वर्ष २०१० पानीपत की...
 
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वर्ष २०१० पानीपत की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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"हाँ, उसी की प्रतीक्षा है" मैंने कहा,

"हाँ वो तीसरे प्रहर में ही आएगा!" उसने बताया,

"तीसरे प्रहर में ही क्यों?" मैंने पूछा,

"वो उस से पहले मुल्तान में रहता है, तीसरे प्रहर यहाँ आता है!" उसने बताया,

"और बाबा डार से क्या सम्बन्ध इसका?" मैंने पूछा,

"बाबा डार का शिष्य है ये!" उसने बताया,

"ओह!" मेरे मुंह से निकला!

"क्रूर और निर्दयी है शम्स बाबा!" उसने बताया,

"वो तो है ही, छह मासूमों की जान ली है उसने" मैंने कहा,

"नहीं!" उसने कहा,

"नहीं?" मैंने हैरत से पूछा,

"छह नहीं, अनगिनत!" उसने कहा,

"ओह! मै समझ गया!" मैंने कहा,

उसका अर्थ था कि शम्स बाबा ने ना जाने कितने मासूमों की जान ली है! मेरी टक्कर इसी शम्स बाबा से थी! मैंने घड़ी देखी, अभी समय था! और जब मैने सर उठाया ऊपर तो वो गायब थी! कोई आने वाला था वहाँ! मैंने शर्मा जी का हाथ पकड़ा और पीछे कर लिया, अँधेरे की तरफ!

तभी डमरू की आवाज आई! जोर जोर से बज रहा था डमरू! और फिर तीन औघड़ प्रकट हुए! तीनों डमरू बजाते हुए! तीनों नग्न! जैसे अभी क्रिया आरम्भ करनी हो! नर-मुंड हाथ में लिए हुए!

उन्होंने डमरू बजाना बंद किया! एक औघड़ आगे आया, उसकी दाढ़ी पेट तक थी, और असंख्य मालाएं धारण किये हुए!

"तू ही है वो?" उसने मुझे त्रिशूल दिखाते हुए कहा!

"कौन वो?" मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"जो छह के हिमायत ले कर आया है? हिमायती है उनका?" उसने पूछा,

"हिमायती! हाँ हूँ मै!" मैंने कहा,

अब उन्होंने अट्टहास लगाया! कान-फोडू अट्टहास!

"तू क्या करेगा?" उसने हँसते हँसते पूछा,

"बाबा शम्स से हिसाब!" मैंने कहा,

"हिसाब? पहले जीवित बचेगा तभी हिसाब करेगा ना!" ये कह कर वो फिर से हंसा!

"कौन मारेगा मुझे?" मैंने पूछा,

"मै मारूंगा तुझे!" उसने कहा और त्रिशूल लेकर आया मेरे पास! और जैसे ही मेरी छाती में मारना चाहाँ एक झटका लगा उसे! ये ताम-विद्या का प्रभाव था! आखिर में वो थे तो प्रेत ही!

"क्या हुआ? कहाँ गयी हंसी!" मैंने व्यंग्य किया!

उन तीनों की बोलती बंद! ताम-विदया जीवित पर कार्य करती है! मृत पर नहीं! यमत्रास-विदया ऐसे ही समय में प्रयोग में लायी जाती है!

वे तीनों सन्न रह गए!

"तू गोरखी है?" उसने पूछा,

मैंने कोई जवाब नहीं दिया!

अब उनमे से एक आगे आया, उसके हाथ में राख थी, उसने मंत्र पढ़ते हुए वो राख मेरी ओर फेंकी! ये मुझे अचेत करने के लिए थी! मैंने षडाम-मंत्र पढ़ा! राख अंगार बन कर भूमि पर जा गिरी! वे हुए अब सन्न!

