वर्ष २०११ उत्तरी दि...
 
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वर्ष २०११ उत्तरी दिल्ली की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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“जाती हूँ! जाती हूँ, जा रही हूँ!” वो चिल्लाई अब!

और ऐसा कहते हुए उसने लेटे लेटे अपना पेट ऊपर किया और फिर तेजी से नीचे कमर लगाई, उसने ऐसा कई बार किया! फिर एक जोर का झटका खाया उसने और वो महामसानी निकल गयी वहाँ से!

ऐसा करते हुए उसने विष्ठा त्याग कर दिया!

परन्तु अब रूचि ठीक हो गयी थी! मैंने घडी देखी तो साढ़े पांच का वक़्त हो चला था, मै और शर्मा जी बाहर आये वहाँ!

बाहर आते ही श्रीमती महाजन रोते रोते आयीं तो शर्मा जी ने उनको हिम्मत बंधवा कर शांत करवाया और सारी बात कह सुनाई, वे घबराई! उनको मैंने रूचि की साफ़-सफाई के बारे में बताया और कहा कि वो उसको नहलाएं-धुलायें और सोने दें! हम फिर दोपहर में आयेंगे दुबारा मिलने! और हम वहाँ से निकल आये!

रास्ते में शर्मा जी ने कहा, “गुरु जी, अब तो तोड़ डालो साले इस धौलिया को, बस बहुत हुआ”

“हाँ! आज मै करता हूँ ये शर्मा जी!” मैंने कहा,

“इन बहन के ** को सिखाना है सबक! साले हरामज़ादे!” वे बोले,

“सबक नहीं, इनका बोरिया-बिस्तर बाँध दूंगा मै!” मैंने कहा,

“गुरु जी, इस धौलिया के माँ को मै ***!!! इसके ही सामने!” उन्होंने गुस्से से कहा,

“आप देखते रहिये अब!” मैंने कहा,

“माँ ** सालों की!” उन्होंने फिर से गुस्से से कहा,

“शर्मा जी, मै आज दोपहर को सबसे पहले सुरक्षित करूँगा, उसके बाद बखिया उधेड़ दूंगा इन हरामजादों की!”

 

हम अपने स्थान पर आये वापिस, मै सीधा अपने कार्य-स्थल में गया और एक कपडा लिया, ये काले रंग का कपडा था, इसको फाड़कर मैंने सात कत्तर बनायीं, और छह को मैंने एक मंत्र से


   
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श्रीशः उपदंडक
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अभिमंत्रित किया और सातवीं को मैंने एक रक्षा-मंत्र से अभिमंत्रित किया, इसमें में करीब एक घंटा लग गया!

मै सीधा शर्मा जी के पास आया, वो उठे और बोले, “हो गया काम पूरा?”

“हाँ शर्मा जी, चलिए अब, यमुना किनारे” मैंने कहा,

तभी शर्मा जी ने गाड़ी निकाली, और हमने दौड़ लगा दी यमुना किनारे जाने के लिए, कोई आधे-पौने घंटे में वहाँ पहुंचे, अब मैंने वो छह कत्तर अलग अलग कीकर के पेड़ पर बाँध दीं और फिर से वापिस आकर गाड़ी में बैठ गया!

“चलिए, अब अपने स्थान की ओर चलें हम” मैंने कहा,

“ठीक है” वे बोले,

हम वापिस आ गए फिर अपने स्थान पर!

चाय-आदि का प्रबंध किया गया, चाय पीते पीते शर्मा जी ने पूछा,”गुरु जी, ये पता चला की वो महामसानी किसने भेजी थी रूचि के ऊपर? धौलिया ने या फिर बाबा गाज़ी ने?”

“नहीं, ये नहीं पता चला, मुझे उसको भगाना था सो भगाना पड़ा, उसके और देर उसमे रहने से रूचि की हालत बेहद खराब हो जाती शर्मा जी” मैंने कहा,

“हाँ, ये भी बात सही है” वे बोले,

“मै पता कर लूँगा, अभी सबसे पहले मुझे रूचि को सुरक्षित करना है, इस समय यही है प्राथमिकता हमारी शर्मा जी” मैंने कहा,

“हाँ गुरु जी, सही कहा आपने” वे बोले,

उसके बाद हम इस विषय पर अनेकों बातें करते रहे, रणनीति बनाते, उसमे संशोधन करते और फिर उसको अमल में कैसे लाया जाए इस पर चर्चा करते!

खैर, दोपहर हुई, थोडा-बहुत आराम कर लिया था, सो अब योजना थी रूचि के घर जाने की और वो कत्तर उसकी कमर में बाँधने की, यही योजना बनाई और हम फिर से एक बार रूचि के घर के लिए प्रस्थान कर गए! श्रीमती महाजन को इसकी खबर कर दी गयी थी, वे भी हमारी ही प्रतीक्षा कर रही थीं!


   
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श्रीशः उपदंडक
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हम वहाँ पहुंचे, साफ़-सफाई करा दी गयी थी, अब रूचि ठीक थी, अपनी माँ के कमरे में सो रही थी, मैंने श्रीमती महाजन को वो कत्तर दी और कहा की ये कत्तर उसके कमर में बाँध दीजिये, ऐसी कि खुले नहीं, उसके ऊपर कोई नहीं आ सकता फिर! आते ही भाग जाएगा! उन्होंने फ़ौरन ही जाकर सोती हुई रूचि की कमर में वो कत्तर बाँध दी!

