वर्ष २०१० हस्तिनापु...
 
Notifications
Clear all

वर्ष २०१० हस्तिनापुर की एक घटना

87 Posts
1 Users
0 Likes
1,199 Views
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

"क्यों?" उसने पूछा,

"अभी मेरा समय नहीं आया" मैंने कहा,

"मैं नहीं समझी" उसने कहा,

"अभी मेरे लायक कुछ नहीं यहाँ करने को" मैंने कहा,

"क्या करते हैं आप?" उसने कटाक्ष सा मारा ये कहते हुए!

"कुछ नहीं" मैंने कहा,

"बताइये तो सही?" उसने पूछा,

"ये आप बाबा से पूछ लेना" मैंने कहा,

"आप नहीं बता सकते?" उसने पूछा,

"बता सकता हूँ" मैंने कहा,

"तो बताइये?" उसने अब अपनी ठुड्डी के नीचे हाथ रखते हुए पूछा,

"बता दूंगा, आने दो वक़्त" मैंने कहा,

"चलो, ऐसा ही सही" उसने हँसते हुए कहा,

दम्भ की हंसी!

मैं पहचान गया!

"शाम हो चुकी है, प्रसाद ग्रहण नहीं करेंगे?" उसने पूछा,

"करूँगा" मैंने कहा,

"कब?" उसने पूछा,

"बस एक डेढ़ घंटे में" मैंने कहा,

"यहाँ आ जाना आप" वो बोली,

"आ जाऊँगा" मैंने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

"सुनो, मैं यहाँ सब जान चुकी हूँ, यहाँ बहुत शक्तियां हैं, जो विचरण कर रही हैं, उसी का खेल है ये सब, मैं जान चुकी हूँ" उसने कहा,

"हाँ, बाबा ने बताया मुझे" मैंने कहा,

"हाँ, अब आप समझ गए" उसने कहा,

"हाँ, बहुत कुछ समझ गया हूँ अब!" मैंने कहा,

अब खिलखिला के हंसी वो!

पूरी अल्हड़ थी!

बस देह से ही व्यस्क हुई थी, मस्तिष्क से नहीं!

ऐसा मुझे लगा!

"कब सीखा ये काम?" मैंने पूछा,

"जब मैं उन्नीस की थी" उसने कहा,

"इतनी जल्दी?" मैंने पूछा,

"हाँ, बाबा और पिता जी ने सिखाया" वो बोली,

"बढ़िया!" मैंने कहा,

"और आप बताइये, कहाँ रहते हैं आप?" उसने पूछा,

"दिल्ली में" मैंने कहा,

''अच्छा!" वो बोली,

"धन से अपना स्थान बनाओगी आप?" मैंने पूछा,

"हाँ" उसने उत्तर दिया,

"कहाँ?" मैंने पूछा,

"बागडोरा में ही" उसने कहा,

''वो तो आपको वैसे ही मिल जाएगा, बाबा जो हैं वहाँ?" मैंने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

"नहीं, मुझे बहुत आगे जाना है" वो बोली,

"अच्छी बात है" मैंने कहा,

बहुत तेज भाग रही थी वो!

कुछ अधिक ही तेज!

"अब मैं चलता हूँ" मैंने कहा,

"ठीक है, आइये इधर, प्रसाद ग्रहण करने" उसने कहा,

"हाँ, आ जाऊँगा" मैंने कहा,

और मैं बाहर आ गया!

मेरी तो समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है वहाँ! क्या पक रहा है अंदर ही अंदर!

शर्मा जी बाहर ही खड़े थे, मैं उनके पास आया,

"क्या बात हुई?" उन्होंने पूछा,

"प्रसाद ग्रहण करना है रात को, बुलावा भेजा है!' मैंने हंस के कहा,

"अच्छा! न्यौता ले कर आये हो!" वे बोले,

"हाँ!" मैंने कहा,

"चलो, जब संग बैठेंगे तो कहानी कहीं तो खुलेगी!" वे बोले,

"इसीलिए मैंने हाँ कहा!" मैंने कहा,

और फिर हम दोनों वहाँ से टहलने के लिए चल दिए!

