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वर्ष २००९ रुड़की की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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दिल्लू भगत चुपचाप बैठा हुआ था उस शमशान में! तैयारी कर रहा था, आसन बुन रहा था सुएँ से, सुएँ की रस्सी बैल की आंत की थी और आसन मेढ़े की खाल का! कंभव-मंत्र का जाप किये जा रहा था! उसको साधना करनी थी! साधना करनी थी उसको भामिनी-यक्षिणी की! उसके गुरु ने बताया था उसको भामिनी-यक्षिणी की साधना! इस साधना से उसको ऐच्छिक वर प्राप्त होते और उन्ही वरों में से एक वर था अपनी प्रेयसी कमिया को प्राप्त करने का! वो मंत्र पढता जाता और सुएँ से आसन सीलता जाता था! आज साधना-संकल्प का दूसरा दिन था! उसके पास एक दिन और सेष था आसन पूर्ण करने का! अतः पूर्ण तल्लीनता से आसन सीलता जा रहा था दिल्लू! आँखों में अपनी प्रेयसी का चेहरा लिए! उसके बदन को छूने के लिए लालायित था दिल्लू! कोई भय नहीं था मन में! उल्लू आकर बैठते पेड़ पर और फिर उड़ जाते! कोई चमगादड़ आता और लौट जाता! और दिल्लू अपने काम में मस्त था! बार बार सुएँ को जीभ से चाटकर गीला करता और उसक मेढ़े की खाल में पिरो देता! इक्कीस साल का दिल्लू! प्रेम का मारा दिल्लू! बेचारा!

दिल्लू का बाप रंगरेज था, कपडे रंगता था, परिवार में उस से बड़े दो भाई भी थे, दोनों शादी शुदा थे, लेकिन दिल्लू शादी नहीं करता था, घरवाले उस से रोज कहते लेकिन वो नहीं मानता था! उसके दिल में उसके पड़ोस में रहने वाली एक लड़की कमिया बसी हुई थी! कमिया का बाप दरजी था, दिल्लू कभी कभार कपडे लेने जाता रंगने के लिए तो कभी लाता, तभी उसने कमिया को देखा था! कमिया थी भी काफी खूबसूरत! बस, उसी दिन से उसका दीवाना हो गया था दिल्लू! उसको पाने की चाहत में जो पैसा उसको अपने बाप से मिलता, वो बचा के रख लेता था, इसलिए कि दिवाली के दिन वो कमिया के लिए इस बार एक ड़ी नए कपडे लाएगा और कमिया से अपने दिल की बात कह देगा! दिल्लू उसको प्यार भरी निगाह से देखता, लेकिन कमिया उस पर कभी ध्यान न देती थी! बस यही बात उसे चुभा करती थी!

जब भी कोई और लड़का कमिया को देखता या कभी फब्तियां कसता तो उसको लगता कि गंडासे से उसका सर धड से अलग कर दे! फिर अपने दिल में ही तीर लिए वापिस चला आता था दिल्लू!

एक दिन की बात है, दिल्लू रेंज हुए कपडे लेके आया कमिया के बाप की दुकान पर, दुकान पर कमिया अकेली ही थी! दिल्लू बैठ गया वहाँ! सोचा आज कह दूँ अपने दिल की बात! अभी वो कुछ कहता कि उस से पहले ही कमिया न दिल्लू से कहा,"दिल्लू, तू शादी क्यूँ नहीं कर लेता?"


   
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श्रीशः उपदंडक
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दिल्लू के दिल की कोमल दीवारें दरक गयीं ये सुनकर! बोला, "शादी! शादी नहीं करनी मुझे"

"क्यों?" कमिया ने पूछा,

"मैंने हाल देखा है अपने भाइयों का" उसने बताया,

"क्यों?" कमिया ने पूछा,

"सारा दिन हाय हाय!" दिल्लू ने शर्मा के कहा,

"मतलब?" कमिया ने और खंगाला,

"आज वो ख़तम आज ये ख़तम, भैय्या भागते ही रहते हैं यहाँ वहां" उसने बताया,

"तो ये तो रिवाज है दिल्लू" कमिया ने कहा,

"मै नहीं मानता ये रिवाज" दिल्लू ने कहा,

"अच्छा?" कमिया ने प्रश्न किया,

"तो तू क्या मानता है दिल्लू? बता तो सही?" कमिया ने छेड़ा उसको!

"कुछ नहीं" दिल्लू ने शरमा के कहा,

"दिल्लू, जब तेरी जोरू आएगी तो तू नहीं करेगा ऐसा?" कमिया ने पूछा,

"पता नहीं आएगी कि नहीं!" दिल्लू ने कहा, और नज़रें चुरा लीं कमिया से!

"अब समझी मै!" कमिया ने हंस के कहा,

"क्या?" दिल्लू ने पूछा,

"कोई है, तू जिसे पसंद करता है! है न?" कमिया ने कुरेदा उसको!

