वर्ष २०१० गुना मध्य...
 
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वर्ष २०१० गुना मध्य प्रदेश की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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मै कुछ नहीं बोला तो क़य्यूम भाई की निगाह शर्मा जी की निगाह से टकराई, तो शर्मा जी ने मुझसे पूछा, “क्या लेंगे गुरु जी?”

“कुछ भी ले लीजिये” मैंने कहा,

“बियर ले आऊं?” क़य्यूम भाई ने पूछा,

“नहीं, बियर नहीं, आप मदिरा ही ले आइये” मैंने कहा,

क़य्यूम भाई मुड़े और चल दिए ठेके की तरफ!

“अन्दर बैठेंगे या फिर यहीं गाड़ी में?” शर्मा जी ने मुझ से पूछा,

“अन्दर तो भीड़-भाड़ होगी, यहीं गाड़ी में ही बैठ लेंगे” मैंने कहा,

थोड़ी देर बाद ही क़य्यूम भाई आये वहाँ, हाथ में मदिरा की दो बोतल लिए और साथ में ज़रूरी सामान भी, शर्मा जी ने गाड़ी का पिछला दरवाज़ा खोला और क़य्यूम भाई ने सारा सामान वहीँ रख दिया, फिर हमारी तरफ मुड़े,

“आ रहा है लड़का, मैंने मुर्गा कह दिया है, लाता ही होगा, आइये, आप शुरू कीजिये” क़य्यूम भाई ने कहा,

मै और शर्मा जी अन्दर बैठे, एक पन्नी में से कुछ कुटी हुई बरफ़ निकाली और शर्मा जी ने दो गिलास बना लिए, क़य्यूम भाई नहीं पीते थे, ये बात उन्होंने रास्ते में ही बता दी थी, वो बियर के शौक़ीन थे सो अपने लिए बियर ले आये थे, थोड़ी देर में ही दौर-ए-जाम शुरू हो गया, एक मंझोले कद का लड़का मुर्गा ले आया और एक बड़ी सी तश्तरी में डाल वहीँ रख दिया, आखिरी चीज़ भी पूरी हो गयी!

ये स्थान था ग्वालियर से गुना के बीच का एक, हमको ग्वालियर से लिया था क़य्यूम भाई ने, हम उन दिनों ललितपुर से आये थे ग्वालियर, ललितपुर में एक विवाह था, उसी कारण से आना हुआ था, और क़य्यूम भाई गुना के पास के ही रहने वाले थे, उनका अच्छा-ख़ासा कारोबार था, सेना आदि के मांस सप्लाई करने का काम है उनका, तीन भाई हैं, तीनों इसी काम में लगे हुए हैं, क़य्यूम भी पढ़े लिखे और रसूखदार हैं और बेहद सज्जन भी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“और कुछ चाहिए तो बता दीजिये, अभी बहुत वक़्त है” क़य्यूम भाई ने कहा,

“अरे इतना ही बहुत है!” शर्मा जी ने कहा,

“इतने से क्या होगा, दिन से चले हैं, अब ट्रेन में क्या मिलता है खाने को! खा-पी लीजिये रज के!” क़य्यूम भाई ने कहा,

इतना कह, अपनी बियर का गिलास ख़तम कर फिर से चल दिए वहीँ उसी दूकान की तरफ!

बात तो सही थी, जहां हमको जाना था, वहाँ जाते जाते कम से कम हमको अभी ३ घंटे और लग सकते थे, अब वहाँ जाकर फिर किसी को खाने के लिए परेशान करना वो भी गाँव-देहात में, अच्छा नहीं था, सो निर्णय हो गया कि यहीं से खा के चलेंगे खाना!

गाड़ी के आसपास कुछ कुत्ते आ बैठे थे, कुछ बोटियाँ हमने उनको भी सौंप दीं, देनी पड़ीं, आखिर ये इलाका तो उन्ही का था! उनको उनका कर चुकाना तो बनता ही था! वे पूंछ हिला हिला कर अपना कर वसूल कर रहे थे! जब को बेजुबान आपका दिया हुआ खाना खाता है और उसको निगलता है तो बेहद सुकून मिलता है! और फिर ये कुत्ता तो प्रहरी है! मनुष्य समाज के बेहद करीब! खैर,

क़य्यूम भाई आये और साथ में फिर से पन्नी में बरफ़ ले आये, बरफ़ कुटवा के ही लाये थे, ताकि उसके डेले बन जाएँ और आराम से गिलास में समां सकें! अन्दर आ कर बैठे और जेब से सिगरेट का एक पैकेट निकाल कर दे दिया शर्मा जी को, शर्मा जी ने एक सिगरेट निकाली और सुलगा ली, फिर दो गिलासों में मदिरा परोस तैयार कर दिए! थोड़ी ही देर में वो लड़का आया और फिर से खाने का वो सामान वहीँ रख गया! हम आराम आराम से थकावट मिटाते रहे!

