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वर्ष २०१० गुडगाँव की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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मित्रगण! तनिक सोचिये! यदि कोई व्यक्ति सपना देखे और वो सपना आपको कामोन्माद दे, और वही सपना आपको बार बार आये हाँ पिछली बार की अपेक्षा अगली बार थोडा और आगे तक बढ़ जाए!! आप किसी को बता भी नहीं सकते! एक और हैरत ये कि सपने में कोई आपको बताये कि किसी खास जगह एक गुलाब का फूल रखा गया है खास आपके लिए! और आप उस खास जगह जाओ और वो फूल आपको वहीं रखा मिले तो आपका क्या हाल होगा? क्या सोचोगे? किसको बताओगे? क्या प्रतिक्रिया होगी आपकी? डर? या प्रेम? प्रेम एक अज्ञात प्रेमी से! उस प्रेमी से जो केवल आपके स्वपन में ही आता है!!

ये घटना ऐसी ही है! ऐसा ही हुआ था गुडगाँव में रहने वाली तन्वी का! तन्वी की उम्र तेइस वर्ष थी! किसी बैंक में नौकरी करती थी! पिता जी भी एक कंपनी में मेनेजर के पद पर काम करते थे, परिवार में तन्वी, उसकी माँ और दो बड़े भाई थे, भाई दोनों ही शादी-शुदा थे और अपनी अपनी नौकरी और परिवार ही में मग्न रहते थे!

वर्ष २००९ की बात है ये, तन्वी अपने परिवार के साथ दक्षिण भारत में महाबलीपुरम घूमने गए थे! यात्रा सुखद रही थी! सभी ने अत्यंद आनंद उठाया था! पूरे दस दिन वहाँ उन्होंने अच्छा पर्यटन किया था! ये मार्च की बात थी!

तन्वी का परिवार वापिस आया और फिर से अपने अपने कार्यों में मस्त हो गए! तन्वी भी अपनी नौकरी पर जाने लगी! तब तक सब सामान्य था!

ये बात कोई मई की होगी, एक रात तन्वी को एक सपना आया, उस सपने में वो एक तालाब के किनारे खड़ी थी, उस तालाब में छोटी छोटी मछलियाँ तैर रही थीं, वो उनको पास से देखने के लिए नीचे झुकी तो उसका पाँव फिसला और वो तालाब में गिर गयी! वहाँ तालाब गहरा था, और वो तैरना जानती नहीं थी! अतः वो चिल्ला भी नहीं पा रही थी,तभी एक व्यक्ति वहाँ आया, उसने उसको उसकी बाजू से पकड़ कर बाहर निकाल दिया! जब वो बाहर निकली तो उसने अपने बचाने वाले व्यक्ति को देखने के लिए अपना सर उठाया तो वहाँ कोई नहीं था! तभी तन्वी की आँख खुल गयी! वो घबरा के उठी और फिर पानी पीकर फिर से सो गयी! काफी देर उनींदा रहने के पश्चात ही उसकी आँख लगी!

सुबह उठी तो सपना याद ही नहीं रहा! बात आई गयी हो गयी! शाम को तन्वी घर लौटी तो रोजाना की तरह आराम किया और फिर ऐसे वैसे वक़्त काटा! रात हुई तो तन्वी सो गयी! मध्य रात्रि उसको फिरसे यही सपना आया! लेकिन इस बार थोडा आगे तक! अब उसने अपने बचाने वाले को देखा! लेकिन केवल पाँव! वो कोई देहाती सा लगने वाला था, उसने लाल चमड़े की जूतियाँ पहन रखी थीं! ऐसी जूतियाँ उसने पहले कभी नहीं देखी


   
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श्रीशः उपदंडक
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थीं! बड़ी बड़ी जूतियाँ, आम आदमी की जूतियों से बड़ी जूतियाँ! जूतियों पे चमकदार गोटा लगा हुआ था! बस इतना ही देखा और तन्वी की आँख खुल गयी! ये बड़ी अजीब सी बात थी! एक ही सपना लगातार दो रात आया था!

तन्वी ने इसको इत्तफाक मान कर आया-गया कर दिया! दोरात तक आगे कुछ नहीं हुआ!

लेकिन अगली रात फिर से यही सपना आया! अबकी बार थोडा और आगे! अबकी बार उसने पाँव से ऊपर पिंडलियों की तरफ देखा! ये उसको कोई पठानी-सलवारसी लगी! गहरे हरे रंग की सलवार! जिस पर सिलाई हुई हुई थी! मोटी मोटी सिलाई! उसने देखा कि सलवार पर कई जगह चमकदार झालर लगी थी, जब उसने ऊपर देखने की कोशिश की तो फिर से तन्वी की आँख खुल गयी! अब तन्वी की समझ में नहीं आया कुछ भी! उसको घबराहट भी हुई! आखिर ये सपना पूरा क्यूँ नहीं आता?

खैर, उसको अब सपना याद रहा लेकिन उसने किसी को नहीं बताया इस सपने के बारे में! अगली चार रातों तक कोई सपना नहीं आया!

लेकिन फिर अगली रात! अगली रात फिर से यही सपना आया! अबकी और आगे! अब नीचे गिरी तन्वी बैठ चुकी थी! उसने सर ऊपर उठाया तो उसने देखा कि किसी ने पठानी-सूट पहन रखा है! गहरे हरे रंग का सूट! रेशम जैसा कपडा उसका! किनारी पर गोटा सजा हुआ! तन्वी ने हाथ से जैसे ही कपडे को छुआ उसकी आँख खुल गयी! हैरतज़दा हो गयी तन्वी! ये माजरा क्या है? ऐसा भी कभी होता है क्या? आखिर ये हो क्या रहा है? उसने घडी पर नज़र डाली, रात के पौने दो बजे थे! वो उठ कर बैठ गयी! पानी पिया और फिर लेट गयी! दो घंटों तक करवटें बदलने के बाद उसको नींद आई!