एक बात और, उनका अट्टहास, बाला, राख आदि उसी को दिखाई देगा जिसके नेत्र कलुष-मंत्र से पोषित होंगे! कलुष-मंत्र उस पारलौकिक द्वार को खोल देता है! आपको ऐसा ही लगता है, जैसा हमारा ये भौतिक संसार! भैंस के ताज़ा चमड़े का आसन बनाया जाता है, उस पर इकतालीस दिनों तक बैठ कर शमशान में साधना होती है, तब जाकर ये मंत्र सिद्ध होता है! सत्व-मार्ग में नेत्र बंद कर और तंत्र-मार्ग में नेत्र खोल कर मंत्रोच्चार किया जाता है! तंत्र में आहुति नहीं चढ़ाई जाती, क्रिया संपन्न होने पर


   
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श्रीशः उपदंडक
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उस मंत्र के ईष्ट को बलि (श्याम अजः) चढ़ाई जाती है! खैर, वे तीनों वहीं खड़े थे, जैसे मूक भाषा में बतिया रहे हों!

वे तीनों असमंजस में खड़े थे! और उनसे अधिक व्याकुल मै! तभी उनमे से एक बोला, "चला जा यहाँ से!"

"चला जाऊँगा, परन्तु अभी नहीं, बाबा शम्स से मिलने के बाद!" मैंने कहा,

"मूरख है तू!" वो बोला,

"ऐसा ही सही!" मैंने कहा,

"मारा जाएगा!" उसने कहा,

"कौन मारेगा?" मैंने पूछा,

"बाबा शम्स" वो बोला,

"अच्छा?" मैंने कहा!

"हाँ, सलामती चाहता है तो चला जा यहाँ से!" वो बोला,

"चला जाऊँगा! शम्स से मिलने के बाद!" मैंने कहा,

"तू गोरखी है?" उसने प्रश्न किया!

"हाँ!" अब मैंने उत्तर दिया!

मेरा उत्तर सुन लोप हुए वे तीनों! अब बाला हाज़िर हुई!

"अब आगे के लिए तत्पर हो जाओ!" उसने कहा,

मैंने घडी देखी, तीसरा प्रहर आरम्भ होने को था!

"मै तत्पर हूँ!" मैंने कहा,

"अब आएगा बाबा शम्स!" उसने कहा,

"यही मैं चाहता हूँ!" मैंने कहा,

"तुमको क्या मिलेगा उस से भिड़ कर?" उसने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"मेरे प्रश्नों के उत्तर!" मैंने कहा,

"उसको ऐसा वैसा नहीं समझना ओ औघड़!" वो बोली,

"मै सुन चुका हूँ!" मैंने कहा, "वो औघड़ों का औघड़ है!" उसने कहा,

"यही तो देखना चाहता हूँ!" मैंने कहा,

अब वो मेरे करीब आई, इतना करीब कि मेरी देह से उसके स्तनाग्र छूने लगे, उसने दोनों हाथ मेरे कंधे पर डाल दिए और मेरे और करीब आ गयी, उसने मुझे मेरे कन्धों से खींचा था! मैंने अपने हाथों से उसको पीछे किया, उसने विरोध किया! वो मुझे जैसे अपने में समा लेना चाहती थी!

"हटो बाला!" मैंने कहा,

"नहीं!" उसने मादकपूर्ण लहजे में कहा,

"हट जाओ!" मैंने कहा और उसका एक हाथ हटाया, जैसे ही हटाया उसने पीछे से मेरे केश पकड़ लिए!

"मान जाओ बाला!" मैंने कहा,

 

"नहीं!" उसने एक मादक मूस्कराहट से कहा, मैंने उसके नेत्र देखें उसके नेत्र-बिम्ब मादक एवं कामुक हो चले थे! उसने मेरा सर आगे धकेला, मुझे एक पल को भयंकर क्रोध आया, फिर क्रोध का दूसरे ही पल शमन कर लिया! विवशता थी!

"बाला, मेरी विवशता समझो तुम!" मैंने कहा,

"नहीं!" उसने कहा,

"मान जाओ!" मैंने कहा,

"नहीं!" उसने रटा रटाया उत्तर दिया!

