वर्ष २०१० दिल्ली की...
 
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वर्ष २०१० दिल्ली की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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सुभाष के होश आने की खबर जोशी जी के फ़ोन पर आई! ये खबर कंचन के भाई ने दी थी! अब मुझे शीघ्र ही सुभाष के पास जाना था, अतः हम वहीँ की ओर रवाना हो लिए!

हम अस्पताल पहुंचे! कंचन सुभाष के पास गयी हुई थी, नीचे मुझे कंचन के छोटे भाई मिले, उसने मेरे पाँव छूकर मुझे धन्यवाद किया! सुभाष को होश तो आ गया था, परन्तु शरीर में हुए दोष की अब चिकित्सा आवश्यक था, इसीलिए उनका इलाज और गहन हो गया था! मैंने नज़रें दौड़ायीं, वहाँ वो शख्स उज्जवल नज़र नहीं आ रहा था! वो या तो अन्दर था या फिर वहाँ से जा चुका था!

थोड़ी देर बाद कंचन आई, उसने आते ही पाँव छूने की कोशिश की परन्तु मैंने नहीं छूने दिए, औघड़ कभी कन्या या स्त्री से अपने पाँव नहीं छुआते! स्त्री शक्ति का रूप है! और औघड़ शक्ति के उपासक हैं!

मैंने कंचन से उस शख्स के बारे में पूछा तो उसने भी अनभिज्ञता ज़ाहिर की, अर्थात वो अन्दर नहीं था! और अब वो जा चुका था! यानि की टोह लेने आया था! लेकिन मैंने किसी को भी ये ज़ाहिर नहीं होने दिया! सुभाष के स्वास्थय में लाभ होने लगा था, उनका शरीर दवा को स्वीकार करने लगा था, ये सुभाष के लिए अच्छी बात थी! कंचन के मुख-मंडल से भी अब चिंता की गहन रेखाएं समाप्त होने लगी थीं! मुझे अब संतोष हो चला था, संकट कट गया था सुभाष के जीवन का!

अब मेरा कार्य समाप्त नहीं, वरन आरम्भ हुआ था! किसने मारण किया, किसने करवाया, किसलिए? क्या औचित्य था? कैसी शत्रुता थी, व्यवसायिक अथवा निजि? उद्देश्य क्या था?

मैंने कंचन और उसके भाई आदि से विदा ली और अपने स्थान की और चला वापिस! उस रात मुझे अलख उठानी थी, कुछ प्रश्न थे जिनका उत्तर जानना आवश्यक था!

मै वापिस आया, कुछ सामान खरीदा क्रिया के लिए और फिर उसी रात करीब ग्यारह बजे बैठ गया क्रिया में!

मैंने अपना सबसे मजबूत और ताक़तवर खबीस हाज़िर किया! इबु-खबीस! इबु-खबीस हाज़िर हुआ, मैंने उसको उसका भोग दिया और उसको भेज दिया उसका उद्देश्य बता कर! इबु उड़ चला, ‘शायें’ की आवाज़ करता हुआ! मै वही अलख में बैठ गया, उसको ‘थाम’ कर! थाम कर मतलब उसकी रक्षा हेतु तत्पर!

करीब बीस मिनट के बाद वापिस आया इबु-खबीस! उसने मुझे सब-कुछ बता दिया! सब-कुछ! ये कहानी थी एक ऐसे इंसान की, जिसने अपने निर्णय से अपनी तकदीर मोड़ डाली थी! और


   
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श्रीशः उपदंडक
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उसका ये निर्णय उसके मानसिक-पतन का कारण बना! ये था उज्जवल! उज्जवल प्रेम करता था कंचन से! अटूट प्रेम! परन्तु उसके माता-पिता के निर्णय ने उसको दिग्भ्रमित किया और न चाहते हुए भी विवश हो गया था उज्जवल! उसने कंचन को छोड़ और कहीं ब्याह करने को ही माता-पिता का निर्णय उचित माना! परन्तु उसके ह्रदय में कंचन के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ था, हाँ, हिम्मत अवश्य कम हुई थी कंचन से कभी दुबारा मिलने के लिए!

