वर्ष २०११ उत्तरी दि...
 
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वर्ष २०११ उत्तरी दिल्ली की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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वे गर्मियों के दिन थे, गर्मी अपने शीर्ष पर थी, बुरा हाल था सभी का, क्या मनुष्य और क्या पशु-पक्षी! सभी की दिनचर्या में जैसे विराम लग जाता था दोपहर होते ही! ऐसे ही एक दिन शाम को मै और शर्मा जी अपने स्थान पर बैठे हुए थे, तभी उनके पास एक फ़ोन आया, ये फ़ोन श्रीमती महाजन का था, वे दिल्ली में ही रहा करती थीं और उनका भरापूरा परिवार था, एक लड़का और एक लड़की थे उनके पास, पति उनके कुवैत में नौकरी किया करते थे, उन्होंने कुछ ऐसा बताया कि वो गले नहीं उतरा, कहानी काफी टेढ़ी-मेढ़ी सी थी! आखिर शर्मा जी ने उनको मिलने के लिए बुला लिया, अगले दिन वो अपने बेटे के साथ हमाए पास आ गयीं, नमस्कार आदि से फारिग हुए तो बात आगे चली, उन्होंने बताया कि उनकी बेटी रूचि की एक सहेली है नीलू, नीलू के परिवारवाले राजस्थान के धौलपुर में रहने वाले एक बाबा को गुरु मानते हैं, एक बार वो गुरु जी जब नीलू के घर आये थे तो उनसे रूचि भी मिली थी, तब उन गुरु जी ने रूचि को कुछ बातें बताएँ, बातें काफी परेशान करने वाली और विचित्र थीं!

“क्या बताया उन्होंने?” मैंने पूछा,

“उन्होंने कहा कि रूचि पर एक प्रेत का साया है, करीब छह महीनों से” वे बोलीं.

“क्या? प्रेत का साया?” मुझे हैरत सी हुई,

“हाँ जी” वे बोलीं,

“उनको कैसे लगा कि किसी प्रेत का साया है?” मैंने पूछा,

“उन्होंने कहा कि वो प्रेत उसके साथ रहता है हमेशा” वो बोलीं,

“हमेशा?” मैंने पूछा,

बड़ी अजीब सी बात थी!

“हाँ जी” वे बोलीं,

“चलिए माना, लेकिन उनसे पूछा नहीं, कि ये प्रेत कैसे हटेगा उस से?” मैंने पूछा,

“वे चले गए थे वापिस, फिर रूचि ने ये बात मुझे बताई, मुझे चिंता हुई, डर लगा, मैंने नीलू की मम्मी से बात की, तो उन्होंने उनका नंबर दे दिया मुझे” वे बोलीं,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“अच्छा, आपने बात की?” मैंने पूछा,

“हाँ जी” वो बोलीं,

“क्या बताया उन्होंने?” मैंने पूछा,

“यही कि लड़की चपेट में है, जल्दी ही इलाज करवाओ उसका” वो बोलीं,

“अच्छा! फिर?” मैंने पूछा,

“उन्होंने कहा कि लड़की को लेके धौलपुर आ जाइये” उन्होंने बताया,

“अच्छा, वैसे उम्र क्या है रूचि की?” मैंने पूछा,

“जी बाइस साल” उन्होंने बताया,

“हम्म! अच्छा, तो फिर, ले गए आप?” मैंने पूछा,

“मैंने पहले रूचि के पापा से बातें कीं इस बारे में, वे भी घबरा गए, उन्होंने हाँ कर दी, तब मै ले गयी उसको वहाँ” वे बोलीं,

“अच्छा, फिर?” मैंने पूछा,

“जी उन्होंने कुछ किया उसके ऊपर, कुछ क्रियाएं आदि” वे बोलीं,

“ठीक हो गयी फिर वो?” मैंने पूछा,

“नहीं” उन्होंने बताया,

“नहीं??” मुझे हैरत हुई अब!

