"हाँ, बहुत टेढ़ी जंग होगी अगर हुई तो!" मैंने कहा,
"शाही-जिन्न अभी तक हमारे सामने तो नहीं आया?" शर्मा जी ने कयास लगाया,
"हाँ, नहीं आया अभी तक तो" मैंने भी हाँ कही,
और फिर आया इतवार! उस से पिछली रात मैंने सारी आवश्यक क्रियाएं कर ली थीं! अब हम तन्वी के घर के लिए निकले! उसके घर पहुंचे, और जैसे ही घर पहुंचे मुझे तेज खुशबू आई चमेली के फूलों की! जैसे के वहाँ चमेली के फूलों के इत्र के पीपे उड़ेले गए हों!
मै अन्दर गया, सभी लोग मिले, नमस्ते आदि हुई, तभी मुझे तन्वी के कमरे का दरवाजा तेजी से बंद हुआ है, ऐसा लगा! मैंने उनसे तन्वी का कमरा पूछा, उन्होंने बता दिया, मै शर्मा जी को लेके उसके कमरे की तरफ बढ़ा! दरवाज़ा अन्दर से बंद था! मैंने जैसे ही दरवाजा खटखटाया, दरवाज़ा अपने आप खुल गया! मतलब कि खलील को मेरी चुनौती स्वीकार थी!
मै अन्दर गया और शर्मा जी को बाहर ही खड़ा रहने दिया, अब मैंने दरवाज़ा बंद कर लिया! और सामने पड़े सोफे पर बैठ गया, तन्वी अपने बिस्तर पर कमर के पीछे तकिया लगाए मुझे ही देख रही थी, और मै उसको, पहले मै मुस्कुराया, लेकिन तभी तन्वी ने मुझे गुस्से से देखा, ज़ाहिर था, ये तन्वी नहीं, खलील देख रहा था मुझे! मैंने कलुष-मंत्र का जाप किया! और आँखें खोलीं! वाह! पूरा कमरा अदन का बैग सा लग रहा था! बेजोड़! फूल ही फूल! काले, पीले और सफेद फूल! खुशबू ही खुशबू! अटे पड़े बहुमूल्य जेवरात! और भी सामान! अब मैंने तन्वी से बात करने का फैसला किया, मैंने कहा, "तुम तन्वी हो ना?"
"हाँ, और तुम क्या करने आये हो यहाँ?" उसने बैठते हुए कहा,
"तुम्हारे आशिक से मिलने आया हूँ मै!" मैंने कहा,
वो हंसी और बोली, "शुक्र है, इससे पहले कि तुम उनको कुछ और बोलते तो यहीं खाक करवा देती मै!"
"अच्छा तन्वी! वो मुझे खाक कर देगा?" मैंने पूछा,
"हाँ, और तमीज से बात करो तुम" उसने मुझे डांट के कहा, "माफ़ करना, गलती हो गयी!" मैंने मुस्कुरा के कहा,
"जो बोलना है बोलो और निकलो यहाँ से!" उसने मुझे चुटकी मारते हुए बाहर का रास्ता दिखाया!
"ओह! बहुत गुस्से में हो तुम तन्वी, अच्छा, मै चला जाऊँगा, लेकिन एक बार मुझे अपने उनसे तो मिलवा दीजिये!" मैंने कहा,
"क्यों?" उसने पूछा,
"ऐसे ही! मिलने की ख्वाहिश है!" मैंने बताया,
"जान बचानी है कि नहीं?" उसने पूछा,
"मेरी जान की परवाह ना करो तुम, बुला लो उनको!" मैंने कहा,
"और ना बुलाऊं तो?" उसने गुस्से से कहा,
"तो मै बुला लूँगा!" मैंने कहा,
तन्वी को गुस्सा आ गया इस बात पर! फनफना उठी! त्योरियां चढ़ गयी और नथुने फूल गए उसके! वो बिस्तरसे उठी, फूलदान उठाया, मैं जानता था कि वो मुझ पर फेंक के मारेगी वो, तो मैंने तब जामिश-विद्या का संधान किया!! और जैसे ही उसने मुझे मारने के लिए हाथ उठाया, उसके बदन में भयानक दर्द हुआ, फूलदान नीचे गिर! तन्वी का बदन ऐंठा और वो नीचे गिरी बिस्तर पर! तभी एकरौशनी कौंधी! मै जान गया कि खलील आ गया है, अपनी महबूबा को बचाने!
