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वर्ष २०१० बिजनौर उत्तर प्रदेश की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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मेरे एक परिचित हैं वाजिद मियां! अमल करने में माहिर हैं और मेरे अज़ीज़ दोस्त भी है! अक्सरवो मेरी और मैं उनकी मदद करते रहते हैं! रहने वाले वैसे वो गोंडा उत्तर प्रदेश के है लेकिन आजकल कोलकता में रहने लगे हैं! अपने समस्त परिवार के साथ वो अब कोलकाता के की निवासी हो गए हैं! अमल करने में माहिर हैं और केवल गरीबो-गुरबा का ही ज़्यादातर काम करते हैं! एक बार शर्मा जी के पास उनका फ़ोन आया की वो फलां तारीख को दिल्ली आ रहे हैं,किसी अहम् मसले पर सलाह करनी है, शर्मा जी का फ़ोन मुझ तक आया, मैं उन दिनों हरिद्वार में गया हुआ था, शर्मा जी यहाँ दिल्ली में थे और मै हरिद्वार में, मैंने शर्मा जी को बताया की जब वाजिद मियां आयें तो उनको स्टेशन से लेके सीधे मेरे स्थान तक ले जाएँ, अगर मैं जल्दी आ गया तो स्वयं ही उनको लेने चलूँगा! 

जिस दिन वाजिद मियां को आना था, मै उस दिन हरिद्वार से चला था, वाजिद मियां की गाडी देर से पहुंची कोई र घंटे, मै 

जल्दी पहुँच गया था, सो उनको लेने चला गया! वो आये, गले लगे, हाल-चाल मालूम किये और हमने उनको अपने साथ गाडी में बिठाया और मैं अपने स्थान पर ले आया! चाय वगैरह के बाद मैं उनसे पूछा, "और वाजिद भाई, क्या चल रहा है आजकल?" 

"कहाँ चल रहा है साहब! एक ऐसा काम फंस गया है की न तो निगलते ही बन रहा है और न छोड़ते ही!" उन्होंने हँसते हुए 

कहा, 

"ऐसा कौन सा काम पकड़ लिया आपने?" मैंने पूछा, 

"मेरा एक चचेरा भाई है, बिजनौर में, उसने अभी कोई साल भर पहले वहाँ १० बीघे खेत खरीदे हैं, और ३-४ कमरों का एक मकान भी बनवा लिया है उसने वहाँ, नाम है उसका फिरोज़, सीधा-साधा आदमी है वो वैसे तो, लेकिन एक दिन जब वो रात कोखेतों पर काम कर रहा था तो वहाँ उसको एक अजीब सी आवाज़ आई! जैसे एक औरत और मर्द आपस में फुसफुसा के बातें कर रहे हों! उसने आज-बाजू देखा तो वहाँ कोई नहीं था! वो बेचारा डर गया! उसने अपना साफा उठाया और वहाँ से भागा! तभी वहाँ उस औरत और मर्द की तेज तेज हंसने की आवाजें आयीं, जैसे की वो फ़िरोज़ के डर के मारे भागने पर हंस रहे हों! वो भागा भागा आया और


   
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श्रीशः उपदंडक
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अन्दर घर में घुस गया, कहीं कोई उसका मजाक न उडाये, इसीलिए उसने किसी से इस बात का जिक्र नहीं किया! कोई तीन दिनों के बाद उसकी बीवी वहाँ काम कर रही थी, उसको भी किसी औरत और मर्द के फुसफुसाने की आवाजें आयीं! उसने भी आसपास देखा, लकिन वहाँ कोई नहीं था, उसने ध्यान नहीं दिया और काम करती रही, थोड़ी देर बाद फिर से आवाजें आयीं! उसने फिर से आसपास देखा, कोई नहीं था! उसको ये मामला गैबी-मामला लगा! उसने वहाँ से अपना सामान उठाया और वहाँ से भागी! जब वो भागी तो उसको औरत और मर्द के हंसने की आवाज़ आई! जैसे की फ़िरोज़ को आयीं थीं! फिरोज़ की बीवी ने ये बात फिरोज़ को बतायी, फिरोज़ के भी होश उड़ गए! यानि की ये महज़ फ़िरोज़ के साथ ही नहीं गुज़रा था, ये उसकी बीवी सायरा के साथ भी हुआ था! अब वो दोनों डर गए! अगले दिन फिरोज़ ने ये बात अपने एक जानने वाले को बतायी! उसने फौरन एक मौलवी साहब के पास चलने की सलाह दे डाली! दोनों एक बुजुर्ग मौलवी साहब 

को ले आये! मौलवी साहब ने अमल वगैरह किया और वापिस चले गए! फ़िरोज़ औरसायरा कोसुकून की सांस आई की चलो मुसीबत टली! कोई हफ्ते भर बाद फ़िरोज़ जब वहाँ से गुजर रहा था तो उसने वहाँ फिर से एक आवाज़ सुनी आवाज़ के औरत की थी, आवाज़ थी, 'फ़िरोज़, ओ फ़िरोज़!' फिरोज़ फिर डर गया और वहाँ से भागा! वो भागा भागा अपने कमरे में घुस गया! कमरे में घुसा तो उसने फिर से उस जगह खिड़की में से झाँका, वहाँ एक लड़की, उम्र कोई २०-२२ साल जैसी, घाघरे में खड़ी थी और दोनों हाथों से ताली मार मार के हंस रही थी! फिरोज़ ने खिड़की बंद कर दी! उसके होश फाख्ता हो गए! काटो तो खून नहीं!" 

