वर्ष २०११ कोलकाता क...
 
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वर्ष २०११ कोलकाता की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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परेशान थी वो!

अब पूछने का हक़ नहीं था सो नहीं पूछ सका!

मैं आगे बढ़ गया!

और वो मेरे पीछे चली गयी!

कोई बात नहीं हुई!

मैं अपने कमरे में आया,

और हुआ कार्यक्रम शुरू!

फिर हम सो गए!

सुबह हुई!

और हम नहा-धोकर पहुंचे रोज की तरह वहीँ! अनुष्का नहीं थी वहाँ, हाँ, वो दूसरी लड़की थी वहाँ, मैं उसके पास गया,

उसने नमस्ते की,

"अनुष्का कहाँ है?" मैंने पूछा,

"अपने कमरे में" वो बोली,

"क्या हुआ उसे?" मैंने पूछा,

"कुछ नहीं" वो बोली,

"आयी क्यों नहीं?" मैंने पूछा,

"पता नहीं" उसने कहा,

"उसका नंबर दे सकती हो?" मैंने पूछा,

वो असमंजस में पड़ गयी!

"क्या हुआ?" मैंने पूछा,

"उस से पूछ कर दे सकती हूँ" उसने कहा,

"ठीक है, कोई बात नहीं" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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और मैं फिर वापिस आकर बैठ गया वहाँ!

कुछ देर बाद हम फिर चले कक्ष की ओर!

वो लड़की भी चल पड़ी!

और हम कक्ष में आ गए!

मैं लेट गया!

दोपहर बीती,

और बजे चार!

हम चले चाय पीने!

मेरी नज़रों ने उसको ढूँढा वहाँ, वो नहीं थी वहाँ!

कोई बात नहीं!

चाय पी और हम चले वापिस!

और जैसे ही बाहर निकले,

अनुष्का दिखायी दी मुझे!

वो हड़बड़ी में थी बहुत!

मेरे सामने आयी और एक कागज़ दे दिया मुझे! और वापिस लौट गयी!

मैंने कागज़ खोला, तो ये उसका नंबर था, मैंने रख लिया जेब में वो कागज़! और अपने कक्ष के लिए चल पड़े,

वही गलियारा,

और वही कक्ष!

दरवाज़ा बंद!

हम आगे बढ़ गए!

अपने कक्ष में आये!

अब मैं बेचैन हुआ!


   
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श्रीशः उपदंडक
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उसका चमकता हुआ चेहरा देखा था, फिर बुझा हुआ, क्या बात थी? क्या हुआ था? वो चुलबुलाहट गायब थी! क्यों?

मैंने नंबर मिलाया उसका,

घंटी बजी!

फ़ोन उठा,

"अनुष्का?" मैंने कहा,

"हाँ" वो बोली,

"बाहर आओ गैलेरी में" मैंने कहा,

वो आ गयी बाहर,

कान पर फ़ोन लगाए,

मैं देख रहा था उसको!

"तबियत ठीक है?" मैंने पूछा,

"हाँ" उसने कहा,

"फिर परेशान क्यों हो?" मैंने पूछा,

"नहीं तो?" उसने कहा,

"मुझे बताओ?" मैंने कहा,

"बाद में बताउंगी" उसने कहा,

"कब?" मैंने पूछा,

"शाम को" उसने कहा,

"मेरे कक्ष में चली आना" मैंने कहा,

"ठीक है" वो बोली,

"ठीक सात बजे" मैंने कहा,

"ठीक है" वो बोली, और फ़ोन काट दिया,


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब मैं हुआ बेचैन!

सात बजने में दो घंटे थे!

शर्मा जी को बता दिया मैंने,

और किसी तरह से सात का वक़्त आया!

शर्मा जी चले गए बाहर!

और कक्ष मैंने बंद कर लिया,

ठीक सात बजकर पांच मिनट पर कक्ष पर दस्तक हुई,

मैंने दरवाज़ा खोला,

और वो अंदर आ गयी!

मैंने दरवाज़ा बंद कर दिया!

"बैठो" मैंने कहा,

वो बैठ गयी!

मैं सामने बैठा उसके!

"क्या बात है?" मैंने पूछा,

उसकी आँखों में आंसू आ गए!

