मैंने पल गिने!
एक एक पल घंटे समान!
“बताइये?” मैंने पूछा,
“जब नाग कुमार मुस्कुराया तो बाबा ने थाली आगे की, वो फिर से मुस्कुराया, इसका अर्थ हुआ कि उसने बाबा की भेंट स्वीकार की थी!” वे बोले,
“हाँ? स्वीकार की थी!” मैंने पूछा,
“और तभी वहाँ एक और सांप प्रकट हुआ था, बिलकुल नाग कुमार जैसा! बिलकुल वैसा ही! हम घबराये तो थे लेकिन बाबा को अडिग देख हम वहीँ डटे रहे थे!” वे बोले,
“वो सर्प कौन था?” मैंने पूछा,
अब बाबा फिर से चुप!
आँखें भींच लीं!
बंद कर लीं!
और यहाँ मेरा दम घुटा!
“बाबा?” मैंने कहा,
बाबा ने आँखें ना खोलीं!
मैं जैसे मछली के जाल में फंसी इकलौती मछ्ली के समान फड़क उठा! नीचे पानी तो है, लेकिन जाऊं कैसे? ये जाल? कोई तो छुड़ाए?
“बाबा?” मैंने उनके कंधे पर हाथ रखा!
बाबा ने धीरे से आँखें खोलीं!
बहुत धीरे से,
साँस ली एक तेज!
“कौन था वो सर्प?” मैंने पूछा,
बाबा फिर से चुप!
खोये हुए अपने आप में,
जीने लगे थे वही क्षण!
“बताओ बाबा?” मैंने इल्तज़ा की!
बाबा ने मुझे देखा,
आँखें मिलीं,
उस वृद्ध की आँखों में मैंने उस समय छोटी छोटी बूँदें देखीं, पानी की! पानी! हाँ! आँखों का पानी! आंसू! उस वृद्ध के आंसू!
जी उमड़ आया था उनका!
लेकिन किसलिए?
क्या कारण था?
“बाबा? कौन था वो सर्प?” मैंने पूछा,
“नाग कुमारी!” वे बोले,
“क्या?” मैंने पूछा,
“हाँ! नाग कुमारी!” वे बोले,
“ओह! मतलब वे दोनों पति-पत्नी थे?” मैंने पूछा,
“हाँ! जोड़ा!” वे बोले,
“अच्छा बाबा!” मैंने कहा,
“बहुत सुन्दर थी वो! एक अप्सरा समान! वे दोनों जैसे एक दूसरे के लिए ही बने थे, पूरक थे एक दूसरे के! आभूषणों ये सजी-धजी! लाल-रंग के वस्त्रों में! दिव्य स्वरुप की साम्राज्ञी! हाँ, साम्राज्ञी! मैंने उस से सुंदर और सौन्दर्यवान स्त्री कभी नहीं देखी है आज तक! रूप-लावण्या ऐसा कि देव और यक्ष या राक्षस देख लें तो वे भी स्वकुल विरोधी हो जाएँ!” वे बोले,
“ओह!” मैंने कहा,
“हमारा तो जैसे जीवन धन्य कर दिया बाबा कैवट ने! ऐसा रूप दिखाया था उस नाग-जोड़े का जो मैंने कभी सुना भी नहीं था! उनकी वंदना करने को जी मचल उठा!” वे बोले,
“सही बात है” मैंने कहा,
“लेकिन कहते हैं ना, भाग्य ने सबकुछ निर्धारित कर रखा है! है ना?” उन्होंने कहा,
“हाँ!” मैंने कहा,
“यही हुआ!” वे बोले,
“क्या हुआ?” मैंने पूछा,
“बाबा रीझ गए उस सौंदर्य पर!” वे बोले,
“क्या???????” मैंने अविश्वास से पूछा!
“हाँ!” वे बोले,
“ओह……….” मैंने अपने सर पर हाथ फेरा!
“बाबा रीझ गए!” वे बोले,
“बहुत गलत हुआ” मैंने कहा,
“हाँ, निःसंदेह!” वे बोले,
“परन्तु वो उस नाग कुमार की पत्नी थी? एक ब्याहता?” मैंने पूछा,
“हाँ, लेकिन शक्ति का भण्डार!” वे बोले,
“गलत!” मैंने कहा,
“हाँ, मेरे लिए, आपके लिए, गलत, लेकिन बाबा के लिए नहीं!” वे बोले,
अब बाबा फिर से चुप!
उनकी चुप्पी दम निकाले जा रही थी मेरी!
डंक खाता जा रहा था मैं!
आगे क्या हुआ?
कैसे अनुमान लगाऊं?
क्या हुआ होगा?
क्या रहा?
उफ़!
जान निचुड़े जा रही थी मेरी!
“क्या हुआ बाबा फिर?” मैंने पूछा,
वे चुप!
मैं बेचैन!
मैंने बाबा के कंधे पर हाथ रखा!
समझ गया उन आंसुओं का मतलब!
समझ गया!
वे आन्सू जो मैंने अभी देखे थे!
गलत हुआ!
कैवट बाबा आप समर्थ होते हुए भी कैसे भटक गए?
