ये गर्मियों की बात है, गर्मी ने कोलाहल मचा रखा था! मै और शर्मा जी तब उत्तराखंड में देहरादून आये हुए थे, यहाँ का मौसम काफी सुहावना लग रहा था दिल्ली की बनिस्बत, यहाँ मै अपने एक परिचित से मिलने आया हुआ था, ये मेरे परिचित पटना से आये थे! उन्होंने मुझे कहा कि पता नहीं अब कब मिलना हो पायेगा तो मै उनसे मिलने देहरादून पहुंचू! दिल्ली में वैसे भी भयानक गर्मी का माहौल था, मैंने सोचा, चलो मुलाक़ात भी हो जायेगी और दो-चार दिन थोडा इस गर्मी से भी निजात मिल जायेगी! सो हम वहाँ पहुँच चुके थे! वहाँ उनसे मुलाक़ात भी हो गयी थी तभी एक दिन शाम को शर्मा जी के फ़ोन की घंटी बजी, ये फ़ोन गंगापुर, जिला संवाई माधोपुर से आया था, ये शर्मा जी के एक परिचित कुंदन का था, कुंदन शर्मा जी का सहपाठी रह चुका था और कई बार मेरे पास भी आया था, आदमी मिलनसार और हंसमुख था! होटल-व्यवसायी था और अजमेर और जयपुर में उसके एक-दो होटल थे, कुंदन काफी घबराया हुआ था, उसने बताया कि उसकी बेटी नैंसी अपने कॉलेज की लड़कियों सहित जोधपुर गए थे घूमने, वो भी ४ दिनों के लिए, लेकिन पहुँचने के दो दिन बाद ही नैन्सी कि तबियत अचानक खराब हो गयी, बड़ी मुश्किल से उसको कुंदन उसको जोधपुर से वापिस घर लाया था वहाँ डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने उसको फ़ौरन अस्पताल में दाखिल करने कि सलाह दी, उन्होंने उसको अस्पताल में भर्ती का दिया, लेकिन बड़े ही विस्मयकारी तरीके से वो अगले दिन ठीक हो गयी! किसी भी प्रकार के रोग आदि का कोई लक्षण नहीं दिख रहा था! ये कोई २ महीने पहले कि बात है, वो कॉलेज जाने लगी, लेकिन कोई १७ दिनों के बाद उसकी हालत फिर पहले नैंसी हो गयी, उसको फिर से भर्ती कराया गया, लेकिन इस बार भी वो पहले कि तरह से अचानक ठीक हो गयी! बीमारी का कोई लक्षण नहीं दिखा! ऐसा उसके साथ लगातार हो रहा है! एक रात अस्पताल में रहती है, ठीक हो जाती है, १०-१५ दिनों के बाद फिर तबियत खराब हो जाती है! कुंदन काफी परेशान था, शर्मा जी ने उसको बताया कि हम लोग 3 दिनों के बाद वापिस दिल्ली आयेंगे, तब बात करें!
शर्मा जी जे फोन काटा और मुझे ये सब बताया, सुन के मेरे को अजीब सी बात लगी ये! मैंने कहा, "शर्मा जी बात अजीब तो है, लेकिन हुई है!"
"हाँ गुरु जी! अजीब सी बात है ये!" वो बोले,
"चलो दिल्ली पहुँच के बात करते हैं कुंदन से!" मैंने कहा,
"हाँ ये ही कहा मैंने उसको!" वो बोले,
उसके बाद मै और शर्मा जी ज़रा टहलने के लिए बाहर चले गए! तभी फिर से फोन बजा, ये फ़ोन कुंदन का ही था, उसने बताया कि उसकी लड़की नैंसी अभी नहाते-नहाते चिल्लाई और बेहोश हो गयी, वो लोग उसको हॉस्पिटल ले जा रहे हैं, ज़रा गुरु जी से पूछ लें कि ये क्या माजरा है? मैंने शर्मा जी से कहा, "कुंदन से कहो कि पहले उसको डॉक्टर के पास ले जाएँ फिर बाद में बात करे"
और शर्मा जी ने यही कहा!