 

हम टहल कर वापिस आये, ये स्थान बहुत खूबसूरत था, दूर दूर तक फैले खेत-खलिहान और प्रकृति का मूक-गान! बहुत सुंदर! प्राकृतिक सौंदर्य का कोई सानी नहीं! ऐसा ही कुछ था यहाँ, गाँव भी काफी पुराना लगता था, एकदम ठेठ गाँव! जो अबतक अपना अस्तित्व बचाने में क़ायम रहा था! पुरानी इमारतें और पुराने उम्रदराज़ पेड़! बहुत लुभावनी जगह थी वो! और अनजान व्यक्तियों के मुंह से नमस्कार सुनना और उनको नमस्कार कहना कुछ ऐसा था कि सच में ही असल भारतीय संस्कृति से साबका पड़ा था! हम टहलते हुए वहाँ से वापिस हुए, सोहन


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

साहब के घर पहुंचे, घर का भूगोल कुछ ऐसा था कि उनके घर के पीछे से ही उनके खेत आरम्भ हो जाते थे, दूर दूर तक फैले खेत और उनके मध्य बना उनका घर, कुछ और भी बने थे वैसे घर वहाँ लेकिन वे थोड़ी दूरी पर बने थे! और जहां ये गड्ढा था, जहां ये खुदाई की गयी थी ये उनके मकान के बाएं हिस्से में था! इसके पीछे उनका छप्पर से बना एक कोठरा सा था जिसमे पशुओं के लिए चारा और खेती का अन्य सामान रखा जाता था!

खैर,

मैं अपने कमरे में गया, और वहाँ से अपनी मदिरा की बोतल निकाल लाया, फिर मैं और शर्मा जी चले तारा के कक्ष की ओर! उसने बुलाया था सो जाना ही था, मैं वहाँ पहुंचा, कक्ष खुला था, हमे देखते ही उसने हमे अंदर आने को कहा दिया, हम अंदर गए और अपनी अपनी कुर्सी सम्भाली, और बैठ गए, वहाँ तो पूरी तैयारी हो रखी थी! उस बाबा भूरा ने लगभग सारा इंतज़ाम करवा लिया था, सलाद भी थी वहाँ, दही भी और 'प्रसाद' भी! मैंने अपनी बोतल वहीँ एक चारपाई के सिरहाने रखी तो तारा ने देखा, उसने बोतल उठायी और उसको देखा! और बोली, "आप को मैंने बुलाया था, आप मेहमान ठहरे हमारे, इसकी क्या आवश्यकता थी?"

"ऐसी तो कोई बात नहीं!" मैंने कहा,

"सबकुछ है यहाँ" उसने कहा,

और मुझे दरी उघाड़ते हुए उसने दो बोतलें दिखा दीं!

"कोई बात नहीं तारा, ये भी लग ही जायेगी!" मैंने कहा,

मैंने ये जो कहा कि लग ही जायेगी, वो खिलखिला के हंसी!

''अच्छा, ये बताइये आप मुझे, कि कभी बागडोरा आये हैं?" उसने पूछा,

"हाँ, कई बार" मैंने कहा,

"लेकिन कभी देखा नहीं आपको वहाँ?" उसने कहा,

"नहीं देखा होगा, मैं पिछले वर्ष भी आया था वहाँ, तीन दिन ठहरा था वहाँ" मैंने कहा,

"कब पिछले वर्ष?" उसने पूछा,

"कोई जुलाई की बात होगी" मैंने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

"अच्छा, तब तो वहाँ बरसात का सा मौसम रहता है, बहुत कम ही बाहर आना जाना हो पाता है" वो बोली,

"हाँ, ऐसा हो सकता है" मैंने कहा,

अब उसने बाबा भूरा को कहा कि मदिरा परोसे, और ये सुनते ही किसी चाकर की तरह वो मदिरा परोसने लग गया! हमने अपना अपना गिलास उठाया, मैंने खीरे का एक टुकड़ा लिया और खाया और फिर गिलास खाली कर दिया, वहीँ रख दिया!

