वर्ष २०११ गुड़गांव क...
 
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वर्ष २०११ गुड़गांव की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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"इसमें जो दवा दी गयी हैं, उस से तो यही लगता है" वे बोले,
"वो गंभीर क़िस्म का था, कोई परेशानी होती भी, तो मुझे ज़रूर ही बताता था, कभी नहीं लगा कि उसको कोई दिमागी समस्या है" वे बोले,
"अच्छा" वे बोले,
"क्या पता चलता है इनसे कि उसकी मौत का क्या कारण था? क्या कारण रहा होगा?" उसने पूछा,
"उसकी दुर्घटना हुई थी, हो सकता है कि चोटों की वजह से, खून ज़्यादा बह जाने की वजह से, उसकी मौत हुई हो?" वे बोले,
"उसको फ़ौरन ही अस्पताल ले जाया गया था, खून तो लगातार चढ़ाया जा रहा था उसको" वो बोला,
"लेकिन इन कागज़ों के हिसाब से, कोई मदद नहीं मिल रही, कि भी ऐसा कुछ नहीं मिल रहा कि उसकी मौत का क्या कारण रहा होगा" बोले वो,
अब परेशान हो उठा नीलेश,
सर थाम कर,
बैठ गया,
काफी देर तक बैठा रहा,
जब सर उठाया,
तो आंसू भरे थे आँखों में उसके,
उसको कारण जानना था,
अशोक की मौत का,
लेकिन ये कागज़,
कागज़ कुछ नहीं बोल रहे थे!
"नीलेश?" बोले वो,
"जी?" बोला नीलेश,
"जब उसकी मौत हो गयी थी, तो पोस्ट-मोर्टेम हुआ होगा, क्या वो कागज़ हैं तुम्हारे पास?" पूछा डॉक्टर साहब ने,
सर झुका लिया उसने,
"क्या हुआ?" पूछा डॉक्टर साहब ने,
"वो कागज़......." वो बोला,
"हाँ, कहां हैं वो कागज़?" पूछा अनुज साहब ने,
"उसके लिए मुझे घर जाना होगा अशोक के" वो बोला,
"चले जाओ" बोले वो,
"मुझसे, उसकी पत्नी की, बच्चों की सूरत नहीं देखी जाती डॉक्टर साहब, नहीं देखी जाती" वो बोला,


   
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श्रीशः उपदंडक
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और फफक फफक के रो पड़ा,
समझ गए डॉक्टर साहब,
उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी,
अपने दोस्त की मौत से,
वो पहले ही आहत था,
अब उसके परिवार से,
सामना होते देख,
नहीं रोक पाता अपने आपको!
"जाना तो पड़ेगा, तभी पता चलेगा" वे बोले,
उसने बहुत सोचा,
बहुत देर तक,
शून्य में ताका,
फिर खड़ा हुआ,
हाथ जोड़े,
"डॉक्टर साहब, मैं परसों आता हूँ आपके पास, कागज़ लेकर" वो बोला,
"हाँ, वो लाने हैं तुम्हे नीलेश" वे बोले,
"जी, मैं लेता आऊंगा, परसों आता हूँ" वो बोला,
और नमस्कार करता हुआ,
चला गया बाहर,
डॉक्टर साहब बहुत हैरान थे!
कितना नेक और भला इंसान है ये नीलेश!
नहीं तो आज,
कौन किसकी परवाह करता है!
जीते जी नहीं करता,
और ये तो,
अपने मृतक दोस्त के लिए,
आंसू बहा रहा है!
नीलेश ने,
उनके दिल में एक ख़ास जगह बना ली!
उसी क्षण से!
वे उठे तब!
और ठंडा पानी लिया!
तभी रौशनी चमकी!
मंजुला आ गयी थीं वापिस,


