वर्ष २०११ काशी की ए...
 
Notifications
Clear all

वर्ष २०११ काशी की एक घटना

99 Posts
1 Users
97 Likes
228 Views
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 8 months ago
Posts: 9486
Topic starter  

बेहद उन्मत्त रात्रि थी वो! चिताएं धधक रही थीं! औघड़ नृत्य कर रहे थे! साधिकाएं मदमत्त होकर काम-प्रसाद बाँट रही थीं! और मदमत्त औघड़ लिप्त थे अपने अपने क्रिया-कलापों में! गुट बने हुए थे, ये महाश्मशान था, कालरात्रि की रात्रि थी! कुछ साधारण लोग भी आये हुए थे, कोई पूजा करवाने कोई रोग का निदान करवाने और आर्थिक स्थितिओं से उबरने के लिए! मजमा लगा था! मैं एक कोने में बैठा, दुमका के रहने वाले एक औघड़ सुर्रा के साथ किसी मंत्रणा में मशगूल था! सुर्रा जो मुझे बता रहा था वो काफी हैरतअंगेज था! उसके अनुसार काशी के एक औघड़ ने किसी दैविक-कन्या से ब्याह रचाया था और उसके बाद वो कहाँ गया कभी पता नहीं चला! मेरे जीवन में ऐसा वाक़या कभी पेश नहीं आया था, सो चौंकना स्वाभाविक ही था!

“कौन थी वो देव-कन्या?” मैंने पूछा,

“सुना था वो मोहित थी उस पर” वो बोला,

“सुना था? लेकिन थी कौन वो कन्या?” मैंने पूछा,

“ये नहीं पता” उसने कहा,

“सुर्रा, सुनी सुनाई बातों पर यक़ीन न किया कर, फंस जाएगा किसी दिन” मैंने कहा,

“उस औघड़ का भाई यहीं है” सुर्रा बोला,

अब मैं चौंका!

“कहाँ है?” मैंने पूछा,

तब उसने मुझे एक औघड़ की तरफ इशारा करके बताया, वो औघड़ वहीँ बैठा था, मैंने उसको कभी नहीं देखा था,

“कौन है वो?” मैंने पूछा,

“कदमनाथ” उसने बताया,

“कहाँ का है?” मैंने पूछा,

“काशी का” वो बोला,


   
Quote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 8 months ago
Posts: 9486
Topic starter  

“तू जानता है इसको?” मैंने पूछा,

“नहीं” उसने कहा,

“तो पहचानता कैसे है?” मैंने पूछा,

“मैं पहचानता हूँ” सुर्रा के साथ बैठे एक मरे से औघड़ ने बताया,

“ये नागल बाबा है, मेरा मित्र है, वहीँ दुमका में रहता है” सुर्रा बोला,

“तूने बताया होगा इसको इस बारे में?” मैंने नागल से पूछा,

“हाँ” वो हंस के बोला,

पूरा धुत्त था! बार बार ऊँगली मार रहा था मुंह में, शायद कुछ अटका था दाढ़ में उसके,

“अच्छा, और तुझे कैसे पता?” मैंने पूछा,

“मैं उसके डेरे में था तब” उसने बताया!

”अच्छा! किसके साथ?” मैंने पूछा,

“वरुणनाथ के साथ” वो बोला,

“कौन वरुणनाथ?” मैंने पूछा,

“वही जो गायब हुआ” उसने कहा,

मैं सन्न! सच में सन्न!

“तेरा मतलाब वरुणनाथ पर एक देव-कन्या रीझी और वरुणनाथ ने उस से ब्याह रचाया, फिर वरुणनाथ गायब हो गया, है न?” मैंने पूछा,

“हाँ जी” वो बोला,

क्या बकवास है ये! यही लगा मुझे! साले को दारु ज्यादा चढ़ गयी है लगता है, अनापशनाप बके जा रहा है!

“तू क्या करता था वहाँ?” मैंने पूछा,

“मैं भक्ताई था उसका” उसने कहा,

‘अच्छा!” मैंने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 8 months ago
Posts: 9486
Topic starter  

“हाँ जी” वो बोला,

अब मैं सोच में डूबा!

