भाग चले थे, और एक जगह बाबा को ले जाते समय, नकुल गिर पड़ा! उसको उठाया, तो बाबा को भी होश आ गया! शांत! बेसुध! अनजान से! खूब झिंझोड़ा उन्हें! नहीं बोले कुछ! आखिर में, हम ले चले उन्हें धकियाते धकियाते! मित्रगण! सुबह कोई छह बजे हम नदी के किनारे चलते चलते, पहुंचे गाड़ी तक, सामान बटोरा हमने, बाबा को लिटाया पीछे खेस लपेटकर!
और निकल पड़े वहाँ से! और इस तरह से, हमारी यात्रा का अंत हुआ! बाबा, उनकी जुबां चली गयी, किसी को नहीं पहचानते,शरीर पर निशान हैं, जलने के, सफेद सफेद, शायद सुनाई भी नहीं देता, या फिर कोई प्रतिक्रिया सम्भव नहीं उनके शरीर से! आज, एक जिंदा लाश की तरह से जीवित हैं! बहुत बुरा हश्र हुआ बाबा का......हाँ, उनका वो बैग, मैं दे आया था उन्ही को वापिस! अब वे जानें या उनका पुत्र! मित्रगण! मुझे हैरत हई थी! कि, उलुयौरमा ने, नाम याद रखा था शम्पायन का! आज मैं उस स्थान को, शम्पायन-स्थान बोलता हूँ! ये उन तीनों की ही दया थी, कि हम आज तक जीवित हैं! नहीं तो उस
रात्रि, क्या होता, मालूम है अच्छी तरह! हाँ, किम्पुरुष! ये देख लिए थे! और इच्छा नहीं। इतना अवश्य हुआ, कि इस घटना के बाद, मेरा सम्पर्क एक तिब्बती लामा से हआ, उनसे ही मेरा सम्पर्क एक किरात महिला, येसिन से हआ, आज मित्र हैं मेरी! अच्छी मित्र हैं। उन्होंने मुझे ऐसी ऐसी जानकारियां उपलब्ध करवायीं, कि बदन जैसे जम जाता है सोच सोच कर! किम्पुरुष! अस्तित्त्व है उनका! वे मात्र किवदंती नहीं!
--------------------------------साधुवाद!---------------------------------