   
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श्रीशः उपदंडक
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गाड़ी पार्क की,
और चली आयीं सीधे अंदर ही,
अपने कागज़ और बैग रखे उन्होंने,
और बैठ गयीं,
"बाद में कुछ रहा?" पूछा उन्होंने,
"नहीं, एक पल के लिए, तभी आँख खोली थी उसने" वो बोलीं,
"चलो, अच्छा संकेत है" वे बोले,
"हाँ, चेतना जागृत होने लगी है" वो बोली,
"शुक्र है, अब ठीक हो जाएगा!" वो बोले,
"हाँ! दवाइयाँ काम करने लगी हैं अब!" वो बोलीं,
"बच जाए!" वे बोले,
"मुझे भी लगता है" वे बोलीं,
और फिर उठकर,
अंदर चली गयीं वो,
रह गए अकेले ही,
डॉक्टर साहब वहाँ,
तभी नज़र फिर से,
उन्ही कागज़ों पर पड़ी,
उन्होंने कागज़ उठाये,
और उनको अब पलटना शुरू किया,
कागज़ पलटे तो,
एक जगह नज़र रुक गयी,
यहां दो दवा ऐसी थीं,
जो तब इस्तेमाल हुआ करती हैं,
जब कोई दवा अपना बुरा असर(रिएक्शन) छोड़ देती है!
अर्थात,
कोई दवा ऐसी अवश्य ही थी,
जो अपना बुरा असर छोड़ रही थी!
लेकिन कौन सी?
ये नहीं लिखा था कहीं भी!
अब मामला गंभीर लगा उन्हें!
सारे पृष्ठ पलटे उन्होंने,
खंगाल लिए,


   
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श्रीशः उपदंडक
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लेकिन उस दवा के बारे में,
कुछ पता न चला!

दिमाग भन्ना उठा उनका!
नशा सारा,
काफूर हो चला!
ये क्या है?
अटकलें लगा लीं उन्होंने!
दिमाग इधर-उधर भागने लगा!
कभी इधर!
कभी उधर!
उन्होंने तभी,
एक बड़ा सा पैग बनाया,
और गटक गए!
ऐसा कैसे हो सकता है?
दवा कैसे गलत असर कर रही थी?
और कौन सी थी?
ऐसी ऐसे विचार!
एक डॉक्टर,
फंस गया था सच और अँधेरे के बीच!
वो उठे,
और सीधे अपने कमरे में चले गए,
वही कागज़ याद आते रहे उन्हें!
वही कोई दवा!
और अटकलें!
एक संदेह उभर उठा!
उठा तो,
जल्दी जली अंकुर से पौधा,
और पौधे से पेड़ बनते देर न लगी उसको!
उस पेड़ की सघन छाया में,
घिर गए डॉक्टर साहब!
खैर,
दिल को समझाया,
दिमाग को समझाया,
और नींद ली,


   
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श्रीशः उपदंडक
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सुबह हुई,
दिन-चर्या आरम्भ हुई,
चाय-नाश्ता किया,
फिर भोजन!
और दोपहर का खाना लेकर,
चले गए अपने नर्सिंग-होम!
जब जा रहे थे,
तभी डॉक्टर आशा का फोन आया,
उन्होंने फ़ोन उठाया,
और खबर मिली कि,
सुशील की तबीयत अचानक से खराब हो उठी है,
उसकी धड़कन और रक्त-चाप,
असंभावित तौर पर,
नीचे गिर गया है,
समस्या गंभीर हो चली है,
वहाँ सब परेशान हैं!
दिल धड़क उठा डॉक्टर साहब का!
गाड़ी दौड़ा दी उन्होंने,
वहाँ पहुंचे,
गाड़ी पार्क की,
और दौड़ पड़े,
हाथ-मुंह साफ़ किये,
और सीधा सुशील के पास,
और भी डॉक्टर्स घेरे पड़े थे सुशील को,
अब जांच की,
और तभी,
डॉक्टर रेहान, रक्त की परीक्षण रिपोर्ट ले आये,
सन्न रह गए डॉक्टर साहब!
गिरते गिरते बचे!
किसी दवा ने रिएक्शन किया था!
और जिस दवा ने रिएक्शन किया था,
उसका पता भी चल गया था!
फ़ौरन ही, इंजेक्शन दिए गए सुशील को,
खून में, दवाइयाँ चढ़ा दी गयीं,


   
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श्रीशः उपदंडक
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और हर आधे घंटे में जांच होने लगी!
डॉक्टर साहब भागे अपने कमरे की तरफ,
घर फ़ोन किया,
और उनके कमरे में जो कागज़ मेज़ पर रखे थे,
वे मंगवा लिए अपने बेटे से अपने नर्सिंग-होम,
बेटा आधे घंटे से कम समय में में,
वो सारे कागज़ दे गया,
फ़ौरन खंगाले उन्होंने,
और उस दवा का पता चल गया,
जिस से ये रिएक्शन हुआ था,
और जो दवा अब दी गयी थी,
वही दवा उन कागज़ों के आखिरी पृष्ठ पर,
लिखी हुई थीं!
कंपकंपी छूट गयी उनकी!
कलेजा मुंह को आ गया!
फौरन ही पानी पिया,
दिमाग भनक उठा!
गरम हो गया था दिमाग!
कनपटियों से पसीना बह चला!
थूक गटकना भारी हो गया!
नीलेश ने बताया था कि,
अशोक नहीं बच सका था,
इसका मतलब, कि ये,
सुशील भी??
नहीं नहीं!
पूरी जान लगा देंगे वो!
बचा ही लेंगे उसको!
चाहे कुछ भी हो!
हर हाल पर,
बचा ही लेंगे!
वो सारे कागज़, उन्होंने अपने बैग में रख लिए!
और कुर्सी से कमर लगा,
बैठ गए,
फिर उठे,


