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वर्ष २०१० जिला बुलंदशहर के गाँव की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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ज्येष्ठ का महिना, उतर भारत में जिला बुलंदशहर का वो गाँव, पसीने के मारे बुरा हाल, गाड़ी का ए.सी. भी जैसे गर्मी का शिकार हो गया हो! रेतीले रास्ते पर अपने गहरे निशान छोड़ते गाड़ी के पहिये, इक्का-दुक्का दिखाई देते लोग या फिर पास से गुजरती एक आद बैल-गाड़ी! मंद गति से चलती गाड़ी हिचकोलों के साथ आगे बढ़ रही थी! तभी रास्ते में एक जगह जामुन के कुछ पेड़ दिखाई दिए, हमने गाड़ी वहीँ रोक दी, बाहर आते ही लू के गरम थपेड़ों ने ये जता दिया कि साल के इस वत उनकी सत्ता रहती है! पसीनों पर टकराती गरम बयार जब छूती थी तो फुरफुरी सी छोड़ जाती थी! खैर, गाड़ी के उस बंद कमरे से बाहर आकर यहाँ कुछ शीतलता थी, पेड़ों के साए की शीतलता! मैंने पानी की बोतल निकाली और पानी पीने लगा, पानी भी गरम हो चला था, पानी पी पी के पेट भर गया था लेकिन हलक दूसरे ही पल फिर से ख़ुश्क हो जाता था! उसको बार बार तरावट चाहिए थी! यही हम सभी कर आरहे थे! मैं और शर्मा जी आये थे यहाँ, साथ में उस गाँव के एक निवासी अमर सिंह भी थे, वही हमे अपने गाँव लेकर जा रहे थे, अमर सिंह पेशे से किसान थे, बड़ा बेटा भी खेती में हाथ बंटाया करता था और दो छोटे बेटे पढ़ाई कर रहे थे, बड़े बेटे का ब्याह हो गया था, करीब दो साल गुजर चुके थे! हम अमर सिंह की ही एक समस्या निदान के लिए यहाँ आये थे! मैंने शर्मा जी उन पेड़ों के नीचे बैठे, गाड़ी पेड़ की छाया में लगा दी गयी थी, तभी शर्मा जी बोले, “गुरु जी, आज का दिन तो कुछ ज्यादा ही गरम है!” उन्होंने रुमाल से अपनी गर्दन पर आये पसीनों को पोंछते हुए कहा!

“हाँ, साल के इन दिनों में उत्तर भारत में गर्मी का कहर टूट जाता है!” मैंने कहा,

“ऐसी गर्मी है कि खाल छील ले!” वे बोले,

“सही बात है” मैंने कहा,

कुछ देर, यही कोई आधा घंटा आराम करने के बाद हम फिर से गाड़ी में सवार हुए और गाँव के लिए चल पड़े! फिर से वही हिचकोले! कभी रुकते कभी गड्ढों से बचते! करीब दो घंटे के बाद, शहर से दूर दराज के उस गाँव में हम आ गए! गाँव काफी हरा भरा था, अधिक बड़ा तो नहीं था लेकिन आबादी ठीक-ठाक थी! हम गाड़ी से उतरे, गाड़ी उनके घेर में लगा दी एक छान के नीचे! गाँव के छोटे छोटे बालक-बालिकाएं आ गए वहाँ और जिज्ञासावश हमे देखने लगे!

“लीजिये शर्मा जी, आ गए हम गाँव!” अमर ने कहा,

“हाँ जी!” शर्मा जी ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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मै तो वहाँ छान के नीचे पड़ी एक बड़ी सी चारपाई पर पाँव पसार के लेट गया! कमर सीधी हुई तो जाके कहीं चैन पड़ा! अमर घर के अन्दर से ठंडा पानी ले आये, आजकल गाँवों में बिजली पहुँच चुकी है अधिकाँश, ठंडा पानी गले से नीचे उतरा तो लगा कि अमृत-पान किया हो! अमर सिंह ने दूसरी चारपाई भी लगा दी, उस पर शर्मा जी पसर गए! हवा के लिए एक टेबल-फैन लगा दिया गया था, सुकून मिला उसकी हवा से!

“गुरु जी, दूध पियोगे या लस्सी बनवाऊं?” मर सिंह ने पूछा,

“लस्सी बनवा लीजिये, ऐसी गर्मी में लस्सी का कोई जवाब नहीं!” मैंने कहा,

वे गए और थोड़ी देर पश्चात एक जग और दो बड़े गिलास ले आये, छक के लस्सी पी हमने! सच कहता हूँ, जैसे किसी मर रहे प्राणी के मुंह में जल की बूँदें अमृत का काम करती हैं, ऐसा ही काम किया लस्सी ने! अब आँखें भारी हो चली थीं! सर में ठंडक पहुंची तो आँख लग गयी! एक तो चार घंटों की वो अग्नि-परीक्षा यात्रा और ऊपर से ये ठंडक! स्वाभाविक ही था! मानव-शरीर के विवशता है ये!