और फिर मेरे सामने आया एक मजबूत, बेहद ताकतवर, साफा बांधे, एक इल्माती जिन्न! इअस जिन्न मैंने पहले कभी नहीं देखा था, कभी सामना नहीं हुआ था मेरा कभी ऐसे जिन्न से! उसने आते ही तन्वी के माथे पर हाथ फेरा, तन्वी ठीक हुई! फिर वो मेरी तरफ आया और बोला, "तेरी इल्म की कद्र करता हूँ, जा तुझे छोड़ देता हूँ, कभी लौटने का ख़याल भी ना करना, अब जा यहाँसे!"
उसके इस धीमे लहजे और संतुलित भाव से मै पहली बार में ही प्रभावित हो गया! मैंने उसको देखा और उसने मुझे,अपनी नीली आँखों और चेहरे के दमकते तेज से कोई भी आलिम डर के मारे मैदान छोड़ सकता था! मै वहीं डटा रहा! मैंने उससे पूछा, "नाम नहीं बताएँगे आप अपना जनाब?"
"खलील, खलील नाम है मेरा" उसने फिर से धीमे लहजे से कहा,
"कहाँ के रहने वाले हो?" मैंने पूछा,
"बहरखैदरा" उसने बताया,
अब तो मै भी हिल गया! ये वो जगह है जहां जिन्नाती-मरकज़ है! ये वहाँ का शाही जिन्न! मित्रो! आपने कई जिन्नाती-मजारों के बारे में सुना होगा, वो ऐसे ही जिन्नाती-बादशाहों की हुआ करती हैं! मैं ऐसे ही किसी बादशाह के सामने बैठा था!
"खलील!" मैंने कहा उसको,
उसने मुझे देखा और बोला, "आप जाइये यहाँ से" उसने कहा,
"मै चला जाऊँगा, लेकिन जो तुम कर रहे हो वो गलत है, ये जिन्नाती-कायदे की हुक्मतल्फ़ी है, वो एक आदमजात है, और तुम एक शाही जिन्न!" मैंने उसको समझाया,
"मेरे कायदे की बातें करते हो आलिम! मेरे कायदे में हर एक छेज़ से मुहब्बत करना सिखाया जाता है, और कम से कम मै हैवान तो नहीं हूँ!" उसने कहा,
उसकी बात लाख पते की थी, दूर तलक सही थी, मै भी उसके इस जवाब पर झेंप गया!
"बात तुम्हारी वाजिब है, कोई शक की बात है ही नहीं, लेकिन ये आदम्जाज़ है, इसके भी कुछ अहद हैं इस खानदान के लिए, आज ये किसी की बेटी है, कल किसी की बीवी भी होगी और फिर किसी की माँ भी!" मैंने कहा,
"इसका अहद सिर्फ मेरे साथ है, और किसी अहद से ये बंधी नहीं, मासूम है ये" उसने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा,
"सही कहा तुमने खलील! ये मासूम है! तभी तो तुमने इसे अपने झांसे में फंसा लिया!" मैंने कहा,
"सुनिए आप, आपकी काबिलियत से मै वाकिफ हूँ, नहीं तो और कोई यहाँ ठहर नहीं सकता था, मै आपसे बहस नहीं करना चाहता, अगर बहस हुई तो बहुत दूर तलक जायेगी, आप इसकी फिक्र न कीजिये, मै हूँ इसका फिक्रमंद!" उसने कहा,"
"मैं जानता हूँ, और देख भी रहा हूँ, तुम कितने फिक्रमंद हो इसके! इसको इसके घर-परिवार से अलग कर रहे हो!" मैंने कहा,
"मुझे और किसी से कोई मतलब नहीं, मै इसके लिए फिक्रमंद हूँ!" उसने बताया,
और सच में, वो सच में उसके लिए फिक्रमंद था! इसमें कोई शक नहीं था! जिन्न कैसा भी हो, जिद्दी, अड़ियल, उसको सबक सिखाया जा सकता है, अगर वो कोई कौल भरले तो, लेकिन ये खलील इतना माहिरथा जुबानी-अंदाज़ में कि मै भी उसके जवाबों का कायल हो गया!
