते आखिर पहुँच गए गाँव!
छोटा सा गाँव था ये, अधिक बड़ा नहीं था, हाँ काफी हरा-भरा था, गाँव के बाहर एक बड़ा सा तालाब भी था, वहीँ पास में गाँव से आ रहे कुछ लोगों से हमने उस महिला के बारे में पूछा, उन्होंने उनके बारे में बता दिया, अब हम वहीँ के लिए चल पड़े!
फिर और किसी से पूछा, उसने भी बता दिया, और आखिरकार हम उस महिला के घर पहुँच गए, साथ आये एक युवक ने बहुत मदद की थी, वो हमको घर तक छोड़ने आया था! मैंने उसका धन्यवाद किया!
हमको देखते ही वो माता जी बाहर के लिए भागीं, जैसे ही पाँव पड़ने लगीं मैंने उनको फिर उठा लिया,
वो हमको अंदर ले गयीं, कच्चा-पक्का मकान था, आसपास पक्के मकान भी बनने लग गये थे वैसे तो, लेकिन यहाँ अभी कच्चा अधिक था! उन्होंने एक खाट बिछायी, हम बैठ गए उस पर, तभी बाहर से एक बुज़ुर्ग व्यक्ति आये, नमस्कार करते हुए वहीँ खड़े हो गए, पता चला वे उन महिला के पति हैं,
उनको यक़ीन नहीं हुआ कि हम उनके घर तक चलकर आये हैं, पैदल पैदल! बेहद ही सीधे-सादे थे वे दोनों ही, फिर एक लड़का भी आ गया वहाँ, उसने नमस्ते की और पाँव छुए, ये उनका लड़का था, नाम था राजेश, वो अंदर गया और पानी ले आया, हमने पानी पिया, और फिर मैंने उनसे कुछ पूछना चाहा, और फिर पूछा, “क्या लड़की का कोई फ़ोटो है आपके पास?”
“हाँ जी है” वे बोलीं,
और उठ कर अंदर गयीं, फिर कुछ फ़ोटो ले आयीं और उनमे से एक फ़ोटो मुझे दे दी, मैंने लड़की को देखा, लड़की बहुत सुंदर थी, मैं समझ गया कि क्यों वो बंगाली बाबा रीझा उस पर!
“ये फ़ोटो मैं रख लूँ?” मैंने कहा,
“हाँ जी” वे बोलीं,
“ठीक है” मैंने कहा,
अब वे उठीं और चूल्हा जलाने चली गयीं, शायद चाय बनाने गयी थीं!
“कहाँ रहता था वो बंगाली बाबा?” मैंने उनके पति से पूछा,
“यही, पास में” वे बोले,
चेहरा रुआंसा हो गया उनका,
“एक साल हो गया?” मैंने पूछा,
“हाँ जी” वे बुज़ुर्ग बोले,
बुज़ुर्ग, वैसे वो बुज़ुर्ग नहीं थे, उनकी दशा ने उनको बुज़ुर्ग बना दिया था, बेटी का गम साल रहा था उनको, और गम तो बड़ों बड़ों को साल देता है!
एक साल से वो अपनी बेटी का पता ढूंढ रहे थे! लेकिन आजतक खाली हाथ थे! वो बाबा कहाँ ले गया उसको, कुछ नहीं पता था, इस कारण से ही ये माता जी अक्सर उस डेरे के चक्कर काटती रहती थीं कि कोई ये बता दे! लेकिन किसी के कान पर जूँ नहीं रेंगी थी आज तक! मुझे दया आ गयी थी! वो मानुष ही क्या जो किसी की व्यथा ही न जाने! उसमे साझा न हो! बस यही एकमात्र कारण था कि मैं यहाँ चला आया था!
माता जी चाय ले आयीं थी, स्टील के गिलासों में, हमने गिलास पकड़े और चाय पीनी शुरू की, चाय बढ़िया बनी थी, चूल्हे की आंच की गंध समा गयी थी उसमे! धुंए का स्वाद सा आ रहा था! कुल मिलाकर चाय में आनंद आ गया!
“नाम क्या है आपकी लड़की का?” मैंने पूछा,
“जी पूनम” उसके पिता जी बोले,
“अच्छा, और उस बंगाली बाबा का?” मैंने पूछा,
“सोमेश” वे बोले,
“कहाँ का था रहने वाला?” मैंने पूछा,
“अपने आप को बंगाल का कहता था” वे बोले,
“यहाँ घर आया-जाया करता था?” मैंने पूछा,
“कभी-कभार, दवाई आदि लाता था बनाकर” उसने कहा,
”अच्छा” मैंने कहा,
“कोई फ़ोटो आदि है उसका?” मैंने पूछा,
“नहीं जी” वे बोले,
तभी माता जी ने चाय और डाल दी हमारे गिलासों में, मना नहीं कर पाये हम, तब तक चाय पड़ चुकी थी! सो पीने लगे!