"नहीं कमिया!" सिल्लू ने शरमा के कहा,

"झूठ न बोल! इसी गाँव की है क्या?" कमिया ने पूछा,

"कोई नहीं है कमिया" दिल्लू ने कहा,

"फिर झूठ! मुझे बता, मै तेरी मदद करुँगी!" कमिया ने कहा,

"अरे कोई नहीं है, मेरा यकीन कर" दिल्लू बोला,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"झूठ बोलेगा तो परेशान होगा, मेरा क्या, मत बता!" कमिया ने कहा,

"कोई होगी तो बता दूंगा" दिल्लू ने कहा,

"बता दिया तूने, अभी बता?" कमिया ने कहा, "क्या बताऊँ?" दिल्लू ने कहा,

"कौन है वो?" कमिया ने पूछा,

"कोई नहीं" दिल्लू ने कहा,

"ठीक है, नहीं बताता तो जा!" कमिया ने कहा,

इसके बाद कमिया की माँ आ गयी और दिल्लू ने कुछ कपडे दिए और कुछ लिए! अब वापिस चला दिल्लू अपने काम की ओर! कमिया ने तो इतना विवश कर दिया था कि सच्चाई दिल से चल कर मुंह के रास्ते जुबान से निकल ही आती! लेकिन दिल्लू इतने पर भी खुश था, कमिया के सान्निध्य हेतु वो वैसे ही मचलता रहता था! उसको कमिया के प्रश्नों में एक हठीलापन नज़र आया था, उसने इसे जाना कि कमिया शायद समझ ही गयी हो कि 'वो' कौन है! यही ख़याल लिए दिल्लू दौड़ पड़ा अपने काम की जगह! कल फिर से आऊंगा, कुछ और बातें भी होंगी और हो सकता है कि कमिया समझ ही जाए!

अपने काम की जगह आया तो उसके बाप ने एक नया काम दे दिया उसको, वो उसमे उलझ के रह गया! लेकिन खयालों में बस कमिया ही बसी हुई थी! दिल्लू ने काम शुरू किया, फिर कमिया के यहाँ से आये कपडे रंगने लगा, कल कपडे देने जाना था उसको!

अगला दिन आया, दिल्लू पूरे जोश के साथ चला कमिया के घर कपडे लेकर! दिल जोर से धड़का! सामने कमिया ही बैठी थी! बाप शायद शहर गया था उसका दर्जीगिरी सामान लेने! नज़रें मिलीं तो दिल्लू बैठ गया नीचे फर्श पर!

'ले आया कपडे दिल्लू?" कमिया ने पूछा,

"हाँ, ये लो" दिल्लू ने कपडे दिए तो उसका हाथ टकरा गया कमिया से! ह्रदय के तार झनझना उठे दिल्लू के! एक अजीब सा एहसास हुआ उसे!

कमिया ने कपडे रख लिए, और फिर दुसरे कपडे निकाल कर देने लगी उसको, वो उसकी तरफ पीठ किये खड़ी थी! दिल्लू ने उसको ऊपर से नीचे तक देखा और एक सर्द एहसास में डूब गया! फिर वो घूमी तो सकपका गया दिल्लू, नज़रें बचा लीं उसने और बाहर जाते हुए लोगों पर डाली नज़र!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"ये ले दिल्लू" कमिया ने कहा,

"ला!" उसने कहा और कपडे की पोटली रख ली अपने घुटनों पर!

"कमिया, एक गिलास पानी तो पिला दे?" दिल्लू ने कहा,

कमिया मुड़ी और वहीँ रखे घड़े में से एक गिलास पानी निकाल, बढ़ा दिया दिल्लू की तरफ! दिल्लू ने गिलास उठाया और गटक लिया!

"अब मै चलता हूँ" दिल्लू ने पोटली उठायी और कमिया को देखा,

"इसीलिए कहती हूँ दिल्लू!" कमिया ने मुस्कुराते हुए कहा,

"क्या?" दिल्लू पीछे घूमा और बोला,

"ब्याह कर ले, कब तक ऐसे ही पोटलियाँ उठाएगा!" कमिया ने कहा,

"तू फिर शुरू हो गयी?" दिल्लू ने कहा,

"तेरी मर्जी, चल जा!" कमिया ने हँसते हुए कहा!

सर पर पोटली उठा वापिस चला दिल्लू! दिल की बात दिल में ही रह गयी! पानी मांग के तो उसने और कुछ समय माँगा था, बात अधूरी ही रह गयी! अनमने मन से चल पड़ा बेचारा दिल्लू! लेकिन मन में ख़ुशी भी थी उसके! एक अजीब सी ख़ुशी! मंद मंद मुस्कुराया दिल्लू!

दिल्लू फिर वापिस आ गया काम की जगह! उसने पोटली खोली तो उसमे से एक चाबी गिरी! दिल्लू ने चाबी उठायी और सोचा ये तो कमिया के घर या दुकान की चाबी है, उसने चाबी राखी जेब में और फिर वापिस चला कमिया की दुकान पर! दुकान पर पहुंचा तो कमिया ही मिली उसे! उसने जेब से चाबी बाहर निकाली और कहा,"अरे कमिया, कपडे रखते वक़्त ध्यान रखा कर, ये ले अपनी चाबी!"

"अरे हाँ! अम्मा यही तो ढूंढ रही थी!" कमिया ने चाबी ली और अन्दर चली गयी!

दिल्लू खड़ा रहा वहाँ! काफी देर हो गयी! कमिया वापिस नहीं आई! अब चला फिर वापिस दिल्लू!