सुबह उठी तो ये सपना उसे अच्छी तरह से याद रहा! सारा दिन रह रह कर यही सपना उसको याद आता! उस रात ना जाने क्यूँ वो जल्दी ही सो गयी! रात को फिर से सपना आया! इस बार फिर आगे! अब वो खड़ी हो गयी थी, कपडे भीगे हुए थे। उसके! पानी टपक रहा था, उसने अपने हाथों से अपने चेहरे पर आये बाल हटाये तो सामने एक कद्दावर इंसान को देखा! पठानी कुरता-सलवार पहने एक पहलवान जैसीरास का एक मजबूत इंसान! गोरा चिट्टा! सरपरसफ़ेद साफा पहने हुए! इतर कीसुगंध फूट रही थी उससे! नीली आँखें थीं उसकी! और बाल भूरे सुनहरी!

दोनों के नज़रें मिलीं तो तन्वी ने कहा,"आपका धन्यवाद"

इतना कहते ही उसकी आँख खुल गयी! घबरा के उठ गयी वो! घडी देखी तो रात के फिर से पौने दो बजे थे! अब वो घबराई, लेकिन और अधिक जानने की लालसा भी हुई उसको! वो फिर से लेट गयी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब कि उसको नींद तो आई, लेकिन सपना नहीं आया!

सुबह उठी तो सपना उसे ऐसे याद था जैसे अभी अभी ही वो घटना घटी हो!

अगले कुछ दिन तन्वी के ऐसे ही चिंता और लालसा के बीच कटे! बीती चार रातों तक कोई सपना नहीं आया! तन्वी अब जल्दी सोने लगी! लेकिन सपने आना बंद हो गए थे शायद!

लें फिर एक रात! वही सपना फिर आया! उसने अपने बचाने वाले से कहा, "आपका धन्यवाद"

लेकिन सामने वाले ने कुछ नहीं कहा, बस मुस्कुराया! उसकी इस मुस्कराहट ने जैसे तन्वी पर जादू सा कर दिया! झनझना उठी तन्वी! उसने तन्वी के सर पर अपना हाथ रखा और बस! तन्वी की नींद खुल गयी! तन्वी को बड़ा गुस्सा आया अपने ऊपर! सपना पूरा क्यूँ नहीं हुआ? क्यूँ नहीं आता सपना पूरा? घडी पर नज़र दौड़ाई तोरात के पौने दो बजे थे!

उसके बाद तन्वी ने सोने की कोशिश की, लेकिन नींद नहीं आई फिर! सारी रात आँखों में ही काट दी! बस सुबह जब छह बजे तो एक हलकीसी झपकी ले ली!

सुबह उठी तो शीशे में खुद को देखा! अपने सर पर हाथ रखा, जैसे उसने रखा था! उसको उसकी मुस्कराहट याद आई! और स्वयं भी मुस्कुरा उठी! अब उसको डर नहीं लग रहा था, क्यूंकि उस मुस्कराहट ने उसका डर खतम कर दिया था!

उस दिन शाम को जल्दी ही घर लौट आई तन्वी, आके सीधा बिस्तर में घुस गयी! अचानक ही नींद लग गयी उसकी! नींद लगी तो फिरसे सपना आया उसको! उसने देखा कि जब उसने उसके सर पर हाथ रखा था, तो उसने तन्वी के सरसे एक पत्ता हटाया था, जो कि पानी में गिरने से उसके सर पर अटक गया था! उसके बाद तन्वी ने उससे पूछा, "कौन हैं आप?"

लेकिन वो नहीं बोला कुछ! बस फिर से मुस्कुराया!

"मुझे आप अपना नाम तो बताइये?" तन्वी ने पूछा,

उसने अभी भी कुछ नहीं कहा, बस फिर से मुस्कुराया, हाँ उसने अपना साफ़ा उतार लिया था, उसके सुनहरी बाल अब कन्धों से नीचे लटकने लगे थे! खूबसूरत मर्द था वो! कानों में छोटे छोटे कुंडल पहन रखे थे उसने सोने के!

"आप अपना नाम तो बताइये मुझे?" तन्वी ने दुबारा पूछा,

"खलील" उसने बताया अपना नाम!


   
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श्रीशः उपदंडक
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बस! इतने के बाद तन्वी की नींद फिर टूट गयी! बेहद गुसा आया उसको! फिर इत्मीनान भी हुआ कि रात भी बाकी है अभी! उसने घडी देखी तो पौने आठ हो चुके थे!

तन्वी उठी, हाथ-मुंह धोया और फिर चाय बनाने चली गयी! चाय पी और फिर से उस शख्स के बारे में सोचने लगी! सहसा उसके मुंह से निकला "खलील!"

रात को खाना खा के सो गयी तन्वी! लेकिन उस रात!! उस रात सपना नहीं आया, कहने का मतलब खलील नहीं आया!

सुबह उठी तो वही नाम अभी भी उसके दिमाग में शोर मचा रहा था! दफ्तर पहुंची तो वहाँ भी यही नाम उसको याद आता रहा! उसके दिमाग से ये नाम निकल ही नहीं रहा था! खैर, शाम को तन्वी वापिस घर आई! और रात कोखाना खा के सो गयी!

रात को फिर से सपना आया वहीं से जहां कल शाम ख़तम हुआ था! तन्वी वहीं खड़ी थी उसके सामने! तन्वी उससे लगभग आधी सी ही थी! लेकिन उसको ऐसा महसूस नहीं हो रहा था! तन्वी ने फिर से उस से आँखें मिलाई और बोली, "खलील नाम है आपका?"

