रात के करीब ग्यारह बजे थे, मैं वहाँ शर्मा जी के साथ पहुँच चुका था, यही समय था बाबा कटकनाथ से मिलने का, बाबा कटकनाथ ने किसी काम से मुझे वहाँ बुलाया था, वहाँ उनका एक स्थायी आवास था, बुज़ुर्ग थे और उनके कई शिष्य भी थे, एक से बढ़कर एक औघड़! लेकिन उन्होंने मुझे बुलाया था, मैं जब वहाँ पहुंचा था रम्मा जोगन मिली मुझे, उस से नमस्कार हुई और उसने हमें एक कक्ष में बिठाया,
“कहाँ है बाबा?” मैंने पूछा,
“वो अभी आने वाले ही होंगे” उसने बताया,
रम्मा जोगन की उम्र होगी करीब चालीस के आसपास की, वो बाबा कटकनाथ के साथ बीस बरस से रह रही थी! बाबा कटकनाथ उसको अपनी बेटी की तरह से स्नेह करते थे, उनकी देखरेख वही किया करती थी, बाबा कटकनाथ की कोई संतान नहीं थी अपनी, सो इसी को अपनी संतान मानते थे! रम्मा ने भी बाबा की देखरेख करने में कोई कोताही नहीं बरती थी, और तो और उसने ब्याह भी नहीं किया था, जबकि वो बेहद सुंदर और सुशील थी!
गर्मी पड़ रही थी दबा कर! पसीनों से तरबतर थे हम वहाँ, मैंने अपनी कमीज के ऊपर के बटन खोले और अपने रुमाल से हवा की, पंखा तो था लेकिन अब वो सेवानिवृति के करीब था!
“ये लीजिये” रम्मा कुछ लेकर आयी दो गिलासों में,
“ये क्या है?” मैंने उसके रंग को देखते हुए पूछा,
दरअसल वो आलूबुखारे का शरबत था! मुझे मदिरा सी लगा! इसीलिए मैंने पूछा,
“शरबत है!” उसने कहा, और हंसी!
मैं भी मुस्कुरा गया!
तभी बाबा अंदर आ गए!
मैंने गिलास टेबल पर रखा और जाकर बाबा के पाँव छू लिए, शर्मा जी ने भी ऐसा ही किया, उन्होंने हमारे सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया!
वो बैठ गए एक बिस्तर पर,
“कब आये दिल्ली से?” बाबा ने पूछा,
“आज सुबह ही आया, नाथू बाबा के यहाँ ठहरा हूँ, कुछ सामान था उसका, वो लाया था” मैंने कहा,
“अच्छा” वे बोले,
“आप कैसे हैं?” मैंने पूछा,
“बस, ठीक हूँ” वे बोले,
“बताइये, कैसे याद किया आपने बाबा?” मैंने पूछा,
बाबा ने रम्मा को बुलाया आवाज़ देकर,
रम्मा आयी,
बाबा ने उसको एक थैला लाने को कह दिया, वो थैला ले आयी,
अब बाबा ने उसमे से एक कागज़ निकाला, और मुझे पकड़ाया, मैंने पकड़ा,
गौर से देखा, ये एक बीजक का चित्र था!
“ये तो बीजक है?” मैंने कहा,
“हाँ” वे बोले,
“फिर?” मैंने पूछा,
“ये बीजक धौलपुर में है” वे बोले,
“राजस्थान?” मैंने पूछा,
“हाँ” वे बोले,
“क्या करना है?” मैंने पूछा,
“मैंने यहाँ दो शिष्यों को भेजा था, एक सिद्धेश को और एक जयेश को, लेकिन वे खाली हाथ आ गए, पढ़ न सके, सुलझा नहीं पाये” वे बोले,
“अच्छा, क्या है वहाँ?” मैंने पूछा,
“वहाँ एक अस्थिदंड है, बाबा रोमण का” उन्होंने बताया,
“बाबा रोमण? ये कौन हैं या थे?” मैंने पूछा,
“किसी समय यही कोई सवा सौ साल पहले वहाँ उन्होंने ये अस्थिदंड गाड़ा था, और बीजक जड़ दिया था, मेरा एक जानकार वहीँ है, वो ये स्थान जानता है, लेकिन अस्थिदंड वहाँ है या नहीं, ये सुलझाना है” वे बोले,
“उस से आपको क्या लाभ?” मैंने पूछा,
“वो दंड यक्ष-महातन्त्र का स्तम्भ है!” वे बोले,
यक्ष-महातन्त्र!
