वर्ष २०१० दिल्ली की...
 
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वर्ष २०१० दिल्ली की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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मित्रगण! कई भूल अनजाने ही होती हैं और कई जानबूझकर! उसका विपाक अवश्य ही मिलता है, हाँ अनुपात में अंतर हो सकता है! ये जो कहानी है ये भी एक ऐसी ही जानबूझकर की हुई भूल है! सदैव स्मरण रखिये, बड़ा सदैव बड़ा होता है! बुज़ुर्ग हमेशा बुज़ुर्ग होते हैं! आदर और सम्मान योग्य होते हैं! आप उनका कदापि अपमान न कीजिये!

मेरे एक परिचित हैं बहादुर चंद कपूर! कपूर साहब ६५ वर्षीय व्यक्ति हैं, २ लडकियां एवं एक लड़का ब्याह चुके हैं! एक लड़का रह गया था, अतः उसके ब्याह की तैयारियों में लगे हुए थे, इस लड़के का नाम मोंटू है! आधुनिक विचारधारा वाला एवं पेशे से केमिस्ट! वैसे लड़का संयत स्वभाव का है! लेकिन है अलमस्त!

मार्च महीने की बात है, कपूर साहब अपने लड़के मोंटू के साथ पंजाब, बटाला के लिए रवां हुए, तीन गाड़ियां थीं, लड़की की गोद-भराई अथवा रोकना रसम करनी थी! बटाला पहुंचे वे लोग! रसम पूरी हुई और फिर अगले दिन वे लोग वापसी के लिए रवाना हुए!

तीन गाड़ियाँ थीं, कपूर साहब मय आगे चल रहे थे और पीछे गाडी में परिजन और सबसे पीछे मोंटू अपने मित्रो के साथ चल रहा था! शराब आदि का सेवन किया जा रहा था! परिवार रास्ते में एक जगह, ढाबे पर रुका, सारे मित्र भी उतरे! अपनी अपनी शंकाएं निबटाने! मोंटू भी उतरा और सड़क किनारे थोडा आगे गया और एक जगह लघु-शंका निबटाई! फिर अपने जूते का फीता बाँधने के लिए एक छोटे से चबूतरे या कोई पिंडी जैसी आकृति पर जूता रख कर फीता बाँध लिया! ये बात पंजाब की ही है, ढाबे पर कुछ खाया पिया और फिर वापसी की राह पकड़ी!

९-१० घंटों की यात्रा के उपरान्त वे दिल्ली पहुंचे!

रात को मोंटू का स्वभाव में बदलाव आया! बात बात पर गुस्सा! हालांकि वो ऐसा कभी नहीं करता था! किसी को अपने बिस्तर पर नहीं चढ़ने दे! हर ३ घंटे के बाद नहाए! हमेशा कुछ गुनगुनाता रहे! बार बार आकाश की ओर दोनों हाथ उठाये! सबको सही कपडे पहनने का हुक्म दे! और फिर आँखें बंद करके चुप हो जाए! अपनी माँ को डांटे और बाप को भी! किसी को भी


   
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श्रीशः उपदंडक
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हाथ न लगाने दे! तस्वीरें वहाँ से हटाने को कहे! अरबी और उर्दू के अलफ़ाज़ बोले! खालिस! और फिर आँखें मूँद के चुप हो जाए!

घरवालों को बड़ा अजीब लगा! अचानक मोंटू को ऐसा क्या हो गया? वे लोग घबरा गए! दूसरे परिवारजनों तक खबर पहुंची तो वो भी आ गए! उसके पास कोई बैठे तो उसको खड़े होने का हुक्म सुनाये! औरतों एवं लड़कियों को कमरे में ही न घुसने दे! बड़ा अजीब वाक्य था ये! अगले दिन सुबह मोंटू के माँ-बाप ने देखा कि मोंटू नमाज़ पढने के अंदाज़ में झुका हुआ है! और अरबी में नमाज़ पढ़ रहा है! अब उनको खटका हुआ! आनन्-फानन में एक मौलवी साहब को बुलाया गया! मौलवी साहब ने दो-चार बातें कीं और फ़ौरन उठ के भाग लिए! कहा को आलमी बाबा सवार हैं इस पर और उसमे इतनी हिम्मत नहीं कि उनसे वहाँ जाने को कहे!