न कोई धन्यवाद और न कोई दो बोल! खैर, वापिस आया काम पर और काम में मग्न हो गया!

उस रात! नींद नहीं आ रही थी दिल्लू को! अपने नीम के पेड़ के नीचे बिछी चारपाई पर करवटें बदल रहा था! वही कशमकश कि क्या किया जाए? कैसे कही जाए अपने दिल की बात? अभी


   
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श्रीशः उपदंडक
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ऐसे तो कभी वैसे! फिर मन कहे कि नहीं, ऐसे भी नहीं और वैसे भी नहीं! ऐसे और वैसे के झूले में झूल रहा था बेचारा दिल्लू!

किसी तरह से नींद आई उसको! सुबह उठा और दैनिक कर्मों में व्यस्त हो गया, आज शहर जाना था उसको, रंग लेने! साइकिल उठायी और रंग लेने चल पड़ा शहर! चार कोस दूर था शहर! शहर पहुंचा और रंग खरीदा, सामने एक दुकान दिखाई दी उसको, साड़ियों की दुकान! वो गुलाबी रंग की अच्छी लगेगी साड़ी कमिया पर! सांवले चेहरे वाली कमिया, क्या खूब जंचेगी इस साड़ी में! मन ही मन साड़ी पहना भी दी दिल्लू ने कमिया को! साड़ी पहन कर इतरा रही थी कमिया, शीशे में देख रही थी आगे पीछे कमिया, दिल्लू के खयालों में!

तभी एक सरकारी जीप ने हॉर्न बजाया तो अपने खयालों से बाहर आया दिल्लू! वापिस चला!

मुख्य सड़क से नीचे उतार दी साइकिल उसने, अपने गाँव की तरफ! और धीरे धीरे साइकिल चलाता हुआ चलता रहा दिल्लू!

रास्ते में उसको एक बाबा मिले, वो वहीँ बीच रास्ते में एक पेड़ के नीचे खड़े थे, दिल्लू को रोका उन्होंने और बोले," हमको अगले गाँव तक छोड़ दोगे बेटा?

"हाँ बाबा, बैठिये!" दिल्लू ने कहा और साइकिल पर पीछे बिठा लिया बाबा को उसने!

रास्ते में आपस में बातें हुई! बाबा ने दिल्लू के कंधे पर हाथ रख कर रुकवाया दिल्लू को और फिर बाबा ने बता दिया कि उस गाँव के कोने में ही डेरा है उनका, कभी आ जाना कोई समस्या हो तो! और फिर बाबा उतरे और चल दिए अपने गाँव की तरफ और दिल्लू उनको छोड़, चल पड़ा अपने गाँव की तरफ! दिल्लू आया अपने घर, दोपहर हो चुकी थी, पहले खाना खाया, फिर कपडे बांटने का काम किया शुरू, सबसे पहले पहुंचा कमिया के घर, आज कमिया न मिली, कमिया का बाप मिला! दिल्लू ने गठरी रखी तो कमिया के बाप ने कहा, "और दिल्लू कैसा है?"

"बस ठीक हूँ" दिल्लू ने अन्दर देखते हुए कहा,

उसके बाद कमिया के बाप ने दिल्लू को पैसे दिए, दिल्लू ने पैसे जेब में रखे और वापिस चला, आज कमिया नहीं दिखी थी, दिल पर बोझ सा लटक गया दिल्लू पर!

वापिस आया! फिर काम पर लग गया, पैसे बाप को दे दिए!

फिर रात आई! फिर उलझ गया खयालों में दिल्लू अपनी चारपाई पर! कैसे कहे मन की बात? क्या कमिया समझेगी या नहीं? कैसे समझाऊं उसको? क्या कभी कमिया मेरी बनेगी भी नहीं?


   
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श्रीशः उपदंडक
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सहस उसको ख़याल आया उस बाबा का! हाँ! बाबा कर सकते हैं कोई चमत्कार! कोई न कोई तिकड़म तो लगा ही देंगे बाबा! या कोई तरीका बता देंगे! अब बन जाएगा काम! अब आया उसको खुलके सांस! खखार के गला साफ़ किया और फिर इत्मीनान से सो गया दिल्लू!

सुबह उठा तो नया जोश था! नहाया धोया और साइकिल उठायी और फिर चल पड़ा बाबा के पास उस गाँव!

गाँव पहुँच और बाबा का डेरा पूछा, उसको किसी ने बता दिया! वो वहाँ पहुँच गया! बाबा ने देखते ही पहचान लिया! दिल्लू ने पाँव छुए तो बाबा ने उसको चारपाई पर बिठाया! और बोले, "बोलो बेटा, कैसे आये?"

"बाबा............." अटक गया दिल्लू! कैसे बताये! कहीं बाबा गुस्सा न हो जाएँ! अब चूंकि अन्य कोई विकल्प शेष नहीं था तो हिम्मत बटोर बता दिया सार मामला! कहानी सुन बाबा मुस्कुराए! फिर बोले, "हो जाएगा काम, मत घबराओ!"

दिल्लू ने बाबा के ये बोल सुने तो उसके तो जैसे भाग खुल गए! कमिया उसे अपनी भुजाओं में ही नजर आने लगी!

