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वर्ष २०१० दिल्ली की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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कभी सोचा भी नहीं था कि दुनिया इतनी छोटी भी हो सकती है! कोई भूला-बिसरा शख्स दुबारा से उसी नैय्या में फिर से सवार हो सकता है!

कंचन उस रत घर पहुंची, उज्जवल, नितिन और सुभाष घर में थे, सुभाष के कमरे में मदिरा के जाम चल रहे थे, कंचन चुपके से अपने कमरे में चली गयी, और धम्म से अपने बिस्तर में धंस गयी! उसको कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, सब कुछ बेमायनी और कड़वा सा महसूस हो रहा था! वो कड़वे लम्हे बेहद कड़वे हो चले थे, उसने अपनी अलमारी खोली और फिर अपने कपडे बदल गुसलखाने तक चली गयी, हाथ-मुंह धोके आई तो सुभाष कमरे में मौजूद थे, बोले, “आ गयीं कंचन?”

“हाँ, अभी दस मिनट पहले” कंचन ने मुंह पोंछते हुए कहा,

“ठीक है, थोडा आराम कर लो और फिर खाना लगवा दो” सुभाष ने कहा और बाहर चले गए,

कंचन वहीँ बिस्तर पर बैठ गयी, अपना बैग खोल और कुछ हिसाब-किताब के कागज़ निकाले, फिर एक दो जगह फ़ोन किया, और फिर थोडा आराम, उसके उठी और रसोई में जाकर नौकरानी से खाना लगवा दिया उन तीनों के लिए, खाना परोस दिया गया था, कंचन वापिस अपने कमरे में आ गयी, स्वयं ने खाना न खाया और न ही मंगवाया, वो लेट गयी बिस्तर में, उसकी नज़र दीवार पर लगे सुभाष के फोटो पर पड़ी, क्या करे? बता दे वो सुभाष को? नहीं नहीं! न जाने क्या सोचने लग जाएँ वो? एक और आफत गले पड़ जाए? नहीं, वो नहीं बतायेगी सुभाष को!

तभी अचानक से सुभाष अन्दर आये कमरे में, आके बोले,”कंचन? खाना खा लिया?”

“अ….अभी नहीं” कंचन ने कहा,

“क्यों?” सुभाष ने पूछा,

“अभी भूख नहीं है” कंचन ने कहा,

“क्या बात है? तबियत तो सही है?” सुभाष ने कंचन की कलाई पकड़ते हुए पूछा,

“हाँ, तबियत ठीक है मेरी” कंचन ने बताया,

“तो खाना खाओ न?” सुभाष ने कहा,

“अभी खा लूंगी, आपने खाया?” कंचन ने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“हाँ, खा लिया” सुभाष ने कहा और फिर बिस्तर पर पाँव ऊपर करके बैठ गए,

“और वे लोग?” कंचन ने पूछा,

“हाँ उन्होंने भी खा लिया, एक थाली वापिस करवा दी थी उज्जवल ने, नितिन के साथ ही खाया उसने” सुभाष ने बताया,

“अच्छा” कंचन ने कहा,

तब सुभाष ने नौकरानी को आवाज़ दी और कंचन के लिए खाना मंगवा लिया, नौकरानी खाना ले आई तो कंचन ने खाना खाया,

खाना खा कर सो गए सभी!

सुबह नींद जल्दी ही खुल गयी कंचन की, कमरा खोल बाहर गयी, तब तक सुभाष सोये हुए थे, बाहर आ कर सीधा निवृत होने गयी वो, और जब बाहर आई तो उज्जवल खड़ा दिखाई दिया, अपने कमरे के बाहर, कंचन ठिठकी परन्तु आगे बढ़ी,

“नमस्कार” उज्जवल ने कहा,

कंचन ने कोई जवाब नहीं दिया और अपने कमरे में आ गयी, कुछ कागज़ निकाले और फिर कुर्सी पर बैठ हिसाब-किताब में लग गयी, तभी नौकरानी चाय ले आई, नौकरानी उज्जवल और नितिन को चाय दे आई थी, कंचन ने अपना कप उठाया और रख लिया मेज पर, और फिर से हिसाब-किताब में मशगूल हो गयी!

करीब साढ़े आठ बजे कंचन तैयार हुई अपनी कार्य-शाला जाने के लिए, उसने सुभाष से कहा, “मै चलती हूँ अब, इनका माल तैयार करवाना है”

“ठीक है, मै पहले इनको छोडूंगा स्टेशन फिर उसके बाद दफ्तर जाऊँगा” सुभाष ने कहा,

“ठीक है” कंचन ने कहा, और कंचन बाहर निकल गयी घर से,

बाहर उसकी गाडी के पास उज्जवल खड़ा था, सिगरेट पीते हुए, उज्जवल ने देखा नहीं था कंचन को, वो पीठ पीछे किये हुए खड़ा था, कंचन ने गाडी स्टार्ट की और फिर वहाँ से चल दी, उज्जवल ने उसको गुजरते हुए देखा और कंचन ने देखा उसको कनखियों से!

कंचन ने गाडी के शीशे में देखा, उज्जवल वहीँ खड़ा था, गाडी को जाते देख रहा था!