मित्रगण, हम यहाँ एक विशेष कारण से आये थे, क़य्यूम भाई के एक मित्र हैं, हरि, हरि साहब ने गुना में कुछ भूमि खरीदी थी, भूमि कुछ तो खेती-बाड़ी आदि के लिए और कुछ बाग़ आदि लगाने के लिए ली गयी थी, दो वर्ष का समय हो चुका था, भूमि तैयार कर ली गयी थी, परन्तु उस भूमि पर काम कर रहे कुछ मजदूरों ने वहां कुछ संदेहास्पद घटनाएं देखीं थीं जिनका कोई स्पष्टीकरण नहीं हुआ था, स्वयं अब हरि ने भी ऐसा कुछ देखा था, जिसकी वजह से उसका ज़िक्र उन्होंने क़य्यूम भाई से और क़य्यूम भाई ने मेरे जानकार से किया, सुनकर ही ये तो भान हो गया था कि वहाँ उस स्थान पर कुछ तो विचित्र है, कुछ विचित्र, जिसके विषय में जानने की उत्सुकता ने अब सर उठा लिया था, कुछ चिंतन-मनन करने के बाद मैंने यहाँ आने का निर्णय लिया और अब हम उस स्थान से महज़ थोड़ी ही दूरी पर थे!

 


   
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श्रीशः उपदंडक
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जिस समय हम वहाँ पहुंचे, रात के पौने दस का समय था, हरि साहब के भी फ़ोन आ गए थे, उनसे बात भी हो गयी थी, तो हम सीधे हरि साहब के पास ही गए, उनके घर पर ही, हरि साहब ने शालीनता से स्वागत किया हमारा, खूब बातचीत हुई और फिर रात्रि में निंद्रा हेतु हमने उनसे विदा ली, एक बड़े से कमरे में इंतजाम किया गया था हमारे सोने का! ये घर कोई पुरानी हवेली सा लगता था! खाना खा ही चुके थे, नशा सर पर हावी था ही, थकावट सो अलग, सो बिस्तर में गिरते ही निंद्रा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया!

जैसे लेटे थे उसी मुद्रा में सो गए!

सुबह जब आँख खुली तो सुबह के आठ बज चुके थे! हाँ, नींद खुल कर आई थी सो थकावट जा चुकी थी! दो चार ज़बरदस्त अंगडाइयां लेकर बदन के हिस्से आपस में जोड़े और खड़े हो गए!

फिर नित्य-कर्मों से फारिग होने के पश्चात नहाने के लिए मै सबसे पहले गया, स्नान किया, ताजगी आ गयी! फिर शर्मा जी गए और कुछ देर में वो भी वापिस आ गए नहा कर!

“यहाँ मौसम बढ़िया है” वे बोले,

“हाँ, इन दिनों में अक्सर ऐसा ही होता है यहाँ मौसम, दिन चढ़े गर्मी होती है और दिन ढले ठण्ड!” मैंने कहा,

“हाँ, रात को भी मौसम बढ़िया था, सफ़र आराम से कट गया इसीलिए!” वे बोले,

तभी कमरे में हरि साहब ने प्रवेश किया, उनके साथ एक छोटी सी लड़की भी थी, ये उनकी पोती थी शायद, नमस्कार हुई और हम तीनों ही वहाँ बैठ गए, लड़की भी नमस्ते करके बाहर के लिए दौड़ पड़ी! हँसते हुए!

“पोती है मेरी!” वे बोले,

“अच्छा!” शर्मा जी ने कहा,

तभी चाय आ गयी, ये उनका नौकर था शायद जो चाय लाया था, उसने ट्रे हमारी तरफ बढ़ाई, उसमे कुछ मीठा, नमकीन आदि रखा था, मैंने थोडा नमकीन उठाया और हमने अपने अपने कप उठा लिए और चाय पीनी शुरू की, नौकर चला गया तभी,