करीब एक घंटे तक हम निन्द्रालीन रहे! मेरी आँख खुली तो शर्मा जी ने भी करवट बदली, मुझे बैठा देख वो भी उठ गए!

“ले ली नींद!” मैंने शर्मा जी से पूछा,

“हाँ, जी, कमर सीधी हो गयी!” उन्होंने कमर को हाथ लगाते हुए कहा,

“अब ज़रा स्नान का प्रबंध कराइये शर्मा जी” मैंने कहा,

“हाँ, अभी कहता हूँ” उन्होंने कहा,

तब शर्मा जी ने अमर को आवाज़ लगाईं, अमर आये वहाँ, अमर से उन्होंने स्नान का प्रबंध करने को कहा तो उन्होंने बताया कि पानी भरा रखा है, स्नान कर लीजिये, घेर में ही ईंटे लगाकर एक कामचलाऊ गुसलखाना बनवा रखा था, सो फिर हम दोनों ने स्नान कर लिया! स्नान के पश्चात स्फूर्ति आ गयी! हमने वापिस आके कपडे पहने तो अमर ने खाना भी लगवा दिया! खाने में अरहर की दाल और लस्सी, नूनी मक्खन के साथ चूल्हे की पानी की रोटी! वाह! इस खाने का कोई तोड़ नहीं! कोई मिसाल नहीं! जम के खाया हमने खाना! जब तक की पांच-छह डकार न आ गयीं!

अब मै आपको बताता हूँ कि हम दोनों यहाँ किसलिए आये थे!


   
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श्रीशः उपदंडक
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दरअसल, कोई तीन महीने पहले की बात होगी, अमर सिंह का बड़ा लड़का, चंदर, अपने खेत में पानी लगा रहा था, वक़्त करीब रात का कोई ग्यारह बजे का रहा होगा, तभी खेत की मुंडेर पर उसने एक औरत और एक आदमी की आवाज़ सुनी, वो दोनों बहुत तेज तेज बातें कर रहे थे, जब चंदर वहाँ गया तो वहाँ को भी न था, उसके हैरत तो हुई, लेकिन उसने सोचा कि गाँव का ही कोई परम-प्रसंग का चक्कर होगा, नहीं तो भला रात के ग्यारह बजे इन खेतों में कोई क्या करने आएगा? वो फिर से काम पर लग गया अपने और मगन हो गया! करीब दस मिनट के बाद उसे लगा कि कोई किसी औरत को जोर जोर से मार रहा है, औरत तेज तेज मदद की गुहार लगा रही है! चंदर अपना फावड़ा ले कर भाग, जब पहुंचा तो वहाँ कोई न था! चंदर जीवट वाला आदमी है, भूत-प्रेतों में यकीन नहीं रखता था! सोचा शायद वहम हुआ है उसको! वो वापिस फिर से अपने काम पर लग गया!

करीब आधा घंटा बीता, चंदर ने फिर से आवाजें सुनीं! औरत की आवाज़ में कोई ‘चंदर मुझे बचा! मुझे बचा’ गुहार लगा रहा था! चंदर ने फावड़ा चलाना बंद किया और वहीँ खड़ा चुपचाप सुनता रहा! आवाज़ फिर से आने लगीं!

“कौन है?” चंदर ने पूछा,

बस यही आवाज़ आई, ‘चंदर मुझे बचा’

“कौन है वहाँ?” चंदर ने चिल्ला के पूछा,

आवाज़ बंद हो गयी! शान्ति छा गयी वहाँ! एक पल को ठिठक गया था चंदर भी! खैर, चंदर फिर से काम पर लग गया!

फिर से आवाज़ आई! चंदर थमा! उस तरफ गर्दन की! कान लगा के ध्यान से सुना! अब वहीँ की ओर घूमा! आगे बढ़ा और फिर रुक गया! आवाजें तेज हो गयी! बस अब केवल ‘मुझे बचा, मुझे बचा’ की आवाज़ आ रही थी! अब चंदर का धैर्य टूटा! उसने बीडी सुलगाई! फावड़ा छोड़ा और कुदाल उठाई! कंधे पर रखी और बढ़ चला वहीँ की तरफ!

“कौन है, जो भी है, सामने आ जाओ, बहुत हो गया नाटक” चंदर ने कहा,

“चंदर?” एक आवाज आई!

“कौन हो, सामने क्यूँ नहीं आती?” चंदर ने कहा,

“तू आ गया चंदर?” हवा में आवाज़ आई!

“अरे सामने तो आ?” चंदर ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“तू आ गया चंदर?” आवाज़ आई,

“हाँ, लेकिन तू है कौन? कहाँ है?” चंदर ने पूछा,

अब वो औरत रो पड़ी! चिल्ला चिल्ला के!

