वर्ष २०१० गोरखपुर क...
 
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वर्ष २०१० गोरखपुर की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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चौंक गया विपुल!

ये कैसा प्रस्ताव?

“ये भी सम्भव नहीं” बोला विपुल, नेत्र हटाते हुए,

“तो क्या सम्भव है?” पूछा इथि ने!

“आप लौट जाओ अपने संसार में इथि और ये सम्भव है!” बोला विपुल!

बोलकर चुप हुआ!

फिर से नेत्र मिलाये!

अपने हाथों से इथि के गालों पर ढलकते हुए आंसू हटाये!

“मैं जा रहा हूँ इथि, अब कभी नहीं आउंगा” बोला विपुल,

और..

 

इस से पहले कि वो कुछ कहती, लोप हो गया विपुल! कभी न वापसी आने के लिए! वो विवश हो कर आया था! यही समझाने कि उसका संसार अलग है और उसका अलग! प्रेम बावरी न समझी ये कुछ भी! धम्म से नीचे गिरी, जैसे शरीर से प्राण वायु खींच ली गयी हो!

बहुत बुरी बीती थी इथि पर!

कहते हैं, ऐसा कई दिनों तक रहा! फिर उसमे विक्षिप्तता आती चली गयी! वो नित्य तालाब तक जाती और मध्यान्ह उपरान्त घर वापिस आ जाती, थोडा बहुत खाती और फिर से उसी के ख्यालों में खो जाती थी!

माँ बाप बहुत समझाते उसे!

सखियाँ बहुत समझाती उसे!

रिश्तेदार बहुत समझाते उसे!

लेकिन उसने न समझना था और न समझी ही वो!

माँ बाप उस से विवाह के लिए कहते तो उठ जाती वहाँ से, किसी से बात न करती, बहुत कम बोला करती!


   
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श्रीशः उपदंडक
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कुल मिलाकर प्रेम के सभी पड़ाव पार और परीक्षाएं उत्तीर्ण कर लीं उसने!

कुछ महीने बीत गए!

एक रोज,

वो मध्यान्ह समय वृक्ष के नीचे बैठी थी, वहीँ उसी और निगाह टिकाये जहां से वे आया करते थे, विपुल आया करता था!

ये उसके नित्य का नियम था!

वो बैठी थी, शांत, वहीँ नज़रें गढ़ाए हुए!

तभी वहाँ पर एक व्यवसायी आया, नाम था उदय, उदय बांका जवान था, सुंदर, चपल और बुद्धिमान! एक ऊंचे घराने से सम्बन्ध रखता था, तालाब पर अपने साथियों सहित आया था, उसके साथ एक उसका मित्र था बलभद्र, उदय ने एकांत में बैठी एक अप्सरा सी स्त्री को देखा, ये इथि थी!

वो वहाँ तक गया,

जंगल में भला एक सुन्दर जवान औरत? वो भी अकेले?

क्या माजरा है?

उसने बलभद्र को भेजा पता करने!

बलभद्र मित्रतावश वहाँ गया,

उसने इथि को देखा तो उसको भी आश्चर्य हुआ!

वो और समीप गया!

उसके सम्मुख आया,

मार्ग अवरुद्ध हुआ तो इथि ने उसको देखा,

“आप कौन हैं?” बलभद्र ने पूछा,

कोई उत्तर नहीं, बस थोडा खिसक कर वहीँ उसी मार्ग पर फिर से नज़रें गढ़ा दीं,

बलभद्र को प्रश्न का उत्तर नहीं मिला तो उसने वहाँ देखा जहां इथि देख रही थी!

“आपको किसी की प्रतीक्षा है?” बलभद्र ने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब भी कोई उत्तर नहीं!

“कोई है आपके संग यहाँ?” बलभद्र ने पूछा,

कोई उत्तर नहीं!

बड़ा अजीब सा लगा बलभद्र को!

उसने आसपास देखा,

कोई नहीं था!

दूर खड़ा उदय सब देख रहा था!

अब बलभद्र वहाँ से हटा!

और चल पड़ा उदय के पास!

सारी बात बतायी,

उदय को भी आश्चर्य हुआ!

अब उदय ने जाने की सोची!

उदय वहाँ गया!

रुका और बोला, “नमस्कार!”

इथि ने उसको देखा और फिर से नज़रें गढ़ा दीं वहीँ मार्ग पर! जहां कोई आया करता था लेकिन अब मार्ग भटक गया है!

कोई उत्तर नहीं मिला उदय को!

“कौन हैं आप?” उदय ने पूछा,

कोई उत्तर नहीं!