“और कोई परेशानी तो नहीं हुई आपको?” हरि साहब ने पूछा,

“नहीं नहीं! क़य्यूम भाई के साथ आराम से आये हम यहाँ!” मैंने कहा,

“कुछ बताया क़य्यूम भाई ने आपको?” उन्होंने चुस्की लेते हुए पूछा,

“हाँ बताया था” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“गुरु जी, बात उस से भी आगे है, मैंने क़य्यूम भाई को पूरी बात नहीं बतायी, मैंने सोचा की जब आप यहाँ आयेंगे तो आपको स्वयं ही बताऊंगा” वे बोले,

“बताइये?” मैंने उत्सुकता से पूछा,

“गुरु जी, जिस दिन से मैंने वो ज़मीन खरीदी है, उसी दिन से आप लगा लीजिये कि दिन खराब हो चले हैं” वे अपना कप ट्रे में रखते हुए बोले,

“कैसे?” मैंने पूछा,

“जी मेरे तीन लड़के हैं और एक लड़की, दो लड़के ब्याह दिए हैं और लड़की भी, अब केवल सबसे छोटा लड़का ही रहता है, नाम है उसका नकुल, पढाई ख़त्म कर चुका है और अब वकालत की प्रैक्टिस कर रहा है ग्वालियर में, दोनों बेटे भी अपने अपने काम में मशगूल हैं, एक मुंबई रहता है अपने परिवार के साथ, दूसरा आगरे में है अपने परिवार के साथ, उसकी भी नौकरी है वहाँ, अध्यापक है, आजकल यहीं आया हुआ है अपने परिवार के साथ, लड़की जो मैंने ब्याही है वो अहमदाबाद में है, २ वर्ष हुए हैं ब्याह हुए” वे बोले,

“अच्छा” मैंने कहा,

उन्होंने अपना चश्मा उतारा और रुमाल से साफ़ करते हुए बोले, ” लड़की ससुराल में खुश नहीं है, बड़े लड़के का बड़ा लड़का, मेरा पोता बीमार हो कर ३ वर्ष का गुजर गया, अब कोई संतान नहीं है उसके, जो लड़का यहाँ आया हुआ है..” वे बोले,

मैंने तभी बात काटी और पूछा, “नाम क्या है जो आया हुआ है?”

“दिलीप” वे बोले,

“अच्छा” मैंने कहा,

“मै कह रहा था कि जो लड़का यहाँ आया हुआ है, उसके २ लडकियां ही हैं, लड़का कोई नहीं, उसकी पत्नी के गर्भ में कोई बीमारी बताई है डॉक्टर्स ने और अब संतान के लिए एक तरह से मना ही कर दिया है” वे बोले,

“अच्छा” मैंने कहा,

“एक बात और, मेरा अपना व्यवसाय है यहाँ, व्यवसाय लोहे का है, वो भी एक तरह से बंद ही पड़ा है दो साल से, कोई उछाल नहीं है” वे बोले,

“अच्छा” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“अब वही बात मै कह रहा था, कि जब से मैंने यहाँ वो ज़मीन ली है तबसे सबकुछ जैसे गड्ढे में चला गया है” वे बोले,

“अच्छा, और उस से पहले?” मैंने पूछा,

“सब ठीक ठाक था! कभी मायूसी नहीं थी घर-परिवार में!” वे बोले,

 “अच्छा” मैंने कहा,

“हाँ जी, इस ज़मीन में ऐसा कुछ न कुछ ज़रूर है जिसकी वजह से ऐसा हुआ है हमारे साथ” वे बोले,

“क़य्यूम भाई ने बताया था कि वहाँ कुछ गड़बड़ तो है, अनेक मजदूरों ने भी देखा है वहाँ ऐसा कुछ, मुझे बताएं कि क्या देखा है ऐसा?” मैंने पूछा,

“हाँ जी, देखा है, वहाँ ४ मजदूर अपने परिवारों के साथ रहते हैं, उन्होंने वहाँ देखा है और महसूस भी किया है” वे बोले,

“क्या देखा है उन्होंने?” मैंने पूछा और मेरी भी उत्सुकता बढ़ी अब!

“वहां एक मजदूर है, शंकर, उसने बताया था मुझे एक बार कि उसने और उसकी पत्नी ने खेत में दो औरतों को देखा है घूमते हुए, हालांकि उन औरतों ने कभी कुछ कहा नहीं उनको” वे बोले,

“दो औरतें?” मैंने पूछा,

“हाँ जी” वे बोले,

“और कुछ?” मैंने पूछा,

“जहां पानी लगाया जाता है, उसके दो घंटे के बाद वो जगह सूख जाती है अपने आप! जैसे वहाँ कभी पानी लगाया ही नहीं गया हो!” वे बोले,

बड़ी अजीब सी बात बताई थी उन्होंने!