“पूरी कहानी पता है तुझे?” मैंने पूछा,

“पूरी तो नहीं हाँ कुछ मालूम है” उसने कहा,

तभी वहाँ कल्पि नाम की एक साधिका आ गयी, वो मुझ पर रीझी हुई थी, करीब दो साल से, मैं जहां जाता वहीँ आ जाती थी, चाहे मैं विश्राम करूँ या फिर कोई क्रिया, दिल्ली तक आ पहुंची थी! उसकी एक बहन थी, मैं उसको जानता था वो प्रघाढ़ साधिका थी, मैं उसका प्रयोग करता था कई क्रियायों में, ये कल्पि उसकी ही छोटी बहन थी!

वो आयी और मेरे कंधे से लग कर रोने लगी!

मैंने उसको अपने पास बिठाया,

“क्या हुआ?” मैंने पूछा,

कुछ न बोले!

“क्या हुआ कल्पि?” मैंने पूछा,

कुछ न बोले,

खड़ी हुई, और मुझे खींचने लगी!

वे दोनों ये देख कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए मुस्कुराये!

आखिर मैं खड़ा हो गया, वो मेरे कंधे से लग गयी!

“सुर्रा, कल मिलना मुझे इस नागल के साथ, वहीँ मेरे कक्ष में” मैंने कहा,

अब मुझे खींच चली वो एक तरफ! मैं भी चल पड़ा!

एक खाली स्थान पर ले आयी,

“क्या बात है?” मैंने पूछा,

“मुझे बताया क्यों नहीं आप आये हुए हैं?” उसने मुझे छाती पर मेरी घूँसा मारते हुए कहा, घूँसा मारा तो मेरे गले में धारण रुद्राक्ष ने मुझे आहत किया! लेकिन उसका हाथ पकड़ लिया!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 8 months ago
Posts: 9486
Topic starter  

“बताया तो था?” मैंने कहा,

“मुझे?” उसने पूछा,

“नहीं, रमा को” मैंने कहा,

रमा, उसकी बड़ी बहन!

“उसने नहीं बताया मुझे” वो बोली,

“तो इसमें मेरी क्या गलती?” मैंने कहा,

बस!

मैंने ऐसा क्या कहा कि तूफ़ान आ गया! मुझसे लिपट कर उसने मुझे नोच-खसोट दिया! मैंने भी उसके क्रोध का आदर किया और उसको खुलके रोने दिया!

“वो, वो मुझे…” उसने एक तरफ इशारा करके कहा,

वहा एक औघड़ बैठा था, उसको मैं जानता था, बैजनाथ था उसका नाम!

“क्या हुआ?” मैंने पूछा,

होंठ दबाये, लेकिन बोली कुछ न!

कहाँ फंस गया मैं!

 

“अरे कुछ बताओ तो कल्पि?” मैंने पूछा,

अब कुछ न बोले वो!

रोये रोये ही जाए!

अब मुझे तरस आ गया, दिल पसीज गया!

मैंने आंसू पोंछे उसके,

“अब बताओ क्या हुआ?” मैंने पूछा,

“वो बैजनाथ ने मुझे बुलाया था” उसने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 8 months ago
Posts: 9486
Topic starter  

“तुम्हे बुलाया था?” मैंने पूछा,

“हाँ” उसने सुबकते हुए कहा,

“क्यों बुलाया था?” मैंने पूछा,

अब वो अजीब सी सिसकी लेकर रोई!

मैं समझ गया, कनपटियाँ गरम हो गयी मेरी!

“कब बुलाया था?” मैंने पूछा,

उसने सांस अपनी साधी और बोली,”पिछले एक महीने से तंग कर रहा है वो मुझे, कभी किसी को भेजता है, कभी किसी को” उसने बताया,

मैं चुप रहा!

फिर,

“आओ मेरे साथ” मैंने उसका हाथ पकड़ा और चलने लगा लेके उसको,

आ गया बैजनाथ के पास,

उसने मुझे देखा, फिर कल्पि को देखा, मुस्कुराया और अपना सीधा हाथ उठाके बोला, “आदेश!”

मैंने कोई उत्तर नहीं दिया!

“बैजनाथ?” मैंने नाम लिए उसका,

वो चौंका, कमर सीधी कर ली उसने, उसके गुर्गे मुस्तैद हुए!

“क्या है?” भर्त्सना के स्वर में वो बोला,

समझ तो वो गया ही था कल्पि को देखकर!