बड़ा अजीब सा लगा उदय को!

उदय बैठ गया!

इथि थोडा दूर खिसक गयी!

और नज़रें गढ़ा दीं!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“कोई है क्या आपके संग?” उदय ने पूछा,

कोई उत्तर नहीं!

“किसी की राह देख रही हैं?” उसने पूछा,

इथि ने उसको देखा और हाँ में गर्दन हिला दी!

चलो कुछ तो पता चला!

“किसकी?” उसने पूछा,

चुप!

“किसकी?” उदय ने पूछा,

कोई उत्तर नहीं!

“क्या मैं आपको कुछ मदद कर सकता हूँ?” उदय ने पूछा,

इथि ने नज़रें फेरीं और उदय को गौर से देखा!

उदय के अंदर उतर गयीं उसकी आँखें!

उसका रूप!

उसका सौंदर्य!

वो मोहित हो गया!

 

उदय मोहित हो गया उसके सौंदर्य पर!

उदय उठा और वहाँ से चला, परन्तु बार बार उसको नज़रों में ही रखता! दिल दे बैठा! यही कहा जाएगा!

उधर,

मध्यान्ह समाप्त हुआ,

कोई नहीं आया,

रोजाना की तरह!


   
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श्रीशः उपदंडक
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उठी इथि!

हताश!

परन्तु मन में प्रतीक्षा लिए!

उसकी,

जो कहा कर गया कि,

कभी वापिस नहीं आयेगा अब!

अब तक नहीं आया था!

उधर,

बलभद्र ने उदय की पीड़ा समझ ली,

उदय ने उस से इथि का घर ढूंढने के लिए कहा,

और बलभद्र इथि के पीछे हुआ!

भटकती सी, इथि चली गाँव की ओर!

कौन आ रहा है, कौन जा रहा है,

कुछ पता नहीं!

किसने देखा कौन रुका!

कुछ पता नहीं!

कौन पीछे आ रहा है,

कुछ पता नहीं!

बेसुध और बेखुद!

गाँव चली गयी इथि, और फिर अपने घर!

अब पीछे मुड़ा बलभद्र!

वापिस गया!

और पहुंचा उदय के पास!


   
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श्रीशः उपदंडक
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उदय का सीना गरम हो चला था!

प्रेम ने पाँव पसार लिए थे!

अगन भड़कने लगी थी!

बलभद्र को देखते ही खड़ा हुआ और उस तक पहुंचा!

बलभद्र ने बताया उसको इथि का पता!

अब!

अब जाना होगा पहले अपने नगर!

वहाँ से माता-पिता की आज्ञा लेनी हगी!

उनको बताना होगा कि कभी ब्याह न रचाने वाले उनके पुत्र ने ब्याह करने का निर्णय ले लिया है!

वे उसी शाम अपने नगर की ओर चल पड़े!

दो दिन बाद पहुंचे!

दो दिन में ही आधा हो लिया था उदय!

घर पहुंचा तो बलभद्र ने उसका निर्णय उसके माता-पिता को बताया!

वे खुश!

कौन है वो कन्या?

कहाँ रहती है?

कहाँ है उसका गाँव?

सब बता दिया बलभद्र ने!

और फिर अगले दिन!

घोड़ागाड़ी जोड़ी गयीं!

उदय और बलभद्र और उदय के माता-पिता चल पड़े इथि के घर! विवाह के लिए कन्या का हाथ मांगे! धन-धान्य से भरपूर हो कर चले!

और फिर पहुंचे उस गाँव!


   
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श्रीशः उपदंडक
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देखने वाले देखते रह गए!

जो जहां था वहीँ ठहर गया!

जिसने देखा वो वहीँ रुक गया!

और फिर वे घोड़ागाड़ियां रुकीं इथि के घर के आगे!

सभी देखने लगे!

आसपास वाले!

दरवाज़ा खटखटाया!

इथि की माँ ने दरवाज़ा खोला!

ये कौन हैं?

कहीं भटक गए हैं!

हम ठहरे निर्धन किसान!

और ये व्यवसायी लोग!

अब उदय की माता ने हाथ जोड़कर नमस्कार किया!

और आने का प्रयोजन बताया!

इथि के पिता जी भी दौड़कर आ गए वहाँ!

बहुत खुश!

प्रयोजन जान सभी खुश!

लेकिन एक चिंता भी!

इथि को कौन समझायेगा?

क्या वो समझेगी?

इतना अच्छा वर!

कोई पुण्य फलित हुआ है लगता है!

धनी और समृद्ध ससुराल!