“ये एक ख़ास स्थान पर है या हर जगह?” मैंने पूछा,

“खेतों में ऐसे कई स्थान हैं गुरु जी, जहां ऐसा हो रहा है” वे बोले,

सचमुच में बात हैरत की थी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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“और कुछ?” मैंने पूछा,

“गुरु जी, शुरू शुरू में हमने एक पनिया-ओझा बुलवाया था, उसने पानी का पता तो बता दिया लेकिन ये भी कहा कि यहाँ बहुत कुछ गड़बड़ है और ये ज़मीन फलेगी नहीं हमको, उसका कहना सच हुआ, ऐसा ही हुआ है अभी तक, वहाँ से घाटे के आलावा कुछ नहीं मिला आज तक!” वे बोले,

“तो आपने किसी को बुलवाया नहीं?” मैंने पूछा, मेरे पूछने का मंतव्य वे समझ गए,

“बुलाया था, तीन लोग बुलाये थे, दो ने कहा कि उनके बस की बात नहीं है, हाँ एक ने यहाँ पर पोरे ग्यारह दिन पूजा की थी, लेकिन उसके बाद भी जस का तस! कोई फर्क नहीं पड़ा!” वे बोले,

स्थिति बड़ी ही गंभीर थी!

“आपने अनिल जी से इस बाबत पूछा?” मैंने सवाल किया,

“हाँ, उन्होंने कहा कि ऐसा तो उनके यहाँ न जाने कब से हो रहा है, किसी को चोट नहीं पहुंची तो कभी ध्यान नहीं दिया” वे बोले,

“मतलब उन्होंने अपने घाटे से बचने के लिए और आपने कच्चे लालच में आ कर ये ज़मीन खरीद ली!” मैंने कहा,

“हाँ जी, इसमें कोई शक नहीं, कच्चा लालच ही था मुझमे!” वे हलके से हँसते हुए ये वाक्य कह गए!

“कोई बात नहीं, मई भी एक बार देख लूँ कि आखिर क्या चल रहा है वहाँ?” मैंने कहा,

“इसीलिए मैंने आपको यहाँ बुलवाया है गुरु जी, ललितपुर वाले हरेन्द्र जी से भी मैंने इसी पर बात की थी” वे बोले,

“अच्छा, हाँ, मुझे बताया था उन्होंने” मैंने कहा,

तभी क़य्यूम भाई अन्दर आये, नमस्कार आदि हुई और वो बैठ गए,

“कुछ पता चला गुरु जी?” क़य्यूम भाई ने पूछा,

“अभी तो मैंने वहाँ की कुछ बातें सुनी हैं, आज चलेंगे वहाँ और मै स्वयं देखूंगा कि वहाँ आखिर में चल क्या रहा है?” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“ये सही रहेगा गुरु जी!” क़य्यूम भाई ने कहा,

“वैसे क्या हो सकता है? कोई कह रहा था कि यहाँ कोई शाप वगैरह है!” वे बोले,

“शाप! देखते हैं!” मैंने कहा,

“आप खाना आदि खा लीजिये, फिर चलते हैं वहाँ” हरि साहब ने कहा,

“हाँ, ठीक है” मैंने कहा,

“और क़य्यूम भाई आपका घर कहाँ है यहाँ?” शर्मा जी ने पूछा,

“इनके साथ वाला ही है शर्मा जी! आइये गरीबखाने पर!” वे बोले,

“ज़रूर, आज शाम को आते हैं आपके पास!” वे बोले,

“ज़रूर!” क़य्यूम भाई ने मुस्कुरा के कहा!

तभी हरि साहब उठे और बाहर चले गए!

“मौसम बढ़िया है यहाँ क़य्यूम भाई!” शर्मा जी ने कहा,

“खुला इलाका है, पथरीला भी है सुबह शाम ठंडक बनी रहती है, हाँ दिन में पारा चढ़ने लगता है!” वे बोले,

“और सुनाइये क़य्यूम भाई, घर में और कौन कौन है?” शर्मा जी ने पूछा,

“दो लड़के हैं जी, और माता-पिता जी” वे बोले,

“अच्छा! और दूसरे भाई?” उन्होंने पूछा,

“जी एक ग्वालियर में है और एक टेकनपुर में” वे बोले,

‘अच्छा!” वे बोले,

“और काम-धाम बढ़िया है?” उन्होंने पूछा,

“हाँ जी, ठीक है, निकल जाती है दाल-रोटी!” हंस के बोले क़य्यूम भाई!