ये कह के उन्होंने अपनी जेब से एक पान की डिब्बी निकाली और एक पान मुझे पेश किया, मैंने एक पान उठा लिया और मुंह में रख लिया, एक उन्होंने उठाया और मुंह में रख लिया! 

उन्होंने मुंह में पान रख के फिरसे कहना शुरू किया " अब फ़िरोज़ की और उसके परिवार की चिंता बढ़ने लगी, उन दोनों में से कोई ना जाए वहाँ! अपने बच्चों तक को मना कर दिया वहाँ जाने को, फिरोजने तब अपनी मातहत काफी इंतजामात 

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किये, लेकिन कोई भी असर ना हुआ, तब वो एक और मौलवी साहब को लाया, मौलवी साहब भी अपना काम कर गए, 


   
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श्रीशः उपदंडक
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लेकिन हालत वैसे के वैसे ही रहे! वहाँ जो भी शय है वो बड़ी चालाक और शातिर खिलाड़ी लगती है! आखिर में हार के उसने मुझे बुलाया परिवार का वास्ता दिया और बड़ी मान-मुनव्वत की, तब मैंने सोचा, वो सच में ही ज्यादा परेशान है इसीलिए मैं आज से कोई महिना भर पहले वहाँ आया, पहले ही झटके में मुझे वहाँ खटका हुआ, मैं वहां उस जगह गया, मुझे कोई आवाज़ ना आई, बस किसी के गुस्से भर नथुनों की सांस की आवाज़ तो आई ये तो मै मान गया की भाई वहाँ पर कोई खतरनाक ही शय है, अब मैंने वहाँ बैठ कर अगरबत्ती सुलगाई, अपना खोजी हाज़िर किये, और जब मैंने उसको वहाँ भेजना और मालूमात के लिए राजी किया तोदो क़दम के बाद ही आके मुझे कहन लगा 'यहाँसु भाग लो" और भाग छूटा! मै भी भागा जी वहां से! फ़िरोज़ के घर में आया, घर में आके मैंने बड़े मियाँ जी की आमद करवाई, बड़े मियां जी बोले, "अभी पढाई करले इसके लिए, 

नहीं तो तेरे दो टुकड़े हो जायेंगे ये बात डरावनी थी! मैंने फिरोज़ को कहा की भाई मै जा रहा हूँ वापिस, इसकी और पढ़ाई करनी बाकी है! और मै फिर कोलकाता वापिस आ गया, और इसी मारे तुम्हारे पास आया हूँ, ये मामला सुल्ट्वाओ किसी भी तरीकैसे!" 

उनके ऐसे कहने के अंदाज़ से मुझे हंसी सी आ गयी! मैंने कहा, "वाजिद साहब! शय कोई भी हो बेवजह तो मारेगी नहीं! 

आपको मालूम कर लेना चाहिए ता उसके बारे में!" 

"मालूम करने के लिए तो कारिन्दा बुलाया, कारिन्दा ही भाग छूटा! और बड़े मियां ताकीद कर गए बढ़ी पढ़ाई की!" उन्होंने 

कहा, 

"तो बड़ी पढ़ाई कर लेते!" मैंने कहा, 

"एक बात बताओ, मैं तो कर लूँ बड़ी पढ़ाई, और फिर वहाँ ज़रुरत पड़ जाए और पढ़ाई की! तो हो गयी ना इज्ज़त खाक!" उन्होंने हंस के कहा! 

"अरे इज्ज़त कैसे खाक वाजिद भाई! हम बैठे हैं ना आपकी इज्ज़त के लिए!" शर्मा जी ने उनके कंधे पे हाथ मार के कहा! 

"तभी तोशर्मा जी मैंने आपको याद किया!" वो बोले! 


   
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श्रीशः उपदंडक
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"तो वाजद साहब, ये मालूम ना पड़ सका की वहाँ माजरा क्या है? आइने पूछा, 

"हाँ जी, ना पड़ सका!"" वो बोले, 

"घर जाके ना मालूम करी आपने?" मैंने पूछा, 

"कोशिश तो करी लेकिन हमारी चीज़ वहाँ जाके वापिस आ जाए है बैरंग!" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा! 

"ठीक है, अगर थक गए हों तो आज आराम करलो, चल सको तो आज ही चलें?" मैंने पूछा, 

"अजी आज ही निकल लो, मैं फिरोज़ को फोन करे देता हूँ" उन्होंने कहा और फिरोज़ को फोन करके हमारे आने की इत्तला दे 

दी! 

