वर्ष २००९ रुड़की की ...
 
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वर्ष २००९ रुड़की की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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नहीं डिग सकता! मै अपनी क्रिया में तत्पर रहूँगा! ऐसा सोच फिर से बैठ गया दिल्लू साधना में! मंत्र पढता रहा! मात्र पांच सौ तीन मंत्र रह गए थे! मात्र पांच सौ! उसके बाद उसका जीवन साकार!

वो लड़की फिर आगे बढ़ी!

दिल्लू ने उसे देखा! और चौंक गया! किसी भूत-प्रेत आदि की परछाईं नहीं होती लेकिन इस लड़की की तो परछाईं है? ये कैसी माया है? ये क्या हो रहा है? दिल्लू ने कमिया को देखा! आज चालीस दिनों से अधिक हो गए थे कमिया को देखे हुए! माया ही सही, कम से कम कमिया की सूरत तो दिखाई दी ही! उसने फिर से मंत्र पढ़े और क्रिया आगे बढ़ाई!

“दिल्लू?” उस लड़की ने कहा,

“कौन है तू?” दिल्लू ने त्रिशूल उठा के पूछा,

“मुझे नहीं पहचाना तूने?” उस लड़की ने कहा,

“कौन है तू?” दिल्लू ने पूछा,

“मै कमिया, तेरी कमिया!” उस लड़की ने देखा!

“नहीं, ये नहीं हो सकता!” दिल्लू चिल्लाया!

“दिल्लू? तूने मेरे लिए साधना की, मुझे पाने के लिए?” उस लड़की ने कहा,

दिल्लू चुप रहा!

“दिल्लू, मैंने तुझसे कितनी बार पूछा, मुझे बता तो सही कौन है वो? तूने कभी न बताया!” उस लड़की ने कहा,

“भाग जा यहाँ से” दिल्लू ने कहा,

“अपनी कमिया को भगा रहा है?” उस लड़की ने कहा,

दिल्लू चुप!

“दिल्लू? मुझे भूत-प्रेत समझ रहा है तू? तू देख मेरी परछाईं? देख?” इतना कह वो लड़की आगे आई, और सच में उसकी परछाईं थी ज़मीन पर!

अब दिल्लू चकित! ये कैसी माया?


   
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श्रीशः उपदंडक
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“दिल्लू मेरा यकीन कर, मै कमिया ही हूँ! तेरी कमिया जिसके लिए तूने दो सालों तक इंतज़ार किया, वही कमिया!” उस लड़की ने कहा,

दिल्लू दुविधा में फंस गया बेचारा! ये यदि भूत-प्रेत है तो परछाईं क्यूँ है इसकी? और ये अलख के पास भी खड़ी है? मसला क्या है? ऐसा पिछली रातों में तो नहीं हुआ? आज क्या हो रहा है? अरे हाँ! बाबा ने बताया था की एक झूठी यक्षिणी भी आएगी! ये वही है! निश्चित वही है!

“ओ झूठी यक्षिणी, चल भाग यहाँ से, मै तेरे जाल में फंसे वाला नहीं हूँ!” दिल्लू चिल्लाया!

“झूठी यक्षिणी? ये क्या कह रहा है दिल्लू तू? मै कमिया हूँ, आ मुझे छू के तो देख?” ऐसा कह वो लड़की और आगे आ गयी!

“ओ लड़की, भाग जा यहाँ से, तू मेरी साधना भंग करने आई है?” दिल्लू चिल्लाया,

“भंग करने नहीं तुझसे मिलने आई हूँ इस वक़्त, घर में सब सोये हैं, तू मुझे नज़र नहीं आया तो मै बेचैन हो गयी, आज मुझे सपना आया तेरा की तू मेरे लिए साधना कर रहा ही शिवाने में, मै आ गयी घर से भाग कर तेरे लिए दिल्लू!” उस लड़की ने कहा!

अब फंसा दुविधा में दिल्लू! अब क्या करे? क्यूँ न जांच के ही देख ले?

