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वर्ष २०१० जिला बुलंदशहर के गाँव की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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मंगल ने एक गिलास में शराब परोसी और पूरन को थमा दी! फिर सिगरेट जला कर थमा दी पूरन को! पूरन एक मंत्र पढ़कर गटक गया पूरा गिलास! मूंछों पर हाथ फेरा और मंत्र पढने लगा!

करीब पन्द्रह मिनट के बाद पूरन खड़ा हुआ, मंगल और उसका चेला भी खड़ा हुआ! पूरन ने अपना डंडा उठाया और अपने और मंगल और उसके चेले के चारों ओर एक घेरा काढ दिया! ये रक्षा-वृत्त होता है, इसको बंध कहते हैं, कोई अशरीरी शक्ति इसको भेद नहीं सकती! भेदने के लिए उसको रक्षा-वृत्त खंडित करना पड़ेगा पहले!

“मंगल, ला बाबा का भोग दे” पूरन ने कहा,

मंगल ने गिलास उठाया और उसमे शराब डाल दी और पकड़ा दी पूरन को! अब पूरन गरजा,”आन चले मान चले………………………………………..चले!” उसने अपने साथी भूत-प्रेतों का आह्वान किया था! उसके प्रेत मुस्तैद हो गए वहाँ! उसने फिर वो गिलास अपने होठों पर रखा और गटक गया!

अब तीनों लोग बैठ गए वहाँ!

“अब आ कौन है वहां?” पूरन ने ज़मीन में अपना डंडा मारते हुए कहा!

कोई नहीं आया!

“बाबा के सामने तो काल नहीं ठहरता तेरी क्या औकात?” ये कह के ठहाका लगाया पूरन ने!

“आजा कौन है?” पोरं ने कहा,

वहाँ डर के मारे अमर सिंह और फौजी बीड़ी सूंते जा रहे थे! राख गिराने का भी समय नहीं था उनके पास! बस टकटकी लगाए सामने पूरन को देखे जा रहे थे!

“डर गए बाबा से?” पूरन ने कहा,

कोई आहट ना हुई!

अब पूरन ने अपना डंडा पकड़ा और ज़मीन में मारा!

“अरे आ जा ओ खलीफा! आक्क़..थू!” थूकते हुए बोला पूरन!

मंगल और उस चेला घुटने से घुटना सटाए सामने देख रहे थे! कभी कभार सरसरी तौर पर अगल-बगल भी देख लेते थे!


   
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श्रीशः उपदंडक
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हा! हा! हा! हा! हा! डर गया साला!” पूरन हंसा!

“अरे मंगल?” पूरन ने बिना पीछे मुड़े कहा,

“हाँ जी” मंगल ने कहा,

“बना बाबा का भोग!” पूरन ने कहा,

मंगल ने गिलास उठाया और शराब डाल दी उसमे! पकड़ा दी पूरन को, पूरन पूरी खींच गया एक ही सांस में!

“मंगल?” पूरन को अब हुआ नशा!

“हाँ जी?” मंगल ने कहा,

“तू तो कह रहा था यहाँ हैं वो, तूने देखे हैं?” पूरन ने पूछा,

“हाँ जी, आप मसान चलाओ” मंगल ने कहा,

“अच्छा! ला मंगल झोला दे मुझे” पूरन ने कहा,

पूरन ने झोला दे दिया!

“खोल और कंडी(मानव-अस्थि) निकाल इसमें से” उसने कहा,

मंगल ने कंडी निकाल के दे दी पूरन को! पूरन ने उन टुकड़ों को चूमा और थाली में डाल दिया! अब शराब की बूँदें छिड़कीं उन पर और अपना अंगूठा काट रक्त की बूँदें चढ़ाईं! अब पूरन खड़ा हुआ! झोले में से एक कपाल निकाला और उस के मुंह में शराब चढ़ा दी! और मसान जगाने लगा!