"जी हाँ, खलील नाम है मेरा, लेकिन आपका नाम?" उसने पूछा,

"मेरा नाम तन्वी है" उसने बताया,

"तन्वी!" खलील ऐसा बोल मुस्कुराया!

"कहाँ रहते हैं आप?" तन्वी ने पूछा,

खलील ने दूर इशारा करके कहा "उस, उस बहर के पार!"

"बहरा मै समझी नहीं? तन्वी को बहर शब्द समझ नहीं आया तो उसने पूछा!

"बहर, मायने..अ..समंदर!" खलील ने कहा और मुस्कुराया!

जहां खलील ने इशारा किया था वहाँ समुद्र था! उसका मतलब था कि उस समुद्र के पार!

"उधर? कहाँ?" तन्वी ने वहाँ देखते हुए पूछा,

"हा-यम हातिखों के करीब!" खलील ने फिर से इशारा करके बताया!

हा-यम हातिखों भूमध्य-सागर को कहते हैं मित्रगण! तुर्किश भाषा में!

बस! इतने के बाद उसकी नींद खुल गयी! अब उसे गुस्सा नहीं आया! वो जल्दबाजी में उठी, उसके पास दो नए शब्द थे, एक बहर और दूसरा हा-यम हातिखो! उसने फ़ौरन अपने कंप्यूटर में इनको ढूँढा! वो मिल गए! बहर का मतलब समुद्र वाकई था! बहर अरबी भाषा का शब्द है! और दूसरा शब्द भी मिल गया! उसका मतलब वाकई में


   
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श्रीशः उपदंडक
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भूमध्य-सागर ही था! पहला शब्द अरबी भाषा का था और दूसरा तुर्किश, प्राचीन तुर्किश भाषा का!

अब तो उसका दिमाग घूम गया! चेहरे पर पसीने आ गए! उसने रुमाल से पसीने पोंछे और धम्म से सोफे पर बैठ गयी! य क्या हो रहा है उसके साथ? कौन है ये खलील?

उसने बहुत दिमाग दौड़ाया लेकिन कुछ समझ ना आया! उसके सवालों का बस एक ही व्यक्ति जवाब दे सकता था, बस खलील!

अगले दिन वो दफ्तर पहंची! चिंतित सी, यहाँ एक लड़का रितेश भी काम किया करता था और वो अक्सर तन्वी से छेड़छाड़ कर दिया करता था! फ़ोन भी कर दिया करता था कभी-कभार! तन्वी को वो अच्छा नहीं लगता था! वो हमेशा यही सोचती थी कि काश ये नौकरी छोड़ के चला जाए! और यही हुआ! उसको खबर मिली कि उसको नौकरी से हटा दिया गया है! रितेश के काम में गड़बड़ी पाई गयी थी इसीलिए उसको बर्खास्त कर दिया गया है! तन्वी को बड़ी खुशी हुई! उसकी मुराद पूरी हो गयी थी!

लेकिन सारा दिन उसको अपना सपना और अपने सवाल और खलील याद आते रहे!!

अगली रात! तन्वी सोयी! और उसे फिर से सपना आया! वही से, जहां से ख़तम हुआ था पिछली बार! तन्वी को उसका उत्तर समझ में नहीं आया था, खैर, उसने उसका उत्तर दरकिनार कर दिया, अब उस से पूछा, " आप बहुत दूर रहते हैं मुझे लगता है"

"हाँ बहुत बहुत दूर" खलील ने कहा,

"तो आप यहाँ आये हुए हैं?" तन्वी ने पूछा,

"मै यहाँ रोज आता हूँ" खलील ने कहा,

"रोज? कहाँ? किसके पास?" तन्वी ने पूछा,

"अपने भाई के पास आता हूँ रोज" खलील ने कहा,

"अच्छा!" तन्वी ने कहा,

"मुझे डूबने से बचाने के लिए आपका शुक्रिया" तन्वी ने फिर कहा,

"कोई बात नहीं, आप डूब रही थीं, मै गुजर रहा था, आपको बचाना मेरा फ़र्ज़ था" खलील ने धीमे से जवाब दिया!

तन्वी मुड़ी और तालाब तक गयी, जहां वो डूबी थी! फिर पीछे मुड़ी! लेकिन खलील वहाँ नहीं था!


   
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श्रीशः उपदंडक
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तभी तन्वी की आंख खुल गयी! बैठ गयी! सोचने लगी कि खलील कहाँ चला गया? घडी देखी तो पौने दो बजे थे!

तन्वी फिरसे लेट गयी! वोखलील की शराफत और उसके बोलने के अंदाज़ पर रीझ गयी थी! मन ही मन उसके हृदय में खलील के प्रेम का अंकुर फूट पड़ा था! अपने सपने के प्रेमी खलील के साथ! वो धीमे से मुस्कुराई! और शून्य में ताकने लगी! और इसी जद्दोजहद में उसकी आँख लग गयी!

खलील का जादू तन्वी के सर चढ़ गया था! उसका और किसी काम में मन ना लगता! बस खलील और बस खलील! खोयी रहती खलील के ख्यालों में ही! एक ऐसा प्रेमी जो है ही नहीं! जो बस रहा है केवल स्वपन में! लेकिन तन्वी का विवेक इसे नहीं मान रहा था! वो दफ्तर जाती, अपना काम करती और फिर घर आकर लेट जाती! और हलील के ख्यालों में ही खो जाती!

फिर एक बार! एक बार उसको लगातार ग्यारह दिनों तक कोई स्वपन नहीं आया! वो सोने की कोशिश करती लेकिन फिर भी नहीं आता कोई सपना! बुझी बुझीसी रहने लग गयी तन्वी! किसी कि कमी सालने लगी उसको! रोती थी नहीं लेकिन रोने के करीब अवश्य ही पहुँच जाती थी!