"क्या करना होगा बाबा मुझे?" दिल्लू ने मासूमियत से पूछा!

"कुछ नहीं, उस लड़की का कोई सामान लाकर दो! मै मोहन-विद्या का प्रयोग करूंगा, फिर वो तुम्हारे बिना और कहीं नहीं जायेगी!" बाबा ने कहा,

"मोहन-विद्या! बाबा कब तक?" दिल्लू ने पूछा,

"एक महीना" बाबा ने कहा,

"एक महीने में हो जाएगा सारा काम बाबा?" दिल्लू ने पूछा,

"हाँ बेटा, हो जाएगा!" बाबा बोले,

उसके बाद बाबा ने कुछ सामान लिखवाया और फिर उसको दे दिया! छठी जमात तक पढ़ा था, उसने सामान लिख लिया और फिर अगले दिन कमिया का कोई सामान और ये सामान लाने को कह दिया! और बाबा के पाँव छू वापिस आ गया दिल्लू!

अब दिल्लू के मन में खुशियों का अम्बार लगने वाला था! जो काम वो दो सालों में कर सका था वो अब एक महीने में हो जाने वाला था! ऐसा सोचते सोचते घर आ गया दिल्लू! घर आके फिर से काम पर लग गया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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अगले दिन दिल्लू को मौका मिला कमिया के घर जाने का, दुकान पर, कुछ कपडे लेने थे वहाँ से, वो वहाँ पहुंचा और किस्मत से कमिया ही मिली उसे! उसे लगा भाग्य जोर मार रहा है उसका!

"दिल्लू, कैसा है?" कमिया ने पूछा,

"मै ठीक हूँ ,तू कैसी है?" दिल्लू ने पूछा,

"ठीक हूँ" कमिया ने कपडे निकालते हुए कहा,

इतने में कमिया को आवाज़ दी उसकी माँ ने, कमिया अन्दर गयी और तभी आगे बढ़कर, कमिया का रुमाल उठा लिया दिल्लू ने और जेब में रख लिया! एक काम तो बन गया था अब दूसरा सामान खरीदना था!

कमिया बाहर आई और वो पोटली दे दी उसको, दिल्लू ने पोटली ली और बिना पीछे मुड़े ही आगे चलता चला गया दिल्लू! गाँव की दुकान पर गया, थोडा सामान खरीदा, बाकी सामान शहर से मिलना था, अतः उसने सामान लिया और फिर पोटली घर पर रख, साइकिल उठा, दौड़ पड़ा शहर!

शहर पहुंचा, बाक सामान भी खरीद लिया! फिर चला वापिस! बाबा के डेरे पर आया और सार आवश्यक सामान दे दिया दिल्लू ने बाबा को! बाबा ने सारा सामान लिया और कहा, "बस दिल्लू बेटा, आज से एक महीना गिन लो!"

दिल्लू ने पाँव पड़े और आज्ञा ले वहाँ से वापिस चल पड़ा अपने घर! आँखों में कमिया का चेहरा लिए! दिल्लू अब मन लगा के और मेहनत से काम करता! पैसे इकट्ठे जो करने थे, एक महीने में तो कमिया उसकी हो ही जाने वाली थी! दिल्लू जाता वहाँ कमिया के पास और बातचीत भी करता! और मन ही मन कमिया से बातें भी करता था, कि उसके बाद वो ऐसा करेगा और वैसा करेगा! बस इन्ही ख्यालों में डूबा रहता दिल्लू!

समय बीता, पंद्रह रोज गए लेकिन कोई प्रभाव नहीं पड़ा, वो सकते में तो आता परन्तु बाबा ने कहा है तो एक महीना तो रुकना ही पड़ेगा! वो सब्र का बाँध बांधे बैठा हुआ था उस दिन के इंतज़ार में जब कमिया संपूर्ण रूप से उसकी हो जायेगी! ज्यों ज्यों दिन करीब आ रहे थे, त्यों त्यों बेचैनी बढती जा रही थी दिल्लू की! और फिर आखिरी दिन भी आ गया!

बड़े उत्साह के साथ दिल्लू गया उस दिन कमिया के पास! कमिया ही थी उस दिन दुकान पर! दिल्लू ने मन ही मन बाबा का ध्यान किया और वहाँ अपनी पोटली रखी! कमिया ने पोटली उठायी और बोली, "क्या बात है दिल्लू! आज तो काफी खुश लग रहा है!"


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हाँ खुश तो हूँ मै आज!" दिल्लू बोला!

"क्या राज है ख़ुशी का?" कमिया ने हँसते हुए पूछा,

"कोई राज नहीं!" दिल्लू शरमाया अब!

"नहीं बताना चाहता?" कमिया बोली,

"मैंने कहा न कोई राज नहीं!" दिल्लू बोला,

"तुम छुपाता क्यूँ है दिल्लू?" कमिया ने कहा,

"मै....मै कुछ नहीं छुपा रहा कमिया" दिल्लू ने घबराते हुए कहा,

"ठीक है तेरी मर्जी, मत बता!" कमिया ने गठरी में कपडे रखते हुए कहा,

"क्या बताऊँ?" दिल्लू ने पूछा,

"काहे खुश है?" कमिया ने पूछा,

"वो ऐसे ही" दिल्लू बोला और फिर से अवसर चूक गया!