एक समय ऐसा भी आया की वो कंचन को भुला सा बैठा और अपनी पत्नी और पुत्री का ध्यान रखने लगा, उसकी पत्नी गर्भाशय के किसी असाध्य रोग से पीड़ित थी, उज्जवल ने उसका इलाज करवाया, काफी इलाज, परन्तु कुछ न हो सका, और उसकी पत्नी की मृत्यु हो गयी, उसको भारी दुःख पहुंचा था, संतान छोटी थी, अबोध संतान, और फिर जब उसने सुभाष की पत्नी के रूप में कंचन को देखा तो उसका मस्तिष्क गलत राह पर ले गया उसको! सोचने समझने की शक्ति और विवेक से हाथ धो बैठा उज्जवल! और फिर उसने एक भयानक निर्णय ले लिया! इस निर्णय को साकार किया एक अमली बाबा ने, ये बाबा चंडीगढ़ से कोई बीस किलोमीटर दूर रहता था, इस अमली बाबा को मिलवाया था उज्जवल से उसके चाचा के बड़े लड़के ने, जो कि चंडीगढ़ में नौकरी करता था! और जब सुभाष उज्जवल के साथ गए थे चंडीगढ़ तो उज्जवल का मुख्या उद्देश्य सुभाष को अमली बाबा की निगाह से निकलवाना ही था!

कैसा विषाक्त प्रेम था उज्जवल का!

मैंने इबु का शुक्रिया किया, शेष भोग भी उसको दे दिया! वो मुस्कुराया और लोप हो गया! मै वहाँ से उठा और बाहर आ गया!

शर्मा जी वहीँ एक दूसरे कमरे में लेटे थे, मुझे देख खड़े हुए और उन्होंने पूछा,” कुछ पता चला गुरु जी?”

“हाँ शर्मा जी, एक विचित्र एवं विषाक्त प्रेम-गाथा है ये!” मैंने उन्हें बताया,

मैंने तब उनको सारी बातों से अवगत करा दिया!

 

मेरे एक एक शब्द पर शर्मा जी की कनपटी गर्म होती गयी! भुजाएं फड़कने लगीं उस अमली बाबा के ऊपर अमल करने को! बोले, “गुरु जी, बताओ कब चलना है इस माँ के ***** अमली बाबा के पास?”

“अमली बाबा को तो हम देख ही लेंगे, लेकिन उज्जवल का क्या करें हम?” मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“उस मादर** को भी देख लेंगे हम गुरु जी!” शर्मा जी ने कहा,

“ठीक है, कल सुबह हम पहले चलते हैं सुभाष के पास और कंचन को सारी सच्चाई से अवगत करा देते हैं, उज्जवल के विषय में वो जैसा कहेगी उस पर विचार करेंगे” मैंने कहा,

और फिर अगले दिन सुबह आठ बजे हम सुभाष के पास अस्पताल पहुंचे, सुभाष की हालत अब ठीक थी, वो बैठने लगे थे तब तक! मुझे प्रसन्नता हुई उनकी हालत ठीक जानकर! मैंने शर्मा जी से कहा कि वो कंचन को बुलाकर उसको सारी बात बता दें, ध्यान रहे उस पर कोई दबाव न पड़े!

तब शर्मा जी ने कंचन को बुलाया, कंचन आई, शर्मा जी उसको बाहर ले गए अपनी कार में बिठाया और सारी बातों से कंचन को सावधानी से अवगत करा दिया! कंचन को जैसे यकीन ही नहीं हुआ! शर्मा जी ने उसको उसके कुछ प्रश्नों के उत्तर भी दिए!