 


   
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श्रीशः उपदंडक
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कंचन ने कपडा मंगा लिया था और नितिन का काम आरम्भ किया जा चुका था, अहमद मियां ने काम की गुणवत्ता का ख़ास ख़याल रखा था! और फिर कंचन भी यही चाहती थी की सुभाष के सुझाए काम को वो हर हद तक बढ़िया ही कराएगी, उस दिन सारा, व्यस्त रही कंचन वहाँ!

शाम को घर पहुंची, सुभाष नहीं पहुंचे थे अभी तक वहाँ, खैर, वो घर पहुंची और हाथ-मुंह धो अपने बिस्तर में लेट गयी, तभी सुभाष भी आ गए!

“आज जल्दी आ गयीं कंचन?” सुभाष ने पूछा,

“हाँ, नितिन का काम लगवा रखा है, सारा दिन उसी में व्यस्त रही मै” कंचन ने बताया,

“अच्छा!” सुभाष ने अपना बैग रखते हुए कहा,

“कपडा आगया था?” सुभाष ने पूछा,

“हाँ” कंचन ने कहा,

“अच्छा! अच्छा!” सुभाष सोफे पर बैठते हुए बोले,

“पहले मै उनको पचास पीस भेज दूँगी इस इतवार तक, उसके बाद जैसे ही माल तैयार होगा, भेजती रहूंगी” कंचन ने कहा,

“जैसा तुम चाहो कंचन” सुभाष ने कहा,

“ठीक है, मै अगले पचास पीस अगले हफ्ते भेज दूँगी” कंचन ने कहा,

“ठीक है, अपने आप देख लो अब तुम” सुभाष ने कहा,

तभी जी उचटा कंचन का, उठी और जाके गुसलखाने तक गयी, वहाँ थोड़ी कै सी आयीं उसे, लेकिन पूरी नहीं, वो वापिस आई कमरे में तब, सुभाष ने पूछा, “क्या हुआ कंचन?”

“पता नहीं, अचानक से जी मितलाया, लेकिन उलटी नहीं आई” कंचन ने बताया,

“अच्छा! अच्छा! वाह!” सुभाष ने कंचन को अपनी बाजुओं में भरते हुए हुए कहा!

“वाह? किसलिए?” कंचन ने भी मृदु-स्वभाव में प्रश्न किया!

“कल चलो मेरे साथ!” सुभाष ने कहा,

“कल? कहाँ?” कंचन ने हैरानी से पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“डॉक्टर पर!” सुभाष ने हंस कर कहा,

“क्यों?” कंचन ने सवाल किया,

“कल पता चल जाएगा न इसका!” सुभाष ने कहा,

“लेकिन क्या?” कंचन ने पूछा,

“तुमने गर्भधारण कर लिया है कंचन!” सुभाष ने बताया,

“क्या?” कंचन ने विस्मय से पूछा,

“हाँ!” सुभाष ने कहा,

“तो आप डॉक्टर भी हो!” कंचन ने मुस्कुराते हुए पूछा,

“नहीं कंचन! मै डॉक्टर काहे का!” सुभाष ने कहा,

और सच में दोस्तों!

अगले दिन डॉक्टर ने ये पक्का कर दिया की कंचन ने गर्भधारण कर लिया है!

ये खबर सुन जहां सुभाष सातवें आसमान पर थे वहीँ कंचन पर अब मातृत्व का मद चढ़ने लगा था! ऐसा ही होता है! पितृत्व-मातृत्व सुख से बढ़कर क्या? पित्र-ऋण से मुक्ति और स्त्री अपने स्त्री-धर्म से मुक्त!

कुछ समय बीता, सुभाष ने कंचन का ख़याल रखना अधिक कर दिया! खान-पान का सारा प्रबंध वही करते थे! क्या खिलाना है, और क्या पिलाना, सब सुभाष ने अपने सर ले लिया! कंचन ऐसा पति पा धन्य हो गयी थी! सुभाष उसका ध्यान एक माँ की तरह, एक बाप की तरह और एक पति की तरह रखते थे! उन्होंने अपने माँ को भी बुला लिया था दिल्ली उनके गाँव से! सब कुछ ठीक था वहाँ! कंचन को सुभाष स्वयं छोड़ते उसकी कार्य-शाला और स्वयं लाते उसको घर!

 

और फिर कुछ दिनों के बाद सुभाष को खबर मिली कि उज्जवल की पत्नी अस्पताल में काफी गंभीर हालत में भर्ती कराई गयी है, सुभाष ने उज्जवल से कहा कि वो उसको यहाँ दिल्ली ले आये, बाकी का इलाज उसके ठीक होने तक यहीं करा लेना, उज्जवल ने भी हाँ कही लेकिन…….उज्जवल की पत्नी अपने जीवन से संघर्ष करती हुई और मृत्यु को बार बार ठेंगा


   
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श्रीशः उपदंडक
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दिखाने के बावजूद भी एक दिन मृत्यु से हार गयी, उसकी मौत हो गयी, टूट गया उज्जवल, एक तो संतान छोटी ऊपर से पत्नी की मृत्यु का दुःख! विपातियों ने घेर लिया उसको!

उज्जवल की पत्नी की मृत्यु के खबर सुन सुभाष को तो दुःख हुआ ही लेकिन कंचन ने भी अपना दुःख जताया, वो भी सुभाष के साथ उज्जवल की पत्नी के अंतिम-संस्कार रस्म में शामिल होने हेतु तैयार हो गयी और उसी दिन दिल्ली से रवाना हो गए दोनों उज्जवल के घर के लिए! शत्रु चाहे कैसा भी हो, परन्तु वो अपने अंतिम समय में असहाय होता है, अतः उसके अंतिम समय में राग, द्वेष और शत्रुता त्याग देनी चाहिए! यही कंचन ने निश्चित किया था, और फिर उज्जवल परोक्ष रूप से कंचन का शत्रु कहाँ ठहरा?