“तूने बुलाया था इसको?” मैंने पूछा,

“हाँ, तो?” उसने पूछा,

“क्यों बुलाया था?” मैंने पूछा,

उसने अश्लील सा इशारा किया और अपनी जांघ पर हाथ मारा!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 8 months ago
Posts: 9486
Topic starter  

सभी गुर्गे हँसे उसके!

दांत फाड़ने लगे!

“सुन ले बैजनाथ, आज के बाद यदि तूने इसको कभी बुलाया तो तेरे लिए अच्छा नहीं होगा!” मैंने कहा,

वो अवाक!

मांस का टुकड़ा मुंह में आधा अंदर आधा बाहर!

गुर्गे सन्न!

“सुन ओये! ले जा! ले जा इसे! ले जा इसे बाँध के, अब तक तो बुलवाया था, अब उठवा ही लूँगा, समझा? चल निकल यहाँ से?” उसने कहा,

मामला गरम हो चला था, वहाँ और औघड़ भी आ गए, उनमे एक मतंगनाथ भी थे, बुज़ुर्ग तो नहीं थे लेकिन अवस्था ऐसी ही थी उनकी, उन्होंने दोनों पक्षों की बात सुनी और मुझे ही गलत ठहरा दिया! अब फैंसला ये, कि मैं उसको ले जाऊं, डेरे के नियम के अनुसार और वर्गीकरण के अनुसार साधिका को नियम का पालन करना पड़ेगा!

काँप सी गयी कल्प बेचारी!

असहाय सी!

“सुन बैजनाथ! जहां तक उठवाने की बात है, वो तुझमे तो क्या, तेरे बाप में भी दम नहीं, रही इसकी बात, तो तेरे जैसे कुत्ते ज़ाहिल के पास ये क्या कोई भी नहीं आएगी!” मैंने कहा,

“ओये! अरे? अरे? कौन है ये? साले के दो टुकड़े कर दूंगा? जानता नहीं मैं बैजनाथ हूँ बैजनाथ! बाबा बैजनाथ!” वो खड़ा हुआ अब!

मतंगनाथ बीच में आ गया और बात आयी गयी करवा दी! लेकिन काँटा चुभ चुका था, उसके भी और मेरे भी!

मैं कड़वा सा मुंह लेकर आ गया वहाँ से, गुस्सा बहुत था, साथ मेरे कल्पि थी, मैं आया वापिस, और रमा से मिला, रमा को सारी बात बताई कल्पि ने, वो भी घबरा गयी, लेकिन इन सबके बीच फंस गया मैं, जो नहीं चाहता था वही हो गया, जिस से बच रहा था उसमे ही फंस गया!

“अब क्या करोगे?” रमा ने पूछा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 8 months ago
Posts: 9486
Topic starter  

“कुछ नहीं” मैंने कहा,

“इसको यहीं छोड़ोगे?” उसने पूछा,

मैंने उस बेचारी कल्पि को देखा, आँखों में झंझावात लिए मेरे होंठों को देख रही थी कि मैं क्या बोलता हूँ!

“रमा, आज से ये साध्वी नहीं रहेगी” मैंने कहा,

वो हैरान!

“फिर?” उसने पूछा,

“मैं इसको एक स्थान पर ठहरा दूंगा, वहाँ इसके लिए कम भी होगा, ये कल्याण-कार्य में लग जायेगी” मैंने कहा,

मेरा इशारा इलाहबाद के आश्रम का था, जिसकी कई संस्थाएं हैं जो समाज-कल्याण के कार्य किया करते हैं, वहीँ की एक महिला प्रभारी हैं मेरी जानकार, वहीँ ले जाना था उसे!

मैंने इतना कहा और कल्पि आकर दौड़कर मुझसे लिपट गयी! रोते हुए!

रमा ने देखा तो मुस्कुरायी!

“अब चलो कल्पि, अपने वस्त्र आदि ले लो, मैं अभी निकलूंगा यहाँ से” मैंने कहा,

उसने फ़ौरन तभी अपनी संदूकची खोल ली!

और मैंने शर्मा जी को फ़ोन कर दिया कि मैं आ रहा हूँ वहाँ, कल्पि के साथ, मैं जहाँ ठहरा हुआ था वहीँ जाना था मुझे!

