वर्ष २०१० दिल्ली की...
 
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वर्ष २०१० दिल्ली की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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“मुझे बदबू आती है, हर जगह, हर जगह चाहे मै मंदिर में भी जाऊं तब भी” विन्नी ने बताया,

“ऐसा कब से हो रहा है विन्नी?” मैंने पूछा,

“जब से मै वापिस आई हूँ पूना से” उसने बताया,

“और वापिस आये कितना समय हुआ?” मैंने पूछा,

“दो महीने” विन्नी ने बताया,

“हम्म! वहाँ तुम पढने गयीं थीं?” मैंने पूछा,

“हाँ, अपना कोर्स पूरा करके वापिस आई हूँ वहाँ से” विन्नी ने बताया,

उसने नाक पर एक रुमाल रखा हुआ था, बदबू से बचाव के लिए,

“ये बदबू किस तरह की है विन्नी?” मैंने पूछा,

“जैसे कोई कुत्ता मर गया हो” उसने बताया,

“अच्छा, मुर्दा कुत्ते की सी गंध, जैसे कीड़े पड़ गए हों उसमे” मैंने और स्पष्ट किया,

“हाँ” उसने कहा,

“अच्छा, एक बात और बताओ, ऐसा वहाँ कभी हुआ था?” मैंने पूछा,

“नहीं कभी नहीं” उसने बताया,

“वहाँ से आने के कितने दिनों बाद से ऐसा शुरू हुआ?” मैंने पूछा,

“जिस दिन मै आई थी, उस दिन भी मुझे ट्रेन में ऐसी बदबू आ रही थी, लेकिन कोच वातानुकूलित था, फिर भी न जाने कैसे ये बदबू आ रही थी, मुझे ट्रेन में उलटी भी आई थी” उसने बताया,

“अच्छा!” मैंने कहा,

“तो उसी दिन से ये बदबू तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ रही?” मैंने कहा,

“हाँ, कभी कभी जी भी मिचला जाता है मेरा, उल्टियां लग जाती हैं मुझे” विन्नी ने बताया,


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब मै विन्नी के पिता की तरफ पलटा और पूछा, “क्या आपने इसका इलाज करवाया किसी डॉक्टर से?”

“हाँ जी, हर जगह करवाया, सभी ने कहा की बलगम से सम्बंधित बीमारी है, दवाएं भी दीं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ जी” उन्होंने बताया,

“बलगम यदि दूषित हो जाए तो ऐसा संभव है” मैंने बताया,

“जी मैंने हर विशेषज्ञ को दिखाया, बलगम की जांच भी करवाई परन्तु सब निष्फल” उन्होंने सर हिलाते हुए कहा,

“क्या नहाते धोते भी बदबू आती है विन्नी?” मैंने पूछा,

“हाँ, बहुत ज्यादा” उसने बताया,

बेहद अजीब सी बात थी ये! चिकित्सीय इलाज से भी लाभ नहीं हुआ था, और फिर कुछ उल्टा-सीधा चक्कर होता तो भी मेरे सामने विन्नी के आते ही मुझे पता चल जाता, लेकिन ऐसा भी नहीं था!

“विन्नी? तुम्हारे साथ और कौन आया था वहाँ से?” मैंने पूछा,

“मेरी सहेली सिल्की और एक लड़का अनुराग” विन्नी ने बताया,

“क्या इनको भी ऐसी बदबू आती है विन्नी?” मैंने पूछा,

“मैंने पूछा था उसने उन्होंने मना कर दिया” विन्नी ने बताया,

“अच्छा! तो तुम्हारा मतलब चौबीस घंटे तुम्हे ये बदबू आती है?” मैंने पूछा,

“हाँ, चौबीस घंटे, मेरा दिमाग खराब होने वाला ही अब, मै अब बर्दाश्त नहीं कर सकती” विन्नी ये कहते हुए रो पड़ी,

“चिंता न करो विन्नी” मैंने कहा,

“पता नहीं ये मेरे साथ ही क्यूँ हो रहा है?” उसने रोते रोते कहा,

“कोई बात नहीं विन्नी, कुछ कारण तो अवश्य ही है इसका, हम ढूंढ लेंगे” मैंने कहा,

‘मुझे इस बदबू से निजात दिलाइये” उसने हाथ जोड़ते हुए कहा,

मुझे उस पर दया आई, बेचारी दो महीने से वो ये बदबू झेल रही थी, सोते-जागते, उठते-बैठते!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“विन्नी, मै पता चलाता हौं, हिम्मत न हारो तुम” मैंने कहा,

अब वो और तेजी से रोने लगी, उसकी छोटी बहन और माँ ने चुप कराने की कोशिश की उसको!