तन्वी के घरवालों ने भी उसके व्यवहार में अंतर देखा तो वो भी टोकने लगे! हमेशा चहकने वाली तन्वी अचानक बदल गयी थी!

और फिर एकरात! उसको फिर से सपना आया! खलील उसके सामने खड़ा था! हाँ पोशाक बदल ली थी! अब उसकी पोशाक नीले रंग की थी! चमकदार नीला रंग! उसके हाथ में एक लाल रंग का थैला भी था! तन्वी उसको देख के खुश हुई! उसके पास आई और बोली, "आप कहाँ चले गए थे? मैं डर गयी थी?"

"डर गयीं थीं आप?" खलील ने पूछा,

"हाँ!" तन्वी बोली,

"किससे डर गयीं थी आप? ऐसा कौन है जो मेरे होते हुए आपको डरा सके?" खलील ने धीरे से कहा,

"आप कहाँ गए थे?" तन्वी ने अब बात बदली,

"आपके कपडे गीले थे ना, इसीलिए कपडे लेके आया हूँ आपके लिए, लीजिये कपडे बदल लीजिये" खलील तन्वी को कपडे देते हुए बोला,


   
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श्रीशः उपदंडक
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तन्वी ने थैला लिया और उसमे से कपडे निकाले! कपडे तन्वी के रिवाज के ही थे! लेकिन अब बदले कैसेखलील के सामने? उसने खलील को देखा, खलील मुस्कुराया! तन्वी खड़ी रही! वो भी खड़ा रहा!

"क्या हुआ तन्वी?" खलील ने पूछा,

"आपके सामने?" तन्वी ने कहा,

"ओह! हाँ, ठीक है कोई बात नहीं, मै घूम जाता हूँ" खलील ने कहा और घूम गया!

तन्वी ने कपडे बदल लिए और जब सामने देखा तो खलील पीछे पीठ करके खड़ा हुआ था! तन्वी को उसकी ये शराफत बहुत पसंद आई! उसके होंठों पर मुस्कराहट आ गयी!

"अब आप घूम सकते हैं" तन्वी ने कहा,

खलील घूमा और तन्वी को निहारता रह गया! तन्वी भी मुस्कुराई! खलील भी मुस्कुराया और बोला, " एक बात कहूँ अलहैदा तो ना लेंगी आप?"

"अलहैदा? मै समझी नहीं? तन्वी ने कहा,

"मतलब, अलग तो नहीं लेंगी आप, बुरा तो नहीं मानेंगी?' खलील ने स्पष्ट किया!

"नहीं मानूंगी बुरा, कहिये?" तन्वी ने कहा,

"आप इस पोशाक में मानिंद-ए-हूर लग रही हैं!" खलील ने कहा,

"क्या लग रही हूँ मैं, मुझे समझ नहीं आया, सरलता से समझाओ!" तन्वी ने पाँव पटकते हुए कहा,

"मेरा मतलब आप परी जैसी लग रही हैं!" खलील ने कहा!

"अच्छा! वो कैसे?" तन्वी ने जानबूझकर पूछा!

"आपकी भी नीली पोशाक और मेरी भी नीली पोशाक!" उसने हँसते हुए कहा!

"अच्छा!" तन्वी ने कहा!

और फिर से एक बार तन्वी की नींद खुल गयी! घडी देखी तो पौने दो बजे थे! तभी उसने अपने आपको देखा! उसके ऊपर वो पोशाक नहीं थी! वो फिर धम्म से बैठ गयी! और खलील के बारे में सोचने लगी! खो गयी उसके ख्यालों में!

तन्वी डूब चुकी थी खलील के प्यार में! खलील के प्रेम ने उसके होशोहवास पर कब्ज़ा कर लिया था! उसका अब इस दुनिया में मन नहीं लगता था! वो खलील के साथ ही रहना चाहती थी हमेशा के लिए! कास कि वो सपना ख़तम ही ना हो कभी! भले ही सारी उम्र गुजर जाए! ऐसे इसे ख्यालों में खोयी रहती! दफ्तर जाया करती तो वहाँ भी खलील का


   
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श्रीशः उपदंडक
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ख़याल ही रहता था उसको! उसके संगी-साथी उसको अच्छे नहीं लगते थे अब, ना उनसे बात करना ही! कट गयी थी दुनिया से तन्वी! ये हाल हो गया था उसका! और जिस रात सपना ना आता उस रात तड़प तड़प के काट देती सारी रात आँखों में! ऐसा ही हुआ, करीब पांच रातों तकसपना नहीं आया! खलील नहीं आया मिलने!

फिर एक रात! तन्वी कोसपना आया फिर! वहीं उसी जगह पर जहां खलील खड़ा था! हाँ, खलील की पोशाक बदल चुकी थी! अब सुनहरी हो गयी थी! चमकदार! और उससे उठती इत्र की मनमोहक सुगंध! खींचतीसी चली गयी तन्वी अपने आप खलील की तरफ! वो उसके पास गयी और शिकायत करने के अंदाज़ में बोली, "आप कहाँ चले जाते हैं?"

"मै? कहीं नहीं?" खलील ने कहा,

"तो फिर आज पांच दिन हो गए? कहाँ चले जाते हो?" तन्वी ने पूछा,

"कहीं नहीं जाता मै! मै तो हमेशा तुम्हारे साथ ही होता हूँ!" खलील ने कहा!

"नहीं! नहीं होते मेरे साथ आप" तन्वी ने कहा,

"ऐसा नहीं है, मै हमेशा तुम्हारे साथ ही रहता हूँ!" खलील ने कहा, "अच्छा, मैं कैसे मानूं ये बात? कोई सुबूत दीजिए आप!" उसने शिकायत के अंदाज़ में खलील से कहा!