खैर, अगले दिन पहुंचे सुभाष और कंचन वहाँ, नमस्कार इत्यादि हुई, मात्र हाथ ही उठे नमस्कार मुद्रा में, मुंह से कोई शब्द नहीं निकला, सुभाष ने उज्जवल को हिम्मत बंधाई और अपना दुःख जताया, उज्जवल के नेत्रों से अश्रु फूट पड़े, उसको अपनी संतान की चिंता थी, उस अबोध को तो मालूम ही न था कि हुआ क्या था!

अंतिम-संस्कार रस्म पूर्ण हुई, सुभाष और कंचन एक दिन और वहाँ ठहरे और फिर विदा ले वापिस हो गए, हाँ, कंचन और उज्जवल की कोई बात न हुई एक दूसरे से!

कंचन और सुभाष दिल्ली पहुंचे और अपने अपने काम में व्यस्त हो गए, कोई नौ-दस दिन बीते होंगे, एक दिन सुबह की बात है, उज्जवल का फ़ोन बजा सुभाष के फ़ोन पर और उस समय सुभाष गुसलखाने में थे, फ़ोन बजा और कट गया, फिर दुबारा बजा, फिर कट गया, तीसरी बार बजा तो कंचन ने उठा लिया फ़ोन, बोली, “हेल्लो”

“हेल्लो! वो सुभाष जी से बात करवा दें मेरी आप” उज्जवल ने कहा,

“वो अभी गुसलखाने में हैं, आप दस मिनट के बाद कॉल कर लीजिये” कंचन ने कहा और फ़ोन काट दिया,

दस मिनट बीते, और सुभाष बाहर आये गुसलखाने से, कंचन ने बता दिया कि उज्जवल का फ़ोन आया था और आपसे बात करना चाहता है, और कंचन ने कह दिया है कि कोई दस मिनट के बाद कॉल कर ले, सुभाष ने भी इंतज़ार करना ही बेहतर समझा, लेकिन काफी देर बाद भी कोई फ़ोन नहीं आया, सुभाष ने टाल दिया इसे फिर और फिर उसके बाद दोनों ही अपने अपने काम पर निकल गए,

शाम को वापिस आये, उस दिन कंचन ने माल की दूसरी खेप भी भिजवा दी थी, ये बात कंचन ने सुभाष को बता दी, उसी रात को कंचन अपने हिसाब किताब में मशगूल थी और सुभाष ज़रा


   
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श्रीशः उपदंडक
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बाहर तक गए हुए थे कुछ सामान खरीदने के लिए, फ़ोन उनका घर पर ही था, सुभाष का फ़ोन बजा, ये उज्जवल का था, न जाने क्यूँ उस दिन कंचन ने पहली बार में ही फ़ोन उठा लिया, बोली,”हेल्लो?”

“हेल्लो कंचन!” उज्जवल के मुंह से निकला, फिर झेंप गया और फिर से बोला, “अ..आ. माफ़ कीजिये, मिसेज़ सुभाष”

“जी बोलिए?’ कंचन ने बात आगे बढ़ाई,

“वो..सुभाष जी हैं क्या?” उज्जवल ने पूछा,

“नहीं, वो बाहर तक गए हैं, आप पंद्रह-बीस मिनट तक फ़ोन कर लीजिये” कंचन ने बताया,

“जी….ठीक है” उज्जवल ने कहा,

और उसके बाद……………उसके बाद न तो फ़ोन कंचन ने ही काटा और न उज्जवल ने ही! थोड़ी देर ऐसे ही मौन रहे दोनों! जैसे कि दोनों ही इंतज़ार कर रहे हों किसी एक के बोलने का! फिर उज्जवल की तरफ से फ़ोन कट गया!

थोड़ी देर बाद सुभाष आ गए, कंचन ने उनको उज्जवल के फ़ोन के बारे में बता दिया, सुभाष ने तभी उज्जवल को फ़ोन मिला दिया और बातें करने लगे! बातें किसी अन्य विषय पर थीं, अतः कंचन ने अपने कान वहाँ से हटा लिए और अपने हिसाब-किताब में फिर से लग गयी!

अगले दिन सुभाष ने कंचन को बताया कि किसी कारण से उज्जवल यहाँ दिल्ली आ रहा है, सुभाष और उज्जवल ने चंडीगढ़ जाना है, कोई मीटिंग है वहाँ, कंचन ने इस कान से बात सुनी और उस कान से निकाल दी!

और फिर अगले दिन सुबह कंचन के जाने के बाद उज्जवल वहाँ आया, सुभाष ने बता दिया था उसको कि वो कोई पांच बजे चंडीगढ़ के लिए रवाना हो जायेंगे, रात वहीँ रहेंगे और अगले दिन शाम को वहाँ से वापिस दिल्ली आयेंगे!

सुभाष और उज्जवल निकल गए शाम पांच बजे चंडीगढ़ और ये खबर सुभाष ने कंचन को फ़ोन कर बता दी!

