ये अनुष्का थी!
"हाँ? कैसी हो?" मैंने पूछा,
"ठीक हूँ" उसने कहा,
"खाना खाया?" मैंने पूछा,
"अभी नहीं" उसने कहा,
"कब खाओगी?" मैंने पूछा,
"खा लूंगी" उसने कहा,
"ठीक है" मैंने कहा,
"आप कब आओगे?" उसने पूछा,
ये सवाल बड़ा अजीब सा था!
अकेलापन?
क्या ये अकेलापन था?
या फिर?
फिर.................
"आ जाऊँगा" मैंने बताया,
"कब?" उसने पूछा,
"कल" मैंने कहा,
"नहीं" उसने कहा,
"फिर?" मैंने पूछा,
"आज" उसने कहा,
"लेकिन आज ही तो आये हैं हम?" मैंने कहा,
"मुझे नहीं पता" उसने कहा,
"अच्छा ठीक है" मैंने कहा,
और फ़ोन काट दिया मैंने!
और इस से पहले मैं कुछ बताता शर्मा जी को, मेरे पास से किसी देख की गंध आयी मुझे! कोई पीछा कर रहा था मेरा! लगातार!
मैंने फ़ौरन डामरी-विद्या से काट की!
गंध ख़तम!
अब पता करना था कि ये कौन है?
क्या चाहता है?
खैर,
मैंने अब सबकुछ शर्मा जी को बताया! बस वो मिलने वाली बात नहीं, हिम्मत नहीं हो सकी! सच में नहीं बता सका!
शाम हुई,
मैंने शर्मा जी को वहीँ रहने को कहा,
बताया कि मैं जा रहा हूँ ज़रा मिलने अनुष्का से, कोई काम है, और इतना बता मैं चला गया!
वहाँ पहुंचा,
अंदर गया,
विमला जी जा चुकी थीं, कोई और था, मैंने उनसे कहा कि मुझे मीणा है अनुष्का से, उन्होंने बुला लिया उसको!
वो आयी!
खुश हो गयी!
आँखें चमक गयीं!
कुछ भाव छिपाए नहीं छिपते!
वो भी न छिपा सकी!
"आओ" मैंने कहा,
अब मैं उसको लेकर वहीँ पास में घास पर बैठ गया!
छाया थी यहाँ, बड़े बड़े पेड़!
वो बैठ गयी,
मैं भी!
"कैसे बुलाया?" मैंने पूछा,
"ऐसे ही!" उसने कहा,
"ऐसे ही मुझे परेशान कर दिया?" मैंने कहा,
"आप परेशान हो गए?" उसने पूछा,
मैंने आँखों में देखा उसकी!
"नहीं" मैंने कहा,
बात सम्भाली!
"मैं कल जाऊँगा" मैंने कहा,
"अच्छा" उसने आँखें नीचे करते हुए कहा,
"हाँ, और सुनो, मैं संपर्क में रहूँगा तुम्हारे, हाँ, पढ़ाई पर ध्यान देते रहना अपनी" मैंने कहा,
"हाँ" वो बोली,
"खाना खाया?" मैंने पूछा,
"हाँ" उसने कहा,
''अच्छा किया!" मैंने कहा,
कुछ न बोली!
"क्या हुआ?" मैंने पूछा,
"कुछ नहीं" उसने कहा,
मैं भांप गया!
"देखो, मत डरो! कोई नहीं आएगा यहाँ! किसी की हिम्मत नहीं! कोई नहीं ढूंढ पायेगा तुमको! आराम से रहो!" मैंने कहा,
उसने फिर से गरदन हिलायी!
"अब मैं चलूँ?" मैंने पूछा,
उसने मेरी बाजू पकड़ी!
फिर हटा ली!
सकपका गयी!
अब मैंने थाम उसका हाथ!
"सुनो! अनुष्का! मेरे होते हुए तुम ज़रा भी न घबराओ!" मैंने कहा,
चुप!
उसका हाथ मैंने दूसरे हाथ में रखा!
"पढ़-लिख जाओ! अपनी ज़िंदगी बनाओ!" मैंने कहा,
फिर से गरदन हिली!