जैसे ही पूरन ने मसान जगाने की कोशिश की, तभी वहाँ चहल-कदमी शुरू हो गयी! जैसे कोई दो इंसान इधर-उधर भाग रहे हों!

अब मंगल और उसके चेले की फूंक सरकी! सिमट गए एक दूसरे में! पूरन शान्ति से सब सुनता रहा खड़ा हुआ! अचानक से चहल-कदमी बंद हुई! सामने वही आदमी और औरत प्रकट हुए! औरत चिल्लाई ‘चंदर, बचा ले मुझे’

पूरन ने गौर से देखा उन दोनों को, वो आदमी उन्हें ही घूर रहा था! जब भी औरत कुछ कहती वो आदमी उसको लात मारके चुप करा देता! और अगले ही पल औरत चुप हो जाती! बड़ा अजीब सा मंजर था वहाँ!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“कौन हो तुम दोनों?’ पूरन ने पूछा,

कोई जवाब नहीं दिया किसी ने भी! बस ठहाका मारके हंस पड़े!

“जवाब दो?” पूरन चिल्लाया!

“चला जा! चला जा! क्यों अपनी जान का दुश्मन बनता है!” वो आदमी बोला! ये आवाज़ सभी ने सुनीं लेकिन देख केवल एक ही आदमी रहा था उनको! वो केवल पूरन!

“मुझे धमकाता है? बदजात?” पूरन ने जवाब दिया!

“ओ इस से पहले तेरी गर्दन मरोड़ दूँ मै, भाग जा यहाँ से!” उस आदमी ने कहा!

मंगल और उसके चेले ने एक दूसरे को देखा जैसे ये धमकी उनके लिए दी गयी हो! एक दूसरे का हाथ थामे पीछे हट गए!

“अरे ओ मंगल?” पूरन ने कहा,

“हा…..हाँ” मंगल ने डर के मारे कहा,

“ज़रा लगा बाबा का भोग” पूरन ने कहा,

कांपते हाथों से मंगल ने गिलास में शराब डाली! आधी गिलास में आधी बिखर गयी! गिलास पकड़ा दिया पूरन को! पूरन ने मंत्र पढ़ा और पी गया!

“मसान जागे………………!!” मंत्र पढ़ा उसने!

तभी! तभी पूरन के सामने आ खड़ा हुआ वो आदमी उस औरत को खींचते हुए! एक हाथ से पूरन को उठाया और दी एक लात उसके पेट पर! पूरन, मंगल और उसके चेले के ऊपर से उड़ता हुआ गिरा खेतों की बीच! उसको गिरता देख कोई कहीं भागा कोई कहीं! कोई इस खेत में कोई उस खेत में! कीचड से लथपथ सभी भागे अपनी अपनी जान बचाने को! पूरन की सुध किसी ने ना ली!

मंगल और उसका चेला भागे अब मुख्य रास्ते की तरफ! उधर फौजी, अमर और चंदर भागे पीछे की तरफ! मंगल खेत की तरफ आया! और आवाज़ दी “पूरन ओ पूरन?” अब तक हिम्मत जुटाकर अमर, चंदर और फौजी भी आ गए! उन्होंने वहीँ देखा, दिए अभी भी टिमटिमा रहे थे! और पूरन खेतों के बीच मुंह के बल पड़ा हुआ था!

“अरे देख लो? कहीं मर ना गया हो?” फौजी ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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हिम्मत जुटा कर मंगल और उसका चेला और चंदर गए देखने पूरन को! पूरन पड़ा हुआ कराह रहा था! उन्होंने पूरन को उठाया और खेत से बाहर लाये! उसके मुंह से खून निकल रहा था, उसकी आंतें फट गयीं थीं! ऐसी लात मारी थी उस आदमी ने उसको!

जल्दी जल्दी गाँव में से एक जुगाड़ जोड़ा गया, और उसको ले कर भागे अस्पताल! अस्पताल में दाखिल करा दिया! अमर और फौजी ने एक दूसरे को देखा, ये तो लेने के देने पड़ गए थे! अस्पताल में ठहरे उस रात मंगल और उसका चेला!