अब रूचि किसी भी लपेट-झपेट से सुरक्षित थी! परन्तु ये अस्थायी निदान था, स्थायी निदान के लिए वार करने वाले को रोकना था! परन्तु, इस से मुझे कुछ समय अवश्य मिल गया था, मै अब इस समस्या का पूर्ण-निदान कर सकता था!

अभी हम बात कर ही रहे थे कि रूचि की माँ के पास रूचि के पिता जी का फ़ोन आ गया, उन्होंने सारी बातें तो बता ही दी थीं पहले ही, मेरे बारे में भी बता दिया गया था, लेकिन वो बात करना चाहते थे हमसे, सो, मैंने उनसे बातें कीं, एक बाप का अपनी बेटी के प्रति प्रेम से मेरा ह्रदय भी द्रवित हो उठा, वो बेचारे रो रो के गुहार लगा रहे थे, मैंने उन्हें समझा दिया और हिम्मत बंधवाई! उनको पूर्णतया आश्वस्त कर दिया! मैंने श्रीमती महाजन को चेताया कि हर लिहाज से वे नीलू के परिवार के संपर्क में न आयें, जब तक कि मै न कहूँ उनको, उन्होंने मेरी बात को बल दिया और मेरी बात मान ली!

अब उनसे विदा ली और वहाँ से वापिस चल पड़े हम अपने स्थान के लिए! रास्ते से हमने अपना आवश्यक सामान खरीदा और फिर तैयारी करने के लिए कुछ आवश्यक सामग्री भी खरीद ली, और हम वापिस आ गए!

खबीस तो कुछ नहीं कर सका था, हाँ उसने जानकारी काम की दी थी! अब मै क्रिया में बैठा! अपना त्रिशूल सीधे हाथ की तरफ भूमि में गाड़ा, उसका नमन किया और फिर अलख उठाई, अलख-भोग दिया! उसके बाद मैंने चर्म-पत्र निकाला, उस पर मैंने अभिमंत्रित अस्थि के टुकड़े डाले! और फिर क्रिया आरम्भ की!

मेरे मंत्रजाप से वहाँ का स्थान गुंजायमान हो गया! मंत्रजाप क्लिष्ट से क्लिष्टतम होते चले गए! तांत्रिक-मंत्र कठोर ध्वनि वाले होते हैं, आप उनके कान में पड़ते ही जान जायेंगे कि ये तामसिक-मंत्र हैं!

मै किसी महा-शक्ति का आह्वान कर रहा था, उस महा-शक्ति की सहोदरी का आह्वान था ये, भोग आदि पूर्ण था वहाँ! करीब चार घंटे की अटूट साधना पश्चात वो सहोदरी प्रकट हुई! मैंने उसका नमन किया! और उसके दर्शन-मात्र से ही मुझ में अथाह शक्ति का संचार हो गया! भोग अर्पित किया गया और फिर वो लोप हो गयी! जो मै चाहता था वो जान गया था!


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब मै उठा वहाँ से! और फिर स्नानादि पश्चात मै सीधे ही सोने चला गया, थकावट हावी थी मुझ पर उस समय! खड़ा होना तक मुश्किल लग रहा था!

मै प्रातःकाल उठा!नित्य-कर्मों से फारिग होकर मै शर्मा जी से मिला और उनको गत-रात्रि की क्रिया से अवगत करवाया!

उन्होंने पूछा, “गुरु जी, अब आगे?”

“हाँ शर्मा जी!” मैंने कहा,

“रूचि के घर बात करूँ?” उन्होंने पूछा,

“हाँ, कैसी है वो, तनिक पूछ लीजिये” मैंने कहा,

तदोपरान्त शर्मा जी ने रूचि के घर फ़ोन किया और पता चला कि रूचि एकदम से ठीक है! घर में सभी प्रसन्न हैं! परन्तु नीलू के पिता जी आये थे अपनी पत्नी के साथ, रूचि को देखने, अधिक बातें नहीं की उन्होंने बस देखा रूचि को और चले गए!

“ये क्या करने आये थे?” उन्होंने फ़ोन काटते हुए पूछा,

“धौलिया ने ही भेजा होगा उनको शर्मा जी!” मैंने कहा,

 

“इस धौलिया का प्रबंध कीजिये गुरु जी आप सबसे पहले!” वे बोले,

“हाँ करता हूँ इसका प्रबंध!” मैंने कहा,

“क्योंकि जब तक ये नहीं मानेगा, कुछ न कुछ करता ही रहेगा” वे बोले,

“मै जानता हूँ शर्मा जी” मैंने कहा,

“तो फिर देर किस बात की है? चलें धौलपुर? कोई ज्यादा दूर तो है नहीं?’ वो बोले,

“अभी नहीं!” मैंने कहा,

“क्यों?” उन्होंने पूछा,

“धौलिया भी बेचैन है! वो आएगा दिल्ली, नीलू के परिवार से मिलने!” मैंने बताया,

‘अच्छा! इसका मतलब उसको हम यहाँ धरदबोचेंगे!” उन्होंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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हाँ!” मैंने कहा,

“लेकिन गुरु जी वो कब आएगा?” उन्होंने सवाल किया,

“मै बुलाऊंगा उसको!” मैंने कहा,

“कैसे?” उन्होंने अचरज से पूछा,

“मै उस पर वार करूँगा! वो भौंचक्का रह जाएगा, उसके बाद मै नीलू के परिवार में से किसी को मोहरा बनाऊंगा!” मैंने उनको बताया!