हम दिल्ली आये, लेकिन ४ दिनों के बाद, इस बीच कुंदन के करीब ९ बार फ़ोन आये, उसकी बेटी अस्पताल जाते ही ठीक हो गयी थी! डॉक्टर्स भी बड़े विस्मित थे! कुंदन के बार बार आग्रह करने के पश्चात
मैंने वहाँ जाने की स्वीकृति दे दी! कुंदन तो स्वयं हमको लेने आने वाला था, लेकिन मैंने उसको मना कर दिया, मैंने कहा की हम स्वयं ही वहाँ आ जायेंगे!
हम कोई ५वें दिन गंगापुर पहुंच गए, रास्ते में बड़ी परेशानी हुई थी!! खैर, वहाँ कुंदन वैसे ही आँखें बिछाए बैठा था हम वहाँ पहुंचे, कुंदन से मिले, कुंदन ने पाँव पड़े और ऐसे मुस्कुराया जैसे की उसकी समस्त समस्या का अंत हो गया हो मुझे कुंदन का ये भाव अत्यंत सौहार्दपूर्ण और स्नेही लगा!
कुंदन ने फौरन ही अपने घर में फोन किया की गुरुजी आ गए हैं, आधे घंटे में पहुँच जायेंगे! और हम आधे घंटे से थोडा से विलम्ब के बाद वहाँ पहुंचे! कुंदन के दो कन्यायें ही थीं, पुत्र नहीं था उसका, लेकिन उसके लिए उसकी ये दो कन्याएं ही लड़के से अधिक थीं उसके लिए! मुझे ये बेहद अच्छा लगता है! कन्या इस श्रृष्टि की जनिका है! उसका सम्मान अति आवश्यक है!!
हम घर पहुंचे तो कुंदन ने घर में मिठाई आदि और तमाम तामझाम का प्रबंध कर रखा था! हमने चाय पी और थोड़ी सी मिठाई खायी, उसके बाद मै और शर्मा जी स्नानादि हेतु चले गए।
रात्रि समय कुंदन आया अपने साथ निरामिष भोजन लाया और २ मदिरा की बोतल! शर्मा जी ने उसका थोडा उपहास उड़ाया! चूंकि दोनों ही सहपाठी रहे थे तो बोलने का लहजा वही तू-तड़ाक था! परन्तु दोनों में स्नेह बहुत था! और इसी वजह से मै यहाँ आया था!
कुंदन जे सारा भोजन एक डोंगे में डाला उर तश्तरियां लगा दी, फिर, उसने गिलासों में मदिरा डाली, मैंने अपना गिलास उठा कर समस्त शक्तियों का धन्यवाद किया! और उसके बाद मै अपना गिलास गटक गया! फिर होनी शुरू हुई हमारी बातें!
मैंने कुंदन से पूछा, "कुंदन जी, एक बात बताओ, ये नैंसी आपकी बेटी कितने वर्ष की है?"
"जी २१ वर्ष की" उसने जवाब दिया
"अच्छा! तुमने बताया था की वो जब जोधपुर गयी थी, तब से ही उसके साथ ऐसा हो रहा है,यही न?"
"हाँ गुरु जी, ऐसा ही!" वो बोला,
"कभी पहले ऐसा हुआ हो उसके साथ?" मैंने पूछा,
"नहीं गुरु जी, कभी नहीं, एकदम फिट रही है वो, बुखार भी सालों में ही कभी हुआ होगा, वैसे कभी जुकाम भी नहीं!" उसने बताया,
"अच्छा! एक बात और बताओ, उसके साथ कितनी लड़कियां गयीं थीं?" मैंने सवाल किया,
"ये ६ लड़कियां थीं जी, यहीं आस-पड़ोस की ही हैं सारी" उसने बताया,
"किसी और लड़की के साथ ऐसा हुआ?" मैंने पूछा,
"नहीं गुरु जी किसी के साथ नहीं हुआ" उसने जवाब दिया,
"हम्म! एक बात और जब आप उसको यहाँ लेके आये, तो उसको बीमारी क्या थी?" मैंने पूछा,
"उसने कहा की एक चक्कर आया, और उलटी का मन हुआ और फिर नीचे गिर पड़ी, बेहोश हो गयी, और ये ही हो रहा है इसके साथ गुरु जी तबसे" उसने कहा!