ये पराविद्या अस्सी वर्ष की आयु में सिद्ध की जाती है! ‘चार बीसा गुजरे’ उन कहा जाता है इसे!
अब मैं समझ गया!
बाबा अब आगे बढ़ना चाहते थे!
“तो आप चाहते हैं कि मैं वहाँ जाऊं और वो अस्थिदण्ड ढूंढूं आपके लिए?” मैंने पूछा,
“हाँ” वे बोले,
मैं चुप!
खांसे वो, गला साफ़ किया!
“और साथ में जो भी मिले वो तुम्हारा हुआ!” बाबा ने कहा,
अब साथ में कुछ भी हो सकता था! कुछ भी!
काम में जोखिम था!
मैंने विचार किया!
“ठीक है बाबा!” मैंने कहा,
उन्होंने हाथ से मुझे आशीर्वाद दिया!
और मैं वो कागज़ वहाँ से लेकर और पता लिखवा कर वापिस नाथू बाबा के डेरे की ओर रवाना हो गया!
मैं वहाँ से शर्मा जी के साथ वापिस आ गया नाथू बाबा के यहाँ, रात में डेरा कभी नहीं सोता, जागता ही मिलता है, हाँ जिसे सोना हो वो सो सकता है, मैं आज सुबह ही आया था और थका भी हुआ था इसीलिए आराम करने की ही सोची! कमरे में गए, थोड़ा पानी पिया और फिर सो गए!
रात भर मच्छर आ आ कर हमारी हाज़िरी लेते रहे! बड़ी विकट गुजरी रात! एक तो भयानक गर्मी ऊपर से ये मच्छर!
सुबह उठे, तो स्नानादि से फारिग हुए, फारिग हुए तो घूमने निकले सैर-सपाटे को! सुबह का मौसम बढ़िया था! खुशगवार था! सहायक सहायिकाएं अपने अपने काम पर लग चुकी थीं! कोई दूध की बाल्टी लेकर जा रहा था तो कोई आ रहा था! जो भी मिला, ‘आदेश’ या ‘नमस्कार’ करता! ठंडा था मौसम, नदी भी दूर नहीं थी तो तरावट बनी हुई थी!
हम एक जगह घास पर बैठ गये! सूरज बस निकलने ही वाले थे पूर्वी क्षितिज को हराकर! और उनके निकलते ही पृथ्वी पर यहाँ हाहाकार मचने वाला था! इन दिनों सूर्य कुपित रहा करते हैं!
“रात तो भयंकर गर्मी थी!” शर्मा जी बोले,
“हाँ! मच्छर अलग!” मैंने कहा,
“बस नहीं चला नहीं तो उठा के ही ले जाते!” वे बोले,
“सही कहा!” मैंने हँसते हुए कहा,
फिर शीतल सी बयार बही! आनंद आ गया!
हम कोई पंद्रह मिनट वहाँ बैठे और फिर चल दिए वापिस!
“आज चलते हैं तनिक केशू के पास, देखें क्या कर रहा है!” मैंने कहा,
“हाँ, समय भी बीत जाएगा!” वे बोले,
केशू मेरा हमउम्र है, खयालात मिलते हैं उसके और मेरे आपस में, निभ जाती है हमारी, बस एक दोष है उसमे, आदमी शौक़ीन है! वैसे दिल का साफ़ है!
वापिस आये, कक्ष में बैठे!
सहायक आया और चाय नाश्ता दे गया, दूध और कुछ बर्फियां लाया था, हमने ओढ़ के साथ वही दबा लीं! मजा आ गया!
“ये दंड का क्या चक्कर है?” उन्होंने पूछा,
“है शर्मा जी” मैंने कहा,
“क्या?” वे उत्सुक!