"एक बात पूछों खलील?" मैंने पूछा,
"पूछिए?" उसने कहा,
"तुम इस आदमजात के बदन से मुहब्बत करते हो या इसकी रूह से?" मैंने पूछा,
"इसकी रूह से" उसने तपाक से जवाब दिया!
अब मै उछला!
अगर कोई जिन्न किसी आदमजात की रूह से मुहब्बत करे तो समझिये वो उसको कभी नहीं छोड़ने वाला, वो चुप अगर हो भी जाए तो मौत से पहले उसकी रूह को ले जाएगा! ऐसा हुआ है और यहाँ भी ऐसा मामला ही था! खलील वहाँ से हटने को तैयार ही नहीं था!
"एक बात और खलील, तुम मुझे बेहद पसंद आये, मैं तुम्हारी मुहब्बत की कद्र करता हूँ! अगर मै तुमको बुलाना चाहूँ तो तुम आओगे?" मैंने पूछा,
"बेशक आऊंगा, बशर्ते कि आप इस मासूम पर कोई इल्म पेश न करें!" उसने कहा और मुझे मेरी ही बातों में फंसा दिया!
"मुझे मंजूर है!" मैंने कहा, "मुझे भी मंजूर है! मै वायदा करता हूँ, जब आप बुलायेंगे मै हाज़िर हो जाऊँगा!" उसने कहा,
मै उसकी साफगोई, इमानदारी और हौंसले का जैसे मुरीद हो गया!
"ठीक है खलील, अब मै चलता हूँ, बाद में किसी रोज तफसील से बातें होंगी!" मैंने कहा,
"ज़रूर, ज़रूर होंगी, मुझे आप भी इमानदार और समझदार इंसान लगे!" उसने मुस्कुरा के कहा!
मैंने उसको शुक्रिया किया और वापिस आ गया!
वहाँ आ कर बैठा जहां वे सब लोग बैठे थे, मैंने उनको हिम्मत बंधाई कि चिंता न करें इस समस्या का समाधान हो जाएगा शीघ्र ही! उसके बाद मै और शर्मा जी वहाँ से वापिस अपने स्थान की ओर चल पड़े!
रास्ते में शर्मा जी ने पूछा, "कोई बात बनी गुरु जी?"
"नहीं शर्मा जी! कोई बात नहीं बनी!" मैंने कहा,
"वो कैसे?" वे बोले,
"वो ऐसे कि ये जो खलील है ये आम-जिन्न नहीं है, ये अलग है, बेपनाह ताकतों का मालिक है!" मैंने उनको बताया,
"ओह! तो अब?" उन्होंने पूछा,
फिर मैंने उनको उसके साथ हुई सारी बातें बता दी! एक एक बात पर चिंता की रेखाएं गहरा गयीं हमारे चेहरों पर!
"अब आप उसको बुलायेंगे?" उन्होंने पूछा,
"हाँ, एक बार और बहस करूँगा उससे!" मैंने बताया,
"क्या लगता है, मानेगा?" वो बोले,
"शर्मा जी, इसको तो चलो मना लिया जाएगा, किसी भी तरीके से, हो सकता है मान जाए, उसको उसी की मुहब्बत का वास्ता देकर! लेकिन वो लड़की?