"एक काम करना कुंदन जी, कल सुबह मुझको नैंसी से मिलवाना मै उसको जांचना चाहता हूँ" मैंने कहा,
"अभी बुलवाऊं गुरु जी?" उसने कहा,
"नहीं अभी नहीं, इस समय तो कतई नहीं" मैंने जवाब दिया,
"क्षमा कीजिये गुरु जी" कुंदन ने हाथ जोड़कर कहा,
उसके बाद हम खाने-पीने में व्यस्त रहे,समय हुआ तो हम सोने चले गए, अब जो करना-देखना था वो सुबह ही देखना था!
सुबह मेरी नींद ज़रा देर से खुली, ७ बज चुके थे, शर्मा जी भी सो रहे थे, मैंने उनको जगाया, उन्हें भी देर से जागने में थोड़ी हैरत हुई! उसके बाद नित्य-कर्मों से फारिग हुए और तब कुंदन ने चाय का प्रबंध किया, साथ में गरमा-गरम कचौड़ियाँ! नाश्ता करने के बाद मैंने कुंदन से कहा, "कुंदन जी? नैंसी कहाँ है?"
"जी वो अभी नीचे ही है, मै लाता हूँ उसको अभी" उसने जवाब दिया और नैंसी को लेने नीचे चला गया, थोड़ी देर बाद नैंसी आई, आधुनिक परिवेश में शरीर से थोड़ी भारी थी, उजला-वर्ण और सामान्य कद, लेकिन चेहरे पर सौंदर्य विद्यमान था! उसने आते हमको प्रणाम किया! मैंने उससे कहा, "आओ नैंसी! कैसी हो?"
"मै ठीक हूँ गुरु जी" उसने आँखें नीचे करते हुए कहा,
"अच्छा नैंसी, कहीं अभी जाना तो नहीं?" मैंने प्रश्न किया,
"जहीं गुरु जी, १० बजे जाना है मुझे" उसने बताया,
"ठीक है, तुम यहाँ बैठो ज़रा" मैंने उसको वहां एक कुर्सी की ओर इशारा करते हुए कहा,
वो बैठ गयी, तो मैंने प्रश्न पूछने शुरू किये, शर्मा जी और कुंदन को बाहर भेज दिया,
"नैन्सी? तुम जोधपुर गयीं थीं? मैंने पूछा,
"हाँ गुरु जी, कोई २ महीने पहले" उसने कहा,
"कितने लोग थे तुम?" मैंने पूछा,
"जी हम मुझे मिलकर ६ लड़कियां थीं" उसने बताया,
"कहाँ ठहरे थे वहाँ? मैंने पूछा,
"मेरी एक सहेली के मामा जी का घर है वहाँ, उनको पहले ही सूचित किया गया था, इसीलिए हम वहाँ ठहरे थे" उसने बताया,
"तुम्हारी तबियत वहां कब ख़राब हुई नैंसी?" मैंने पूछा,
"जी हम वहां मेहरानगढ़ गए थे, वहाँ से जब वापिस आये रात को तो मेरा बदन बेहद गरम था, मैंने अपने साथ लायी एक टेबलेट खा ली थी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ,रात होते-होते मेरी तबियत और बिगड़ गयी, कोई १० बजे मुझे बेहोशी सी हुई, और उसके बाद मेरी आँख यहीं गंगापुर में खुली, मेरे सामने मम्मी और पापा खड़े थे"
"अच्छा नैंसी, मुझे पता चला कि तुम यहाँ भी कभी कभी बीमार हो जाती हो? कैसा महसूस होता है?" मैंने प्रश्न किया,
"गुरुजी, कभी-कभी मेरी आँखों के सामने अँधेरा आ जाता है, बदन गरम होता है और बेहोशी आ जाती है, लेकिन अस्पताल जाने तक मैं स्वतः ही ठीक हो जाती हूँ, डॉक्टर्स हैरान हैं" उसने जवाब दिया,
"कोई बात नहीं नैंसी, तुम एक काम करना, नहाने के पश्चात जो पानी बचता है, वो उसी बाल्टी में रहने देना, मै देख लूँगा कि क्या परेशानी है तुम्हारे साथ!" मैंने उसको कहा,
"ठीक है गुरुजी" उसने कहा और वापिस चली गयी,
अब शर्मा जी और कुंदन वहाँ आये, मैंने कुंदन को नैंसी से की हुई बातें बता दीं और नहाने के बाद का पानी रखना है, वो भी बता दिया! और कुंदन से मैंने कहा कि नैन्सी के नहाने के बाद कोई और दूसरा वहाँ नहाने न जाए!