   
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श्रीशः उपदंडक
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एक घंटा बीता चुका था,
सुशील के पास भागे,
रक्तचाप और धड़कन अब,
सामान्य हो चली थीं!
सुकून की सांस लीं उन्होंने!
रिएक्शन करने वाली दवा का असर,
अब दूर होता जा रहा था!
लेकिन अशोक के साथ क्या हुआ?
क्या कोई दवा बचा पायी उसे?
और नीलेश,
नीलेश तो कल आएगा!
कल!
कल तो बहुत दूर है अभी!
बहुत दूर!
शाम तक, सुशील की,
तबीयत सामान्य ही रही!
उनको चैन पड़ा था अब!
दवाएं लगातार दी जा रही थीं!
बस असर करती रहें!
और फिर जल्दी ही,
होश आ जाएगा उसको!
एक बार होश आ जाए,
तो जीवन की लगाम पकड़ लेगा वो!
फिर मुश्किल नहीं उसको बचाना!
शाम हुई,
और वे डॉक्टर साथियों को,
कुछ समझाने के बाद,
बाहर आये,
मंजुला आ चुकी थी,
उस से बात हुई उनकी,
समझाया कुछ,
और उसके बाद,
वे चल पड़े वापिस,
अपने घर!


   
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श्रीशः उपदंडक
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वे घर पहुंचे,
वही कागज़ निकाले,
और पढ़ने बैठ गए,
सारी दवाएं वही थीं,
और अब चल रही थीं!
जिस दवा ने रिएक्शन किया था,
उसको बंद करवा दिया गया होगा,
अशोक के मामले में,
लेकिन आगे के कागज़ नहीं थे उनके पास,
और नीलेश,
वो कल आना था,
और कल,
बहुत दूर रुका हुआ था कहीं!
समय काटे नहीं काट रहा था!
उन्होंने फिर से अपनी स्कॉच की बोतल निकाली,
और फिर से चार पैग मारे पटियाला,
और डूब गए सोच में!
नीलेश का इस समय पर आना,
मतलब,
जब सुशील दाखिल है,
ये संयोग है?
क्या ये भी एक संयोग?
इस से क्या पता चलता है?
यदि ये संयोग है,
तो कैसा विचित्र संयोग है!
और ये कुछ संयोग,
एक साथ, एक के बाद एक,
घटते ही जा रहे हैं!
इसी सोच में,
वो दिन काटा,
रात काटी,
और सुबह हुई,
सुबह पहंचे अपने नर्सिंग-होम,
सुशील को देखा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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हालत जस की तस थी,
सुधार तो नहीं था वैसे,
लेकिन तबीयत बिगड़ी भी नहीं थी उसकी,
ये सुधार के ही लक्षण थे!
वो दिन काफी तंग रहा उनका,
व्यस्त रहे वहुत,
फिर हुई शाम,
मंजुला आ चुकी थीं,
उनको कुछ बताया उन्होंने,
कुछ निर्देश दिए,
और चले आये बाहर,
गाड़ी स्टार्ट की,
और चल दिए अपने घर की ओर,
आज बेसब्री से इंतज़ार था उस नीलेश का,
जो कागज़ लाने वाला था बाकी के,
ईलाज के, पोस्ट-मोर्टेम के,
आठ बज गए,
नज़रें लग गयीं दरवाज़े पर,
खिड़की से, सभी पर्दे,
हटा दिए थे उन्होंने,
पैग चल ही रहे थे उनके,
और फिर बजे नौ!
ठीक नौ बजे,
बड़ा दरवाज़ा खुला,
नीलेश ने अंदर प्रवेश किया,
हाथ में एक झोला सा था उसके,
डॉक्टर साहब खड़े हुए!
अपने कमरे के दरवाज़े तक आ गए!
नीलेश आया,
हाथ जोड़कर नमस्कार की,
अंदर ले गए उसको वे,
बिठाया, पानी पिलाया,
और हाल-चाल पूछे!
"कागज़ मिल गए?" पूछा उन्होंने,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"जी, लेकिन पोस्ट-मोर्टेम वाले नहीं मिल पाये, एक दो रोज़ में, वो भी मिल जाएंगे" बोला नीलेश!
"कोई बात नहीं, ये कागज़ मुझे दो" वे बोले,
नीलेश ने अब वो झोला,
आगे कर दिया,
लपक लिया डॉक्टर साहब ने,
काफी सारे कागज़ थे अब उसमे!
उन्होंने फ़ौरन ही कागज़ निकाले,
तारीख के हिसाब से,
उनका बंडल बनाया,
और अब लगे पढ़ने,
पहला पन्ना पलटा,
और जैसे ही नज़र पड़ी,
उछल पड़े!
यहाँ भी जिस दवा ने रिएक्शन किया था,
वो वही दवा ही लिखी थी,
और अब उसकी जगह जो नयी दवा दी गयी थी,
वो भी लिखी थी,
चकित से होकर,
देखा उन्होंने नीलेश को,
नीलेश दोनों हाथ बांधे,
नीचे बिछे कालीन को देख रहा था!
उन्होंने आगे पढ़ना शुरू किया,
एक दिन बीत गया था,
अशोक का रक्तचाप और धड़कनें सब सामान्य हो चली थीं!
ठीक वैसे ही,
जैसे सुशील के साथ हो रहा था!
आगे पढ़ा,
ईलाज चला,
और फिर उसी रोज,
अशोक की हालत खराब हुई,
उसकी दौरा पड़ा था,
हृदय का दौरा!
उसी रात को,