मैंने तैयारी वगैरह की, वहाँ वाजिद साहब ने भी तैयारी की! और हम कोई ३बजे करीब बिजनौर की ओर रवाना हो गए। 

हम रात तक बिजनौर पहुंच गए! फिरोज़ कोखबर दी जा चुकी थी सो, वो भी हमको गाँव के बाहर ही मिल गया, दुआ-सलाम हुई और हमने उसको गाडी में बिठा लिया, फ़िरोज़ दरम्याने कद का गाँव का एक सीधा-सादा आदमी था, ऐसा आदमी जो सिर्फ अपने खेतों से ही जुड़ा रहता है! कच्चे-पक्के रास्ते पर गाडी बढे जा रही थी, अँधेरा था और इक्का-दुक्का कुत्ता या सियार ही सड़क पार कर रहे थे, एक छोटासे पुल आया, नीचे कोई बरसाती नाला था, हमने पार लिया, आगे बढे, जब गाँव के 

करीब आये तो मैंने वहाँ खंडहरनुमा मंदिर देखा, पथरीला मंदिर अब जो डह चुका था, बस एक दो बड़े से पत्थर आदि ही दिखाई दे रहे थे, टूटी हुई बुर्जी भी वहीँ पड़ी थी खैर, हम आगे बढ़े और कोई १०-१५ मिनट में फ़िरोज़ के घर आ गए! फ़िरोज़ का घर गांवे से बाहर उसके खेतों पर ही बना हुआ था, चारों तरफ से खुला हुआ और खेतों के बीच! आसपास शीशम और पीपल के दरख़्त थे इक्का दुक्का जामुन भी दिखाई पड़े. 

फ़िरोज़ ने हमको आदर-सत्कार से अन्दर बिठाया, हाथ-पाँव धुलवाए और फिर दूध ले आया! थोड़ी देर इधर-उधर की बातें हुई 


   
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श्रीशः उपदंडक
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फिर मैंने ही फ़िरोज़ से पूछा, "फ़िरोज़ भाई, एक बात बताओ, वो जगह है कहाँ?" 

फ़िरोज़ने इशारा किया और उठ के खिड़की से बाहर झाँक कर इशारा किया, मैंने वहाँ देखा, फिलहाल में तो वहाँ घुप्प अँधेरा 

था! वहाँ सुबह ही देखा जा सकता था, मै वापिस अपनी जगह आके बैठ गया! मैंने फिर पूछा, "फिरोज़ तुमने वाजिद मियां को बताया था की तुमने वहाँ एक लड़की देखी थी घाघरे में, वो कैसी दिखती थी?" 

"जी मेरे बराबरतो होगी ही, वजन में भी ज्यादा ही होगी, लम्बी चौड़ी थी जी और छोटी बनाए हुए थी!" उसने बताया! 

"हिन्दूलगती थी?" मैंने पूछा, 

"हाँ जी ऐसी ही लग रही थी वो" उसने बताया, 

"जहां से वो आवाज़ आई थी तुमको फुसफुसाने की, वहाँ खेत में क्या बोरखा है?" मैंने पूछा, 

"वहाँ बुवाई ना होती जी वहाँ तो बड़े बड़े पत्थर हैं।" 

"अच्छा!" मैंने कहा, 

"और वहाँ जी हमारेढोर-डंगर बांधे जाते हैं, लेकिन इस घटना के बाद से हमने वो भी वहाँ नहीं बांधे जी!" फिरोज़ ने बताया, 

मै अब वाजिद साहब की तरफ मुड़ा, और पूछा," वाजिद साहब? क्या आपने उन पत्थरों के पास ही खोजी कारिन्दा हाज़िर किया था?" 

"हाँ जी, वहीं किया था!" उन्होंने भी हाथ के इशारे से कहा! 

मैंने शर्मा जी को देखा! वोखड़े हुए, मैंने फिरोज़सेटोर्च लाने को कहा, फ़िरोज़ टोर्च ले आया, औरटोर्च जला के हमको देदी, मैंने कहा, "चलो फ़िरोज़, हमारे साथ चलो!" 

फ़िरोज़खड़ा हो गया! मैंने टोर्च की रौशनी वहाँ डाली, तो वहाँ झाड-झंकार ही थे, मैंने थोडा इंतज़ार किया, कोई आवाज़ नहीं 

आई, मैंने फ़िरोज़ को वापिस भेज दिया! और खुद शर्मा जी के साथ वहाँ खड़ा हो गया! 


   
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श्रीशः उपदंडक
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मै खड़ा हुआ! मैंने अपना कारिन्दा प्रकट किया, कारिन्दा हाज़िर हुआ! मैंने उसको अपना सवाल बताया! लेकिन वो वहाँ से हिला नहीं! मै भी चकित था! इससे पहले कि कोई नुक्सान होता उसका उसको वापिस भेज दिया! बड़ी हैरत की बात थी! तभी मुझे और शर्मा जी को फुसफुसाने की आवाजें आने लगी हम वहाँ डटे रहे! मै वो फुसफुसाहट ऐसे सुन रहा था की जैसे की डेढ़-दो फीट पर फुसफुसा रहा हो! मैंने शब्द सुनने की कोशिश की! वो कुछ ऐसे शब्द थे'कहाँ? यहाँ? नहीं? आजही? कब? कितना?" एक शब्द औरत बोलती थी और एक शब्द कोई मर्द! 

मैंने देर न करते हुए एकरोड़का-मंत्र पढ़ा! फुसफुसाहट बंद हो गयी! लेकिन ऐसा लगा कि जैसे मानो कई घुड़सवार वहाँ भागे चले आ रहे हों! मैंने एक और कौष-मंत्र पढ़ा! घुड़सवार जैसे थम गए। लेकिन अब कुत्तों और भेड़ियों के गुर्राने की आवाज़ आने लगी! मामला बड़ा उलझा हुआ था! मै वहीं से वापिस हुआ, और जैसे ही वापिस हुआर कच्चे घड़ेनुमा बर्तन मेरे पीछे आके गिरे 

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मैंने टोर्च किरौशनी उन पर डाली तो देखा वो घड़े टूटे भी नहीं थे! साबुत थे! कमाल था! 