और यहाँ! यहाँ अमर और फौजी आ गए सकते में! क्या सोचा था और क्या हो गया? कहीं ये पूरन मर गया तो और जान की फजीहत! एक तो खेत की मुसीबत और अब एक इल्लत और जुड़ गयी उनकी जान को!

हफ्ता बीता, पूरन बच गया था, लेकिन बोल नहीं पा रहा था! चंदर और अमर ने उस खेत में वो जगह बिना जुताई के छोड़ दी! लेकिन आवाजें आती रहीं! बेचारे रोज डर डर के काम करते वहां!

 

अब थोड़ा समय बीता, लेकिन समस्या का स्थायी निदान नहीं हुआ था, ये चिंता का विषय था, कभी भी कोई अनहोनी हो सकती थी! फौजी को भी बड़ी चिंता थी! उसकी साख दांव पर लगी थी, वो सारे गाँव को सलाह देता था, काफी मान था उसका, लेकिन ये समस्या तो मुंह बाए खड़ी थी! क्या किया जाए? और अब तो गाँव में भी ये बात चल निकली थी कि फलाना का खेत भुतहा है, जाने से परहेज करो! अमर सिंह रोज आजे फौजी के पास, एक और आदमी से बात की तो उसने भी आने से मना कर दिया! बड़ी विकट समस्या आन पड़ी थी!

ऐसे ही एक दिन फौजी के रिश्तेदार आये दिल्ली से, अमर सिंह वहीँ बैठे थे, आवभगत हुई और फिर बातों बातों में खेत का भी ज़िक्र छिड़ गया! मेहमानों ने और पूछा तो अमर सिंह ने सारी व्यथा बता दी! मंगल से लेकर पूरन तक! उन्ही में से उनके एक मेहमान शर्मा जी के जानकार थे, उन्होंने उनको कहा कि वो जानते हैं एक ऐसे ही व्यक्ति को, वो ये काम कर सकें तो मै पूछ लूँगा उनसे! अब तो नंबर का भी आदान प्रदान हो गया! मेहमान गए तो फौजी ने कहा,”ले भई अमर, इनको भी देख लेते हैं एक बार”

“हाँ जी, अब तो जो जहां बताये मै चला जाऊँगा” अमर ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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और दो दिनों के बाद फौजी के रिश्तेदार का संपर्क शर्मा जी से हुआ, शर्मा जी ने मुझसे पूछा, मैंने स्थिति की गंभीरता पर विचार किया और फिर अमर सिंह को शर्मा जी ने हाँ कह दिया! और इसीलिए हम आज यहाँ आये थे!

अभी हम आराम कर ही रहे थे कि चंदर आ गया अपनी मोटरसाइकिल लेकर! उसने नमस्ते की और एक झोला अमर सिंह को पकड़ा दिया! चंदर गाँव का एक सीधा-सादा युवक था, शहरी जीवन से दूर रहने वाला, खेती में मशगूल रहता था!

“ये ही जी चंदर” अमर सिंह ने कहा,

“अच्छा!” मैंने कहा,

अब चंदर हमारे साथ बैठा और उसने सारी बात बताई क्रमवार! मैंने ध्यान से सारी बात सुनी और फिर गौर किया, वो औरत चंदर को बुलाती है नाम से, ऐसा क्यों? ‘मुझे बचा ले’ ऐसा क्यों? और किस से बचा ले? क्यूँ गुहार करती है? और फिर क्यों साथ देती है उस आदमी का? ये पेंच थोड़ा अटका हुआ था और इसी में इसका उत्तर भी था!

उस समय कोई पांच बजे थे, अमर सिंह बाहर गए और फिर फौजी को लिवा लाये, चौड़ी तावदार मूंछें थीं फौजी की! कद-काठी भी फौजियों की तरह की थी! फौजी ने दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते की, सो हमने भी की!