"सुबूत?" खलील मुस्कुराया अब!

"हाँ सुबूत दो मुझे?" तन्वी ने कहा,

"ठीक है तन्वी! मै तुमको एक नहीं दो सुबूत दूंगा, कि मै आपके साथ हमेशा रहता हूँ या नहीं!" ये बात खलील ने मुस्कुराते हुए कही!

"ठीक है, अभी दीजिये!" तन्वी ने कहा,

"देता हूँ! एक अभी और एक मेरे जाने के बाद, तुम्हारे सिरहाने रखा होगा दूसरा सुबूत! तुम्हे याद है तुम्हारे दफ्तर का वो लड़का रितेश?" खलील ने कहा,

"हाँ, याद है" उसने कहा,

"वो तुमको तंग किया करता था ना? तुम चाहती थीं ना कि वो वहाँ से चला जाए?" खलील ने पूछा,

"हाँ! करता था, और वो चला भी गया" तन्वी ने कहा,

"वो मैंने निकाला, क्यूंकि तुम ऐसा ही चाहती थीं!" खलील ने कहा,

"आपने? आप कैसे जानते हो उस लड़के को?" तन्वी ने पूछा,

"मै सब कुछ जानता हूँ तन्वी!" खलील ने कहा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"आप कौन हो?" तन्वी ने पूछा,

"बता दूंगा, वक़्त आने पर बता दूंगा!" खलील ने कहा, तन्वी सोच में पड़ गयी!

"जामुन खाओगी? तुम्हारे लिए लाया हूँ, शर्तिया मीठे हैं!" खलील ने एक छोटा सा थैला निकाला और उसमे से बड़े बड़े जामुन निकाले और तन्वी की ओर बढ़ा दिए! तन्वी ने दो जामुन उठा लिए और खाने शुरू किये! जामुन शर्तिया मीठे ही थे! तन्वी ने जामुन में ऐसी मिठास कभी नहीं चखी थी!

"कहाँ से लाये हो?" तन्वी ने पूछा,

"अपने बाग से!" खलील ने जामुन खाते हुए ही कहा,

"कहाँ है आपका ये बाग?" तन्वी ने पूछा,

"अबरूफ में!" खलील ने बताया,

"अबरूफ?" ये कहाँ है? तन्वी ने पूछा,

"वो? वो वहाँ बहर पार!" उसने इशारा किया काफी दूर!

तन्वी ने फिर उधर देखा! खलील वहीं देखे जा रहा था, उसका हाथ वहाँ की तरफ ही था!

"अच्छा ठीक है!" तन्वी ने कहा,

"और खाओ?" खलील ने कहा,

"नहीं बस, पेट भर गया मेरा!" तन्वी ने कहा,

"बस? इतना ही खाती हो आप?" खलील ने पूछा,

"हाँ, बस इतना ही!" तन्वी ने हँसते हुए कहा,

हंसी हंसी में आँखे बंद हुई उसकी वहाँ और यहाँ आँखें खुल गयीं उसकी! हड़बड़ा के खड़ी हुई तन्वी!

घडी देखी! घड़ी में पौने दो बजे थे! फिर उसको 'दूसरा सुबूत' का ख़याल आया! उसने फ़ौरन लाइट जलाई! अचम्भा! अचम्भा! उसके सिरहाने एक गुलाब का फूल रखा था! काले रंग का! ओंस से नहाया हुआ! उसने वो उठाया! बहुत खुश हुई वो! नहीं जानती थी कि माजरा क्या है! कौन है ये खलील! वो तो बस प्रेम-जैय्या में स्स्वारथी! औरखे रहा था ये नैय्या वोखलील! अब तन्वी ने थूक गटका! थूक गटका तो उसको कुछ जामुन का सा स्वाद आया! वो भागी शीशे की तरफ! मुंह खोला! जीभ देखी! जीभ पर अभी जामुन खाने का जमुनिया रंग बाकी था!


   
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श्रीशः उपदंडक
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वो सोफे पर टिकती चली गयी! खलील! तुम मुझे सपने में ही क्यों मिलते हो? मुझसे सच में ही क्यूँ नहीं मिल जाते? ऐसे विचारों से घिर गयी तन्वी!

वो गुलाब का फूल लिए, अपने सीने पर रखे, लेटीरही! खो गयी खलील के ख्यालों में! खलील के बहरपार बाग में! ख्यालों में खोते खोते आँख लग गयी उसकी!

सुबह उठी तो गुलाब का फूल नहीं था वहाँ! उसने बहुत ढूँढा, लेकिन नहीं मिला! उसने शीशे में अपनी जीभ देखी, जीभ साफ़ थी उसकी!

अब बुरा हाल हो गया तन्वी का! दिमाग पर दिल का कब्ज़ा हो गया! सोच पर प्यार हावी हो गया! आँखों में खलील का नशा चढ़ गया! साँसों में खलील का नाम कैद हो गया! आते भी खलील और जाते भी खलील! जल बिन मछली जैसी हालत हो गयी उसकी! सोच में बैठी रहती! सोचती कि आज क्या पूछंगी उससे? वो क्या जवाब देगा? फिर क्या पूछंगी उससे? बस यही दौड़ता उसके ख्यालों में! जिंदगी में पहली बार मुहब्बत पनप रही थी उसके दिल में! एक अजीब सा एहसास उसके दिल में घुस चुका था उसके!