"अरे? क्या हुआ?" मैंने पूछा,

रोये जाए वो!

"बताओ तो सही?" मैंने पूछा,

"मैं साध्वी नहीं बनना चाहती" उसने कहा,

"तो मत बनो?" मैंने कहा,

"लेकिन मेरी मामी और मामा चाहते हैं" वो बोली,

ये थी मुसीबत!

"पहले रोना बंद करो, अच्छी नहीं लगतीं तुम ऐसे" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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रुमाल दिया उसको,

उसने आंसू पोंछे!

"देखो, ये तो तुम्हारे ऊपर है, कि तुम बनो या न बनो, कोई ज़बरदस्ती नहीं कर सकता तुमसे, ये तुम्हारा निर्णय है" मैंने कहा,

"वे ज़बरदस्ती कर रहे हैं" वो बोली,

"नहीं कर सकते" मैंने कहा,

"वे कर रहे हैं" वो बोली,

मैं चुप हुआ!

"मैं बात करूँ?" मैंने पूछा,

"नहीं" वो घबरायी!

क्या किया जाए?

"हुआ क्या है अचानक?" मैंने पूछा,

"एक बाबा है यहाँ नीमा नाथ, वो ले जा रहा है मुझे" वो बोली,

"कहाँ ले जा रहा है?" मैंने पूछा,

"बालेश्वर" वो बोली,

मुझे झटका लगा!

"कहाँ है ये नीमा नाथ?" मैंने पूछा,

"यहीं है" वो बोली,

"सुनो! अब आराम से जाओ! कोई नहीं ले जाएगा तुमको अब! मत बनना साध्वी! अब आंसू पोंछों! और निश्चिन्त रहो!" मैंने कहा,

उसने मुझे देखा,

अविश्वास से!

"हाँ, जाओ अब!" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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वो उठी!

मुझे देखा!

मैं उसके सामने गया!

उसके सर पर हाथ रखा!

"जाओ, कोई नहीं ले जाएगा तुमको!" मैंने कहा,

उस सहमी अनुष्का का वो चेहरा मुझे आज भी याद है! रो रो कर अपना खूबसूरत नैन-नक्श खराब कर रखे थे!

मैंने दरवाज़ा खोला,

बाहर झाँका,

कोई नहीं था!

"जाओ अब" मैंने कहा,

वो चली गयी!

चुपचाप!

नीमा नाथ!

यहीं है वो नीमा नाथ!

अच्छा!

तभी शर्मा जी आ गए अंदर!

अब सब बता दिया मैंने उनको! उन्हें भी दया आयी अनुष्का पर!

"आओ मेरे साथ" मैंने कहा,

"कहाँ?" उन्होंने पूछा,

"नीमा नाथ से बात करने!" मैंने कहा,

"चलिए" वे बोले,

और हम चल दिए! उसको ढूंढने!


   
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श्रीशः उपदंडक
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हम चले अब नीमा नाथ को ढूंढने! पहले अंदर गए, जहाँ से पता चल सकता था, वहाँ एक सहायक से पता किया, उसने हमको दूसरे स्थान में ढूंढने को कहा, वो बालेश्वर से आया था तो ओडिशा से आने वाले जहां थे, हम वहीँ चले, मेहनत करने के बाद आखिर उसका पता चला! वो सबसे एकांत में बने एक कक्ष में था, उसके साथ वहाँ अन्य भी कई लोग थे, उनको देख कर पता चलता था कि वो रसूख वाला औघड़ है! हम आगे चले, और उसके कक्ष तक आये, अंदर से उसकी चिलम बाहर आयीं, मैंने एक से पूछा नीमा नाथ के बारे में तो मुझे बताया गया कि वो अंदर है, हम अब अंदर चले, अंदर पहुंचे, वो लोगों से घिरा बैठा था, उम्र होगी कोई साठ के आसपास! सफ़ेद दाढ़ी-मूंछें और जटाएँ! हम उस तक पहुंचे, नमस्कार हुई तो उसने हमे बैठने को कहा, परिचय हुआ और फिर मैंने प्रयोजन बताया!

