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वर्ष २०११ कोलकाता की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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पहली मंजिल

फिर दूसरी,

और यहीं एक कक्ष में थी अनुष्का!

वो सामने खड़ी थी!

हम चले उसकी तरफ!

और आ गए उसके पास!

वो हमको कक्ष में ले गयी!

हम गए,

और तभी!

उसकी मामी भी आ गयी वहाँ, उसने शायद देख लिया था हमे! शोर मचाते हुई! उसने शोर मचाया तो किशन भी आ गया! उसने हमको देखा तो उसने दांत भींच लिए!

"तू यहाँ भी आ गया?" उसने कहा,

"हाँ! आ गया!" मैंने कहा,

उसने अब आवाज़ लगानी शुरू की,

और वहाँ कम से कम दस आदमी इकट्ठे हो गए!

फिर कुछ और,

फिर कुछ और!

और फिर उप-संचालक भी आ गया!

उस से बातें हुईं हमारी! मैंने अपना परिचय दिया! उसने सही से बात की मुझसे! हमको कमरे में ले गया! बिठाया, और पूछा, अब मैंने उसको सब बताया, उसने सुना, और फिर मुझसे कहा, "अब आप क्या चाहते हैं?"

"मैं क्या बताऊँ? वो लड़की बता देगी" मैंने कहा,

लड़की को बुलाया गया!

वो आयी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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उसने मुझे देखा,

मैंने उसे!

"हाँ, अनुष्का, तुमने बुलाया है इनको?" उसने पूछा,

"हाँ" उसने कहा,

अब उसने सोच-विचार किया,

और फिर बोला, "देखिये, ये हमारा आपसी मामला है, हम निबट लेंगे, आप दूर रहिये इस मामले से और इस लड़की से" वो बोला,

हंसा किशन!

मैंने उसको देखा,

अनुष्का घबरायी!

"नहीं!" मैंने कहा,

"क्यों नहीं?" उसने पूछा,

"ये नियम-विरुद्ध है" मैंने कहा,

"नियम हम भी जानते हैं" वो बोला,

"कुछ नहीं जानते आप!" मैंने कहा,

वो चौंका!

किशन भी चौंका!

"न जाने क्या करो तुम इस लड़की के साथ?" मैंने कहा,

"आप दूर रहिये, बस!" वो बोला,

"नहीं रह सकता!" मैंने कहा,

"तब मुझे ज़बरदस्ती करनी होगी!" वो बोला,

मेरी भुजाएं फड़कीं!

मेरी त्यौरियां चढ़ीं!


   
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श्रीशः उपदंडक
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मैंने उसको देखा!

आँखों ही आँखों में समझाया!

नहीं समझा!

किशन ने दांत फाड़े!

और उसके आदमी हुए मुस्तैद! हमसे भिड़ने को!

"खड़े होइए अब आप!" वो बोला,

मैंने अनुष्का को देखा,

वो डरी-सहमी हमे देखे!

मैं खड़ा हुआ!

"फिर सोच लो!" मैंने कहा,

"सोच लिया!" वो बोला,

वो आदमी आगे बढ़े!

मैंने हाथ से रोका उनको!

वे रुके!

किशन ने दांत फाड़े!

"अनुष्का, तुम जाओ यहाँ से!" मैंने कहा,

वो बेचारी भागी वहाँ से!

"अब यहाँ से दफा हो जाओ!" वो किशन बोला,

"ज़ुबान हलक़ में ही रख कुत्ते!" मैंने कहा,

माहौल हुआ गरम!

मैंने शर्मा जी को उनकी कोहनी से पकड़ा!

वो मेरा इशारा समझ गए! और मेरे साथ चिपक के खड़े हो गए!

"जाते हो या निकलवाऊं यहाँ से?" उसने धमकी दी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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मैं मुस्कुराया!

उसको देखा!

मैंने मन ही मन एक मंत्र पढ़ा!

भंजनकारी मंत्र!

और मुंह में थूक इकठ्ठा कर फेंक दिया उस उप-संचालक पर! उसन एथूक पड़ते ही कलाबाजी खायी और पीछे जा गिरा!

गला पकड़ा!

खांसने लगा!

ऑंखें चढ़ गयीं!

पाँव पटकने लगा!