मैंने वो घड़े उठाये, अधिक बाहरी नहीं थे वो! उनको वहाँ एक जगह रख दिया! जो भी ये खेल खेल रहा था वो कमाल का था! उसने मुझे चुनौती दी थी! नहीं तो वो घड़े हमसे टकराते या फिर हमारे सर फोड़ते! 

मैवापिस फिर वहीँ आ गया जहां हमको फ़िरोज़ ने ठहराया था! खाने का प्रबंध हो गया था, सो हमने खाना खाया! और सोने चले गए। 

सुबह मैं और शर्मा जी जल्दी ही उठ गए, नित्य-कर्मों से फारिग हुए और नहाने-धोने के बाद थोडा दूध पिया! और मैशर्मा जी को लेकर वहीं चला गया! मैंने वहाँ किसी और को आने से मन कर दिया था! मै वहाँ पहुंचा! वो घड़े जस के तस रहे हुए थे! मैंने उनको देखा, कच्चे घड़े थे, मैंने उनको पत्थर पर मार कर फोड़ा! उसमे से काली राख और इंसानी हड्डियों का चूरा और टुकड़े निकले! मैंने ध्यान से देखा! उसमेसेसर के बाल, चूड़ियाँ, बच्चे के चांदी के हथ-बंध, मानव-एडी कि हड्डी का टुकड़ा, काले मनके आदिभरे पड़े थे! 

इसका मतलब था कि जंग अब शुरू हो चुकी है! उनका सन्देश मुझे मिल चुका था! मैंने अब उस स्थान का जायजा लेना शुरू किया! मै उन बड़े बड़े पत्थरों के पास गया, मैंने वहाँ एक चौकोर पत्थर देखा, ये वहाँ पड़े पत्थरों से ये पत्थर एकदम अलग 


   
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श्रीशः उपदंडक
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था, या तोये पत्थर कहीं और से लाया गया था, या फिर या फिर यहीं गढ़ा गया! पत्थर परिमाप में ढाई गुणा ढाई के अनुपात में था! मैंने फिरोज़ को बुलाया, और वो पत्थर वहाँ से निकलवाया! 

पत्थरको मैंने पानी से धुलवाया, वहाँ कुछ निशान मिलेखुदेहुए! एक निशान एक गाय का था, एक द्धि-फलक झंडे का, एक निशान कुँए की घिरनी का और एक निशान त्रिशूल का स्पष्ट था ये एक वैदिक धर्म के निशान थे! ये एक तरह का बीजक था! मैंने बीजक को पूर्व दिशा में रखा, दूरी का परिमाप किया! गाय कर अर्थ, एक गाँव! डि-फलक झंडे का अर्थ पावन-भूमि, कुँए के निशान का अर्थ, गाँव के बीच में स्थित कुआँ और त्रिशूल का अर्थ एक मंदिर! यानि की ये बीजक यहाँ एक निशान के तौर पर लगाया था! लेकिन ये बीजक अधूरा था, इसका और और बीजक होना चाहिए था वहाँ! मैंने बीजक को फिर से देखा, नीचे की तरफ सांकेतिक चिन्ह थे! बड़ी मेहनत का काम था ये सब! 

मैं उस बीजक को उठवा के अन्दर ले आया! ध्याज से सारे चिन्ह नोट किये, और एक कागज़ पर बना लिए! अब एक एक निशान का हिसाब लगाया! और जो पता चला वो था की उन पत्थरों के नीचे एक कुआँ है! 

अब वो पत्थरकैसे हटाये जाएँ? मैंने सोवा! तब मुझे खयाल आया की ट्रेक्टरसे खिंचवा दिए जाएँ तो बढ़िया रहेगा! एक ट्रेक्टर 

का प्रबंध किया गया! और हमने वहाँ से वो पत्थर लोहे की जंजीरों से बंधवा के हटवा दिए! 

कुँए का मुहाना दिखाई दे गया मैंने सभी को वहाँ से हटाया और स्वयं शर्मा जी के साथ वहाँ चल पड़ा! 

कुआँ काफी लम्बा-चौड़ा था! और उसमे नीचे जाने के किये सीढियां भी बनी हुई थी निर्माण करने वालों ने कमाल कर दिया था! हमने एक सब्बल लिया, कुँए के मुहाने के पत्थरों की मजबूती की जांच की, पत्थरचूंकि काफी बड़े थे, इसीलिए मजबूती से टिके हुए थे! मैंने वहाँ खड़े हो कर नीचे देखा, तक का कोई पता नहीं था, लेकिन सीढियां आधे में ही खतम हो गयीं थीं! कमाल था! इसका भी कोई न कोई मकसद अवश्य ही रहा होगा! 