"ये ले" कमिया ने गठरी दी उसको,

"ला!" दिल्लू ने कहा,

अब उसने गठरी ले और अपने सर पर रखी, दिल भारी हो गया उसका, कोई बदलाव नहीं आया था कमिया में! कमिया वैसे की वैसे ही थी! बहुत दुःख हुआ दिल्लू को! दुखी मन से चल पड़ा वापिस!

लगता है कोई कमी रह गयी बाबा से, आज जाऊँगा तो बताऊंगा, कितनी आशाएं थीं मुझे आज की! आज कमिया कह देगी दिल की बात! और फिर मै भी कह दूंगा कि कमिया मै तो तुझे दो सालों से चाहता हूँ, लेकिन तू ही नहीं समझती! काश कि ऐसा हो जाता, सोचा चलते चलते दिल्लू ने! लेकिन अब क्या करता दिल्लू! जहां से चला था वहीँ आ गया!

गठरी अपने बाप के पास रखी और उठायी साइकिल अपनी! चल पड़ा बाबा के डेरे पर! डेरे पर पहुंचा तो पता चला कि बाबा यात्रा पर गए हैं एक हफ्ते बाद आयेंगे! ये एक और मायूसी आ गयी दिल्लू के दिल में! एक तो कमिया नहीं समझ रही मेरा हाल और अब बाबा चले गए यात्रा पर!

बेचारा दिल्लू!


   
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श्रीशः उपदंडक
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किस तरह उठापटक करके के काटा एक हफ्ता! पहुंचा बाबा के डेरे! सौभाग्य से बाबा मिल ही गए! बाबा के पाँव पड़े दिल्लू ने और बोला, "बाबा कोई असर नहीं पड़ा, वैसी ही है वो"

"असर नहीं पड़ा? ऐसा कैसे हो सकता है?" बाबा ने कहा,

"पता नहीं बाबा, कोई कमी रह गयी शायद" दिल्लू ने कहा,

"मत घबरा बेटा, और भी कई तरीके हैं, मै कर दूंगा तेरा काम!" बाबा बोले,

"बाबा अब कितना समय और?" दिल्लू ने कहा,

"बस तीन दिन ठहर जा!" बाबा ने कहा,

"तीन दिनों में हो जाएगा काम बाबा?" दिल्लू ने आँखें फाड़ के पूछा,

"हाँ हो जाएगा" बाबा ने कहा,

अब फिर से उम्मीद का पुलिंदा लेके चला दिल्लू वहाँ से! चलो तीन दिनों की ही तो बात है! अब बाबा करेंगे चमत्कार! अब हो जाएगा सपना साकार! ऐसा सोचते सोचते गाँव पहुंचा दिल्लू अपने! फिर काम पर लग गया!

दो दिनों के बाद दिल्लू को अवसर मिला कमिया के घर जाने का! काफी कपडे आये थे वहाँ रंगाई के लिए! दिल्लू को लाने थे वो कपडे! लेकिन दुकान पर माँ मिली उसको कमिया की! माँ ने कपडे उठाये और गठरी बनानी शुरू की! दिल्लू चोरी की नज़रों से ढूंढ रहा था कमिया को! लेकिन कमिया नज़र नहीं आई! आहिर पूछा ही बैठा, "अम्मा. आज कमिया कहाँ है?"

"वो, वो गयी है अपनी मौसी के पास" उसने बताया,

"तभी काम कर रही है तू" दिल्लू ने कहा,

"हाँ दिल्लू, क्या करूँ, बेटा काम तो करना ही है" उसकी माँ बोली और गठरी दे दी दिल्लू को! दिल्लू ने गठरी उठायी और चल पड़ा अपने घर!

कमिया नहीं दिखी तो मन में अजीब अजीब ख़याल आ गए दिल्लू के! ख्यालों में उलझता हुआ आ ही गया अपने घर! और फिर तीन दिन भी बीत गए!

अगले दिन, यानि चौथे दिन, दिल्लू कपडे लेकर गया कमिया के घर! सौभाग्य से इस बार कमिया ही मिली उसको! दिल्लू ने कपडे रखे और मन ही मन बाबा का ध्यान किया! तीन दिन


   
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श्रीशः उपदंडक
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बीत चुके हैं! आज तो कमिया कह ही देगी अपने मुख से! आज हो जायेगी इच्छा पूर्ण! आज ही है वो दिन जिसके लिए उसने दो साल से अधिक गुजार दिए!

"आ गया दिल्लू?" कमिया ने पूछा,

"हाँ, ये ले" दिल्लू ने गठरी दी उसको!

"और कैसा है तू?" कमिया ने पूछा,

"कहाँ गयी थी तू अभी?" दिल्लू ने पूछा,

"मौसी के पास?" वो बोली,

"काहे?" उसने पूछा,

"मौसी ने बुलाया था" वो बोली,

"काहे बुलाया था?" उसने पूछा,

"रिश्ते के लिए" मैया ने बताया,

"रिश्ता? किसका?" उसने पूछा,

"मेरा" कमिया ने मुस्कराते हुए कहा,

इतना सुन दिल्लू का दिल डूबा! आँखों के सामने अँधेरा आ गया! मुंह खुला रह गया दिल्लू का! धडाम से गिरा अपने ख्यालों में ज़मीन पे! ये क्या सोचा और क्या हो गया! बाबा ने तो कहा था तीन दिनों में सारा काम हो जाएगा?