और फिर मैं रात कोई साढ़े बारह बजे अपने उसी डेरे के लिए वहाँ से रवाना हो गया, साथ में कल्पि को लिए!

सारे रास्ते मुझे बैजनाथ और उसके शब्द कचोटते रहे! जैसे कांटे चुभ रहे हों पल पल!

 

मैं उस स्थान पहुंचा जहां मैं और शर्मा जी ठहरे थे, मैं कल्पि को भी साथ लाया था, शर्मा जी को उसके बारे में और उस बैजनाथ के बारे में बताया और फिर उसी समय उसके ठहरने का बंदोबस्त किया, रात काफी हो चुकी थी और मदिरा की खुमारी भी थी सो सबसे पहले स्नान


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 8 months ago
Posts: 9486
Topic starter  

करने गया और फिर वापिस आने पर सो गया, शर्मा जी सो चुके थे, कल्पि हमारे कक्ष के साथ वाले कमरे में जा चुकी थी सोने के लिए,

सुबह हुई, मैं तनिक देर से उठा, स्नानादि से निवृत हुआ और फिर मैं चला कल्पि को बुलाने, उसके कक्ष के सामने उसका दरवाज़ा खटखटाया तो दरवाज़ा उसने खोल दिया, वो भी स्नानादि से निवृत हो चुकी थी, उनसे नमस्ते की और मैं उसको अपने साथ ले अपने कक्ष में गया,

शर्मा जी बाहर गए और एक सहायक से चाय-नाश्ता आदि लाने के लिए कह दिया, थोड़ी देर में चाय-नाश्ता आ गया, दूध ही लिया मैंने और शर्मा जी ने भी, उसके बाद मैंने कल्प से पूछा, “कल्पि, ये बैजनाथ कहाँ रहता है?”

“गढ़वाल में” उसने बताया,

“और यहाँ किसके पास है?” मैंने पूछा,

“मतंगनाथ के पास, उसके भतीजा है ये” उसने कहा,

“अच्छा! अब मैं समझा कि उसने क्यों मुझे गलत सिद्ध किया!” मैंने कहा,

“ये यहाँ करीब दो महीने से है, मनमर्जी करता है, मेरे पीछे ही पड़ा हुआ था, उसके आदमी बहुत तंग करते थे मुझे, और इस से मेरी बहन परेशान हो जाया करती थी, मैंने बहन से बहुत कहा उन्होंने मतंगनाथ से भी कहा लेकिन वो हमेशा नियम की दुहाई ही देते रहते हैं” वो बोली,

“तुम्हे ये किसने बताया कि मैं वहाँ आया हुआ हूँ?” मैंने पूछा,

“बहन ने” उसने कहा,

और जब वहाँ कलाप चल रहा था तो तुम वहाँ आयीं, मुझे ढूंढते ढूंढते?” मैंने पूछा,

“हाँ, उस से पहले बहन के पास बैजनाथ के आदमी आये थे मुझे बुलाने, मैं घबरा गयी, तभी बहन ने बताया कि वो दिल्ली वाले आये हुए हैं, तभी मैं आपको ढूंढते हुए वहाँ आ गयी थी” उसने आँखें नीचे करते हुए कहा,

“इसका मतलब मतंगनाथ ने मेरे बारे में नहीं बताया बैजनाथ को?” मैंने पूछा,

“नहीं बताया होगा” वो बोली,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 8 months ago
Posts: 9486
Topic starter  

“ठीक है, एक काम करना, आज यहीं रहना, मैं आज मतंगनाथ के डेरे पर जाऊँगा, कुछ काम है मुझे वहाँ” मैंने कहा,

“ठीक है” वो बोली,

अब मैंने उसे उसके कमरे में भेज दिया,

वो चली गयी,

“कब चलना है?” शर्मा जी ने पूछा,

“चलते हैं अभी कोई घंटे डेढ़ घंटे में” मैंने कहा,

“ठीक है” वे बोले,

तब तक मैं, उनसे मिलने चला गया जिसके यहाँ मैं ठहरा था, बुज़ुर्ग औघड़ हैं वो, मैं अक्सर यहीं ठहरा करता हूँ, ये स्थान मेरे स्थान जैसा ही है,

और फिर कोई दो घंटे बीते,

“चलें शर्मा जी?” मैंने पूछा,

“चलिए गुरु जी” वे बोले,

और हम अब मतंगनाथ के डेरे के लिए निकल पड़े,

वहाँ पहुंचे, मैं रमा के पास गया, बताया उसको कल्पि के बारे में, अब वो निश्चिन्त थी, अब मुझे मिलना था उस सुर्रा और उस नागल बाबा से! कल हमारी बात आधी-अधूरी रह गयी थी, वो देव-कन्या वाली!