“ये दंड तंत्र में स्तम्भ होता है! ये त्रिशूल के स्थान पर कार्य करता है और स्व्यं-सिद्ध होता है” मैंने कहा,
“अच्छा!” वे बोले,
फिर कुछ देर आराम किया बतियाते बतियाते!
कुछ देर हुई!
फिर भोजन आ गया, भोजन किया और फिर उसके बाद आराम!
बाहर गर्मी का उत्पात आरम्भ हो चुका था! मुंह फाड़ते श्वान गवाह थे इसके! हमने किसी तरह से एक आध झपकी मार ही ली!
जब आँख खुली तो चार बजे थे! खूब सोये थे, एक आध क्या कई झपकी ले ली थीं! रात को सो नहीं पाये थे, इसीलिए अब नींद आयी थी!
मैंने केशू को फ़ोन लगाया, उसने फ़ोन उठाया और फिर गुस्सा करने लगा! कहने लगा कि वहाँ क्यों ठहरे हो? यहाँ क्यों नहीं, आदि आदि!
उसे समझाया और हम फिर निकल पड़े उसके स्थान की तरफ!
वहाँ पहुंचे!
उसके कक्ष तक गए!
उठ कर आया और गले मिला!
नमस्कार आदि कुछ नहीं!
“कब से इंतज़ार कर रहा हूँ, कहाँ फंस गये थे?” उसने पूछा,
“आपके शर में भी खूब भीड़-भाड़ होने लगी है केशू भाई!” मैंने कहा,
“हाँ ये तो है” उसने कहा,
“क्या लोगे? ठंडा या महाठंडा?” उसने पूछा,
महाठंडा मतलब बियर!
“अरे ठंडा ही ठीक है, वो बाद में देखेंगे!” मैंने कहा,
उसने फ़ौरन एक लड़के को कहा और भेज दिया!
“और सुनाओ, यहाँ क्यों नहीं आये सीधे?” उसने पूछा,
“नाथू बाबा का सामान था कुछ, देना था इसीलिए वहीँ ठहर गया” मैंने कहा,
“और कब तक हो यहाँ?” उसने पूछा,
“कल रात को वापसी है” मैंने कहा,
“अरे? इतनी जल्दी?” उसने कहा,
“हाँ, विवशता है” मैंने कहा,
गुस्सा हो गया!
बड़ी मुश्किल से समझाया उसको!
लड़का आ गया, ठंडा ले आया था, हमने पी कुछ पल के लिए गर्मी मिटाई!
शाम हो चली थी!
“क्या लोगे खाने में?” उसने पूछा,
“कुछ भी चलेगा” मैंने कहा,
वो अब गया बाहर, लड़के को अंदर भेजा,
लड़के ने साफ़ सफाई सी की और वहाँ फिर कुछ देर बाद दौर-ए-जाम का सारा सामान लगा दिया! सलाद, बरफ आदि!
और फिर आया केशू!
हाथ में एक डोल और एक भगोना!
रखा वहाँ!
और फिर उसने अपने सामान से एक बोतल निकाल ली!
और फिर हमारे गिलास में परोस दी!
“लो जी!” वो बोला,
“अलख निरंजन!” कहते हुए दारु पर एहसान कर दिया हमने!
गले के नीचे!
“जोश जांचना है?” उसने पूछा,
जोश जांचना मतलब काम-प्रबंध!
‘अरे नहीं केशू!” मैंने कहा,
“अरे क्या करोगे जीवन में आगे?” उसने उपहास सा उड़ाया!
उसने फ़ोन मिलाया, और कुछ बात की, फिर रख दिया!
खाना वाक़ई स्वादिष्ट था!
और थोड़ी ही देर में वहाँ दो लडकियां आ गयीं!
समझ गया, कहाँ फ़ोन मिलाया था उसने!
बताया था न, आदमी शौक़ीन है!
वे वहीँ आकर बैठ गयीं! उम्र होगी दोनों की कोई बीस बाइस के आसपास, उन्होंने कमर के नीछे सूती कपडा लपेटा हुआ था घुटनों तक, मैं समझ गया कि नेपाल की हैं या फिर पहाड़ी क्षेत्र की!