अब मैंने उसके पिताजी से कहा, “सुनिए, विन्नी की मत जी से बोलिए, कि जो कपडे विन्नी ने पहने हैं वो सारे उतार के एक थैले में भर दे और मुझे दे दें, मै पता करता हूँ कि क्या चक्कर है इस लड़की के साथ?”

“जी अभी कहता हूँ” उन्होंने कहा,

और मै शर्मा जी के साथ बाहर आके ड्राइंग-रूम में बैठ गया,

“कमाल है” शर्मा जी न कहा,

“हाँ, पता नहीं क्या बात है?” मैंने जवाब दिया,

इतने में विन्नी के पिता जी आ गए. बैठ गए और बोले,” जी हमने इसका इलाज एक ओझे से भी करवाया था, कह रहा था कि कोई प्रेत है इस लड़की के साथ, हम तो डर गए”

“कब करवाया था?” मैंने पूछा,

“कोई आठ दिन पहले, उसने एक माला भी दी थी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ उसको भी पहन कर” उन्होंने बताया,

“तो वो प्रेत को हटाता न?” मैंने पूछा,

“उसने कोशिश की, लेकिन कहना लगा ये उसके हाथ में नहीं आ रहा, ताक़तवर प्रेत है” वो बोले,

“अच्छा! ताक़तवर प्रेत” मैंने कहा,

तभी विन्नी की माता जी आ गयीं और उसके कपडे मुझे दे दिए एक झोले में भरके, मै अब वहाँ से उठा और झोले को साथ लिया और उनसे विदा ली!

हम चल पड़े अब अपने स्थान की ओर!

 

मै विन्नी के कपडे किसी ख़ास निशानी के लिए लाया था, खबीस गंध के सहारे पहुँच सकता था किसी स्थान अथवा किसी अन्य तांत्रिक-प्रयोग के स्थान पर, मैंने विन्नी के कपड़ों को पहले


   
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श्रीशः उपदंडक
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शराब के छींटों से मंत्र पढ़कर अभिमंत्रित किया और फिर अलख के साथ में रख दिया और बाहर आ गया! अब शर्मा जी से कह कर खबीस का भोग मंगाने को कह दिया, शर्मा जी तभी चले गए वहाँ से! थोड़ी देर बाद खबीस का भोग आ गया! अब मै अपने क्रिया-स्थल में पहुँच गया! अलख उठायी और अलख-भोग दिया गया!

अब मैंने अपने दुर्दांत खबीस तातार-खबीस को हाज़िर किया! तातार हाज़िर हुआ! उसके गले के कड़े खनखना उठे! मैंने तातार को उसका भोग दिया! उसने भोग लिया और मैंने उसको वो कपडे दिए, उसने सारे कपडे उठाये और तेजी से अपने नथुनों में उसने कपड़ों की गंध समां ली, उसको मैंने उसका उद्देश्य बताया और वो उड़ चला!

करीब बीस मिनट के बाद तातार आया वापिस! उसके हाथों में किसी महिला के बाल थे! बालों का एक पूरा गुच्छा!

अब मैंने तातार से इसके बारे में पूछा, तातार ने मुझे एक एक बात बात दी, कि उसको बदबू क्यूँ आ रही है! मुझे भी ये जानकार बड़ी हैरत हुई! बात ही ऐसी थी! मै इसका खुलासा बाद में करूँगा मित्रो!

मैंने तातार का शुक्रिया किया! उसने अट्टहास लगाया और फिर लोप हो गया! अब मै बाहर आया, वो बालों का गुच्छा मैंने एक जगह संभाल कर रख दिया था! बाहर आया और स्नान के लिए चला गया, उसके पश्चात मै शर्मा जी के पास आया, शर्मा जी से सारी बातें बता दीं! उन्हें भी बेहद हैरत हुई! विन्नी एक तरह से अपनी सजा भुगत रही थी! अनजाने में हुई एक गलती की सजा!