मैंने उनके कक्ष में पहुंचा, दोनों ही जागे थे, बैठे हुए थे, हमे देख नमस्कार की और फिर मैंने नागल से पूछा, “हाँ भाई नागल, अब बता”

“बताता हूँ, लेकिन आप यहाँ क्यों आये, हम ही आ जाते?” उसने कहा,

“क्यों?” मैंने पूछा,

“आपके जाने के बाद बैजू ने बुलाया था हमको” उसने बताया,

‘फिर?” मैंने पूछा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 8 months ago
Posts: 9486
Topic starter  

“पूछ रहा था कि आप कौन हैं, कहाँ से आये हैं और कहाँ ठहरे हैं?” उसने कहा,

“अच्छा! फिर?” मैंने पूछा,

“जी हमने बता दिया कि वो दिल्ली से हैं और शांडिल्य के पोते हैं, धन्ना बाबा के” उसने कहा,

“ये मतंगनाथ ने नहीं बताया उसको?” मैंने पूछा,

“नहीं” वो बोला,

“कमीना कहीं का” मेरे मुंह से निकला,

तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई, ये रमा थी, उसने बताया कि मतंगनाथ ने बुलाया है मुझे और मतंगनाथ उसके कक्ष में है,

मैं फ़ौरन चल पड़ा शर्मा जी के साथ,

वहाँ पहुंचा,

वहाँ मतंगनाथ बैठा हुआ था, बैजू के साथ! मेरा देखते ही खून खौल उठा! हराम का जना यहाँ आ पहुंचा था मालूमात करने!

मैंने कोई नमस्ते नहीं की उस से, वो समझ गया,

“हाँ, क्या काम है?” मैंने पूछा,

“वो लड़की कहाँ है?” बैजू ने पूछा,

“मेरे पास है” मैंने कहा,

“क्यों है तेरे पास?” उसने पूछा,

“तू क्या बाप लगता है उसका?” मैंने गुस्से से कहा,

वो भी भड़का!

मैं भी भड़का!

“उसको वापिस लाइए आप, समझे?” मतंगनाथ ने कहा,

“नहीं आएगी वो” मैंने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 8 months ago
Posts: 9486
Topic starter  

“किए नहीं आएगी?” बैजू ने कहा,

“तेरे और इसके बाप में दम है तो ले आ वहाँ से?” मैंने कहा,

“ओये! ज़बान सम्भाल, तू जानता नहीं मैं कौन हूँ?” बैजू खड़े होते हुए बोला,

“जानता हूँ, इसका भतीजा है तू” मैंने कहा,

“बकवास बंद, ले कर आ उस लड़की को, अभी” उसने ऊँगली के इशारे से कहा,

“सुन ओये! तू होगा जो है, पहले मेरे बारे में इस से जान ले, ये बता देगा तुझे कि मैं कौन हूँ!” मैंने कहा,

अब मतंगनाथ बगलें झांके!

“और सुन बैजू, आज के बाद तेरी ज़बान पर उस लड़की का नाम आ गया, तो तेरी ये ज़बान रहेगी नहीं मुंह में!” अब मैंने सरासर धमकी दे डाली!

वो एक दम से उठा मुझे मारने को, मैं और शर्मा जी मुस्तैद थे, साले को वहीँ रोक लिया मतंगनाथ ने, नहीं तो हाथापाई हो ही जाती!

माहौल गरम हो चला था बहुत!

ये मैं भी जानता था और वो मतंगनाथ भी!

 

“सुन ओये तू जो भी है?” उसने कहा,

उसकी खीझ पर मुझे हंसी तो आयी, लेकिन मै दबा गया!

“बोल?” मैंने कहा,

“तीन दिन, तीन दिन देता हूँ तुझे” उसने कहा उर मैंने उसकी बात तभी बीच में काट दी,

“किसलिए तीन दिन?” मैंने पूछा,

“तीन दिन के भीतर उस लड़की को यहाँ ले आ, नहीं तो…” वो बोला,

अब मुझे ताव आ गया!