“हाँ गुरु जी, नहीं हुई ठीक बल्कि……..” वे थोडा रुआंसी हो गयीं अब,

“बताइये, क्या हुआ?” मैंने पूछा,

“उसके बाद, रूचि रात को जाग जाती है अचानक, फिर कभी रोती है, कभी हंसती है, कभी गुस्सा करती है, कभी गाली-गलौज करने लगती है, अपने भाई को भद्दी-भद्दी गालियाँ देती है” वे सकपकायीं अब ये बताते हुए,

“अच्छा?” मैंने पूछा,

“हाँ गुरु जी” वो बोलीं,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“एक बात बताइये, जब रूचि को वहाँ ले गए थे आप, तब वो कैसी थी?” मैंने पूछा,

“तब ठीक थी” वो बोलीं,

“ह्म्म्म!” मैंने कुछ सोचते हुए कहा,

“एक बात और बताइये, कुछ और बदलाव?” मैंने पूछा,

“हाँ, अब श्रृंगार करती रहती है, दिन में कई बार कपडे बदलती है, बात नहीं करती किसी से भी” वे बोलीं,

“अच्छा! कोई और बात?” मैंने पूछा,

“और तो कुछ नहीं देखा, कमरे में ही रहती है अपने” उन्होंने कहा,

“खाना सही खाती है?” मैंने पूछा,

“हाँ” उन्होंने कहा,

“ये जो गुरु है, इसका नाम क्या है?” मैंने पूछा,

“जी नाम का तो पता नहीं, लेकिन लोग उसको धौलिया बाबा कहते हैं” वे बोलीं,

“क्या उम्र है उसकी?” मैंने पूछा,

“कोई पचास साल का होगा” वे बोलीं,

“अच्छा!” मैंने कहा,

“आपने धौलिया को बताया इसके बारे में, क्या कहा उसने?” मैंने पूछा,

“कह रहे हैं इलाज चल रहा है उसका अभी, कोई दो महीने और चलेगा इलाज, जोर लगाने पर प्रेत भड़क जाएगा” वे बोलीं,

“अच्छा! ठीक है, कोई बात नहीं, मै एक बार देखना चाहूँगा रूचि को” मैंने कहा,

“जी गुरु जी” उन्होंने कहा,

फिर मैंने उनको अगले दिन कह दिया उनके घर आने को! और वे दोनों वहाँ से विदा ले चले गए!


   
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श्रीशः उपदंडक
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वे दोनों माँ-बेटा चले गए, अब शर्मा जी ने मुझे देखा और बोले,”ये क्या चक्कर है गुरु जी?”

“चक्कर तो है शर्मा जी” मैंने हंस के कहा,

“कैसा चक्कर?” उन्होंने पूछा,

“किसी की शराफत का फायदा उठाया जा रहा है” मैंने कहा,

“कौन उठा रहा है? वो मादर** धौलिया?” उन्होंने गुस्से से कहा,

“हाँ! वही गुरु जी” मैंने बताया,

“इसकी माँ की **!” उन्हें गुस्सा आया अब!

“अभी रुक जाइये शर्मा जी!” मैंने समझाया उनको!

“उस बहन** को केवल वो एक लड़की दिखाई दे रही होगी, किसी की बेटी या बहन नहीं?” उनको और गुस्सा आया!

“पहले मुझे जांचने दीजिये, जल्दबाजी से कोई फायदा नहीं” मैंने कहा,

“अरे गुरु जी, जल्दबाजी ना की तो वो कुत्ते का बीज फायदा ना उठा ले उसका?” उन्होंने कहा,

“नहीं! उसको अभी तक कुछ नहीं पता!” मैंने बताया,

“पता मतलब?” उन्होंने पूछा,

“मतलब उसने अभी तक कोई टक्कर नहीं देखी इस मामले में, इसीलिए निश्चिन्त है” मैंने बताया,

“इसकी माँ कैसे ** जाती है, मै बताऊंगा साले हरामज़ादे को” उन्होंने गुस्से से कहा,

“अभी रुक जाइये, कल देखते हैं कि कुत्ते की औलाद ने क्या प्रपंच लड़ाया है!” मैंने कहा,

“ठीक है, कल चलते हैं!” उन्होंने कहा!

उसके बाद हमने अपना महा-भोग और मदिरापान आरम्भ किया! प्रेत-भोग दिया और फिर सो गए!


   
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श्रीशः उपदंडक
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सुबह उठे, दैनिक-कर्मों से फारिग हुए, मैंने थोड़ी पूजा की और फिर जब नौ बजे तो शर्मा जी ने गाड़ी स्टार्ट कर ली, हम गाड़ी में सवार हुए, श्रीमती महाजन को अपने आने की इत्तला दे दी!