“शर्मा जी, अब हमे विन्नी से मिलना होगा कल” मैंने कहा,

“ठीक है, हम कल चलते हैं, मै फ़ोन कर दूंगा उधर” उन्होंने कहा,

“ठीक है, और विन्नी से बातें करके आगे की रणनीति भी तैयार कर लेंगे हम” मैंने कहा,

“जैसा आप उचित समझें गुरु जी” वो बोले,

“सच्चाई सुनकर लड़की घबरा जायेगी, उसके पिता से कहना कि परेशान न होयें” मैंने कहा,

“जी मै कह दूंगा” वो बोले,

“ठीक है” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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इतने में शर्मा जी ने शराब की बोतल निकाली और दो बड़े बड़े पैग बना लिए साथ में महा-प्रसाद भी था! हम धीरे धीरे मदिरा का आनंद लेते रहे और बातें भी करते रहे!

“शर्मा जी, इसे मै क्या कहूँ? बाल-बुद्धि?” मैंने पूछा,

“बाल-बुद्धि ही है जी ये गुरु जी” उन्होंने कहा,

“फिर भी बुद्धि का प्रयोग करना अनिवार्य है!” मैंने मुस्कुरा के कहा,

“बच्ची है बेचारी” शर्मा जी बोले,

“अरे शर्मा जी, इक्कीस बाइस बरस की होगी वो, भला-बुरा नहीं जानती क्या?” मैंने पूछा,

“अरे गुरु जी, ये अल्हडपन होता है इन बालकों और बालिकाओं का!” उन्होंने कहा,

“हाँ ये कहा जा सकता है” मैंने भी हाँ कही,

इसके बाद हम खाते-पीते रहे और बाद में फिर सो गए! सुबह विन्नी से मिलने जाना था!

सुबह हुई!

दैनिक-कर्मों से फारिग होने के पश्चात, चाय आदि पीने के पश्चात शर्मा जी ने विन्नी के पिता जी को फ़ोन कर दिया, उनको बता दिया कि हम करीब ग्यारह बजे तक आ जायेंगे वहाँ उनके पास, उन्होंने भी हामी भरी और प्रतीक्षारत हो गए!

हमने वहाँ जाने के लिए कुछ तैयारी की और फिर विन्नी के घर की ओर चल पड़े! करीब डेढ़ घंटे में वहाँ पहुँच गए, सभी आँखें लगाए बैठे थे वहाँ, आज विन्नी के चाचा जी भी आ गए थे वहाँ, विन्नी का अब भी बदबू के मारे बुरा हाल था, हर दो दो मिनट में थूकने जा रही थी वो!

विन्नी ने नमस्ते की और हमने नमस्ते का जवाब दिया! फिर हम वहाँ सोफे पर बैठे! अब मैंने विन्नी से कहा, “विन्नी? जो कुछ भी मै पूछने वाला हूँ तुम उसका सीधा सीधा जवाब देना, घुमा फिरा के नहीं”

“जी ठीक है” उसने कहा,

मेरा ऐसा कहा सुनकर सभी के कान खड़े हो गए थे वहाँ पर!

“विन्नी मै नहीं चाहता कि तुम शरमाओ, या डरो मेरे सवालों से” मैंने कहा,

“नहीं गुरु जी” उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“ठीक है, अब मै पूछूं?” मैंने पूछा,

“हाँ जी” उसने कहा,

“विन्नी, मीना कौन है?” मैंने प्रश्न किया!

मेरा प्रश्न सुनकर वो चौंक पड़ी! आँखें फट गयीं उसकी!

“आप मुझे बताइये कौन मीना?” उसने मुझसे ही प्रश्न किया!

“वो हॉस्टल में काम करने वाली मीना, वो हॉस्टल जहां तुम रहती थीं, अपनी सहेली सिल्की और रीना के साथ” मैंने स्पष्ट उत्तर दिया!

उसको अब हैरत हुई! मै ये सब कैसे जान गया था??