“गुरु जी, बड़ी मुसीबत आन पड़ी है” फौजी ने कहा,

“आज देख लेंगे क्या कहानी है” मैंने कहा,

“बड़ा बुरा हाल है” फौजी ने कहा,

“कोई बात नहीं” मैंने जवाब दिया,

“इस गाँव तो क्या औरां गाँव में भी ऐसा ना हुआ कभी आज तलक” फौजी ने कहा,

“हो जाता है ऐसा कभी कभी” मैंने कहा,

थोड़ी देर शान्ति रही!

“अमर? गुरु जी को ले आ मेरे पास, आजा” फौजी ने कहा,

“कहाँ?’ मैंने पूछा,

“मेरे घर, ये रहा पांच फर्लांग पर” फौजी ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“चलिए” मैंने कहा और हम उठ गए,

औजी के घर पहुंचे, फौजी ने एक कन-भैय्ये से कह के कुछ सलाद कटवा लिया! वो सलाद ले आया, एक जग में बर्फ़ डाली गयी और फिर फौजी ने अपने सूटकेस में से फौजी-दारु निकाल ली!

“गुरु जी, ये ख़ास माल है” फौजी ने कहा,

“हाँ, फ़ौज का है ना!” मैंने बोतल उठा के देखी!

“हाँ जी” फौजी ने बोतल का ढक्कन खोलते हुए कहा और फिर चार गिलासों में शराब डाल दी!

“लो जी गुरु जी” फौजी ने कहा,

मैंने गिलास उठाया,

“लीजिये गुरु जी, शुरू कीजिये” फौजी ने गिलास से गिलास टकराया!

मैंने अपना गिलास उठाया और एक मंत्र पढ़ कर पी गया!

“गुरु जी” फौजी ने गिलास रखते हुए कहा,

“जी?” मैंने पूछा,

“निजात दिला दो जी, हमको इस बला से” फौजी ने हाथ जोड़े!

“अरे फौजी साहब! हम अभी चलेंगे वहाँ, मै देख लूँगा आप चिंता ना करें!” मैंने कहा,

उसके बाद हमने बोतल ख़तम कर ली, हाथ वगैरह धोये और फिर चल पड़े खेत की तरफ! चंदर को साथ लिए अपने!

खेत में पहुंचे! चंदर ने मुझे वो जगह बताई जहां उसको पहली बार आवाजें आई थीं! फिर वो भी जहां उसने पूरन को फेंका था! अब मैंने सभी को हटा दिया वहाँ से! मैंने केवल अपने साथ शर्मा जी को रखा! अब मैंने कलुष-मंत्र पढ़ा! अपने और शर्मा जी के नेत्र पोषित किये, नेत्र खोले तो सामने का दृश्य स्पष्ट हुआ! सामने कुछ नया नहीं था, कुछ चौकोर पत्थर भूमि में गढ़े थे, कुछ पुराने से शहतीर थे वहाँ और कुछ नहीं, ना को प्रेत ना कोई भूत! कुछ नहीं! मैंने काफी देर तक निरीक्षण किया लेकिन कुछ पता ना चला! इसका अर्थ समस्या यहाँ नहीं थी! मै आगे गया, खेत पार किया, पार करते ही कुछ कट्ठे के पेड़ दिखे, बड़े बड़े पेड़! लेकिन ये आधुनिक ही थे,


   
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श्रीशः उपदंडक
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भूमि में पुराने नहीं, हाँ उस दूसरे खेत में बजरी जैसे हज़ारों पत्थर पड़े थे, यहाँ का स्थान खेती के लिए नहीं था, यहाँ केवल कुछ सामान ही रखा जाता था, एक पुरानी सी झोंपड़ी बनी थी, लेकिन वो भी आरपार! अब मैंने कलुष मंत्र वापिस ले लिया! कुछ पता ना चला!