"पा......पानी तो दे ज़रा" दिल्लू ने धीरे से कहा,

कमिया ने घड़े से पानी निकाल और दे दिया दिल्लू को! दिल्लू ने बिना मुंह हटाये सारा पानी गटक लिया, केवल हलक ही गीला हुआ दिल सूखा ही रह गया उसका!

"तो...तुझे कैसा लगा रिश्ता?" दिल्लू ने पूछा,

"ठीक ही है" कमिया ने कपडे सजोते हुए कहा,

"क्या करता है लड़का?" दिल्लू ने पूछा,

"कहीं शहर में है, दरजी की दुकान है उसके बाप की" कमिया ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"तुझे पसंद है?" दिल्लू ने पूछा,

"मेरी पसंद नापसंद काहे की दिल्लू, माँ-बाप की मर्जी है" कमिया ने बताया,

अब दिल्लू के होश उड़े! कलेजा आया बाहर को मुंह के रास्ते! खून जैसे जम गया! साँसें और गरम हो गयीं उसकी!

"आज तो कोई कपडा नहीं है दिल्लू, कल आ जाना" कमिया ने कहा,

"ठीक है" दिल्लू भारी मन से उठा, आज शरीर और भारी लग रहा था उसे! पाँव जैसे ज़मीन से चिपक गए थे! जोर लगाना पड़ रहा था एक एक कदम बढाने के लिए!

घर पहुंचा! सब कुछ बेमायनी सा लगा उसे! दुनिया उजाड़ हो गयी उसकी! अब क्या होगा? वो तो जी नहीं पायेगा उसके बिना! तब उठायी अपनी साइकिल और पहुंचा बाबा के पास! बाबा मिल गए उसको! दिल्लू ने पाँव पड़े और बोला, "बाबा सब कुछ उल्टा हो गया"

"कैसे?" बाबा ने पूछा,

"उसका तो कहीं और पक्का हो गया रिश्ता" दिल्लू की आँखों में आये आंसूं अब!

"ऐसा कैसे हो सकता है?" बाबा ने पूछा,

"ऐसा हो गया बाबा" दल्लू ने गुहार सी लगाई!

"बेटा, जो मै कर सकता था कर लिया" बाबा ने कहा,

ऐसा सुनके सर घूम गया दिल्लू का! ये तो मरते में दो लात और मार दीं ऐसा हुआ!

"बाबा कोई और रास्ता बताओ?" दिल्लू ने कहा,

"कोई रास्ता नहीं मेरे पास बेटा" बाबा बोले,

"कोई तो होगा?" दिल्लू ने कहा,

"है तो सही लेकिन जान का खतरा है" बाबा ने कहा,

"बाबा यहाँ जान तो वैसे ही जा रही है, आप बताइये तो सही?" दिल्लू ने 'और रास्ता' पूछने की जिद की अब!

"सिद्धि!" बाबा ने कहा,

"सिद्धि?" दिल्लू को समझ में नहीं आया कुछ भी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हाँ सिद्धि!" बाबा ने कहा,

"वो क्या होता है?" भोले भाले दिल्लू ने पूछा,

फिर बाबा ने दिल्लू को एक सिद्धि बता दी! भामिनी-यक्षिणी की सिद्धि! भामिनी के प्रसन्न होते ही उसको कमिया मिल जानी थी! हमेशा के लिए! उसको अब फिर से बसंत महसूस होने लगा अपने दिल में!

"बोलो बेटा, हाँ या न?"

प्रेम-पाश में बंधे, मदहोश और कमिया को याद करते हुए उस बेचारे दिल्लू ने कह ही दिया, "हाँ!" अब बाबा ने उसको विधि बतायी! बैल की आंत लाल वाली, मेढ़े की बालों वाली खाल, कौड़ियों की माला और तीन प्रकार का मांस चाहिए पहले दिन! ये साधना भामिनी-यक्षिणी की है! बेचारे दिल्लू ने सारा सामान एकत्रित कर ही लिया किसी न किसी तरह से और अब उसको चाहिए था शमशान का एकांत और जहां अभी कोई चिता जल रही हो! बाबा ने इसमें मदद की, उसके लिए एक शमशान का प्रबंध कर दिया गया! जिस दिन कोई चिता प्रज्वलित होगी बाबा उसको सूचित कर देंगे! ये शमशान उन्ही के गाँव का एक शिवाना था, पीछे नहर बहती थी छोटी सी!

और वो दिन भी आ गया! अब दिल्लू काम-काज छोड़ बाबा का भगत बन गया था, दिल्लू-भगत! उसके दिल-ओ-दिमाग़ पैर बस अन कमिय ही छाई थी! न कोई भय और न कोई चिंता! हर हाल में उसने कमिय को पाना था भले कुछ भी हो जाए! भले ही उसकी जान ही चली जाए! उस दिन बाबा ने दिल्लू को सबकुछ समझाया सारांश बताया, क्या करना है, क्या नहीं और कब क्या करना है और क्या बोलना है, ये सब बताया! जब तक भामिनी-यक्षिणी स्वयं प्रकट न हो जाए तब तक उठाना नहीं है उसको साधना से! अब चाहे चुड़ैल आये या कोई वेताल! साधना नहीं छोडनी!