"आपका मतलब तन्वी?" उन्होंने पूछा,
"हाँ, उसकी राय जानना ज़रूरी है और ये खलील आखिर में उसका ही सहारा लेगा!" मैंने कहा,
"अच्छा! अच्छा! मै समझ गया अब!" वो बोले, "यही सबसे बड़ी मुसीबत है शर्मा जी!" मैंने कहा,
बातें करते करते हम अपने स्थान पर पहुंच गए थे, इस तरह का संजीदगी भरा मामला मै आज पहली बार देखा था, मैंने जिन्नात काफी देखे थे, उसने जंग भी लड़ी थी, दोस्ती भी की, उसने गाँव भी गया था, दावतें भी खायीं थीं और उनकी पैंठ में भी घूमा था! लेकिन खलील जैसा शाही-जिन्न आज मैंने पहली बार देखा था, उसने मुझे आंक लिया था और मैंने उसको! किया क्या जाए? ये सवाल मेरे दिमाग में हथौड़े बजा रहा था, शर्मा जी से भी सलाह-मशविरा किया लेकिन कोई नतीजा सामने नहीं आया, तब मैंने अपने बिजनौर वाले मित्र से सलाह ली, उनके अनुसार शाही-जिन्न से उनका कभी सामना नहीं हुआ था, उनके अनुसार ये शाही जिन्न अव्वल किस्म वाले होते हैं, एक खास बात और, इनके सामने कई इल्मात चलते ही नहीं, मतलब उठते ही नहीं, जैसेसुलेमानी, रहमानी, काशिदी, मसानी, दखनी और सिफली! इस बात से मुझे खौफ तो हुआ लेकिन कोई न कोई रास्ता तो होगा ही, यही मैंने सोचा था!
इसी कशमकश में दो दिन निकल गए, कोई सुझाव समझ में नहीं आया, तब हार के और शर्मा जी से सलाह करके मैंने यही फैसला लिया की इसका रास्ता महज़ खलील के पास है, और किसी के पास नहीं!
मित्रगण! मुझे इस वाकये में बेहद और इन्तहा दिलचस्पी आने लगी थी, ये पहला मौका था जब मै इस बार हार के करीब था!
अगल्ले दिन शाम पांच बजे करीब मैंने अपने एक दूसरे कमरे को साफ करवाया, वहाँ आज मै खलील को बुलाना चाहता था, अतः मैंने जिन्नाती रिवाज के अनुसार ही वहाँ का माहौल बनवा लिया था! जिन्नात गंदगी पसंद नहीं करते, उनको पाकसाफ माहौल ही पसंद है!
मैंने एक निहायत पाक कलीमा पढ़ा और फिर मैंने जिन्नात काकायदा पेश किया! फिर मैंने खलील को बुलावा भेजा! खलील ने बुलावा मंजूर कर लिया! वो अपने वायदे का पाक था, इसीलिए हाज़िर हुआ! अपने साथ अंगूर लाया था, बेहतरीन अंगूर! मैंने उस से पूछा, "कैसे हो खलील?"
"बेहतर हूँ! आप सुनाएँ, कैसे मिजाज़ हैं!" उसने मुस्कुराते हुए कहा!
"मै भी बेहतर हूँ! शुक्रिया!" मैंने जवाब दिया,
"आज हमारे यहाँ जश्न था, वहीं से उठ के आया मै!" उसने बताया.
"ओह! गलती हुई मुझसे खलील, माफ़ कीजिये मुझे!" मैंने इल्तजा की,
"अरे इल्तजा कैसी! आपको कौल दिया था मैंने, तो अब भले क़यामत आती, मै तो ज़रूर आता!" उसने कहा,
अब मित्रगण! अब मै क्या कहूँ उसके इस एहसान को!