अब कंचन को समझ आया कि क्यूँ कालू और बदरी बाबा ने उसे शीघ्र विवाह करने को कहा था! वो जानते थे कि उज्जवल विकृत-मानसिकता वाला व्यक्ति है और उसकी बीवी भी अधिक जीने वाली नहीं है, उसकी मृत्यु पश्चात् तक यदि कंचन अविवाहित रही तो उज्जवल उसको फिर से अपने प्रेम-पाश में जकड लेगा और उज्जवल के प्रेम में पागल कंचन अपना हाथ उस विकृत-मानसिकता वाले व्यक्ति उज्जवल को थमा देगी! कितने बड़े संकट से निकाल दिया था उन दोनों औघड़ों ने उसको! शर्मा जी ने उसको बता दिया कि हम जा रहे हैं उस अमली बाबा को सबक सिखाने, इस से पहले कि उसको खबर लगे और वो कोई दूसरा मारण-कर्म करे, समय कम है अतः हमे वहाँ जल्दी पहुंचना था, तब कंचन ने अपने छोटे भाई को हमारे साथ भेज दिया और फिर हम तीनों चल पड़े अमली बाबा की तरफ!

“गुरु जी, मुझे पहले दिन से ही शक था” कंचन के भाई ने कहा,

“कैसा शक?” शर्मा जी ने पूछा,

“यही कि सुभाष के साथ कोई गड़बड़ है” उसने कहा,

“हाँ, सही कहा” मैंने कहा,

“इसीलिए मैंने जोशी जी से कहा था कि वो हमारी मदद करें” उसने बताया,

“हाँ, जोशी जी ने शर्मा जी से तभी बात कर ली थी” मैंने बताया,

“गुरु जी आपका ये एहसान हम नहीं उतार पायेंगे इस जन्म में तो” उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“एहसान कैसा? किसी कि जान बच जाए तो कैसा एहसान?” मैंने पूछा,

“नहीं गुरु जी” उसने कहा,

“शुक्र है कि जल्दी खबर लग गयी, देर हो जाती तो अनिष्ट हो जाता” शर्मा जी ने कहा,

“ये हमारा सौभाग्य है गुरु जी कि आप आ गए समय पर” उसने कहा,

हम एक जगह रास्ते में रुके, एक शराब के ठेके पर, कंचन के भाई ने हमे कुछ न खरीदने दिया, खुद ही एक बोतल शराब और साथ में ‘महा-प्रसाद’ ले आया, इसकी आवश्यकता थी मुझे, मुझे ताम-मंत्र, तामस-विद्या, कलुष-मंत्र, जम्भिका-मंत्र और भंजनिका को भी जागृत करना था! इसीलिए मैंने मदिरा का एक प्याला बनाया, मंत्रोच्चार किया और वो गिलास एक ही सांस में गटक गया! ताम-मंत्र पढ़ा, शरीर में संचार हुआ उसका! तामस-विद्या जागृत की और फिर दूसरे प्याले से जम्भिका-मंत्र जागृत किया! भंजनिका का भी आह्वान किया! करीब एक घंटे के बाद हम वहाँ से चले!

मैंने शर्मा जी से कहा, “शर्मा जी, इनको यहीं गाडी में ही बिठाए रखना जब हम दोनों अन्दर जायेंगे अमली बाबा के पास”

“जी गुरु जी” उन्होंने कहा,

“अभी मुझे पता भी लगान है उसके ठिकाने का” मैंने कहा,

“कहीं रोकें गाडी?” उन्होंने पूछा,

“अभी नहीं, अभी करीब अस्सी किलोमीटर और चलना है आगे” मैंने कहा,

“ठीक है गुरु जी” वो बोले,

और फिर हम आगे बढे, गाडी की रफ़्तार बढ़ाई गयी और फिर करीब एक घंटे के बाद मैंने एक खाली जगह गाडी रुकवा दी, मै सड़क से नीचे उतरा और अपना एक खबीस हाज़िर किया, खबीस प्रकट हुआ, मैंने खबीस को उसका पता लगाने के लिए भेजा! खबीस उड़ चला!

करीब दो मिनट में वो आया और मुझे पता बता दिया उसने! मैंने खबीस का शुक्रिया किया और उसका भोग उधार कर लिया!