मैंने और शर्मा जी ने आगे बढ़ने का फैसला किया, पहले मैंने प्राण-रक्षा मंत्र अपने और शर्मा जी के ऊपर फूंका! फिर आगे बढे! मै पहली सीढ़ी पर आया, और शर्मा जी मेरे पीछे! ऐसा करते


   
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श्रीशः उपदंडक
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करते हम ८ सीढियां पार कर गए! नीचे देखा तो जहां सीढियां खतम होती थीं, वहाँ एक कोटरथी, झाड-झंखाड़ से भरी हुई! नीचे अँधेरा होने लगा था, सो हम वापिस ऊपर आ गए थे! एक बात गौर करने लायक थी, जबसे हमने बीजक का पत्थर निकाला था, तब से लेकै अब तक कोई अनहोनी नहीं हुई थी! कोई चाहता था की कोई रहस्योद्धाटन हो! 

हम ऊपर आ गए! शाम का धुंधलका छाने लगा था! और थक भी गए थे, हमने अपना 'सोमरस' निकाला और हो गए शुरू! 

शर्मा जी ने पूछा, "गुरु जी, बड़ी भयावह स्थिति है वहाँ तो!" 

"हाँ, ये तो है!" मैंने कहा, 

अब वाजिद भी आ गए! बोले, "भाई सफलता हाथ लगने वाली है आपके! कोई खजाना आदि है पक्का !" 

"देखते हैं वाजिद भाई, मामला है क्या!" 

"हाँ इसको तो अब सुलझाना ही है आपको! वाजिद ने कहा! 

"आज रात को मै फिर वहाँ जाऊँगा, देखते है क्या हाथ लगता है हमारे!" 

"ठीक है, कहो तो मै भी चा?" वाजिद बोले, 

"अगर जरूरत पड़ी तो बुला लूँगा आपको!" मैंने जवाब दिया! 

मै रात को करीब १ बजे शर्मा जी के साथ वहाँ जाने के लिए तैयार हुआ, उससे पहले मैंने अपनी शक्तियां जागृत कर ली थीं, मैंने आज इस रहस्य से पर्दा हटाना था, मैंने शर्मा जी को और अपने को रक्षा-मन्त्र से संचारित किया, संचारण पश्चात, कुछ 

आवश्यक वस्तुएं लेकर वहाँ कुँए के पास चला गया टोर्च हमारे पास ही थी, कुँए से पहले ही मैंने एक चौकी खींची और उसके अन्दर स्वयं और शर्मा जी को रख लिया! अब मैंने अपनी शक्ति का आह्वान किया, शक्ति प्रकट हुई, मैंने नमन करते हुए उसको वहाँ भेजा! शक्ति वहाँ से एक लड़की को खींच के लायी! वहाँ एक २०-२२साल कीगौर-वर्णी लड़की आई! वोसीधे हमारी तरफ ही आई! आते ही वो हंसने लगी! बोली, " काहे!! काहे! देर बहुत कर दी!" 

"मैसमझा नहीं?" मैंने कहा, 


   
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श्रीशः उपदंडक
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वो फिर ठहाके लगा के हंसी! उसने अपने हाथ में पहनी चूड़ियाँ एक दूसरे से टकरायीं! टकराते ही वहाँ काफी प्रेतात्माएं प्रकट हो गयीं! छोटे बालक, बालिकाएं, अधेड़, प्रौढ़ आदि आदि! 

"तुम में से कौन फुसफुसाता है?" मैंने कहा, 

तब वहाँ एक जवान आया, वो मुझे राजस्थानी सा लगा, बोला, "मैं और मेरी लुगाई!" 

"क्यूँ?" मैंने पूछा, 

"मुक्त करा देहमको" उसने बोला, 

"मुक्त? तुम्हें किसी ने कैद किया है क्या?" मैंने उससे पूछा, 

अब वो लड़की जो पहले आई थी बोली, "हाँ छुड़ा दे हमको" 

"पकड़ा किसने है?" मैंने पूछा, 

"उमेठ ने!" वो बोली, 

"कौन उमेद?" मैंने पूछा, 

"सरदार है" उसने बताया, 

"कौन सरदार?" मैंने पूछा, 

"उमेद सरदार, बूंदी वाला!" उसने जवाब दिया, 

"अब कहाँ है वो?" मैंने पूछा, 

"सो रहा है" वो बोली, 

"कहाँ सो रहा है?" मैंने पूछा, 

"कुआँ में" उसने इशारा किया, 

"अच्छा! तुम लोग हो कौन? यहाँ कैसे आये तुम? कब आये?" मैंने सवाल किया, 

"हम बंजारा हैं, लूट-खसोट पेशा है, उमेद सरदार है, ४०० सालों से अधिक हुए हम यहाँ" उसने कहा, 


   
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श्रीशः उपदंडक
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"उमेद लाया तुमको यहाँ?" मैंने पूछा, 

"हाँ, सरदार लाया, ढाई सौ आये, बाकी मर गए, हम १३५ हैं, कराल बाबा ने कटवा दिए!" उसने बताया, 

वहाँ खड़े बेचारे सभी मुझे घूर घूर के देख रहे थे, पूरे ४०० सालों में उन्होंने अपने जैसा, बात करने वाला देखा था आज! मुझे तरस आ गया! नंग-धडंग बालक! 

'कराल कौन है?" मैंने पूछा, 

"बाबा! बाबा कराल! खिलाड़ी!" उसने कहा, 

ये सब बाबा कराल के इशारे पर बलि चढ़ा दिए! चढ़वाये उमेद ने! कितना अभिभूत करने वाला दृश्य था! 

तब तो लड़की और करीब आई, उसने मुझे एक खंजर दिया हाथी-दांत के मूठ वाला खंजर! मैंने कहा, "तेरा नाम क्या है?" 