“तू कमिया है?” दिल्लू ने पूछा,

“हाँ मै तेरी कमिया हूँ दिल्लू!” उस लड़की ने कहा,

“अच्छा! इधर आ मेरे सामने!” दिल्लू ने कहा,

वो लड़की आगे बढ़ी!

दिल्लू ने एक अंगार उठाया और बोला, “ले, ये अंगार अपने हाथ पर रख!”

“मै जल जाउंगी दिल्लू” उसने कहा,

“हाँ! माया है तो मना तो करेगी ही!” दिल्लू हंसा!

“मै जल जाउंगी दिल्लू, मै तुझे कैसे बताऊँ?” उस लड़की ने कहा,

“इंसानी देह होगी तो जलेगी! तू कौन सी इंसान है?” दिल्लू ने कहा,

“मै कमिया हूँ दिल्लू तेरी कमिया, मेरा यकीन कर” अब रोई वो लड़की!


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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उसके आंसूं बहने लगे झर झर! चेहरे पर काजल फ़ैल गया उसके!

दिल्लू ने देखा तो झटका खाया! माया के आसूं? ये कौन सी दुर्लभ माया है? ओह! ये कैसी परीक्षा है?

“दिल्लू, मेरा यकीन कर, मै कमिया हूँ” उसने रोते रोते कहा,

अब दिल्लू का दिमाग फंस गया इसमें! किसका यकीन करे और किसका नहीं? ये माया है या कमिया? मै क्या करूँ? क्या करूँ जिस से सच्चाई मालूम हो सके!

“तू कमिया है?” दिल्लू ने फिर पूछा,

“हाँ, तेरी कमिया दिल्लू!” उस लड़की ने कहा,

“ठीक है फिर! एक काम कर अपने बाल तोड़ के दे मुझे, मै आग में डाल के देखूंगा!” दिल्लू ने मुस्कुराते हुए कहा!

“फिर तुझे यकीन हो जाएगा दिल्लू?” उस लड़की ने कहा,

“बकवास न कर माया, जैसा कहा वैसा कर!” दिल्लू ने कहा,

फिर मित्रगण! उस लड़की ने अपने बालों के एक लट तोड़ के दे दी दिल्लू को!

“ला इधर! अब पता चलेगी तेरी सच्चाई!” दिल्लू ने उस लड़की के हाथ से बालों की वो लट छीनते हुए कहा!

और फिर दिल्लू ने वो लट अलख में डाल दी! आश्चर्य हुआ! बाल ऐसे ही जले जैसे की इंसानी बाल!

दिल्लू ने एक नज़र जलते बालों पर डाली और एक नज़र उस लड़की की तरफ जो सिसकियाँ लिए जा रही थी!

दिल्लू के होश उड़ गए! दिमाग सुन्न हो गया! ये कैसे संभव है? माया के बाल कैसे जल सकते हैं? उसने एक और जांच करनी चाही! बोला, “सुन लड़की! अगर तू माया नहीं, सच में ही कमिया है तो ये ले चाक़ू और अपना खून निकाल के दिखा!” दिल्लू ने अपना चाक़ू उसको देते हुए कहा!

“तब तुझे यकीन हो जाएगा की मै कमिया ही हूँ?” उस लड़की ने कहा,

“जैसा कहा वैसा कर, सवाल न कर!” दिल्लू ने हड़काया उसे!


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब उस लड़की ने अपनी ऊँगली पर चाक़ू की नोंक रखी और चाक़ू खींच दिया! आश्चर्य! रक्त की बूँदें छलछला गयी ऊँगली पर! उसने अपनी ऊँगली दिल्लू को दिखाई!

ये देख दिल्लू जैसे आसमान से गिरा! ये क्या देख रहा है? ये क्या है? माया के न तो बाल जलते और न खून ही निकलता! ये क्या है?

 

दिल्लू उलझ गया था! बड़ी भारी मुसीबत खड़ी हो गयी थी! एक तरफ ये चिंता कि साधना भंग न हो जाए और दूसरी ये कि ये कौन है? कमिया या माया? अगर माया है तो अब तक लोप क्यूँ नहीं होती, और अगर कमिया है तो अभी एक जांच और है! जो वो करेगा! ये सोच दिल्लू ने कहा,

“सुन लड़की! अगर तू सच में ही कमिया है तो तुझे एक जांच और देनी होगी!” दिल्लू ने कहा!