करीब एक घंटे में हम पहुँच गए उनके घर!

घर में श्रीमती महाजन और उनका बेटा मिला! नमस्कार आदि हुई! उन्होंने चाय तैयार कर राखी थी, सो सबसे पहले चाय पी हमने, फिर हमने रूचि के बारे में पूछा, तो बताया उन्होंने कि वो सुबह उठ जाती है जल्दी ही, अब कमरे में लेटी है, मैंने रूचि से मिलने की इच्छ ज़ाहिर की तो वो हमे अन्दर ले जाने के लिए तैयार हो गयीं! वो आगे चलीं और हम पीछे!

कमरे में रूचि पेट के बल लेटी थी, श्रीमती महाजन के कहने पैर वो उठ के बैठ गयी, रूचि काफी अच्छी और सुगठित देह वाली लड़की थी, यौवन से पूर्ण, आम्र-मंजरी सी अठखेलियाँ करती देह थी उसकी! चेहरा लालिमा लिए हुए और गौर-वर्ण! इसी पर रीझ गया था वो बाबा धौलिया!

“रूचि?” मैंने कहा,

“जी?” उसने मुझसे बड़े अजीब से लहजे में जवाब दिया!

“कैसी हो?” मैंने पूछा,

“आप कौन हैं?” उसने पूछा, मेरे प्रश्न का उत्तर ही नहीं दिया उसने!

“मै कौन हूँ! इसके बारे में आपकी माता जी बता देंगी” मैंने कहा,

“वो क्यूँ बतायेंगी? आप बताइये? मैंने सवाल किया है आपसे?” उसने आँखें मिला के सवाल दाग़ा!

“मै धौलिया का बाप हूँ!” मैंने कहा,

“ओये! निकल जा यहाँ से अभी?” वो नीचे उतरी पलंग से!

इतने में श्रीमती महाजन ने रूचि को रोका तो वो नहीं रुकी और तेजी से उनसे बोली “हट जा?” और ये बोलते हुए आई मेरे पास!

जैसे ही मेरे पास आई वो ठहर गयी! और फिर तेजी से पीछे हटी! और पलंग पर गिर गयी! दो मिनट गिरे रही और फिर दो बार झटके खा के बैठ गयी!

“मम्मी?” उसने कहा और अपनी माँ का हाथ खींच के नीचे बिठा लिया उनको पलंग पर!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“आप भी बैठिये ना?” अब तमीज से पेश आई वो!

“गुरु जी, ऐसा होता है इसके साथ, सारे इलाज करा लिए, लेकिन मेरी बेटी को ना जाने क्या हो गया है?” वो दुखी होके बोलीं!

“मै जान गया हूँ! अब आप निश्चिन्त रहिये!” मैंने कहा,

“तुम्हे कुछ याद है रूचि?” मैंने पूछा,

“क्या?’ उसने पूछा,

“धौलिया?” मैंने कहा,

“वो धौलपुर वाले बाबा हैं” उसने बताया,

“अच्छा! इलाज कर रहा है तुम्हारा?” मैंने कहा,

“पता नहीं, मै मम्मी के साथ गयी थी वहाँ” उसने कहा,

“क्या आपने इसको बताया है इसके बारे में?” मैंने रूचि की माँ से पूछा,

“नहीं गुरु जी” उन्होंने कहा,

“तुम्हारी सहेली कहाँ है अब?” मैंने रूचि से पूछा,

“कौन?” उसने पूछा,

“नीलू” मैंने बताया,

“अपने घर में होगी” उसने कहा,

“वो गयी थी तुम्हारे साथ?” मैंने पूछा,

“कहाँ?” मैंने पूछा,

“धौलिया के यहाँ?” मैंने पूछा,

“जी उसके मम्मी-पापा गए थे” रूचि के माँ ने बताया!

 

अब मैंने रूचि की माता जी से प्रश्न किया,” एक बात जानना चाहूँगा, ये नीलू के माता-पिता कब से इस बाबा के चक्कर में हैं? मेरा मतलब कब से संपर्क में हैं?”