थोड़ी देर शान्ति छाई, इतने में ही हरि साहब अन्दर आ गए, बैठ गए!

“नाश्ता तैयार है, लगवा दूँ?” उन्होंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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हाँ, लगवा लीजिये” मैंने कहा,

वे उठ कर बाहर गए और थोड़ी देर बाद उनका नौकर नाश्ता लेकर आ गया, हम नाश्ता करने लगे!

“नाश्ते के बाद चलते हैं खेतों पर” मैंने कहा,

“जी, चलते हैं” हरि साहब बोले,

“मै आता हूँ फिर, गाड़ी ले आऊं” क़य्यूम भाई ने कहा,

“ठीक है, आ जाओ” हरि साहब बोले,

हम नाश्ता करते रहे, लज़ीज़ था नाश्ते का स्वाद! नाश्ता ख़तम किया और इतने में ही क़य्यूम भाई भी आ गए गाड़ी लेकर, तब हम चारों वहाँ से निकल पड़े खेतों की तरफ!

 

हम चारों खेत पहुंचे! बहुत ही खूबसूरत नज़ारा था वहाँ का! जंगली पीले रंग के फूलों ने ज़मीन पर कब्ज़ा जमा लिया था, उनमे से कहीं कहीं नीले रंग के फूल भी झाँक रहे थे, जैसे प्रकृति ने मीनाकारी का काम किया हो! कुछ सफ़ेद फूल भी निकले थे वहाँ, वो अलग ही खूबसूरती ज़ाहिर कर रहे थे! पेड-पौधों ने माहौल को और खुशगवार बना दिया था! अमरुद, बेर और आंवले के पेड़ों के समरूप रूप ने जैसे प्रकृति का सलोनापन ओढ़ लिया था! बेलों ने क्या खूब यौवन धारण किया था, काबिल-ए-तारीफ़! उनके चटख हरे रंग ने मन मोह लिया था, पीले रंग के फूल जैसे स्वर्ग का सा रूप देने में लगे थे! सच में प्राकृतिक सौंदर्य वहाँ उमड़ के पड़ा था! शुष्क नाम की कोई जगह वहाँ नहीं दिखाई दे रही थी! हर तरफ हरियाली और हरियाली!

“आइये, इस तरफ” हरि साहब ने कहा और जैसे मै किसी सम्मोहन से जागा!

जी, चलिए” मैंने कहा,

ये एक संकरा सा रास्ता था! दोनों तरफ नागफनी ने विकराल रूप धारण कर रखा था, लेकिन उसके खिलते हुए लाल और पीले फूलों ने उसकी कर्कशता को भी हर लिया था! बहुत सुन्दर फूल थे, बड़े बड़े! अमरबेल आदि ने पेड़ों पर अपनी सत्ता कायम कर रखी थी! मकड़ियों ने भी अपने स्वर्ग को क्या खूब सजाया था अपने जालों से! ऊंचाई पर लगे बड़े बड़े जाले!

“यहाँ से आइये” हरि साहब ने कहा, और हम उनके पीछे पीछे हो लिए, हम अब एक बाग़ जैसी ज़मीन में प्रवेश कर गए, खेतों में लगे बैंगन और गोभी आदि बड़े लुभावने लग रहे थे!


   
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श्रीशः उपदंडक
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तभी सामने तीन पक्के कमरे बने दिखाई दिए, उसके पीछे भी शायद कमरे बने थे, वहाँ मजदूरों की भैंस और बकरियां बंधी थीं, चारपाई भी पड़ी थीं, उनके बालक वहीँ खेल रहे थे, हमे देख ठिठक गए!

कय्यूम भाई ने एक चारपाई बिछायी और एक पेड़ के नीचे बिछा दी, हम बैठ गए उस पर, अपने लिए उन्होंने एक और चारपाई बिछा ली, वे भी बैठ गए, तभी हरि साहब ने आवाज़ दी और अपने मजदूर शंकर को बुलाया, पहले उसकी पत्नी बाहर आई और फिर वो समझ कर चली गयी शंकर को बुलाने, शंकर कहीं खेत में काम कर रहा था उस समय,

“ये है जी ज़मीन” हरि साहब बोले,

“देख ली है, अभी जांच करूँगा यहाँ की” मैंने कहा,

कय्यूम भाई उठे और अन्दर से घड़े में से पानी ले आये, मैंने पानी के दो गिलास पिए और शर्मा जी ने एक, पानी भी बढ़िया और ठंडा था! उसी पनिया-ओझा के बताये हुए स्थान पर खोदे हुए कुँए का ही था!

