साथ टूट पड़े! वो बिना अपने पाँव चलाये ही पीछे हो गया कोई ५ फीट! फिर हंसा! बहुत तेज! उसने अपनी तलवार निकाली! और उसको म्यान से बाहर किया! तलवार अभी भी रक्तरंजित थी! मैंने भी शर्मा जी से अपनी तलवार निकाली और उसको म्यान से बाहर निकाला! चमचमाती हुईदुधारी तलवार अलखपुंज में दैदीप्यमान ही गयी! कराल ने ऐसा सोचा भी ना था! कराल ने अपनी तलवार से जामें पर ११ आड़ी रेखाएं खींची और फिर उनको तिरछी रेखायों से काटने लगा! मैं अचंभित हुआ!
वो मेरे महा-भंजन मंत्ररेखा को काट रहा था! मैंने खंजर लिए और अपनी जिव्हा को भेदा, और रक्त के छींटे अलख में डाले! और फिर मैं एक महा-मंत्र पढ़ा! और पढ़करएक अस्थि का टुकड़े अलख की भस्मसे छुआ करकराल पर फेंक दिया! कराल के ऊपर गिरते ही अग्नि प्रज्वलित हो गयी! उसके सहायक मैदान छोड़ते हुए भागे!
कराल ने फ़ौरन शैल-मंत्र का जाप किया और अग्नि बिझा दी! और एक और अट्टहास किया! उसने अपने छोले के जेब में से हड्डियों का चूरा निकाला! उनको अभिमंत्रित किया और मुंह में डाल लिया! उसके बाद उसने उसको निकाला और हमारे ऊपर फेंक दिया! मैंने फ़ौरन अपना त्रिशूल उठाया और आगे कर दिया! आग के शोले भड़क उठे! उसका मारण निष्फल हो गया! कराल ये देख कर हैरान हो गया!
अब वार करने की मेरी बारी थी! मैंने एक मुर्गे का सर लिया, उसका आधा काट कर चबाया, फिर बाहर निकाला, अभिमंत्रित किया और खड़े हो कर कराल पर फेंका! चांदनी से प्रकट हुई! कराल वहाँ से भागा और अपने केश आगे करके उसने अपनी
तलवार से एक प्रहार किया! चांदनी रौशनी समाप्त हो गयी! उसके इससे मुझे पता लग गया उसकी शक्ति का रहस्य!
कराल वहाँ नीचे बैठ गया! उसके सेवक और उमेद वहाँ आ गए उसके पास! कराल कहता, "सुन भगत! यहाँ क्या लेने आया है? माल? वो मै तुझको दे देता हूँ!"
उसने ज़मीन पर अपनी तलवार घुसाई, वहाँ से एक ४ गुणा ३ का एक बक्सा निकला! मैं जानता था की अगर मैंने हाँ की तो ये मुझे वहीं बुलाएगा! मेरी रेखा पार होगी! औरये अपनी तलवार मेरे आर-पार कर देगा! तब मै हंसा और कहा," कराल, मै तो तेरे को कोई अजब बाबा समझा था, लेकिन तूतो कायर निकला!"
उसके सेवकों ने वो बक्सा खोला! उसमे सोना-चांदी अटा पड़ा था! मैंने दिक्शूल-मंत्र पढ़ा और एक चुटकी मिटटी वहाँ कराल
की तरफ फेंक दी! वहाँ बक्से में सोने-चांदी के स्थान पर अब काले-काले विषधर प्रकट हो गए! कराल हंसा और वो बक्सा बंद कर दिया!
"घना तेज है भी तूतो!" उसने कहा!
मैं शर्मा जी से वो खंजर लिया! अपनी अलख के सामने शराब गिराई और एक आकृति बनायी! मैंने उस आकृति को एक जलती हुई हड्डी के टुकड़े से बींध दिया, शराब में आग भड़क गयी! वहाँ कराल के पास बैठे दोनों सेवकों में अग्नि प्रज्वलित हुई, इससे पहले की वो कुछ करे, एक तेज धमाके के साथ वो फटे और उनकी हड्डियाँ चारों ओर राख के साथ बिखर गयी! कराल की आँखें चौड़ी हो गयीं!
तब कराल जै, अपने और उमेद के चारों और अपनी तलवार से एक वृत्त बना दिया! ये मसानिया-घेरा था! वो धेरै में बैठ के दोनों हंस रहे थे! मैंने ज़रा उनको तोलने की सोची! मैंने महा-शमशानी का आह्वान किया! कराल और उमेद अन्दर सिमट के बैठ गए! जीभ निकाले, क्रंदन करते हुए, रक्तरंजित,रौद्र-मुद्रा में नृत्य करते हुए वो प्रकट हुई! कराल को यकीन नहीं हुआ, वो अपनी गर्दन चारों ओर घुमा-घुमा के उसको देखता रहा! उसने भी मंत्र-जाप किया, और कालिया-मसान का आह्वान कर दिया! लेकिन उसका मसान प्रकट नहीं हुआ! अब मुझे कराल की शक्ति का पता चल गया! वो मसाज के लिए ही बलि चढ़ाया
करता था इंसानों की! मैंने महा-शमशानी को कराल की तरफ इशारा किया! वो कराल पर झपटी! कराल ने उस पर वार किया, कराल के हाथ पर महा-शमशानी ने वार किया, उसका हाथ टूट गया! वही हाथ जिसमे वो तलवारथी! ये हाथ कपडे में लिपटी एक अस्थि सामान था! मैंने फौरन अपना घेरा लांघ, उसकी तलवार उठायी और अपने घेरे में आ गया! इसी तलवार में कराल की सम्पूर्ण शक्ति समाई थी! महा-शमशानी ने कराल को उठाया और उमेद को उठा कर ज़मीन पर मारा! अस्थियाँ ही
अस्थियाँ बिखर गयीं! मैंने फौरन दोनों के नर-मुंड उठाये और अपने घेरे में आ गया!