“नेपाल की बूटी हैं!” बोल पड़ा केशू!
यानि कि मेरा अंदाजा सही था!
उनमे से एक ने हमारे खाली गिलास एक जगह इकट्ठे किया और बोतल उठा उसमे शराब परोसने लगीं!
“ये है रानी!” केशू ने शराब परोसने वाली लड़की का नाम बताया!
खूबसूरत लड़की थी रानी!
“और ये है पारुल!” उसने दूसरी लड़की के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,
वो भी सुंदर थी बहुत!
पारुल मेरे पास आ कर बैठ गयी! उसका घुटना मुझसे टकराया तो मैं थोड़ा और शर्मा जी के पास खिसक गया!
“रह जाओ आज रात यहाँ, जोश आजमाओ!” हँसते हुए कहा केशू ने और वो दोनों लड़कियां भी हंसी!
“अरे नहीं केशू! कल निकलना है और सुबह काम बहुत है, मैं जल्दी जाऊँगा यहाँ से” मैंने कहा,
गिलास सामने रख दिए रानी ने, हमने उठाये और पी लिए! फिर थोड़ा सा शोरबा पिया!
“सुनो, तुम दोनों जाओ यहाँ से!” मैंने कहा उन लड़कियों से!
मेरा कहना नागवार गुजरा उनको, उन दोनों ने केशू को देखा तो केशू ने भी हाथ के इशारे से उनको जाने को कह दिया, वे उठीं और बाहर चली गयीं!
“क्या यार!” वो बोला,
“नहीं केशू!” मैंने कहा,
“क्यों क्या काम है ऐसा?” उसने पूछा,
“मुझे कल बाबा कटकनाथ ने बुलाया था” मैंने कहा,
“कटक ने? क्यों?” उसने पूछा,
अब मैंने बता दिया उसको!
“अच्छा! तो तुम अब धौलपुर जाओगे!” वो बोला,
“हाँ!” मैंने कहा,
फिर और पैग!
“ठीक है” वो बोला,
फिर हमने खाना खाया और अपना अपना सौदा निबटा दिया! अब वापिस जाने के लिए समय नहीं था, सो वहीँ रुकने का निर्णय लिया, सो रुक गए!
अगली सुबह उठे, जल्दी ही उठ गए, केशू से विदा ली और हम वापिस हुए अब नाथू बाबा के यहाँ चलने को, सवारी पकड़ी और पहुँच गए!
अब वहाँ आकर थोड़ा आराम किया, रात की खुमारी थी बाकी, इसीलिए बदन टूट रहा था! आँख ऐसी लगी की बारह से ऊपर का समय हो गया उठने उठने में! अब सामान बाँधा हमने, और फिर मैं नाथू बाबा से मिलने गया, उनसे मिला और फिर वापिस आया, गाड़ी छूटने में अभी समय था करीब दो घंटे, लेकिन हम निकल गए वहाँ से, एक जगह रुक कर भोजन किया और फिर स्टेशन पहुँच गए!
काफी देर बाद गाड़ी लगी वहाँ, हमने अपना आरक्षित डिब्बा ढूँढा और बैठ गये उसमे! हाँ, उसी समय मैंने बाबा कटकनाथ को फ़ोन कर दिया कि मैं यहाँ से निकल रहा हूँ, और आज शुक्रवार है, मैं सोमवार को वहाँ से धौलपुर के लिए निकलूंगा! उन्होंने मुझे वहाँ पहुँच कर फ़ोन करने के लिए कहा, मैंने हामी भर दी!
गाड़ी चल पड़ी! और हमारी दूरी कम होने लगी गंतव्य की!
हम अगले दिन दिल्ली पहुँच गए!
कटकनाथ बाबा को फ़ोन कर दिया मैंने कि मैं दिल्ली पहुँच गया हूँ, और अब परसों यहाँ से निकलूंगा धौलपुर के लिए!
बात हो गयी!
और फिर आया सोमवार!