“अब कैसी जांच दिल्लू?” उस लड़की ने पूछा,

“मेरे सामने मूत्र त्याग कर!” दिल्लू ने कहा!

“दिल्लू, मेरी इतनी परीक्षा मत ले, मै मर जाउंगी” उस लड़की ने कहा,

“चुप रह! चल मेरे सामने मूत्र-त्याग कर!” दिल्लू ने कहा!

“दिल्लू? तू??” उसने पूछा,

“हाँ! कर ना! क्या हुआ?” दिल्लू ने अलख में भोग डाल कर कहा!

मित्रगण! तब उस लड़की ने अपने वस्त्र खोले और उस दिल्लू के सामने मूत्र-त्याग कर दिया! अब! अब दिल्लू खामोश!

“कमिया?” दिल्लू ने कहा,

“हाँ दिल्लू” कमिया ने कहा,

“तू सच में कमिया है?” दिल्लू ने कहा,

“हाँ दिल्लू! मै तेरी कमिया हूँ” वो बोली,

अब दिल्लू ना रह सका उसके बिना! ये तो सच में ही कमिया थी! उसकी कमिया! जिसने दो साल इंतज़ार किया कमिया के लिए! आज स्वयं कमिया यहाँ आई है! ओह! कितना विस्तृत


   
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श्रीशः उपदंडक
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प्रेम! क्या अनुभूति! यही तो चाहता था दिल्लू! वो और कमिया! बस और कोई नहीं! आंसू छलक गए अब दिल्लू के! खड़ा हुआ! औए नीचे आया! और आके गले लग गया कमिया के!

“ओ कमिया! मै कितना तदपा तेरे लिए, ओ कमिया!” आंसूं छलके दिल्लू के!

“मेरे दिल्लू! तूने मुझे कभी कहा क्यूँ नहीं कि तू मुझे इतना प्यार करता है?” कमिया ने कहा!

“मै कैसे कहता! मै डरता था!” उसने रोते रोते कहा,

“किस से डरता था दिल्लू?” उसने पूछा,

“डरता था कि तू मना ना कर दे!” दिल्लू ने कहा,

“मै मना कैसे करती तेरे प्यार को?” वो बोली,

“बस कमिया! बस! ऐसे ही ली रह मेरे गले!” दिल्लू ने रोते हुए कह!

“मै तो तेरी ही थी दिल्लू, हमेशा!” कमिया ने कहा.

“तो वो रिश्ता?” दिल्लू ने कहा,

“वो झूठ था! ताकि तू कुछ बोले!” वो बोली!

” मै तो मर गया था ये सुनके कमिया!” उसने कहा,

“हाँ, मैंने देखा था तेरी आँखों में वो!” वो बोली!

“कमिया, मै प्यार करता हूँ तुझसे!” दिल्लू बोल,

“मै जानती हूँ!” कमिया ने कहा!

“मै तेरे लिए मरता रहा! कटता रहा कमिया!” दिल्लू बोला!

“दिल्लू! जब तू आता था दूकान पर तो मै खुश हो जाती थी, कि दिल्लू आ गया!” वो बोली!

“मुझे नहीं पता था कमिया!” दिल्लू ने कहा!

फिर वो करीब पंद्रह मिनट से अधिक आलिंगनबद्ध रहे! साधना भूल गया दिल्लू! सोचा! उसका साधना-फल मिल गया उसको! अब क्या चाहिए उसको!


   
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श्रीशः उपदंडक
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मित्रगण! प्रेम अँधा होता है! साधना भूल गया दिल्लू! प्रेम के आगे हार गया दिल्लू! रो पड़ा बुक्का फाड़कर! रो पड़ा अपनी भुजाओं में कमिया को पाकर!

“कमिया! मेरी है ना तू?” दिल्लू बोला रोते रोते!

“हाँ दिल्लू! मै तेरी हूँ हमेशा!” वो बोली!

