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वर्ष २०११, जिला गाज़ियाबाद की एक घटना!

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श्रीशः उपदंडक
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 रोने लगा!

 तभी उसको उसके बाल पकड़ कर,

 हिलाया जाड़ोक ने!

 और मारा फेंक कर पीछे!

 यहाँ एक पेड़ लगा था,

 शीशम का!

 उसके नीचे जा गिरा!

 हाय! हाय!

 करता चिल्ला रहा था!

 बदन ऐसे काँप रहा था,

 जैसे विद्युत् के झटके लगे हों!

 सर नीछे झुकाया उसने!

 और मांगने लगा क्षमा!

 पर अब देर हो चुकी थी!

 वो जाड़िया,

 दर्द से कराहता हुआ,

 रो रहा था!

 चिल्ला रहा था!

 हमको बाहर फिंकवाने वाला,

 अब खुद फिंका जा रहा था!

 जाड़िये को,

 तभी जाड़ोक ने उसके पाँव से उठाया,


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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Topic starter  

 वो चिल्लाया!

 नदी किनारे,

 उस बियाबान में कोई सुनने वाला नहीं था!

 न कोई देखने वाला ही!

 दूर रेल का एक पुल था,

 बस,

 वही दिख रहा था उसको,

 या फिर रेल की जली हुई बत्तियां!

 जाड़िये को उठाया,

 और वो चिल्लाया!

 और फेंक मारा पीछे!

 जाड़िया रेत में कलाबाजी सी खाते हुए,

 लुढ़क चला!

 हाय माँ! हाय माँ! चिल्लाता हुआ!

 हाथ जोड़े!

 सर झुकाये!

 और जाड़ोक अट्ठहास करे!

 तभी नीचे उतरी जाड़ोक!

 और नेतराम को घसीट कर लायी एक तरफ!

 वो चिल्लाया!

 रोया!

 गिड़गिड़ाया!


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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 हाथ जोड़े!

 सर रगड़ा!

 और फिर उस जाड़िये को घसीटा!

 और फिर दोनों हवा में उठे!

 और फेंक मारे नदी की तरफ!

 नदी के पास ही बने,

 एक गड्ढे में दोनों औंधे मुंह गिर पड़े!

 गर्दन की हड्डियां टूट गयीं!

 जाड़िये की एक आँख सदा के लिए चली गयी!

 नेतराम के दोनों हाथ टूट कट झूल गये,

 सर फट गया!

 एक कान उखड़ गया,

 एक भौंह फट गयी कान तक!

 नथुने फट गए!

 बस!

 मिल गया फल!

 इस से अधिक में तो,

 वे प्राण ही छोड़ देते!

 इतना दंड बहुत था!

 अब तो अक्ल आ ही जानी थी!

 कि,

 कभी भी किसी मासूम को,


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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 शिकार नहीं बनाना चाहिए!

 नहीं तो,

 एक न एक दिन,

 अंत यही होता है!

 और ऐसा ही हुआ!

 नेतराम का,

 यही हश्र हुआ!

 उसको समझाया था मैंने!

 नहीं समझा!

 और भुगतना पड़ा!

 जाड़ोक वापिस हुई!

 सुंदर स्त्री के रूप में!

 मुस्कुरायी,

 भोग लिया,

 और फिर लोप हुई!

 कर आयी थी अपना काम!

 और मैंने अब सप्त-नमन करने के बाद,

 क्रिया-स्थल का पूजन किया!

 और फिर चला गया,

 स्नान करने!

 वापिस आया अपने कक्ष में,

 और शर्मा जी को,


   
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श्रीशः उपदंडक
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 सब बता दिया!

 वे बहुत खुश हुए!

 सुबह के समय,

 फ़ोन करके बता दिया सबकुछ,

 जितेन्द्र साहब को!

 उन्होंने भी राहत की सांस ले!

 मित्रगण!

 आज नेतराम,

 टूटा-फूटा,

 पत्रियां बांचा करता है!

 हाँ, वो जाड़िया!

 वो जा चुका है!

 छोड़ कर नेतराम को!

 क्या कर रहा है,

 पता नहीं!

 हाँ, अब किसी को तंग नहीं करेगा कभी!

 पूजा के नाम पर!

 किसी मासूम को तंग नहीं कीजिये,

 किसी निरीह का लाभ न उठाइये!

 किसी विवश का लाभ न उठाइये!

 बस,

 यही कहूंगा मैं तो! -----------------साधुवाद!--------------


   
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