उस दिन अनमने मन से घर से निकली तन्वी दफ्तर के लिए! मुंह लटकाए हुए! परेशान सी जा पहुंची अपने दफ्तर! अपने केबिन में जाके बैठ गयी! यहाँ भी पीछा नहीं छोड़ा खलील के खयालों ने किसी तरह से आधा दिन बीता! आज खाना खाने का मन नहीं था उसका, फिर उसको खलील का कहा याद आया, 'बस इतना हीखाती हो तुम?' उसके होंठों पर मुस्कान आई और उसने मेज़ की दराज़ में रखा हुआ खाना निकल, और जैसे ही निकाला, वो चौंक पड़ी! खाने के साथ एक गुलाब का फूल भी था! पीले रंग का गुलाब! बड़ा सा गुलाब! ओंस में नहाया हआ शानदार गुलाब! उसने चौंक के अपने आसपास देखा, कोई ना था वहाँ! उसके होंठों पर फिर मुस्कराहट आई और उसने वोखाना खा लिया! और फूल, फूल उसने अपने बैग में रख लिया!

शाम को घर पहुंची, पहुँचते ही बैग खोला, बैग में वो गुलाब ज्यों का त्यों रखा था! उसने उसे उठाया और चूम लिया! उसने उसे निकाल कर अपनी मेज़ पर रख लिया! और तय कर लिया कि आज वोखलील से अपनी मुहब्बत का इज़हार कर ही देगी! चाहे कुछ भी हो!

रात कोसो गयी तन्वी, खाना खा के! रात को फिर सपना आया! वो फिर वहाँ पहुँच गयी थी! खलील इस बार सफेद पोशाक में था! शानदार पोशाक में साथ में एक थैला भी था! तन्वी अपलक देखती रही उसे! खलील पास आया उसके, बोला, "सुबूत मिल गए तुम्हे?"

तन्वी ने कुछ नहीं कहा, चुप रही! खलील ने पूछा," क्या बात है? क्या परेशानी है? कोई दिक्कत है? मुझे बताओ?" खलील उसके और पास आया!

"मै आपसे कुछ पूछना चाहती हूँ, पूछ सकती हूँ?" तन्वी ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हाँ! बेहिचक! पूछो!" खलील ने कहा,

"मुझे ऐसा क्यूँ लगता है कि....." रुक गयी कहते कहते तन्वी!

"कि?" खलील ने पूछा,

"कि...मुझे तुमसे प्यार हो गया है?" तन्वी ने कहा,

"प्यार? मुझसे?" खलील ने पूछा, तन्वी ने कोई जवाब नहीं दिया, बस हाँ में सर हिला दिया अपना!

"एक बात कहूँ तन्वी, कहूँ?" खलील ने पूछा,

"प्यार तो मुझे तुमसे उसी दिन हो गया था जब तुम घूमने गयी थीं वहाँ समंदर किनारे, बस तुमसे कह नहीं सका" खलील ने

कहा,

"क्यूँ नहीं कहा, मुझे इतना क्यूँ तड़पाया आपने?" तन्वी ने कहा,

"खलील अब अपने जिन्नाती रूपसे बाहर आया और एक साढ़े छह फीट का खूबसूरत खलील बन गया! उसने अपने दोनों हाथ आगे बढाए! तन्वी सम्मोहित सी उसकी बाजुओं में समा गयी!

"तन्वी, मेरी मुहब्बत कुबूल है ना तुम्हे?" खलील ने कहा,

"हाँ! लेकिन आपने ऐसे क्यूँ पूछा? तन्वी ने पूछा,

"वो इसलिए कि अगर कुबूल ना हो तो मैतुमको कभी परेशान नहीं करूंगा! लौट जाऊँगा अपने घर वापिस, कभी नहीं आऊंगा!" खलील ने कहा,

"ऐसा ना कहो आप" उसने कहा,

"तन्वी मै तुमको कुछ बताना चाहता हूँ!" उसने कहा,

"बताओ?" तन्वी ने कहा,

"तन्वी, मै इंसान नहीं हूँ मै एक जिन्न हँ!" उसने बताया!

बेचारी तन्वी! इंसानी मुहब्बत और जिन्नाती मुहब्बत में फर्क ना करसही! खलील का आकर्षण और जादू सर चढ़ के बोल रहा था उसके!

"तो क्या हुआ? मै प्यार करती हूँ तुमसे!" उसने कहा,

"मै भी तुमसे बेपनाह मुहब्बत करता हूँ तन्वी!" खलील ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"करते हो? तो फिर ऐसे क्यूँ मिलते हो?" उसने अपने कहने का मतलब समझा दिया खलील को! खलील समझ गया और फिर मुस्कुरा दिया!

"मै तुम्हारी राजी जानना चाहता था!" तन्वी ने कहा,

"अब तो जान गए हो ना?" तन्वी ने कहा,

"हाँ! जान गया हूँ! सुनो तन्वी! मुझे जब भी बुलाओगी, मै आ जाऊँगा, तुम्हारे पास!" खलील ने कहा,

"वायदा?" तन्वी ने पूछा,

"हम झूठा वायदा नहीं करते, वायदा!" खलील ने कहा!

फिर खलील ने तन्वी को अपने बाग़ से लाये अंजीर खिलाये! शरबती अंजीर! उसके बाद ऐसे ही बैठे रहे एक दूसरे को देखते रहे, निहारते रहे! फिर खलील ने तन्वी को अपनी ओर खींचा और उसके चहरे पर फूंक मार दी! तन्वी अचेत हो गयी!

तन्वी की आँख खुली! सुबह के सात बजे थे! आज पौने दो बजे वाला चक्कर समाप्त हो गया था! सपने में ही सही, उसने खलील से मुहब्बत का इज़हार कर दिया था और खलील ने तन्वी से!

मुहब्बत का अंकुर पनपने लगा था! उसको अब निकटता का उर्वरक मिलने लगा था! ज़ाहिर है, तन्वी-खलील की मुहब्बत का वो पौधा दरख्त बनने का सपना संजोने लगा था!