   
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श्रीशः उपदंडक
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कौन कन्या नहीं चाहेगी?

और ये तो वर स्वयं आया है!

भाग खुले हैं इथि के!

और फिर अंदर भागी माँ बुलाने इथि को!

इथि लेटी पड़ी थी!

माँ ने उठाया,

नहीं उठी इथि!

लेटी रही!

“इथि??” माँ ने पुकारा!

कोई उत्तर नहीं!

 

नहीं जागी इथि!

माँ ने कई बार पुकारा!

आखिर में उसका हाथ खींच कर उठाया,

उठ गयी,

“इथि” माँ ने कहा,

इथि ने माँ को देखा!

“एक वर आया है! धनाढ्य परिवार है! परदेस में हैं! तू बहुत खुश रहेगी! मना मत करना इथि!” माँ ने खुश हो कर कहा,

इथि चुप!

“कुछ ही देर में वे मिलने आ जायेंगे तुझसे, तैयार हो जा!” माँ ने कहा,

कुछ न बोली इथि!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“देख इथि, ऐसा वर कभी नहीं मिलने वाला, तरसते हैं लोग अपनी कन्याएं ब्याहने के लिए, ऐसे वर नहीं मिलते फिर भी, इकलौता लड़का है, तू राज करेगी, रानी बनके रहेगी!” मैंने कहा,

माँ ये कहते हुए उठी और दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया!

और फिर कुछ देर बाद!

उदय की माता जी और इथि की माता जी आयीं दरवाज़े पर!

दस्तक दी और आवाज़ भी!

एक बार,

दो बार,

तीन बार!

अनेक बार!

लेकिन दरवाज़ा नहीं खुला!

नहीं खोला इथि ने!

माँ ने खूब प्यार से कहा, मिन्नतें कीं, लेकिन कुछ नहीं!

तब हार कर वे वापस चौक में बैठ गयीं!

माता पिता जी बेहद परेशान!

अब पिता जी ने सब कुछ बताना आरम्भ किया उदय और उसके परिवार को! आरम्भ से लेके उस दिन तक!

सभी ने सुना!

उदय ने भी सुना!

लेकिन उदय नहीं माना!

उसे इथि किसी भी हाल में स्वीकार थी!

वो प्रेम मद में अँधा हो चुका था!


   
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श्रीशः उपदंडक
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क्या खेल खेला था इथि के भाग्य ने इथि के साथ!

“मैं दुबारा आ जाऊँगा!” उदय ने खड़े होते हुए कहा,

“अवश्य बेटा!” इथि की माँ ने कहा!

वे चले गए!

सारा साजो-सामान वहीँ रख गए!

आभूषण! महंगे वस्त्र! सज्जा की वस्तुएं! आदि आदि!

और अब हुआ मध्यान्ह!

दरवाज़ा खुला और धड़धड़ाती भगा पड़ी इथि!

घर से बाहर!

तेज भागती! हांफती पहुँच गयी उसी वृक्ष के नीचे!

रोजाना की तरह!

प्रतीक्षा में!

आंसू बहाते!

राह तकते!

रोये!

सुबके!

मिट्टी लगे हाथों से अपने आंसू पोंछे!

बावरी इथि!

और फिर रोजाना की तरह बीत जाता मध्यान्ह!

और अब तो ग्रीष्म ऋतु थी!

उचक उचक कर देखती!

और फिर भारी मन से घर चली आती इथि!

रोजाना की तरह!

लेकिन आने वाला नहीं आता था!


   
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श्रीशः उपदंडक
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वो कह के गया था!

वापिस न आने के लिए!

नहीं आया कभी!

लेकिन!

इथि अभी भी, ह्रदय के किसी कोने में ये माने बैठी थी कि,

एक न एक दिन,

आएगा वो!

अवश्य ही!

विवश होकर!

हाँ!

विवश होकर!

 

फिर!

कोई न आता!

वापिस घर आ जाती इथि!

हमेशा की तरह!

अब घरवालों का भी सब्र का बाँध टूटने वाला था, इथि समझाए नहीं समझ रही थी! कितना समझाया, कितना बताया, कोई नतीजा नहीं!

अब!

अब उस पर ज़बरदस्ती की जायेगी!

उसे कहीं नहीं जाने दिया जाएगा!

उसको विवश कर दिया जाएगा ब्याह के लिए!

वर हाथ से निकल गया तो डूब मरने वाली हालत हो जायेगी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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ऐसा वर दुबारा कभी फिर नसीब हो न हो!

नहीं!

अब और नहीं!

बस!

बहुत हुआ ये प्रकरण!

अब जो हो सो हो!