अब डॉक्टर भी क्या करें! एक दो आये और मानसिक-रोग बता कर चले जाएँ! ऐसा उसके साथ ३ दिनों तक होता रहा! फिर एक दिन कपूर साहब ने शर्मा जी से संपर्क साधा और सारी व्यथा का वर्णन किया! और फिर शर्मा जी ने सारी बात मुझे भी बतायी, मुझे भी हैरत हुई! सह्रमा जी बोले, "गुरु जी, लगता है इस लड़के से कोई जाने-अनजाने में गड़बड़ हो गयी है"

"हाँ शर्मा जी, सही कहा आपने, मसला कुछ ऐसा ही है!" मैंने कहा,

"आप देखिये क्या किया जा सकता है" वे बोले,

"ठीक है, मै देखता हूँ" मैंने कहा,

और फिर शर्मा जी ने कपूर साहब से बात की और हम उनके घर के लिए रवाना हो गए! मै कपूर साहब के घर पहुंचा! साथ में शर्मा जी भी! उस वक़्त मोंटू नमाज़ के अंदाज़ में झुका हुआ नमाज़ पढ़ा रहा था, मैंने टोकना सही न समझा! वो फारिग हुआ तो मैंने कहा, "सलाम आलेकुम बड़े मियां!"

"वालेकुम सलाम भाई, आओं बैठो!" उसने कहा,

मैंने बैठने से पहले अपने जूते उतारे और हाथ धोने चला गया! फिर आके मोंटू के बिस्तर से सामने पड़े सोफे पर बैठ गया! मैंने कहाँ, "और कैसे मिजाज़ हैं साहब आपके!"

"सब खैरियत से था, ये कमज़र्फ इंसान यहाँ ले आया मुझको!" मोंटू बोला!

"आप बड़े हो साहब! बड़ों का तो काम ही है छोटों को समझाना और माफ़ करना! माफ़ कर दीजिये इसको" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"इसको तो कतई माफ़ न करूँ, मेरे सर पर पाँव रख दिया इसने, माफ़ नहीं करूँ कतई!" मोंटू बोला,

"इसको मालूम न होगा, आखिर है तो आदमजात ही, माफ़ कर दीजिये बड़े मियाँ!" मैंने हाथ जोड़ कर कहा,

"अच्छा बाबा! जैसी आपकी इच्छा! अच्छा, अपना तार्रुफ़ तो दीजिये ज़रा" मैंने कहा

"मै कलंदरी पीर हूँ इब्न-ए-अफगानी!" मोंटू ने बताया!

पास खड़े सभी की आँखें फटी की फटी रह गयीं! सबको समझ आ गया कि मोंटू ऐसा क्यूँ कह रहा था! ये न करो, वो न करो!

"आपका शुक्रिया बाबा!" मैंने कहा और हाथ जोड़े!

"तुम पढ़े-लिखे हो, अच्छी तालीम दी है तुमको तुम्हारे बुजुर्गों ने! अच्छा मुकाम हासिल किया है तुमने" उन्होंने कहा,

पीर बाबा के मुंह से ऐसा सुन्ना किसी आशीर्वाद से कम नहीं होता! मैंने आदर से उनके सामने हाथ जोड़े और कहा, "शुक्रिया बाबा"

"एक काम करवा दो बेटे" वो बोले,

"हाँ बोलिए बाबा!" मैंने कहा,

"खीर खिलवा दो आज नारियल डाल कर, गुड़ के साथ!" वो बोले,

"ज़रूर बाबा! ज़रूर! ये तो आपका एहसान होगा हम नाचीजों पर! अभी बनवाता हूँ मै!" मैंने कहा

तब मैंने कपूर साहब से कह कर वैसी ही खीर बनवाने को कह दिया!