मै गाडी में बैठा और पते के अनुसार हम आगे बढे!


   
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श्रीशः उपदंडक
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हम वहाँ पहुंचे, ये एक गाँव जैसी जगह थी, यहीं कहीं एक नाला था, वो हमने ढूँढा, मिल गया, ये मुख्य सड़क से करीब सात-आठ किलोमीटर पूर्व में था! जहां ये अमली रह रहा था वो एक शमशान जैसी जगह थी! खाली नितांत जगह!

हम आगे चले उस तरफ! सामने कुछ लोग बैठे थे, मरियल दुबले पतले लोग! सारे नशेड़ी से लगे मुझे!

 

फिर एक स्थान आया, दीवारें सफ़ेद चूने से पोती गयीं प्रतीत होती थीं! अन्दर केले के और शहतूत के पेड़ लगे थे, हम अन्दर गए तो कोई आयोजन सा था वहाँ, लोग बाग आये हुए थे, शायद कोई कथा आदि थी, वहीँ एक बुज़ुर्ग से हमने अमली बाबा का पता पूछा, पता लगा कि अमली बाबा अभी अभी अपने किसी जानकार के साथ गया है चंडीगढ़ और अब तो कल ही आएगा, बड़ा अफ़सोस हुआ, मौका हाथ से निकल गया था उसको घेरने का!

तभी शर्मा जी ने उस बुज़ुर्ग से पूछा, कि वो कैसे गया है अपने जानकार के साथ? कार से या फिर मोटरसाइकिल से? तो पता चला कि मारुति वैन से गया है, सफ़ेद रंग की गाड़ी है! तभी शर्मा जी पलटे और बोले, “गुरु जी, जल्दी चलिए, वो जो गाड़ी हमारे यहाँ आने पर जा रही थी वही है वो, वो अभी अधिक दूर नहीं गया होगा!”

“चलो फिर!” कंचन के भाई ने कहा,

हम जल्दी से गाड़ी में बैठे और फिर कंचन के भाई ने गाड़ी द्रुत गति से दौड़ा दी! गाड़ी फर्राटे से भाग रही थी! हम उस सड़क से मुख्य सड़क पर आये और गाड़ी भगा दी! अभी कोई दस किलोमीटर ही चले होंगे कि सामने एक सफ़ेद मारुति वैन दिखाई दे गयी खड़ी हुई! ये एक ठेके के पास खड़ी थी! उसमे दो आदमी शराब का आनंद ले रहे थे! शर्मा जी आगे गए और अपने दोनों हाथ जोड़ कर बोले, “बाबा अमली की जय हो!”

उनमे से एक आदमी चौंका! उसने सर पर साफ़ा बाँधा हुआ था, नीले रंग का कुरता पहन रखा था, मूंछे रौबदार थीं उसकी! वही गाड़ी से नीचे उतरा! और बोला,” मै पहचाना नहीं जी आपको”

“जी, आप ही हो बाबा अमली?” शर्मा जी ने कहा,

“हाँ जी मै ही हूँ अमली बाबा, आप कहाँ से आये हैं?” अमली ने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“हम तो धन्य हो गए बाबा जी आपके दर्शन पाकर! आपके स्थान पर गए थे, वहीँ से पता चला कि बाबा जी तो चंडीगढ़ जा रहे हैं, अभी अभी निकले हैं!” शर्मा जी ने हाथ जोड़कर कहा!

अमली ने सारी बातों का ताना-बाना जोड़ा और फिर उसने हमारी तरफ भी देखा!