तारा ने देखा और मुस्कुरायी!

बाबा भूरा भी देखता रह गया!

उसने तब 'प्रसाद' का कटोरा मेरी तरफ बढ़ाया, मैंने चम्म्च से उसमे से लिया और खा लिया!

"तारा, आपने बताया था कि आज आप एक क्रिया करने वाली हो?" मैंने पूछा,

"हाँ" उसने कहा,

"कौन सी क्रिया?" मैंने पूछा,

"कौंडल-क्रिया" उसने कहा,

''अच्छा!" मैंने कहा,

कौंडल-क्रिया मायने गहरी देख की क्रिया!

"तारा, एक बात और पूछूं?" मैंने पूछा,

"हाँ, पूछिए?" उसने खा,

"यदि यहाँ धन न निकला तो?" मैंने पूछा,

अब जैसे मैंने सोते सांप को जगा दिया!

उसने मुझे आँखें चौड़ी करके देखा!

और फिर अपना गिलास एक ही झटके में उठा के खाली कर दिया!

"आप कैसे कह सकते हैं ऐसा?" उसने पूछा,

"मुझे यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं लग रहा" मैंने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

"आप क्रिया में बैठो, पता चल जाएगा" उसने कहा,

'नहीं, मैं अभी क्रिया में नहीं बैठूंगा" मैंने कहा,

"तो ऐसा नहीं बोलिये" उसने कहा,

कहा या डांटा! शायद डांटा! ऐसा ही भाव था!

"जब धन निकलेगा, तब आप स्वयं देख लेना!" वो बोली!

कितनी अडिग थी वो इस विचार पर!

अब पता नहीं क्या होना था वहाँ!

भूरा ने दूसरा गिलास बनाया,

सबके सामने सबके गिलास रखे!

"और भाई भूरा? तुम कहाँ से हो?" मैंने पूछा,

"कोलकाता से" वो बोला,

"अच्छा! तो बागडोरा कैसे पहुँच गए?" मैंने पूछा,

''अब वहीँ रहता हूँ" वो बोला,

"अच्छा, तो तारा लायी हैं आपको वहाँ से!" मैंने कहा,

"हाँ, मैं इनके साथ ही आया" वो बोला,

अब मैंने अपना गिलास उठाया और खींच गया!

उस से बात करना वक़्त को ज़ाया करना ही था, सो मैं अब सीधे ही तारा से बात करने लगा!

"तारा? पहले कभी कहीं धन निकाला है?" मैंने पूछा,

"नहीं" उसने साफ़ कहा!

"तो ये पहला अवसर है" मैंने कहा,

"हाँ" उसने कहा,

और अब उसने भी अपना गिलास खाली किया! अभ्यस्त थी वो!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

"आपने निकाला है कहीं?" उसने पूछा,

"हाँ" मैंने कहा,

और ये बोलकर जैसे मैंने कोई धमाका कर दिया!

"कितना?" उसने पूछा,

भूरा भी ऐसे देखने लगा जैसे कोई कुत्ता कान खड़े करके आपको खाते हुए देखता है! उसने पहले मुझे देखा और फिर शर्मा जी को!

"कहाँ निकाला धन आपने?" तारा ने पूछा,

"कई स्थानों पर निकला, लेकिन वो मेरा नहीं था, उसके बाद मैं कुछ करने लायक नहीं बचता सो छोड़ दिया वहीँ के वहीँ!" मैंने कहा,

"मैं मान ही नहीं सकती!" उसने कहा,

"न मानिये!" मैंने कहा,

"हाँ, मैं नहीं मानती" उसने हँसते हुए कहा,

अब एक और गिलास!

वो भी खाली किया!