“वाह! ये योजना सही रहेगी” उन्होंने कहा और मुस्कुराए!

“फिर भी काम अधूरा रहेगा शर्मा जी, हमे बाबा गाज़ी से भी निपटना है! असली खिलाड़ी वही है इस खेल का!” मैंने कहा,

“हाँ! ये बात तो है!” उन्होंने सहमति जताई!

“गुरु जी? हो भी सकता है कि गाज़ी को इस बारे में गलत बताया गया हो धौलिया द्वारा?” उन्होंने संशय जताया,

“हाँ, संभव है” मैंने उत्तर दिया,

“बड़ी उलझी हुई कहानी है ये गुरु जी!” वे बोले!

“हाँ, है तो उलझी ही हुई” मैंने एक लम्बी सांस छोड़ते हुए कहा,

“ये साल धौलिया हाथ आ जाए तो सब पहेली हल हो जायेगी!” उन्होंने कहा,

“हाँ! अच्छा. शर्मा जी?” मैंने कहा,

“जी? कहिये?” उन्होंने पूछा,

“आप श्रीमती महाजन को फ़ोन कीजियेगा” मैंने कहा,

“किसलिए गुरु जी?” उन्होंने पूछा,

“उनसे पूछिए कि क्या नीलू की कोई फोटो है उनके पास? या किसी अन्य सदस्य की हो?” मैंने पूछा,

“अच्छा! मै अभी पूछ लेता हूँ” उन्होंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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शर्मा जी ने तभी फ़ोन कर दिया, खबर मिली कि नीलू की कुछ तस्वीरें हैं घर पर, रूचि के साथ!

बस!!

ये काफी था! जो मै चाहता था वही हुआ था! ये पर्याप्त था!

“शर्मा जी, आज आप जाइये वहाँ, या रूचि के भाई को यहाँ बुला लीजिये, वो फोटो लेता आये!” मैंने कहा,

“जी, मै कह दूंगा उसको, मुझे जाना पड़ा तो मै चले जाऊँगा!” वे बोले,

“फोटो आते ही मै खिलाता हूँ इनको खेल!” मैंने कहा,

“हाँ गुरु जी!” उन्होंने कहा,

“फोटो आते ही, मै डराऊंगा नीलू को और उसके घरवालों को! हारके वो बुलायेंगे उस धौलिया को!” मैंने बताया,

“ये ठीक है अब!” उन्होंने कहा!

“ठीक है आप बात कर लीजिये उनसे” मैंने कहा,

“जी अभी करता हूँ” उन्होंने कहा!

और फिर उन्होंने श्रीमती महाजन को फ़ोन कर दिया! उनका बेटा शाम तक वो तस्वीरें देके जाने वाला था!

“गुरु जी?’ उन्होंने पूछा,

“हाँ?” मैंने कहा,

“जब धौलिया यहाँ आएगा, तो गाज़ी के सरंक्षण में होगा, है या नहीं?” उन्होंने पूछा,

“हाँ होगा! परन्तु उस से कोई लाभ नहीं उसको” मैंने बताया,

“कैसे?” उन्होंने पूछा,

“वो ऐसे, कि गाज़ी सोच रहा होगा कि उसकी कोई ‘पकड’ नहीं है अभी तक, जबकि उसकी ‘पकड़’ हमने ले ली है!” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“हाँ! हाँ! सही कहा आपने!” वो बोलते हुए मुस्कुराए!

“अब चारा फेंका जा चुका है! देखिये मछली कब फंसती है!” मैंने कहा,

“अब तो फंस ही जायेगी मछली गुरु जी!” वे बोले,

“फिर देखिएगा आप” मैंने कहा,

“इस साले धौलिया को एक बार मेरे सामने कर देना बस!” उन्होंने कहा,

“हाँ! पक्का! साले का मै चेलापन निकालूँगा!” मैंने कहा,

“और मै साले की निकालूँगा हवा! कमीन इंसान ऐसा ही करता होगा ये, न जाने कितनों के साथ इसने ऐसा ही किया होगा इलाज के नाम पर, कुत्ता कहीं का!” उन्होंने गुस्से से कहा!

“हाँ शर्मा जी, कितने तो न जाने बेचारे इज्ज़त बचाने के लिए बताते भी नहीं होंगे”

“इसीलिए मै इस साले की माँ *** चाहता हूँ, हरामज़ादे, कुत्ते की! साले को एक बार मेरे सामने खड़ा कर देना बस!” वो क्रोधावेश में बोले!

“ऐसा ही होगा!” मैंने भी हंस के कहा!

 

तदोपरान्त, एक और व्यक्ति आ गया वहाँ, ये कुछ आवश्यक सामग्री लाता है असम और बंगाल से! ये सार मामला मै ही देखता हूँ, इसीलिए मै उसके साथ व्यस्त हो गया! शर्मा जी मेरे कमरे में जाके आराम करने लगे!