 

अगले दिन रात तक वे दोनों वापिस आ गए दिल्ली, उज्जवल वहीँ ठहरा उसी रात, कंचन का कोई सामना नहीं हुआ उस से, कंचन ने खाना खाया और फिर सो गयी जल्दी ही, उसे पता नहीं


   
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श्रीशः उपदंडक
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चला कि सुभाष कब आये उज्जवल के पास से उठके और आके सो गए, सुबह आम दिन की तरह उठी कंचन और अपनी दिनचर्या आरम्भ की, बाद में सुभाष को बताया कि वो अपने काम पर जा रही है और ये बताके चली गयी, उज्जवल को छोड़ने जाना था सुभाष ने सो वो वहीँ रहे दोपहर तक और फिर उज्जवल को छोड़ने चले गए, और फिर वहाँ से अपने दफ्तर पहुँच गए, दफ्तर पहुँचने पर कंचन से बातें कीं और इत्तिला दी कि उज्जवल को छोड़ आये हैं वो!

उस दिन काफी व्यस्त रही कंचन! शाम को घर पहुंची और थक कर बिस्तर पर गिर गयी, थकावट अधिक हो गयी थी उसको, शाम को थोड़ी देर बाद ही सुभाष भी वापिस आ गए, वो भी थके से लग रहे थे,

अगले दिन सुबह कोई चार बजे की बात है, सुभाष ने कंचन को उठाया कि उनके पेट में भयानक दर्द है, कंचन चौंक के उठी, उसने देखा कि सुभाष अपने पेट को अपने दोनों हाथों से दबाये बैठे थे, कंचन ने पूछा,”क्या बात है सुभाष?’

“मेरे पेट में दर्द है काफी कंचन” सुभाष ने जैसे कराह के कहा,

“कल दफ्तर में कुछ खाया तो नहीं था?” कंचन ने पूछा,

“नहीं, बस लंच किया था” सुभाष ने बताया,

इसके बाद वो उठे और शौच के लिए चले गए, कंचन ने तब तक दवाई निकाल ली थी बॉक्स से, आते ही दो गोलियां दे दीं सुभाष को, सुभाष ने गोलियां खा लीं और लेट गए, पेट में अब भी भयानक दर्द था, कंचन बैठी थी, उनके पेट पर हाथ फेर रही थी कि तभी सुभाष उठे और फिर से शौच के लिए भागे, पेट ज्यादा ही खराब हो गया था,

पांच बजे तक पंद्रह-सोलह बार शौच के लिए जा चुके थे, दवा का कोई असर नहीं हुआ था, न तो कंचन को और न ही स्वयं सुभाष को समझ आ रहा था कि अचानक पेट में ऐसा तीव्र दर्द कैसे हुआ? और दस्त भी नहीं आ रहे?

सुभाष अब दर्द के कारण कराहने लगे थे, कंचन से बर्दाश्त नहीं हो रहा था, वो बोली, “सुभाष, क्या डॉक्टर को बुला लूँ?”

“नहीं, हम चलते हैं डॉक्टर के पास” सुभाष ने उठते हुए कहा,

“चलिए” कंचन ने कहा और अपने कपडे बदलने लगी,

दोनों तैयार हुए तो कंचन ने अपनी गाड़ी निकाली सुभाष को बिठाया और फिर डॉक्टर के पास चल दिए, कोई दस मिनट के बाद एक नर्सिंग-होम पहुंचे, सम्बंधित डॉक्टर को दिखाया


   
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श्रीशः उपदंडक
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गया, डॉक्टर ने चेक किया और उनको वहीँ लिटा दिया, कुछ दवाइयां दीं और आराम करने को कहा,

कंचन ने डॉक्टर से कारण पूछा, तो डॉक्टर ने कुछ टेस्ट करने को कहा,

थोड़ी देर बाद सुभाष को ले जाया गया टेस्ट करने के लिए, कोई टेस्ट किया गया, लेकिन टेस्ट में कुछ नहीं आया, मामला विचित्र सा लगा! उनको और दवाइयां दी गयीं लेकिन कोई आराम न हुआ, अब तक सुभाष दर्द के मारे छटपटाने लगे थे, कंचन को चिंता सताने लगी थी सुभाष की, डॉक्टर जो कर सकते थे, कर रहे थे,

थोड़ी देर बाद फिर से सुभाष को ले जाया गया अन्दर, कोई विशेषज्ञ चिकित्सक आया था सुभाष की जांच करने, उसने जांच के बाद विषाक्त-भोजन कारण बताया सुभाष के दर्द का, अब उसके निदान हेतु उनका उपचार आरम्भ किया गया, सुबह के आठ बज चुके थे, चिकित्सक ने इंजेक्शन दे कर सुला दिया था सुभाष को, लेकिन सुभाष सोये अवश्य परन्तु पेट में जैसे मरोड़ उठते रहे उनके!

चिकित्सक ने पूछा कंचन से, “क्या खाया था रात को इन्होने?”