   
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श्रीशः उपदंडक
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कोई साढ़े दस बजे!
डॉक्टर साहब तो,
पसीने में नहा बैठे!
हाथ काँप चले,
हाथों में जो पसीना आया था,
उस से वो कागज़ भी गीले होने लगे!
सामने दीवार-घड़ी देखी,
सवा नौ बजे थे अभी!
आशंका से मन में भय बैठ गया!
अभी सवा घंटा था बाकी!
"डॉक्टर साहब, क्या इनसे कुछ पता चल जाएगा?" पूछा नीलेश ने,
"सारे पढ़ने पड़ेंगे नीलेश, तब बताऊंगा" वे बोले,
अब उठा नीलेश,
"ठीक है, मैं पोस्ट-मोर्टेम की भी रिपोर्ट लाऊंगा, तब तक आप पढ़ लीजिये" वो बोला,
"ठीक है नीलेश" वे बोले,
अब नीलेश ने,
नमस्कार की,
और चला गया बाहर!
डॉक्टर साहब ने तभी,
तभी फ़ोन लगाया नर्सिंग-होम!
पूछा सुशील के बारे में,
हालत सामान्य ही थी,
दिन की ही तरह!
चैन नहीं पड़ा उन्हें!
घड़ी देखी,
समय आगे भाग रहा था!
डॉक्टर साहब अब!
हो चले अर्ध-विक्षिप्त से!
दौरा पड़ेगा!
दौरा पड़ेगा!
बस!
यही कहते रहे!
और इसी पशोपेश में,
अपने वस्त्र पहने,


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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जूते पहने,
गाड़ी स्टार्ट की,
और दौड़ चले नर्सिंग-होम की ओर!

हकबकाहट में सीधे नर्सिंग-होम पहुंचे,
वे सभी कागज़ उनके साथ में थे,
अपने बैग में लाये थे रख कर,
सीधे ही सीढ़ियां चढ़ीं उन्होंने,
दूसरे डॉक्टर्स हैरान था कि डॉक्टर साहब,
इस समय अचानक कैसे आ गए,
और डॉक्टर साहब!
डॉक्टर साहब अर्ध-विक्षिप्त अवस्था में,
"दौरा पड़ेगा, दौरा पड़ेगा" बोले जा रहे थे!
वे भागे सीधा वहीँ जहां,
सुशील दाखिल था,
वहाँ मंजुला और दूसरे डॉक्टर्स आदि सब लगे हुए थे,
सुशील की जांच में,
डॉक्टर साहब को देखा,
तो सभी हैरान!
आनन-फानन में,
सभी को निर्देश दे दिए उन्होंने,
कि दौरा पड़ेगा सुशील को!
अभी दौरा पड़ेगा!
ठीक साढ़े दस बजे,
अभी पच्चीस मिनट शेष थे,
सारी मशीन और दूसरे तमाम ताम-जहां सब,
इकट्ठे करवा लिए,
और यही कहते रहे,
"दौरा पड़ेगा! दौरा पड़ेगा!"
मंजुला आयीं उनके पास,
थोड़ा सा झिड़का उन्हें,
लेकिन वे तो बेचैन थे!
अपने आप से भी बेखबर!
बस सुशील और घड़ी को ही देखे जा रहे थे!
फिर मिनट बीते,