"न मानिये तारा!" मैंने कहा,

"अच्छा, एक बात बताइये?" उसने पूछा,

"पूछिए?" मैंने कहा,

"वो धन किस स्वरुप में था?" उसने पूछा,

"कई जगह स्वर्ण था कई जगह रजत" मैंने कहा,

'और आप छोड़ आये?" उसने पूछा,

"हाँ" मैंने कहा,

"क्यों?" उसने पूछा,

"बताया न, मेरा नहीं था!" मैंने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

"तब तो आपने बड़ी भूल की!" उसने कहा,

भूल! भूल तो वो स्वयं करने जा रही थी! मैं क्या उत्तर देता!

 

फिर भी! फिर भी! मैंने जानना चाहा कि उसकी नज़र में दरअसल भूल है क्या? सो मैंने पूछा, "भूल? कैसी भूल तारा?"

"आपको वो धन रख लेना चाहिए था" उसने कहा,

"किसलिए?" मैंने पूछा,

"एक बात बताइये, आपके पास आपका स्थान है?" उसने पूछा,

"हाँ है तो" मैंने कहा,

"आपका अपना?" उसने पूछा,

"नहीं, साझा है" मैंने कहा,

"नहीं चाहा कभी कि अपना ही हो?" उसने पूछा,

"जब भाग्य में होगा, अपना भी हो जाएगा" मैंने कहा,

"भाग्य को तो आपने लात मार दी!" उसने मेरे कंधे पर हाथ मारते हुए, जैसे मेरा मजाक उड़ाया हो, ऐसे लहजे में कहा!

मैं मुस्कुराया!

मुस्कुराया उसकी अनभिज्ञता पर! एक तरफ उस पर तरस भी आया, कहीं ऐसा न हो कि जिस यात्रा को उसने अभी शुरू ही किया है, कहीं पहले ही उस पर विराम न लग जाए!

"बताइये? नहीं मारी लात?" उसने पूछा,

"आपके अनुसार हाँ, और मेरे अनुसार नहीं!" मैंने कहा,

"मेरे अनुसार तो आपने भाग्य को लात मारी ही है!" वो बोली,

अब भूरा ने अपनी दाढ़ी में हाथ मारते हुए प्रसाद ग्रहण किया और फिर चौथा गिलास भी भर दिया, एक बोतल ठिकाने लग गयी! हमने सभी ने वो गिलास भी खाली कर दिया! अब माहौल गरमाने लगा था! मदिरा ने करवटें लेनी शुरू कर दी थीं!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

"जैसा आप कहें" मैंने कहा,

तभी तारा का फ़ोन बजा, उसने फ़ोन उठाया और किसी से बात करनी शुरू की, कुछ देर, फिर फ़ोन काट दिया, और भूरा से कुछ बातें करने लगी, ये उनकी अपनी ही बातें थीं, मुझे समझ नहीं आया कुछ भी!

"तो आप अपना स्थान बनाएंगी?" मैंने पूछा,

"निःसंदेह!" उसने कहा,

"क्या मैं आ सकता हूँ वहाँ?" मैंने पूछा,

"क्यों नहीं!" उसने कहा,

"अवश्य ही आउंगा मैं फिर तो!" मैंने कहा,

और अब दूसरी बोतल भी खुल गयी!

उसमे से भी एक एक गिलास और भर दिया गया, उसको भी पूरा सम्मान देते हुए गले से नीचे उतार लिया!

"तारा? कुछ व्यक्तिगत बात पूछ सकता हूँ?" मैंने पूछा,

"हाँ पूछिए?" उसने कहा,

"तुम भी कहाँ फंसी हो, कहीं विवाह करतीं और आराम से गुजर करतीं!" मैंने कहा,

उसने मुझे घूरा! जैसे मैंने उसका अपमान कर दिया हो! लेकिन मेरा ऐसा कोई मंतव्य नहीं था!