"बाबा? एक बात पूछनी है मुझे अगर गुस्ताखी न हो तो" मैंने कहा,

"हाँ! हाँ! पूछो बेटा! गुस्ताखी कैसी?" उन्होंने कहा,

"बाबा, इस लड़के से क्या गलती हुई?" मैंने कहा,

"इसने पहले पेशाब किया, पेशाब में इसके जूते गीले हुए, मिट्टी लगी, इसने वो ही जूता मेरे सर पर रख दिया, मै वहाँ आराम कर रहा था, मै बहुत दूर से आ रहा था, शेख जिलानी से मिलकर"


   
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श्रीशः उपदंडक
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वे बोले,

"ओह! ये तो बड़ी भारी भूल हो गयी इस से!" मैंने कहा,

"हाँ! इसने एक बार भी गलती नहीं मानी अपनी! जूता वहीँ मेरी जगह पर ही झाड़ा इसने!" वे बोले,

"अच्छा बाबा तो ये बात है!" मैंने कहा,

थोड़ी देर और बातें हुईं और फिर खीर बनके आ गयी! मैंने खीर कि थाली अपने हाथों में रखी और उन्होंने मेरे हाथों से वो ले ली! चम्मच निकाल के वहीँ रख दी! हाथ ऊपर उठाये और कुछ आयतें पढ़ीं फिर मुझसे बोले, " तुम भी खा लो बेटा!"

"आप खाइये बाबा! मै खा लूँगा!" मैंने कहा!

और मोंटू अपने हाथों से से ही वो खीर खाने लगा! खीर खा ली गयी, मैंने हाथ भी धुलवा दिए! अब बाबा बोले, " सुन, तू क्या कहना चाहता है, मुझसे छुपा नहीं,बता तो सही बेटे!"

"बाबा मुझे डर लग रहा था कहने में आपसे!" मैंने कहा,

"डर मत! बता मुझे!" वो बोले,

"बाबा मै चाहता हूँ आप इस लड़के को छोड़ दीजिये, माफ़ कर दीजिये" मैंने कहा, और हाथ जोड़े,

"नहीं बेटा! इसको इसके किये की सजा दूंगा मै, पूरे चालीस दिनों तक!" वे बोले,

"बाबा, ये मर जाएगा चालीस दिनों में तो" मैंने कहा,

"मेरी बला से!" वो बोले,

"नहीं बाबा ऐसा न करो आप! लोग आपसे लम्बी उम्र की दुआ लेने आते हैं!" मैंने कहा,

"नहीं बेटे, इसको सजा देनी है ज़रूरी, ताकि आइन्दा ऐसी गलती न करे" वे बोले,

"ये आपकी रज़ा का हक़दार है बाबा, इस पर रहम कीजिये, मान लीजिये बाबा!" मैंने कहा,

"देखो बेटा, जो हमने ठान लिया सो ठान लिया, अब तुम दुबारा इस बाबत जिक्र न करना" वे बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"जैसी आपकी मर्जी बाबा! मै तो सिर्फ गुहार लगा सकता हूँ, मानना ना मानना आपके ऊपर है" मैंने कहा,

अब मै वहाँ से उठा तो बाबा ने ऊँगली के इशारे से फिर नीचे बिठा दिया! बोले, " अपना हाथ आगे कर!"

मैंने हाथ आगे किया तो उन्होंने अपना एक हाथ ऊपर उठाया और जैसे हवा में से कुछ तोडा हो, ऐसे कुछ तोडा और मेरे हाथ में रख दिया, बोले, "ले इसको गले में पहन लेना"

मैंने हाथ खोला तो एक सोने का तावीज़ था!