"अब मैं चलूँगा" मैंने कहा,
"रुकिए" वो बोली,
"बोलो?" मैंने पूछा,
"कल जाओगे आप?" उसने पूछा,
"हाँ कल" मैंने कहा,
"मिल के जायेंगे न?" उसने पूछा,
"हाँ! ऐसे ही थोड़े चला जाऊँगा?" मैंने कहा,
मुस्कुरायी!
मैं भी मुस्कुराया!
"अब चलता हूँ" मैंने कहा,
"रुकिए" वो बोली,
मैं रुक गया!
मैंने उसका हाथ छोड़ा!
उसने हाथ वापिस किया!
"अब चलता हूँ!" मैं कह कर खड़ा हुआ!
उसने फिर से मेरा हाथ पकड़ लिया!
अब मैंने उसको देखा,
आँखों में एक अजीब सी भाषा!
एक ऐसी भाषा जो समझो तो ग्रन्थ न समझो तो हवस!
मैं बैठ गया!
"सच बताओगी मुझे?" मैंने पूछा,
"हाँ" उसने कहा,
"मेरे बिना डर लग रहा है?" मैंने पूछा,
उसने सर हिलाकर हाँ कहा!
फिर से आँखें डबडबाईं उसकी!
मैं बंधा!
एक डोरे में!
अजीब सा डोरा!
बड़ा अजीब!
"अच्छा ठीक है, अभी रहता हूँ यहाँ, ठीक?" मैंने कहा,
फिर से हाँ में गरदन हिलायी!
"अब जाओ!" मैंने कहा,
उसको उठाया मैंने अब!
और फिर उसको छोड़ा अंदर तक!
और चला आया बाहर!
बिना पीछे देखे!
पीछे देखने से डोरे में गाँठ पड़ जाती! क़ैद होने की गाँठ!
मैं चला आया वहाँ से!
सवारी पकड़ी ही थी कि फ़ोन बजा!
फ़ोन उठाया तो ये फ़ोन अनुष्का का था! अभी तो मिलकर आया ही था? अब क्या हुआ? मैंने बात की तब!
"हाँ?" मैंने पूछा,
"पहुँच गए?" उसने पूछा,
"अभी नहीं, जा रहा हूँ" मैंने कहा,
"पहुँच कर फ़ोन करना मुझे, याद से" उसने कहा,
"ठीक है" मैंने कहा और फ़ोन काटा,
तो जी,
पहुंचा मैं अपने डेरे पर!
कमरे में पहुंचा,
शर्मा जी चाय पी रहे थे!
मैं सीधा गुसलखाने गया, हाथ-मुंह धोये, पोंछे!
और बैठा अब!
"कैसी है?" उन्होंने पूछा,
"ठीक है" वो बोले,
"कोई फ़ोन तो नहीं आया कहीं से?" उन्होंने पूछा,
"मुझे तो नहीं बताया उसने, शायद नहीं आया होगा" मैंने कहा,
''चलो अच्छी बात है" वे बोले,
"हाँ" मैंने कहा,
''चाय पियेंगे?" उन्होंने पूछा,
"अभी नहीं" मैंने कहा,
तभी याद आया, फ़ोन करना था!
मैं उठा वहाँ से, बाहर आया और फ़ोन किया, उसको! बात हुई!
"एक बात बताओ? कोई फ़ोन तो नहीं आया?" मैंने पूछा,
"नहीं कोई भी नहीं" उसने कहा,
"आये तो उठाना नहीं" मैंने कहा,
"हाँ, नहीं उठाऊंगी" वो बोली,
"ठीक है" मैंने कहा,
"आप पहुँच गए?" उसने पूछा,
"हाँ" मैंने कहा,
"अब कल आयेंगे?" उसने पूछा,
मुझे हंसी आ गयी!
"हाँ, कल आउंगा" मैंने कहा,
"कब?" उसने पूछा,
"शाम को" मैंने कहा,
"नहीं" उसने कहा,
"फिर?" मैंने पूछा,
"सुबह" वो बोली,
"सुबह? नहीं आ सकता" मैंने कहा,
"क्यों?" उसने पूछा,
"कुछ काम है" मैंने ऐसे ही कहा,
"काम निबटा के आ जाना?" उसने कहा,
"कोशिश करूँगा" मैंने कहा,
"कोशिश नहीं पक्का!" वो बोली,
"कोशिश करूँगा" मैंने कहा,
"अच्छा, ठीक है" मैंने कहा,
"मैं इंतज़ार करुँगी" उसने कहा,
"ठीक है" मैंने कहा,
और फ़ोन कटा!