“आप लोग कहाँ से आये हैं?” उसने पूछा,

“जी दिल्ली से आये हैं” शर्मा जी ने हाथ जोड़े ही कहा,

“अच्छा! दिल्ली में तो भाई मेरे कई जानकार हैं! आपको किसने भेजा है?” उसने प्रश्न किया,

“बाबा जी, हमको किसी दिल्ली वाले ने नहीं भेजा” शर्मा जी ने कहा,

“तो फिर?” अमली ने पूछा,

“बाबा वो एक आदमी है न उज्जवल? इंदौर वाला?” शर्मा जी ने उंगलियाँ हिलाते हुए कहा,

“हाँ! हाँ! उसके चाचा का लड़का रहता है यहाँ चंडीगढ़ में, उमेश!” अमली ने कहा,

“अच्छा जी!” शर्मा जी ने कहा,

“अच्छा, काम है क्या कोई?” अमली ने कहा,

“हाँ बाबा जी एक काम है” शर्मा जी ने धीरे से अमली के कान में कहा,

“क्या काम है? बताइये?” अमली ने पूछा,

“जी, बाबा जी, यहाँ कैसे बताऊँ आपको, इत्मीनान से सुनने वाली बात है” शर्मा जी ने कहा,

“यहीं बता दीजिये, मै तो चंडीगढ़ जा रहा हूँ आज, कल लौटूंगा वहाँ से” ऐसा कहते हुए अमली ने अपना गिलास उठाया और खींच गया!

“वैसे हम भी चंडीगढ़ ही जा रहे हैं आज तो, आप अपना नंबर दे दीजिये, हम कल मिल लेंगे, काफी ‘मोटा’ काम है, आप ही कर सकते हैं” शर्म जी ने पत्ता फेंका!

अमली ने झटपट अपने दोनों नंबर दे दिए, ‘मोटा काम’ सुनकर लार टपक गयी थी उसकी!

“अच्छा बाबा जी, हम कल कब कॉल करें आपको?” शर्मा जी ने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“आप एक काम कीजिये न? आप मुझे सुबह नौ बजे कॉल कर लीजिये” अमली बोला,

“ठीक है बाबा जी” शर्मा जी ने कहा,

मै समझ रहा था सब कुछ! शर्मा जी के प्रपंच में फंस गया था अमली! अब अमली के ऊपर ग्रह-दशा खराब होने वाली थी अगले दिन!

“अच्छा बाबा जी!” शर्मा जी ने वहाँ से हटते हुए कहा,

“अच्छा जी भाई!” अमली ने भी नमस्कार किया,

शर्मा जी हमारे पास आ गए, सारी योजना बता दी उन्होंने!

“वाह शर्मा जी वाह!” मैंने कहा,

“इस मादर** को ऐसा सबक सिखाऊंगा कि साला हरामज़ादा जिंदगी में नहीं करेगा ऐसा काम!” शर्मा जी ने कहा,

उसके बाद हम गाड़ी में बैठ कर चंडीगढ़ रवाना हो गए, अपने एक जानकार के पास!

अमली अभी भी पीछे ही गाड़ी में दारु पी रहा था! आने वाले संकट से बेखबर!

 

तो दोस्तों, हम चंडीगढ़ पहुँच गए! वहाँ शर्मा जी के एक जानकार हैं, उनका होटल है वहाँ, सो हम वहीँ ठहरे! रात को मैंने सब कुछ चाक-चौबंद इंतजाम कर लिया इस बाबा अमली का! शर्मा जी भी तैयार थे उसके लिए! कंचन का भाई भी तैयार लगा एक आद लात भांजने के लिए! खैर, रात को खाया-पिया हमने, शर्मा जी ने एक बार फिर से बाबा अमली को फ़ोन कर लिया और उसकी तारीफ़ के कसीदे पढने लगे! अमली बाबा ने बताया कि वो उस समय मरघट में अलख जोड़ रहा है, सुबह फ़ोन करेंगे तो बढ़िया रहेगा!

“गुरु जी, ये बहन का ** अलख जोड़ रहा है मरघट में!” शर्मा जी ने हंस के कहा,

“कोई बात नहीं शर्मा जी!” मैंने भी हंस के कहा,

“गुरु जी, बात मै करूँगा आरम्भ, उसके बाद आपका काम शुरू!” शर्मा जी ने कहा,

“ठीक है” मैंने कहा,

उसके बाद हम खाना खाकर सो गए!