आधे घंटे बाद मेरे पास कुंदन आया और बताया की नैन्सी नहाने के बाद बचा हुआ पानी एक बाल्टी में छोड़ गयी है, मै उठा एक मंत्र पढ़ा और अपनी आँखों पर मला, उसके बाद गुसलखाने में गया, मैंने पानी को एक अंजुल में भर और फिर पानी पर अभिमन्त्रण किया, पानी एकदम काला हो गया। इसका अर्थ था, की नैन्सी किसी रूहानी ताक़त का शिकार हो गयी है! लेकिन ये बात मैंने शर्मा जी को तो कही, कुंदन को नहीं, मै वापिस ऊपर वाले कमरे में आया, और शर्मा जी को भी बुलाया, मैंने शर्मा जी से कहा, "नैंसी किसी लपेट का शिकार हो गयी है, लेकिन ये लपेट कहाँ से लगी है, किसने लगाई है, ये नैंसी को दुबारा देखने से ही पता चलेगा आप एक काम करें, कुंदन से पूछे किनैंसी कब तक घर वापिस आएगी?"
"ठीक है गुरु जी, मै अभी पूछता हूँ कुंदन से" वो बोले और नीचे चले गए, मैंने अपने आवश्यक काम कि कुछ वस्तुएं अपने बैग से निकाल कर बाहर रख ली तब तक, शर्मा जी थोड़ी देर बाद वापिस ऊपर आये
और बोले, "नैंसी अपनी एक सहेली के साथ कुछ खरीदने गयी है, डेढ़-दो घंटों में वापिस आ जायेगी गुरु जी"
"ठीक है, तब तक हम कुछ तैयारी कर लेते हैं शर्मा जी, आप कुंदन से कह के एक रोटी बनवाएं, एक तरफ से सिकी हुई और दूसरी तरफ से कच्ची" मैंने कहा,
"अभी कह देता हूँ" उन्होंने कहा और कुंदन को ऊपर बुला कर वैसी एक रोटी तैयार करने को कह दिया, मै अपनी तैयारियों में लग गया,
ढाई घंटे बाद नैंसी आपिस आई, उसका चेहरा मुरझाया हुआ था, उसकी तबियत फिर से खराब हो रही थी, मुझ तक ऐसी खबर आई और मै नीचे आया नैंसी को देखने, नैन्सी अपने कमरे में अपने बिस्तर पर बेसुध पड़ी थी, मैंने उसको गौर से देखा, उसकी पाँव की छोटी ऊँगली फड़क रही थी, मैंने वो ऊँगली पकड़ी तो नैंसी उठ के बैठ गयी!
मैंने कहा, "नैन्सी?"
उसने कोई जवाब नहीं दिया, बस मुझे, शर्मा जी को और अपने माँ-बाप को अनजानी निगाह से देखती रही और अपने सीधे हाथ से अपना घुटना खुजलाती रही!
मैंने फिर कहा, "नैंसी?"
उसने मेरी तरफ देखा, बिना पलक मारे मुझे करीब ५ मिनट तक देखती रही, मै भी उसको घूर घूर के देखता रहा!
मैंने फिर दुबारा कहा "नैंसी?"
नैंसी ने कोई जवाब नहीं दिया, वो अपने घुटना खुजलाती रही, मैंने उसका वो हाथ पकड़ लिया, लेकिन उसने एक झटके से वो हाथ मुझसे छुड़ा लिया अर्थात उसके ऊपर जो भी था वो नहीं चाहता था की मै उसको स्पर्श करु!