"मेरे केश छोडो!" मैंने कहा,

उसने केश छोड़ दिए! मेरी छाती पर हाथ फिराया, मेरी मालाओं पर हाथ फिराया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हट जाओ बाला!" मैंने कहा,

अब उसने अपनी एक ऊँगली के नाखून से मेरी छाती पर एक जगह दबाया, काफी तेज, खून छलक आया!

"हट जाओ बाला!" मैंने कहा,

उसने कोई ध्यान नहीं दिया, बस मेरे रक्त को, जो कि उसकी ऊँगली पर लगा था एकटक देखती रही!

अब मै पीछे हटा! धीरे से! उसने मुझे देखा! मुस्कुराई! और फिर एकदम से गायब हुई! अर्थात, कोई आने वाला था!

और मित्रगण! मेरे सामने कम से कम दस-बारह आदमी प्रकट हुए, सब के पाँव भूमि से ऊपर उठे हुए थे! मैंने सभी को देखा! वहाँ, हलिया, तुफंग, एराल और वे सभी थे जिनका मुझसे साक्षात्कार हुआ था! और उनके बीच में खड़ा था एक विशिष्ट आदमी! कम से कम साढ़े छह फीट लम्बा! शरीर पर भस्म लगाए! अस्थियों के भुजबंध बांधे, बलिष्ट देहधारी! उसकी कलाई का भुजबंध ही मेरे गले में आता! छाती पर अस्थिमाल धारण किये हुए, एक हाथ में त्रिशूल, करीब सात फीट लम्बा! बड़ा सर! जटाएं नीचे कंधे तक फैली हुई! क्रोधित मुद्रा में और सुर्ख दहकती हुईं आँखें! एक पल के लिए तो मै भी घबरा गया था! सही कह रही थी बाला! ऐसा वैसा नहीं था ये बाबा शम्स!

"कौन है तू?" वो गरजा!

मै चुप रहा! "जवाब दे? कौन है तू?" उसने पूछा,

"ये जो तेरे साथ खड़े हैं, इन्होने नहीं बताया?' मैंने प्रश्नरूपी उत्तर दिया!

"मुझे जवाब दे!" उसने कहा,

मैंने उसको अपने बारे में बता दिया!

"क्या करने आया है यहाँ?" उसने पूछा,

"हम्म्म्म!" उसने कहा और एक ज़ोरदार ठहाका लगाया!

"हिसाब लेगा! अब जायेगा कैसे जीवित यहाँ से?" उसने चुटकी  मरते हुये कहा!

अब मै हंसा!

"कौन मारेगा मुझे?" मैंने पूछा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"मै मारूंगा तुझे!" उसने धमकाया!

"तू? कायर! मासूमों की जान लेने वाला कायर! तू मारेगा मुझे!" मैंने कहा,

वो भड़का अब!

"आज मरेगा तू!" उसने कहा और अपने कंधे पर टंगे झोले से उसने एक इंसानी हड्डी निकाली

और अभिमन्त्रण कर फेंकी मेरी तरफ! यमत्रास विद्या ने अचूक कार्य किया! हड्डी मुझसे टकराते ही बुरादे में तब्दील हो गयी!

वो भन्नाया अब! झोले से फिर एक और हड्डी निकाली! अभिमंत्रित की और फेंकी मुझ पर! वो हड्डी मेरी पसली पर जा चिपकी! भयानक दर्द हुआ मुझे! वो हड्डी जैसे मेरे अन्दर, मेरी पसलियों में अन्दर घुसने पर आमादा थी! यमत्रास ने रोके रखा उसको और फिर हड्डी छूट के गिर पड़ी नीचे! बुरादा बन गयी!

शम्स के साथ खड़े सभी सन्न रह गए! और शम्स का क्रोध भड़का! शम्स ने फिर झोले में हाथ डाला और कुछ मनके निकाले! उनको अभिमंत्रित किये, और फेंक दिए मुझ पर! 'फम्म-फम्म' की आवाज़ करते हुए वे घूमे और मेरे शरीर से चिपक गए! उनका आकार बढ़ा और मेरा दम घुटा! मैंने एवंग-मंत्र का मनश्च जाप किया, एवं जागृत होते ही वे मनके नीचे गिरे और अंगार बन गायब हो गए! मेरी सांस में सांस आई! तब मैंने शर्मा जी को और काफी पीछे कर दिया, मैंने शम्स हो देखा, वो गुस्से में फुनक रहा था! परन्तु मेरा सामर्थ्य जान गया था वो! और यही मै चाहता था!