   
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श्रीशः उपदंडक
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रात कटी,सुबह आई, सभी फारिग हुए, बजे थे साढ़े आठ! शर्मा जी ने तभी कॉल कर दी अमली बाबा को! फ़ोन उठाया अमली बाबा ने!

तो साहिबानों!

कार्यक्रम तय हो गया! कार्यक्रम था ये कि अमली बाबा हमारे होटल आएगा हमारी ‘समस्या’ सुनने! वाह!

और भाई लोगो वो आ गया! आ गया हरामज़ादा ‘मोटे काम’ के लालच में! और शर्मा जी! शर्मा जी को तो ये लगे कि एक तलवार घुसेड दे इसकी ***** में और मुंह से निकाल दे!

“आइये आइये बाबा जी!” शर्मा जी ने कहा,

“अभी आपने बुलाया तो मै आया!” अमली ने कहा!

“वो तो आप वैसे भी आते बाबा जी!” शर्मा जी ने कहा!

“भाई उज्जवल ने आपको बताया, मै आ गया” उसने कहा,

“बाबा जी, दारु-शारू, कोई कबाब शबाब?” शर्मा जी ने पूछा,

“अरे नहीं!” उसने जवाब दिया!

“ओह! माफ़ कीजिये बाबा अमली साहब!”

“अच्छा, आप काम बताइये मुझे” अमली बोला.

“काम बड़ा है ज़बरदस्त है!” शर्मा जी ने कहा,

“ज़बरदस्त? कैसे?’ अमली ने कहा,

“अरे साहब! आपने उसकी प्रेमिका के पति का काम किया ना?” शर्मा जी ने कहा,

“उसका, मतलब उज्जवल का?” वो बोला,

“हाँ हाँ!” शर्मा जी ने कहा,

“हाँ किया, आज देखूँगा, क्या हुआ उसका, उस सुभाष का!” अमली ने कहा,

“सुन अमली! सुभाष अब ठीक है!” अब मैंने कहा!

अब बाबा ठिठका!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“अबे सुन माँ के ** बाबा अमली तेरी माँ की ** बहन के ** तू क्या समझता है? हम तेरे मुरीद हैं?” शर्मा जी ने कहा और एक ज़ोरदार झापड़ रसीद किया अमली को!

अमली की तो जैसे जान निकल गयी!

“ये……………..ये क्या है?” उसने पूछा, तब तक हम सभी खड़े हो गए थे!

“बहन के तेरी माँ की तेरो माँ का अमला * मै कुत्ते!” श्रमे जी ने कहा और एक लात दबा के मारी उसके चेहरे पर अपने फौजी जूतों से! अमली के चेहरे पर निशान उभर गए!

‘आया.आया..आआ. आप कौन है?” अमली बाबा ने अपना चेहरा साफ़ करते हुए पूछा!

“तेरी माँ को ** बहन के **** तूने किया था ना सुभाष के मारण?” शर्मा जी ने कहा और उसको उसके बालों से पकड़ के हिला दिया!

“ऐ! तू मुझे नहीं जानता, मै क्या हूँ?” अमली ने कहा,

“अबे साले कुत्ते तेरा मै वो हाल करने वाला हूँ कि तू कुत्ते के भी साथ नहीं खा सकता!” मैंने कहा!

और तब मैंने भंजनिका का आह्वान किया! भंजनिका शक्ति ने उसके शरीर में असंख्य फोड़े उत्पन्न कर दिए तब ही!

“सुन माँ के ** तेरा इलाज कोई नहीं कर सकता अब!” शर्मा जी ने कहा,

फोड़े उभरते देख अमली बबा रोया अब!

“मैंने क्या किया गुरुवर?” उसने कहा,

“तंत्र का गलत प्रयोग” मैंने बताया!

वो अब रोया!!