"कोई बात नहीं खलील! हम किसी औररोज बात आकर लेंगे! आप अपने जश्न में शामिल होइये!" मैंने कहा,
"शुक्रिया! इजाज़त?" उसने पूछा,
"इजाज़त? इजाज़त कैसीखलील?" मैंने हैरत से पूछा,
"नहीं जनाब! जब तक आप इजाजत नहीं देंगे, मैं नहीं जाऊँगा, मैं नहीं चाहता, आपका दिल दुखे!" उसने कहा,
"अरे नहीं खलील! नहीं दुखेगा!" मैंने कहा!
"शुक्रिया!" उसने हंस के कहा, और वहाँ से चला गया!
अपनी इस बात से मुझ पर और एहसान सा कर दिया था उसने!
खलील चला गया, करीब पांच किलो अंगूर छोड़ गया! मै अंगूर लेके बाहर आया और फिर शर्मा जी से मिला! शर्मा जी ने पूछा, "आया था वो खलील गुरु जी?"
"हाँ शर्मा जी, आया था!" मैंने कहा,
"क्या बोला?" उन्होंने पूछा,
"कुछ नहीं, अपने पारिवारिक जश्न से उठ कर आया था वो यहाँ!" मैंने बताया,
"जश्न से?" शर्मा जी को हैरत हुई!
"हाँ शर्मा जी! जश्न से!" मैंने बताया!
"आपका मतलब वो अपने शाही-जश्न से यहाँ आया था, महफ़िल छोड़ के?" उन्होंने पूछा,
"हाँ! एहसान कर गया मुझ पर!" मैंने बताया,
"ओह! इसका मतलब ये जिन्न दूसरों से कतई अलग है!" वो बोले,
"हाँ शर्मा जी, मै तो जैसे फंस गया हूँ!" मैंने बताया,
"मै समझ सकता हूँ गुरु जी" शर्मा जी ने कहा,
"ये खलील वाकई में एक काबिल जिन्न है शर्मा जी, बेहद काबिल!" मैंने बताया,
"तो अब क्या हो?" उन्होंने पूछा,
"रास्ता तो ये खुद खलील ही निकालेगा!" मैंने कहा,
"बड़ी मुसीबत हो गयी ये तो" वो बोले,
"हाँ, बेहद बड़ी मुसीबत!" मैंने में हाँ मिलाई, "अच्छा, गुरु जी, अगर ये लड़की खुद ही मना कर दे उसे तो?" उन्होंने सुझाव दिया,
"हो सकता है तब कुछ हल इसका, लेकिन वो ऐसा करेगी नहीं!" मैंने कहा,
"आपका उच्चाटन?" वो बोले,
"खलील काट देगा" मैंने बताया,
"ओह! ये तो और बड़ी मुसीबत!" वो बोले,
"हाँ! कोई हल नहीं निकल रहा!" मैंने कहा,
"कोशिश तो की ही जा सकती है ना?" वो बोले,
"मेरी जामिश-विद्या काट दी थी उसने हाथ फिरा के ही!" मैंने उनको देखते हुए कहा,
"हम्म! तो अब क्या होगा इस लड़की का?" उन्होंने पूछा,
"खलील के सिवा कोई नहीं जानता ये" मैंने कहा,
तीन दिन और बीत गए, फिर एक दिन मैंने खलील को बुलाया, खलील खुशी खुशी आ गया! मैंने अब और वक़्त जाया करने की कोई कोशिश नहीं की और सीधे सीधे उस से पूछा, "खलील, क्या तुमको तन्वी इतनी पसंद है की तुम कुछ भी कर सकते हो उसके लिए?"
उसे पहले तो मेरे इस सवाल से हैरत हुई, फिर मुस्कुराया और बोला, "मै जानता था कि आपका ये सवाल एक दिन मुझसे ज़रूर पूछा जाएगा, हाँ कुछ भी कर सकता हूँ उसके लिए!"