   
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श्रीशः उपदंडक
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“मैंने जब पूछा तो उन्होंने बताया कि लगभग सात-आठ साल तो हो ही गए हैं” वे बोलीं,

“अच्छा! क्या मेरी नीलू की माता या पिता से बात संभव है?” मैंने पूछा,

“जी मै फ़ोन करके पूछ लेती हूँ” उन्होंने कहा और बाहर चली गयीं,

अब मेरी निगाह रूचि पर जा टिकीं! वो मारे शर्म के नज़र ही नहीं उठा रही थी, तब मैंने उस से प्रश्न किया, मैंने पूछा,” रूचि? तुमको किसने कहा था बाबा धौलिया के पास जाने को?”

“जी नीलू की मम्मी ने” उसने बताया,

बात बड़ी अजीब सी थी!

“तो क्या नीलू की मम्मी ने ही तुम्हारी मम्मी से बात की थी तुमको वहाँ ले जाने की?” मैंने पूछा,

“जी हाँ” उसने कहा,

‘अच्छा, तो जब तुमको वहाँ ले जाया गया तो धौलिया ने क्या बताया?” मैंने पूछा,

“जी उन्होंने मुझे और मम्मी को एक जगह बिठाया और फिर मोर-पंख से झाड़ा किया मुझ पर, मुझे लिटाया और कुछ पढ़ते रहे” वो बोली,

“कितनी बार गयीं तुम उसके पास अभी तक?” मैंने पूछा,

“केवल एक बार ही” उसने कहा,

“क्या तुमको पता है, तुमको क्यूँ ले जाया गया वहाँ?” मैंने पूछा,

“मुझे नीलू की मम्मी ने कहा कि जीवन की सारी परेशानियां समाप्त हो जायेंगी और मेरी पढ़ाई आदि में कोई समस्या नहीं होगी, नीलू के साथ भी बाबा ने ऐसा ही किया था, अब वो ठीक है”

“ठीक है मतलब?” मैंने पूछा,

“मतलब उसकी पढ़ाई अच्छी हो गयी है अब पहले के हिसाब से” उसने बताया,

“तो तुम वहाँ पढ़ाई के विषय में गयी थीं” मैंने कहा,

“हाँ जी” उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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अभी उसने जवाब दिया ही था कि रूचि की माता जी आ गयीं वहाँ, उन्होंने बताया कि नीलू की मम्मी से बात हो गयी है और वो नीलू के साथ यहीं आ रही हैं मिलने के लिए, और वो यहीं पास में ही रहती हैं,

तब मै वहाँ से हटा और उनके ड्राइंग-रूम में आके बैठ गया! रूचि के साथ गड़बड़ अवश्य थी, ये बात या तो नीलू की माता जी जानती थीं या अनभिज्ञ थीं इस से, मै इसी कारण से उनसे मिलना चाहता था!

कोई बीस मिनट गुजरे होंगे कि नीलू और उसकी माता जी वहाँ आ गयीं, नमस्कार आदि के पश्चात नीलू तो चली गयी रूचि के कमरे में और उसकी माता जी बैठ गयीं वहाँ, हमारे साथ!

अब मैंने नीलू की माता जी से प्रश्न किया, “जी मै जानना चाहूँगा कि आपके ये गुरु जी धौलिया कहाँ रहते हैं?”

“जी वो धौलपुर में रहते हैं” वे बोलीं,

“जी, धन्यवाद, एक बात और, जब आपके गुरु जी ने पहली बार रूचि को देखा था तब उन्होंने क्या कहा था?” मैंने पूछा,

“वे देखते ही बोले कि इस लड़की के पीछे कोई प्रेत पड़ा है, और मौका मिलते ही ‘वार’ करेगा” वे बोलीं,

“जी, कैसा ‘वार’?” मैंने जिज्ञासावश पूछा,

“वो उसको बीमार कर सकता है, उसके साथ ‘खिलवाड़’ कर सकता है, पढ़ाई में बाधा डालेगा, इस तरह की बातें” वो बोलीं,

“अच्छा! तो फिर उन्होंने कहा कि रूचि को उनके स्थान पर लाया जाए ताकि उस प्रेत से छुटकारा मिल सके?” मैंने पूछा,

“जी हाँ” उन्होंने कहा,

“अच्छा, आप उनके कहने पर रूचि और उसकी माता जी को लेकर धौलपुर चली गयीं” मैंने कहा,

“जी हाँ, जैसा उन्होंने कहा था” वे बोलीं,

“हम्म! तो फिर वहाँ पहुँच के बाबा जी ने क्या किया?” मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“जी उन्होंने कहा कि वो रात के समय उस पर कुछ क्रिया करेंगे” वे बोलीं,

“तो क्रिया की उन्होंने?” मैंने पूछा,

“जी हाँ” वो बोलीं,

“तो आप उस समय वहाँ मौजूद थीं?” मैंने पूछा,

“जी नहीं, केवल रूचि की मम्मी थीं वहाँ” वो बोलीं,

मेरे लगातार प्रश्न पूछने से कुछ खीझती सी दिखाई दीं अब नीलू की माता जी!