तब मैंने उसके माँ-बाप से कहा की इसके दोनों हाथ पकड़ लें, और शर्मा जी इसकी टांगें पकड़ लें, उन्होंने ऐसा करना चाहा तो वो बिस्तर पर खड़ी हो गयी, अपनी गर्दन उलटे कंधे पर रख ली और अपने सीधे हाथ की ऊँगली से 'ना-जा' करने के इशारे करने लगी! मैंने तब एक मंत्र जागृत किया, उसको अपने हाथ पर पढ़कर मै आगे बढ़ा, मैंने उसका हाथ पकड़ा, वो नीचे बैठी, चिल्लाते हुए! जैसे मैंने उसका हाथ मरोड़ दिया हो!
मैंने कहा, "नैंसी?"
"कौन नैंसी, कौन नैंसी? कोई नैंसी नहीं है यहाँ!" उसके गले से एक मर्दाना आवाज़ आई! ये आवाज़ सुनकर कुंदन और उसकी बीवी डरगए, उसकी बीवी के आंसू निकल पड़े, मैंने तब शर्मा जी से कह के उनको बाहर भेज दिया और दरवाज़ा अन्दर से बंद कर लिया!
"तो फिर तू कौन है? ये तो बता?" मैंने हँसते हुए पूछा, मैंने उसका हाथ अभी भी थामे हुआ था!
"तू अपना नाम बता पहले, फिर मै बताऊंगा, अपना नाम!" उसने कहा!
"मेरा नाम सुनेगा तो गश आ जाएगा तुझे अब बता अपना नाम!" मैंने कहा,
"तेरे जैसे तो मै रोज देखता हूँ मंडी में!" उसने हँसते हुए कहा!
"मंडी में? कौन सी मंडी में? चल ये ही बता!" मैंने पूछा
"मै नहीं बताऊंगा! तूने तो कुछ बताया ही नहीं मुझे, मुझसे ही सवाल कर रहा है, भला ये भी कोई बात है?" उसने कहा!
उसका ऐसा जवाब सुनकर मेरी हंसी छूट पड़ी!
"अबे जो मै पूछ रहा हूँ, तू उसका जवाब तो दे? फिर मै भी अपना परिचय दे दूंगा तुझे!" मैंने कहा,
"अच्छा, एक काम कर, मेरा हाथ छोड़ पहले, दम घुट रहा है मेरा" उसने कहा,
मैंने हाथ छोड़ दिया! और उससे बोला, "हाँ अब बता, कौन है तू? कहाँ से आया है? कौन सी मंडी?"
"देखो जी, हम हैं राजा ठाकुर! हम जोधपुर के हैं! सोजाती मंडी में रिहाइश है हमारी!" उसने बताया और हंस पड़ा!
"अच्छा राजा साहब! ओह....राजा ठाकुर साहब! जोधपुर वाले, है ना?" मैंने कहा!
उसने अपनी गर्दन ऊपर से नीचे तक हिलाई कई बार!
"अच्छा ठाकुर साहब! इस बेचारी लड़की को कैसे पकड़ लिया आपने?" मैंने वहीं बिस्तर पर बैठते हुए पूछा!
"ओ जी बात ये है, ये लड़की मुझे भा गयी है!" उसने कहा!
"अरे! आप तो राजा साहब हैं! और ये बेचारी गरीब-गुरबा लड़की! ये कैसा मिलान?" मैंने भी चुटकी ली!
"चुप करो तुम ये बात हमको नहीं पसंद! हाँ, अब ना कहना ऐसा दुबारा!" उसने मुझे थप्पड़ दिखाते हुए कहा!
"अच्छा! अच्छा राजा साहब! नहीं कहूँगा ऐसा दुबारा क्षमा कर दीजिये!" मैंने कहा!
"क्षमा कर दिया भाई हमने आपको! यार! आपसे बात करके दिलखुश हो गया हमारा तो!" उसने मेरे सर पर हाथ फेरकर कहा!
"जी धन्यवाद राजा साहब!" मैंने भी मजाक से कहा!
"अच्छा एक बात तो बताओ राजा साहब? इस लड़की को आप बीमार करते हो, फिर अस्पताल जाकर ये ठीक हो जाती है,
बिलकुल ठीक! वो कैसे?" मैंने पूछा
वो थोडा चुप हआ और मुझे बोला, "सबके सामने नहीं बताऊंगा! पहले इनको यहाँ से भेजो" उसने शर्मा जी और कुंदन की तरफ इशारे करके कहा, मैंने दोनों को हँसते हुए बाहर भेज दिया!