"खलील, तन्वी तुमसे महज़ इसीलिए बंध गयी है क्यूंकि तुम्हारे असरात हैं उस पर, अगर तुम अपने असरात उस से हटा लो तो मैं उसके मुंह से कहलवा सकता हूँ कि वो अब तुमसे नहीं मिलेगी!"
"अच्छा! आपको यकीन है?" उसने पूछा,
"हाँ, मै आदमजात को जानता हूँ!" मैंने कहा,
"ठीक है, जैसा आप कहें!" खलील ने कहा,
"वायदा?" मैंने पूछा,
"हाँ वायदा!" उसने हँसतेहए कहा!
"और खलील, अगर उसने मना कर दिया, तो तुम उसके पास कभी नहीं लौटोगे! ये भी वायदा करो!" मैंने कहा,
"वायदा!" उसने बेहद इत्मीनान से कहा!
अब मुझे मेरी जीत होने का एक गर्म एहसास होने लगा!
तो फिर मेरी और उसकी मुलाक़ात तय हो गयी इतवार के लिए! वो इतवार को तन्वी के पास पहुंचेगा और मै भी, अतब वो अपने वायदे के मुताबिक अपने असरात हटा लेगा उस से, तब मै तन्वी से ही पूछंगा आगे का रास्ता! कि वो क्या चुनती है!
फिर आया इतवार का दिन! मै ग्यारह बजे तन्वी के कमरे में बैठा हुआ था, दरवाज़ा अन्दर से बंद था, तन्वी अकेली बैठी थी, शर्मा जी उसके परिवार वालों के साथ बैठे थे और समझा रहे थे उनको!
तभी रौशनी कौंधी और खलील हाज़िर हुआ! सजा-धजा! मुझे देख मुस्कुराया और मैं भी! फिर बोला, "ल्जिये मै अपने वायदे के मुताबिक़ आ गया और आपकी तसल्ली के लिए वही कर रहा हूँ जो आपने कहा था!" उसने कहा और तन्वी के सर पर हाथ रखा! बैठी हुई तन्वी लेट गयी! खलील पोशीदा हो गया, मतलब सिर्फ मै उसको देख सकता था तन्वी नहीं!
मैंने तन्वी को आवाज़ दी, तन्वी हड़बड़ा के उठी और अपने आसपास देखने लगी! फिर मुझे देखा और बोली, "कहाँ हैं वो?"
"कौन वो? यहाँ तो कोई नहीं?" मैंने कहा,
"आपको पता है, कहाँ हैं वो?" उसने फिर पूछा,
"अच्छा वो! वोखलील?" मैंने कहा,
"हाँ, कहाँ हैं वो?" उसने जिद सी पकड़ी अब!
"मैंने उसकोसमझा दिया, अब नहीं आएगा वो कभी, मैंने कह दिया कि तन्वी एक इंसान है और वो एक जिन्न, ना कभी ऐसा हआ और ना कभी ऐसा होगा" मैंने कहा,
ऐसा सुनके तो तन्वी के होश उड़ गए! लपक के नीचे उतरा और मेरे पास आई, मुझे घूर के देखा और मुझसे हाथापाई करने लग गयी!
"अच्छा, सुनो,सुनो?" मैंने उसके हाथों को थामते हुए कहा, लेकिन वो नहीं मानी! मुझे काटने की कोशिश करने लगी! तब मैंने कहा, "अरेसुनो तो सही मेरी बात तन्वी?"
"नहीं, तुम बुलाओ उन्हें, अभी बुलाओ, नहीं तो मै जान दे दूंगी अपनी!" उसने कहा और वो अभी भी मुझसे ही उलझे थी! "मेरी बात सुनो आराम से तन्वी?" मैंने कहा,
अब उसने मेरे हाथ छोड़े, और मैंने उसके, फिर जोर से चिल्लाई, "बुलाओ उन्हें?" ऐसा उसने चिल्ला चिल्ला के पांच छह बार कहा!