"किसलिए आया है तू यहाँ?' उसने पूछा,

"पूछने!" मैंने कहा,

"क्या पूछने?" उसने पूछा,

"यही कि वो छह मासूम क्यों तूने बलि चढ़ा दिए?" मैंने पूछा!

"वो यहाँ डेरे में गंदगी फैलाते थे" उसने बताया,

"इंसान थे वो! और क्या करते?" मैंने पूछा,

"ये मेरे गुरु का डेरा है!" उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हाँ! तो उनकी क्या औक़ात जो गंदगी फैलाएं? कर दिया फैसला उनका!" वो बोला और हंसा, वहाँ खड़े सभी हँसे!

"ठीक है, क्या सही है और क्या गलत, इसका फैसला स्वयं बाबा डार ही करेंगे!" मैंने कहा,

अब वो सभी चुप!

"जा छोड़ देता हूँ तुझे, माफ़ किया, जा!" उसने कहा,

"तू कौन होता है मुझे माफ़ करने वाला?" मैंने पूछा,

"शम्स बाबा हूँ मैं! शम्स!" उसने छाती पर हाथ मार कर कहा!

"जानता हूँ! कायर शम्स बाबा!" मैंने कहा,

"ओ बालक! तेरी जुबान काट कर अलख में डाल दूंगा! भस्म कर दूंगा!" वो दहाड़ा! "जो तेरे बस में हो वो कर ले शम्स!" मैंने कहा और अब जेब से मैंने त्रिपुंड-माल निकाल और अपने उलटे हाथ में चढ़ा लिया! त्रिपुंड-माल देखकर समझ गए वो कि मै भी गोरखी हूँ! मृत्युवरण करूँगा परन्तु पीछे नहीं हटूंगा!

शम्स ने अपना त्रिशूल मेरी ओर किया! जैसे मुझे धमका रहा हो!

"आज तू जीवित नहीं रहेगा बालक!" उसने कहा,

मैंने अब अपना खंजर निकाला, उन्होंने मुझे आँखें फाड़ के देखा! मैंने अपने अंगूठे पर, महाशक्ति-मंत्र का जाप कर एक चीरा लगाया, रक्त छलछला गया! रक्त! तंत्र का आधार! क्यूंकि रक्त से शुद्ध अन्य कोई द्रव्य नहीं! तंत्र की बुनियाद रक्त पर ही खड़ी है! और रक्त! रक्त मेरे पास तो था, इन प्रेत औघड़ों के पास नहीं! मै अब बढ़ा उनकी तरफ! सभी गायब! सिर्फ रहा एक! और वो स्वयं शम्स! वो नहीं हुआ गायब!

"शम्स! तेरे भी जाने का समय आ गया अब!" मैंने कहा,

उसने जैसे ही ये सुना उसने ठहाका लगाया!

"शम्स! शम्स है!" उसने कहा और ठहाका लगाया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"शम्स! तूने उन छह मासूमों को मार कर अच्छा नहीं किया! तुझे इसका हिसाब चुकाना पड़ेगा!" मैंने कहा,

"अच्छा!" वो हंसा!

मुझे क्रोध आया! और मैंने रक्त वाला अंगूठा दबाया, रक्त छलछलाया, मैंने रक्त की वो बुँदे छिड़क दी उसके ऊपर! वो झम्म से गायब हुआ! बस उसका अट्टहास रह गया वहाँ! दायें, बाएं! वो गायब हुआ! अब आपके मन में प्रश्न होगा कि मैंने तो कलुष-मंत्र पोषित किया हुआ है, फिर गायब कैसे हुए वो? मै देख क्यों नहीं पा रहा था? बताता हूँ! वे कहाँ गायब हुए? वे कहीं गायब नहीं हुए! वे छिप गए अपने प्रेत-आवरण में! कलुष-मंत्र इंसानी आँखों को पोषित करती हैं! और कलुष-मंत्र उसी को दिखाता है जो आवरणहीन होता है! प्रेतों के पास छद्म-विद्या होती है! और फिर ये तो औघड़ थे!