“नहीं तो?” मैंने पूछा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 8 months ago
Posts: 9486
Topic starter  

“तेरा सर मेरे चरणों में होगा” कह गया वो!

मुझे अब हंसी आ गयी! रोक ही न सका मै! न बन पड़ा!

“मेरा मस्तक?” मैंने पूछा,

“हाँ ये मस्तक” उसने इशारे से कहा,

“जानता है तूने क्या कहा है?” मैंने पूछा,

कुछ न बोला वो!

“तेरी जुबां नहीं फिसली ये कहते हुए?” मैंने कहा,

“तीन दिन, याद रख” वो बोला,

“तीन दिन तो क्या पूरी ज़िंदगी तुझे वो लड़की देखने को नहीं मिलेगी, क्योंकि तू इस लायक बचेगा तो देखेगा न!” मैंने कहा,

“देखा जाएगा” उसने कहा,

अब तक मतंगनाथ चुप बैठा था! मैंने उसको मुस्कुराते हुए देखा और बोला,”मतंगनाथ, ये तू भी जानता है इसने क्या कहा है, अभी भी समय है समझा ले इसको, मै इसको तीन दिन देता हूँ समझने के लिए, नहीं तो ये तेरे डेरे की झाड़ू मारने लायक भी नहीं रहेगा!” मैंने कहा,

ये सुनकर बैजू की नसें फड़कने लगीं! चूहे का बिल समझकर सांप के बिल में हाथ दे दिया था उसने! ये बात मतंगनाथ कहीं न कहीं अवश्य ही जानता था! लेकिन भतीजे के मोह से त्रस्त हो गया था! बेचारा!

“सुना मतंगनाथ? तीन दिन, या तू ये खुद समझ जाये, या तू इसको जड़-बुद्धि में ये डाल दे, फिर ये मुझसे क्षमा मांगे, तभी मै बख्शूंगा इसको” मैंने कहा,

अब तो जैसे घोडा बावरा हुआ!

उसने गाली-गलौज आरम्भ कर दीं! बैजू ने! ये उसकी पहली हार थी! हार का चिन्ह था! वो पाँव पटकता चला गया बाहर! मुझसे टकराता हुआ!

बैजू! उम्र होगी कोई पैंतालीस पचास वर्ष! दम-खम वाला था वो, मजबूत जिस्म का! लेकिन घमंड का मारा! और उसकी योगयता अब उसको जांचने वाली थी!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 8 months ago
Posts: 9486
Topic starter  

मतंगनाथ भी कमरे से बाहर चला गया, ये कहता हुआ कि आज मेरा अंतिम अवसर है उसके डेरे पर आने का! कमीन आदमी!

अब रमा घबरायी!

“या क्या हो गया?” उसने भय से पूछा,

“कुछ नहीं, थोथा चना बाजे घना!” मैंने कहा,

“मै ये नहीं चाहती थी, कभी सोचा भी नहीं था” वो बोली,

“कोई बात नहीं रमा, ये तुम्हारे क्षेत्र से बाहर की बात है, जितना तुम कर सकती थीं किया, कल्पि को बचा लिया, अब वो मेरे सरंक्षण में है, अब मै देखूंगा, और अब वैसे भी ये दो औघड़ों की बीच के बात है!” मैंने कहा,

अब मै चला वहाँ से, ढांढस बंधाता हुआ रमा को!

और जब चला तो वहाँ बैजू बैठा था एक तख़्त पर, साथ में उसके आदमी भी थे, मुझे देख फब्तियां कसने लगे! मै रुक गया, उनको पीछे देखा तो शर्मा जी बर्दाश्त नहीं कर पाये अब! वो मुड़े, मैंने रोका, नहीं रुके, अब मै उनके पीछे चला, शर्मा जी वहाँ तक पहुंचे और बोले, “सुन ओये, इतना उबाल खा रहा है तो तू सीधा सीधा द्वन के लिए चुनौती क्यों नहीं देता? तेरी माँ ** **! है साले असल का तो बोल के देख न?”

अवाक! सभी अवाक!

“ये चुनौती कैसे देगा? इसकी पढ़ाई कहाँ हुई है अभी तक शुरू?” मैंने और मिर्च झोंक दीं!