   
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श्रीशः उपदंडक
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एक एक करके,
दो मिनट रह गए,
डॉक्टर साहब,
मुस्तैद हो गए तभी!
आ गए सुशील के पास,
सभी को,
हाज़िर कर ही लिया था उन्होंने!
सभी उनके इस व्यवहार को देखकर,
हैरान ही नहीं, परेशान भी थे!
मित्रगण!
ठीक साढ़े दस बजे!
ठीक साढ़े दस बजे!
दिल का दौरा पड़ गया सुशील को!
डॉक्टर साहब,
जो अब तक अर्ध-विक्षिप्त थे,
पूर्ण विक्षिप्त से हो गए थे!
सभी मौजूद लोगों के,
होश फ़ाख़्ता हो गए!
मंजुला को तो,
जैसे काटो तो खून नहीं!
डॉक्टर्स जुट गए सुशील के पास,
और लगे मशक्क़त करने!
आखिर घंटे भर बाद,
हाल सुधारनी शुरू हुई सुशील की!
डॉक्टर साहब,
वहीँ फर्श पर बैठ गए!
मंजुला ने उठाया उन्हें!
और ले गयीं बाहर,
अपने कक्ष में!
डॉक्टर साहब खामोश थे!
एकदम खामोश,
मुर्दे जैसे,
कहाँ देख रहे थे,
कोई भान ही नहीं था!


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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मंजुला ने पानी दिया उन्हें!
और झिंझोड़ा उनको!
तब जाकर तन्द्रा टूटी उनकी!
"आपको कैसे पता था?" पूछा मंजुला ने,
कुछ न बोले,
चुप ही रहे!
फिर से सवाल हुआ उनसे,
फिर कुछ न बोले!
तीसरी बार भी यही सवाल हुआ,
तो उन्होंने,
अपने बैग की तरफ इशारा कर दिया,
वे न समझ सकीं!
"क्या है उसमे?" पूछा,
"कागज़" वे बोले,
अब कागज़ ही होंगे!
"कैसे कागज़?" पूछा,
"अशोक के कागज़" वे बोले,
"कौन अशोक?" पूछा,
"था एक अशोक, अब नहीं है" वे बोले,
"कहाँ से आये वो कागज़?" पूछा,
"नीलेश दे गया था" वे बोले,
"नीलेश कौन?" पूछा,
"अशोक का दोस्त" वे बोले,
सब पहेलियाँ सी लगी उन्हें!
बैग तक गयीं,
बैग खोला,
और पढ़ना शुरू किया,
ये सरकारी अस्पताल के कागज़ थे,
डॉक्टर साहब उठे,
और वो कागज़ ले लिए उन्होंने,
और वो जगह ढूंढी,
उन कागज़ों पर,
जहां वो घटना लिखी थी,
साढ़े दस बजे की!


   
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श्रीशः उपदंडक
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जब दिल का दौरा पड़ा था,
उस अशोक को!
मंजुला ने पढ़ना शुरू किया,
सबकुछ सटीक था!
फिर रिएक्शन वाली घटना बतायी,
वो कागज़ दिखाए,
वे भी देखे मंजुला ने!
ये क्या हो रहा था?
लगता था जैसे,
भविष्य है इस सुशील का,
इन कागज़ों में,
कागज़ रख दिए उन्होंने,
डॉक्टर साहब को देखा,
और चली गयीं उनके पास,
"मुझे सारी बात बताइये" बोली मंजुला,
अब डॉक्टर साहब ने,
घड़ी देखी,
और बताना शुरू किया,
कि कैसे आया था वो नीलेश पहली बार,
बेचारा, कितना परेशान था,
रो रहा था,
अपने दोस्त के लिए,
कारण ढूंढ रहा था अपने दोस्त की मौत का!
सारी बात कह सुनाई!
मंजुला को बड़ी हैरानी हुई!
वे उठीं,
वो कागज़ उठाये,
और पहला पन्ना देखा,
अवाक रह गयीं वो!
"क्या नाम बताया था आपने उस मरीज़ का?" पूछा मंजुला ने,
"अशोक" वे बोले,
"अशोक?" पूछा मंजुला ने,
"हाँ अशोक" वे बोले,
"लेकिन...यहां तो नीलेश लिखा है?" बोलीं मंजुला!


   
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