"नीमा नाथ जी, कुछ विशेष बात करनी है" मैंने कहा,

"बोलिये?" वो बोला,

"वो जैसा मुझे पता चला है कि आपने एक लड़की अनुष्का को अपनी साध्वी बनाने के लिए चुना है" मैंने कहा,

"हाँ, वो हरिद्वार वाली?" उसने कहा,

"हाँ वही" मैंने कहा,

"तो?" उसने पूछा,

"तो वो लड़की नहीं चाहती साध्वी बनना, उसने मना किया है, लेकिन उसके मामा-मामी नहीं मान रहे" मैंने कहा,

"तो मैं क्या करूँ?" उसने रूखा सा उत्तर दिया!

"आप जानते हैं, किसी भी साध्वी को उसकी इच्छा बिना साध्वी नहीं बनाया जा सकता?" मैंने कहा,

"अरे! ये तो उसका सौभाग्य है कि वो मेरी साध्वी बनेगी!" वो बोला,

बड़ा गुस्सा आया!

बहुत गुस्सा!

"वो नहीं बनेगी!" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"तुम कौन हो उसको रोकने वाले?" वो बोला,

"हूँ तो कोई नहीं, लेकिन ये नियमों के विरुद्ध है" मैंने कहा,

"कोई नियम नहीं" वो बोला,

बड़ा ताव आया!

जानते हुए भी अनजान!

कमीना! कामुक कहीं का! कुत्ता!

"नहीं नीमा नाथ! वो नहीं बनेगी साध्वी!" मैंने कहा और खड़ा हुआ!

"तुम रोकोगे?" उसने कहा,

"हाँ!" मैंने कह दिया अब!

हम पलटे!

और जैसे ही पलटे नीमा नाथ ने आवाज़ दी,

"एक बार उसके मामा से बात कर लो, वो मना करेंगे तो मैं नहीं ले जाऊँगा" उसने कहा,

इंसानियत जागी उसमे! जो अभी थोड़ी देर पहले सोयी हुई थी!

"धन्यवाद!" मैंने कहा,

और अब रही उसके मामा से बात करने वाली बात! तो, वो अब ज़रूरी था! बहुत ज़रूरी!

हम निकले वहाँ से!

"एक बात बताइये गुरु जी?" शर्मा जी ने पूछा,

"पूछिए?" मैंने कहा,

"क्या उसका मामा मान जाएगा?" वे बोले,

"नहीं!" मैंने कहा,

"फिर?" वे बोले,

"बात तो करनी ही पड़ेगी" मैंने कहा,

"ठीक है फिर" वे बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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हम तैयार हुए!

और फिर चले हम उस कक्ष की तरफ!

वहाँ पहुंचे,

दरवाज़ा खटखटाया!

दरवाज़ा खुला,

ये अनुष्का थी!

घबरा गयी!

और हम दोनों सीधे अंदर आ गए!

हमे देख वे सभी घबरा गए!

"कौन हैं आप?" उसके मामा ने पूछा,

अब मैंने अपने बारे में बताया उनको,

और किसलिए आया हूँ, ये भी बताया,

अनुष्का डरी सहमी सी खड़ी थी!

"आप होते कौन हो हमारे इस मामले में टांग अड़ाने वाले?" उसने पूछा, उसके मामा ने,

"होता तो कोई भी नहीं, लेकिन जहां तक इस लड़की के सवाल है तो मैं ये नहीं होने दूंगा" मैंने कहा,

"अच्छा? धमाका रहे हो मुझे?" वो बोला,

"धमकी ही समझ लो" मैंने कहा,

"अभी बताता हूँ" वो बोला और चला गया बाहर,

और उसकी मामी ने अब कमान सम्भाली! उस लड़की को गाली-गलौज करने लगी, अब आया मुझे गुस्सा!

"सुन? शोर मत मचा, इसे कुछ नहीं बोल, नहीं तो ऐसी बोलती बंद होगी तेरी कि ज़िंदगी भर मुंह नहीं खुलेगा तेरा!" मैंने कहा,

और तभी वहाँ दो बाबा आ गए!


   
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श्रीशः उपदंडक
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गुस्से में!

"चलो यहाँ से?" एक ने बोला,

"पहले बात सुन ले मेरी" मैंने कहा,

"हाँ, क्या?" वो बोला,

अब मैंने बात बतायी उसको सारी!

उसने सुनी!