कंचन ने बता दिया जो खाया था, खाना घर का ही बना था, कोई बाहर का नहीं था,

“अच्छा, कहीं बाहर गए थे ये किसी पार्टी या फंक्शन में?” चिकित्सक ने पूछा,

“हाँ, ये चंडीगढ़ गए थे दो दिन पहले” कंचन ने बताया,

“हो सकता है वहाँ कुछ विषाक्त-भोजन खा लिया हो” चिकित्सक ने बताया,

“हो सकता है” कंचन ने कहा,

तभी कोई आधे घंटे के बाद सुभाष ने आँखें खोलीं, कंचन दौड़ी हुई गयी वहाँ, तब चिकित्सक ने उसको बाहर भेजा

और कुछ पूछताछ की सुभाष से, सुभाष ने बताया कि चंडीगढ़ में कुछ उल्टा सीधा तो नहीं खाया था, खैर, उनका इलाज हुआ और शाम तक कुछ लाभ होने तक वो वापिस अपने घर आ गए, लेकिन दर्द का कारण पता न चल सका, चिकित्सक ने उनको रोज आने को कहा शाम के समय, दफ्तर आने के बाद, ताकि इलाज बेहतर हो सके और जांच चलती रहे!

 


   
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श्रीशः उपदंडक
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करीब हफ्ता गुजर गया, सुभाष दवाइयों का सेवन करते रहे, अब तबीयत ठीक थी उनकी, पेट में दर्द समाप्त हो गया था, उन्होंने भी इसको विषाक्त-भोजन के कारण ही माना था, कंचन भी प्रसन्न हो गयी थी सुभाष को स्वस्थ देखकर!

एक रात की बात है, सुभाष ने कंचन को उठाया, “कंचन? ज़रा उठो तो?”

कंचन उठी और बोली, उनींदा तो थी ही,”क्या हुआ?’

“ज़रा मेरी कमर देखना तो?” सुभाष ने कहा,

कंचन ने लाइट जलाई, और सुभाष की कमर देखी, वहाँ तीन आड़ी रेखाएं खिंची थीं, उनमे से रक्त निकल रहा था, रेखाएं ऐसी कि जैसे किसी बिल्ली ने पंजे मारे हों,

“अरे? क्या क्या हुआ?’ कंचन ने हाथ लगा के उनकी कमर देखी तो बोली,

“क्या है कंचन?” सुभाष ने कंचन से पूछा,

“अजीब सी खरोंच हैं” कंचन ने बताया,

“खरोंच?” सुभाष को हैरत हुई,

तब सुभाष ने बिस्तर को देखा कि कहीं कुछ ऐसा वैसा तो नहीं पड़ा वहाँ जिस से खरोंच पड़ गयी हों? लेकिन ढूँढने पर भी कुछ न मिला, लेकिन वहाँ उनको दर्द काफी था, कंचन ने एक एंटी-सेप्टिक क्रीम लगा दी वहाँ, लेकिन कारण समझ न आया खरोंच का, बनियान भी उलटी करके देख ली, लेकिन फिर भी कुछ समझ नहीं आया!

वो दोनों कुछ देर बैठे ऐसे ही, तभी उनको अपनी जांघ पर भी ऐसा ही दर्द हुआ, उन्होंने अपना पाजामा खोल और देखा, तो वहाँ भी ऐसी ही रेखाएं थीं! बीच जांघ पर! वहाँ से भी रक्त निकल रहा था! सुभाष और कंचन घबरा गए दोनों, ये क्या माजरा है? ये क्या है? अभी कमर पर और अब जांघ पर? जैसी रेखाएं कमर पर थीं वैसी ही जांघ पर! ऐसा कैसे हो सकता है?

“ये क्या हो रहा है सुभाष?’ कंचन ने उन रेखाओं को देखते हुए कहा,

“मुझे भी समझ नहीं आ रहा कंचन” सुभाष ने बताया,

कंचन ने वहाँ भी एंटी-सेप्टिक क्रीम लगा दी, लेकिन ऐसा न कभी सुना था और न देखा ही था, ये कैसा अजीब रोग है? यही सोच रही थी कंचन,

“सुबह चलिए डॉक्टर के पास” कंचन ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“ठीक है, सुबह दिखाते हैं” सुभाष ने कहा,

फिर कसमसाते हुए सो गए सुभाष और कंचन भी,

सुबह नींद खुली तो कंचन ने सुभाष की कमर देखी, वहाँ कोई भी रेखा नहीं थी!! तब उसने सुभाष की जांघ देखी, वहाँ भी कोई रेखा नहीं थी! हैरत की बात थी! सुभाष के भी होश उड़ गए थे! रात को असहनीय दर्द हो रहा था उनको उन रेखाओं की वजह से, और सुबह डॉक्टर के पास भी जाना था, लेकिन अब न तो वहाँ रेखाएं ही थीं और न ही कोई दर्द! कंचन ने हाथ लगा के देखा, सबकुछ सामान्य था, कोई ज़ख्म या रेखा नहीं थी वहाँ पर!

दोनों एक दूसरे का मुंह ताकते रह गए! जब इंसान कोई कारण नहीं ढूंढ पाता तो वो या तो उसको भूल जाता है या फिर दुबारा से हटने का इंतज़ार करता है! ऐसा ही हुआ उनके साथ!

“बड़ी अजीब सी बात है कंचन” सुभाष ने कहा,

“हाँ, मुझे भी समझ नहीं आ रहा” कंचन ने कहा,

“अब डॉक्टर को भी क्या बताएँगे!” सुभाष ने कहा,

“हाँ” कंचन ने कहा,

“चलो छोडो, हो सकता है कोई त्वचा की एलर्जी हुई हो” सुभाष ने कारण ढूँढने की चेष्टा की,

“हाँ, हो सकता है ऐसा” कंचन ने भी समर्थन किया सुभाष का,

तो मित्रगण, वो बात आई गयी हो गयी!