अब चंदर को लगा कि सच में ही ये कोई भूत-बाधा है! लेकिन उसने किसी को देखा नहीं था, भूत-प्रेत था तो सामने क्यों नहीं आ रही?

“कौन है तू? मेरा नाम जानती है, अपना नाम बता?” उसने पूछा,

“मुझे बचा ले चंदर” आवाज़ आई फिर से!

“पहले ये बता तू है कौन?” आवाज़ आई!

“मुझे बचा ले” आवाज़ आई फिर से!

अब चंदर के होश उड़ने शुरू हुए! उसने आगे जाकर देखा कि कोई है तो नहीं, लेकिन जांचने के बाद भी वहाँ कोई नहीं मिला चंदर को!

अब चंदर भागा वहाँ से! उसका साहस टूट गया था!

 

चंदर घर लौट आया, आते ही उसने अपने पिता जी को सारी घटना से अवगत कराया, उनका भी माथा घूमा! उन्होंने जीवन काट दिया था वहाँ खेती करते करते, लेकिन ऐसी कोई घटना वहाँ नहीं हुई थी उस दिन से पहले! अब चूंकि वो औरत चंदर को उसके नाम से पुकार रही थी तो इसका अर्थ यही था कि कोई प्रेत-बाधा है वहाँ! उनका दिमाग घूम गया! उस रात फिर काम पर नहीं गया चंदर, अन्दर जाकर सो गया लेकिन अमर सिंह के दिमाग में भय व्याप्त हो गया!

सुबह हुई तो अमर सिंह ने फिर से दुबारा उस घटना का वर्णन सुना, चंदर ने जस का तस बता दिया! उनका बेटा शराब या अन्य किसी नशे का सेवन भी नहीं किया करता था, उसकी बातों को मजाक में उड़ाना या सहज रूप से लेना अथवा वहम करके खारिज कर देना ये भी उचित नहीं था!

अब अमर सिंह ने ये बात अपने एक मित्र दिनेश को बताई, दिनेश फ़ौज से रिटायर्ड थे, दिनेश ने इसको मात्र वहम कह कर खारिज कर दिया, और दो चार तर्क भी दे डाले! अब अमर सिंह ने वही तर्क चंदर को बताये और उसकी उस घटना को खारिज कर दिया वहम बता कर! चंदर को


   
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श्रीशः उपदंडक
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जैसे विश्वास नहीं हुआ, उसने कहा अमर सिंह को कि वो चलें एक बार खेत पर, हो सकता है कि वो आवाजें फिर से सुनायीं दे जाएँ? अमर सिंह मान गए!

उसी रात साढ़े दस बजे दोनों बाप-बेटा चल पड़े खेत की ओर, इस बार एक बड़ी सी टोर्च भी ले आये थे! खेत पहुंचे तो चंदर ने अमर सिंह को वो जगह बता दी जहां से वो आवाजें आई थीं, अमर सिंह ने थोडा सोचा, एक सरसरी नज़र दौड़ाई और फिर अपने अपने काम पर लग गए!

रात करीब पौने बारह बजे वहाँ से कुछ खुसफुसाहट की आवाजें आयीं, चंदर भागा अपने पिता अमर सिंह की ओर जहां वो खेत के परली पार काम कर रहे थे, उसने वहाँ जाकर उस खुसफुसाहट के बारे में बता दिया! अमर सिंह ने सुना तो दोनों भागे वहाँ! थोड़ी दूर जाके थर गए! वहाँ खुसफुसाहट की आवाज़ आ रही थी, जैसे एक मर्द और औरत आपस में बातें कर रहे हों खुसफुसा कर! दोनों ने कान लगाए लेकिन साफ़ साफ सुनाई नहीं दिया! तभी एक मर्द की ठहाका मारने की आवाज़ से सिहर गए दोनों! अमर सिंह के पाँव कांपने लगे! चंदर ने जो बताया था वो सच था!

चंदर हिम्मत वाला आदमी था, पूजा-पाठ करने वाला, थोड़ी हिम्मत उसने बंधाई अपनी और अपनी कुदाल लेकर वो वहीँ गया जहां से आवास आये थी ठहाके की!

“कौन है वहाँ?” चन्दर ने पूछा,

कि आवाज़ नहीं आई!

अब तक कांपते पांवों से अमर सिंह भी आ चुके थे वहाँ!

“कौन हो तुम लोग?” चंदर ने पूछा,

तभी एक औरत की आवाज़ आई हंसने की!

“तू है कौन?” चंदर ने पूछा,

अब मर्द के हंसने की आवाज़ आई!

अमर सिंह और चंदर आपस में चिपक कर खड़े हो गए!