"इसका उत्तर नहीं दे सकती मैं" उसने कहा,

"कोई बात नहीं" मैंने कहा,

तभी सोहन जी आ गए वहाँ, कुछ और प्रसाद ले आये थे, सो वो रखा और जाने लगे, अब तक मदिरा सोकर उठ चुकी थी, अब यौवन आने को ही था उस पर! मैंने सोहन जी को बिठा लिया वहीं!

"अरे भूरा? एक गिलास और बबना भाई, सोहन जी के लिए!" मैंने कहा,

भूरा ने मुझे खिसिया के देखा!

और फिर गिलास बना दिया उनका, सोहन जी ने भी हमारी महफ़िल में शिरक़त कर दी थी!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

"सोहन जी, अब तो दिन फिरने वाले हैं आपके!" मैंने कहा,

"कैसे गुरु जी?" उन्होंने पूछा,

"तारा जी यहाँ से अकूत धन निकालने वाली हैं, अब लड्डू फूटेगा तो चूरा तो मिलेगा ही!" मैंने कहा,

वो झेंपे!

"क्यों तारा जी?" मैंने पूछा,

वो खिसिया गयी ऐसा सुनकर!

"बताइये न?" मैंने पूछा,

"हाँ हाँ! सोहन जी को पूरा पूरा भाग मिलेगा!" वो बोली,

"लो सोहन जी! आप हो गए करोड़पति!" मैंने कहा,

"आपका और इनका आशीर्वाद है जी ये तो!" वे बोले,

लेकिन तारा समझ गयी थी कि मैं क्या कह रहा हूँ! वो समझदार थी! जानती तो सबकुछ थी लेकिन अपनी अल्हड़ता में ये नहीं भांप पा रही थी बहती हवा शीतल है या लू की हवा! उसकी अल्हड़ता ही उसके आड़े आने वाली थी! मैंने तो चेता दिया था, आगे वो जाने!

"भूरा एक गिलास और बना सोहन जी के लिए!" मैंने कहा,

उसने गिलास बनाया, और सोहन जी ने लिया!

फिर मैंने भी प्रसाद चखा और अपना गिलास खाली कर दिया!

तारा का गिलास वहीँ रखा था, भरा हुआ!

"कैसे पीछे रह गयीं आप?" मैंने पूछा,

"कैसे?" उसने चौंक के पूछा,

"आपका गिलास!" मैंने कहा,

"ओह!" उसने देखा और गिलास खाली कर दिया!

फिर प्रसाद ग्रहण किया!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

"तारा? कितने बजे है क्रिया?" मैंने पूछा,

"रात्रि साढ़े बारह" उसने बताया,

"अच्छा!" मैंने कहा,

"हाँ, आप बैठेंगे?" उसने फिर से पूछा,

"नहीं तारा!" मैंने कहा,

"आपने तो ज़िद ही पकड़ ली है!" वो बोली,

"कह सकती हैं आप!" मैंने कहा,

'आज रात पक्का हो जाएगा कि आगे क्या करना है यहाँ!" उसने कहा,

"अच्छा!" मैंने कहा,

"हाँ, और आज ही यही करना है, यही शेष है!" उसने दोनों हाथ उठाकर कहा!

बड़ा ही अजीब सा भाव था उसके चेहरे पर! दम्भ का तो नहीं, फिर भी कहीं न कहीं दम्भ का ही सा भाव था!

"चलो अच्छा है तारा!" मैंने कहा,

"और आपको सुबह पता चल जाएगा कि तारा है कौन!" उसने कहा,

ये कौन बोला? तारा? या मदिरा? या फिर दम्भ?

अब शर्मा जी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, मैं समझ गया कि अब यहाँ से उठने का वक़्त हो गया है!

"अच्छा तारा! अब हम चलते हैं!" मैंने कहा और उठ गया!

उसने मुझे इशारे से बैठने को कहा तो मैं बैठ गया!

उसने मुझे मेरी मदिरा की बोतल वापिस कर दी, मैंने ली और नमस्कार करते हुए बाहर आ गया!