"हाँ राजा साहब अब बताइये आप!" मैंने कहा,
"यार बात ऐसी है, कि मेरी मौत बिजली के करंट से हुई थी, और जब अस्पताल में दाखिल किया गया था मुझे तो मै तो मर ही चुका था, लेकिन ये डॉक्टर लोग मेरे मुंह में ना जाने क्या क्या घुसेड़े जा रहे थे। मैंने देखा तो मुझे बिजली का करंट याद आ गया! मै वहाँ से भाग गया! अब जब भी ये साले इसको वहाँ ले जाते हैं तो मुझे डर लग जाता है, मै भाग जाता हूँ! समझे आप?" उसने अपने दोनों हाथों से ताल ठोक कर ऐसा कहा!
"ओह! अच्छा! तो ये बात है राजा साहब!" मैंजे कहा!
"हाँ जी, ये ही बात है! लेकिन किसी को बताना नहीं" उसने धीरे से कहा!
"अच्छा राजा साहब, एक बात पूछं?" मैंने कहा,
"हाँ! हाँ! यार ज़रूर पूछिए!" उसने हंस के कहा!
"आप इस लड़की को कब छोड़ेंगे?" मैंने कहा,
"इसको नहीं छोडूंगा मै अब! साली की काया तो देख! इसके होंठ, आँखें और तो...वाह वाह! और तू कह रहा है इसको कब छोड़ेंगे!" ऐसा कह के वो जोर से हंसा!
"अच्छा! तो आपका कहना है कि आप इसको नहीं छोड़ेंगे, यही ना? मै खड़ा हुआ और ऐसा बोला!
"हाँ यार, अब बार क्यूँ पूछता है?" उसने कहा,
"भाई राजा साहब, छोड़ना तो पड़ेगा, पक्का छोड़ना पड़ेगा!" मैंने कहा!
"देख यार, अब ज़बरदस्ती मत कर मेरे साथ, एक काम कर तू भी मजे ले ले इसके साथ, क्या फर्क पड़ता है इसको!" उसने एक आँख बंद करके कहा!
ऐसा बोल के वो उठा और नैंसी का टॉप ऊपर कर दिया और बोला, "ये देखा! आया ना मजा!"
मैंने नैंसी के दोनों हाथ पकडे और नीचे कर दिए! और मै बोला, "अरे राजा साहब, ये बातें तो बाद कि हैं, और वैसे भी ये आपको पसंद है! ऐसा अच्छा थोड़े ही ना लगता है!"
"हमारे साथ रहोगे तो ऐसे ही मजे करोगे भाई!" उसने हंसके कहा!
"देखो राजा साहब! बस अब बहुत हुआ ये मजाक!" मैंने कहा,
"अबे हम मजाक कर रहे है?? " उसने गुस्से से कहा,
मैंने शर्मा जी और कुंदन को अन्दर बुला लिया तो फिर मैंने कहा, "सुन ओ राजा! अब मै आखिरी बार पूछ रहा हूँ, कब विदाई लेगा यहाँ से?"
"ये क्या बदतमीजी है?" वो चिल्लाया!
"तेरे को मैंने बहुत वक़्त दे दिया राजा जी! अब तेरी ऐसी भजिया बनाऊंगा कि तू इसको तो क्या किसी को भी देखने लायक जहीं रहेगा" मैंने उससे कहा!
"ये ही है दोस्ती का सिला?" उसने धीमे से कहा!
"कैसी दोस्ती? मैंने तेरे को कहा कि तू जा अब यहाँ से, लेकिन तू अभी तक नहीं मान रहा है,अब मेरी मजबूरी है डंडा इस्तेमाल करने की!" मैंने ऐसा कह के वहाँ रखा एक लकड़ी का कोई औज़ार सा था गणित का, उठा लिया!