सभी आये सकते में!

तभी वो ज़ोर से खांसा, मुंह से रक्त फूट पड़ा! कई भागे वहाँ से! और कई तमाशबीन बन खड़े रहे! किशन को सूंघा सांप!

सारा कुरता लाल हो उठा!

और तब मैंने थूक फेंक कर भंजन-मंत्र वापिस किया!

साँसें चलने लगीं उसकी!

उठा, हाथों का सहारा ले और गिर पड़ा!

और हुआ बेहोश!

कलेजा गले तक आ गया था न! इसीलिए!

अब मैंने किशन को देखा,

वो जड़ खड़ा रहा,

उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं!

अब मैंने उसको गिरेबान से पकड़ा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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और ले गया बाहर!

काई सी फट गयी!

सभी हट गए वहाँ से!

"कहाँ है वो लड़की?" मैंने पूछा,

"वो...वो...वहाँ" उसने इशारा करके बताया,

मैं उसको गिरेबान पकड़ कर ही ले गया वहाँ तक!

अनुष्का अंदर बैठी थी!

चिंतित!

अब छोड़ा मैंने गिरेबान उसका!

"अनुष्का? चलो मेरे साथ, ये हरामज़ादे हैं, कभी भी कुछ न कुछ कर सकते हैं, अभी चलो!" मैंने कहा,

आँखें फाड़े देखे किशन!

रोये उसकी मामी!

हाथ जोड़े!

कभी मेरे, कभी अनुष्का से!

और अनुष्का ने जल्दी से अपने कपडे-लत्ते, किताबें भ्रीं एक बैग में! उसकी मामी ने रो रो के आसमान सर पर उठा लिया!

और वो किशन!

उसको काटो तो खून नहीं!

अनुष्का तैयार हुई, और हम निकले वहाँ से!

कोई पीछे नहीं आया!

हाँ, हड़कम्प मच चुका था! अब जो हो, सो हो!

मैं, उस लड़की को लेकर वहाँ से चला आया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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सीधे वहीँ, जहाँ मैं ठहरा था!

वो भयभीत थी! बहुत!

 

मैं ले आया था अपने साथ अनुष्का को! नहीं देखि जा रही थी उसकी आने वाली दुर्गति मुझसे, दुःख होता था सोच कर ही! कुत्ते की तरह से भंभोड़ देने वाले थे वे हरामज़ादे उसको! बोटी बोटी नोंचने वाले थी उसकी! तरस आ गया मुझे! असहाय थी अनुष्का!

मैंने उसके लिए एक कक्ष का प्रबंध किया, और ले गया उसको वहाँ, वो घबरायी हुई थी! मैंने पानी पिलाया उसको! और बैठ गया!

"अब मत डरो तुम बिलकुल भी" मैंने कहा,

उसने सर हिलाकर हाँ कहा,

"आराम करोगी?" मैंने पूछा,

कुछ न बोली वो!

मैं उठा!

खड़ा हुआ,

"आराम करो, आता हूँ दोपहर में, किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो मेरा कक्ष साथ में ही है, आ जाना" मैंने कहा,

और मैं ये कह कर चला आया!

सीधा आया अपने कक्ष में!

बैठा वहाँ,

पानी पी रहे थे शर्मा जी, मैंने भी पिया,

"अच्छा किया" वे बोले,

"यही रास्ता था" मैंने कहा,

"वे तो हरामज़ादे कहीं ले ही जाते इसको" वे बोले.

"यही चिंता थी" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"नहीं, सही किया बिलकुल" वे बोले,

फिर मैं लेट गया!

थोडा आराम किया और आँख लग गयी!

दोपहर हुई!

भोजन का समय हुआ!

मैं उठा और सीधे अनुष्का के पास गया!

उसका दरवाज़ा खटखटाया!

दरवाज़ा खुला!

वो स्नान कर चुकी थी, अब तरोताज़ा लग रही थी!

मैं अंदर बैठ गया!

"भोजन किया जाए?" मैंने पूछा,

वो मुस्कुरायी!

"मैं करता हूँ प्रबंध" मैं ये कहते हुए खड़ा हुआ और बाहर गया, बाहर जाकर सहायक को बोला, और दो थाली हमारे लिए और थाली शर्मा जी के लिए भेजने को कहा और वापिस आ गया!