वक़्त बीतता रहा, खलील और तन्वी अब आमने सामने भी मिलने लगे! तन्वी घंटों तक खलील के आगोश में रहती! तन्वी ने अपनी सुध-बुध छोड़ दी थी! सब कुछ बस खलील को ही सौंप रखा था, और खलील ने अपनी महबूबा की खूबसूरती में चार चाँद लगा दिए थे! वो दिन-ब-दिन और खूबसूरत हुए जा रही थी, खलील उसका बेहद खयाल रखता, उसको महंगे-महंगे जेवरात से नवाज़ता, उम्दा कपडे ला कर देता, जिन्न जिस से मुहब्बत करता है, उसके ज़मीन-आसमान एक कर देता है! और फिर यहाँ तो तन्वी ने पहले इज़हार-ए-मुहब्बत किया था! खलील की जिन्नाती मुहब्बत में गोते लगाती थी तन्वी अब! कब सुबह हुई और कब शाम, सब भुला बैठी तन्वी!

तन्वी का बदला रूप देख कर घरवाले भी चकित थे, अकेले वक़्त काटना, खाना, नाखाना, कभी बता के घर से जाना, कभी बिन बताये घर से जाना, घर वालों से कट के रहना, अकेले बैठे हुए हँसते रहना, शर्मा जाना, ये कुछ ऐसी बातें थीं जिससे उसके घरवाले लगातार फिक्रमंद हुए जा रहे थे!

फिर एक दिन की बात है, एक बार दफ्तर से आते वक़्त एक फ़कीर एजाज़ की निगाह उस पर पड़ी, एजाज़ उसको देखकर ही जान गया कि इस लड़की पर कोई जिन्न रजू हो


   
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श्रीशः उपदंडक
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गया है! फकीर भी आलिम था, अब फकीर उसका पीछा करता, और उसके हाव-भाव पर आँखें गढ़ाए रखता!

और इसी तरह वो फ़क़ीर एजाज़ एक दिन तन्वी के घर ही आ पहुंचा! तन्वी उस वक़्त अपने दफ्तर में ही थी! फ़कीर किसी तरह तन्वी के पिता से मिलने में कामयाब हो ही गया! फ़कीर ने सिलसिलेवार सारी कहानी से उनको वाकिफ करवाया! फ़कीर ने जो बताया था उसे सुनकर तन्वी के पिता के होश फाख्ता हो गए! तन्वी के पिता का कभी भूत-प्रेत, जिन्न से कोई साबका नहीं पड़ा था, इसीलिए उनके होश उड़ जाना लाजमी ही था! तन्वी के पिता ने ये बात अपने घर में बताई, सुनके घर के परिजनों का भी हलक सूख गया! अब फ़कीर की मान-मुन्नत की कि वो ही इस मुसीबत से उनको निजात दिलवाए! फ़कीर यही तो चाहता था! उसने भी हाँ कर दी! जाते समय फकीर ने तन्वी के कमरे में एक इल्म किया, वहाँ दम किया हुआ पानी बिखेर दिया और तन्वी के बिस्तर पर भी कुछ छींटे छिड़क दिए और अगले दिन आने को कह दिया! हाँ जाने से पहले वो अपनी रिहाइश का पता तन्वी के घरवालों को दे गया था! वो दिल्ली के ही पास के गाँव में कहीं मुर्शिद था!

शाम को तन्वी अपने घर आई,सभी की नज़रें तन्वी के ऊपर गढ़ी हुई थीं! तन्वी अपने कमरे में गयी और कमरा अन्दर से बंद कर लिया! करीब पांच मिनट के बाद वो कमरे का दरवाज़ा गुस्से से खोलते हुए बाहर आई और बेहद गुस्सा हुई! उसकी त्योरियां चढ़ी हुई थी और नथुने गुस्से से फूले हुए थे! उसने छूटते ही अपने बाप से पूछा, "कौन आया था यहाँ? मेरे कमरे में?"

"कोई भी नहीं आया बेटी?" बाप ने कहा,

"झूठ! झूठ बोलते हो आप!" तन्वी ने गुस्से से अपने बाप को डांटा!

उसका ये रूप देखकर सभी घबरा गए आरसभी एक दूसरेसेसट के खड़े हो गए! लेकिन उनके मन ही मन में फकीर का बताया एक एक अल्फाज़ पत्थर की मानिंद पक्का हो गया!

"अब मैं देखती हूँ, किसकी इतनी हिम्मत हुई मेरे कमरे में घुसने की, मै सिखाती हूँ उसको सबक!" तन्वी ने जोर से कहा और पाँव पटकती हुई अपने कमरे में वापिस चली गयी!

उस रात तन्वी के परिजनों की नींद आँखों से कोसों दूर चली गयी! रात भर प्रार्थना-अर्चना करते रहे! किसी तरह सुबह हुई! दिनचर्या आरम्भ हुई! अन्दर पाने कमरे से तन्वी सजी-धजी बाहर निकली और बिना किसी को बताये घर से बाहर चली गयी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब घरवालों ने बेसब्री से उस फ़कीर का इंतज़ार किया! उसने दोपहर तक आने को कहा था, लेकिन वो नहीं आया! अब उनको और फिक्र हुई! तन्वी के एक भाई राकेश ने तब अपने पिता से ही उस फकीर के पास चलने को कहा! वो दोनों वहाँ से गाडी से फ़क़ीर की रिहाइश पर चले, घंटे भर में वहाँ पहुँच गए, फ़क़ीर के बारे में मालूमात कि तो एक शख्स ने फकीर एजाज़

मालूम किया तो उसको पता चला कि पिछली रात को फ़क़ीर एजाज़ के चिल्लाने की आवाजें आई थीं, वे लोग वहाँ से भागे भागे आये, उन्होंने देखा कि फकीर बारामदे में बेहोश पड़ा हुआ है, वो उसको तभी अस्पताल लेके गए, लेकिन आज सुबह ग्यारह बजे उसने दम तोड़ दिया, मौत की वजह अभी तक पता नहीं चल सकी है!