“आप……को कैसे पता इनके बारे में?” उसने पूछा,

“मै सबकुछ जानता हूँ विन्नी” मैंने कहा,

“मुझे बताओ विन्नी ये मीना कौन है?” मैंने पूछा,

“जी….मीना हमारे कपड़ों की सफाई करने वाली है” उसने बताया,

“अच्छा” मैंने कहा,

“तुमसे अधिक लगाव रखती थी?” मैंने पूछा,

“हाँ” उसने बताया,

“कैसे, ज़रा बताओ?” मैंने पूछा,

“जी, वो अपने घर के बारे में बातें करती रहती थी” उसने बताया,

“और तुम ध्यान नहीं देती थीं” मैंने कहा,

“हाँ….हाँ….सही कहा आपने” वो बोली,

“क्यों?” मैंने पूछा,

“वो बार बार एक ही बात कहती रहती थी” विन्नी ने कहा,

“क्या बात?” मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“यही कि उसका पति उसके साथ मार-पिटाई करता रहता है” उसने बताया,

“अच्छा, उसने कभी ये बताया कि क्यूँ?” मैंने पूछा,

अब वो झेंपी! नज़र नीचे कर ली उसने!

“शरमाओ नहीं, यहाँ सभी तुमसे बड़े बैठे हैं, घर के लोग है सभी, शरमाओ मत” मैंने कहा,

वो नहीं बोली!

“विन्नी, बेटा बताओ?” विन्नी के चाचा जी ने पूछा,

वो फिर भी नहीं बोली,

“विन्नी, मैंने तुमसे कहा था कि तुम सीधे सीधे मुझे जवाब डौगी, अब जवाब दो” मैंने थोडा गुस्से से कहा,

वो नहीं बोली, आँखों में आंसू भर लाई!

“शरमाओ नहीं बेटा, बताओ न जो पूछा गुरु जी ने?” अब शर्मा जी ने कहा,

अब वो उठी और बाहर भागी, जाके थूका वाश-बेसिन में और वहीँ खड़ी हो गयी! तब मैंने उसके पिता और माँ से कहा कि उसको यहाँ लाओ, बात बेहद अहम् है!

तब उसके माँ और पिता जी उसको कुछ समझा-बुझा कर ले आये अन्दर, वो बैठी वहाँ, और मैंने फिर से सवाल दाग़ा, “बताओ विन्नी? क्यूँ करता था उसके साथ मार-पिटाई?”

“जी…………..जी…………मै कैसे कहूँ?” उसने विवशता भरा चेहरा बना कर कहा,

“बताना होगा विन्नी! अगर तुम इस बदबू से पीछा छुडाना चाहती हो तो बताना होगा” मैंने कहा,

“जी….उसने बताया था कि उसके कोई बच्चा नहीं होता था” विन्नी ने कहा,

“अच्छा, फिर?” मैंने पूछा,

“और….” इतना बोल चुप हो गयी वो!

“और क्या विन्नी?” मैंने पूछा,

“जी…..” फिर चुप हो गयी वो!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“अच्छा एक बात बताओ, कितने साल हुए थे उसकी शादी को?” मैंने पूछा,

“जी चार साल” उसने बताया,

“अच्छा, और उसके पति का नाम क्या है?” मैंने पूछा,

“सुनील” उसने बताया,

“क्या करता है वो?” मैंने पूछा,

“कुछ नहीं, शराबी है, ऐसा बताया उसने” विन्नी ने कहा,

“तो क्या वो उसको पैसे लेने के लिए मारता था?” मैंने पूछा,

“जी…नहीं” उसने कहा,

तो अब बताओ क्यूँ मारता था वो?” मैंने पूछा,

“मै अपनी मम्मी को बताउंगी” उसने कहा,

“कोई बात नहीं, बता दो उन्हें” मैंने कहा,

तब विन्नी उठी और उसकी माँ भी, विन्नी ने माँ को बता दिया कारण, विन्नी बाहर ही खड़ी रही और उसकी माता जी अन्दर आ गयीं!

“बताइये क्या बताया विन्नी ने?” मैंने पूछा,

“उसने बताया कि उसके बच्चा तो होता नहीं था तो उसका पति उसको ‘धंधे’ पर लगाना चाहता था, वो मना करती थी, इसीलिए मारता था” वो बोलीं!

बेचारी मीना!

“अब बुला लीजिये उसको अन्दर” मैंने कहा,

विन्नी को अन्दर बुला लिया गया!