"तुझे क्या मिलेगा मुझे यहाँ से भगा के यार?" उसने कहा,
"मैंने इस लड़की के पिता को वचन दिया है, इसलिए तेरे को भगाने की ठानी है!" मैंने कहा,
"चल थोडा बहुत तो मै भी लड़ना जानता हूँ, आजा कर ले दो दो हाथ!" उसने अपने दोनों हाथों को मल कर कहा!
तब मैंने अपने एक खबीस को हाज़िर किया! खबीस को देखते ही उसको कंपकंपी छूट गयी! दहाड़ मार के रोने लगा!
"यार, ये मेरी हड्डियां तोड़ देगा, मुझे जान से मार देगा, इसको भगा यहाँ से, भगा भाई!" उसने रोते रोते कहा और नीचे उतर के मुझसे लिपट गया!
अब मैंने खबीस को वापिस भेज दिया! और नैंसी को अपने से अलग किया! उसने मुझसे हटते ही चारों तरफ देखा, तांका झाँका! फिर बिस्तर पर बैठ गया! मैंने उससे कहा, "सुन राजा, एक काम कर, तू इस में से निकल जा बाहर और इस कुर्सी पर बैठ!" मैंने वहाँ एक कुर्सी पर पड़ी किताबें हटायीं और उसको इशारा किया यहाँ आने का!
उसने गर्दन हिलाई कि ठीक है! वो उसमे से निकला और सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गया! नैंसी ने एक झटका खाया और बेहोश हो गयी! राजा का दरम्याना क़द, सफेद कमीज़ और काली पैन्ट! मै उसके सामने जाके बैठा!
"मारोगे तो नहीं ना?" उसने कहा,
"नहीं मारूंगा! अच्छा एक बात तो बता, तुझे निबटे हुए दिन कितने हुए?" मैंने पूछा,
"१३ साल हो गए जी" उसने बताया
"कितनी उम्र थी तब तेरी?" मैंने पूछा,
"२२ साल" वो बोला,
"ब्याह हुआ था क्या?" मैंने पूछा,
"नहीं जी" उसने जवाब दिया,
"और तुझे कितनी भायीं हैं ऐसी लडकियां?" मैंने हंस के पूछा!
"अभी तो जी ये ही है" उसने कहा,
"है नहीं थी, समझा?" मैंने कहा,
"लूट लिया आपने तो मेरा सब-कुछ, भाई लूट लिया!" उसने अपने सर पर हाथ मार के कहा!
"इससे पहले कौन कौन थीं? मैंने मजाक किया!
"यार, एक जयपुर में थी, 3 जोधपुर में ही थीं." उसने बताया!
"फिर क्या हुआ? मार भगाया तेरे को?" मैंने पूछा,
"वो मुझे पकड़ने वाले थे, मै खुद ही भाग गया!" उसने हंस के कहा!
"आजकल कहाँ भटक रहा है तू?" मैंने पूछा,
"आजकल अपना डेरा जोधपुर मंडी में है!" उसने बताया!
"और अब कहाँ जाएगा?" मैंने पूछा,
"कहाँ जाऊँगा यार? पता नहीं कहीं वहाँ भी कब्ज़ा हो गया हो! मै तो बेघर हो गया यार!" उसने रोती सी सूरत बनायी!
फिर एकदम तपाक से बोला, "यार, मुझे रख ले अपने साथ, मजा आ जाएगा! तुझे भी और मुझे भी!"
"तू मेरे किसी काम नहीं है, तू ठहरा ठरकी! डरपोक!" मैंने कहा!
"लड़ाई-वगैरह मुझे पसंद नहीं है यार किसी के ऊपर 'चढ़वाना हो तो बता, लेकिन हो कोई लड़की ही! काम निकालो अपना-अपना!" उसने ठहाका लगाया!
"मै ऐसे काम नहीं करता राजा यार" मैंने जवाब दिया!
"भाई मेरा काम करवा दे एक बार बस!" उसने कहा!
"नहीं यार!" मैंने कहा,
"हाँ यार! एक बार एक बार करा दे भाई! करा दे! मै तेरे पाँव पडूं" उसने कहा और मेरे पाँव पकड़ लिए!
मैंने उसको उठाया और फिरसे कुर्सी पर बिठा दिया! वो धीरे से आगे आया और मेरे कान में बोला, "इनको बाहर भेज दे, हम तो काम करें अपना-अपना! देख कैसी मस्त लग रही है कूल्डी!!"