येसुनके तो उनको काठ मार गया! सांस गले में ही अटक गयी! भारी मन से घर वापिस आये वे दोनों, ऐसा तो कभी सोचा भी ना था, अब क्या किया जाए? किससे सलाह ली जाए? कौन मदद कर सकता है?

शाम को तन्वी घर आई, एक दम शांत! जैसे कुछ हुआ ही ना हो! घरवाले भी डरने लगे उस से अब! अब वो जो चाहे करती किसी की हिम्मत ही ना होती उसके सामने आने की!

तन्वी के भाई को उसके एक जानकार ने आगरे में किसी सिफली-बाबा के बारे में बताया, वो जिन्नाती मसलों का माहिर था! अब ये बात राकेश ने अपने पिताजी से कही, वे दोनों तैयार हो गए! जब वो घर से बाहर निकलने ही वाले थे तभी तन्वी वहाँ आ गयी! पहले हंसी और फिर बोली, "आगरा जारहे हो?"

ये सुनके उनके पाँव तले जमीन खिसक गयी!

"जाओ, जाओ, जहां मर्जी जाओ आप, मै नहीं रोकूँगी!" तन्वी ने कहा,

फिर वे दोनों वहाँ से सरपट भागे! पहुंचे आगरा, सारी बातें बता दीं! सिफली-बाबा ने कहा कि घबराएं नहीं, वो इसकोसुलटा लेगा, आज तक कोई जिन्न उस से बच नहीं पाया है! वो इसे भी पकड़ के कैद कर देगा! वो उसी दी उनके साथ वहाँ से दिल्ली के लिए रवाना हो गया! अब वो पहुंचे दिल्ली! घर आये! तन्वी तब तक दफ्तर से वापिस नहीं आई थी! सिफली-बाबा घर में ही बैठा था तन्वी के परिजनों और अपने दो चेलों के साथ!

शाम को तन्वी आई! उसने सिफली-बाबा को देखा और बोली, "जान की सलामती चाहते हो तो अभी यहाँ से रवानगी डाल

दो"


   
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श्रीशः उपदंडक
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सिफली-बाबा के होश उड़े! वो तो अपने साथ दो पहरेदार जिन्न भी लेकर आया था! और उसके पहरेदार जिन्न अब वहाँ से नदारद थे! खैर, बाबा ने इल्म फूंका! तन्वी पर कोई असर ना हुआ!

अब बाबा का घबराना लाजमी था!

बाबा ने तभी हाथ खड़े कर लिए और बताया कि वो जो जिन्न इसके साथ है वो बेहद ताक़तवर और शाही घराने से है, कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता, ये कह के बाबा वहाँ से अपने दोनों चेलों के साथ नौ दो ग्यारह हो गया!

थोडा और वक़्त बीता, तन्वी का हाल तन्वी ही जाने लेकिन घरवालों का हाल बुरा हो गया! अपने घर में किसी से बात ना करती, दफ्तरसे घर और घर से दफ्तर! भाइयों की चिंता बढ़ने परथी, जवान बहन का मामला था, ढील कैसे दी जा सकती थी?

इसी तरह ये मामला मेरे पास आया, मेरे पास ये मामला तन्वी के पिता के एक मित्र मेरे पास लेकर आये थे, मैं तीन वर्ष पहले उनके एक परिचित की प्रेत-बाधा के सिलसिले में सोहना गया था, उनको अचानक मेरा ख़याल आया और वो तन्वी के पिता को लेकर मेरे पास आ गए, सिलसिलेवार सारी कहानी बता दी, मामला बेहद संजीदा था, सिफली-बाबा ने कहा था कि वो एक शाही-जिन्न है, शाही-जिन्न कोखबीस भी नहीं डरा पाते, इसी कारण से वो किसी से नहीं दबता और ना डरता! मैंने उनकी सारी बातें तल्लीनतासे सुनी थीं, उसका निदान अवश्य ही ढूंढना था, अतः मैंने ये पूछकर कि तन्वी की छुट्टी किस दिन रहती है, उसी हिसाब से उनके घर आना तय कर लिया, और ये दिन था इतवार! इसके बाद वे लोग वहाँ से चले गए!

अब मुझसे शर्मा जी ने पूछा, जिज्ञासावश, "गुरु जी, ये शाही-जिन्न क्या होता है?"

"जिन्नातों में सबसे ऊंचा तबका!" मैंने बताया,

"आम जिन्नातों से उनकी ताक़त ज्यादा होती है क्या?" उन्होंने पूछा,

"हाँ, बहुत ज्यादा, जैसे हमारे यहाँ स्वयं-सिद्ध होते हैं, वैसे ये ही, आलिम और ताक़तवर होते हैं, लेकिन बड़े अचरज की बात है, एक शाही जिन्न और एक इंसानी लड़की?" मैंने कहा,

"तो ये जो खबीस हैं, ये नहीं पकड़ पाते इनको?" उन्होंने पूछा,

"खबीस उनके सामने खड़ा ही नहीं हो पायेगा, आपको याद होगा तन्वी के पिता जी ने बताया था कि सिफली-बाबा के दो पहरेदार जिन्न नदारद हो गए थे!" मैंने बताया,

"हाँ हाँ!" उन्होंने कहा,

"तो इसका मतलब अबकी जंग थोड़ी टेढ़ी है" शर्मा जी ना कहा,


   
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