“यहाँ तो कुछ भी नहीं है?” मैंने शर्मा जी से कहा,

“हाँ, असामान्य तो कुछ भी नहीं” वे बोले,

“रात को आना ही बेहतर होगा” मैंने कहा,

“हाँ” वे बोले,

“शर्मा जी? वो चंदर को नाम से बुलाती है, इसका कारण?” मैंने पूछा,

“ये बड़ा अजीब सा मामला है” वे बोले,

“हाँ, लगता है कुछ गड़बड़ है” मैंने कहा,

“गड़बड़? कैसे?” उन्होंने उत्सुकता से पूछा,

“चंदर के दादा और पिता ने ऐसा कोई वाकिया नहीं सुना, तो चंदर ही क्यों?” मैंने पूछा,

“हाँ, मै यही सोच रहा था” वे बोले,

“चलो आज रात को सुलझाते हैं ये गुत्थी” मैंने कहा,

“हाँ, उलझा हुआ मामला है” वे बोले,

“हाँ” मैंने कहा,

हम थोड़ी देर वहीँ ठहरे और फिर थोड़ा आ गए!

“गुरु जी?” वे रुके,

“हाँ, बोलिए?” मैंने कहा,

“कोई रिश्ता तो नहीं चंदर का उसके साथ?” उन्होंने शंका ज़ाहिर की,

“हो सकता है” मैंने कंधे उचकाते हुए कहा,

“मुझे यही लगता है” वे बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“आज देखते हैं” मैंने कहा,

“एक बात और, वो कहती है बचा ले, उसके अनुसार या तो वो मरने से पहले की गुहार है या फिर उस आदमी ने उस रूह को क़ैद कर रखा है” उन्होंने अंदाजा लगाया,

“मुमकिन है ये भी” मैंने कहा,

“कुछ ऐसा ही होगा” वे बोले,

“चलो अब चलते हैं” मैंने कहा,

“जी, चलिए” वे बोले,

 

अब हम वापिस पलटे और सीधे उन सभी के पास जा पहुंचे!

शाम ढली! रात आई, मैंने और शर्मा जी ने एक कमरा चुना, वहाँ मैंने उनको वहाँ तंत्राभूषण धारण करवाए और स्वयं भी धारण किये! कुछ ज़रूरी मंत्र भी जागृत कर लिए और सारा ज़रूरी सामान भी अपने साथ अपनी ज़ेबों में रख लिया! मैंने अब मदिरा-भोग किया और फिर ताम-मंत्र, तामस-विद्या को जागृत किया! अपने एवं शर्मा जी के शरीर को रक्षा-मंत्र से रक्षित कर लिया! दस बज चुके थे रात के, मै अब बाहर निकला और शर्मा जी भी बाहर आये मेरे साथ, शर्मा जी ने बोतल और दो गिलास रख लिए थे अपने साथ, इनकी आवश्यकता पड़ सकती थी! बाहर फौजी, अमर सिंह और चंदर इंतज़ार कर रहे थे हमारा!

अब हम चल पड़े उनके खेतों की तरफ! खेतों में पहुँच गए! मैंने सभी को पीछे खड़ा रहने को कह दिया! केवल चंदर को अपने साथ लिया, वे लोग वहीँ रुक गए, अब मै और शर्मा जी आराम से और धीरे धीरे आगे बढे! उस जगह पहुंचे! और वहीँ ठहर गए! घडी देखी तो रात के दस चालीस हुए थे! अब मैंने प्रत्यक्ष-मंत्र का जाप किया! और फिर अपने नेत्र खोले, वहाँ कोई नहीं था दूर दूर तक! मैंने एक कपडा बिछाया और वहीँ बैठ गया, चंदर हिम्मत वाला युवक था, घबराहट उसको नहीं थी उस समय!