अपने कक्ष में आया!

"क्या है ये साध्वी? मुझे तो नहीं लगता पढ़ी हुई है ये कोई भी पढ़ाई?" शर्मा जी बोले!

"अभी कच्ची पढ़ाई है!" मैंने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

''दांव खेल है बाबा खेमचंद ने! अँधा दांव!" वे बोले,

"हाँ, इसमें कोई शक़ नहीं!" मैंने कहा,

अब सोहन जी आये वहाँ, साथ में प्रसाद आदि भी ले आये थे, बैठ गए, तो वो बोतल भी खुल के धन्य हो गयी!

और हम खाते-पीते रहे! और फिर कोई ग्यारह बजे, चादर तान हम सो गए!

 

सुबह उठे! जल्दी ही उठ गए थे, शायद पांच बजे थे, मैं तभी स्नान आदि करने गया और नित्य-कर्मों से फारिग हुआ! फिर शर्मा जी को जगाया, वे जागे और वे भी स्नानादि से निवृत होने चले गए! वे भी वापिस आये, तब तक मोहन जी वहाँ आ चुके थे, गरम-गरम दूध लाये थे, सो दूध पिया! मैंने सोहन जी के बारे में पूछा तो वे बोले कि वो किसी के पास गए हैं वहीँ, पास में, आते ही होंगे!

तभी मुझे ध्यान आया तारा का, उसने क्रिया की होगी रात को, क्या रहा? पता नहीं चल सका था अभी तक, और उसको जगाना भी अभी सही नहीं था, सो अपने कमरे में ही बैठ कर उसे जागने का इंतज़ार करने लगे! मेरा काम वहाँ क्या था, ये मैं समझ गया था, लेकिन अभी मेरे लायक वहाँ कुछ नहीं था, अब तारा ही कुछ बताये तो बताये! इंतज़ार किया, और क्या करते! कुछ बातें हुईं मेरे और शर्मा जी के बीच और तभी सोहन भी आ गए वहाँ, उन्होंने अब चाय के बारे में पूछा, सो चाय के लिए हाँ कर दी, वे गए और थोड़ी देर बाद चाय ले आये, साथ में मिठाई भी थी, थोड़ी सी मिठाई खायी और चाय पी! फिर मैंने उनसे पूछा, "रात को क्रिया की थी तारा ने?"

"हाँ जी" वे बोले,

"कितने बजे?" मैंने पूछा,

"कोई बारह बजे होंगे" वे बोले,

"आप जागे थे तब?" मैंने पूछा,

"हाँ जी, उन्होंने ही मुझे भेजा था सोने के लिए" वे बोले,

इसका अर्थ हुआ कि क्रिया हुई थी!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

इसके बाद सोहन जी उठ गए वहाँ से और अपनी दैनिक-कर्म के लिए चल पड़े! रह गए हम सो हमने वहाँ पड़ी कुछ पुरानी पत्रिकाएं पढ़नी शुरू कर दीं, कुछ पुरानी निरोगधाम आदि किताबें थीं, वे ही पढ़ डालीं!

किसी तरह से दस बजे!

अब हम चले बाहर!

तारा का कक्ष खुला था, और वो बाबा भूरा अपने कपडे सुखा रहा था एक बंधी हुई रस्सी पर, हम वहाँ आये तो उसने नमस्कार की, मैंने उस से पूछा कि क्या तारा उठ गयी है? तो उसने बताया कि हाँ वो उठ गई है, अब मैं तेज क़दमों से वहीँ चल पड़ा! दरवाज़ा खुला था, वो अंदर केश बना रही थी अपने, हमे देखा तो उसने अंदर बुला लिया, शर्मा जी बाहर ही रह गए! वे अंदर नहीं आये!

नमस्कार हुई!

मैं बैठा वहाँ!

