“क्योंकि इसमें मोर हैं और बंजारों के बीजक में मोर नहीं होते, वहाँ हंस होते हैं” मैंने बता दिया!
उसके चेहरे का रंग बदला!
मैंने देखा!
“और ये कुआँ?” उसने पूछा,
“बिना घिरनी का है, इसलिए ये भी नहीं” मैंने कहा,
“कमाल है!” उसने कहा,
“कैसे कमाल?” मैंने पूछा,
“आज तक जिसने भी देखा यही कहा कि ये बंजारों का है!” वो बोला,
“अगर बंजारों का है तो इसमें कोई अस्थिदण्ड नहीं!” मैंने कहा,
फिर से चेहरे पर रंग आये गये!
अब बात कुछ कुछ समझ आने लगी थी! सुनील यहाँ धन के चक्कर में थे! कि यहाँ कोई धन है बंजारों का!
“एक बात कहूं सुनील?” मैंने कहा,
“जी, कहिये” वो बोला,
“यहाँ कोई धन नहीं” मैंने कहा,
अब तो साफ़ पता चल गया कि उसको कैसा लगा!
“किसने बताया कि यहाँ धन है?” मैंने पूछा,
“जी किसी ने नहीं” उसने बीजक को देखते हुए कहा,
“तुम इस चक्कर में कैसे फंसे?” मैंने पूछा,
मेरा प्रश्न उसे अच्छा नहीं लगा!
“चलें वापिस?” उसने कहा,
“हाँ चलो” मैंने कहा,
और वो बेपरवाह सा आगे आगे चलने लगा! और हम पीछे पीछे!
बड़ी मुश्किल से रास्ता काटा!
और गाड़ी में बैठ गए!
पिंडलियों में खिंचाव सा आ गया!
लगा जैसे पहाड़ चढ़कर आ रहे हैं!
मुख्य सड़क तक आये और अब गाड़ी ने रफ़्तार पकड़ी!
“आप कहाँ से आये हैं?” उसने पूछा,
“दिल्ली से” मैंने पूछा,
“कभी बीजक हल किये हैं?” उसने पूछा,
“ये तो कटकनाथ से पूछना” मैंने कहा,
“माफ़ कीजिये यदि बुरा लगा हो तो” उसने कहा,
“नहीं, बुरा नहीं लगा मुझे” मैंने कहा,
अब एक क़स्बा सा आया!
“कुछ चाय-ठंडा लेंगे?” उसने पूछा,
“ले लेंगे” मैंने कहा,
गाड़ी से उतरे हम और एक कोठरी सी में घुस गये!
उसने चाय के लिए कह दिया!
चाय आ गयी और हम चाय पीने लगे!
चायवाले का हिसाब किया और हम फिर चले वापिस!
जहां ठहरे थे, वहीँ आ गए वापिस! थक गए थे सो अब आराम से लेट गए, अब सुनील ने शाम को आना था!
नींद लग गयी!
उठे तो चार बजे थे!
“गुरु जी?” शर्मा जी ने टोका,
“हाँ?” मैंने पूछा,
“यहाँ कोई गड़बड़ चल रही है पक्का!” वे बोले,
“लगता तो है” मैंने कहा,
“आप कटकनाथ से पूछो” वे बोले,
“हाँ” मैंने कहा और कटकनाथ से बात करने के लिए फ़ोन लगाया, फ़ोन लग गया, उठाया कटकनाथ ने, और जब मैंने संदेह व्यक्त किया तो कटकनाथ ने कहा कि वहाँ धन भी है गड़ा हुआ, बस यही बात है, और कुछ नही!
सब्र करना पड़ा मुझे!
मैंने शर्मा जी को सारी बात से अवगत करा दिया!
“तो ये सुनील धन के लिए लगा है?” वे बोले,
“हाँ” मैंने कहा,
“अब समझ आ गया!” वे बोले,
मैं मुस्कुराया!