वापिस उसी स्थान पर........................

उसका अट्टहास आया! हर तरफ से! मै कभी आगे देखता कभी पीछे! कभी ऊपर और कभी सामने! और तभी प्रकट हुआ वो!

"जा चला जा!" उसने कहा,

"अभी नहीं!" मैंने कहा,

"जान से हाथ धो बैठेगा बालक!" वो बोला,

"मुझे फिक्र नहीं" मैंने कहा,

"तो ठीक है!" उसने कहा,

और अपना त्रिशूल लेकर मेरी ओर आया, एक महा-शक्तिपीठ का नाम लिया और त्रिशूल मेरे पेट में घोंपने के लिये आगे बढ़ा! ताम-विद्या से त्रिशूल अटक गया! शम्स हुआ अब परेशान! उसने त्रिशूल फिर से खींचा और फिर से वार किया! मुझसे एक फीट दूर ही त्रिशूल रुक गया! शम्स भौंचक्का रह गया!

"कोई वार काम नहीं आयेगा शम्स!" मैंने कहा!

"मुझसे खेलता है तू?" उसने गुस्से से कहा,

"अभी कहाँ खेला मै?" मैंने कहा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"तू मुझे जानता नहीं बालक!" उसने कहा,

"जान गया हूँ मै तुझे शम्स!" मैंने कहा,

वो पीछे हटा!

अब मैंने एक मंत्र पढ़ा, अपनी एक ऊँगली पर थूका और फिर जम्भाल-मंत्र से अभिमंत्रित किया, एक चुटकी भस्म ली और फिर फेंक दी शम्स के ऊपर! शम्स को कुछ न हुआ! मेरा मंत्र-प्रहार व्यर्थ हो गया! उसने ये देख ठहाका लगाया!

"बालक! मै शम्स हूँ शम्स!" वो चीखा!

मै अवाक रह गया!

मेरा वो मंत्र-प्रहार व्यर्थ हुआ था तो शायद ही कभी विफल हुआ हो! मेरा अवाक रह जाना कोई आश्चर्य ना था! वो भी प्रबल औघड़ था! वो अपने विश्वास और घमंड पर वहाँ टिका था और मै अपने विश्वास पर! उसके ये शब्द 'शम्स हूँ मै! शम्स' अभी तक मेरे कर्ण-पटल पर गूंज रहे थे! वो क्रोधित भी था और कुपित भी, मैंने जैसे उसको चुनौती के लिए ललकार दिया था! सहसा वो पलटा और हवा में उठा! और बोला, "जा चला जा, छोड़ देता हूँ तुझे ओ बालक!"

"शम्स! तूने मुझे सही नहीं आंका!" मैंने कहा,

"आँका? तू है क्या?" वो हंसा ज़ोर से!

"इतना घमंड!" मैंने कहा,

वो अब और ज़ोर से हंसा!

"चला जा! तू बालक है मेरे सामने!" वो बोला,

अब मैंने एक पोटली से कुछ अस्थियों के टुकड़े निकाले, उनको हाथ में बंद कर अभिमंत्रित किया और फिर फेंक दिए शम्स पर! वो शम्स से टकराए, टकराते ही जैसे कोई गुब्बारा फटा! शम्स की मालाएं गिर गयीं भूमि पर! कलाई-बंध टूट के गिर भूमि पर! शम्स हैरान हुआ! उसने गुस्से में अपना त्रिशूल लहराया हवा में और कुछ मंत्र पढ़े उसने! त्रिशूल उसने मेरी तरफ किया! मै पीछे जा गिरा कुछ फीट दूर, हालांकि चोट तो नहीं लगी, लेकिन उसका प्रहार काफी प्रबल था! मै उठा और एक लकड़ी का टुकड़ा उठाया उसको अभिमंत्रित किया और फेंक दिया शम्स पर! शम्स से टकराते ही वो टुकड़ा


   
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श्रीशः उपदंडक
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भस्म बन कर नीचे गिरा! मेरी आँखें फटी की फटी रह गयीं! "चला जा! छोड़ देता हूँ! क्यों बेकार में मरने पर तुला है?" उसने कहा,

कह तो वो सही रहा था! मै ही अड़ा था!