वापिस आया सीधा अनुष्का के पास!

बैठा!

"ये वही कुरता है न? जो वहाँ पहना था?" मैंने कहा,

"हाँ" वो बोली,

"हाँ, पहचान गया!" मैंने कहा,

वो मुस्कुरायी!

उसको मुस्कुराते देख, सुकून हुआ!

तभी सहायक आ गया! दो थाली रखी उसने, मैंने एक उठाकर दे दी अनुष्का को! उसने पकड़ ली,

मैं बिस्तर पर बैठ गया और वो भी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"चलो, हो जाओ शुरू" मैंने कहा,

अब हमने खाना खाया!

और खा लिया,

अनुष्का ने थोडा खाना छोड़ दिया था, वो भी खिला दिया मैंने ज़बरन ही!

"अनुष्का? माता-पिता को क्या हुआ था?" मैंने पूछा,

"मैं तब ग्यारह वर्ष की थी, तब मेरे माता-पिता जी का देहांत हुआ था" उसने बताया,

"क्या हुआ था?" मैंने पूछा,

"माता जी की बीमारी से मृत्यु हुई थी, पिता जी की दुर्घटना में, एक ही वर्ष में" वो बोली,

"ओह....कोई अन्य रिश्तेदार? चाचा, ताऊ?" मैंने पूछा,

"कोई नहीं" उसने कहा,

"भाई, बहन?" मैंने पूछा,

"कोई नहीं" उसने कहा,

अकेली थी वो!

बस वो मामा और मामी! वो भी कमीन क़िस्म के इंसान!

अब एक समस्या थी!

कहाँ ले जाऊं इसको?

कहाँ रखूं?

कोई बात नहीं! ये भी देखेंगे!

:क्या उम्र है तुम्हारी?" मैंने पूछा,

"बाइस में चल रही हूँ" वो बोली,

तभी!

तभी किशन के मन में लालच आया था! नयी साध्वी! बहुत काम की! बहुत काम की! कोई भी ले लेगा! हंस के!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"अब कहाँ भेज रहे थे ये तुमको?" मैंने पूछा,

"काशी" वे बोले,

"किसके पास?" मैंने पूछा,

"पता नहीं" वो बोली,

"कोई बात नहीं! अब कोई कहीं नहीं ले जाएगा तुमको!" मैंने कहा,

वो मुस्कुरायी!

मैं भी मुस्कुराया!

"तुमने बताया तुम पढ़ाई कर रही हो?" मैंने पूछा,

"हाँ" उसने कहा,

"बहुत बढ़िया!" मैंने कहा,

"अब सुनो! शाम को बाहर नहीं निकलना! तुम तो जानती ही हो न कि क्यों?" मैंने पूछा,

"जानती हूँ" उसने कहा,

"बस! यहीं रहना!" मैंने कहा,

"हाँ" वो बोली,

"कुछ चाहिए तो बता देना मुझे" मैंने कहा,

"हाँ" वो बोली,

अब मैं उठा,

उसका बैग देखा,

बैग में किताबें और एक जोड़ी कपडे! वो भी कुरता सलवार!

"शाम को चलना मेरे साथ, खरीद लो कपडे आदि!" मैंने कहा,

वो मुस्कुरायी!

और मैं आ गया बाहर फिर,

दरवाज़ा बंद करवा दिया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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मैं अपने कक्ष की तरफ जा रहा था कि तभी अहसास हुआ कि किसी ने देख लड़ाई है! मैं रुक गया! जांचा! हाँ, किसी ने देख लड़ाई थी! मैंने फ़ौरन ही काट की उसकी! डामरी-विद्या से! कोई देख रहा था मुझे! ढूंढ रहा था मुझे या फिर इस लड़की को!

मामला गम्भीर था! अब इस लड़की को कहीं सुरक्षित ले जाना था यहाँ से! सोचा! खूब दिमाग दौड़ाया! और फिर इलाहबाद जाना सही लगा! वही सुरक्षित स्थान था! वहाँ ये सरंक्षण में रहती!

कल सुबह!

हाँ!

कल सुबह!

ले जाना था उसको!

यही सही था!