"बाबा आप का आशीर्वाद ही काफी है!" मैंने कहा,

"जैसा मैंने कहा वैसा कर, ज्यादा ना बोल, समझा?" वो बोले,

"जी बाबा! समझ गया!" मैंने कहा और वो तावीज़ मैंने अपने माथे पर लगा के अपनी जेब में रख लिया!

"बाबा? ये आपकी मज़ार कहाँ पड़ती है?" मैंने कहा,

उन्होंने मुझे वो जगह बता दी, वही जगह जहां मोंटू पेशाब करने उतरा था!

"मेरे जिन्नात इसको मारना चाहते थे, लेकिन इस से गलती तो हुई थी, लेकिन मैंने अपने जिन्नातों को वहीँ रोक दिया!" वे बोले,

"बहुत रहम किया बाबा आपने!" मैंने कहा,

"अच्छा, अब मेरा नमाज़ का वक़्त हो गया है, सब को हटा दो यहाँ से" वे उठे और बोले,

मैंने सभी को वहाँ से हटा दिया!

"गुरु जी, अब क्या होगा? बाबा तो राजी हो ही नहीं रहे?" कपूर साहब ने कहा,

"देखि कपूर साहब! आपके बेटे से गलती तो हुई है, इसमें को शक नहीं, हाँ, बाबा अड़े हुए हैं, मै इनसे लड़ नहीं सकता सिर्फ मिन्नत कर सकता हूँ, वही कर रहा हूँ" मैंने कहा,

"आपका ही सहारा है गुरु जी, कहीं बाबा लड़के को मार ही न दें" वे बोले,

"नहीं! मारना होता तो अब तक मार दिया होता, वो नहीं मारेंगे, बस सजा दे रहे हैं उसको" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"गुरूजी, मना लीजिये बाबा को, मन में डर लगा हुआ है किसी अनहोनी का"

"घबराओ नहीं कपूर साहब! न जानी कौन से पल में वो खुश हो जाएँ!" मैंने कहा, बाबा की नमाज़ ख़तम हुई तो उन्होंने आवाज़ देकर मुझे बुलाया! मै अन्दर गया! उन्होंने मुझे अपने बिस्तर पर बिठाया! ये कमाल की बात थी! उन्होंने मुझे अपने बिस्तर पर बिठाया! ये मेरी सफलता की पहली सीढ़ी थी!

"हुक्म फरमाएं बाबा!" मैंने कहा,

"तू नेक दिल आदमी है! तूने इस लड़के के और इसके परिवार के दुःख को समझा है! और सोच समझकर मैंने भी!" वे बोले,

"आपकी मेहर है बाबा ये सब!" मैंने कहा,

"सुन बेटे, आज बुधवार है और कल पीरवार! अगर इस लड़के के घरवाले ४० गरीब लोगों को खाना खिलाते हैं और उनको कपडे देते हैं तो मै इसको इसकी सजा से बरी कर दूंगा!" बाबा ने कहा!

ये मेरे लिए ख़ुशी की बात थी! सभी के चेहरों पर ख़ुशी लौट आई! मैंने कपूर साहब से हामी भरवा ली!

"बाबा, खाना कैसा हो और कपडे कैसे हों?" मैंने पूछा,

"खीर बनवाओ और कम्बल दो लोगों को!" वो बोले,

"जैसा आपका हुक्म बाबा!" मैंने हाथ जोड़ के कहा!

"तेरी नेकदिली देख कर मेरा दिल पसीज गया बेटे! मैंने गौर किया, इस लड़के की शादी भी है अगले माह!" बाबा बोले,

"हाँ बाबा! आपकी रहमदिली से हम सब खुश हैं!" मैंने कहा,

"तूने मेरी इज्ज़त की है बेटे तो मेरा भी कुछ फ़र्ज़ बनता है बुज़ुर्ग होने के नाते, इसकी सजा माफ़ कर दूंगा कल!" बाबा बोले,