और हम सुबह कोई नौ बजे निकल पड़े धौलपुर के लिए, वहाँ पहुँच कर हमे फ़ोन करना था बाबा कटक को, वो बताने वाले थे कि आगे हमे कहाँ जाना है, किसके पास! और कौन लेकर जाएगा हमको उस बीजक तक!
हम पहुँच गए धौलपुर! राजस्थान का ये खूबसूरत शहर है! समृद्ध इतिहास रहा है इसका! पहले ये एक रियासत हुआ करती थी! हम स्टेशन पर ही खड़े थे, मैंने कटकनाथ बाबा को फ़ोन
किया, उन्होंने मुझे वहाँ से करीब चार किलोमीटर पश्चिम में जाने को कहा, वहाँ मुझे एक व्यक्ति सुनील से मिलने को कहा गया था, उन्होंने सुनील का नंबर हमे दे दिया, मैंने सुनील को फ़ोन किया, उसने उस स्थान का पता बता दिया जहां हमको आना था, सुनील को पता था कि हम वहाँ आने वाले हैं, खैर साहब, हम निकले वहाँ से सवारी पकड़ी और पहुँच गए सुनील के पास, ये एक खाली सी जगह थी, लगता था कोई गोदाम आदि सा था, आबादी न के बराबर सी ही थी वहाँ, मैंने सुनील को फ़ोन किया, उसने हमे वहीँ खड़े रहने को कहा, दरअसल वो गाड़ी लेके आ रहा था कहीं दूर से, लेकिन उसको देर हो गयी थी, थोड़ी देर में वो आ गया, मुलाक़ात हुई, हम उसकी गाड़ी में बैठे और चल पड़े उसके साथ, उसने अब गाड़ी दौड़ा दी! सड़क कुल मिलकर ठीक ठाक ही थी,
“कब पहुँच गए थे?” उसने पूछा,
” ढाई बजे उतर गए थे यहाँ” मैंने कहा,
“आता तो मैं स्टेशन ही, लेकिन गाड़ी खराब थी, आपको परेशानी हुई, क्षमा चाहूंगा” उसने कहा,
“ऐसी कोई बात नहीं” मैंने कहा,
उसने तभी एक जगह गाड़ी रोकी, ये ढाबा सा था छोटा सा!
“आइये चाय पानी ले लें!” सुनील ने कहा,
सुनी, एक सभ्रांत युवक लगता था, कोई तंत्र-मंत्र से सम्बन्ध रखने वाला हो, ऐसा नहीं लगता था, अधिक जानकारी मुझे नहीं थी, वो हमे लेने आया था और हमको उस स्थान पर पहुँचाना था जहां वो बीजक गड़ा था, बस इतना ही काम था सुनील का, मुझे अधिक जानने की इच्छा भी नहीं थी!
हम चले उसके पीछे,
वो ढाबे में घुस गया, हम भी घुस गए!
उसने चाय मंगवा ली साथ में कुछ थोडा बहुत खाने को, हमने खाया, चाय पी और पानी ले लिया साथ में, गर्मी बता रही थी कि वो आक्रामक होने वाली है!
हम बातें करते हुए आगे बढ़ते रहे!
तीन घंटे के बाद उसने एक जंगल के से रास्ते में गाड़ी काट ली, रास्ता कच्चा था! धीरे धीरे चलते हुए वो हमे एक स्थान पर ले आया, यहाँ एक आश्रम सा बना था, अधिक बड़ा तो नहीं था लेकिन फिर भी आश्रम सा था,
उसने दरवाज़ा खुलवाया और गाड़ी अंदर ले ली!
अंदर काफी खुली जगह थी, और दूर वहाँ कक्ष बने थे, पक्के कक्ष!
हम गाड़ी से उतरे!
“आइये” वो बोला,
“चलो” मैंने कहा,
वो हमे एक पक्के से कक्ष में लेकर चला आया, वहाँ दो बाबा बैठे थे, हाथ से हवा करते हुए, बिजली नहीं थी! हाँ ये दोनों औघड़ थे!
हमने नमस्कार की!
उन्होंने नमस्कार ली!
“बैठिये” एक बाबा ने कहा,
हम बैठ गये!