फिर शाम हुई, शाम कोई साढ़े छह बजे करीब रूचि का भाई आ गया वहाँ, नीलू की तस्वीरें लेकर, ये पांच थीं! मैंने ले लीं! और रख ली संभाल कर! आज मेरा खेल शुरू होना था! रूचि का भाई वापिस चला गया! बहुत सीधा सादा लड़का है वो! अपनी बहन को लेकर वो भी परेशान था!

अब शर्मा जी ने मुझे कहा,”गुरु जी, आज तो फोड़ दो मटका साले इस धौलिया के सर पर!”

“आप देखते जाइये शर्मा जी आज!” मैंने कहा,

वो उठे और मुझे गले से लगा लिया! आँखों में आंसू ले आये! ये उनके स्नेह-भाव हैं! मै जानता हूँ!

“मै कितना सौभाग्यशाली हूँ गुरु जी आपका सान्निध्य पाकर! मुझे से अधिक और मेरे सिवा कोई नहीं जान सकता ये!” उन्होंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“अरे शर्मा जी! ये औघड़ आपके सिवा किसी से बात भी नहीं करता! न किसी के साथ आता, न जाता! अब छोडिये, सबसे पहले, आइये, योजना बनाएं!” मैंने कहा,

“उचित है!” वे बोले,

मित्रो, हमारे शर्मा जी में मानवता कूट-कूट के भरी है! क्या मज़हब, क्या जात, क्या भेद! कुछ नहीं! बस मनुष्य! यही है उनका वो अनमोल भाव, जिसकी वजह से मैंने उनको चुना था!

” शर्मा जी, मै आज रात नीलू के घर में कोहराम मचाने वाला हूँ” मैंने बताया,

“मचा दीजिये गुरु जी, अन्य कोई विकल्प नहीं है शेष!” वे बोले,

“ठीक है!” मैंने कहा,

इसके बाद मैंने कुछ भोग-सामग्री आदि का प्रबंध किया और फिर कुछ प्रबल-मंत्र जागृत किये! उस समय नौ बजे थे रात्रि के और मै ग्यारह बजे वहाँ उनको डराना चाहता था! मैंने नीलू का फोटो काट कर अलग किया! अन्य व्यक्तियों से अलग किया अर्थात!

रात के ग्यारह बजे!

मै अपने क्रिया-कक्ष में गया! अलख उठायी और फिर अलख भोग दिया! मैंने नीलू की तस्वीर के कपाल-पात्र में रखा, उस पैर शराब के और रक्त के छींटे दिए और एक मंत्र पढ़ा! फिर उस तस्वीर को तीन जगह से छेद दिया, अब मैंने अपने एक महाप्रेत का आह्वान किया! महाप्रेत प्रकट हुआ! रौद्र-रुपी प्रेत! मैंने उसको उसका भोग दिया और फिर मैंने उसको उसका उद्देश्य बता कर रवाना कर दिया! उसके किसी का अहित नहीं करना था, बस डराना भर था! महाप्रेत कुछ ही क्षणों में वहाँ पहुंचा, उस समय रात्रि का एक बजा था! सभी निश्चिन्त हो सो रहे थे! महाप्रेत ने सोती हुई नीले के बाल जोर से पकड़ के खींचे! वो जाग पड़ी! आसपास देखने लगी! कहीं किसी वास्तु में तो बाल नहीं अटक गए? उसने हर संभव प्रयास किया समझने का, आखिर वहम या स्वपन जानकर फिर से लेट गयी! लेकिन जब व्यक्ति से साथ कुछ अप्रत्याशित घटता है तब चेतन-मस्तिष्क उसका कारण ढूंढता है, जब वो सहज नहीं रहता तो उसको भूलने का प्रयास करने लगता है, परन्तु वो घटना उसके अवचेतन-मस्तिष्क में सदा के लिए क़ैद हो जाती है! यही नीलू के साथ हुआ! नींद उड़ चुकी थी उसकी! उसने करवट बदली! आँखें बंद कीं! और तभी महाप्रेत ने उसके सर पर हाथ फेर दिया! अब तो वो चिल्ला पड़ी! चिल्ला के भागी बाहर! उसके माँ-बाप और भाई आये दौड़े दौड़े! नीलू के मुंह से शब्द न निकले! बड़ी मुश्किल से उसने वो बताया जो उसके साथ घटा था! ये सुनके तो उनके होश उड़ गए! बड़ी हिम्मत करके नीलू के माँ-बाप नीलू के कमरे में गए, वहाँ कुछ न दिखा उनको! और उधर नीलू के साथ खड़े उसके


   
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श्रीशः उपदंडक
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भाई को धक्का दिया महाप्रेत ने! अब वो चिल्लाया! जब उनके माँ-बाप आये वहाँ तो महाप्रेत ने नीलू की माँ को गिरा दिया! वो मुंह के बल गिरी नीचे! सर में चोट तो लगी लेकिन अधिक नहीं! अब वो समझ गए कि घर में ज़रूर को अला-बला है! तब नीलू के पिता जी ने घर में रखी बाबा धौलिया की दी हुई भस्म बिखेर दी! तब तक महाप्रेत वहाँ से जा चुका था! मेरे पास हाजिरी देने के पश्चात लोप हो गया था! जो मेरा उद्देश्य था वो पूर्ण हो चुका था! नीलू के घर में जैसे कोहराम सा मच गया! डर में मारे सभी सिकुड़ने लगे थे!