अब मैंने वहाँ एक दिया जलाया, और दिए के चारों ओर भस्म की एक रेखा खींच दी! अपने और शर्मा जी के और चंदर के चारों ओर भी एक रेखा खींच दी, इसको प्राण-पोषित किया और हम उसके बीच में बैठ गए! अभी तक कोई नहीं आया था वहाँ! मैंने कुछ सामान निकाला और उसको अभिमंत्रित कर सामने फेंक दिया! ‘झम्म’ की आवाज़ हुई! लगा हवा में सो कोई प्रकट हुआ है! हमारे चारों ओर चहल-कदमी आरम्भ हुई! भारी-भारी क़दमों की चहल-कदमी! फिर


   
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श्रीशः उपदंडक
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सहसा शान्ति हो गयी! तभी उस औरत की आवाज़ आई, ‘चंदर, चंदर, मुझे बचा’ मैंने देखा और सुना की वो आवाज़ करीब बीस फीट दूर से आ रही थी! अब मैंने कहा, “कौन है वहाँ?’

आवाज़ बंद हो गयी!

एक बात स्पष्ट थी, ये जो आवाज़ आई थी, ये गुहार नहीं थी, ये एक प्रकार का प्रलोभन था! यही बात न मंगल ने समझी थी और न उस पूरन ने! मैंने फिर से वही सामान लिया और अभिमंत्रित कर सामने फेंका! फिर से आवाज़ आई, ‘चंदर, मुझे बचा’

“किस से बचा?” मैंने कहा,

‘चंदर, मुझे बचा’ फिर आवाज़ आई!

“कौन है तू? नाम बता अपना?” मैंने कहा,

‘चंदर’ फिर से एक धीमी आवाज़ आई!

अब मैंने देर न की! और कोई रास्ता नहीं था! मैंने फ़ौरन ही उस रक्षा-वृत्त से बाहर छलांग लगाईं! मेरे छलांग लगाते ही मेरे सामने करीब छह फीट दूर एक सात साढ़े फीट का आदमी दिखा! उसने एक काले रंग की रस्सी थाम रखी थी! रस्सी के दूसरे सिरे से एक औरत के हाथ बंधे थे, औरत एक सफ़ेद रंग की धोती में थी, उसका सर गंजा था! वो औरत रस्सी से छूटने की कोशिश करती तो वो आदमी उसको लातों से मारता! और हँसता!

“कौन है तू? इसे क्यों बांध रखा है तूने?” मैंने उस से कहा,

“जा यहाँ से तू!” उसने मुझे धमका के कहा!

“मै नहीं जाऊँगा, इसको छोड़ दे” मैंने भी गुस्से से कहा,

“तू कौन होता है इसको छुडाने वाला?” उसने गरज के पूछा,

“पहले इसको छोड़” मैंने कहा,

वो चुप हुए! और फिर दोनों ही हंस पड़े!

बड़ी अजीब सी बात थी! मै उस औरत का पक्ष ले रहा था और वो मुझ पर ही हंस रही थी!

“तुम हो कौन?” मैंने पूछा,

“हिम्मत है तो जान ले” उस आदमी ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“मुझे धमकाता है तू?” मैंने कहा,

“हाँ, चल भाग यहाँ से अब?” उसने गुस्से से कहा,

“भागूँगा मै नहीं, तुम भागोगे यहाँ से” मैंने कहा,

उस आदमी ने तब मेरी ओर देखा गौर से!

“तू मुझे भगाएगा?” उसने कहा,

“हाँ और पकड़ के भी ले जाऊँगा!” मैंने कहा,

अब उन दोनों से अट्टहास लगाया!

“ठहर जा फिर!” उसने कहा,

अब वो रस्सी छोड़ कर मेरे पास कूदा, लेकिन एक झटका खाके पीछे हट गया! ये तामस-विद्या की गंध थी!

“क्या हुआ?” अब मैंने हंस के कहा,

“तू कौन है?” उसने पूछा,

“हिम्मत है तो जान ले! मैंने कहा,

उन दोनों ने एक दूसरे को देखा हैरत से!

“अभी बताता हूँ तुझे, रुक जा!”

“मै रुक हुआ हूँ” मैंने कहा,

उसने गुस्से से मुझे देखा!

वो भी ऐसे ही खड़े रहे और मै भी! वो मुझे आज़मा रहा था और मै उनको!