महा-शमशानी का नृत्य जारी था, मैंने उसको उसका भोग देकर वापिस कर दिया! धेरैके अन्दर, महा-शमशानी के जाते ही, दोनों के नर-मुंड फिर से बोलने लगे!
"मुझे छोड़ दे, मुझे छोड़ दे!" कराल बोला!
"कराल, आज तेरा अंत आ ही गया! जिन लोगों को तूने काटा, उन्होंने ने भी तेरेसे यही कहा होगा! जब तूने नहीं छोड़ा तो मैं तुझे कैसे छोडूंगा!"
मैंने शराब ली और अपने सामने कराल का नर-मुंडरखा! शराब का एक ठूट उसके ऊपर डाला, वो लगातार चिल्लाता रहा! फिर मैंने अपने खंजरसे उसकी पहले दोनों आँखें फोड़ी! उसकी जीभ काटी अलख में से एक जलती अस्थि से मंत्र पढ़ते हुए
आग लगा दी और बाहर फेंक दिया!
हवा में ही एक ज़ोरदार धमाकेसेसाथ उसका नर-मुंड फटा औरटुकड़ेटुकड़े हो गया! कराल का खात्मा हो गया!
अब मै पलता उमेद की तरफ! उसके नरमुंड को उठाया और बोला, "देखा उमेद! तेरा बाबा कराल! मारा गया! अब तेरी बारी!" मैंने ऐसा कह के उसके नर-मुंड को कराल की तलवार की नोक पर टांग दिया! वो लगातार कहता रहा, "मुझे छोड़ दो मुझे
छोड़ दे! सारा माल ले ले! मै कहीं और चला जाऊँगा! भीख मांग रहा हूँ! भीख मांग रहा हूँ!"
मैंने तब शर्मा जी को कहा, "शर्मा जी, कुँए के मुहाने पर जाइए। सबको आवाज़ लगाइए! आज उनका सरदार भीख मांग रहा है! जाइए"
शर्मा जी ने वहाँ आवाज़ लगाई! सभी आ गए! सब हंसने लगे! नाचने लगे! मैंने तब उमेद के नर-मुंड को उतारा, उस पर शराब डाली, और एक जलती अस्थि से अग्नि जला दी और बाहर फेंक दी! जोरदार धमाके के साथ उसका नर-मुंड फट गया!
तब वे लोगसब मेरे पास आये, मैंने महा-भंजन रक्षासूत्र हटाया! छिन्दरी मेरे पास आई और मुझे मेरे माथेपरछुआ! फिर वहाँ खड़े सारे बुजुर्ग वगैरह एक एक करके मुझे छूने लगे
मैंने तब भूमि पर अपनी तलवार से एक रेखा खींची, और वहाँ एक क्रिया आरम्भ की, एक मुक्ति क्रिया! अब सभी को मैंने कहा की एक एक करके सभी अपना नाम बताएं और इस रेखा को पार
करते जाएँ। सबसे पहले, एकलड़का आया, कोई २० साल का, वो हंसा, उसने अपना नाम उदय बताया, उसने वो रेखा पार की और वो लोप हो गया! वो मुक्त हो गया! मैंने एक एक करके उनको मुक्त करता गया! रह गयी आखिर में छिन्दरी! मैंने कहा, " छिन्दरी, बहुत भटके तू और तेरे लोग! अब जा, मुक्त हो जा! रचियता की पनाह में जा अब!"
वो कुछ बोल नहीं सकी बस मुझे देखती रही!
"जा छिन्दरी, तू भी जा" मैंने कहा,
उसने अपना एक हाथ मेरे कंधे पे रखा और बोली," अन्दर कोटर में १४ बक्से माल है, ले लेना!"
"नहीं छिन्दरी, वो तुझ जैसे मासूम के खून से रंग है, मैं उसको नष्ट कर दूंगा, ना लूँगा ना किसी को लेने दूंगा!"
"सुबह होने वाली है छिन्दरी, अब जा तू!" मैंने कहा,
वो आगे बढ़ी और फिर अपने घाघरे में बंधी एक पोटली मुझे दैदी, बोली, "इसको अपने पास रखना, कभी ना खरचना, अपनी
पुश्तों को आगे देतेरहना, को कमी नहीं होगी"
मैंने वो पोटली ले ली और अपनी जेब में रख ली! छिन्दरी आगे बढ़ी और लोप हो गयी!
मेरी कर्तव्यबोध से आँखें भर आयीं! मैंने तब शर्मा जी को संग लिया, कुँए तक गया, और मंत्र पढ़कर वो १४ बक्से खराब कर दिए, वोराख बन गए!
मेरा काम वहाँ हो चुका था, फिरोज़ और वाजिद को समझा दिया कि वहाँ कोई माल नहीं था, बस माया थी, और अब वो इस कुँए को हमेशा के लिए ढक दें!
वाजिद वही रह गए, मैं विदा लेके दिल्ली आ गया वापिस!
वहाँ आकर मुझे उस पोटली का ध्यान आया, सूती कपडे कि बनी वो पोटली एक कपडै कि रस्सी से बंधी थी, मैंने उसको आरामसेखोला, उसमे सोने के २१ सिक्के निकले! उनपर गढ़ी हुई फारसी भाषा में लिखा था --- 1608
साधुवाद!
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