"छिन्दरी" उसने बताया! 

"छिन्दरी! छिन्दरी, तेरा आदमी कहाँ है?" मैंने पूछा, 

"मेरा ब्याह न हुआ, मैं कराल की बांदी हूँ" उसने कहा, 

"तुम लोग मुझसे क्या चाहते हो! ये बताओ?" मैंने पूछा, 

"मुक्ति, मुक्त कर देबेटा, मुक्त कर दे" वहां खड़ी एक लंगड़ी बुढ़िया ने कहा, 

उस बेचारी के एक टांग बेकार थी! मैंने अपनी गर्दन हिला के समर्थन किया उसका, फिर मै बोला, "ये कराल कब आता है यहाँ? और ये उमेद कब जागता है?" 

"कराल जगावे है उसको, हर अमावस की रात को" अब एक और दूसरे आदमी ने जवाब दिया, 

"क्या नाम है तेरा?" मैंने पूछा, 

"उदय सिंह" उसने बताया 

"उदय, तुम लोग मुझे लगता है सरेडरे हुए हो? किससे? उमेद से या कराल से?" मैंने पूछा, 


   
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श्रीशः उपदंडक
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"मेरी जुड़वां औलाद काट दी उमेद ने" उसने रोते हुए कहा, 

मुझे अफसोस हुआ बहुत! मैंने फिर छिन्दरी से कहा, "छिन्दरी, यहाँ आते ही वाजिद का कारिन्दा भागा, मेरा भी, वजह? 

"कराल का डर! कराल का डर" उसने कहा, 

"ये कराल सिद्धि-प्राप्त है कुंवरसा!" वो बुढ़िया बोली 

"कुंवरसा? न माँ न, ऐसा न बोल! एरी इंसानी जून है, तुम मुझे कई गुना ऊपर' मैंने हाथ जोड़ कर कहा, 

"रे पागल, चौकी से बाहर आ, फेर देख!" वो बोली, 

पता नहीं मित्रो ये उनका प्रेम या सौहार्द था या सत्यनिष्ठा! मै चौकी से बाहर आ गया! उस बुढ़िया ने मेरे हाथ छुए, मेरे चेहरे 

को छुआ और फिर मेरे माथे पर अपना खुरदुरा हाथ फिराया और बोली, " आपणों! आपणों!" 

तभी एक बच्चा आया उसने मेरी बेल्ट पकड़ी, मैंने उसको देखा, बेचारे! मेरे मुंह से निकला! 

"छिन्दरी, मेरा वचन ले ले! कराल और उमेद! ये तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ेंगे! हां, मुझे तुम लोग१दिन का समय दो, आज चौदस है, कल अमावस, इस कराल और उमेद को मैसभाल लूँगा!" 

छिन्दरी को ये सुन के बेहद खुशी हुई! बोली, "रे भाई, मेरे पास चने है, खा ले!" 

"ला अपने चने ला!" मैंने कहा, 

तब एक दम से हलचल हुई! वो सारे भागे और एक एक मुट्ठी चने ले आयो इन चनों का स्वाद इस दुनिया के सभी व्यंजनों से स्वादिष्ट और बेहतर था! मैंने अब शर्मा जी को भी चौकी से बाहर खींच लिया था! 

सुबह की पहुँच होने ही वाली थी! वेसारेचुप चापकुँए में उतारते चले गए 

"शर्मा जी बोले, "गुरु जी, मेरी सारी उम्र ले लो, इनको बरी कर दो!" 


   
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श्रीशः उपदंडक
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उनकी आँखों के मैंने आंसू पोंछे! और कहा, " हमारा आना यहाँ नियत थे, हम आ गए! अब देखो मै इस कराल और उमेद का क्या करता हूँ!" 

"इनको आज़ाद करदो, गुरु जी,करा ढो!" उन्होंने मेरे हाथ पकड़ लिए। 

"कल इनको मैं आज़ाद करा दूंगा!" मैंने वचन दिया! 

उस रात मै उन सबकी व्यथा सुन कर द्रवित हो गया! मै उनको वचन देकर वापिस आया शर्मा जी के साथ, रात्रि काफी देर तक रण-नीति बनायी, उसका निर्धारण किया और एक क्रिया संपन्न करके सो गया, सुबह ६ बजे उठाकर नित्य-कर्मों से फारिग होकर फिर से शर्मा जी के साथ वहाँ कुँए पर गया, मेरी चौकी के निशान अभी भी मौजूद थे वहाँ छिन्दरी के अलफ़ाज़ अभी भी मेरे कानों में गूंज रहे थे, मैंने कुँए में झाँका, इसकी कुँए में वो लोग काटकर डाले गए थे, काफी बड़ा बलि-कर्म हुआ था, कराल काफी ताक़तवर और क्रूर तांत्रिक रहा होगा, इसमें कोई शक नहीं था, 