 

मैंने वापिस लिया मंत्र, उसके फोड़े शांत हुए तो वो फिर संयत हुआ, हाथ जोड़ के खड़ा हो गया, जैसे गुहार लगा रहा हो, आँखों में आंसू ले आया! फिर बोला, “कौन सा गलत प्रयोग जी?”

“बताता हूँ, तुझे उज्जवल याद है?” शर्मा जी ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“हाँ, याद है” उसने बताया,

“किसलिए आया था वो तेरे पास?” शर्मा जी ने पूछा,

“एक प्रयोग करवाने आया था” उसने साफ़ साफ़ कहा,

“कैसा प्रयोग?” शर्मा जी ने पूछा,

“जी मारना था किसी को” उसने बताया,

“किसको?” उन्होंने पूछा,

“कोई सुभाष है” उसने बताया,

“किसलिए मारना था?” उन्होंने पूछा,

“उसने कहा कि एक रोड़ा है उसके प्यार के बीच में” उसने बताया,

“रोड़ा?” किस से प्यार?’ उन्होंने पूछा,

“एक लड़की है कंचन” उसने कहा,

“तो उज्जवल ने कहा कि वो कंचन से प्यार करता है, और सुभाष उसके और कंचन के बीच में एक रोड़ा है?” उन्होंने पूछा,

“हाँ जी” उसने हामी भरी,

“कितने पैसे लिए तूने?” उन्होंने पूछा,

“पंद्रह हज़ार रुपये” वो अब तोते की तरह, से सहमा सहमा बोलता रहा,

“कब तक मारना था उस सुभाष को?” उन्होंने पूछा,

“एक महीने में” वो बोला,

“हरामज़ादे! कमीन! कुत्ते! वो तो बच गया! अब तुझे कौन बचाएगा? और कौन बचाएगा उस मादर** उज्जवल को?” शर्मा जी ने उसको एक धक्का मारते हुए कहा, वो नीचे झुक और ‘आह’ बोलते हुए फिर से खड़ा हो गया!

“माफ़ कर दीजिये, आगे से ऐसा न होगा” उसने घबराते हुए कहा,

“आगे तू इस लायक बचेगा तो करेगा न?” उन्होंने उसको एक और लात मारते हुए कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“माफ़ कर दो गुरुवार, अब न होगा ऐसा, मै भटक गया था, लालच आ गया था मुझे” उसने अब रोते हुए कहा!

“बहन के ** माफ़ी मांग जाके उस लड़के सुभाष से, हमसे क्या फायदा?” उन्होंने उसके बाल पकड़कर आगे खींचते हुए कहा!

“मत मारो साहब, मत मारो” उसने हाथ जोड़ कर कहा,

“कहाँ मार रहे हैं तुझे? और अभी मारा ही कहाँ है?” उन्होंने कहा,

“गलती हो गयी जी” उसने अब मुझे देखते हुए कहा,

“अगर हम न आते तो अब तक तू मार चुका होता उस लड़के को, समझा?” मैंने कहा,

“साहब, मै वापिस ले लूँगा प्रयोग” उसने कहा,

“कोई ज़रुरत नहीं उसकी, मैंने ठीक कर दिया है उसको” मैंने कहा,

“इस बार माफ़ कर दो, आगे से नहीं होगा ऐसा” उसने कहा,

“तू बार बार करेगा ऐसा अगर इस बार छोड़ दिया तो कुत्ते!” शर्मा जी ने उसको एक उलटे हाथ का तमाचा मारते हुए कहा,

वो सिहर गया!

अब मैंने तोमाल-मंत्र पढ़ा और फिर थूक दिया अमली बाबा पर! बाबा दोहरा हो गया दर्द के मारे! सारी विद्याओं से हाथ धो बैठा! वो खाली हो गया था! उसके भूत-प्रेत जा छिटके इधर से उधर!

वो कराहता रहा! तड़पता रहा! कभी ऐसा भी होगा ये कभी न जाना था उसने! वो कभी पेट पकड़ता, कभी गला और कभी छाती पर घूंसे मारता अपने!