मैं अंदर आया!
और लेट गया!
शर्मा जी चाय लेने चले गये!
चाय आयी!
मैंने पी! और उसके बाद लेट गया मैं!
आराम किया थोड़ा!
फिर हुई शाम!
और हमने शुरू की अपनी महफ़िल जमानी!
खाने-पीने का इंतज़ाम किया और फिर मैं बोतल ले आया!
किया शुरू कार्यक्रम!
अभी एक ही जाम लिया था कि फ़ोन बजा!
फ़ोन अनुष्का का ही था!
मैंने उठाया!
"हाँ?" मैंने पूछा,
"क्या कर रहे हैं आप?" उसने पूछा,
"बैठे हैं बस!" मैंने यही बताया!
'वो...सुरूर?" उसने पूछा,
"आ....हाँ! वही" मैंने कहा,
वो हंसी!
एक खनकती हंसी!
मैं भी हंस गया!
"तुम क्या कर रही हो?" मैंने पूछा,
"लेटी हुई हूँ!" वो बोली,
"चलो लेटो! आराम करो!" मैंने कहा,
"नहीं, बात करो मुझसे" वो बोली,
अल्हड़ता!
नितांत अल्हड़ता!
"क्या बात करूँ?" मैंने पूछा,
"कुछ भी" उसने कहा,
"सुनो अनुष्का! आराम करो! बाद में, कल बात करते हैं!" मैंने कहा,
"नहीं" वो बोली,
"फिर?" मैंने पूछा,
"बात करो मुझसे?" उसने कहा,
"अब आराम करो!" मैंने कहा,
"नहीं" उसने कहा,
"ये तो गलत बात है?" मैंने कहा,
"नहीं, कोई गलत नहीं" उसने कहा,
"हम व्यस्त है थोड़ा!" मैंने कहा,
"अच्छा ठीक है!" वो गुस्से से बोली और फ़ोन काट दिया!
बला टली!
फिर कार्यक्रम आरम्भ हुआ!
और हमने फिर से जाम से जाम टकराए!
निबटा दिया कार्यकर्म!
मैं लेट गया!
फ़ोन बजा!
मैं घबराया!
कहीं अनुष्का ही न हो!
देखा,
अनुष्का ही थी!
मैं डरा!
कहीं नशे की झोंक में कुछ कह ही न दूँ!
कहीं कोई बेकार की बात!
काट सकता नहीं था, मजबूरी थी!
बड़ी हिम्मत से फ़ोन उठाया!
"हाँ अनुष्का?" मैंने कहा,
"सो गए?" उसने पूछा,
"नहीं तो" मैंने कहा,
"क्या कर रहे हो?" उसने पूछा,
"इंतज़ार" मैंने कहा,
"किसका?" उसने पूछा,
"नींद का" मैंने कहा,
वो हंसी!
मुझे भी हंसी आ गयी!
"इतनी जल्दी?" उसने पूछा,
"जल्दी? साढ़े ग्यारह बजे हैं" मैंने कहा,
"तो?" उसने पूछा,
"कुछ नहीं!" मैंने कहा,
वो फिर हंसी!
"अब सो जाओ!" मैंने कहा,
"मुझे नींद नहीं आ रही" उसने कहा,
"आ जायेगी" मैंने कहा,
"आप सो जाओ, ठीक है" वो बोली,
"अच्छा!" मैंने कहा,
"शुभ रात्रि" वो बोली,
"शुभ रात्रि" मैंने कहा,
फ़ोन कटा!
मैं बचा!
कोई गलत बात नहीं की!
मैं सो गया!
सुबह उठा!
नहाया-धोया और फिर बैठा!
शर्मा जी भी उठे, नहाये-धोये!
आ बैठे!
"चाय लाऊं?" वे बोले,
"ले आओ" मैंने कहा,
वे चले गए,
तभी फिर से फ़ोन बजा!
मैंने चार्जर हटाया, और फ़ोन सुना,
ये अनुष्का थी!