“तुम उसको पैसे भी दिया करती थीं विन्नी?” मैंने पूछा,

“हाँ, कभी-कभार” उसने कहा,

“मीना ने तुम्हारे अलावा किसी और को बताया ये सब?” मैंने पूछा,

“नहीं” उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“तो विन्नी, तुमने बताया कि मीना तुम्हारे कपडे साफ़ किया करती थी, उसकी शादी को चार साल हुए थे, उसके बच्चा नहीं होता था, उसका पति सुनील उसको गलत राह पर ले जाने के लिए मजबूर किया करता था, और उसके मना करने पर वो उसके साथ मार-पीट किया करता था! यही ना?” मैंने पूछा,

“हाँ, यही सब?” उसने कहा,

“कुछ छिपाया तो नहीं विन्नी?” मैंने कहा,

“जी कुछ नहीं” उसने कहा,

मै थोड़ी देर के लिए इसका जवाब सुन कर चुप हो गया! और फिर बोला, “विन्नी, तुमने आश्चर्य किया कि मै ये सब कैसे जान गया हूँ? यही ना?” मैंने पूछा,

उसने केवल गर्दन हिला के मुझे हाँ कहा,

“विन्नी? फिर से याद कर लो, कुछ भूल ना गयी हो तुम?” मैंने कहा,

“जी न….नहीं भूली मै और कुछ” उसने कहा,

“तुम भूल गयी हो विन्नी!” मैंने कहा,

“जी?” उसे जैसे यकीन नहीं हुआ!

“या फिर तुम बताना नहीं चाहती” मैंने कहा,

“ऐसा मैंने कुछ नहीं छिपाया” उसने कहा,

“छिपाया है विन्नी” मैंने कहा,

अब सबकी निगाह मुझ पर टिक गयीं! सभी हैरत से देखने लगे मुझे और मै देखता रहा उस विन्नी को!

“विन्नी? फिर से याद कर लो, कुछ भूल रही हो?” मैंने उस से कहा,

“क..क..क्या?” उसने कहा,

“एक बात बताओ, मीना कितनी पढ़ी लिखी थी?” मैंने पूछा,

“जी उसने बताया था आठवीं पास है वो” विन्नी ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“इसका मतलब वो लिखना-पढना भी जानती होगी थोडा बहुत?’ मैंने सवाल किया,

“हाँ जानती थी वो लिखना-पढना, हिंदी पढ़ लेती थी, लिख भी लेती थी” उसने बताया,

“अच्छा!” मैंने कहा,

“अब कुछ याद आया?” मैंने कहा,

“न…..नहीं तो?” उसने अब घबरा के पूछा,

“विन्नी? वो ख़त कहाँ है जो उसने तुमको तुम्हारे वहाँ आने से साथ-आठ दिन पहले दिया था?” मैंने कहा,

अब वो चौंकी! उसने मुझे चौंक के देखा! फिर बगलें झाँकने लगी!

“लाओ विन्नी, कहाँ है वो ख़त?” मैंने पूछा,

“हाँ! हाँ! उसने मुझे एक ख़त दिया था! वो मेरे बैग में रखा है!” उसने अब विश्वास से कहा!

“क्या तुमने वो ख़त पढ़ा था?’ मैंने पूछा,

“नहीं, मै उस दिन रेल-रिजर्वेशन कराने जा रही थी, तब दिया था उसने मुझे” उसने बताया,

“और तुमने उस पर ध्यान नहीं दिया” मैंने कहा,

“वो मैंने ज्यों का त्यों अपने बैग में रख लिया था” उसने बताया,

“जाओ लेकर आओ” मैंने कहा,

विन्नी उठी और भागी ख़त लेने!

सभी मुझे आँखें फाड़कर और मुंह खोलकर अविश्वास से देख रहे थे!

विन्नी एक ख़त ले आई, ये ख़त एक पन्नी में बाँध कर दिया गया था उसको, उसने उस गरीब का वो ख़त खोलने की ज़हमत भी ना उठाई!