अब मै क्रिया-कक्ष से बाहर आया! स्नानादि से निवृत हुआ और फिर शर्मा जी के पास गया! और शर्मा जी को अब तक की स्थिति से अवगत करा दिया! उनकी भी हंसी छूट गयी! अब हमे प्रतीक्ष थी कि कब नीलू के माता-पिता धौलिया को बताएं ये सब और धौलिया आये वहाँ! कुछ देर बातें कीं और फिर सोने चले गये!

सुबह करीब ग्यारह बजे श्रीमती महाजन का फ़ोन आया, उन्होंने बताया कि नीलू के माँ-बाप आये थे, कह रहे थे कि उनके घर में भी कोई समस्या हो गयी है, और जहां से रूचि का इलाज करवाया है उनको एक बार बुलवा लिया जाए तो बढ़िया रहेगा! इस पर रूचि की माता जी ने जब धौलिया के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वो तो अपने गुरु जी के पास गए हैं आज, परसों आयेंगे, तब तक यदि हम आ जाएँ तो समस्या का निवारण हो जाए, इस पर श्रीमती महाजन ने उनको कह दिया कि हम तो बाहर गए हुए हैं कहीं!!!

परसों! अर्थात दो दिन और खेल खेलना था इनके साथ!

“शर्मा जी, अभी दो दिन और!” मैंने कहा,

“हाँ जी” वे बोले,

“कोई बात नहीं! दो दिन और मचाते हैं कोहराम!” मैंने कहा,

“ठीक है!!” उन्होंने हंस के कहा,

“अब मै आज दिन में भी देखो क्या करता हूँ!” मैंने कहा,

“नीलू के पिता को छेड़ो आप” उन्होंने सुझाव दिया!

“ठीक है, आज नीलू के पिता को दिखवा देता हूँ अपना खबीस!” मैंने कहा!

“कहीं डर के मारे मर न जाए! आप खबीस नहीं कोई भूत आदि भेज दीजिये!” उन्होंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“हाँ हो भी सकता है, और अगर खबीस चिढ़ा तो समझो फेंट के रख देगा! ठीक है, जैसा आपने कहा वो ही ठीक है!” मैंने कहा,

“उचित है गुरु जी! वे बोले!

 

और फिर मित्रगण! दो दिनों तक मैंने नीलू के घर पर खूब हल्ला काटा! कभी बर्तन गिर जाते थे, कभी सामान गिर जाता था! आदि आदि! धौलिया बाबा को खबर तो कर ही दी गयी थी, अतः उसने एक दिन बाद आने को कह दिया! बस! यही चाहता था मै!

एक दिन बीता!

और फिर अगले दिन दोपहर के समय धौलिया आ गया वहाँ अपने एक चेले के साथ! मुझे उसके आने की खबर लग गयी थी! नीलू के माँ-बाप उसके पाँव में पड़ गए! रो रो के सारा हाल सुना दिया! धौलिया ने तभी वहाँ एक छोटी सी जांच-क्रिया की! उसको पता चल गया कि वहाँ अवश्य ही प्रेत का साया है! ये सुनकर तो नीलू के माँ-बाप को तारे नज़र आ गए! धौलिया ने बताया कि किसी ने उनके घर पर इन्ही प्रेतों का वास करवाया है! और वो जांच लेगा कि ये किसने भेजे हैं यहाँ! उसने तब एक सीताफल मंगवाया, एक थाल में सिरका डाला, और उस सीताफल के उसने इक्कीस टुकड़े किये, एक एक टुकड़ा सिरके में डुबोकर अभिमंत्रित किया और घर में वो थाल बीचोंबीच रखवा दिया! उसने क्षार-अवरोधन क्रिया की थी! एक छोटी सी औघड़ी क्रिया!

उस रात धौलिया ने स्वयं जागे जागे काटी! कोई प्रेत वहाँ आये कैसे? वो मैंने भेजे ही नहीं थे! सुबह के समय सोया खूब धौलिया! अपनी सफलता में चूर! लें अब मै उसको जांचने वाला था! उस सुबह!

अब मैंने शर्मा जी को बुलाया अपने पास! वो एक घंटे में मेरे पास पहुँच गए! मैंने उन्हें सारी स्थिति से अवगत करा दिया! खेल अब शुरू होना था!

जब धौलिया सुबह उठा तो उसने उठते ही, उसने नीलू के घरवालों को बताया कि उसकी क्रिया से प्रेत यहाँ से भाग चुके हैं, अब नहीं आयेंगे! ये सुन राहत की सांस ली उन्होंने! और अब! अब, उस लड़की रूचि के बारे में पूछा उनसे! उन्होंने बताया कि उन लोगों ने रूचि का इलाज किसी और से करवा लिया है और लगता है कि प्रेत का साया उस से समाप्त हो चुका है! अब धौलिया ने जिद पकड़ी उस लड़की रूचि को बुलवाने की! नीलू के माँ-बाप ने बताया कि वो नहीं आएगी अब, रूचि की माँ ने मना कर दिया है! धौलिया तमतमा उठा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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उसने तभी फ़ोन मिलाया! फ़ोन मिलाया अपने गुरु गाज़ी बाबा को! काफी देर बातें हुईं उसकी उस से! उसने गाज़ी बाबा से रूचि के बारे में ही बात की थी! इसका अर्थ हुआ कि गाज़ी आज बैठेगा अलख में वहाँ! ये चिंता का विषय था अब!

