वर्ष २००९ बालेश्वर ...
 
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वर्ष २००९ बालेश्वर ओडिशा की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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उसकी वो महा-शक्ति दौड़ी लक्ष्य-भेदन हेतु! मेरी त्रिशाका ने उसको रोका! वहाँ मानव-अवशिष्ट की वर्षा हो गयी! कटे हाथ, पाँव, मुंड, काले काले मस्तिष्क के लोथड़े आदि की वर्षा हुई! मैंने कपाल-मालिनी का आह्वान किया! उसके जागृत होते ही सारे अवशिष्ट पदार्थ लोप हो गए!

उसकी महा-शक्ति मैदान छोड़ भागी!

व्योम नाथ चिढ गया! पाँव पटकने लगा! वो वहाँ से उठा और अपनी एक साधिका को भूमि पर लिटाया और उस पर बैठ गया! उसके दोनों औघड़ अब वहाँ से हट गए, क्रिया रत औघड़ के साथ यदि साध्वी हो तो कोई नहीं ठहरता वहाँ!

व्योम नाथ अब महा-मारण करने वाला था!

अब मुझे शीघ्रातिशीघ्र निर्णय लेना था, मैंने अब अपनी साध्वी को शूमि-शयन हेतु कहा, वो भूमि पर लेट गयी, मैंने भस्मिकृत लहू-लोपित अपना त्रिशूल उसके वक्ष, उदर और पाँव पर लगाया! उस पर शोमित-मंत्र का जाप किया! साध्वी की आँखें मुंदने लगीं! मैंने उस पर शक्ति का प्रभाव तेज किया अब उसका बदन शिथिल हो गया! मैं उसके ऊपर चढ़ कर बैठ गया! उसका चेहरा मेरे सम्मुख था, मैंने बाल-कपाल उसके स्तनों के बीच रखा और रक्त से अभिमंत्रित छींटे दिए, बाल-कपाल जागृत हो गया! तब मैंने त्रिशूल अपना उसके दायें गाड़ दिया!

वहाँ व्योम नाथ ने रक्त और भस्मिकृत मिश्रण अपनी साध्वी पर लगाया! उसने मारन जाप आरम्भ किया! अब उसने अपने त्रिशूल की नोक पर मांस का एक टुकड़ा लगा कर अलख में डाल दिया! और चांदी की एक छड़ से हवा में वार किया! श्वेत रेखा प्रकट हुई! ये एक रेखा समान विद्युतीय रेखा होती है! शत्रु-भंजन हेतु इसका प्रयोग होता है! शत्रु के अक्ष-स्थल में एक दीर्घ छेद कर देती है! उसने ये श्वेत रेखा मेरा और साध्वी का नाम पढ़कर भेज दी!

मै अपनी साध्वी पर खड़ा हुआ और हाथ में बाल-कपाल पकड़ कर उस श्वेत-रेखा के सम्मुख कर दिया! वो कपाल से टकराई! छिद्रण हुआ! मेरे पूरे शरीर में प्रदाह फैल गया परन्तु! मेरे बाल-कपाल ने उसको झेल लिया!

व्योमनाथ का पारा सातवें आसमान पर पहुंचा! उसने अपनी साध्वी को पश्चिनोमुखी दिशा में झुकाया और फिर उसकी कमर पर चढ़ के बैठ गया! मै जान गया, मेरी कर्ण-पिशाचिनी ने बता दिया की अगला वार क्या होगा! ये वार था रिपुदमनिका! तंत्रभाषा में चीरनी!


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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चीरनी के आह्वान हेतु उसने स्त्री-योनि द्रव्य का प्रयोग किया! उसने उसमे भीगे वस्त्र को अपने मुंह में ठूँसा और मंत्रोचार किया! चीरनी प्रकट हो गयी! क्रूर-नित्यान्गना! उसने उसको मेरी ओर भेजा!

मेरे पास इसकी काट थी! मैंने शमनिका का आह्वान किया! वो प्रकट हुई! मैंने नर-मुंड में मदिरा उसको भेंट की! उसने भोग स्वीकार किया और मेरे रक्षण हेतु तत्पर हो गयी! चीरनी आई और शमनिका को देख ठहर गयी! कुछ क्षणों उपरान्त लोप हो गयी!

अब मै वार करना चाहता था! मैंने कर्णिका-आसुरी का आह्वान किया! और उसको उद्देश्य बता कर उसको भोगार्पण दिया! भयान क्रंदनक करती हुई वो अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ी! वहाँ प्रकट हुई तो दो मेख-कन्याओं से उसका सामना हुआ! कर्णिका वापिस हुई और मेरे समक्ष लोप हुई! कर्णिका की काट उसने कर दी थी!