ये बंजारे अक्सर लूट-खसोट कर अपने सरदार के पास सामान रखते थे, इनका सरदार हमेशा अपने साथ एक तांत्रिक अवश्य रखा करता था, ये तांत्रिक निपुण और काली-विद्या के धनी होते थे, ये अक्सर या तो पकडे गए लोगों की या अपने ही लोगों की बलि चढ़ा कर उस धन की रक्षा हेतु तैनात करा देते था, ये उन आत्माओं के लिए श्राप बन जाता था, कई स्थानों से सामान निकाल लिया जाता था, कई दूसरे स्थान ऐसे ही पड़े रह जाते थे, कभी बाढ़ के कारण तो कभी सही जानकारी न होने के कारण! ये स्थान भी ऐसे ही स्थानों में से एक था, सरदार ऐसी जानकारी अपने विश्वस्त लोगों तक ही सीमित रखता था, और अपने तांत्रिक गुरु के मार्गदर्शन से ही सारे काम करता था, यहाँ उमेद उनका सरदार था और कराल तांत्रिकी एक बात स्पष्ट थी, सरदार की मौत कराल से पहले हुई होगी, उसकी आत्मा को कैद करके इस डेरे कासरखार बना केरखा गया हगा, कराल केद्वारा, और कराल की शक्ति अभी तक अपनी रूहद्वारा यहाँ अपना वर्चस्व बनाए हुए थी! 

मेरे पास आज पूरा दिन था अपनी तैयारी के लिए! आवश्यक सामग्री के लिए मैंने शर्मा जी को कह दिया था, उमेद को तो मैं आराम से तोड़ सकता था लेकिन समस्या उस तांत्रिक कराल से थी, इन बंजारे तांत्रिकों के पास कई भीषण-भीषण विशेष वर्गीय शक्तियां होती हैं, अब मुझे अपने दादा श्री के कहे वचन याद आये! तंत्र-विद्या के साथ विवेक में चूक नहीं होनी चाहिए, मात्र एक चूक आपकी नियति निर्धारित कर सकती है, जिन्नात रखने वाला भी एक प्रेत द्वारा मार गिरया जा सकता है, मात्र एक चूकसे! 


   
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श्रीशः उपदंडक
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बंजारों की इन भीषण शक्तियों से लड़ने के लिए सदैव हाथी-दांत की मूठ वाले खंजर को अपने पास रखा जाता है, और एक दुधारी त्रियक-तलवार को, मैं ऐसी वस्तुएं अपने बैग में रख लिया करता हूँ, जैसी वेशभूषा मुझे पहली बार वाजिद ने बतायी थी, वो मुझे कुछ बंजारा-परिवेश ही लगा था! खंजर मुझे कल छिन्दरी ने दे ही दिया था, खंजर का फाल १२ इंच से अधिक लम्बा और ४ इंच से अधिक चौड़ा था, उसकी मूठ ही इतनी चौड़ी थी की उसको चलाने वाला कोई असाधारण व्यक्ति ही होगा! 

मैंने खंजर और अपनी त्रियक-तलवार को अभिमन्त्रण करने हेतु अपने समक्ष रखा, और अभि मंत्रित किया! मैंने मनुष्य हस्तान्गुलियाँ, कंध-माल, सीने के अस्थियाँ, पाँव की अस्थियाँ, स्त्री के योनि-प्रदेश की अस्थियाँ, बाल-कपाल, अपना त्रिशूल, अपनी मालाएं, वस्त्र, आसन आदि अभिमंत्रित किये, पूरे ४ घंटे लगे, लेकिन इनका सशक्तिकरण हो गया! अब मैंने शर्मा जी की कमर पर अस्थि-माल, शूल-माल, स्त्री-पांसुल-माल इत्यादि बाँध कर अभिमन्त्रण कर दिया! 

फिर मैंने उनको, देख-इल्म, कुफल-इल्म, रहमानी-इल्म से बाँधा, और स्वयं भी उनको बाँधा! अमावस आरम्भ होने में ७ घटी 

शेष थीं! मैंने फिर वहाँ से उस युद्ध-स्थान को कीलित किया! महा-भंजन मन्त्रों से परिपूर्ण किया! 

फिर वहाँ हम दोनों ने सवा-हाथ गहरा एक गड्ढा किया, उसमे अभिमंत्रित सामग्री दाल कर अलख उठाथी! आज की अलख 

कड़कती आवाज़ करती उठी थी! मैंने अपना आसन लगाया, त्रिशूल बाएं हाथ की तरफ भूमि में गाढ़ा! तलवार और खंजर शर्मा जो को पकड़ा दिया! आकाश को देखा और उस समय अमावस बस थोड़ी देर में आरम्भ होने ही वाली थी! 

थोड़े समय पश्चात अमावस हो गयी! मैंने महा-मंत्रोच्चारण आरम्भ किया! वहाँ का स्थान, 'स्वाहा' और 'हुं फट' के नादसे गुन्जन्मय हो गया! करीब आधे घंटे के बाद कुँए के मुहाने से एक लम्बा चौड़ा इंसान प्रकट हुआ! उसने नीचे लाल फूल-छाप लुंगी और ऊपर सफेद रंग का लम्बा कुरता पहन रखा था! उसके कुरते में कई हथियारखंसे हुएथे उसने बड़े ध्यान से हमको देखा! और हम तक आने के लिए कुँए के मुहाने की दीवार पर खड़ा हुआ! उसने अपना एक हाथ अपनी कमर पर टिकाया और दूसरे हाथ से अपने कुरते में खुंसा हुआ एक वैसा ही खंजर निकाला जैसा की छिन्दरी ने मुझे दिया था! उसने वो खंजर म्यान से बाहर निकाला, मैंने शर्मा जी से वो खंजर