अब मै रूचि की माता जी की ओर घूमा!

“मुझे बतायेंगी आप कि बाबा जी ने क्या किया था?” मैंने प्रश्न किया,

“जी उन्होंने पहले उसको लिटाया, फिर एक चाक़ू उस पर कई बार फिराया, फिर कुछ मंत्र से पढ़े” उन्होंने बताया,

“वहाँ और कौन कौन था आप तीनों के अलावा?” मैंने पूछा,

“और कोई नहीं था वहाँ” वो बोलीं,

“अच्छा फिर?” मैंने बात आगे बढाने के लिए प्रश्न किया,

“जी, फिर उन्होंने उसकी नाभि में चाक़ू की नोंक लगाई और कुछ मंत्र पढ़े, फिर किसी से बातें करने लगे, फिर रूचि को खड़ा किया और एक मिट्टी के बर्तन में से कुछ द्रव्य उसको पिला दिया” वो बोलीं,

“हम्म! फिर?” मैंने पूछा,

“फिर जी उन्होंने मोरपंखी से झाड़ा कर दिया उसका” वे बोलीं,

“और कुछ?” मैंने पूछा,

“हाँ, जाते समय उन्होंने उसके बाल काट लिए थे, कहा कि ये क्रिया में काम आयेंगे” वे बोलीं!

“अच्छा!” मैंने कहा,

“वैसे आप कहाँ से हैं?” नीलू की माँ ने सवाल किया,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“जी मै यहीं दिल्ली से ही हूँ” मैंने उत्तर दिया,

“क्या आप भी तंतर-मंतर करते हैं?” उन्होंने पूछा,

“जी थोडा बहुत” मैंने उत्तर दिया,

“वैसे हमारे बाबा ठीक कर देंगे रूचि को, अभी दो दिन बाद फिर ले जाना है रूचि को वहाँ” वे बोलीं,

“धौलपुर?” मैंने पूछा,

“जी हाँ” वे बोलीं,

‘अच्छा! ठीक है” मैंने कहा!

और मित्रो, कुछ और बातें हुईं वहाँ, एक बात पता चली नीलू के परिवार की अंध-भक्ति थी धौलिया के साथ! इसीलिए मैंने उस बाबा को कुछ भी उल्टा-सीधा नहीं कहा वहाँ!

उसके बाद हम वापिस आ गए वहाँ से! कुछ समझा दिया था मैंने रूचि की माता जी को!

 

हम बाहर आये थे, अपनी गाड़ी में बैठे और चल दिए अपने स्थान की ओर, मैंने जब रूचि को देखा था तो उसमे कोई पहरेदारनी थी, जो मेरे तंत्राभूषण की गंध ले मैदान छोड़ भागी थी! इसका अर्थ था कि धौलिया को अब पता चल गया होगा कि कहीं से टक्कर मिली है उसको, और वो अब या तो नीलू की माँ को संपर्क करेगा अथवा श्रीमती महाजन को!

और फिर ऐसा ही हुआ, हम अभी आधे रास्ते में ही आये थे कि श्रीमती महाजन का फ़ोन आ गया, बताया गया कि धौलिया ने शीघ्रातिशीघ्र रूचि को धौलपुर बुलाया है, कारण ये बताया उसने कि वो प्रेत अब भड़क गया है, और अब उसको ज़बरन निकालना होगा! तब मैंने उनको समझा दिया कि वो उस से कहें कि वो अभी नहीं आ सकते, एक और व्यक्ति आये हैं, वो इलाज कर रहे हैं उनका! उन्होंने ऐसा ही कहा और बात उस समय समाप्त हो गयी!