"शम्स! मुझे मरने का डर नहीं!" मैंने कहा!

वो साधारण तंत्र-क्रियायों से बस में आने वाला नहीं था, ये तो निश्चित था, वो प्रेत था और प्रेत से सम्बंधित तंत्र-क्रियाएं विफल हुए जा रही थीं उसके ऊपर! वो प्रेत था परन्तु एक औघड़ का प्रेत! वो भी मुल्तान का औघड़!

अब मैंने महामन्त्रों का सहारा लिया, मै भूमि पर बैठा, जैसे किसी साधना में बैठते हैं, मैंने हाथों से एक मंत्र हो हवा में बुन, इसे सूक्ष्म-कीलन कहा जाता है! अब मैंने सूक्ष्म-कीलन करते हुए फिर से अस्थि के टुकड़े निकाले और अपने सामने रख दिए, शम्स ये देख सकपकाया!

"शम्स! बहुत खेल हुआ! अब देख!" मैंने कहा,

"चला बाण!" वो गर्राया

मैंने अब अस्थि का एक टुकड़ा उठाया, और फेंक मारा सामने खड़े शम्स पर! वो अस्थि का टुकड़ा जैसे ही उसको लगा वो घूमा और कलाबाजियां खाने लगा! वहाँ पर पड़ी मिटटी उड़ने लगी! उसने संतुलन बनाया और उड़ गया ऊपर! उसने वो अस्थि का टुकड़ा हटा के फेंक दिया! लेकिन अब तक वो टुकड़ा अपना काम कर चुका था! शम्स फिर से नीचे आया और मेरे सामने खड़ा हो गया!

"जान से मार दूंगा तुझे अब! अब नहीं छोडूंगा तुझे!" उसने कहा और गाली-गलौज करता हुआ मंत्र पढता रहा! उसने अपने झोले से कुछ निकाला, और उसको मुट्ठी में बंद कर के हवा में तीन बार लहराया! ये मुझे बाघ-नख सा लगा! उसने वो बाघ-नख मुझपर फेंका, वो मेरे सामने आते ही गिर गया और राख हो गया! वो यहीं नहीं ठहरा! वो मुझ पर ना जाने क्या क्या अभिमंत्रित वस्तुएं फेंकता रहा,लेकिन सभी का यही हाल हुआ! गुस्से में भनभना गया शम्स! "बस शम्स?" मैंने पूछा,

वो गुस्से में मुझे घूरता रहा!

"बस?" मैंने हंस के कहा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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वो हवा में उड़ा और ठहर गया वहाँ! मै निरंतर उसको देखता रहा! वो फिर से नीचे आया! अब मैं खड़ा हुआ! उसने अपने त्रिशूल के फाल पर हाथ रखा और फिर बोला, "क्या चाहता है?"

"तुम लोग जाओ यहाँ से" मैंने कहा,

"असंभव!" वो चिल्लाया,

"क्यों?" मैंने पूछा,

"ये मेरे गुरु का डेरा है" उसने कहा,

"तो गुरु को भी ले जा यहाँ से" मैंने कहा,

"जुबान संभाल के बात कर!" उसने मुझे धमकाया!

"जुबान संभाल कर तू बात कर शम्स!" मैंने कहा,

"चल बहुत हुआ, अब निकल जा यहाँ से!" वो बोला,

"नहीं शम्स, तुम लोग निकलोगे यहाँ से!" मैंने कहा,

"भूल जा! हम यहाँ थे, हैं और रहेंगे!" उसने त्रिशूल लहरा के बोला!