"हाँ!" मैंने कहा,
"उठ गए?" उसने पूछा,
"हाँ" मैंने कहा
अनुभव क्र. ६० भाग ३
By Suhas Matondkar on Sunday, September 7, 2014 at 4:04pm
"कब आओगे?" उसने पूछा,
"काम निबटा कर" मैंने कहा,
"कब तक?" उसने पूछा,
'आ जाऊँगा" मैंने कहा,
"कब तक?" उसने पूछा,
क्या कहूं?
"बारह तक आ जाऊँगा" मैंने कहा,
"जल्दी आओ" उसने कहा,
"आ जाऊँगा" मैंने कहा,
"मैं इंतज़ार कर रही हूँ" उसने कहा,
अब ये क्या?
"ठीक है!" मैंने कहा,
फ़ोन कटा!
मैं फंसा!
जाना ही पड़ेगा!
बजे ग्यारह,
मैं चला उधर!
पहुंचा!
विमला जी ने बुलाया उसको!
वो आयी! बहुत सुंदर लग रही थी नए कपड़ों में! बहुत सुंदर!
आयी!
खुश थी!
"सुंदर लग रही हो!" मैंने कहा,
वो मुस्कुरायी!
"आओ मेरे साथ" उसने कहा,
और वो मुझे लेके चल पड़ी!
ये एक किताबघर सा था, बहुत सारी किताबें रखीं थीं वहाँ, को शिक्षण-सदन सा लगता था, वो मुझे एक जगह ले गयी, वहाँ एक बड़ी सी पढ़ाई करने वाली मेज़ और कुर्सियां पड़ी थीं, हम बैठ गये वहाँ!
"ये कैसी जगह है?" मैंने पूछा,
"पढ़ाई की जगह" वो बोली,
"ये तो अच्छा है!" मैंने कहा,
"हाँ" वो बोली,
कुछ पल मैंने आसपास किताबें देखीं उधर! मोटी मोटी किताबें!
"हाँ, अब बताओ, किसलिए बुलाया?" मैंने पूछा,
"ऐसे ही!" उसने कहा,
"ऐसे ही?" मैंने कहा,
"हाँ? ऐसे ही!" उसने कहा,
"अच्छा!" मैंने कहा,
"आप जा रहे हैं वापिस?" उसने पूछा,
चेहरे पर अजीब सा भाव!
छील दे आपको, ऐसी लरज आवाज़ की, बोलने के लहजे की!
मैंने सोचा, विचारा, क्योंकि इस सवाल में बहुत कुछ छिपा था!
फिर जवाब दिया!
"जाना होगा" मैंने कहा,
चुप हुई!
आँखें नीचे कीं,
फिर ऊपर देखा,
अपने दुपट्टे को तोड़ते-मोड़ते अपने हाथों से!
"जाना होगा" मैंने कहा,
"कब?" उसने पूछा,
"कल जाऊँगा मैं" मैंने कहा,
फिर से आँखें नीचे कीं,
मैंने दुपट्टा छुड़ाया उसके हाथों से!
छोड़ दिया!
"तुम्हे अभी भी डर है?" मैंने पूछा,
कुछ न बोली!
"बताओ?" मैंने पूछा,
नहीं बोली कुछ!
"बताओ?" मैंने फिर से कहा,
"नहीं" वो बोली,
"फिर?" मैंने पूछा,
"कुछ नहीं" उसने कहा,
ये 'कुछ नहीं' कहना उसका तक़िया-क़लाम था शायद! या फिर झुंझलाहट!
"मैं आता रहता हूँ यहाँ, दो-तीन महीने में" मैंने कहा,
उसने ऊपर देखा,
शायद दो-तीन महीने बहुत अधिक थे उसके लिए, लेकिन मेरे लिए बहुत कम! यही सोचा था मैंने उस समय तो!
"अकेला महसूस करती हो?" मैंने पूछा,
उसने गरदन हिलाकर हाँ कहा,
मुझे तरस आया!
बहुत तरस!
सच ही तो कहा था उसने!
कौन था उसका?
कोई नहीं!
जो था, सो मतलबी!
"न तुम अकेली हो और न ही असुरक्षित! समझीं?" मैंने कहा,
फिर से देखा मुझे!
प्यारी सी आँखों में फिर से आंसू छलछला गए!
मुझे डुबो गए वे आंसू!
मैंने आंसू पोंछे उसके!
"क्यों दिल दुखाती हो अपना?" मैंने कहा,