तीन दिन और बीते!

एक रात की बात है, सुभाष सोये हुए थे, तभी एक दम झटके से उठे, साथ में कंचन भी उठ गयी!

“क्या हुआ?” कंचन ने घबरा के पूछा,

“कंचन, मुझे लगा कि कोई आदमी मुझ पर ज़ोर से गिरा है” सुभाष बिस्तर से उठते हुए बोले,

“आदमी?” कंचन ने आश्चर्य से पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“हाँ” सुभाष ने कहा,

“ऐसा कैसे हो सकता है, यहाँ तो कोई नहीं है?” कंचन ने कहा,

“लेकिन मुझे लगा ऐसा” सुभाष ने बताया,

“कोई सपना देखा होगा आपने” कंचन ने कहा,

“नहीं कंचन” सुभाष ने कहा और अपनी छाती पर खुजाया, खुजाया तो दर्द हुआ उनको, उन्होंने कपडे उतारे, जब कपडे उतारे तो वहाँ नील पड़े थे!

दोनों के होश उड़ गए!

 

सुभाष और कंचन ने देखा! देखा सुभाष की छाती पर नील पड़े थे, जैसे वास्तव में कोई गिरा हो उनके ऊपर!

“मैंने कहा था न कंचन?” सुभाष थोडा घबरा के बोले,

“हाँ……हाँ” कंचन ने कहा, वो भी घबरा गयी थी,

“लेकिन यहाँ तो कोई नहीं है सुभाष?” कंचन ने घबरा के कहा,

“कोई न कोई तो था ही कंचन” सुभाष ने कहा,

तभी सुभाष ने नाक पर हाथ लगाया अपनी, नाक में से रक्त-स्राव हो रहा था, हल्के हल्के, ये देख सुभाष भी घबराए और कंचन भी,

“चलो अभी सुभाष” कंचन ने कपडे बदलते हुए कहा,

“कहाँ, अस्पताल?” हाँ,

“चलो, न जाने क्या हो रहा है मुझे, कंचन” सुभाष ने कहा,

“क्या हो रहा है सुभाष?” कंचन ने पूछा,

इस से पहले कि सुभाष कुछ कहते उनको ज़बरदस्त उलटी आई, उन्होंने बिस्तर पर ही उलटी कर दी, उलटी में रक्त आया था, सुभाष ने दो तीन लम्बी साँसें खींचीं और बेहोश हो गए, कंचन ये देख चिल्ला पड़ी, उसकी समझ में न आया कि क्या करूँ? उसने सुभाष को बार बार हिलाया, लेकिन सुभाष बेसुध पड़े थे, तब कंचन ने सुभाष का मुंह पोंछा और एम्बुलेंस को फ़ोन


   
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श्रीशः उपदंडक
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कर दिया, थोड़ी देर में एम्बुलेंस आ गयी, उन्होंने सुभाष को उठाया और तभी दौड़ पड़े अस्पताल की तरफ, आनन्-फानन में कंचन ने अपने बड़े भाइयों को फ़ोन कर दिया, वो भी दौड़े वहाँ से, कंचन ने सुभाष के घर पर अपनी सास और ससुर एवं एक देवर को भी फ़ोन कर दिया, ये दिल्ली में नहीं रहते थे, इसीलिए उनको आने में देरी होनी थी!

सुभाष को अस्पताल लाया गया और गहन चिकित्सा-कक्ष में भेज दिया गया, मारे डर के कंचन ने सुध-बुध खो राखी थी, डॉक्टर्स ने उसको हिम्मत बंधाई, करीब बीस मिनट के बाद कंचन के दोनों भाई वहाँ आ गए, वो गले मिलके रो पड़ी, भाइयों ने हिम्मत बंधाई, हौंसला बढ़ाया और क्या हुआ था ये सब पूछा, कंचन ने सिलसिलेवार सबकुछ बता दिया! कुछ बातें बड़ी रहस्यमयी थीं, जैसे कि रेखाओं का खींचना और स्वतः ही गायब हो जाना, सुभाष को लग्न कि कोई गिरा है और नील का पड़ जाना, फिर अचानक से नाक से रक्त-स्राव होना और उलटी के बाद बेहोश हो जाना, और उलटी में रक्त का आना, ये बातें कुछ अजीब सी थीं, सुभाष एक साधारण आदमी थे, खाने-पीने के शुकीन भी नहीं थे, मित्र-वर्ग भी कम ही था, तो फिर अचानक ऐसा क्या हुआ सुभाष के साथ कि उनकी हालत ऐसी हो गयी?

ये बात कंचन के छोटे भाई को खटक गयी थीं, उन्होंने ऐसा एक वाकया सुना था, उनके दफ्तर में किसी ने बताया था! ऐसा ही कुछ हुआ था वहाँ, खैर उस समय तो चिंता सुभाष की थी, चिकित्सक ने मालूम करने पर बताया कि सुभाष के फेंफडों में रक्त-स्राव हुआ है, उसी कारण से ऐसा हुआ है, लेकिन उस रक्त-स्राव का कोई कारण पता नहीं चल सका है, अभी जांच ज़ारी है, ये सुनके तो बेचारी कंचन फफक फफक कर रो पड़ी, एक एक पल काटना भारी हो गया उसको!