मैंने शर्मा जी से कहा कि वो श्रीमती महाजन को फ़ोन करें कि वे आज रात को रूचि को लेकर मेरे स्थान पर आ जाएँ, ये अत्यंत आवश्यक भी है और अहम् भी, उन्होंने तभी फ़ोन कर दिया उनको और समझा दिया, वे लोग नौ बजे तक आ जाने थे मेरे पास!

अब मैंने अपना क्रिया-स्थल सजाया, सामग्री, आवश्यक वस्तुएं, मांस-मदिरा और अपने तंत्राभूषण आदि सब सुसज्जित किये!

मै बाहर आया, तो शर्मा जी वहीँ बैठे थे, मैंने कहा, “लीजिये शर्मा जी आज हुआ है द्वन्द आरम्भ!”

“हाँ गुरु जी! इस धौलिया और उस गाज़ी का आज बेड़ा ग़र्क़!” उन्होंने कहा,

“देखते हैं शर्मा जी, देखते हैं गाज़ी में कितना सामर्थ्य है!” मैंने कहा,

“न्याय सदैव विजयी रहता है, औ आज भी यही होगा!” वो बोले,

“सही कहा आपने!” मैंने कहा,

“आज वो रूचि को निशाना बनाएगा!” मैंने कहा,

“और वो रक्षा-सूत्र?” उन्होंने पूछा,

“गाज़ी जैसा औघड़ उसको भेद देगा शर्मा जी!” मैंने बताया,

“हम्म! इसीलिए आपने रूचि को यहाँ बुलाया है!” वे बोले,

“हाँ! यहाँ मै झेलूँगा उसका वार!” मैंने कहा,

“अच्छा गुरु जी!” वे बोले,

थोड़ी देर शांत रहे हम दोनों! फिर शर्मा जी बोले,”गुरु जी? कुछ सामान आदि की आवश्यकता हो तो बताइये?”

“नहीं, अभी पर्याप्त है सामान” मैंने कहा,

“अच्छा गुरु जी, मै अभी चलूँगा, नौ बजे से पहले आ जाऊँगा” उन्होंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“ठीक है” मैंने उत्तर दिया,

“और श्रीमती महाजन से कुछ कहना हो तो बताइये?” वे बोले,

“उनसे कहियेगा कि एक जोड़ी कपडे लायें अतिरिक्त रूचि के” मैंने बताया,

“जी कह देता हूँ” उन्होंने कहा,

“और हाँ, एक बात और, महाजन-परिवार किसी भी तरह से नीलू के परिवार से संपर्क न करें” मैंने चेताया,

“जी कह देता हूँ” वे बोले,

फिर उन्होंने बात की और सब कुछ बता दिया! और चले गए!

इधर मै अपनी तैयारियों में जुट गया!

 

नौ बजने से पहले ही शर्मा जी आ गए मेरे पास वहाँ, साथ में कुछ ‘प्रसाद’ भी ले आये थे, और करीब सवा नौ बजे श्रीमती महाजन रूचि और अपने बेटे के साथ वहाँ आ गयीं, नमस्कार आदि हुई, तदोपरान्त मैंने रूचि को उसकी माँ और भाई के साथ एक अलग कमरे में बिठा दिया, कह दिया कि वो कहीं भी बाहर न निकले! शर्मा जी को ताक़ीद किया कि वो रूचि कि स्थिति पर नज़र बनाए रखें, उसे कहीं भी बाहर न जाने दें, उन्होंने मान लिया!

अब मै अपने क्रिया-स्थल के लिए चला, मैंने चर्मासन लगाया, और अलख उठा दी! अलख उठते ही भड़की! मैंने रौद्रनाद किया! अलख भोग दिया! अपना त्रिशूल, नमन कर भूमि में गाड़ दिया! और सामने पांच थालों में मांस, मदिरा आदि परोस दी! अब मैंने एक गिलास में मदिरा डाल कर, कच्ची कलेजी का टुकड़ा चबाया और गिलास गटक गया! अब मैंने कर्ण-पिशाचिनी का आह्वान किया! मैंने मंत्रोच्चार आरम्भ किया और महाभोग तैयार किया! मुझे कुछ समय लगा और फिर ‘झनाक’ की आवाज करती हुई, रौद्र-रुपी कर्ण-पिशाचिनी प्रकट हुई! मैंने भोग अर्पित किया उसको! अब मुझे कोई चिंता नहीं थी उस बाबा गाज़ी के प्रहार की! प्रकट हो लोप हुई! वो तत्पर थी! मै उस से प्रशन करता और मुझे उनके उत्तर मेरे कर्ण-पटल पर मिल जाते!