वो भी अब केश बाँध कर बैठ गयी! आज चुस्त-दुरुस्त नहीं थी, आज चेहरा उतरा हुआ था, कुछ गड़बड़ थी, ऐसा लग रहा था!

"क्रिया संपन्न हो गयी?" मैंने पूछा,

"हाँ, हो गयी" उसने जम्हाई लेते हुए कहा!

"थकी हुई हो?" मैंने पूछा,

"नहीं तो" उसने कहा,

"क्या रहा क्रिया में?" मैंने पूछा,

"कुछ पता चला है" उसने कहा,

'क्या?" अब मैं भी उत्सुक हुआ!

"यहाँ डोरा है!" उसने कहा,

"डोरा? किसका डोरा?" मैंने पूछा,

"काम मुश्किल है बहुत" वो बोली,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

"डोरा कौन सा है?" मैंने पूछा,

"क्षेत्रपाल का" उसने मुझे घूरते हुए कहा!

"मणिभद्र क्षेत्रपाल का?" मैंने पूछा,

"हाँ!" उसने कहा,

अब ये बहुत, बहुत बड़ी मुसीबत थी! कौन भेदे उस डोरे को?

"अब?" मैंने पूछा,

"भेदना तो पड़ेगा ही" उसने कहा,

अब वो मुझे नितांत मूर्ख लगी! नितांत! धन के लिए प्राण का दांव? जानते हुए भी कि क्षेत्रपाल का डोरा भेदना इतना सरल कार्य नहीं!

"अभी तुमने कहा, काम मुश्किल है" मैंने कहा,

"हाँ, लेकिन असम्भव नहीं!" उसने मुस्कुरा के कहा,

मान गया! मैं मान गया उसको!

मैं होता तो यहीं से वापिस चला जाता! प्रणाम कह कर!

"जानती हो क्या कह रही हो?" मैंने कहा,

"हाँ, जानती हूँ!" उसने कहा,

कोरा झूठ! या कोरी अनभिज्ञता!

"बहुत खतरा है!" मैंने कहा,

"पता है" उसने कहा,

"कर सकोगी?" मैंने जांचा!

"हाँ!" उसने कहा,

"कभी अष्ट-वीर साधे हैं?" मैंने पूछा,

अब वो चुप!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 2 years ago
Posts: 9491
Topic starter  

मैं कैसे जानूं अष्ट-वीर!

"आपने साधे हैं?" उसने मुझसे ही पूछा!

"हाँ! इसीलिए कहा बहुत खतरा है!" मैंने कहा,

"हम अष्ट-वीर ही साधेंगे यहाँ!" उसने कहा,

"कौन हम?" मैंने पूछा,

"आप और मैं?" उसने कहा,

अब मैंने साफ़ साफ़ मना कर दिया!

उसने जैसे मेरा जवाब सुनकर निबौरी चखी!

"आप यहाँ मदद के लिए आये हैं, हैं न?" उसने पूछा,

"हाँ, इस मदद के लिए नहीं!" मैंने कहा,

"तो भाग रहे हैं?" उसने कटाक्ष मारा!

"हाँ, मैं चला जाऊँगा वापिस" मैंने कहा,

अब वो हंसी! खिसियानी हंसी!

"जाइये, जाइये आप!" उसने कहा,

मुझे बुरा तो लगा! लेकिन न जाने क्यों मैं चुप हो गया!

"मैं चला जाऊँगा आज ही!" मैंने कहा,

और मैं उठ खड़ा हुआ!

उसने मेरा हाथ पकड़ कर नीचे बिठा लिया!

मैं बैठ गया!

"मेरा नाम तारा है, मैंने धूम्रचक्रिका सिद्ध की है, फिर ये डोरा क्या करेगा?" उसने पूछा,

"माफ़ करना! आप अभी क्षेत्रपाल सी चाल से अनभिज्ञ हैं, लगता है!" मैंने कहा,

"वीर ही तो है?" उसने कहा,


   
ReplyQuote
Page 2 / 6
Share:
error: Content is protected !!
Scroll to Top