“चंदर?” एक औरत की आवाज़ आई,

“हाँ?” चंदर ने जवाब दिया,

“मुझे बचा ले” उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“किस से बचा ले?” चंदर ने पूछा,

“मुझे बचा ले” आवाज़ आई,

“सबसे पहले ये बताओ, तुम हो कौन??” चंदर ने पूछा,

“मुझे बचा ले?” वो औरत अब चिल्लाई!

जब वो चिल्लाई, तो भागे वे दोनों वहाँ से सर पर पाँव रख कर! अपने खेतों से दूर चले गए! मुख्य रास्ते पर आ गए, मारे भय के चाल भी लड़खड़ा गयी दोनों की! किसी तरह से घर पहुंचे!

“मैंने सही कहा था ना?” चंदर ने कहा,

“हाँ, मैंने खुद सुन लिया आज तो” अमर सिंह ने कहा,

“ये क्या है?” चंदर ने पूछा,

“कोई प्रेत-बाधा लगती है” अमर ने कहा,

“लेकिन आज से पहले तो ऐसा कुछ नहीं हुआ?” चंदर ने कहा,

“हाँ, मेरा भी जीवन निकल गया खेतों में, आज तक ऐसा कुछ नहीं हुआ” अमर ने कहा,

अब सारी बात कल पर छोड़ सोने चले गए दोनों!

सुबह हुई तो फिर से रात वाली घटना सामने आ गयी! अब अमर गए लेके चंदर को अपने मित्र फौजी के पास, सारी बात बता डाली! अब फौजी के भी कान खड़े हो गए! उसने कभी ऐसा ना कभी सुना था और ना कभी देखा था!

“कितने बजे की बात होगी ये?” फौजी ने पूछा,

“कोई पौने बारह या बारह बजे होंगे” अमर ने कहा,

“हम्म! ठीक है, आज मै भी चलूँगा, साथ में एक आद को और ले लेंगे, देखते हैं किसी की शरारत तो नहीं ये?” फौजी ने सुझाव दिया,

“ठीक है जी, हम रात को चलेंगे” अमर ने कहा,

और फिर इस तरह से रात भी हो गयी! अमर, चंदर, फौजी और गाँव का एक और आदमी भी चल पड़ा केतों की तरफ! फौजी ने एक जगह जाकर खेत के आसपास का मुआयना किया टोर्च जलाकर, कोई नहीं मिला उसको, वे चारों वहीँ बैठ गए पुआल और बोरे बिछा कर, घडी में उस


   
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श्रीशः उपदंडक
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समय साढ़े दस बजे थे, बीडी चलती रहीं वहाँ, फौजी गाँव से ही दारु पी कर आया था और अब डटे बैठा था वहाँ!

“चंदर? यहाँ से ही आती है आवाज़?” फौजी ने पूछा,

“हाँ जी” चंदर ने इशारा करके बताया,

“अच्छा” फौजी ने टोर्च मारके कहा,

“एक औरत और एक मर्द?” फौजी ने पूछा,

“हाँ जी” चंदर ने कहा,

“हम्म, चल, देखते हैं आज” फौजी ने कहा,

रात के साढ़े ग्यारह बज गए!

“साढ़े ग्यारह बज लिए भाई” फौजी बोला,

“हाँ जी, बस थोड़ी देर और” अमर ने कहा,

और फिर पौने बारह बजे, अब सब चुप!

फिर बजे बारह! सवा बारह! और तभी एक आवाज़ आई मर्द की “चारों आ लिए?”

अब चारों की सिट्टीपिट्टी ग़ुम!

चारों उठ खड़े हुए!

“कौन है वहाँ?” फौजी ने टोर्च मारके कहा,

कोई आवाज़ नहीं!

“कौन है, बताओ तो?” फौजी टोर्च मारके बोला,

कोई आवाज़ नहीं आई!

“नाम बताओ अपना?” फौजी ने पूछा,

“चंदर?” अब एक औरत की आवाज़ आई!

अब चारों चौंके!


   
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श्रीशः उपदंडक
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चंदर, बचा ले मुझे?” औरत की आवाज़ आई,

“कौन है तू? सामने तो आ?” फौजी ने कहा,

“चंदर मेरे पास आ, मुझे बचा ले” उस औरत ने कहा,

“पहले ये बताओ, तुम हो कौन?” फौजी ने कहा,

“चंदर?” बहुत तेज बोली वो औरत!

अब चारों भागे वापिस वहाँ से! डर के मारे एक दूसरे से आगे निकलने के कोशिश करते हुए!