गाँव भर में उपहास उड़ाया जाता है!

बोलने वालों के होंठ नहीं सिये जाते!

बोलने वाले बोलते हैं!

यही सोचा अपबा उसके माता पिता ने!

बोझ बन चुकी थी इथि!

गुस्से में उसके पिता जी गये इथि के पास!

इथि बिस्तर में लेटी हुई थी!

पिता जी गुस्से में थे उसके!

“इथि?” पिता जी चिल्लाये!

इथि ने कोई ध्यान नहीं दिया!

इसने आग में घी का काम किया!

“इथि?” पिता जी ने फिर गुस्से से बोला!

इथि ने सुना और पीछे देखा!

“उठ चल” पिता जी ने कहा,

उठ गयी वो!


   
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श्रीशः उपदंडक
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इथि, सुन, अब बहुत हुआ, हमसे सहन नहीं होता अब, बर्दाश्त की हद हो गयी, अब मेरा फैंसला सुन, मैं जाकर उदय के घर, बात पक्की कर देता हूँ, एक शुभ बेला में तेरा विवाह संपन्न होगा, तू आजके बाद कहीं नहीं निकलेगी घर से, सुना तूने? कहीं नहीं?” पिता जी गुस्से में कह गए!

इथि ने रोज की तरह इधर से सुना और उधर से निकाल दिया!

और वही हुआ!

जो कहा था इथि के पिता जी ने!

वे घर गए उदय के, एक पंडित जी के साथ और दिन पक्का कर, रसम-रीत कुछ नहीं, केवल विवाह!

विवाह संपन्न हो किसी भी तरह!

ये बोझ अब सर से उतरे!

ऐसा सोना किस काम का जो कान काटे?

उदय यही तो चाहता था!

विवाह के बाद वो सब सम्भाल लेगा!

वो ये जुआ खेलने को तैयार था!

बस,

किसी तरह इथि मिल जाए उसे!

मुझे ये प्रेम से अधिक काम लगता है आज भी!

आकर बता दिया इथि को!

कि आगामी माह की एकादशी को बरात आयेगी और उस दिन विवाह संपन्न होगा!

इथि रोई!

लेकिन कहा किसी से कुछ भी नहीं!

गाँव में खबर करा दी गयी!

न्योते भेज दिए गये!

अब केवल विवाह!


   
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श्रीशः उपदंडक
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मित्रगण!

कई मध्यान्ह गए!

कई आये!

अब इथि के मध्यान्ह मात्र उस कक्ष में गुजरते!

खिड़की से बाहर झांकते हुए!

कभी कभार तो सूर्य पर टिकी दृष्टि चाँद पर समाप्त होती!

कैसा अथाह प्रेम किया इस लड़की ने!

ओह!

मैं एक औघड़!

मेरा भी ह्रदय विचलित हो उठा उसकी प्रेम-व्यथा सुन कर!

कैसा विशाल प्रेम!

कैसा प्रघाढ़ प्रेम!

इथि!

कसमसाती!

रोती!

तड़पती!

लेकिन वो नहीं आया!

वो कह के गया था!

अब नहीं आउंगा!

उसने रिश्ता भिजवाया!

उदय को भिजवाया!

ताकि वो राज करे!

लेकिन हे गांधर्व कुमार!


   
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श्रीशः उपदंडक
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आप हार गए!

हार गए आप!

सच कहता हूँ!

हार गए आप!

और फिर मित्रगण!

ब्याह के दिन से एक दिन पहले……………..

 

और फिर एक दिन पहले मित्रगण!

सुबह सुबह की बात है, कुछ सखियाँ आयी थीं घर पर, इथि से मिलने! पल्ली भी आयी थी! उस दिन इथि में सभी ने एक बदलाव देखा! वो सामान्य सी हो गयी! जैसे हालात से समझौता कर लिया हो उसने! अब वो मुस्कुरा के बात कर रही थी! ये देख उसके माँ बाप को तो जैसे कोई खोया हुआ खजाना मिल गया!

“तू ठीक है बेटी?” माँ ने पूछा,

“हाँ, बिलकुल ठीक!” इथि ने कहा,

पल्ली सबसे अधिक खुश!

चिपक के खड़ी थी इथि से!

पिता जी आये, वे भी खुश!

“इथि, तू ठीक है बेटी?” उन्होंने पूछा,

“हाँ पिता जी!”

सुखों की बारिश हो गयी!

बुरा अध्याय समाप्त हो गया!

ऐसा लगा उन्हें!

और तभी!

तभी इथि ने पूछा अपने पिता से!


   
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