“चला जा ओये!” बैजू बोला,

“जा तो रहे ही हैं, तेरे भी जाने का समय अब पास है, समझा माँ * **?” बोल गए वो!

अब बैजू खड़ा हुआ!

“सुन बे, चला जा यहाँ से इसी क्षण! नहीं तो ऐसी मार लगाऊंगा कि तू पहचान नहीं सकेगा अपने आपको दर्पण में!” वो बोला,

“चल ये भी देखते हैं, है असल बाप का तो हाथ लगा के दिखा!” मैंने कहा,

नथुने फड़क गए मेरे अब!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 8 months ago
Posts: 9486
Topic starter  

वो भी नथुने फुफ्कारे!

आखिर वही! हाथी के दांत खाने के और, और दिखाने के और!

हिम्म्त नहीं हुई उसकी!

रत्ती भर भी!

मैंने तभी इबु का शाही रुक्का पढ़ना था और बैजू का सारा मलीदा बाहर आ जाता शरीर के हर छेद से बाहर!

लेकिन उसने हाथ नहीं लगाया! हिम्म्त नहीं हुई उसकी!

“तीन दिन! याद है न?” उसने कहा,

“तुझे याद है?” मैंने कहा,

अब बहस देखा वहाँ और भी कई लोग आ गए, कई उसके पक्ष वाले कई मेरे पक्ष वाले! दो गुट बन गए वहाँ, मतंगनाथ भागा भागा आया वहाँ!

“आप जाइये यहाँ से अब” उसने कहा,

“मै तो जा ही रहा था, तेरे भतीजे की देह खुजला गयी थी!” मैंने कहा,

“बस! अब और नहीं, संदेसा मिल जाएगा” उसने कहा,

संदेसा!

समझे मित्रगण?

संदेसा वही उस महाद्वन्द का!

“मुझे इंतज़ार रहेगा!” मैंने कहा,

और मै फिर वहाँ से निकल आया शर्मा जी के साथ!

 

मै पहुंचा अपने डेरे पर, सीधा पहुंचा बाबा भालचंद के पास, वे बुज़ुर्ग औघड़ हैं, अब क्रियाएँ नहीं करते बस मार्गदर्शन किया करते हैं, मेरे बहुत पुराने जानकार है, मेरे आरम्भ के दिनों से ही, मैं उन्ही के कक्ष में पहुंचा, तो वहाँ एक सहायक खड़ा था, वो खाना लाया था उनके लिए,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 8 months ago
Posts: 9486
Topic starter  

मैंने नमस्कार की और वहाँ बैठ गया, उन्होंने इधर-उधर का हाल पूछा और फिर मैंने उनसे काम के बात की, मैंने पूछा, “बाबा, इस औघड़ है गढ़वाल का बैजनाथ, क्या जानते हैं उसको?”

उन्होंने थोड़ा समय लिया और बोले, “वो गढ़वाल वाला न?”

“हाँ बाबा” मैंने कहा,

“हाँ जानता हूँ, वो मतंगनाथ का भतीजा ही तो है?” वे बोले,

“वो तो मैं भी जानता हूँ, कुछ और जानकारी?” मैंने पूछा,

“कैसी जानकारी?” उन्होंने पूछा,

“उसके बारे में ही?” मैंने कहा,

“वो बाबा खेवड़ के स्थान पर रहता है, खेवड़ का ही चेला है, खेवड़ वही, जिसका एक स्थान यहाँ भी है” वे बोले,

“खेवड़? वही फैज़ाबाद वाला?” मैंने पूछा,

“हाँ वही फैज़ाबाद वाला” वे बोले,

“अच्छा! समझ गया!” मैंने कहा,

“कोई बात हुई क्या?” उन्होंने पूछा,

और अब मैंने सारी बात उन्हें समझा दी, बता दी,

कुछ चिंतित से हुए वो,

फिर बोले, “मैं बात करूँगा उस से”

“किस से?” मैंने पूछा,

“मतंगनाथ से” वे बोले,

“वो नहीं सुनेगा आपकी बात” मैंने कहा,

“कोशिश करने में तो कोई हर्ज़ नहीं” वे बोले,

“हाँ, कोई हर्ज़ नहीं” वे बोले,

अब मैं उठ गया वहाँ से,


   
ReplyQuote
Page 1 / 7
Share:
error: Content is protected !!
Scroll to Top