“और ये बीजक क्या कहता है?” उन्होंने पूछा,
“बहुत ही गूढ़ है, आज देखूंगा इसको, लगता है जानबूझकर भरमाने के लिए लगाया गया है” मैंने कहा,
”सम्भव है” वे बोले,
“ये बंजारों का नहीं?” उन्होंने पूछा,
“नहीं, क़तई नहीं” मैंने कहा,
“अच्छा!” वे बोले,
और मैंने वो कागज़ अब निकाला!
एक दूसरे कागज़ पर अब विश्लेषण के लिए जगह सीमित कर ली, तीन सौ पैंसठ बिंदियाँ और छह में छेद, अर्थात? छह में छेद, क्या ऋतुएं? छह ऋतुएं? ठीक है, मान लिया छह ऋतुएं, अब माह की जांच कैसे हो? उसके लिए मैंने बिंदियों के ऊपर बने चिन्ह देखे, खूब माथापच्ची की तो एक दरांती का निशान मिला! अर्थात फसल काटने का समय, यदि आंकलन करो तो रबी और खरीब की फसलें हुआ करती थीं तब, या होती होंगी, गेंहू की कटाई? मान लिया, ग्रीष्म ऋतु? कुछ और निशान देखें जाएँ! हाँ! मिल गया! होलिका-दहन! जिसे मै अलख समझ रहा था वो होलिका-दहन था! तो ये इस ऋतु और दिवस में यहाँ गाड़ा गया था! होली के पर्व पर! सुनिश्चित हो गया, उस दिन पूनम का चाँद था उस स्थान पर! हाँ ये किसी होली के पर्व पर यहाँ गाड़ा गया था! अब प्रश्न ये कि किस वर्ष? अब वहाँ संख्याएँ अंकित थीं! बहत्तर, चौबीस, चौंसठ, इक्कीस और तिरेसठ!
अजीब सा अंकन था! क्रम में नहीं थीं! मैंने क्रम में लगाया! इक्कीस, चौबीस, तिरेसठ, चौंसठ और बहत्तर!
फिर घटते क्रम में लगाया! सर घूम गया! कोई अर्थ नहीं निकला! घटत-बढ़त की तो भी कुछ नहीं निकला! बड़ा उलझा हुआ बीजक था! वर्ष निकालना ज़रूरी था! बहुत दिमाग लगाया मैंने वर्ष निकालने में, लेकिन नहीं निकाल पाया! बहुत जटिल संख्याएँ थीं! मैंने कमसे कम एक दिन तो निकाल लिया था, सिद्धेश और जयेश तो वो भी नहीं निकाल पाये थे!
मैंने कागज़ उठाकर रख दिया एक तरफ! अब बाद में दिमाग चिपकाना था इस से!
शाम हो गयी थी! हम छत पर चले गए, लेकिन वो संख्याएँ मेरे दिमाग में खो-खो खेल रही थीं! कुछ अर्थ नहीं निकल पा रहा था! और गणितज्ञ मै तो क़तई नहीं! तभी फ़ोन आया सुनील का, वो खाने पीने का सामान ला रहा था और उसके साथ एक औरत भी आ रही थी मिलने के लिए!
ये थी अजीब बात!
कौन औरत?
क्या काम उसे?
चलो आने दो, देखते हैं क्या बात है!
“क्या हुआ गुरु जी?” शर्मा जी ने पूछा,
“कोई औरत आ रही है मिलने” मैंने कहा,
“ये साला धन का ही चक्कर है!” वे बोले,
“पहले उस से बात कर लें, देखते हैं” मैंने कहा,
हम नीचे आ गये कक्ष में!
और थोड़ी ही दे में सामान के साथ सुनील आ गया, साथ में एक सजी-धजी औरत भी थी, उम्र होगी कोई तीस बरस उसकी!
उसने नमस्ते की, हमने भी की!
“गुरु जी, ये हैं मीनाक्षी जी और मीनाक्षी जी, ये हैं गुरु जी, जो दिल्ली से आये हैं कटकनाथ बाबा के कहने पर” उसने हमारा परिचय करवा दिया!
वो वहीँ कुर्सी पर बैठ गयी, सुनील भी बैठ गया!
“सुनील?” मैंने कहा,
“जी?” वो चौंका!