हम अपने स्थान पर पहुंचे तो श्रीमती महाजन का फ़ोन फिर आया, उन्होंने बताया कि नीलू की माँ लड़ने-झगड़ने आई थी, कह रही थी कि जब इलाज ही नहीं कराना था तो उनके गुरु जी के पास क्या करने गयी थीं वो, और उन्होंने मन करके ना केवल नीलू के परिवार की बल्कि उनके गुरु जी की भी बेईज्जती कर दी है!


   
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श्रीशः उपदंडक
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इसका अर्थ स्पष्ट था! धौलिया का प्रपंच हम जान गए थे! उसने कभी ऐसा सोचा भी ना होगा कि ऐसा भी कभी हो जाएगा! अब वो सब तो ठीक था, परन्तु अब मुझे रूचि की चिंता हुई, क्यूंकि वो कमीन बाबा अब वार कर सकता था तो केवल रूचि पर! अब मैंने क्रिया में बैठने का निश्चय किया! मैंने शर्मा जी से कह के सारी सामग्री माँगा ली और प्रबंध होते ही मैंने और शर्मा जी ने शमशान-भोग देने के पश्चात मदिरापान आरम्भ किया! और तदोपरान्त मै अपने क्रिया-कक्ष में चला गया!

अब मैंने अलख उठायी, अलख भोग दिया और चौमंडल-पूजन आरम्भ किया! अपना त्रिशूल वामावस्था में अपने घुटनों पर रखा! अब मैंने अपना खबीस हाज़िर किया! ये मेरा सबसे काबिल खबीस है! इबु-खबीस!

इबु हाज़िर हुआ अँगड़ाई लेता हुआ! मैंने उसको उसका भोग दिया! उसको उसका उद्देश्य बताया और इबु उड़ चला अपनी मंज़िल की तरफ!

करीब पंद्रह मिनट के बाद इबु वापिस आया! उसने जो बताया वो हैरान कर देने वाला था! उसके अनुसार धौलिया तो केवल एक चेला था! चेला बाबा गाज़ी का!! बाबा गाज़ी एक औघड़ था! रहता वहीँ धौलपुर में परन्तु मिलता किसी से नहीं था! बस, यही जानकारी मिली मुझे! अब हमारा सामना धौलिया से नहीं बाबा गाज़ी से था! मैंने इबु को और भोग दिया और इबु लोप हुआ!

अब मै बाहर आया, स्नानादि से निबट कर मै शर्मा जी के पास पहुंचा! उन्हें इस असलियत से वाकिफ करवाया! उनको भी अब चिंता हुई! उन्होंने कहा, “इसका अर्थ ये हुआ कि ये गाज़ी बाबा भी उस से मिला हुआ है”

“कह नहीं सकते शर्मा जी” मैंने कहा,

“गुरु जी, यदि धौलिया कमीन है तो ये साला गाज़ी महाकमीन है!” उन्होंने कहा,

“ऐसा भी तो हो सकता है, कि गाज़ी को पता ही ना हो?” मैंने कहा,

“हो सकता है ऐसा भी, लेकिन मुझे नहीं लगता” वे बोले,

“तो शर्मा जी, तैयार हो जाइये!” मैंने कहा,

“मै तो तैयार हूँ!” उन्होंने कहा,

“कल देखिये, कल क्या होता है!” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“आपका मतलब रूचि से है?” उन्होंने पूछा,

“हाँ!” मैंने कहा,

“देखते हैं, धौलिया क्या करता है?” वे बोले,

“हाँ, अब कल ही पता चलेगा” मैंने कहा!

फिर हम इस विषय पर बातें करते रहे और फिर निन्द्रालीन हो गए!

सुबह हुई! करीब दस बजे श्रीमती महाजन का फ़ोन आया, उन्होंने बताया कि रूचि अब ठीक हो गयी है ऐसा लगता है! ये खबर थी तो प्रसन्नता वाली, पर इसके पीछे एक खेल चल रहा था! और इसका खिलाड़ी था धौलिया और मोहरा थी रूचि! कुछ देर बात करके शर्मा जी ने फ़ोन काट दिया!

करीब तीन दिन बीत गए! रूचि ठीक थी, व्यवहार सामान्य हो गया था! परन्तु मेरे ह्रदय में कहीं शंका का पौधा धीरे धीरे वृक्ष का रूप ले रहा था!