“मैं हूँ बाबा बलिया और ये हैं बाबा करौल” बलिया बाबा ने कहा,
करौल बाबा ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा!
“आपको कटकनाथ बाबा ने भेजा है न?” बलिया बाबा ने पूछा,
“हाँ जी” मैंने कहा,
“हाँ, फ़ोन आ गया था उनका” वो बोला,
“अच्छा” मैंने कहा,
तभी एक जोगन, मुंह ढके, पानी ले आयी, हमने पानी पिया और वो गिलास वापिस ले गयी!
“कहाँ है वो बीजक?” मैंने पूछा,
“है, यहाँ से कोई तीस किलोमीटर पर है, अब आपको कल ले चलेंगे वहाँ” वो बोला,
तीस किलोमीटर!
अर्थात जंगल में!
“वहाँ बाबा रोमण का अस्थिदण्ड है, ये कैसे पता आपको?” मैंने पूछा,
“पता है, मुझे अपने गुरु से पता है, उनको अपने गुरु से, वो स्थान बाबा रोमण का है और वहाँ उनका अस्थिदण्ड है” वो बोला,
“तो क्या कभी कोई बीजक नहीं पढ़ पाया आज तक?” मैंने पूछा,
“पढ़ लेता तो आप क्यों आते!” दांत फाड़े बलिया बाबा ने और करौल बाबा ने साथ दिया!
न जाने कुछ कुछ अजीब सा लगा मुझे!
इनके अनुसार लगभग सौ वर्षों से इनको ज्ञात है, लेकिन कोई बीजक नहीं पढ़ पाया! कैसे सम्भव है?
“और क्या है वहाँ?” मैंने पूछा,
“कुछ वस्तुएं भी अवश्य ही होंगी वहाँ, वो सब आपकी होंगी” बलिया बाबा ने कहा,
“कैसे वस्तुएं?” मैंने पूछा,
“अ..अ…कुछ ज़रूरी वस्तुएं” वो अटक अटक कर बोला!
फिर से संदेह की गंध!
“आप देख लो, पढ़ सको तो?” अब बाबा करौल ने कहा,
“हाँ, कल देखता हूँ” मैंने कहा,
“सुनील, कल ले जाना इनको वहाँ तड़के ही, अब इनको आराम करवाओ” बलिया बाबा ने कहा,
“चलिए” सुनील ने कहा,
हमने नमस्ते की और चले वहाँ से!
गाड़ी में बिठाया और अब फिर से वापिस चले!
दरअसल हमारे रहने-खाने का सारा प्रबंध सुनील ने एक जगह किया था, होटल तो नहीं था लेकिन था होटल सा ही!
कोई गेस्ट-हाउस सा था!
हमने सामान रखा वहाँ, हाथ-मुंह धोये और लेट गए बिस्तर पर!
रात को खाना पिया हुआ और फिर सुनील से हुईं कुछ बातें, पता चला कि वो बीजक के जंगली क्षेत्र में है, अब वहाँ जंगली झाड़, पेड़-पौधे आदि हैं, हालांकि रास्ता बना दिया गया है फिर भी रास्ता पैदल का है, करीब चार किलोमीटर!
इसके बाद हम सो गए!
सुबह नींद खुली, सात बज चुके थे, स्नान आदि से फारिग हुए और फिर सुनील ने नाश्ता भिजवा दिया, हमने नाश्ता किया, चाय पी और फिर सुनील आ गया!
“तैयार हैं आप?” सुनील ने कहा,
“हाँ” मैंने उत्तर दिया,
“चलिए फिर” वो बोला,
और हम गाड़ी में बैठ चल दिए!
मुख्य सड़क तक आये और फिर सीधा चल पड़े! वहाँ से कोई एक घंटे के बाद उसने गाड़ी एक ढलान से नीचे उतार ली, और धीरे धीरे चलाने लगा, मेरी नज़र वहाँ के भूगोल पर पड़ी! ये कोई त्याज्य नगर था, खंडहर थे वहाँ टूटे-फूटे! अजीब सा दृश्य था वहाँ का!
हम चलते रहे, और एक जगह पेड़ के नीचे उसने गाड़ी लगा दी, उतर गए हम!