तभी शंकर आ पहुंचा वहाँ, उसने नमस्ते की और अपने अंगोछे से अपना मुंह पोंछते हुए अपने हाथ धोये और फिर वहीँ एक खटोला बिछा कर बैठ गया!

हरि साहब ने दो चार बातें कीं उस से और फिर सीधे ही बिना वक़्त गँवाए काम की बात पर आ गए! अब शंकर मेरे सवालों का उत्तर देने को तैयार था!

“शंकर, जैसा मुझे हरि साहब ने बताया है वैसा कुछ देखा है आपने?” मैंने पूछा,

‘हाँ जी, देखा है, मै क्या सभी ने देखा है यहाँ” वो बोला,

“अच्छा” मैंने कहा,

अब तक शंकर की पत्नी भी वहाँ आ बैठी, घूंघट किये हुए,

“क्या देखा है शंकर आपने?” मैंने पूछा,

“यहाँ अक्सर दो औरतें दिखाई देती हैं घूमते हुए” वो बोला,

“तुमने देखी हैं?” मैंने पूछा,

“हाँ जी, तीन बार” वो बोला,

“क्या उम्र होगी उनकी?” मैंने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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“जी पक्का पता नहीं, होगी ३०-३५ बरस” वो बोला,

“क्या पहन रखा है उन्होंने?” मैंने पूछा,

“कुछ नहीं” वो बोला,

“कुछ नहीं? मतलब नग्न?” मैंने पूछा,

“हाँ जी” वो बोला,

धमाका हुआ! मेरे दिमाग में हुआ धमाका! प्रेत यदि नग्न हो तो बलि कारण होता है उसका! और यहाँ बलि?

“पास में से देखी थीं?” मैंने पूछा,

“नहीं जी, कोई पचास फीट की दूरी से देखा था” वो बोला,

“किस जगह?” मैंने पूछा,

“जी पीछे है वो जगह, वहाँ केले, पपीते के पेड़ हैं” वो बोला,

“अक्सर वहीँ दिखाई देती हैं?” मैंने पूछा,

“जी दो बार वहीँ दिखाई दी थीं, और एक बार कुँए के पास, चक्कर लगा रही थीं कुँए के” वो बोला,

“अच्छा, बाल कैसे हैं उनके?” मैंने पूछा,

“काले” उसने कहा,

“नहीं, खुले हैं या बंधे हुए?” मैंने पूछा,

“खुले हुए, छाती तक” वो बोला,

खुले हुए! फिर से बलि का द्योतक!

“किसी को पुकारती हैं? कुछ कहती हैं?” मैंने पूछा

“नहीं जी, चुप ही रहती हैं” वो बोला,

“अच्छा!” मैंने कहा,


   
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“और गुरु जी, मेरी पत्नी ने भी कुछ देखा है यहाँ” वो बोला,

“क्या?” मैंने उत्सुकता से पूछा,

अब उसकी पत्नी की तरफ हमारी नज़रें गढ़ गयीं,

“क्या देखा आपने?” मैंने पूछा,

“जी मैंने यहाँ एक आदमी को देखा था, पेड़ के नीचे बैठे हुए” उसने बताया,

“आदमी? कैसा था वो?” मैंने कुरेदा!

“होगा कोई पचास-साठ बरस का, सर पर साफ़ सा बाँधा था उसने” वो बोली,

“और?” मैंने पूछा,

“वो बैठा हुआ था, जैसे किसी का इंतज़ार कर रहा हो, बीच बीच में उठकर सामने कमर झुक कर देखता था, फिर बैठ जाता था” उसने बताया,

“फिर?” मैंने पूछा,

“मैंने सोचा यहीं आसपास का होगा, मै वहाँ तक गयी और जैसे ही मेरी नज़र उस से मिली वो गायब हो गया, मै डर के मारे चाखते हुए वापिस आ गयी यहाँ और सभी को बताया!” वो बोली,

“अच्छा! ये कब की बात होगी?” मैंने पूछा,

“करीब छह महीने हो गए” वो बोली,

“फिर कभी नज़र आया वो?” मैंने पूछा,

“नहीं, कभी नहीं” उसने कहा,

“हम्म” मैंने मुंह बंद रखते हुए ही कहा,

तभी वो उठी और चली गयी वहाँ से!