मैं कमरे में आया,

बैठा,

शर्मा जी लेटे हुए थे!

मैंने उनको सारी बात बताई!

उन्हें भी चिंता हुई! और इलाहबाद जाना सही लगा उनको!

मैं तभी दौड़ा पीछे! वापिस आया अनुष्का के पास! दरवाज़ा खुलवाया! और अंदर गया! बैठा, और उसको बता दिया कि कल हम यहाँ से इलाहबाद चलेंगे, वो वहाँ मेरे सरंक्षण में रहेगी! उसके पास अन्य विकल्प थोड़े ही न था? जाना ही पड़ता! हाँ कह दी उसने!

"अब चलो" मैंने कहा,

"कहाँ?" उसने पूछा,

"कुछ वस्त्रादि खरीद लें" मैंने कहा,

"वहीँ खरीद लेंगे" उसने कहा,

ये भी सही था!

"ठीक है!" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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मित्रगण!

अगले दिन हम चल पड़े वहाँ से, हम तीन बजे करीब निकले थे! हम स्टेशन आये और फिर गाड़ी पकड़ ली, और हो गए सवार! जुगाड़ किया तो सीटें भी मिल गयीं! गाड़ी छूट पड़ी और हम चल दिए वहाँ से!

रात का वक़्त था!

करीब दस बजे होंगे!

मैंने अपने सामने वाली बर्थ पर लिटा दिया था उसको! और मैं और शर्मा जी बातें कर रहे थे, बत्ती बंद करके रात्रि वाली बत्ती जला दी थी, हम बातें करते रहे, वो सो गयी! ग्यारह बजे होंगे! शर्मा जी भी जाकर लेट गए अपने बर्थ पर!

मैंने अनुष्का को देखा,

वो अपने घुटने मोड़ अपने दोनों हाथ उनमे फंसाये सो रही थी! शायद ठंड लग रही थी उसको, मैंने अपनी चादर ली और उसको उढ़ा दी, इस लड़की ने मुझ पर विश्वास किया था, ये क्या कम था? एक अनजान इंसान पर? न जाने क्या करे? कहाँ छोड़ दे?

बहुत दया आयी मुझे!

बहुत!

मैं उसको चादर उढ़ाये देखता रहा!

वो सो रही थी!

इत्मीनान से!

ये इत्मीनान मेरे लिए किसी खजाने से कम नहीं था!

बिलकुल भी कम नहीं!

अब मैं भी लेट गया!

और कुछ ही देर में नींद लग गयी मेरी!

सुबह कोई छह बजे मेरी नींद खुली,

मैंने उसको देखा,

वो जागी हुई थी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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मुझे देख मुस्कुरायी!

मैं भी मुस्कुराया!

"सही नींद आयी?" मैंने पूछा,

उसने पलकें बंद कर और गरदन हिला कर हाँ कहा!

"कब खुली नींद?" मैंने पूछा,

"पांच बजे" उसने कहा,

''अच्छा! तबसे जागी हो?" मैंने पूछा!

वो मुस्कुरायी!

मैं बैठा!

"आओ, हाथ-मुंह धो आयें" मैंने कहा,

और मैंने हाथ बढ़ाया अब!

उसने हाथ थामा मेरा!

मैंने नीचे उतार लिया उसको!

"आओ" मैंने कहा,

और हम चले गए हाथ-मुंह धोने,

वापिस आये!

गाड़ी रुक गयी!

मैंने बाहर झाँका!

हम पहुँचने ही वाले थे वहाँ!

"बैठो" मैंने कहा,

वो बैठ गयी!

चाय आयी तो चाय ली मैंने, अब तक शर्मा जी भी जाग चुके थे!

हमने चाय पी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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मेरी नज़रें उसकी चप्प्लो पर पड़ीं! वे टूट गयी थीं, उधड़ गयी थीं! मैंने नज़रें ता लीं वहाँ से फिर!

हम पहुँच गए वहाँ!

सामान उठाया अपना! उसने अपना!

और फिर मैं सीधा बाज़ार गया, वहाँ से उसके लिए वस्त्र खरीदे और फिर अन्य वस्तुएं भी! जो आवश्यक थीं एक महिला के लिए, आदि आदि!