विन्नी ने वो ख़त मुझे दिया और मैंने शर्मा जी को! सभी की सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे अटक गयी! शर्मा जी ने वो ख़त उस पन्नी से निकाल और खोलना आरम्भ किया, कागज़ साधारण था, किसी कॉपी से फाड़ा गया था! शर्मा जी ने वो ख़त पढना शुरू किया मन ही मन फिर हैरतज़दा वो ख़त मुझे पकड़ा दिया! मैंने वो ख़त पढ़ा! उसका मजमून ये था–


   
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श्रीशः उपदंडक
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“मुझे अपने पति सुनील से जान का खतरा है, यदि मुझे इस बीच कुछ हो जाता है तो इमसे मेरे पति का ही हाथ होगा, वो मुझे गलत काम में डालना चाहते हैं, मै ये बर्दाश्त नहीं कर सकती, वो आजकल मुझे मारने या मरवाने की धमकियां दे रहे हैं, मुझे सुनील से धमकियां लगातार मिल रही हैं, मैंने कई बार पुलिस में शिकायत लिखवाई है लेकिन कुछ नहीं हुआ आज तक, मेरे माँ-बाप नहीं हैं, मेरा एक भाई है, लेकिन वो कहाँ है मुझे नहीं मालूम, नहीं तो मै वहाँ चली जाती, अब यदि मेरी हत्या हो जाती है तो इसका गुनाहगार केवल मेरा पति सुनील ही होगा”

मैंने वो ख़त मोड़ के वापिस पन्नी में डाल दिया!

“विन्नी, जब उसने तुमको ये ख़त दिया था तो क्या कहा था?” मैंने पूछा,

“उसने कहा था कि अगर मै कभी एक हफ्ते तक नहीं आई तो समझना मेरे साथ कोई अनहोनी हो गयी है, तुम ये पुलिस में भेज देना” उसने कहा,

“क्या वो हफ्ते भर तक नहीं आई थी?” मैंने पूछा,

“नहीं, वो मेरे यहाँ आने से कोई दो दिन पहले आई थी, वो हफ्ते में दो बार आया करती थी, कपडे लेने-देने” विन्नी ने कहा,

“ओह! तुमने ख़त पढ़ा नहीं, और ना ही ये शक किया कि उसके साथ कोई अनहोनी हुई है या नहीं” मैंने पूछा,

“मै पुलिस के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती थी, ये उसकी हर बार की कहानी थी, मै दिल्ली वापिस आ रही थी तब” उसने बताया,

“जानती हो क्या हुआ उसके साथ?” मैंने पूछा,

“क…..क्या हुआ उसके साथ?” उसने घबरा के कहा!

“जिस दिन वो तुमसे आखिरी बार मिलके गयी थी, उसी रात उसके पति ने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर उसके साथ मार-पीट की( वही गलत राह वाले काम के लिए) वो नहीं मानी, उसके साथ बहुत बुरा हुआ उस रात, उन दोनों हरामजादों ने उस मीना का गला घोंट कर हत्या कर दी” मैंने बताया,

“क्या?????” विन्नी जैसे करंट खा गयी हो,

फूट फूट कर रोने लगी अपनी माँ के गले लगकर!


   
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श्रीशः उपदंडक
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वहाँ सभी मौजूद लोगों ने भी गहरा अफ़सोस ज़ाहिर किया, लेकिन अब क्या किया जा सकता था, मीना तो बेचारी क़त्ल की जा चुकी थी!

“विन्नी? विन्नी? मुझे भी उस बेचारी की मौत का अफ़सोस है तुम्हारी तरह” मैंने उसको बताया,

मुझे नहीं पता था वो इतनी गंभीरता से बताती थी अपनी घरेलू समस्याएं” उसने रो के कहा,

“विन्नी! ये तो रीति है इस देश की! गरीब और निर्धन आदि को कोई गंभीरता से नहीं लेता!” मैंने उस पर कटाक्ष किया ताकि उसको अपनी गलती का एहसास हो!

“ऐसा नहीं है, हाँ मुझसे गलती हुई, क्या लिखा है इस ख़त में?” उसने पूछा,

“बता दूंगा विन्नी, रुको, एक बात बताओ मुझे” मैंने पूछा,

“पूछिए” उसने सिसकी भरते हुए कहा,

“क्या तुमने कभी उसके पति सुनील को देखा है?” मैंने पूछा,

“नहीं” उसने जवाब दिया,

“क्या मीना का और कोई जानकार है?” मैंने पूछा,

“मुझे नहीं मालूम” उसने बताया,

“हम्म” मैंने कहा और थोड़े विचार में डूब गया अब! फिर से उस से एक प्रश्न किया मैंने, “विन्नी, तुम जानती हो कि इस बदबू का क्या राज है?”