   
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“कुछ और? कोई विशेष बात?” मैंने पूछा,

“हाँ जी” वो बोला,

“क्या?” मैंने पूछा,

“यहाँ ऐसी चार पांच जगह हैं जहां पानी नहीं ठहरता, कितना ही पानी दे दो, लेकिन वहाँ दो घंटे के बाद ही पानी सूख जाता है, जैसे सारा पानी कोई सोख रहा है नीचे ही नीचे” उसने बताया,

“कहाँ है ऐसी जगह?” मैंने पूछा,

“आइये, दिखाता हूँ” वो कहते हुए उठा,

हम सभी उठ गए उसके साथ और उसके पीछे हो लिए, वो हमको थोड़ी दूर ले गया और हाथ के इशारे से बताया कि ये है वो जगह, उनमे से एक” उसने कहा,

उसका कहना सही था! वहाँ मिट्टी ऐसी थी जैसे कि रेत, एक दम सूखी रेत! बड़ी हैरत की बात थी! मैंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा था! आज पहली बात देख रहा था! मेरे सामने ही उसने एक बाल्टी पानी वहाँ डाला, और कहा, “ये देखिये, यहाँ पानी नहीं रुकेगा, गीला भी नहीं होगा यहाँ कुछ देर के बाद”

मैंने आगे बढ़कर देखा, जहां पानी डाला गया था! जूते से खंगाला तो पानी मिट्टी पर था ही नहीं, हाँ गीलेपन के निशान ज़रूर थे वहाँ!

“और वो जगह कहाँ है जहां वो औरतें दिखाई दीं थीं?” मैंने पूछा,

“आइये, उस तरफ है” वो बोला, और हम उसके पीछे चले,

वो हमको एक जगह ले आया, यहाँ केले और पपीते के पेड़ लगे थे, जगह बहुत पावन सी लग रही थी! एक दम शांत! जैसे किसी मंदिर का प्रांगण!

“यहाँ! यहाँ देखा था जी” शंकर ने वहाँ खड़े हो कर कहा,

मैंने गौर से देखा, सबकुछ सामान्य था वहाँ, कुछ भी अजीब नहीं! पेड़ों पर पपीते लदे थे पीछे अमरुद के पेड़ों से खुशबू आ रही थी उसके फूलों की! बेहद सुकून वाली जगह थी वो!

“दोनों बार यहीं दिखाई दीं थीं वो दोनों?” मैंने पूछा,

“हाँ जी” शंकर ने कहा,


   
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तभी शंकर का लड़का आया वहाँ भाग भाग और शंकर से कुछ कहा, शंकर हमको लेकर फिर से अपनी कमरे पर आ गया, वहाँ दूध का प्रबन्ध कर दिया गया था, हमने दूध लिया, बहुत बढ़िया ताजा दूध था वो! हमने दो दो गिलास पी लिया, तबीयत प्रसन्न हो गयी!

फिर शंकर ने खाने की पूछी, तो खाने की हमने मना कर दी, पेट दूध पीकर भर गया था, रत्ती भर भी जगह शेष नहीं थी!

“आइये मै आपको वो पानी वाली जगह दिखा दूँ” शंकर ने कहा,

“चलिए” मैंने कहा,

हम चल पड़े उसके पीछे, वहाँ पहुंचे और सच में, सच में वहाँ पानी का कोई नामोनिशान नहीं था! मैंने नीचे बैठकर, छू कर देखा, मिट्टी सूखे रेत के समान थी! कमाल की बात थी ये! अद्भुत! न कभी देखा था ऐसा और न सुना था! आज देख भी रहा था और अचंभित भी था! पानी जैसे भाप बनकर उड़ गया था! जैसे ज़मीन ने एक एक बूँद पानी की लील ली हो! हैरत-अंगेज़!

“कमाल है!” मेरे मुंह से निकला!

“मैंने बताया था ना गुरु जी, ऐसी चार पांच जगह हैं यहाँ!” अब हरि साहब ने कहा!

“हाँ, कमाल की बात है!” मैंने फिर से कहा,

“यहाँ ना जाने क्या चल रहा है, हम बड़े दुखी हैं गुरु जी” हरि साहब बोले,

“मै समझ सकता हूँ हरि साहब!” मैंने कहा,

“अब आप जांच कीजिये कि यहाँ ऐसा क्या है?” वे बोले, याचना के स्वर में,

“मै आज रात जांच आरम्भ करूँगा हरि साहब!” मैंने कहा,

“जी बहुत अच्छा” हरि साहब ने कहा,

“शंकर?” मैंने कहा,

“जी?” उसने चौंक कर कहा,

“वो पेड़ कहाँ है जहां आपकी पत्नी ने वो आदमी देखा था?” मैंने पूछा,

“आइये जी, उस तरफ!” मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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हम उसके पीछे चल पड़े!