जैसे तैसे सुबह हुई, सुभाष के माता-पिता और भाई भी आ गए थे वहाँ, उन्होंने पूछा कंचन से तो कंचन ने सबकुछ जस का तस बता दिया, लेकिन सुभाष को होश नहीं आया पूरी रात, कंचन का बुरा हाल था, उसके भाई लगातार उसकी हिम्मत बढ़ा रहे थे!

दिन के ग्यारह बजे, कोई सुधार नहीं हुआ सुभाष की हालत में, तभी सुभाष के सेलफोन पर, जो कि अब कंचन के पास था, उज्जवल का फ़ोन आया, कंचन ने फ़ोन उठाया, और बोली “हेल्लो?”

“जी….मिसेज सुभाष, क्या सुभाष नहीं है वहाँ पर?” उज्जवल ने पूछा,

तब कंचन ने सबकुछ बता दिया उज्जवल को, उज्जवल भी परेशान हो उठा उस समय और उसने कहा कि वो आज ही दिल्ली आ रहा है, जो मदद बन पड़ सकती है वो करेगा अपने मित्र के लिए!


   
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श्रीशः उपदंडक
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तभी एक चिकित्सक ने कंचन के भाई को बुलाया, और कहा, “इनकी हालत बिगड़ रही है, इनको किसी बड़े अस्पताल में ले जाइये, हमारे पास ये सुविधाएं नहीं हैं, जिनकी इनको ज़रुरत है”

“हालत बिगड़ रही है? मतलब?” कंचन के भाई ने घबरा के पूछा,

“वो रेस्पोंड नहीं कर रहे हैं” चिकित्सक ने बताया,

“ओह” कंचन के भाई के मुंह से निकला,

“मै एम्बुलेंस भिजवा रहा हूँ आप इस अस्पताल में ले जाइये इनको” चिकत्सक ने उसको कागज़ थमाते हुए कहा,

तब तक कंचन आ गयी, सारा हाल सुनकर और बदहवास हो गयी! खैर, सुभाष को उस अस्पताल से स्थानांतरित कर दिया गया एक बड़े अस्पताल में, सुभाष मृत-देह समान लग रहे थे, क्या करे वो? उसने कभी नहीं देख था ऐसा शांत सुभाष को, उसका कलेजा जैसे मुंह को आ गया! उज्जवल भी आ गया था वहाँ, उसने सबकुछ कंचन से ही पूछा, कंचन ने सबकुछ बता दिया उसको, आँखों में आंसू लिए! उस दिन पहली बार आँखें मिलाईं कंचन ने उज्जवल से!

“कोई बात नहीं कंचन……….माफ़ कीजियेगा, मिसेज सुभाष, सब कुछ ठीक हो जाएगा, चिंता न कीजिये” उज्जवल ने कहा,

 

एक दिन और बीता, फिर रात आई, डॉक्टर्स ने बताया कि सुभाष की बेहतरीन चिकित्सा की जा रही है, घबराएं नहीं, लेकिन अभी तक कोई सुधार के कोई भी लक्षण दिखाई नहीं दे रहे थे सुभाष की हालत में! वहाँ उज्जवल अपना मित्र-धर्म निभा रहा था, भागा-दौड़ी कर रहा था, तभी खबर आई कि सुभाष को एक और उलटी हुई है, रक्त की उलटी, सुभाष की हालत लगातार खराब होती जा रही थी, वो धीरे धीरे कोमा की स्थिति में जा रहे थे! इस खबर ने कंचन को तोड़ दिया, वो रो पड़ी, गुहार लगाने लगी, सभी न उसको समझाया, लेकिन उसका सब्र बाँध तोड़ गया अब, किसी के रोके न रुकी, आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे, उज्जवल शांत खड़ा था, केवल समझा रहा था कंचन को! कंचन उठ के बाहर चली गयी, तब उज्जवल भी उठा और कंचन को देखने चला गया,

कंचन बाहर एक बेंच पर बैठी थी, फफक फफक कर रो रही थी, उज्जवल वहाँ आया और उसके पास जाके खड़ा हो गया, कंचन ने सर उठाके उस को देख और फिर सर नीचे कर लिया, उज्जवल ने कहा, “कंचन”


   
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श्रीशः उपदंडक
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कंचन ने सर उठाया, उसके होंठ फड़क रहे थे,

“कंचन, सुभाष ठीक हो जायेंगे, तुम चिंता न करो” उज्जवल ने कहा,

कंचन ने कुछ न कहा!

“कंचन” उज्जवल ने कहा,

कंचन ने सर उठाके फिर उसको देखा,

“चलो अन्दर चलो” उज्जवल ने कहा,

कंचन उठी और अन्दर चली गयी, उज्जवल वहीँ खड़ा रह गया, अकेला! शायद कोई याद आई हो उसको उस समय! किसी लम्हे की!

उसी रात तीन बजे हालत बिगड़ गयी सुभाष की, मुंह और नाक से रक्त-स्राव हुआ, डॉक्टर्स को कुछ समझ नहीं आ रहा था! यहाँ कंचन किसी अनहोनी से डरी बैठी थी! उज्जवल अब बेचैन सा था, अकेला बैठा बैठा ताक रहा था शून्य में!

और फिर मित्रगण, अगली सुबह आई, दिन के साढ़े ग्यारह बजे, सुभाष की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ, बल्कि और खराब होती गयी हालत, अब माथा ठनका कंचन के छोटे भाई का!