   
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श्रीशः उपदंडक
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किया और बाहर निकाला! उसने अपना खंजर लहराया और मैंने भी! अब वो चिल्लाता हुआ भागा हमारी तरफ! लेकिन जैसे ही महा-भंजन मंत्र से खचितरेखा तक आया और टकराया उसका खंजर हाथ से छूटा और वो कम से कम ३० फीट दूर हवा में जा कर ज़मीन पर गिरा! उसकी बड़ी हैरत हुई! वो उठा और कुँए तक गया, थोड़ी देर में वापिस आया, अब उसके हाथ में एक लोहे के काँटों से युक एकचक-माल था, इसका प्रयोग आप भागते शत्रु या ऊपर दीवार पर चढ़े शत्रु या बंधे हुए शत्रु को पीट-पीट कर मारने के लिए किया जाता है। उसने वो वक-माल हवा में घुमाया और फिर हमारी तरफ फेंक दिया! चक-माल द्वत-गति से हमारी ओर आया! मैंने अपना त्रिशूल लिए और उसकी तरफ 

कर दिया! वो पिघलता हुआ लोहा बनकरधुल-धस्सित हो गया! 

वो क्रोध में विल्लाया और एक बड़ा सा पत्थर उठा के हमारे ऊपर फेंका! महा-भंजन मंत्र से टकराते ही उसका वो पत्थर छोटे छोटे कंकडों में खंडित हो गया! वो कंकड़ हमारे ऊपर आके गिरे! वो वहाँरुका, फिर आगे बाधा, फिर वहाँ से हमारी ओर बढ़ा! अबकि बार उसने कोई हथियार प्रयोग नहीं किया, बल्कि हमारे चारों ओर चक्कर लगाने लगा! फिर मेरी खींची हुई रखा से बाहर खड़े होकर उसने ज़मीन पर बैठते हुए मुझे देखा और बोला, "कौन है तू?" 

मैंने उसका कोई जवाब नहीं दिया! मैंने एक फूल उठाया उसको अलख के ऊपरले जाकर अभिमंत्रित किया और उसकी तरफ फेंक दिया! जैसे ही वो फोल उसकी तरफ आया वो एक झटके में पीछे करीब १० फीट उछला! फिर वहाँ से चिल्लाया, "कौन है 

तू?" 

मै खड़ा हुआ अपना त्रिशूल उठाया और उसकी तरफ किया और बोला, "मै तो बता ही ढूंगा! तू बता तू कौन है?" 

"मै सरदार उमेद सिंह हूँ! अब तू बता, तू कौन है?" उसने बताया! 

"यहाँ जो, तूने, १३५ लोग हैं, उनको काटा, बलि चढ़ाया, कराल के कहने पर! है या नहीं?" मैंने पूछा, 

"ये मेरे गुलाम हैं" उसने कहा, 


   
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श्रीशः उपदंडक
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"तो आज से नहीं रहेंगे उमेद, आज तू भी मारा जाएगा हमेशा के लिए!" मैंने कहा और मै बैठ गया! 

"तू हाडू के डैरेसे है? के रानिया के? वो ही हैं हमारे दुश्मन" वो चिल्लाया! 

"हाडू को कुनबे समेत गुजरे ४०० बरस हो गए, हाँ राजिया का कुनबा आज भी चित्तौरगढ़ में है! उसके लोगों ने ये काम छोड़ दिया था!" मैंने उसको बताया! 

ये हाडू और रानिया अपने समय के धुरंधर तांत्रिक हुआ करते थे, लेकिन आपस में लड़-लड़ कर कुनबे समेत काल हा ग्रास बन गए! 

"तो तू यहाँ क्या करने आया है?" उसने फ़ौरन छलांग लगायी और बायीं तरफ एक बड़े से पत्थर पर बैठ गया! 

"तैरै इन लोगों को आज़ाद करने आया हूँ उमेद!" मैंने कहा, 

अब वो हंसा! बोला, "कराल बाबा आने वाला है, वो निबटेगा तेरे से!" 

"मै भी उसी की प्रतीक्षा कर रहा हूँ उमेद! तुझे अभी तक मैंने इसलिए नहीं मारा की तू अपने स्वयं सामने, अपनी आँखों से कराल का खात्मा देख सके! 

वो पत्थर पर ही बैठा रहा! फिर अचानक खड़ा हुआ! और हमारे पीछे देखने लगा! हमारे पीछे दो-तीन घोड़ों के रुकने की आवाज़ आई! मैंने पीछे नहीं देखा, मेरी अलख भड़क रही थी, मै अलख में सामग्री डाले जा रहा था! वो घुड़सवार पीछे से हट के हमारे सामने आयै! ये कुल तीन लोग थै! दो लोगों ने उतर कर एल लम्बे-चौड़े कद्दावर इंसान को नीचे उतारा! मेरी और उसकी नज़रें आपस में भिड़ीं! लाल-आँखें! गले में अनगिनत अस्थि-माल धारण किये हुए! छोटे नर-मुंडों की माला घुटनों तक धारण किये हुए! हाथों से कंधे तक अस्थियों से सुसज्जित ये था 

ব্র 

হল! 

"वो मेरी तरफ आगे बढ़ा और मेरी महा-भंजन-मंत्र-खचित रेखासे टकराया! टकराते ही उसका मुंड-माल और अस्थि-माल एक 


   
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