मैंने बाबा गाज़ी पर ध्यान लगाया! कर्ण-पिशाचिनी से प्रश्न किये और उसके निर्देशानुसार प्रशस्त होता गया! गाज़ी की खबर आई, वो अपने टिल्ले पर आ बैठा था! साथ में एक और औघड़ भी था उसके! इसका नाम था गरुड़ नाथ! ये गरुड़ नाथ इसका प्रधान शिष्य था!


   
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दरअसल समस्त कार्य ये गरुड़ नाथ ही करता था, गाज़ी मात्र निर्देशन करता था! गरुड़ नाथ ने पूरी तैयारी कर राखी थी! गाज़ी तक खबर आ चुकी थी! गाज़ी बेहद कुशल और वर्चस्व वाला औघड़ था! गाज़ी ने मेरी खबर भी ले ली थी! उसे मेरे मंसूबे भी ज्ञात हो गए थे! वो उस समय हंसा और अलख के पास खड़ा हो कर मूत्र-त्याग किया! फिर उस गीली भूमि पर बैठ गया! गीली मिट्टी से स्वयं अपना एवं गरुड़ नाथ का मसान-टीका किया! वो द्वन्द में कुशल मालूम पड़ता था! जितनी मेरी आयु है उतनी तो उसकी साधना ही थी! उन दोनों ने एक लोटे में मदिरा डाली और आधा आधा लोटा खींच गए! अब गरुड़ नाथ ने सप्त-भुज परिक्रमा की अलख की और फिर एक जगह जा कर मूत्र त्याग किया! उसने भी मिट्टी उठाई और अपने शरीर पर नेव खींच डाले! ये नेव शत्रु-प्रहार से रक्षा करते हैं देह की! फिर वापिस आया! अपना त्रिशूल उठाया और भूमि में गाड़ दिया! अब गरुड़ ने एक झोले से कुछ कपडे में लिपटा हुआ सामान निकाला! उसने धीरे से इसका कपडा हटाया, ये मेढ़े का सर था! अब उसने मेढ़े के सर को एक थाल में रखा और कुछ अस्थियों के टुकड़े निकाले अपने झोले से! उनको अभिमंत्रित किया और उस मेढ़े के मुंह, कान और सर पर वो टुकड़े रख दिए! ये शत्रु-भेदन कार्य होता है! तीक्ष्ण मारण क्रिया!

जैसे मुझे पल-पल की खबर मिल रही थी, ऐसे ही वो बाबा गाज़ी भी देख रहा था! वो देखता और अट्टहास लगाता!

अब यहाँ मैंने सामान निकाला! इस सामान में तीन सर थे मेरे पास दो बकरे के और एक मेढ़े का!

मैंने एक बकरे के सर में से चाक़ू की सहायता से उसकी आँखें बाहर निकालीं और थाल में रख दीं! फिर तीनों सरों के जीभ बीच में से चीर दी, सर्प-जिव्हा रूप में! और अस्थि के कुछ टुकड़े लेकर मैंने अभिमंत्रित कर उन तीनों के मुंह में डाल दिए! आज मै अपने साथ एक फरसा भी लाया था! ये फरसा तंत्र में एक विभिन्न आकार का होता है! ये फरसा मैंने अपने त्रिशूल के साथ ही रखा था! अब मैंने मंत्रोच्चार आरम्भ किया!

मैंने अब महानाद किया और त्रिशूल भूमि से उखाड़ा! अलख की परिक्रमा की और फिर से त्रिशूल भंजन-मुद्रा में गाड़ दिया वहाँ! मै वहाँ से हटा और एक जगह जाकर मूत्र-त्याग किया! फिर वहाँ की मिट्टी ली और उस मिट्टी को चारों दिशाओं में फेंक दिया!

ये देख गाज़ी थोडा चौंका! वो इसलिए कि मैंने उसके नेव नहीं खींचे! बल्कि चारों दिशाओं में फेंक दिया था! इसका अर्थ था मै जमघड़ शमशानी औघड़ था!! उसने तालियाँ पीटीं! गरुड़ नाथ भी चौंका उसको तालियाँ पीटते देख!


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब गाज़ी गरजा, “होम होम जूं जूं ……………………………………………..!!!”

यहाँ मै गरजा, “होम होम जूं जूं ख्राम……………………………………………!!!”

गाज़ी ने अट्टहास लगाया!

मैंने भी अट्टहास लगाया!

गाज़ी ने भूमि पर बैठे बैठे अपने दोनों हाथ आगे बढाए फिर खड़ा हुआ और अपना त्रिशूल लेकर उसको उल्टा कर दिया! सपष्ट था, ये प्रथम चेतावनी थी कि अभि भी समय है मै हट जाऊं उसके रास्ते थे!

मैंने एक कपाल उठाया! उसके अन्दर मदिरा डाली और पी गया! फिर त्रिशूल के ऊपर वो कपाल लटका दिया! अर्थात मै नहीं हटने वाला पीछे! तूने हटना है तो अभी भी समय है! नहीं तो मृत्यु-वरण करना होगा!

गाज़ी अपनी जाँघों पे हाथ मारते हुए दहाड़ा! अट्टहास किया! उसने मांस का एक टुकड़ा उठाया और उसको शराब में डुबोया! फिर अलख में डाल दिया! अलख चढ़चड़ा उठी उसकी! उसने उसकी भस्म से अब अपना वक्ष-स्थल पोता!