“नहीं जानती” उसने कहा,

“मीना का क़त्ल रात बारह के आसपास हुआ था, उसकी चीख-पुकार सुनकर पडोसी नहीं आये थे,क्यूंकि ये उनका रोज का झगडा था, उन दोनों कातिलों ने उसकी लाश को उठाया और सावधानी से नज़रें बचाते हुए पीछे बहते हुए नाले में दूर ले जाकर डाल दिया, जिसमे डाला वो एक ठेला था, उसकी लाश वहाँ नाले की कीचड में दफ़न हो गयी, और फिर फूलने के बाद ऊपर आ गयी, किसी ने उसे देखा और पुलिस को इत्तला दी, उसकी लाश बुरी तरह से सड़ चुकी थी, भयानक बदबू उठ रही थी, कीड़े पड़ी लाश की बदबू! और वही बदबू तुम्हे महसूस होती है चौबीसों घंटे! मीना की रूह ने इंतज़ार किया कि तुम वो ख़त पुलिस तक पहुंचा दोगी ,लेकिन तुम भूल गयीं या तुमने उसे गंभीरता से नहीं लिया, इसीलिए तुमको वो बदबू रेल के सफ़र के साथ ही शुरू हो गयी थी! उसकी रूह मुक्त नहीं हुई विन्नी! उसकी रूह अपना उधार


   
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श्रीशः उपदंडक
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वापिस मांग रही है तुमसे, जब तक उसके साथ इन्साफ नहीं हो जाएगा, तुम्हे इस बदबू से छुटकारा नहीं मिलेगा!” मैंने साफ़ साफ़ बता दिया उसको और सभी को!

इतना सुन उसके माँ बाप ने पाँव पकड़ लिए मेरे! रो पड़े दोनों! मैंने अपने पाँव छुद्वाये उनसे!

“बचा लीजिये गुरु जी, मेरी बेटी को बचा लीजिये” उसके पिताजी ने कहा,

“एक शर्त पर!” मैंने कहा,

“कैसी शर्त गुरु जी?” उन्होंने पूछा,

“आप अपनी पत्नी को लेकर और साथ में विन्नी को लेकर जाओगे स्थानीय पुलिस स्टेशन और विन्नी ये ख़त जांच-अधिकारी को देगी, सारी सच्चाई बता देगी, तो मै अवश्य ही कुछ करूँगा” मैंने उनको बताया,

“हाँ गुरु जी, हम ले जायेंगे” उन्होंने कहा,

“विन्नी से पूछिए?” मैंने कहा,

“मै अवश्य जाउंगी गुरु जी” उसने कहा,

मै उसका विश्वास देखकर प्रसन्न हुआ उस समय!

और फिर उन्होंने जिद की कि हम भी उनके साथ चलें, आखिर शर्मा जी ने हाँ कर ली और मै भी तैयार हो गया!

उसके बाद हम वहाँ से वापिस आ गए!

अगले दिन विन्नी के पिता ने फ़ोन किया कि विन्नी को बदबू आना बंद हो गया है आज सुबह से ही! मैंने उन्हें बता दिया अब मीना की रूह ये जान गयी है कि उसको इन्साफ मिलने वाला है! इसी कारण से बदबू आना बंद हो गया है! और ये भाई उन्होंने बताया कि आगामी शुक्रवार की टिकटें बुक हो गयीं हैं, हम शुक्रवार को स्टेशन आ जाएँ या ये हमे हमारे स्थान से ले लेंगे, मैंने कह दिया कि हम वहाँ पहुँच जायेंगे स्टेशन पर!

अब सबसे बड़ा काम था उस मीना की रूह से पता करना, वो ख़त मेरे ही पास था, मै उसकी रूह को पकड़ सकता था! अतः मैंने उसी रात उसकी रूह को पकड़ने का निर्णय कर लिया!

मै उसी रात बैठा क्रिया में, मैंने शर्मा जी को कह दिया था की मेरे वापिस आने तक वहीँ बने रहें, कुछ आवश्यकता पड़ेगी, अब मैंने अलख उठाई और अलख भोग देने के बाद मैंने अपना


   
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क़ाबिल खबीस इबु-खबीस को हाज़िर किया, इबु हाज़िर हुआ! मैंने उसको उसका भोग थम दिया, अब मैंने इबु को वो बालों का गुच्छा दिखाया, उसने उसको सूंघा और फिर अपना उद्देश्य सुन उड़ चला बे-खौफ!