“आपको कैसे पता चला कि वो लड़की उसके साथ ही गयी है?” मैंने पूछा,
“उनको जाते हुए हमारे गाँव के दो लोगों ने देखा था, वे यही कह के गए थे कि शहर से कुछ दवाइयां लानी हैं” वे बोले,
“अच्छा” मैंने कहा,
“और वक़्त क्या था तब?” शर्मा जी ने पूछा,
“हमे तो शाम को खबर लगी थी” वे बोले,
“अच्छा, और उन लोगों ने कब देखी थी उसके साथ?” मैंने पूछा,
“दोपहर करीब” वे बोले,
“अच्छा” मैंने कुछ सोच कर कहा ऐसा,
“अच्छा, एक काम कीजिये, मुझे उस लड़की का कोई कपड़ा दीजिये” मैंने कहा,
तभी माता जी उस लड़की के कुछ कपड़े ले आयीं, मैंने उनमे से एक दुपट्टा रख लिया साथ में,
“अच्छा माता जी, अब हम चलेंगे, जैसे ही मुझे पता चलेगा मैं आपको बताने आ जाऊँगा” मैंने कहा,
रो पड़ीं बेचारी!
शर्मा जी ने उनको समझाया-बुझाया! तब वे शांत हुईं!
“माता जी, आप कबसे जा रही थीं उस डेरे पर?” मैंने पूछा,
“मुझे दस महीने से हो गए, कोई नहीं सुनता वहाँ, मैंने बहुत गुहार लगाईं, बड़े बाबा से भी उन्होंने कहा कि देखेंगे, लेकिन फिर किसी ने मेरी बात नहीं सुनी” वे बोलीं,
मुझे बहुत गुस्सा आया उस डेरे वालों पर!
“मैं देख लूँगा, आप चिंता न करें” मैंने कहा,
अब हम उठे,
“शर्मा जी इनको अपने फ़ोन नंबर दे दीजिये” मैंने कहा,
तब उनका लड़का एक कॉपी ले आया, और शर्मा जी ने अपने नंबर लिख दिए उसमे,
“अब चलते हैं माता जी” मैंने कहा,
“अभी नहीं, खाना बना देती हूँ मैं” उन्होंने कहा,
“कहाँ तब खायेंगे जब लड़की यहाँ होगी!” मैंने कहा,
फिर से आंसू आ गए उनके!
“नहीं घबराइये आप अब, वो लड़की कहीं भी होगी तो मैं ढूंढ निकालूँगा उसको, चिंता न करो” मैंने कहा,
आंसू पोंछे उन्होंने अपने,
“चलिए शर्मा जी” मैंने कहा,
वे बुज़ुर्ग भी हमारे साथ चले,
”आप यहीं रुकिए, हम चले जायेंगे” मैंने कहा,
वे नहीं माने, साथ ही चलने को कह रहे थे!
आखिर वे भी हमारे साथ साथ चले, हम बात करते हुए चलते रहे और गाँव के बाहर आ गये, यहाँ से हमने अब उनसे विदा ली, वे भी बेचारे रुआंसे हो उठे, उनको भी समझाया और फिर हमने वहाँ से विदा ली,
हम पैदल पैदल उस रास्ते पर चल पड़े,
अभी कोई एक किलोमीटर ही चले होंगे कि पीछे से एक जीप आयी, वो रुक गयी, उसमे और भी लोग बैठे थे, किराया तय कर लिया और फिर हम बैठ गये उसमे! ये अच्छा हुआ!
थोड़ी ही देर में हम वहाँ पहुँच गए! मुख्य सड़क तक, जीप वाले को शहर जाना था, और इसी रास्ते में हमारा वो डेरा भी पड़ता था, तो उस भले आदमी ने हमको वहीँ तक छोड़ दिया, ठीक डेरे के सामने! उसको पैसे दिए और वो आगे बढ़ गया! और हम अपने डेरे प्रवेश कर गये!
अपने कक्ष में आये!
“शर्मा जी, हमको यहाँ से आज ही निकलना होगा” मैंने कहा,
“कहाँ? शहर?” उन्होंने पूछा,
“नहीं” मैंने कहा,
“फिर?” उन्होंने पूछा,
“कैलाश बाबा के डेरे पर” मैंने कहा,
“अच्छा!” वे बोले,
“वहाँ मैं अपना काम कर सकता हूँ” मैंने कहा,
“ठीक है” वे बोले,
“सारा सामान आदि बाँध लीजिये, घंटे भर में यहाँ से निकल चलते हैं” मैंने कहा,
“अभी लीजिये” वे बोले,
“मैं तब तक धनी राम से मिलकर आता हूँ” मैंने कहा,
“जी” वे बोले,
मित्रगण!