बाबा ने उस रात दिल्लू को उस शमशान में छोड़ा! वहाँ तीन चिताएं धधक रही थीं! एक का चुनाव किया गया! वहीँ आसन लगान था उसको, लेकिन साधना-संकल्प के बाद शुरू के तीन दिनों तक उसको अपना आसन सीलना था! आसन बनाने के मंत्र बता दिए थे बाबा ने उसको!

आसन बनाने और मंत्रोजाप करने बैठ गया दिल्लू! पूर्णतया नग्न बस गले में एक माला धारण किये हुए! साधना आरम्भ हुई! पहली रात कोई विघ्न नहीं हुआ! ये विजय का पहला चिन्ह था!

और फिर दूसरी रात!


   
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श्रीशः उपदंडक
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दिल्लू भगत चुपचाप बैठा हुआ था उस शमशान में! तैयारी कर रहा था, आसन बुन रहा था सुएँ से, सुएँ की रस्सी बैल की आंत की थी और आसन मेढ़े की खाल का! कंभव-मंत्र का जाप किये जा रहा था! उसको साधना करनी थी! साधना करनी थी उसको भामिनी-यक्षिणी की! उसके गुरु ने बताया था उसको भामिनी-यक्षिणी की साधना! इस साधना से उसको ऐच्छिक वर प्राप्त होते और उन्ही वरों में से एक वर था अपनी प्रेयसी कमिया को प्राप्त करने का! वो मंत्र पढता जाता और सुएँ से आसन सीलता जाता था! आज साधना-संकल्प का दूसरा दिन था! उसके पास एक दिन और सेष था आसन पूर्ण करने का! अतः पूर्ण तल्लीनता से आसन सीलता जा रहा था दिल्लू! आँखों में अपनी प्रेयसी का चेहरा लिए! उसके बदन को छूने के लिए लालायित था दिल्लू! कोई भय नहीं था मन में! उल्लू आकर बैठते पेड़ पर और फिर उड़ जाते! कोई चमगादड़ आता और लौट जाता! और दिल्लू अपने काम में मस्त था! बार बार सुएँ को जीभ से चाटकर गीला करता और उसक मेढ़े की खाल में पिरो देता!

आसन लगभग बनने को था! उसने हिम्मत दिखा कर ये चरण तो पूरा कर ही लिया था! और इस तरह उसकी दूसरी रात भी सफल हो गयी!

फिर आई तीसरी रात! आज आसन को बिछाने का प्रयोग था! उसने आसन पूर्ण किया! और फिर बिछाने का कर्म आरम्भ किया! उसने अपने हाथ की हथेली को चाक़ू से काटा और रक्त से एक त्रिभुज बना दिया! अब आसन इसमें रख दिया, बिछा दिया! और ध्यान-मग्न हो गया दिल्लू भगत! अब हुए मंत्र-जागरण क्रिया! नित्य-रात्रि उसको एक सहस्त्र मन्त्रों का जाप करना था! वो करता रहा! अपनी कमिया को प्राप्त करने के ले वो निरंतर आगे अपनी साधना में प्रशस्त हुए जा रहा था! उसने जाप पूर्ण किये! तीसरी रात्रि भी सफल हो गयी उसकी! अब एक दिवस का विश्राम था और उसके बाद चालीस दिनों की भामिनी-यक्षिणी साधना!

विश्राम दिवस आया! बाबा प्रसन्न हुए! एक तिहाई सिद्धि पूर्ण हो गयी थी उसकी! बाबा बोले, "सुनो बेटा! अब चाहे कुछ भी हो जाए, पीछे पाँव नहीं हटाना!"

"नहीं बाबा कोई सवाल ही नहीं" दिल्लू ने कहा,

"बस! अडिग रहना! अभी तुम्हारी साधना-भंग करने कई प्रेत, महाप्रेत, चुड़ैल आदि आयेंगे, लेकिन डरना नहीं!" बाबा बोले,

"नहीं बाबा!" दिल्लू अडिग था!

"तुम्हे आवाजें आएँगी! चित-परिचितों की, सब मिथ्या होगा, विश्वास नहीं करना!" बाबा ने समझाया,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"ठीक है बाबा!" दिल्लू ने कहा,

"तुम्हे लगेगा, चारों तरफ लोग कटे पड़ें हैं, तुम्हारे भाई, भतीजे और कमिया भी, मत घबराना!" बाबा ने समझाया!

"ठीक है बाबा!" उसने कहा,

"झूठी यक्षिणी भी आएगी! मत मानना!" बाबा ने कहा,

"सही है बाबा!" दिल्लू ने कहा,

और फिर विश्राम दिवस बीता! अगला दिन आया! अब उसको साधना समय तक मौन व्रत धारण करना था! उसने किया!