"सुन अबकि अगर तूने इसका जिक्र भी किया जा तो तुझे ऐसी जगह बांधूंगा कि तेरा सत्यानाश हो जाएगा!"
"ओ ना यार! गुस्सा ना कर भाई!" उसने अपने हाथ जोड़कर कहा,
"अगर मै तेरे को मुक्त कर दूँ तो??" मैंने कहा,
"कैसे मुक्त भाई? समझ ना आयो?"
"तू कब तक इस प्रेत योनी में भटकता रहेगा? कभी किसी गलत आदमी के हाथ पड़ गया तो पालतू कुत्ता बना लेगा तेरे को, और फिर ना जाने किस किस के हाथों में पड़ेगा! समझा?"
"हाँ, समझ गया!" वो बोला,
"तो फिर क्या सोचा?" मैंने कहा,
"अब तूही देख ले क्या करना है, जिलाता है जिला, मारता है मार!" उसने कहा!
"ठीक है, एक बात बता, कबसे खाना नहीं खाया तूने?" मैंने पूछा,
"किसी ने नहीं खिलाया यार आज तलक" उसने बताया!
"चल मै तुझे खाना खिलाता हूँ, शराब पीता है?" मैंने पूछा!
"हाँ! पीता हूँ मै शराब! यार तेरा भला होगा!" उसने कहा!
तब मैंने शर्मा जी और कुंदन को वहां से हटाया, और कहा कि थोडा निरामिष भोजन का प्रबंध करो और ऊपर कमरे में ले जाओ! निरामिष भोजन रात को लाया गया था, वही लेके कुंदन ऊपर चला गया शर्मा जी के साथ! तब मैंने राजा को भी कहा कि वो ऊपर जाए, और जब तक मै ना कहूँ किसी भी वस्तु को हाथ ना लगाये उसने हाथ जोड़ के सहमति जताई! मैंने नैंसी के माँ-बाप को नैंसी के कमरे में बुलाया,और नैंसी पर एक मंत्र-प्रयोग किया! नैंसी को होश आ गया! मैंने उनसे कहा कि इसको नहलवा दीजिये और उसके बाद मै ऊपर कमरे में आ गया!
वहाँ शर्मा जी ने खाना एक थाली में रखा, राजा हवा में लटका हुआ था, मैंने उसको नीचे का इशारा किया! वो नीचे आया! मैंने एक मंत्र से शर्मा जी कि आँखों पर प्रयोग किया! अब वो भी उस राजा को देख सकते थे! शर्मा जी ने कहा, "राजा यार,ये भूतप्रे त हमारी सेवा करते हैं, और तू देख हम तेरी सेवा कर रहे हैं!"
"आपका शुक्रिया यार, मै तो आज पेट भर केखाऊंगा!" उसने कहा!
मैंने उसको खाने का इशारा किया! वो बेचारा एक भूखे बच्चे की तरह खाने पर टूट के पड़ा! तब शर्मा जी ने उसको एक गिलास शराब का भर कर दिया! उसने एक ही बार में सारा गिलास गटक लिया! और खाने में मस्त हो गया!
नैंसी ठीक हो गयी थी! मै और शर्मा जी कुंदन से विदा लेकर वापिस दिल्ली आ गए। मै राजा को भी अपने साथ ले आया था! वो मेरे साथ ११ दिनों तक रहा, मैंने उसको खूब भोजन कराया और मदिरापान कराया! फिर वो नियत तिथि आ गयी! मैंने राजा की प्रेतात्मा को शुद्ध किया और करीब २ घंटे की कड़ी क्रिया के पश्चात मैंने राजा की भटकती प्रेतात्मा को मुक्त कर दिया! अपनी विदाई से पहले वो मेरे गले मिला, शर्मा जी से मिला, प्रणाम किया और लोप हो गया!
एक भटकती आत्मा को मुक्ति मिल चुकी थी!
उसका प्रेत-योनि भोग समाप्त हो गया था! मैंने इस धरा पर अपना कार्य संपन्न कर दिया था शेष रचियता के हाथ में था!
------------------------------------ साधुवाद!-------------------------------------