“क्या काम है इनको हमसे?” मैंने पूछा,
“ये तो खुद ही बताएंगी” वो बोला,
मैंने उस औरत को देखा अब,
“कहिये?” मैंने पूछा,
“गुरु जी, जहां आप गए थे आज, वहाँ जो बीजक है, उसका पता मुझे एक औघड़ बाबा ने बताया था” उसने कहा,
औघड़ बाबा?
कौन बाबा??
इनको बताया था???
तो कटकनाथ????
“क्या बताया था?” मैंने पूछा,
“मै वाराणसी गयी हुई थी, मेरे पति के गुरु जी का आश्रम है वहाँ, वहाँ मुझे एक औघड़ बाबा मिले थे, नाम था धौमन बाबा, उन्होंने मुझे इस बीजक के बारे में बताया था कि धौलपुर के इस स्थान पर एक बीजक गड़ा है, जहां साधकों का स्वर्ग है और धन का अम्बार हैं!”
“अच्छा!” मैंने कहा,
“ये आज से पांच साल पहले के बात है” उसने बताया,
“और तब से कोई पढ़ नहीं पाया उस बीजक को, और धन अभी भी वहीँ गड़ा है, हैं न?” मैंने पूछा,
“हाँ जी, कोई नहीं पढ़ पाया” वो मुस्कुराते हुए बोली,
कुटिल हंसी!
“तो आपको धन चाहिए!” मैंने कहा,
“सभी को चाहिए!” उसने हँसते हुए कहा,
हाँ चाहिए! परन्तु सभी को नहीं!
“सुनील, आप शुरू करो? गुरु जी का समय हो रहा है?” वो बोली,
मैंने देखा, सुनील पर वो हुक़म चला रही थी, सुनील कुछ कह नहीं पा रहा था!
सुनील ने अब खाना निकालना शुरू किया, दो मदिरा की बोतल भी! और चार गिलास!
मै समझ गया कि मीनाक्षी भी सेवन करती है मदिरा का!
“आप दिल्ली से हैं?” उसने पूछा,
“हाँ” मैंने कहा,
“अच्छा” वो बोली,
अब तक एक एक पैग बना दिया था सुनील ने, हमने अपने अपने गिलास उठाये, साथ में कुछ खाया और पैग खींच लिया! जिस तरीक़े से मीनाक्षी ने पैग लिया और पिया, साफ़ पता चलता था कि वो अभ्यस्त है!
आज कुछ बातें खुल जानी थीं!
यहाँ पर अब औघड़ का नशा करना था!
एक दूसरे कागज़ पर अब विश्लेषण के लिए जगह सीमित कर ली, तीन सौ पैंसठ बिंदियाँ और छह में छेद, अर्थात? छह में छेद, क्या ऋतुएं? छह ऋतुएं? ठीक है, मान लिया छह ऋतुएं, अब माह की जांच कैसे हो? उसके लिए मैंने बिंदियों के ऊपर बने चिन्ह देखे, खूब माथापच्ची की तो एक दरांती का निशान मिला! अर्थात फसल काटने का समय, यदि आंकलन करो तो रबी और खरीब की फसलें हुआ करती थीं तब, या होती होंगी, गेंहू की कटाई? मान लिया, ग्रीष्म ऋतु? कुछ और निशान देखें जाएँ! हाँ! मिल गया! होलिका-दहन! जिसे मै अलख समझ रहा था वो होलिका-दहन था! तो ये इस ऋतु और दिवस में यहाँ गाड़ा गया था! होली के पर्व पर! सुनिश्चित हो गया, उस दिन पूनम का चाँद था उस स्थान पर! हाँ ये किसी होली के पर्व पर यहाँ गाड़ा गया था! अब प्रश्न ये कि किस वर्ष? अब वहाँ संख्याएँ अंकित थीं! बहत्तर, चौबीस, चौंसठ, इक्कीस और तिरेसठ!
अजीब सा अंकन था! क्रम में नहीं थीं! मैंने क्रम में लगाया! इक्कीस, चौबीस, तिरेसठ, चौंसठ और बहत्तर!