 

अब तो अफरा-तफरी मच गयी! गाँव आके ही सांस ली सभी ने, फौजी ने जो सुना था महसूस किया था वो उसने कभी जिंदगी में भी नहीं सुना था! वो तो मनघडंत किस्से-कहानियां मानता था भूत-प्रेतों को! परन्तु उस दिन तो उनसे अपने कानों से सुना था! ये भी निश्चित ही था कि ये किसी की शरारत नहीं है, बल्कि कोई भूत-प्रेत का ही चक्कर है! फौजी ने दिमाग घुमाया अपना और उसी रात ये निश्चय किया कि कल वो अमर सिंह के साथ पड़ोस के गाँव जायेंगे, वहाँ एक गुनिया रहता है वहीँ के शिवाने(गाँवों का शमशान) में, उस से ही पूछेंगे और ले कर भी आयेंगे उसको यहाँ, उसके बाद सभी अपने अपने घर चले गए! रात को किसी को भी नींद न आई! सभी अपनी अपनी अटकलें लगाते रहे!

किसी तरह से रात कटी! नहा-धो कर, दूध आदि पीकर अमर सिंह चले अपनी मोटरसाइकिल लेकर फौजी के घर, फौजी भी अपनी मोटरसाइकिल पर कपडा मार रहा था! अमर सिंह को देखा, नमस्कार आदि हुई और फिर दोनों चल पड़े पड़ोस के ही एक गाँव की ओर! गाँव करीब दो कोस होगा वहाँ से, अधिक देर न लगी, कच्चे रास्ते पर चलने के ये दोनों अभ्यस्त देहाती पहुँच गए उस गाँव के शिवाने में! अन्दर एक मंदिर बना था छोटा सा,मंदिर में कुछ लोग पूजा-अर्चना करने आये थे, फौजी के जानकार थे उस मंदिर के पंडित जी, नमस्कार हुई उनसे तो फौजी ने सारी कहानी बताई, पंडित जी को भरी गर्मी में सिहरन दौड़ गयी! जब फौजी ने मंगल गुनिया के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि अभी आने ही वाला है वो यहाँ, फौजी और अमर सिंह लगे अब मंगल का इंतज़ार करने और बीड़ी सुलगाने! बेसब्री में बीड़ी पर बीड़ी सुलगाते रहे, कोई आधा घंटा बीता, अपनी साइकिल पर आता मंगल गुनिया दिखाई दिया! फौजी और अमर सिंह को इतनी ख़ुशी हुई उसको देखकर कि मानो जैसे दोनों का सरकारी मनी-आर्डर लाया है मंगल! मंगल ने अपनी साइकिल लगाईं एक जगह छाँव में और फिर हैण्ड-पंप की तरफ बढ़ा, हाथ-मुंह और पाँव रगड़ रगड़ के धोये उसने! हाथ-मुंह पोंछ कर आया वो


   
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श्रीशः उपदंडक
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पंडित जी के पास, नमस्कार हुई तो मंगल भी पूजा-अर्चना करने लगा, यहाँ फौजी और अमर सिंह का एक एक पल घंटा हुए जा रहा था! जब फारिग हुआ तो पंडित जी से हाल-चाल पूछे! हाल-चाल के बाद पंडित जी ने परिचय करवा दिया मंगल का उनसे, हालांकि जानते थे एक दूसरे को वो पहले से ही लेकिन पंडित जी भी अपना श्रेय क्यूँ छोड़ें! अब अमर सिंह ने बात शुरू की और फौजी ने वर्णन का अंत किया! मंगल ने सारी बातें सिलसिलेवार और गौर से सुनीं! उनसे अपने अंगोछे से अपने चेहरे के पसीने पोंछे और प्रश्न किया, “क्या पहले कभी ऐसा हुआ है वहाँ?”

“हमारे बाप-दादा खेती कर कर के पूरे हो गए वहाँ, आज तक ऐसा नहीं हुआ” अमर ने बताया,

“अच्छा! तो वो चंदर को नाम से बुलाती है?” मंगल ने पूछा,

“हाँ” फौजी ने कहा अब! क्योंकि उसने स्वयं सुना था!

“कुछ बताया उसने कि क्यूँ बुलाती है?” मंगल ने पूछा,

“नहीं, बस ये कहती है ‘मंगल बचा ले मुझे’!” फौजी बोला इस से पहले अमर कुछ कहते!

“किस से बचा ले?” मंगल ने पूछा,

“ये नहीं बताती” अमर ने फौजी के जवाब देने से पहले ही कहा!

“हम्म! एक आदमी भी है वहाँ?” मंगल ने पूछा,

“हाँ जी” अमर ने बताया,

पंडित जी गौर से सुनते रहे और आने-जाने वाले लोग अपने आप ही टीका-माथा करते रहे! पंडित जी खो गए थे इस घटना में!

“अच्छा, एक बात और, किसी से पिटाई आदि तो नहीं की?” मंगल ने पूछा,

“नहीं जी, हम झूठ क्यों बोलें?” फौजी ने कहा,

“बड़ी उलझी हुई कहानी है” मंगल ने बीड़ी सुलगाते हुए कहा,

“अजी अब सुलझाओ ये कहानी, खेती-चारे का समय है ये” अमर सिंह ने कहा,

“सुलझाते हैं” मंगल ने कहा,


   
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“एक काम करो, पैसे दे जाओ कुछ पंडित जी को, मै सामान ले आऊंगा, फिर आज रात पहुँचता हूँ आपके गाँव में, फिर चलते हैं खेतों की तरफ” मंगल ने कहा,

अमर सिंह ने जेब से पैसे निकाले और ढाई सौ रुपये दे दिए पंडित जी को!