"तो क्या हुआ? इनकी मर्जी है, कि लड़की जाए या नहीं?" वे बोले,

"ये होते कौन हैं उसकी बिना मर्जी के भेजने वाले?" मैंने पूछा,

"तुम कौन होते हो?" उसने पूछा,

अब मैंने बताया उसको अपने बारे में!

उसने हलके से लिया!

बात बढ़ चली!

"एक मिनट! ज़रा इस लड़की से ही पूछ लो?" शर्मा जी ने पूछा,

अब सभी ने अनुष्का को देखा,

डर रही थी वो बहुत!

"अनुष्का? घबराओ नहीं" मैंने कहा,

उसने मुझे देखा,

"डरो नहीं, बता दो अपनी मर्जी" मैंने कहा,

अब अनुष्का ने बता दिया कि वो कहीं नहीं जायेगी, नहीं बनना उसको साध्वी!

मेरा पलड़ा भारी हुआ अब!

"हाँ? अब बोलो?" मैंने पूछा,

और तभी कमरे में प्रवेश किया उस नीमा नाथ ने!

"आइये" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"मुझे बताया इन्होने, और जो कहा वो सही कहा है" वो बोला,

साथ दिया मेरा उसने!

किशन!

किशन नाम था उसके मामा का!

अब बगलें झांकें वो सब!

अनुष्का को बंधी हिम्मत अब!

"ठीक है, नहीं जायेगी ये कहीं" किशन ने कहा,

और फिर नीमा नाथ चला गया,

वे दोनों बाबा भी चले गये!

किशन ने मुझे घूर के देखा!

मैं भाव समझ गया उसके!

"सुन किशन, जब लड़की नहीं चाहती वहाँ जाना, या साध्वी बनना तो बिना उसकी मर्जी के कोई ज़बरदस्ती नहीं कर सकता उसके साथ" मैंने कहा,

घूरे मुझे!

"और अनुष्का, एक बात और, मैं भी यहाँ से तीन दिन बाद चला जाऊँगा, अगर ये तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती करें या मारपीट आदि, तो मुझे इत्तला करना, क्योंकि, हरिद्वार दिल्ली से दूर नहीं, और हरिद्वार मेरे लिए घर जैसा ही है!" मैंने कहा,

ये कह कर मैंने किशन को दूसरे शब्दों में समझा दिया!

और फिर हम कमरे से बाहर आ गए!

झटके से कमरा बंदा हुआ, उसका दरवाज़ा!

अपने कमरे में आ गए हम!

"बढ़िया समझाया आपने!" शर्मा जी बोले,

"समझाना ही था" मैंने कहा,

उसके बाद हम गए भोजन करने,


   
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श्रीशः उपदंडक
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भोजन किया और फिर से अपने कक्ष में आ गए!

करीब दो बजे होंगे तब!

मेरा फ़ोन बजा!

ये अनुष्का का फ़ोन था!

मैंने सुना,

उसने मेरा धन्यवाद किया!

बहुत बहुत धन्यवाद!

मुझे भी ख़ुशी हुई कि उसको अब परेशानी नहीं थी!

फ़ोन कट गया!

बजे चार!

हम चाय पीने गये!

और उस दिन अनुष्का वही थी, अपनी सखी के साथ!

नज़रें मिलीं!

और वो मेरे पास आ गयी!

मैं मुस्कुराया!

वो भी!

"अब खुश हो?" मैंने कहा,

"बहुत!" उसने कहा,

"अब ये ऐसा कुछ नहीं करेंगे, करें तो मुझे बता देना!" मैंने कहा,

"हाँ, बता दूँगी!" वो बोली,

"अब आराम से रहो!" मैंने कहा,

फिर हम वापिस हुए!

मित्रगण!


   
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श्रीशः उपदंडक
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तीन दिन और बीते, आयोजन समाप्त हुआ!

नीमा नाथ मिला मुझसे! वो आद्मी मुझे सही लगा था! इसीलिए मैं मिला उस से! चौथे दिन, मैं अनुष्का को फ़ोन पर बता कर वहाँ से निकल आया! शर्मा जी के साथ!

हम दिल्ली पहुँच गए!

करीब पंद्रह दिन बीते!

एक दिन,

फ़ोन आया अनुष्का का मेरे पास!