फिर घटते क्रम में लगाया! सर घूम गया! कोई अर्थ नहीं निकला! घटत-बढ़त की तो भी कुछ नहीं निकला! बड़ा उलझा हुआ बीजक था! वर्ष निकालना ज़रूरी था! बहुत दिमाग लगाया मैंने वर्ष निकालने में, लेकिन नहीं निकाल पाया! बहुत जटिल संख्याएँ थीं! मैंने कमसे कम एक दिन तो निकाल लिया था, सिद्धेश और जयेश तो वो भी नहीं निकाल पाये थे!
मैंने कागज़ उठाकर रख दिया एक तरफ! अब बाद में दिमाग चिपकाना था इस से!
शाम हो गयी थी! हम छत पर चले गए, लेकिन वो संख्याएँ मेरे दिमाग में खो-खो खेल रही थीं! कुछ अर्थ नहीं निकल पा रहा था! और गणितज्ञ मै तो क़तई नहीं! तभी फ़ोन आया सुनील का, वो खाने पीने का सामान ला रहा था और उसके साथ एक औरत भी आ रही थी मिलने के लिए!
ये थी अजीब बात!
कौन औरत?
क्या काम उसे?
चलो आने दो, देखते हैं क्या बात है!
“क्या हुआ गुरु जी?” शर्मा जी ने पूछा,
“कोई औरत आ रही है मिलने” मैंने कहा,
“ये साला धन का ही चक्कर है!” वे बोले,
“पहले उस से बात कर लें, देखते हैं” मैंने कहा,
हम नीचे आ गये कक्ष में!
और थोड़ी ही दे में सामान के साथ सुनील आ गया, साथ में एक सजी-धजी औरत भी थी, उम्र होगी कोई तीस बरस उसकी!
उसने नमस्ते की, हमने भी की!
“गुरु जी, ये हैं मीनाक्षी जी और मीनाक्षी जी, ये हैं गुरु जी, जो दिल्ली से आये हैं कटकनाथ बाबा के कहने पर” उसने हमारा परिचय करवा दिया!
वो वहीँ कुर्सी पर बैठ गयी, सुनील भी बैठ गया!
“सुनील?” मैंने कहा,
“जी?” वो चौंका!
“क्या काम है इनको हमसे?” मैंने पूछा,
“ये तो खुद ही बताएंगी” वो बोला,
मैंने उस औरत को देखा अब,
“कहिये?” मैंने पूछा,
“गुरु जी, जहां आप गए थे आज, वहाँ जो बीजक है, उसका पता मुझे एक औघड़ बाबा ने बताया था” उसने कहा,
औघड़ बाबा?
कौन बाबा??
इनको बताया था???
तो कटकनाथ????
“क्या बताया था?” मैंने पूछा,
“मै वाराणसी गयी हुई थी, मेरे पति के गुरु जी का आश्रम है वहाँ, वहाँ मुझे एक औघड़ बाबा मिले थे, नाम था धौमन बाबा, उन्होंने मुझे इस बीजक के बारे में बताया था कि धौलपुर के इस स्थान पर एक बीजक गड़ा है, जहां साधकों का स्वर्ग है और धन का अम्बार हैं!”
“अच्छा!” मैंने कहा,
“ये आज से पांच साल पहले के बात है” उसने बताया,
“और तब से कोई पढ़ नहीं पाया उस बीजक को, और धन अभी भी वहीँ गड़ा है, हैं न?” मैंने पूछा,
“हाँ जी, कोई नहीं पढ़ पाया” वो मुस्कुराते हुए बोली,
कुटिल हंसी!
“तो आपको धन चाहिए!” मैंने कहा,
“सभी को चाहिए!” उसने हँसते हुए कहा,
हाँ चाहिए! परन्तु सभी को नहीं!
“सुनील, आप शुरू करो? गुरु जी का समय हो रहा है?” वो बोली,
मैंने देखा, सुनील पर वो हुक़म चला रही थी, सुनील कुछ कह नहीं पा रहा था!
सुनील ने अब खाना निकालना शुरू किया, दो मदिरा की बोतल भी! और चार गिलास!
मै समझ गया कि मीनाक्षी भी सेवन करती है मदिरा का!