“ये है जी वो पेड़” शंकर ने इशारा करके बताया,

ये पेड़ अमलतास का था, काफी बड़ा पेड़ था वो!

मै वहीँ उसके नीचे खड़ा हो गया! कुछ महसूस करने की कोशिश की लेकिन सब सामान्य!

अब तो सिर्फ रात को ही जांच की जा सकती थी!

अतः, मै वहाँ से वापिस आ गया, हम वहाँ से वापिस चल दिए और हरि साहब के पास आ गए, उनके घर,

खाना लगा दिया गया, खाना खा लिया हमने और फिर कुछ देर आराम करने के लिए हम अपने कमरे में आ गए, लेट गए!

“क्या लगा आपको गुरु जी?” शर्मा जी ने पूछा,

“अभी तक तो कुछ नहीं लगा अजीब, सब सामान्य ही है” मैंने कहा,

“तो अब रात को करेंगे जांच?” उन्होंने पूछा,

“हाँ, आज रात को” मैंने कहा,

“ठीक है गुरु जी” वे बोले,

और फिर हम दोनों ही सो गए, नींद की ख़ुमारी थी काफी, आँख लग गयी जल्दी ही!

 

४ बज चले थे, जब हमारी आँख खुली, शर्मा जी और मै एक साथ ही उठ गए थे, बदन में ताजगी आ गयी थी! और अब मुझे इंतज़ार था तो रात घिरने का, मै आज रात जांचना चाहता था कि वहाँ दरअसल चल क्या रहा है? कौन है वो दो औरतें? कौन है वो इंतज़ार करता आदमी और क्या रहस्य है वहाँ कुछ जगह पानी के न ठहरने का! एक तो उत्सुकता और दूसरी रहस्य की गहराई, जैसे मै बंधता जा रहा था उनमे, जैसे मेरे ऊपर पड़ा कोई फंदा धीरे धीरे कसता चला जा रहा हो!

“शर्मा जी?” मैंने कहा,

“जी हाँ?” वे बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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Topic starter  

“आप बैग में से वही सामान निकाल लीजिये, जांच वाला” मैंने कहा,

“जी, अभी निकालता हूँ” वे बोले,

उन्होंने पास में रखा बैग खिसकाया और उसको खोला, फिर कुछ सामान निकाल लिया, इसमें कुछ तंत्राभूषण और विभिन्न प्रकार की सामग्रियां रखी थीं, मैंने शर्मा जी से मुख्य मुख्य सामग्री निकलवा ली और फिर बाकी का सामान बैग के अन्दर ही रखवा दिया,

“आज रात को हम जांच करेंगे वहाँ, हरि साहब से एक नमक की थैली और एक बड़ी टोर्च ज़रूर ले लेना, आवश्यकता पड़ेगी इसकी” मैंने कहा,

“जी मै कह के ले लूँगा उनसे” वे बोले,

“ठीक है शर्मा जी, देखते हैं कि क्या रहस्य है यहाँ” मैंने कहा,

“हाँ गुरु जी, आज पता चल जाएगा” वे बोले,

“हाँ, पता चल जाए तो इस समस्या का भी निवारण हो जाए, हरि साहब बेहद उदास हैं, कुंठाग्रस्त हो चले हैं अब इस ज़मीन की वजह से” मैंने कहा,

“सही कहा आपने, बेचारे पस्त हो गए हैं” वे बोले,

तभी हरि साहब आ गए अन्दर!

“उठ गए गुरु जी?” उन्होंने कुर्सी पर रखे अखबार को हटाते हुए और बैठते हुए कहा,

“हाँ हरि साहब” शर्मा जी ने जवाब दे दिया,

“चाय मंगवा लूँ?” उन्होंने पूछा,

“हाँ, मंगवा लीजिये” मैंने कहा,

“जी, अभी कहता हूँ” वे बोले, उठे और दरवाज़े पर जाकर आवाज़ दे दी अपने रसोईघर की तरफ, और फिर अन्दर आ बैठे, कुर्सी पर,

अब शर्मा जी ने उनसे सामान के बारे में कह दिया, उन्होंने सामान के लिए तुरंत ही हाँ कर दी, अब हमारा काम एक तरह से फ़ारिग हो चला था, अब केवल जांच शेष थी, और उसके लिए हम तैयार थे, बस रात घिरने का इंतज़ार ही था!


   
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