मै आगे बढ़ा और उस से बोला,”सुन कमीन इंसान! तेरे पास मात्र चौबीस घंटे हैं, तेरा कमर से नीचे का भाग शिथिल हो जाएगा, जो करना हो कर ले!”

उसने सुना लेकिन उसके गले से आवाज़ न निकली! उसका गला शुष्क हो गया था! उसके शरीर का द्रव्य उड़ रहा था धीरे धीरे! मैंने चेतन-मंत्र पढ़ा अब ठीक किया उसे! ठीक होते ही चिल्लाने, रोने पीटने लग गया! लेकिन बोला कुछ भी नहीं!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“अब खड़ा हो यहाँ से माँ के ** इस से पहले कि तेरी छाती फट जाए, जा! जाके इलाज करा अपना!” शर्मा जी ने उसको उठा कर बाहर की तरफ धक्का देते हुए कहा!

वो बाहर भागा और भागता ही चला गया! उसके पास समय कम था!

हमारा भी काम अब समाप्त हो चुका था! मै उज्जवल को एक और मौका देना चाहता था! मौका मायने कि पहले कंचन स्वयं उसको धिक्कारे!

हम थोडा और ठहरे वहाँ, खाना खाया और फिर उसके बाद दिल्ली की ओर चल पड़े!

हम उसी शाम दिल्ली पहुँच गए!

वहाँ, कंचन से मुलाक़ात हुई, सुभाष की हालत ठीक थी अब! उसके फेंफडों में रक्त-स्राव रुक गया था! हालत में हर घंटे सुधार हो रहा था!

मैंने कंचन को बुलाया और कहा, “कंचन, उस बाबा का काम तो हो गया, सबक मिल गया उसे, अब आप बताओ क्या करना है उस उज्जवल का?”

“गुरु जी, मैंने उसको धिक्कारा है बहुत, उसने मेरे पति के जीवन से खिलवाड़ किया, उसे तो नरक में भी जगह नहीं मिलेगी” कंचन ने कहा,

चलो ऐसा सुन मुझे संतोष हुआ!

मित्रगण! उसके बाद हम वहाँ से वापिस आ गए! कंचन ने कहा कि सुभाष के ठीक होते ही वो मुझ से सुभाष के साथ मिलेगी!

कोई बीस-बाइस दिन बीते, एक रोज कंचन और सुभाष आये मुझसे मिलने! साथ में कंचन के छोटे भाई भी आये थे! अब सुभाष ठीक हो गए थे! कंचन के ह्रदय से वो विकृत स्मृतियाँ धूमिल हो चुकी थीं! लेकिन मुझे एक बात और पता चली! चकित कर देने वाली!

उस दिन जब हम वहाँ से आये थे और कंचन ने धिक्कारा था उज्जवल को, उसके अगले दिन उज्जवल ने नदी में कूद कर रात के समय आत्महत्या कर ली थी! अपने सुसाइड-नोट में उसने कुछ अधिक नहीं लिखा था, बस इतना कि उसे अपने जीवन पर धिक्कार है……….

आज कंचन खुश है सुभाष के साथ, उनके एक पुत्र संतान भी है! कंचन का व्यवसाय और बढ़ गया है! सुभाष अपने व्यवसाय में खुश हैं!

उज्जवल का छोटा भाई अब भी आता है कंचन के पास कपडे लेने! उज्जवल की पुत्री को वही पाल रहा है!


   
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श्रीशः उपदंडक
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मित्रो! एक अनुचित निर्णय से सम्पूर्ण जीवन तबाह हो सकता है, ये इसीका उदाहरण है! आखिर क्या मिला उज्जवल को? दरअसल उज्जवल प्यार का अर्थ समझ ही न सका! जीवन अनमोल है और उस से भी अनमोल व्यक्ति का विवेक! ये विवेक ही इस नदी रुपी संसार में देह की नैय्या को चप्पू की तरह खेता है! ज़रा सी दिशा गलत और नैया मंझधार में!

---------------------------------साधुवाद!-----------------------------


   
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