“पीछा छुडवा दो मंगल, खुश कर देंगे तुमको” फौजी ने बडंग मारा!

“आज दिन में मै देवी जगाऊंगा, उसका आशीर्वाद लेके फिर आता हूँ तुम्हारे पास, काम हो जाएगा, मंगल आज तक फेल नहीं हुआ किसी काम में” मंगल ने सुट्टा मारते हुए कहा,

“तभी तो आयें हैं यहाँ हम!” फौजी ने मंगल के कंधे पर हाथ रख के कहा,

तो मित्रो, बात तय हो गयी, रात को मंगल नौ बजे आएगा वहाँ! और फिर चलेंगे खेत की तरफ!

अब पंडित जी और मंगल से विदा ले कर आ गए दोनों अपने गाँव! बड़ा चैन मिला!

अब बजे रात के नौ! अमर सिंह अपना साफ़ा-सूफ़ा बांधे और फौजी अपने फौजी जूते बांधे बीड़ी पर बीड़ी खींचे जा रहे थे! एक दो और भी कन-भैय्या( व्यर्थ के श्रोता) बैठे थे वहाँ, चौकड़ी मार! सवा नौ बजे आ गया मंगल! अपने साथ अपना एक चेला लाया था, चेले के पास एक मोपेड थी, सो जल्दी पहुँच गए थे! पानी पिलाया गया दोनों को! मंगल ने अपना झोला एक खूँटी पर टांग दिया और बैठ गया!

“चंदर कहाँ है?” मंगल ने पूछा,

“घर पर है वो तो?” अमर ने बताया,

“उसको बुलाओ?” मंगल ने कहा,

“काहे को?” अमर ने पूछा,

“भई, वो चंदर का नाम लेती है, लेती है न?” मंगल ने कहा,

“हाँ” अमर ने कहा,

“तो? बुलाओ उसको?” मंगल ने कहा,

तभी फौजी ने एक कन-भैय्ये को उठाया और चंदर को बुलाने भेज दिया! थोड़ी देर में चंदर आ गया!


   
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“चलो अब” मंगल ने कहा और उठा और अपना झोला खूँटी से उतारा उसने,

“चल भई मंगल” फौजी ने भी उठते हुए कहा!

तो मित्रो! मंगल और उसका चेला और ये तीन लोग, चल पड़े खेत की तरफ! साथ में दो बड़ी टोर्च भी ले लीं थीं, उजाले के लिए!

सभी पहुँच गए खेत!

“कहाँ है वो जगह चंदर?” मंगल ने पूछा,

“आओ मेरे साथ” चंदर ने कहा,

चंदर ले गया मंगल और उसके चेले को उस जगह, तब रात के सवा दस बजे थे! फौजी और अमर सिंह पीछे ही रुक गए थे! थोडा भय तो होना स्वाभाविक ही था! दोनों ने फ़ौरन बीड़ी के बण्डल निकाले और हो गए शुरू!

“तो यहाँ से आती है वो आवाजें?” मंगल ने पूछा,

“हाँ जी” उसने जवाब दिया,

“ठीक है, अब तुम जाओ वापिस” मंगल ने कहा,

चंदर वापिस चला और फौजी और अमर के पास जाके खड़ा हो गया! तीनों की निगाह जमीं थीं मंगल पर!

मंगल ने झोला कंधे से उतारा और उसमे से एक थाली निकाली, फिर एक लोहे का दिया, दिए में तेल डाला और थाली नीचे रख दी! दिया रखा थाली में और प्रज्ज्वलित कर दिया! फिर झोले में से कुछ और निकाला, ये मुर्गे का मांस और कलेजी थी, चाक़ू से काट कर उसके टुकड़े किये और थाली में सजा दिए! चेला अब पीछे हटा! मंगल खड़ा हुआ और एक टांग ऊपर उठा ली और बोला, “सवा नौ गज के देह! झोला भर लेह!……………………!……………………….!”

सभी चुपचाप खड़े देख रहे थे!

अब मंगल ने थाली के पास एक कपडा बिछाया और उस पर बैठ गया! कुछ मंत्रोच्चार सा किया! और चाक़ू ज़मीन में गाड़ लिया! अब उसका चेला बैठ गया उसके सीधे हाथ पर!

“कौन है वहाँ? सामने आओ मेरे?” मंगल दहाड़ा!

कुछ क्षण बीते और कोई नहीं आया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“कौन है जो तंग कर रहा है यहाँ?” मंगल ने कहा,

कोई नहीं आया!