और उसी दिन करीब पांच बजे………………………

शर्मा जी के फ़ोन पर एक फ़ोन आया उनके एक जानकार जोशी जी का, बताया गया कि किसी की हालत बेहद खराब है, बढ़िया इलाज भी माफ़िक़ नहीं आ रहा है, और कोई सुभाष नाम का व्यक्ति ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रहा है! शर्मा जी ने फ़ौरन ये बात मुझे बताई, मेरा भी दिल पसीज उठा, कारण कोई भी हो, कुछ भी हो, एक बार देख लेने में कोई हर्ज़ नहीं, यही सोचा मैंने और मैंने शर्मा जी को स्वीकृति दे दी, हम सात बजे पहुँचने वाले थे दक्षिणी दिल्ली, उस अस्पताल में, उसी दिन!

मै उसी दिन अस्पताल पहुंचा सात बजे, मुझे बताया गया था कि मिलने का समय सात से साढ़े सात तक है, मेरे साथ जोशी जी भी थे जिन्होंने शर्मा जी को सुभाष की हालत के बारे बताया था, कंचन के छोटे भाई ने नमस्कार किया हमे, तो मैंने सबसे पहले सुभाष को देखने का निर्णय किया, मैंने त्रिदूल-मंत्र और कलुष-मंत्र जागृत किये मन ही मन और सुभाष के पास जा पहुंचा, सुभाष का माथा देखते ही मै समझ गया ये बेचारा यामल-मारण का शिकार हुआ है! ये यामल-


   
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श्रीशः उपदंडक
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मारण मालवा क्षेत्र में प्रचलित है! सुभाष के फेंफडों की नसे फट गयी थीं! मानो शरीर का तीन चौथाई भार फेंफडों पर पड़ रहा था! बेचारा सुभाष!

मै बाहर आया, बहार आके सभी से मिला, मैंने कंचन के छोटे बुलाया और कहा कि मुझे बकरे की कलेजी और भेजा चाहिए, मै रात ग्यारह बजे तक होश में ला दूंगा सुभाष को! मरता क्या नहीं करता! कंचन ने दौड़ाया अपने भाई को! वो दौड़ के गया! लेकिन एक शख्श मुझे दूर से खड़े घूर रहा था! ये उज्जवल था!

मित्रगण, आधे घंटे में सामान आ गया सारा, भेजा भी और कलेजी भी, अब मुझे जाना था सुभाष के याहन, घर पर! मैंने कंचन से कहा, कंचन ने मुझे अपने घर की चाबी दे दी, अपने कमरों की, वहाँ उसकी नौकरानी मिलने वाली थी हमको, मै वहाँ से जोशी जी और कंचन के भाई के साथ, शर्मा जी को ले साथ, चल पड़ा सुभाष के यहाँ, आते ही मैंने अपने मंत्र जागृत किये, काल-पुरुष से आगया ली, काल-भोग दिया गया, और फिर मै जुट गया अपने काम में, मै कंचन के बेडरूम में गया, मेरे साथ केवल शर्मा जी ही थे! मैंने शर्मा जी से कहा कि एक थाल ले आयें नौकरानी से, और दो गिलास और इनके घर का चाक़ू, शर्मा जी उठे और सारा सामान ले आये, अब मैंने गुरु-वंदना की, मित्रो! यदि मारण-विद्या काटने में कोई चूक हो जाए तो या तो काटने वाला अथवा उसका लक्ष्य उसी समय मृत्यु को प्राप्त हो जाता है! मै कोई चूक नहीं चाहता था! अतः मैंने बकरे के भेजे के ३ टुकड़े किये, एक हिस्सा कच्चा खाया और आठ कलेजी भी कच्ची! अब मुझ में यर्लव-वर्णी शक्ति का प्रवेश हुआ! मेरी आवाज़ स्त्री समान हो गयी! अब शर्मा जी ने मुझ से प्रश्न किये! जो मैंने उनको बताये थे पूछने के लिए!

उनके प्रत्येक प्रश्न का मैंने उत्तर दिया और उसके पश्चात यर्लव-कन्या मेरा रक्त पी अंतर्ध्यान हो गयी! ये उसका नैवेद्य है मित्रगण!

 

अब मैंने सुभाष का मारण-कर्म काटना आरम्भ किया, कलेजी के इक्कीस टुकड़ों में इक्कीस सुईयां घुसेड़ उनको अभिमंत्रित किया, भेजे में इक्कीस साबुत उड़द के दाने डाल उसको भी अभिमंत्रित कर लिया, भेजे से चेतन-कार्य किया जाता है, और चेतना-शून्य भी किसी को भी! उसके बाद मै वहाँ से उठा, शर्मा जी और जोशी को अपने साथ लिया और यमुना नदी की ओर चले हम, वहाँ मुझे मंत्रोच्चार करते हुए ये कलेजी और भेजा नदी में डालना था, हम नदी पहुंचे और मैंने एक एक सामान नदी में प्रवाहित कर दिया! मारण समाप्त हुआ, अब केवल शक्ति-भोग बचा था, अतः मैंने वहीँ शक्ति-भोग अर्पित कर दिया! मारण-विद्या वापिस हुई!

मारण-विद्या के वापिस होते ही सुभाष को होश आ गया!


   
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