उसने एक तरफ इशारा किया, मैंने देखा, एक पगडण्डी सी थी, संकरी सी वहाँ,
“यहीं से जाना है आगे अब पैदल” उसने कहा,
“ठीक है” मैंने कहा,
और हम चल दिए उसके पीछे पीछे! पानी की बोतल वो ले आया था साथ में! एक एक हमको थमा दी उसने!
अब हम चले पैदल पैदल!
संकरा रास्ता, पथरीला, ऊबड़-खाबड़! किसी तरह से बचते बचाते चलते रहे!
“सिद्धेश और जयेश यहीं आये थे?” मैंने पूछा,
“हाँ जी” वो बोला,
“उनसे नहीं सुलझा?” मैंने पूछा,
“पूरे पंद्रह दिन पड़े रहे यहाँ वे, कुछ नहीं समझे वे” उसने बताया,
“अच्छा” मैंने कहा,
हालत खराब हो रही थी! लगता था अब मोच आयी और जब आयी! बीच बीच में सुस्ताने लगते थे, कीकर के पेड़ों का साम्राज्य था वहाँ! नागफनी भी थीं वहाँ! बस सम्भल सम्भल के आगे बढ़ते रहे!
और फिर एक समतल सी ज़मीन आ गयी!
“बस आ गए हम वहाँ” वो बोला,
अब मैं उत्सुक हो उठा था!
आखिर इतनी मेहनत जो की थी! पैदल चलकर उस रास्ते पर जीभ बाहर आ गयी थी!
“कहाँ?” मैंने पूछा,
“वहाँ” उसने कहा,
मैंने देखा वो एक पुराना सा खंडहर था, कब का था बताया नहीं जा सकता था, केवल दीवारें की बची थीं!
और फिर सुनी ने हमको एक जगह रोका! हम रुक गए!
“आइये यहाँ है वो बीजक” उसने कहा,
हम चले उसके पीछे!
और मैंने वहाँ देखा ज़मीन पर बिछा हुआ एक छह फीट गुना तीन फीट का पत्थर! उसके अंदर एक पत्थर गाड़ा गया था! इसको लम्बाई कोई चार फीट और चौड़ाई कोई ढाई फीट रही होगी! यही था वो बीजक!
बीजक साफ़ सुथरा था!
अब मैंने उसको देखना शुरू किया!
सबसे ऊपर दोनों कोनों में दो मोर बने हुए थे! बीच में एक सांप फन फैलाये बैठा था! उस पत्थर के चारों ओर स्वस्तिक के निशान की दो लम्बी सी रेखा गयी थीं, जो एक दूसरे से जुड़ जाती थी! पत्थर के नीचे कुछ इंसान बने थे, दोनों तरफ खड़े हुए, बीच में औरतें बैठी हुईं थीं! वे औरतें किसी कुँए के पास खड़ी थीं! उनके ऊपर कुछ अंक लिखे थे, जैसे बहत्तर, चौबीस, चौंसठ, इक्कीस और तिरेसठ!
बड़ा ही शानदार बीजक था!
बीच में उसमे कुछ बिंदियाँ डाली गयीं थीं, मैंने गिनीं ये तीन सौ पैसठ थीं! उनमे से छह बिंदियों को कुरेद कर छेद बना दिए गये थे! अब मैंने उसका सारा नक्शा एक कागज़ पर बना शुरू किया!
और करीब एक घंटे में बना लिया!
मैंने सारा बीजक और उसकी बारीकियां उकेर ली थीं कागज़ पर! अब उसका अध्ययन करना था, पहली नज़र में कोई कमी या विशेषता पता नहीं चलती थी, सो मैंने सभी बारीकियां दिमाग में बिठा लीं!
“चलो अब सुनील” मैंने कहा,
उसको आश्चर्य सा हुआ!
“आपने देख लिया?” उसने पूछा,
“हाँ” मैंने कहा,
“ये बंजारों का है?” उसने पूछा,
“नहीं” मैंने कहा,
“कैसे पता कि ये बंजारों का नहीं है?” उसने पूछा,
अब मुझे आश्चर्य हुआ!