“आप दिल्ली से हैं?” उसने पूछा,
“हाँ” मैंने कहा,
“अच्छा” वो बोली,
अब तक एक एक पैग बना दिया था सुनील ने, हमने अपने अपने गिलास उठाये, साथ में कुछ खाया और पैग खींच लिया! जिस तरीक़े से मीनाक्षी ने पैग लिया और पिया, साफ़ पता चलता था कि वो अभ्यस्त है!
आज कुछ बातें खुल जानी थीं!
यहाँ पर अब औघड़ का नशा करना था!
अब कुर्सी से उठ कर मीनाक्षी हमारे बिस्तर पर आ बैठी थी, चौकड़ी मार! अब हम ऐसे बैठे थे जैसे चार जुआरी बैठा करते हैं! और वैसे वहाँ जुआ ही चल रहा था, जिसे मई नहीं समझ पा रहा था, मेरे इर्दगिर्द कुछ न कुछ तो चल ही रहा था और बाबा कटकनाथ को इस बारे में निःसंदेह पता था, परन्तु मुझे बताया नहीं गया था! मीनाक्षी अच्छे खासे बदन वाली औरत थी, लम्बी ठाड़ी, बनठन के रहने वाली, उसकी सज-धज से पता चलता था कि उसकी महत्वकांक्षाएं बहुत ऊंची हैं!
“आप यहीं से हैं मीनाक्षी जी?” मैंने पूछा,
“नहीं गुरु जी, मैं जयपुर से हूँ” उसने बताया,
“अच्छा, और आपके पति महोदय?” मैंने पूछा,
“वे जयपुर में ही हैं” वो बोली,
“क्या करते हैं आपके पति महोदय?” मैंने पूछा,
“उनका अपना एक छोटा सा व्यवसाय है वस्त्रों का” वो बोली,
“अच्छा” मैंने कहा,
“और सुनील आप?” अब मैंने सुनील से पूछा,
“मैं भी जयपुर से ही हूँ गुरु जी” वो बोला,
“अच्छा सुनील!” मैंने कहा,
“क्या आपके पति महोदय को पता है कि आप इस धन के चक्कर में लगी हो?” मैंने पूछा मीनाक्षी से!
“हाँ गुरु जी!” वो बोली,
अब तक दूसरा पैग बना दिया था सुनील ने, हमने अपना अपना पैग उठाया और खींच लिया!
“और सुनील, आप कब से लगे हो?” मैंने पूछा,
“जी मैं दरअसल विजय जी, मीनाक्षी जी के पति महोदय व्यवसाय में हिस्सेदार हूँ, तो मैं भी तभी से लगा हूँ जब से विजय जी और मीनाक्षी जी लगी हैं” उसने बताया,
अब मैं समझा!
ये तो खिचड़ी नहीं खिच्चड़ था!
“तो किसी ने ये नहीं कहा कि या मशविरा नहीं दिया कि उस बीजक को उखाड़ दिया जाए और नीचे खुदाई की जाए?” मैंने पूछा,
अब जैसे मैंने दुखती रग पर हाथ लगा दिया उनकी!
“किया था, मेरा मतलब कोशिश की थी, लेकिन ऐसा करने से हमारा बहुत नुक्सान हुआ” बोली मीनाक्षी,
“नुक्सान हुआ? कैसे?” मैंने पूछा,
“जब बाबा धौमन ने बातया था, तो हमने यहाँ बाबा बलिया के साथ एक बार खुदाई करने की सोची थी, तब हमारे साथ यहाँ मेरे पति भी थे लेकिन….” इतना बोल चुप हुई वो,
“क्या हुआ था?” मैंने पूछा,
“जिस दिन हम यहाँ आये और बाबा बलिया ने काम करना शुरू किया, मेरे पति के फ़ोन पर एक फ़ोन आया, कि उनके दफ्तर में आग लग गयी, गोदाम दूसरी जगह था, वहाँ भी आग लग गयी, बाबा बलिया को किसी ने उठा के फेंक दिया, भगदड़ मच गयी, मजदूर भाग छूटे, यहाँ ऐसे आवाज़ें आयीं जैसे कई सांप एक साथ फुफकार रहे हों! हम भी भाग लिए!” आँखें चौड़ी करते हुए कहा मीनाक्षी ने!