"अच्छा अच्छा! बुलाता हूँ, बुलाता हूँ!" मैंने कहा,
वो चुप हो गयी, मैंने देखा उसकी आँखों से आंसू निकलने लगे थे, झर-झर, और उधर वो खलील बेचैन हो उठा था!
"अच्छा, तन्वी वहाँ बैठो ज़रा, मेरी बात सुनो, उसके बाद मै खलील को बुला दूंगा!" मैंने उससे कहा,
वो पीछे हटी और रोते रोते अपना सर नीचे करके बैठ गयी बिस्तर पर! मुझे दया तो आई उस पर लेकिन सवाल पूछने ज़रूरी भी थे!
"तन्वी, क्या तुम्हे मालूम है वो एक जिन्न है और तुम इंसान?" मैंने पूछा,
उसने केवल हाँ में गर्दन हिलाई!
"तुम जानती हो जिन्न कौन होता है?" मैंने पूछा,
"मुझे नहीं जानना, मै प्यार करती हूँ उनसे" उसने रोते रोते कहा,
"तुम उसे भूल जाओ तन्वी, कोई अच्छा सा लड़का देखकर तुम्हारा ब्याह कर देंगे घरवाले, इस खलील को महज़ एक सपना समझ के भूल जाओ" मैंने कहा,
"मै अपनी जान दे दूँगी उनके बिना, मर जाउंगी मै" उसने और तेजरोके कहा,
"तो सुनो, वो तुम्हारी आत्मा ले जाएगा तुम्हारे मरने के बाद" मैंने समझाया, "वो तो मैं अभी दे चुकी हूँ मैं उनको" उसने अब मुझे देखते हुए कहा!
"तुम्हारी संतान नहीं होगी तन्वी!" मैंने कहा,
"मुझे नहीं चाहिए, और ना उनको" उसने बताया,
ये बात शायद उनकी तय हो चुकी होगी पहले ही! "तुम्हारे बुढ़िया होने पर छोड़ देगा तुमको वो" मैंने कहा,
"वो मेरे शरीर से नहीं, मेरी आत्मा से प्यार करते हैं" उसने कहा,
"कभी शारीरिक सुख नहीं मिलेगा तुमको" मैंने कहा,
"नहीं चाहिए मुझे" उसने कहा,
"अगर खलील ने कहा तो?" मैंने पूछा,
"आज तक नहीं कहा उन्होंने" उसने बताया!
मै सन्न रह गया ये सुनके!
मुझे मेरी हार का फाटक दिखाई देने लगा! ये ही तो है पाक-मुहब्बत!
"अब आप बुलाइये उनको, मेरी जान जा रही है, बुलाइये, बुलाइये!" उसने हाथ जोड़ के कहा,
"कुछ और जांच बाकी है आलिम साहब?" खलील हाज़िर होते हुए बोला, और तन्वी उसको देखते ही लिपट गयी उससे!
"नहीं खलील, कोई और जांच नहीं!" मैंने कहा और मैंने ऐसा कहते हुए अपनी हार स्वीकार कर ली!
मित्रगण! ये है अजीब दुनिया! अजीब वाकया!
बाद में मैंने और शर्मा जी ने तन्वी के परिवार को समझा दिया सबकुछ! वो परेशान तो हुए लेकिन कर कुछ नहीं सकते थे! फकीर और सिफली-बाबा का वो हाल देख ही चुके थे! मैंने भी अब मोहर लगा दी थी!
आज तन्वी खलील के साथ ही है! कभी-कभार आ जाती है मेरे पास मिलने, खलील के साथ!
तन्वी ने अपना रास्ता खुद चुना है! खुद ही जाने अपना मुस्तकबिल!
जो मैं कर सकता था, कर चुका था!
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