“मेरी कमिया!” दिल्लू उसको चूमते हुए बोला!

कमिया ने भी साथ दिया उसका! समर्पण कर दिया कमिया ने अपनी देह का! दिल्लू उसे चूमता रहा! प्रेम-आलाप जारी रहा! कुछ पुरानी बातें और कुछ नई! कुछ भविष्य की बातें और कुछ प्रेम-आकर्षण!

उत्तेजित हो गया दिल्लू! अपनी बाजुओं से उठाया उसने कमिया को और आसन पर लिटा दिया! काम हावी हुआ दोनों पर! दिल्लू बदल गया! एक झटका खाया और टूट पड़ा कमिया के यौवन पर! यहाँ कमिया ने भी पूर्ण समर्पण कर दिया! दिल्लू और कमिया एक हो गए! आज मिलन हो गया उनका! एक दूसरे के प्यासे प्यास बुझा बैठे एक दूसरे से! ये मिलन अनवरत रहा! एक एक पल बहुमूल्य था दोनों के लिए! कामवेग हावी था दोनों पर! दिल्लू लिपटा रहा कमिया से जैसे चन्दन-वृक्ष पर भुजंग लिपटा रहता है! तीव्र श्वास गूंजती रहीं दोनों की वहाँ! कमिया अपने स्पर्श से दिल्लू को और मदहोश कर देती! दिल्लू तो जैसे दो वर्षों का भूखा हो! और कमिया! जैसे कामरस छलकाए जा रही हो! और दिल्लू उस बरसात में कामाल्हादित हुए जैसे बौरा गया था!

तभी! तभी स्खलित हुआ दिल्लू! लिपट गया कमिया से! खींच के ऊपर कर लिया उसने कमिया को अपने! कुछ क्षण अचेत अवस्था में रहा दिल्लू! कमिया उसको सहारा देती रही! और फिर! कुछ क्षण पश्चात नेत्र खोले दिल्लू ने! नेत्र खोलते ही उठी कमिया उसके ऊपर से!

“कमिया!” दिल्लू ने उसको बुलाया अपने पास!

कमिया ना आई!

“कमिया?” दिल्लू बोला!

कमिया चुप और उसके मुख पर कुटिल मुस्कान!

“कमिया?” दिल्लू ने कहा, और खड़ा हुआ!


   
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श्रीशः उपदंडक
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तब कमिया ने उसको देखा और तब! खून का फव्वारा छूटा उसके मुंह से! इस से पहले दिल्लू कुछ समझता, सर फट गया दिल्लू का! बदन भी फट गया! केवल दिल धड़कता रहा अपनी कमिया के लिए! तब कमिया ने उसका दिल उठाया और बोली, “ओ मसान! तू ऐसे ही मेरी काम-पिपासा शांत किया कर! आज कितने दिनों बाद मुझे परमोच्च आनंद की प्राप्ति हुई है!”

तब मसान प्रकट हुआ! और बोला, “हे मसानी क्या चाल चली तूने! मेरी भी काम-पिपासा पूर्ण हो गयी आज! अब आ, और इस तुच्छ मानव देह से मुक्त हो जा!”

मसान ने इतना कहा और कमिया के मस्तक के टुकड़े हुए और बदन के हिस्से, फट कर, दूर दूर तक फ़ैल गए भूमि और वृक्ष पर!

“हे मसान! अब कब मुझे मिलेगा ऐसा आनंद?” मसानी ने पूछा!

” प्रतीक्षा कर! प्रतीक्षा कर मेरी प्रिये! ना कमिया की कमी है और ना दिल्लू की!” मसान ने कहा!

और मित्रगण! इसके बाद दोनों अलग अलग हो गए, अलग अलग मार्ग पर! ढूँढने किसी और कमिया को और किसी बेचारे दिल्लू को! और ढूंढना क्या! कोई ना कोई दिल्लू आएगा ही शमशान में! अवश्य!

अपनी कमिया को प्राप्त करने!

----------------------------------साधुवाद---------------------------------

 


   
rajeshaditya reacted
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