“और मेरी पत्नी का उसी समय एक एक्सीडेंट हुआ, वो आज तक नहीं चल पाती है, उसका इलाज हो रहा है, मेरा सारा पैसा इसके इलाज में लग गया, अब हाल ये है कि जिनकी मैं मदद किया करता था अब उनकी मदद ले रहा हूँ, पत्नी की सरकारी नौकरी है, सो जो मिलता है उसमे घर का गुजारा होता है, बड़ी मुश्किल से” सुनील ने कहा,
अब आयी बात समझ में!
इसलिए मुझे यहाँ भेजा!
यहाँ जो शक्ति है उस से टकराने!
बेवजह बैर मोल लेने!
अब आया मुझे कटकनाथ बाबा पर गुस्सा! झूठ बोला उन्होंने मुझसे! मैंने उनका मान-सम्मान किया था और उन्होंने ये तथ्य छिपाए मुझसे!
“तो आप सभी को अब धन चाहिए, इसीलिए!” मैंने पूछा!
“आप समझ सकते हैं” मीनाक्षी ने कहा,
समजह तो मैं गया ही था! पर ये मूर्ख ये नहीं जानते थे कि अगर दुबारा उस शक्ति को छेड़ा गया तो क्या होगा! इस बार इनका अंत निश्चित है! भला होता ये सीख लेते और क्षमा मांगते! लेकिन धन की चमक ने आँखों पर पर्दा जो डाल दिया था! दीखता कैसे!
तभी मीनाक्षी का फ़ोन बजा!
फ़ोन उसके पति का था!
उसने उठाया, बातें कीं और मुझे देते हुए बोली,” मेरे पति है, कृपया बात कर लीजिये”
मैंने फ़ोन लिया, नमस्कार हुई विजय से और बातें हुईं, कुल मिलकर उसने अर्ज़ किया कि किसी भी तरह से ये काम मैं कर दूँ, वे अब जैसे बर्बादी की कगार पर खड़े हैं और ये अत्यंत आवश्यक है! मैंने हाँ-हूँ कहा लेकिन वायदा नहीं किया!
अब फिर से पैग बना और हमने पी लिया!
“मीनाक्षी जी? ये किसने बताया कि वहाँ धन है?” मैंने पूछा,
मदिरा असर दिखाने लगी थी! उसका चेहरा लाल हो गया था!
“बाबा धौमन ने” उसने कहा,
“क्या आपने जांच की गुरु जी?” सुनील ने पोछा,
“अभी नहीं” मैंने कहा,
“मुझे न जाने क्यों ऐसा विश्वास हो रहा है कि ये काम आप ही करेंगे!” उसने मेरे घुटने पर हाथ रखते हुए कहा,
मैंने हाथ हटा दिया उसका!
“गुरु जी, कर दीजिये ये काम!” सुनील ने कहा,
“देखते हैं कि वहाँ धन है भी या नहीं सुनील जी!” मैंने कहा,
“वहाँ है! पक्का!” मीनाक्षी ने कहा!
मूर्ख!
महामूर्ख!
ये लोग धन के पीछे पड़े हुए थे! असलियत कोई नहीं जानता था, या जानना नहीं चाहता था! ये लोग नुक्सान भी उठाये बैठे थे, भरपाई चाहते थे उसकी! यानि कि गलती भी करें और दोष भी न आये! हैरानी की बात थी!
“ठीक है, मैं अभी उस बीजक की जांच करूँगा फिर बताऊंगा आपको” मैंने कहा,
“कब तक कर लेंगे?” सुनील ने पूछा,
मुझे गुस्सा सा आ गया, उसने ऐसे पूछा था कि जैसे मैं नौकरी कर रहा होऊं उसकी!
“पहले बीजक तो पढ़ लूँ?” मैंने कड़वे लहजे में कहा,
“जी, आप समय ले लें, कोई बात नहीं” अब मीनाक्षी ने भांपते हुए कहा,
“मीनाक्षी जी, बीजक तोड़ना इतना सरल कार्य नहीं, हो सकता है कि मैं असफल भी हो जाऊं” मैंने चेताया,
“मैं जानती हूँ” वो बोली,
अब तक एक बोतल ख़तम हो चुकी थी, अब दूसरी खुलने वाली थी!