“तुम कौन हो? क्यूँ इस चंदर का नाम लेती हो?” मैंने उस औरत से पूछा,

उसने कोई जवाब नहीं दिया बस एक ठहाका लगाया!

“ठीक है, मत बताओ! लेकिन अब जो मै करूँगा तुम्हे पछताना पड़ेगा!” मैंने धमकाया उनको!

“जो करना है कर ले!” उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“मूर्ख हो तुम दोनों” मैंने कहा,

“क्या कहा?” उस औरत को गुस्सा आया अब और उसने अब अपना रूप बदला! जो रूप उसने बदला वो एक चुड़ैल का था! अब मै समझा! ये चुड़ैल है और वो एक महा-प्रेत! दोनों संगी-साथी! ये सब उनका नाटक था!

“अच्छा तो तू एक चुड़ैल है!” मैंने कहा,

“तेरा खून पी जाउंगी मै!” उसने कहा और एक भयानक चीत्कार मारी!

वो हवा में उड़ के आई और मेरे सामने खड़ी हो गयी! उसको ताम-मंत्र की गंध आई! मेरे चारों ओर घूमी! अनाप-शनाप अनजान भाषा बोलते हुए! फिर उड़ कर उस महा-प्रेत के पास चली गयी! दोनों ने अट्टहास किया!

“तुम भटकते हुए महा-प्रेत और चुड़ैल हो! साथी चाहिए तुमको! इसीलिए तुम बरगलाना चाहते थे इस युवक चंदर को!” मैंने स्पष्ट किया!

“हाँ! वो तो हम ले ही जायेंगे! तू कब तक रोकेगा!” उस महा-प्रेत ने कहा!

“तुम्हारे बस की बात नहीं ये!” मैंने कहा,

“अच्छा?” उसने कहा और अट्टहास किया!

“हाँ! अगर तुम्हारे बस में हो तो ले जाओ उसको!” मैंने कहा!

“अच्छा?” वो बोला,

“हाँ! तू तो महा-प्रेत है वृत्त तोडना जानता है, तोड़ ले?” मैंने कहा,

“चालाक बनता है?” उसने गुसे से कहा,

“क्यों? डरता है?” मैंने कहा,

“तू हट जा, मै ले जाऊँगा उसको” उसने कहा,

“मै नहीं हटूंगा!” मैंने कहा,

“मै हटा दूंगा!” वो बोला और उसने मेरे ऊपर पत्थरों की बौछार की, मेरी तामस-विद्या से टकरा के वो पत्थर रेत बनते चले गए!

ये देख उनको अचम्भा हुआ!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“बस महा-प्रेत?” मैंने चिढाया उसको!

“तेरा मुंड काट डालूँगा! फाड़ दूंगा तुझे!” उसने कहा!

 

“बस बहुत बकवास हो गयी तुम्हारी!” मैंने कहा,

“तू जानता नहीं है मुझे, तू जानता नहीं मुझे!” वो गर्राया,

“तू मुझे नहीं जानता!” मैंने कहा,

“तू क्या कर लेगा हमारा?” उसने गुस्से से कहा,

“अभी बताता हूँ!” मैंने कहा,

तब मैंने अपने वाचाल-प्रेत का आह्वान किया! इसको चुटिया वाला प्रेत भी कहा जाता है! ये होता तो महा-प्रेत ही है परन्तु उनसे अधिक शक्तिशाली और विध्वंसक होता है! वाचाल-प्रेत अट्टहास लगाता हुआ प्रकट हुआ! वाचाल-प्रेत को देखा अब काँपे वो दोनों! मैंने वाचाल-प्रेत को उनको पकड़ने का आदेश दिया! वाचाल-प्रेत ने उनको देखा! अपनी गर्दन नीचे की और एक ज़ोर का अट्टहास लगाया! जैसे ही वे दोनों भागे, वाचाल-प्रेत ने उनको उनकी कमर से धर दबोचा! अब दोनों वाचाल-प्रेत की क़ैद में थे! वाचाल-प्रेत ने उनको अपनी चुटिया में बाँध लिया और अट्टहास लगाता हुआ लोप हो गया!