तीन दिन और सुकून से बीते!

फिर अगली रात करीब दो बजे मेरे पास शर्मा जी का फ़ोन आया, उन्होंने बताया कि रूचि ने घर में आतंक काट दिया है, अनाप-शनाप बक रही है, अपना दरवाज़ा बंद कर रखा है, और अजीब अजीब सी भाषा बोल रही है, वो अभी आ रहे हैं मेरे पास!

जो शंका मेरे ह्रदय में थी, वो अब वृक्ष बन चुकी थी! फल भी आ गए थे उसमे तो अब!

शर्मा जी मेरे पास कोई पौन घंटे में आ गए, मै तैयार हो चुका था और तैयारी भी कर ली थी! मै और शर्मा जी फ़ौरन ही दौड़ पड़े रूचि के घर!

रूचि के घर पहुंचे तो बाहर भी कुछेक पडोसी खड़े मिले, ये तमाशबीन लोग होते हैं, जो दूसरे की व्यथा में आनंद महसूस करते हैं!

हम फ़ौरन ही अन्दर गए! श्रीमती महाजन रोती हुई आयीं हमारे पास! उनका बेटा बे हतप्रभ था! मैंने देर ना की, फ़ौरन ही उसके कमरे की तरफ बढ़ा! जैसे ही उसके कमरे के दरवाज़े पर खड़ा हुआ, शान्ति छा गयी वहाँ!

“रूचि?” मैंने आवाज़ दी!

अन्दर से कोई आवाज़ नहीं आई!


   
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“रूचि?” मैंने फिर से आवाज़ दी,

कोई आवाज़ ना आई और ना ही कोई हरक़त हुई!

मैंने दरवाज़े को छुआ, और जैसे ही छुआ दरवाज़ा खुल गया अपने आप! अन्दर से मानव मल-मूत्र की बदबू आई! मै अन्दर गया, शर्मा जी को अपने हाथ से इशारा करके बाहर ही खड़े रहने दिया, मेरे अन्दर जाते ही वहाँ का दृश्य मैंने देखा! रूचि पूर्णतया नग्न थी, उसके शरीर पर, बालों पर, हाथों पर, विष्ठा लिपटी हुई थी! पलंग, फर्श आदि पर मूत्र बिखरा हुआ था! उसने मुझे घूर के देखा और फिर खड़ी हो गयी!

“रूचि?’ मैंने आवाज़ दी उसको,

उसने आँखें फाड़ के घूरा मुझे!

“रूचि?” मैंने गुस्से से कहा,

उसने अपने चेहरे पर आये बाल अपने हाथों से साफ़ किये और फिर जोर जोर से हंसने लगी!

“कौन है तू?” मैंने पूछा,

अब वो नीचे झुकी, और ऐसी मुद्रा में हो गयी जैसे कोई बालक घुटने चलता है, वो धीरे धीरे ऐसे चलती हुई मेरी तरफ आई, रुकी और बालक की तरह से रोने लग गयी!

 

वो मेरे सामने घुटनों के बल बैठ गयी और बाल-क्रंदन करने लगी! मै जान तो गया था कि ये कौन है परन्तु बिना पूर्ण-संज्ञान लिए प्रतिवार करना अनुचित था अतः मैंने फिर से प्रश्न दोहराया, “कौन है तू?”

उसने ऐसे भाव बनाए जैसे मेरा प्रश्न सुना ही ना हो! इस से पहले कि मै उस से और प्रश्न करता उसने खड़े हो कर मूत्र-त्याग कर दिया! सच कहता हूँ मित्रो, यदि उस समय वहाँ कोई साधारण व्यक्ति होता तो बदबू के मारे पछाड़ खा जाता, परन्तु मुझे इसका अनुभव है, उसने मूत्र-त्याग किया और फिर से नीचे झुक गयी, वो अपने हाथों को फर्श में पड़े मूत्र में छपका रही थी, दोनों हाथों को! फिर अपने हाथों को अपने सर के बालों में पोंछ लेती थी!

“कौन है हरामज़ादी तू?” मैंने अब क्रोध से पूछा,

उसने फिर से ठहाका लगाया!

“नहीं बताएगी?” मैंने धमकाया उसे,


   
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उसने गर्दन हिला के मना कर दिया!