खुल गयी!
पैग बने नए और हमने अपने अपने पैग उठा लिए, मीनाक्षी ने भी अपना पैग दो बार में खाली कर दिया!
“वैसे बाबा धौमन ने बताया था कि वहाँ अकूत दौलत है” वो बोली,
“तो बाबा धौमन खुद क्यों नहीं आया निकालने?” मैंने पूछा,
अब चुप वो!
सुनील भी चुप!
“एक पागल आदमी ने आपको कहा और आपने मान लिया?” मैंने पूछा,
“जी पागल तो नहीं है वो” सुनील ने बचाव किया धौमन बाबा का!
“देखिये, कहना और करना, दोनों बड़े ही अलग और मुश्किल काम हैं” मैंने कहा,
“हाँ ये तो है” वो बोला,
अब एक और पैग!
ले लिया गया!
अब मीनाक्षी को नशा होने लगा, वो कमर टिका कर बैठ गयी दीवार से! मैंने भांप लिया, हाँ, अब सुनील भी नशे में झोंक लेने लगा था!
“सुनील, कल बाबा बलिया को बुलाओ यहाँ” मैंने कहा,
उसे अटपटा सा लगा मेरा कहना!
“हम चल लेते हैं कल?” उसने कहा,
“नहीं, हम नहीं, उसको लाइए यहाँ” मैंने कहा,
“वो नहीं आयेंगे” उसने कहा,
“तो कल सुबह हमे स्टेशन छोड़ो आप, मुझे यहाँ काम नहीं करना” मैंने कहा,
अब चौंके वे दोनों!
मीनाक्षी जैसे घबरा गयी!
“बुरा न मानिये” मीनाक्षी ने कहा,
“तो कल लाइए यहाँ बलिया को” मैंने कहा,
“सुनील, कल बिठा लाओ यहाँ बाबा बलिया को” वो बोली,
“जी” सुनील ने एक दम से हाँ कह दी!
अब मैंने खाना खाना शुरू किया, रात हो चली थी!
उसके बाद दो और पैग लिए हमने मीनाक्षी और सुनील ने नहीं लिए! वे नशे में चूर हो चले थे!
मीनाक्षी उठी और नीचे बिस्तर पर झुक गयी!
नशे में!
‘आराम से” मैंने कहा,
वो मुस्कुरायी!
“अब हमारी आशाएं आप पर टिकी हैं गुरु जी, कर दो हमारा उद्धार!” उसने कहा,
मैंने हाँ में गर्दन हिलायी!
“सुनील, छोड़ आइये इनको” मैंने कहा,
“ये यहीं ठहरेंगी आज, ये जगह इन्ही की है” वो बोला,
“अच्छा! ठीक है, इनको इनके कमरे में छोड़ आओ” मैंने कहा,
सुनील ने सहारा दिया, लेकिन बात नहीं बनी! वो भी नशे में था, दोनों ही गिर जाते! मैं उठा और मीनाक्षी को पकड़ कर ले गया साथ वाले कक्ष में और छोड़ दिया, वो कमरे में गयी और बिस्तर पर धम्म से गिर गयी, मैंने दरवाज़ा बंद कर दिया बाहर से!
सुनील अपने कमरे में चला गया!
अब रह गए मैं और शर्मा जी!
“क्या मुसीबत है!” वे बोले,
“लगता है यहाँ गड़बड़झाला है!” मैंने कहा,
“वो तो पक्का है!” वे बोले,
“मुझे तो इस औरत की कहानी समझ नहीं आयी” मैंने कहा,
“कहानी इस मामले की तरह से उलझी है!” वे बोले,
अब एक एक पैग और लिया हमने!
“कह रहा था बलिया नहीं आएगा यहाँ! क्यों? उसकी माँ की ****! कैसे नहीं आएगा!” अब नशे में बोले वो!
मुझे हंसी आयी!