"आपकी मेहरबानी बाबा! बाबा कुछ कहना चाहता हूँ मै अगर आप सही समझें तो" मैंने कहा,

"हाँ बोल बेटा!" बाबा ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"बाबा, जहां आपकी मज़ार है, वहाँ फिर कोई दूसरा शख्स ऐसा कर सकता है, मै चाह रहा था की वहाँ एक पक्का चबूतरा बनवा दिया जाए तो कैसा रहे?" मैंने कहा,

"अब लोगों में वो माद्दा नहीं है बेटे! अब तो लोग सलाम भी नहीं करते!" बाबा ने कहा,

"बाबा, मै बनवाऊंगा आपका चबूतरा! पक्का!" मैंने कहा,

"जैसी तेरी मर्ज़ी बेटे!" बाबा बोले,

और फिर उनके साथ काफी बातें हुईं, दुनियावी, रूहानी, गैबी! रात को भी बाबा ने मुझे वापिस नहीं आने दिया!

अगले दिन खीर बनवाई गयी! कम्बल खरीदे गए! और वे लोग सभी निज़ामुद्दीन चले गए! करीब ४ घंटों के बाद वापिस आये!

"काम हो गया बेटा!" बाबा ने कहा,

"हाँ बाबा! जैसा आपने कहा वैसा हो गया!" मैंने कहा,

"अच्छा किया बेटा! खैरात इंसान को उंचाई पर ले जाती है और गुरूर इंसान को खाक कर देता है!" बाबा बोले!

मैंने उनको हाथ जोड़कर शुक्रिया किया! उन्होंने मेरे सर पर अपने हाथ का अंगूठा रखा!

"सुनो बेटे, मै अपने वायदे के मुताबिक़ आज इसको बरी कर दूंगा, मेरो दो नमाज़ और बाकी हैं, उसके बाद मै चला जाऊँगा!" बाबा ने कहा,

"जैसा हुक्म आपका! बाबा कुछ खाना बनवाऊं?" मैंने कहा,

"नहीं ९० साल बाद मैंने खीर खायी है, अब सौ साल तक कोई ज़रुरत नहीं!" बाबा ने कहा!

"मेरा नमाज़ का वक़्त हो गया है बेटे!" वो बोले,

मैंने तब वहाँ खड़े सभी लोगों को बाहर भेज दिया और स्वयं भी बाहर आ गया! बाबा ने दोनों नमाज़ पढ़ लीं और फिर मुझे बुलाया! बोले, "अच्छा बेटा! मेरे चलने का वक़्त आ गया!"

"अच्छा बाबा, बाबा आपको देखना चाहता हूँ मै" मैंने कहा,

"ठीक है! देख मै उठ रहा हूँ!" बाबा ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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मैंने देखा बाबा उठे और मोंटू अचेत हो गया! बाबा मेरे समक्ष प्रकट हो गए! धवल वस्त्रों में एक दिव्य-बाबा! सफ़ेद कुरता और सफ़ेद तहमद! गले में फिरोजा की माला! मैंने झुक कर बाबा के पाँव छुए! बाबा ने मुझे उठाया और बोले, "बेटे! मै तुझसे खुश हूँ! बाबा इब्न-ए-अफगानी को जब भी याद करेगा मै आ जाऊँगा!"

मेरे नेत्रों से अश्रुधारा फूट पड़ी! ये तो महा-आशीर्वाद था मेरे लिए! और फिर बाबा विदा हो गए! मेरे नेत्रों पर हाथ रखा और लोप हो गए!

मोंटू को होश आया! ४ दिनों से रुका मल-मूत्र बाहर आ गया! मै वहाँ से निकल आया!

एक हफ्ते बाद मै कपूर साहब और मोंटू के साथ उस स्थान पर गया! बाबा मिल गए! खुश हुए! मैंने उनका स्थान बनवा दिया! वो आज भी वहीँ है!

मै आज भी वर्ष में एक बार वहाँ अवश्य जाता हूँ! उनका आशीर्वाद लेने!

----------------------------------साधुवाद---------------------------------


   
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