कोई दो बजे करीब हम वहाँ से निकल आये, कैलाश बाबा के डेरे के लिए, ये कैलाश बाबा वाराणसी के हैं, अब अपने गुरु का डेरा चलाते हैं, मेरे पुराने परिचित हैं वाराणसी से ही! सत्तर के आसपास की आयु है इनकी, ये भले मानस हैं, इनके बेटे की मुझसे काफी छनती है!
हम पांच बजे वहाँ पहुंचे! फ़ोन कर ही दिया था उनको, वे भी खुश हो गए! उनका बेटा जीवेश भी वहीँ था, ये और भी अच्छी बात थी!
खैर जी,
हम पहुँच गए वहाँ!
कैलाश बाबा बहुत अच्छी तरह से मिले, जीवेश भी वहीँ था, वो भी मिला मुझसे, मैंने अब उनको वहाँ आने का प्रयोजन बताया, वे सहर्ष तैयार थे!
“किसी भी चीज़ की आवश्यकता हो तो जीवेश से कह देना!” वे बोले,
ज़रूर!” मैंने कहा,
और जब मैंने उस महिला की आपबीती और बाबा धनी राम का व्यवहार बताया तो उन्होंने बहुत गालियां दीं सभी को, उन डेरे वालों को!
“वहाँ मत जाना अब!” वे बोले,
“हाँ, अब नहीं जाऊँगा कभी” मैंने कहा,
“यहाँ आया करो सीधा” वे बोले,
“ठीक है” मैंने कहा,
जीवेश ने पानी मंगवाया, हमने पानी पिया! और फिर वहाँ से उठकर हम जीवेश के साथ एक कक्ष में आ गये!
“ये लो! यहाँ आराम करो आप!” वो बोला,
“बढ़िया कक्ष है जीवेश ये तो!” मैंने कहा,
“पिछले साल ही बनवाया था” वो बोला,
“बढ़िया है एकदम!” मैंने कहा,
अब सामान रखा एक तरफ!
“आप आराम करो, मैं आता हूँ अभी” ये बोल, चला गया जीवेश वहाँ से!
और हम बैठे अब बिस्तर पर! थक गए थे!
उस रात महफ़िल जमा दी जीवेश ने! उसके साथ उसके दो जानकार भी थे, वो मिलवाने लाया था मुझसे! मैं मिला उनसे और खाना-पीना हुआ! बाबा से नहीं मिला उस रात, वे समझ गए थे कि जीवेश यदि गायब है तो कहाँ होगा! जीवेश बहुत अच्छा साधक है, उसका अच्छा मार्गदर्शन किया है कैलाश बाबा ने, वे जो आये थे मिलने के लिए एक महाराष्ट्र का था और दूसरा गुजरात का, चार-पांच सालों से यहीं रह रहे थे! वे भी सीख रहे थे कुछ ज्ञान वहाँ! चूंकि उनकी आयु जीवेश के बराबर ही थी इसीलिए उनमे आपस में लगाव भी था और गहरी छन रही थी! उस रात सभी ने खाने-पीने का आनंद लिया और खूब बातें कीं, मैं और शर्मा जी थके
हुए थे तो उसके बाद हम अपने अपने बिस्तर पर ढेर होकर सो गए! कब आँख लगी, पता नहीं चला!
आँख खुली सुबह!
सर भारी भारी था, ये रात के खाने-पीने का असर था, मैं ही जाग था पहले, सो नहाने धोने चला गया, नहा कर आया तो सर ठीक सा हुआ, अब शर्मा जी को जगाया, वे भी जाग गए और स्नानादि के लिए चले गये!
नहा कर वापिस आये वो!
“आज जल्दी उठ गए?” उन्होंने पूछा,
“हाँ, आँख खुल गयी थी” मैंने कहा,
“अच्छा!” वे सर को तौलिये से झाड़ते हुए बोले,
वे भी बैठ गए,
“आओ, ज़रा बाहर देख कर आते हैं” मैंने कहा,
“चलिए” वे बोले,
अब हम बाहर आ गये, कक्ष की कुण्डी लगा दी,
बाहर मौसम बहुत बढ़िया था, घटाएं छायी हुई थीं, लगता था जैसे बारिश पड़ेगी, हवा में ठंडक थी, पेड़ भी मस्ता कर झूम रहे थे! बहुत सुकून वाला मौसम था!
“बारिश पड़ेगी शायद” शर्मा जी बोले,
“लगता तो है” मैंने कहा,
तभी सामने से जीवेश आता दिखायी दिया!
हमारे पास तक आया,
नमस्कार हुई!
“चाय-नाश्ता किया आपने?” उसने पूछा,
“नहीं, अभी नहीं” मैंने कहा,