मेरा काम समाप्त हो गया था! मै प्रसन्न था! चंदर के ऊपर से मौत का साया उठ गया था! अब वो किसी भी जान के खतरे से बाहर था! मै पीछे मुड़ा और शर्मा जी के पास गया! वे दोनों उसी वृत्त में खड़े थे! मैंने उन दोनों को बाहर आने को कह दिया! वे दोनों बाहर आ गए! शर्मा जी ने पूछा, “पकड़ लिया उनको?”

“हाँ, एक महा-प्रेत था और एक चुड़ैल!” मैंने कहा,

“क्या चाहते थे?” उन्होंने कहा,

“चंदर की मौत!” और उसके बाद मैं सारा किस्सा कह सुनाया उनको!

अब हम वापिस हुए, शर्मा जी ने सारी बात बताई उनको! सारी कहानी उन्होंने कान खड़े करके और मुंह फाड़ के सुनी! कहानी सुनने के बाद वे तीनों ही हमारे पाँव में पड़ने को हो गए थे! किसी तरह से समझाया मैंने उन्हें!


   
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श्रीशः उपदंडक
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हम वापिस फौजी के घर पहुंचे! अब सभी खुश थे!

मंगल और पूरण भी ये काम कर सकते थे, लेकिन उन्होंने युक्ति से काम नहीं लिया! उन्होंने अपनी शक्ति का दिखावा किया! महा-प्रेत ने उनको मसान जगाने ही नहीं दिया और उनका ये हाल हुआ, पूरन तो बेचारा मरते मरते बचा!

प्रातःकाल हम स्नान आदि से फारिग हुए, चाय नाश्ता किया और उनसे अब विदा ली! फौजी तो कह रहा था कि रुक जाइये आज दावत क़ुबूल कर लो हमारी! मै रुक नहीं सकता था अतः उनसे विदा लेनी पड़ी!

हम दिल्ली पहुंचे, वहाँ मैंने अगली रात उस महा-प्रेत और चुड़ैल को हाज़िर करवाया, वाचाल-प्रेत का उधार भोग दिया! उस महा-प्रेत को मैंने एक घड़े में डाल कर ज़मीन में गड़वा दिया, कभी अवसर मिला तो उसको मुक्त करूंगा! हाँ वो चुड़ैल अपनी चुडैलता से बाज नहीं आई! इसीलिए मैंने उसको एक कीकर के पेड़ पर लटका दिया उल्टा करके! आज तक लटकी है! जिस दिन मान जायेगी उस दिन उसको भी आज़ाद कर दूंगा!

अमर सिंह का परिवार आज खुश है! फौजी साहब भी आये थे मेरे पास एक बार मिलने के लिए! हाँ उनका फ़ोन तो अवश्य ही अत है! आज खेत में कोई भी अला-बला नहीं है! सब ठीक है!

ये संसार है! यहाँ कभी कभार अशरीरी का टकराव शरीरी से हो ही जाता है, कभी चाह कर और कभी ना चाहते हुए भी!

एक बात का सदैव ख़याल रखना चाहिए, हम देहधारी हैं, हमारी देह की अपनी सीमाएं हैं, यहाँ चंदर की कोई गलती नहीं थी, बस उस चुड़ैल को साथ चाहिए था! चुड़ैल बहुत खतरनाक योनि है! तांत्रिकों को भी छका देती है! अवसर मिलने पर प्रतिवार करती है! इसीलिए मैंने इस चुड़ैल को कीकरी-सजा दी है!

मित्रगण! शत्रु को कभी असहाय, निर्बल ना समझें! स्मरण रहे, कीकर का एक काँटा जिसका वजन मात्र एक मिलीग्राम होता है, गजराज को भी टिका देता है!

---------------------------साधुवाद!----------------------

 


   
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