यहाँ मैंने चिता-भस्म निकाली और समस्त देह पर लीप लिया उसको! फिर रक्त-पात्र से रक्त अंजुल में लेकर पी गया! गीले हाथों से माथा सजा लिया! रक्त-सज्जा अत्यंत महत्वपूर्ण होती है तंत्र में मित्रो!

 

कुछ पलों के लिए शान्ति हो गयी!

रात कोई सवा बारह बजे होंगे उस समय!

 

अब गाज़ी उठा और उसने कपाल-कटोरे में शराब डाली! और मंत्र पढता हुआ सारी शराब गटक गया! उसने अपना त्रिशूल उखाड़ा, तीन बार अलख-परिक्रमा की और मुझे, अपना त्रिशूल उठाके चुनौती दे डाली! मैंने भी अपना त्रिशूल उठाया और लहराया! मैंने चुनौती स्वीकार कर ली थी! अब गाज़ी ने अलख-भोग देते हुए, नटनी का आह्वान किया! नटनी बहुत आक्रान्त, शक्तिशाली, दुश्चर और क्रोधी होती है! गले में अस्थि-माल धारण किये, मांस के लोथड़ों से सुसज्जित रहती है! इसके मुख से सदैव रक्त की धार टपकती रहती है! नटनी को सिद्ध करना हर एक साधक के बस की बात नहीं है! इसकी साधना घोर और क्लिष्ट मानी


   
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श्रीशः उपदंडक
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जाती है! ये औघड़ गाज़ी बहुत शक्तिशाली और प्रबल था, उसने सबसे पहले नटनी का ही आह्वान कर दिया था! मै उसके इस नटनी-आह्वान से थोड़ा चकित हो गया था और ये स्वाभाविक भी था!

मुझे यहाँ नटनी के आगमन से पहले उसकी काट करनी थी, अतः मैंने काल-रूपा का आह्वान किया! ये भी महाप्रबल, क्रोधी और भयावह होती है! उधर गाज़ी भी विस्मित हुआ! तभी अचानक वहाँ एक रौशनी चमकी, सुनहरी रौशनी! नटनी-सखी आने को थी! ये देख मैंने तुरंत ही काल-रूपा का मंत्रोच्चार तीव्र कर दिया! ‘भम्म-भम्म’ की आवाज़ आने लगी! वातावरण में ताप बढ़ गया! वहाँ रात्रि-काल विचरण करते पक्षी, चमगादड़ भाग छूटे! वे भयाक्रांत थे! घोर-शान्ति हुई परन्तु मेरे ह्रदय के स्पंदन मै सुन सकता था!

‘काल-रूपा, क्लीम क्लीम………..’ का उच्चारण प्रबल हुआ!

और तभी!

वज्र-देह वाली काल-रूपा की सखी यामा प्रकट हो गयी! मैंने नमन किया! मेरे कर्ण-पटल पर भयानक जोर पड़ा! ये देखा अब गाज़ी ने! गरुड़ नाथ और गाज़ी अचंभित रह गए! वे मान गए कि सामने वाला भी कोई है!!!! अब मुझे प्रतीक्षा थी तो केवल गाज़ी के वार की! नटनी प्रकट हो गयी! गाज़ी और गरुड़ नाथ ने नमन किया उसको! परन्तु गाज़ी ने नटनी को मुझ तक नहीं पहुंचाया! बल्कि वापिस कर दिया! गाज़ी सब्र के साथ लड़ना चाहता था! अब मैंने भी यामा को नमन कर वापिस किया! मेरे शरीर में पुनः जीव-संचरण आरम्भ हुआ!

उधर, गाज़ी ने अब गरुड़ नाथ को खड़ा किया वहाँ से और स्वयं अपने आसन पर बैठ गया, सत्तर-अस्सी वर्ष का ये प्रबल औघड़ अपनी हार नहीं मानना चाहता था! उसने भूमि में अपने त्रिशूल से एक गड्ढा किया और फिर उसमे शराब डाली, फिर मांस के टुकड़े उस गड्ढे में डाले, अलख से निकाल कर कुछ जलते हुए कोयले डाले, कोयले डलते ही गड्ढे में आग भड़क गयी! उसने मंत्र पढना आरम्भ किया! अपने त्रिशूल को दोनों हाथों से उठाकर उसने मंत्रोच्चार किया! और फिर आग के बुझते ही उसने वो गड्ढा मिट्टी से ढांप दिया! और वहाँ उसी के पास अपना त्रिशूल गाड़ दिया!

उसके इस कृत्य से मै भांप गया कि उसका अगला चरण क्या है! वो जो कर रहा था वो अति-तीक्ष्ण था! ये घंटक-बौने का आह्वान था! किसी भी पल वो घंटक-बौना उसी गड्ढे से सर निकालता बाहर आता और फिर गाज़ी का रक्तपान करने के पश्चात वो उसके दिशा-निर्देशन के अनुसार गाज़ी के शत्रु का वेध करता! ये घंटक-बौना मात्र ढाई फीट का होता है! परन्तु बेहद चपल, दुर्दांत, क्रोधी और भयानक वार करने वाला! अच्छे से अच्छा तांत्रिक भी घंटक-बौने के


   
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