वो सही थी, कोई ज़बरदस्ती नहीं हुई थी उसके साथ! और उसने फिर से मेरा धन्यवाद किया!

समय बीता,

एक महीने से अधिक समय बीत गया!

एक रोज.

मेरे पास फ़ोन आया, रात के वक़्त! ये अनुष्का थी, वो रो रही थी, मुझे चिंता हुई, मैंने पूछा उस से इस बारे में, उसने अधिक कुछ नहीं बताया और फ़ोन कट गया,

अब मैं हुआ चिंतित!

मैं तभी शर्मा जी को फ़ोन लगाया,

बात की और उनको सुबह बुला लिया,

मैं उसके बाद फिर से अनुष्का को फ़ोन लगाया, लेकिन फोन बंद था, मैं परेशान हो उठा तब....

रात बेचैनी में बीती,

क्या हुआ?

क्या हुआ था?

क्यों रो रही थी?

क्या बात हो गयी?

कहीं फिर से?


   
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श्रीशः उपदंडक
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अजीब अजीब से सवाल उछले दिमाग में!

और फिर फ़ोन भी बंद था, अब क्या हो? कैसे बात बने?

सुबह जल्दी ही उठ गया मैं, शर्मा जी को फ़ोन कर दिया, वे निकल चुके थे मेरे पास आने को, मैं बेसब्री से इंतज़ार करता रहा उनका,

और फिर वे आ गये,

बैठे,

और बातें हुईं, मैंने अनुष्का के बारे में बताया, वे भी परेशान हुए,

"अब फ़ोन नही लग रहा उसका?" उन्होंने पूछा,

"नहीं" मैंने कहा,

''अब कैसे बात बने?" वे बोले,

और देखिये!

तभी मेरा फ़ोन बजा!

मैंने फ़ोन उठाया,

देखा,

ये अनुष्का थी!

अब मैंने तफ्सील से बात की उस से, और मुझे क्रोध चढ़ आया! किशन ने फिर से कहीं और बात की थी उसको भेजने के लिए!

मैंने अनुष्का से उसके स्थान का पता ले लिया और कहा दिया कि मैं आज शाम तक पहुँच जाऊँगा हरिद्वार! अब वो चिंता न करे! फ़ोन कटा, और मैंने शर्मा जी से हरिद्वार चलने को कहा, देर करना मूर्खता होती, वे भी तैयार हुए, और हम निकल पड़े वहाँ से! बस-अड्डे आये और हरिद्वार की बस पकड़ हम निकल पड़े हरिद्वार!

शाम होने से पहले हम पहुँच गए वहाँ!

सीधे अपने एक परिचित के डेरे पहुंचे,

और अपना सामान रखा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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कुछ देर आराम किया, पानी पिया और फिर चाय,

फिर मैंने फ़ोन किया अनुष्का को! बता दिया कि मैं हरिद्वार आ गया हूँ और कब आऊँ उसके पास? और इस तरह सुबह का कार्यक्रम बन गया!

रात काटी!

किसी तरह!

सुबह हुई!

हम नहाये-धोये और फिर चाय पीकर हम निकल पड़े अनुष्का के पास जाने के लिए! वहाँ से सवारी ली हमने और फिर करीब डेढ़-पौने दो घंटे के बाद हम वहाँ पहुँच गए! काफी बड़ा डेरा था वो! बड़ा सा लोहे का गेट! हमने दरवाज़ा खुलवाया और फिर अता-पता लिखवाने के बाद हम अंदर चले!

 

मैंने अनुष्का को फ़ोन लगाया,

फ़ोन उठा,

बात शुरू हुई,

उसको बता दिया कि हम उस डेरे में आ चुके हैं! अब उसने मदद की, कुछ बताया और हम चल दिए वहाँ के लिए!

वहाँ पहुंचे,

एक मंदिर आया,

वहाँ से बाएं हुए,

और फिर दायें

सामने ही कक्ष बने थे!

इन्ही कक्षों के बीच कहीं उसका कक्ष भी था! मेरी नज़रें दौड़ी वहाँ पर, और फिर सामने दूसरी मंजिल पर मुझे अनुष्का खड़ी दिखायी दी! उसने हाथ हिलाया और हम चले वहीँ!

हम सीढ़ियां चढ़े,


   
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