"अब नहीं रहोगे!" मैंने कहा,

"तू रोकेगा?" उसने पूछा,

"हाँ!" मैंने कहा,

"क्या करेगा?" वो बोला,

"ब्रह्म-कीलन! इस स्थान को कील दूंगा मै!" मैंने कहा,

अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे! भौंचक्का रह गया शम्स!

"उस से पहले तेरी गरदन धड से अलग कर दूंगा मै!" उसने गुस्से से कहा!

वो नीचे आया भूमि पर! बिलकुल मेरे सामने, सामने आते ही मेरा गला जैसे ही पकड़ा, विद्युतीय-आवेश जैसा संचार हुए, उसने फ़ौरन हाथ पीछे हटाया!

"तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता शम्स!" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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वो खिसियाया अब!

"तुम सबको यहाँ दफ़न कर दूंगा! युगों युगों के लिए! सारी कहानी समाप्त!" मैंने कहा,

"असंभव!" वो बोला!

"संभव है ये शम्स! और तुझ जैसा घृणित और कायर प्रेत का दफ़न होना ही उचित है, ना जाने कितने और मासूमों को और मारेगा तू!" मैंने कहा,

अब वो क्या करता! चल उसकी रही नहीं थी!

"हार मान ले शम्स!" मैंने कहा,

"हार?" वो हंसा अब!

'अब भी कोई कसर है?" मैंने पूछा,

"बताता हूँ!" उसने कहा

वो हवा में उड़ा और फिर मंत्रोच्चार किया!

कुछ ही पलों में मुझपर कीड़े-मकोड़ों की बौछार हुई! मुझसे टकराते ही वो 'भक्क' की आवाज़ करते हुए भस्म हो जाते थे!

"माया नहीं चलने वाली शम्स!" मैंने कहा,

अगले ही पल मोटे मोटे पत्थर बरसे, वो भी राख हो गए! फिर उसने धधकते हुए लकड़ी के कोयले बरसाए, वो भी नीचे गिर पड़े! ताम-विद्या अपने कार्य में अचूक साबित हो रही थी!

और अगले ही क्षण वो लोप हो गया! ये उसकी कोई चाल थी, ऐसा लगा मुझे! मैं वहीं देखता देखता रहा!

"शर्मा जी, आप और पीछे खड़े हो जाइये!" मैंने कहा, वे पीछे हटे!

अधिक समय नहीं बीता था, मात्र कुछ क्षण! प्रकट हुआ बाबा शम्स! साथ में उसके दो और औघड़ भी प्रकट हुए! वे दोनों जल्लाद जैसे लग रहे थे! हाथ में फरसे और भारी भारी कड़े पहने! शम्स ने ठहाका लगाया! वे दोनों भी हँसे!

"आ गया शम्स!" मैंने व्यंग्य से कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हाँ! आ गया!" वो बोला,

"और साथ में दो रखवाले भी ले आया!" मैंने कहा,

"तेरी मौत के परकाले हैं ये!" वो बोला और खिलखिला के हंसा!

"परकाले! वाह शम्स!" मैंने कहा,

वे दोनों धम्म से कूदे मेरे सामने! उनके बाल इतने सघन थे कि मै उनका चेहरा नहीं देख पा रहा था! वे मेरी तरफ बढे और अपने अपने फरसे उठाये! उनको यमत्रास की गंध आई, पीछे हटे! उन दोनों ने शम्स को देखा और शम्स ने उनको!

"कुछ नहीं होगा शम्स!" मैंने कहा,

शम्स नीचे आया!

उसने हाथ ऊपर किया और एक झटके से मेरी ओर किया! आग का गोला प्रकट हो गया हवा में से! मैंने तुरंत औंधा-मंत्र पढ़ दिया, आग का गोल गायब हो गया उसी क्षण! शम्स ने फिर से हाथ झटका, फिर से शूल से उपन्न हुए, औंधे मंत्र ने उन्हें भी नष्ट कर दिया! शम्स अब हुआ बेबस!

"मान जा शम्स!" मैंने कहा,

अब शम्स लाचार सा हुआ! वो मौत के परकाले तो लोप हो गए!