“मेरे सामने आ?” मंगल ने अपनी जांघ पर हाथ मारते हुए कहा!

कोई नहीं आया!

अब मंगल ने ज़मीन में गड़ा चाकू निकाला और हवा में लहराया! और फिर से ज़मीन में गाड़ दिया!

“कौन है? डरता है मेरे सामने आने से?” मंगल ने हंसके कहा!

कोई नहीं आया!

मंगल ने घड़ी देखी तो घड़ी में साढ़े ग्यारह होने ही वाले थे! तभी एक आवाज़ आई, ‘चंदर, मुझे बचा ले’

मंगल चौंका अब! चाकू निकाला और खड़ा हुआ! चेला भी खड़ा हो गया और मंगल के पीछे जा सटा!

“कौन है वहाँ? सामने क्यूँ नहीं आती?’ मंगल ने ज़ोर से पूछा,

“चंदर, मुझे बचा ले?” उस औरत की आवाज़ आई!

मंगल को कुछ समझ नहीं आया!

“ठीक है, मै ही बुलाता हूँ तुझे” मंगल ने कहा, और नीचे बैठा! चेला भी उसके पीछे बैठ गया! अब मंगल ने मंत्र पढने शुरू किये, ‘चौबीस हाथ का कोठा! ***** का सोटा! सब को पकड़ लाइ! नहीं तो ****** की दुहाई!’

लेकिन अब भी कुछ नहीं हुआ! मंगल ने खूब ज़ोर-आज़माइश की लेकिन कोई नहीं आया बस यही आवाज़ कि ‘चंदर, बचा ले मुझे’

मंगल का हुआ अब भेजा भिन्नौट! उसने अपने चेले से उसके झोले में रखे कुछ हड्डियों के टुकड़े मांगे, चेले ने झोला खोला, उसमे से एक छोटी सी पोटली निकाली और मंगल को थमा दी, मंगल ने पोटली खोली और उसमे से हड्डियों के टुकड़े निकाले और थाल में सजा दिए! अर्थात अब मसान की सहायता चाहिए थी मंगल को!


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब मंगल दहाड़ा, “बस, बहुत हो गया! मेरा मसान तेरे गले में फंदा डाल के ले आएगा मेरे सामने!”

तभी उस औरत और मर्द की ज़ोर ज़ोर से हंसने की आवाज़ आई! जैसे कि मंगल का उपहास उड़ाया हो!

“ठहर जाओ तुम दोनों हरामज़ादो, यहाँ नौटंकी मचा रहे हो? देखता हूँ कहाँ जाते हो तुम आज?” मंगल चिल्लाया!

मंगल ने दिया उठाया और चारों ओर घूम कर उसने मंत्र पढ़े, ये दिशा-कीलन था! वहाँ जो कोई भी था वो अब वहाँ से जा नहीं सकता था! अब मंगल नीचे बैठा और उसने चाकू लिया! अपना अंगूठा, उलटे हाथ का काटा और रक्त की कुछ बूँदें उस मांस पर चढ़ाईं! ये मसान-जागरण है!

अब मंगल ने मसानिया-मंत्र पढ़ा! और आँखें बंद कर लीं!

लेकिन तभी! तभी वहाँ कुछ प्रकट हुआ! जैसे कोई चहल-कदमी कर रहा हो! भाग रहा हो चारों ओर, इस से मंगल का ध्यान टूटा! मंगल ने आँखें खोलीं! आँखें खोलते ही मंगल ने जो देखा उसे देखते ही मंगल की घिग्घी बंध गयी! मसानिया-मंत्र ने उसकी दृष्टि खोल दी थी! मंगल कांपने लगा! और कोई ये दृश्य नहीं देख पा रहा था, बस सबकी निगाहें मंगल के ऊपर ही टिकीं थीं! मंगल ने देखा, कि सामने एक कद्दावर इंसान खड़ा है! सर पर अजीब सी टोपी सी पहने, अचकन सी पहने थे वो और उसके हाथ में एक रस्सी थी, रस्सी के दूसरे सिरे पर एक औरत के हाथ बंधे थे! औरत भी काफी ऊंची और मजबूत देह की थी, हाँ उसके बाल नहीं थे, शायद गंजा कर दिया था उसको, शायद किसी सजा के कारण! वो उस आदमी के हाथ जोडती थी और वो आदमी हँसता था! और उसको अपने हाथों से खींच कर मारता था लातों से! मंगल डर के मारे नीचे गिर पड़ा! मंगल को नीचे गिरते देख सभी को सांप सूंघ गया! मंगल भागा वहाँ से! मंगल को भागते देख अब सभी भागे वहाँ से! किसी को कुछ समझ नहीं आया! मंगल रास्ते में रुक गया, हाँफते हाँफते! सभी पीछे से भागते आ रहे थम गए वहाँ! सब के सब धौंकनी की तरह से हांफ रहे थे! जब थोड़ा संयत हुए तो सभी मंगल को घेर के खड़े हो गए! मंगल के मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे! सब पूछते तो वो हाथ के इशारे से रुकने को कह देता था! सभी धीरे धीरे चल पड़े गाँव की तरफ!