“ठीक है, अब देख तू!” मैंने कहा,

उसने मेरी बात सुनकर सीधा पलंग पर छलांग लगाई! और आलती-पालती मार्के बैठ गयी! अब मैंने शर्मा जी को अन्दर बुला लिया! उन्होंने अन्दर आते ही जैसे ही दृश्य देखा, मुंह में थूक भर आया, वो सीधा भागे बाहर और थूक कर आये फिर मेरे पास!

“क्या हाल कर दिया इसका उस हरामज़ादे ने” उन्होंने कहा,

“किसने किया, इसका अभी पता नहीं” मैंने बताया,

वहाँ बिस्तर पर बैठी रूचि हंस रही थी! ऐसे जैसे शराब पी कर मस्त हो गयी हो! कोई ख़याल नहीं बस मदोन्माद!

अब मैंने उस के ऊपर एक मंत्र-प्रहार किया और थूक दिया! उसको जैसे किसी ने जोर की लात मारी हो, वो अपनी छाती दबाये पीछे लेट गयी और फिर गुस्से में खड़ी हो गयी! और बोली, “जान प्यारी है तो निकल जा यहाँ से”

अब मै हंसा! ठहाका लगाया!

“तू मारेगी मुझे?” मैंने हँसते हुए कहा!

“सुना नहीं?” उसने कहा,

“नहीं सुना, दुबारा बोल” मैंने कहा और फिर से ठहाका लगाया!

“सलामती चाहता है तो भाग जा यहाँ से” उसने कहा,

“सुन हो हरामज़ादी! तुझे अगर भस्म ना होना हो तो अभी निकल जा यहाँ से” मैंने भी गुस्से से कहा उसको!

अब वो हंसी और बोली, “तू मुझे नहीं पहचान रहा है?”

“पहचान गया हूँ तुझे मै रंडी!” मैंने कहा,

“पहचान गया तो भाग जा, जा छोड़ दिया तुझको” सुने फिर हंसके कहा,

“भागूँगा मै नहीं, कुतिया! तू भागेगी!” मैंने कहा!

“तू भगाएगा मुझे?” उसने गुस्से से कहा,


   
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“हाँ! मै!” मैंने कहा!

“अच्छा! खेलना चाहता है तू मुझसे!” उसने कहा,

“तू खेलेगी ही नहीं बल्कि नाचेगी भी अभी!” मैंने कहा,

और फिर मैंने अपनी जेब से एक पोटली निकाली, उसको खोल और अभिमंत्रित भस्म अपने हाथ में डाल ली निकाल कर! और फिर से उसको एक और मंत्र से अभिमंत्रित कर दिया! और मैंने पास जाकर फेंक दी भस्म रूचि के ऊपर! वो ऐसे चिल्लाई जैसे उसपर तेल छिड़क कर आग लगा दी हो! वो बिस्तर पर गिरी, कभी इधर करवट ले, कभी उधर!

“अब बता हरामज़ादी?” मैंने कहा,

“चला जा! चला जा!” उसने तड़पते हुए कहा!

“मैंने कहा था, जाऊँगा मै नहीं, तू जायेगी!” मैंने कहा,

“खून पी जाउंगी तेरा!” मरीमरी आवाज़ से कहा उसने!

”अच्छा! खून पीयेगी तू! पिलाता हूँ खून तुझे, रुक जा!” मैंने कहा,

मैंने फिर से भस्म निकाली और उसको अभिमंत्रित कर फिर से बिखेर दिया उस पर! अब वो तडपी! अपना सर मारे बार बार बिस्तर पर और ऐसे चिल्लाये जैसे कोई बकरा जिबह होने से पहले डरता है!

“क्या हुआ? निकल गयी हेकड़ी?” मैंने पूछा,

वो लम्बी लम्बी साँसें ले रही थी जैसे उसकी जान कभी भी निकल सकती है! मंत्र-प्रहार ने अशक्त कर दिया था उसको!

“अब बता? कौन है तू?” मैंने पूछा,

“मै………………मै…………..” उसने कहा और कम से कम बीस-पच्चीस बार ऐसा ही कहा उसने!

“मुंह खोल हरामज़ादी?” मैंने कहा,

“मत जला मत जला!” अब बोली वो!

“देख, अब अगर भस्म नहीं होना चाहती तो फ़ौरन भाग जा यहाँ से!” मैंने कहा,


   
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