करीब आधा घंटा बीता, इबु हाज़िर हुआ अपनी मुट्ठी बंद किये हुए! वो पकड़ लाया था मीना की रूह! उसने उसको मेरे सामने जमीन पर फेंक के मारा! इबु ने बताया की वो उसको काले के यहाँ से लाया था छीन कर, काले मतलब गिनतिया-मसान से! मीना की रूह उठ खड़ी हुई! घबराई हुई हुई! मैंने इबु का शुक्रिया किया और उसको उसका बाकी का भोग देकर वापिस भेज दिया! वहाँ मीना की रूह घबराई हुई सी अपने आप में ही सिमट रही थी! मुझे उस बेचारी पर तरस आया! मैंने कहा, “अब घबरा मत! तू यहाँ सलामत है!”

वो बेचारी अब हाथ जोड़ने लगी! लेकिन एक शब्द न बोल पायी!

“तुझे तेरा इन्साफ मिलेगा मीना, वो दोनों नहीं बच पायेंगे!” मैंने कहा,

वो हाथ जोड़े ही जोड़े ही खड़ी रही!

“उस लड़की पर अब रहम कर, अब मै हूँ यहाँ, और भी कई लोग है तेरी मदद करने के लिए, ना घबरा, मै तुझे मुक्त कर दूंगा हमेशा के लिए” मैंने कहा,

वो शांत भाव से सब सुनती रही!

उसके बाद मैंने उसको मान्दलिया में डाल लिया! और वापिस बाहर आ गया! बाहर आ कर मैंने शर्मा जी को सब बता दिया, उनको भी ख़ुशी हुई! एक आवश्यक काम पूरा हो चुका था! अब एक अत्यंत आवश्यक काम बचा था, मीना के हत्यारों को पकड़वाना!

और फिर शुक्रवार वाले दिन हम स्टेशन पहुंचे, गाड़ी में सवार हुए और अगले दिन पूना पहुँच गए, वहाँ एक होटल में कमरे लिए गए, मैंने विन्नी और उसके पिता जी को सबकुछ समझाया, वो ख़त उनको दिया और उनको उस स्थानीय पुलिस-स्टेशन भेज दिया, विन्नी ज़रा भी ना घबराई उस दिन! उसको मीना के आखिरी शब्द रह रह कर कचोट रहे थे! वो चली गयी अपने पिता व अन्य परिजनों के साथ!

और फिर मित्रगण! पुलिस को अवगत कराया गया, पुलिस ने फ़ौरन कार्यवाही की, अगले दिन अपनी पत्नी की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाने वाले सुनील पर हत्या का मुक़द्दमा दर्ज हुआ, गहन पूछताछ में उसने अपना जुर्म कुबूल किया और उसका साथी भी गिरफ्तार हो गया! पुलिस के उच्च-अधिकारी ने विन्नी और उनके परिवारजनों की प्रशंसा की! विन्नी ने अपना कर्त्तव्य निभा दिया था परन्तु मेरा कर्त्तव्य अभी बाकी था! मुझे मीना की रूह को मुक्त करना


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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था! अतः हम लोग तीन दिनों के बाद वापिस आये! विन्नी के परिवारजनों ने हमारा बहुत बहुत धन्यवाद किया! आखिर में उनसे विदा लेकर हम वापिस आये अपने स्थान की तरफ!

मैंने नौ दिन प्रतीक्षा करने के पश्चात, एक पावन-मुहुर्त पर मीना की रूह को हाज़िर किया! वो अब शांत थी! उसको सब बातों से अवगत करा दिया गया था! कोई और इच्छा शेष नहीं थी उसे, अतः, उसकी रात मध्य-रात्रि में मैंने उस अभागी मीना को हमेशा के लिए इस क्रूर और निर्दयी संसार से वहाँ भेज दिया जहां अमीर-गरीब में कोई फर्क नहीं किया जाता! जहां सभी को समान रूप और गंभीरता से सुना जाता है!

इसके बाद मुझे एक सुखद एहसास हुआ! मीना मुक्त हो गयी थी!

बेचारी अभागी मीना!

---------------------------साधुवाद!----------------------

 


   
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