“क्या हुआ था मंगल?” फौजी ने पूछा,

मंगल ने जो देखा था बता दिया!

रोंगटे खड़े हो गए! हेप रह गए सभी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“अब क्या होगा?” अमर सिंह ने कहा!

“बहुत पुराने प्रेत लगते हैं, बहुत डरावने, जान बच गयी आज तो!” मंगल ने थूक गटकते हुए कहा!

“अब क्या करें हम?” अमर सिंह ने पूछा,

“बुलंदशहर में एक आदमी है, खिलाड़ी है वो आदमी, मै जानता हूँ उस आदमी को, वो ये काम कर देगा” मंगल ने कहा,

ये सुनकर थोड़ी उम्मीद बंधी अब अमर सिंह को! कि चलो कोई तो है जो ये काम कर पायेगा और उनको इस समस्या से निजात मिल जायेगी!

“वहाँ कब चलना है?” अमर सिंह ने पूछा,

“मै दिन में बात कर लूँगा, फिर बता दूंगा आपको” मंगल ने कहा,

“कर लेना, याद से?” अब फौजी ने कहा,

“हाँ” मंगल ने कहा,

अब मंगल के चेले ने उठाई अपनी मोपेड और पीछे बैठ कर मंगल चले पड़े वापिस!

फौजी और अमर एक दूसरे का मुंह ताकते रह गए!

“फौजी, बड़ी मुसीबत हो गयी हमारी तो” अमर ने कहा,

“अरे मंगल कह तो गया है?” फौजी ने कहा,

“भई फौजी, याद दिला देना उसको” अमर ने कहा,

“हाँ हाँ, दिला दूंगा याद” फौजी बोला,

उसके बाद अमर सिंह और चंदर वापिस अपने घर आ गए!

अगले दिन फौजी ने फ़ोन किया मंगल को, मंगल ने बताया कि उसने उस आदमी से बात कर ली है, वो आदमी आ जाएगा आज ही, मंगल ने उसे सबकुछ जैसे का तैसा बता दिया था! चैन मिला फौजी को! जब अमर आये वहाँ तो फौजी ने बता दिया के उस आदमी से मंगल की बात हो गयी है, अमर सिंह को भी प्रसन्नता हुई ये खबर सुनकर!


   
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श्रीशः उपदंडक
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और फिर दिन में चार बजे मंगल आ गया उस आदमी को लेकर! उस आदमी का नाम था पूरन! माना हुआ खिलाड़ी था! काफी काम किये थे उसने ऐसे ही! अब पूरन ने चंदर को बुलाया, उसके मुंह से सारी बात सुनी और पूछा,” कभी पहले कोई आभास हुआ ऐसा?”

“नहीं जी, आज तक नहीं” चंदर ने बताया,

“ह्म्म्म!” उसने लम्बी सांस छोड़ते हुए कहा!

“कभी कोई और बात हुई हो?” उसने पूछा,

“नहीं जी” उसने कहा,

“ठीक है, आज रात को देखते हैं” पूरन ने कहा,

तब पूरन ने कुछ ज़रूरी सामान लिखवा दिया उसने मंगवाने को, चंदर ने सामान लिखा और चला गया!

“वैसे ये क्या हो सकता है?” फौजी ने चंदर से पूछा,

“ये कोई पुराना मामला लगता है मुझे” उसने कहा,

“अंग्रेजी समय का?” फौजी ने पूछा,

“हो भी सकता है” पूरन ने कहा,

“ओह!” अमर सिंह के मुंह से निकला,

“खैर, आज देखते हैं कहानी क्या है? खुलासा हो जाएगा” पूरन ने जेब से सिगरेट की डिब्बी निकालते हुए कहा!

 

तो अब हुई रात! पूरन ने सामान किया तैयार! अपने साथ मंगल को लिया और उसके चेले को भी! साथ में चंदर, अमर सिंह और फौजी भी थे! डर के मारे कलेजा भारी हुआ पड़ा था सभी का, केवल पूरन के अलावा! रात के बजे साढ़े दस! पूरन ने दो थाल लगवाए वहाँ, नीम के तेल के दिए प्रज्ज्वलित किये, बकरे का मांस थाली में परोसा गया और दो गिलासों में शराब डाली गयी! और पूरन बैठ गया कपडा बिछा के! अब इस बार फौजी, अमर और चंदर पीछे ही खड़े रहे, कुछ अधिक दूरी बना कर!

“मंगल, ला बाबा का भोग ला!” पूरन ने कहा,


   
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