"और कुछ?" मैंने पूछा,

"नहीं" वो बोली,

मैं हंसा!

"आओ!" मैंने कहा,

और उसको फिर चप्प्ल और सैंडल दिलाये! वो शर्म के कारण नहीं कह पायी थी!

"शर्म नहीं करना!" मैंने कहा,

अब किया चाय-नाश्ता!

और किया मैंने अपने परिचित को फ़ोन, जो कि एक संस्था चलाते थे, वहीँ रहने वाली थी ये अनुष्का अब! वहाँ सब महिलायें थीं, संचालिका भी महिला ही थी! वे भी मेरी जानकार थीं! हम वहीँ गए!

अंदर पहुंचे!

 

मुझे विमला जी से मिलना था अतः मैं वहीँ एक जगह जहां आगंतुक आया करते हैं, बैठ गया अनुष्का के साथ! थोड़ी देर में विमला जी आ गयीं! मुझे देखा तो प्रसन्न हुईं! और फिर वे शर्मा जी से मिलीं! और फिर अनुष्का से! अब मैंने उनको अनुष्का के बारे में बताया, जानकर वे भी विचलित हुईं और उन्होंने मदद करने का पूरा आश्वासन दिया! मैंने विमला जी से उसका पूरा ध्यान रखने को कहा, विशेष ध्यान, ताकि उसको कोई परेशानी न हो, उसको पढ़ाई में मदद की जाए, जितना सम्भव हो, कोई समस्या हो तो मैं था उसके लिए, और फिर वक़्त वक़्त पर मैं पूछने भी वाला था उसके बारे में!

अब यहाँ मेरा काम खतम हो गया था!

वो अब सुरक्षित थी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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सरंक्षण में थी!

अब मैं उठा!

अनुष्का भी उठ गयी!

"तुम बैठो" मैंने कहा,

नहीं बैठी!

मैंने उसकी आँखों में देखा!

आंसुओं की नन्ही-नन्ही बूँदें! बड़ी होती गयीं और उसके गालों पर बह निकलीं! मैं ले गया उसको एक तरफ! आंसू पोंछे उसके!

"क्या हुआ?" मैंने पूछा,

"कुछ नहीं" वो बोली,

आंसू पोंछते हुए!

"अब रोना नहीं है!" मैंने कहा,

उसने धीरे से गरदन हाँ में हिलायी!

"चलो अब" मैंने कहा,

वो नहीं चली!

"अब क्या हुआ?" मैंने पूछा,

"कुछ नहीं" उसने कहा,

"तो रोओ मत बिलकुल भी" मैंने कहा,

फिर से हाँ! गरदन हिलाकर!

"चलो अब" मैंने कहा,

फिर नहीं चली!

अब मैंने उसका हाथ पकड़ा!

उसका चेहरा उठाया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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आंसुओं से लबालब आँखें!

वे सुंदर आँखें आंसुओं के बोझ तले दबे जा रही थीं!

मैंने फिर से पोंछे!

"इतना रोओगी तो कैसे बात बनेगी? मुझे और दुःख होगा, अब नहीं रोना" मैंने कहा,

फिर से हाँ! गरदन हिलाकर!

अब मैंने जेब से उसको कुछ पैसे दे दिए, वो नहीं ले रही थी, लेकिन मैंने ज़बरन दे ही दिए उसको!

"अब चलो" मैंने कहा,

अब चली वो!

विमला जी समझ गयीं!

वे मुस्कुरायीं!

"आप चिंता न कीजिये! ये बेटी है हमारी!" वे बोलीं,

और अब मैंने विदा ली उनसे!

मैं अभी गया होउंगा आगे तक कि भाग आयी वो!

मुझे मेरे कंधे से पकड़ लिया, कमीज हाथ में आ गयी उसके!

आँखें डबडबा रही थीं उसकी!

"मैं यहीं हूँ अभी! जाने से पहले फ़ोन कर दूंगा!" मैंने कहा,

और मैं उसके सर पर हाथ रख चला आया!

पीछे मुड़कर नहीं देखा,

नहीं तो मुझे भी फिर से पीछे जाना पड़ता!

खैर,

हम निकले वहाँ से,

और आये सीधे अपने जानकार के डेरे पर!

तभी फ़ोन बज उठा!


   
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