और अगली रात! चल पड़ा वो दीवाना दिल्लू! साधना करने! कमिया को प्राप्त करने! दिल्लू ने आसन बिछाया! शमशान-पूजन किया और फिर शमशान भोग दिया! आज त्रिशूल भी लाया था दिल्लू! उसके बाद उसने अलख उठायी और क्रिया आरम्भ की! दिल्लू ने सही उच्चारण के साथ मंत्रोच्चार संपूर्ण कर डाला! कोई विपत्ति नहीं टूटी उस पर! दिल्लू का आत्म-विश्वास बढ़ गया! दिल्लू तसल्ली से भामिनी-यक्षिणी की साधना में आगे बढ़ता रहा!

इसी तरह छब्बीस रातें गुजर गयीं! अब मात्र पंद्रह दिनों की बात थी, फिर उसको सिद्धि प्रदान होने वाली थी! तेज तेज वो मंत्र पढता जाता और साधना में अग्रसर होता जाता!

सत्ताइसवीं रात्रि की बात है, शमशान जागृत हो गया! भूत-प्रेत, चुड़ैल,पिशाच सब जागृत हो गए! वो लगातार आते उसके सामने और उस पर विष्ठा, पत्थर, मूत्र एवं रक्तादि फेंका करते! परन्तु अडिग दिल्लू हिम्मत नहीं हारा! सामने आते किसी भी प्रेत को अपना त्रिशूल दिखा देता तो प्रेत भाग खड़ा होता! दिल्लू की क्रिया जारी रही!

इसी तरह उनतालीसवीं रात आ गयी! कोई भी भूत-प्रेत अथवा पिशाच उसके डरा नहीं सका! वो उसको लाशें दिखाते उसके परिजनों की! दिल्लू नज़र हटा लेता! कटे सर दिखाते! पिशाच उनका भक्षण करते लेकिन दिल्लू डटा रहा अडिग! उसको प्रेत डिगा नहीं पा रहे थे! कानाफूसी आरम्भ हो गयी अब शमशान में! 'ये कौन प्रबल साधक है?' 'ये कौन है?' आदि आदि!

और मित्रगण! फिर आई अंतिम रात्रि! इकतालीसवीं रात्रि! आज उसको परम-सिद्धि मिल जानी थी! दिल्लू प्रसन्न था उस रात! उसने अपना जीवं झोंक डाला था अपनी प्रेयसी कमिया के लिए!


   
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श्रीशः उपदंडक
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आज अंतिम रात्रि थी! आज भामिनी-यक्षिणी प्रकट होने वाली थी! आज उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होने को थी! उसके मंत्र और तीव्र हुए! अब वो खड़ा होके मंत्रोच्चार करने लगा! आज जैसे कोई प्रबल औघड़ कहर लाने वाला हो शमशान में! साधना का अंतिम चरण आया अब! अब शक्ति-आह्वान करना था! दिल्लू नीचे बैठा! अलख का चक्कर लगाया! और फिर से आसन पर बैठ गया! अब मात्र सात सौ अस्सी मंत्र जपने थे उसे! उसके बाद भामिनी प्रकट होने वाली थी! वो उसको अभीष्ट फल प्रदान करने वाली थी! अब उसने अपना त्रिशूल उखाड़ा! और दूसरी तरफ गाड़ दिया!

सहसा उसकी नज़र सामने पड़ी! कोई लड़की कड़ी थी सामने अँधेरे में! अलख की डगमगाती लपटों की रौशनी में उसे वो स्पष्ट नहीं दिखाई दी! परन्तु उसने अपना ध्यान नहीं हटाया उस से! और न अपना ध्यान ही डिगने दिया! वो लड़की आगे बढ़ी! दिल्लू ने त्रिशूल उखाड़ा और खड़ा हो गया! लेकिन मंत्रोच्चार करता रहा! लड़की और आगे बढ़ी! दिल्लू ने उसे देखा! ये तो कमिया है! नहीं ये कमिया नहीं है, मिथ्या है, मुझे डिगाने की कोशिश की जा रही है! नहीं मै नहीं डिग सकता! मै अपनी क्रिया में तत्पर रहूँगा! ऐसा सोच फिर से बैठ गया दिल्लू साधना में! मंत्र पढता रहा! मात्र पांच सौ तीन मंत्र रह गए थे! मात्र पांच सौ! उसके बाद उसका जीवन साकार!

वो लड़की फिर आगे बढ़ी!

दिल्लू ने उसे देखा! और चौंक गया! किसी भूत-प्रेत आदि की परछाईं नहीं होती लेकिन इस लड़की की तो परछाईं है? ये कैसी माया है? ये क्या हो रहा है? दिल्लू ने कमिया को देखा! आज चालीस दिनों से अधिक हो गए थे कमिया को देखे हुए! माया ही सही, कम से कम कमिया की सूरत तो दिखाई दी ही! उसने फिर से मंत्र पढ़े और क्रिया आगे बढ़ाई!

"दिल्लू?" उस लड़की ने कहा,

"कौन है तू?" दिल्लू ने त्रिशूल उठा के पूछा,

"मुझे नहीं पहचाना तूने?" उस लड़की ने कहा,

"कौन है तू?" दिल्लू ने पूछा,

"मै कमिया, तेरी कमिया!" उस लड़की ने देखा!

"नहीं, ये नहीं हो सकता!" दिल्लू चिल्लाया!

"दिल्लू? तूने मेरे लिए साधना की, मुझे पाने के लिए?" उस लड़की ने कहा,


   
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