फिर मैंने एक और प्रचंड त्रिशाला-धूमिका का आह्ववान किया! मेरे स्थान पै  श्याम-धूम फैल गया! नेत्रों में राख भर गयी! मैंने रक्त के छींटे, अभिमंत्रित करके अपने नेत्रों में डाले तो नेत्र-ज्योति प्रबल हुई! मैंने उसकी वंदना की! और उसे उसका समुचित भोग देकर, लक्ष्य-भेदन हेतु भेज दिया!

वहाँ, उसने भयानक उत्पात मचाया! डूमरा-वातावरण में उस व्योम को समझने में तनिक विलम्ब हुआ, परन्तु, भदंतिका प्रहार से उसने इसका निष्पादन कर लिया!

उसने वज्रांगा का आह्वान किया! अब मुझे अवसर मिला, एक साथ दो दो शक्ति आह्वान का! वज्रांगा अधोमुखी होती है! साधक को शीर्षासन-मुद्रा में ही साधित करनी पड़ती है! तब उसको अनुक्रमि प्रकार से संधान करना होता है! उसने आह्वान किया! वज्रांगा प्रकट हो गयी और यहाँ मैंने कालेष-जय-पुरुष का आह्वान कर डाला और साथ में यम्पलाक्षिका का! दोनों जागृत हुए!! मैंने दोनों भेज दिए!

वहाँ पहुँच कर वज्रांगा का मार्ग यम्पलाक्षिका ने अवरुद्ध किया और यहाँ मेरे अघोर जय-पुरुष ने औघड़ व्योम नाथ को उसकी साध्वी के ऊपर से उठा कर पटका! वो घबराया और अपनी मृत्यु सन्निकट जान जड़तावास्था धारण की, अघोर-जय-पुरुष ने उसकी साध्वी को एक मुष्टिका मार दूर खदेड़ दिया और एक ही वार से व्योम नाथ के मस्तक पर घातक वार किया!

व्योम नाथ के मस्तक के चीथड़े उड़ गए! मस्तक विहीन व्योम नाथ कुछ क्षण तडपा और फिर शांत हो गया! मेरा अघोर-जयपुरुष आक्रान्त हो कर भ्रमण करने लगा!

मै विजयी हुआ! मैंने दोनों शक्तियों को पुन: व्यवस्थित किया और उनको उनके मंडल में समुचित भोग दे वापिस भेज दिया!


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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मेरा अघोर-जय-पुरुष विजयी हुआ! किन्तु मेरे ऊपर ३ शव-कन्यायों का भोग उधार छोड़ गया था, ये मुझे अगले दिनों में दे देनी थीं, अन्यथा मेरा भी वही हश्र होना था जो व्योमनाथ का हुआ! इसीलिए ठीक ४२ वें दिन उसको उसका भोग दे दिया गया!

मैंने साध्वी को जगाया! मूर्छा-अपघटन दूर किया! साध्वी उठ खड़ी हुई! मैंने उसको समस्त घटनाओं से अवगत करा दिया! वो मुझसे लिपट गयी! उसके मोटे मोटे आंसुओं से मेरा वक्ष-स्थल भीग गया!

शक्ति-संचार से मेरे शरीर की कार्य-कुशलता पर प्रभाव पड़ा! मेरा हदय प्रशावित हुआ और मै निश्चेत हो उसके घुटनों में गिर पड़ा!

प्रातः:काल मुझे होश आया, मेरे पास साध्वी और शर्मा जी और कोकरा जोगन खड़े थे! कोकरा जोगन ने मेरा सर अपनी गोद में लिया हुआ था! उसने मेरा माथा चूमा और मुझे सप्त-लोम दुग्ध पिलाया! प्राण-संचार हुआ! मै सामान्य हुआ! समय सुबह के ९ बजे थे!

स्नानादि पश्चात, मै साध्वी के पास गया!

साध्वी, काले रंग की एक साड़ी में अपना संपुष्ट बदन कसे बैठी थी! मैंने उसके ब्लाउज को देख कर जान लिया की कोकरा जोगन ने मेरे कुछ देह-रहस्य साध्वी को बता दिए हैं!

उस रात मैंने अपना कमवेग जागृत किया और साध्वी के साथ रमण किया!

मित्रगण, वो रमण मुझे आज तक स्मरण है! आज तक! उसकी देह की गंध आज भी मुझे काम्हालादित कर देती है!

तरुणिका आज हरिद्वार से थोडा आगे एक समाज-सेवा संस्था की अध्यक्ष है और समाज-सेवा में तत्पर है, उसने मुझसे एक इच्छा पूर्ण करने को कही है! मै उसकी ये इच्छा अवश्य ही पूर्ण करूँगा, पर अभी नहीं, करीब ३ वर्ष बाद!

------------------------------------------साधुवाद!--------------------------------------------

 


   
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