"सच सच बता क्या चाहता है तू?" शम्स ने पूछा,

"तुम लोग चले जाओ यहाँ से!" मैंने कहा,

"और ना जाएँ तो?" उसने पूछा,

"तो विवश होकर मुझे ये स्थान कीलित करना होगा" मैंने कहा,

वो सोच में डूबा! डूबा कि किस से पाला पड़ गया!

"देख! ये हमारा स्थान है!" उसने कहा,

"मैं जानता हूँ, ये है तुम्हारा स्थान!" मैंने कहा,

"फिर?" उसने मुझे पूछा,


   
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"तुम्हारा राज समाप्त हो गया शम्स! अब यहाँ इंसानी आबादी है!" मैंने कहा,

"मुझे कुछ नहीं मालूम!" वो बोला,

"तो जान ले! तू भी बंध जाएगा कीलन में!" मैंने कहा,

उसने समस्या की गहराई मापी!

"तू ऐसा क्यों कर रहा है?" उसने पूछा,

"तूने वो छह मासूम इंसान क़त्ल किये, किसलिए?" मैंने पूछा,

"मै जो करूँगा, करूँगा!" उसने दहाड़ के कहा!

"नहीं शम्स!" मैंने कहा,

"सुन? क्या चाहिए तुझे? मुंह खोल!" वो बोला,

"कुछ नहीं चाहिए मुझे" मैंने कहा,

"कुछ तो चाहिए ही होगा?" उसने लाग-लपेट की!

"नहीं कुछ नहीं!" मैंने कहा,

"दौलत? दौलत चाहिए? हाँ! वो तो चाहिए ही, क्यों?" वो बोला,

"नहीं चाहिए!" मैंने कहा,

"घड़े भरे पड़े हैं! घड़े!" उसने कहा,

"नहीं चाहिए!" मैंने कहा,

अब सौदेबाजी का दौर आरम्भ हो चुका था!

"इतनी कि तूने देखी भी ना होगी!" उसने ताली मार के कहा,

"नहीं चाहिए मुझे!" मैंने कहा,

"तेरी सात पुश्तें भी नहीं खा पाएंगी!" उसने कहा,

"कोई ज़रुरत नहीं!" मैंने कहा,


   
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"जरूरत है!" उसने अब मेरे सारे परिवार वालों के नाम बोले, एक एक नाम पर बोलता जाता 'इसको ज़रुरत है!"

"कोई ज़रूरत नहीं है" मैंने फिर से कहा,

वो चुप हुआ!

"शम्स! चले जाओ यहाँ से वापिस, मुल्तान!" मैंने कहा,

"सुन! औरत चाहिए तुझे?" उसने पूछा, हँसते हुए!

"नहीं चाहिए मुझे कुछ भी!" मैंने  कहा,

उसने चुटकी मारी और दो अत्यंत सुन्दर स्त्रियाँ प्रकट हुई! वैसी ही, जैसी बाला थी! गज़ब की सुन्दर! इठलाती हुईं!

"ले इनको लेजा! और भी हैं!" उसने कहा,

वे औरतें मेरी तरफ बढी! मैंने हाथ आगे कर मना कर, रोक दिया उनको!

"नौकरानी बना के रखना इनको!" शम्स बोला!

"मुझे नहीं चाहिए!" मैंने कहा,

उसने फिर से चुटकी मारी, दो और सुंदरियां प्रकट हुईं!

"ले! दो और नौकरानी!" उसने कहा,

"नहीं! नहीं चाहिए!" मैंने कहा,

"ले ले! जिंदगी भर अलख उठाएगा तो भी नहीं ले पायेगा एक!" उसने कहा,

"मुझे कोई आवश्यकता नहीं!" मैंने कहा,

उसे क्रोध आया अब! उसने चुटकी बजाई और वो चार औरतें गायब हुईं!

"अच्छा सुन! सूक्ष्म-वाहिनी! नाम सुना है?" उसने कहा,

"हाँ सुना है!" मैंने कहा,

"वो दे देता हूँ तुझको!" उसने कहा,


   
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