कैसे?
क्या हो गया था?
सिद्धि से बड़ा सौंदर्य कैसे हो गया?
ये तो कदापि नहीं सिखाया जाता?
फिर?
“बाबा? फिर?” मैंने पूछा,
बाबा ने एक लम्बी सांस ली!
और फिर हाथ रखा मेरे कंधे पर!
“सच कहा, बहुत गलत हुआ!” वे बोले,
“क्या हुआ था?” मैंने पूछा,
“बाबा ने एक मन्त्र पढ़ा! नागा कुमार इस से पहले कुछ समझता, बाबा ने पाश फेंक दिया मंत्र का, नाग कन्या खिंची चली आयी बाबा के पास! नागिन के रूप में! बाबा ने झट से उसको उठाकर अपने झोले में डाल दिया और उड्डूक-मंत्र पढ़ते हुए उसको झोले में ही क़ैद कर लिया!” वे बोले,
“ओह………..बहुत बुरा हुआ ये तो……..बहुत बुरा!” मैंने कहा,
“हाँ, बहुत बुरा!” वे बोले,
मैं चुप हो गया!
वहीँ खो गया!
ये क्या कर दिया बाबा ने?
“बहुत गलत किया ये सब, ये नहीं करना चाहिए था बाबा को, वे समर्थ थे, जिस कार्य हेतु आये थे वे कार्य करते, लेकिन उस नाग-कन्या का हरण करना बहुत अनुचित है, बाबा कैवट इतने समर्थ होते हुए भी ये नहीं समझ पाये? अफ़सोस!” मैंने कहा,
“हाँ, हमे भी यक़ीन नहीं हुआ, मैंने सोचा शायद ये कोई क्रिया है, नाग कुमार से सौदेबाजी करने की , लेकिन ऐसा नहीं था!” वे बोले,
“हाँ नहीं था ऐसा” मैंने कहा,
वे चुप हुए!
और मैं खोया उस दृश्य में!
कैसा दृश्य होगा वो?
क्या सोच रहा होगा वो नाग कुमार?
क्या सोच रहे होंगे दूसरे नाग?
क्या प्रतिक्रिया हुई होगी?
अपनी शक्ति का घमंड था ये या कोई क्रिया का का ही भाग?
क्या था ये?
“बाबा ये किसलिए किया उन्होंने?” मैंने पूछा,
“पता नहीं” वे बोले,
“पता नहीं?” मैंने कहा,
“हाँ! पता नहीं” वे बोले,
“क्यों?” मैंने पूछा,
“इसके बाद जो हुआ, वो मुझे याद नहीं!” वे बोले,
“याद नहीं?” मैंने आश्चर्य से पूछा,
“हाँ, याद नहीं!” वे बोले,
ये क्या कह रहे हैं बाबा?
याद नहीं?
फिर किसे याद है?
क्या हुआ था?
वहाँ क्या हुआ था?
कौन बतायेगा?
कौन?
मैं और शर्मा जी वहीँ अटक गए थे!
क्या करें?
किस से पूछें?
मैंने बाबा को देखा, वो आँखें ढके बैठे थे!
“बाबा क्या याद नहीं?” मैंने पूछा,
चुप!
“क्या हुआ था वहाँ?” मैंने पूछा,
चुप!
“बाबा, क्या हुआ था वहाँ इसके बाद?” मैंने पूछा,
“मैं बेहोश होने ही वाला था, बस जो मेरी नीमबेहोश आँखों ने जो देखा वो इतना था कि वहाँ कहर टूट गया था, हम नीचे बैठ गए थे, क्योंकि नाग कुमार क्रोध में चिल्लाये थे! भयानक क्रोध में, और वहाँ ना जाने कहाँ से असंख्य सर्प भूमि से निकल पड़े थे, मैं समझ गया, ये अंत है, मैं और मेरे साथी हाथ जोड़कर वहीँ बैठ गए, वे सर्प हम पर लिपट गए, हमारे ऊपर कई कई सर्प लिपट गए थे, एक दंश की ज़रुरत थी और हम वहीँ जंगल में इतिहास बन जाते!” बाबा ने कहा,
“ओह!” मेरे मुंह से निकला,
“क्या देखा था आपने?” मैंने पूछा,
मैंने देखा, नाग कुमार ने क्रोध से बाबा कैवट को एक लात मारी और झोला छीन लिया था, उसके बाद मैं बेहोश हो गया, वहाँ ताप बढ़ चुका था, हम जलने लगे थे, जैसे कोयले की भट्टी में झोंक दिए गये हों, दम घुटने लगा था, शरीर की जान निकले जा रही थी, और मैं उसी क्षण बेहोश हो गया!” वे बोले,
“ओह! ये क्या हुआ?” मैंने पूछा अपने आप से!
फिर गौर किया!
नाग कुमार ने लात मारी थी बाबा कैवट को और झोला छीन लिया था! इसका मतलब वो नाग कुमारी अब नाग कुमार के पास थी, बस उड्डूक -मंत्र की काट करनी थी उसको! नाग कन्या वैसी ही हो जाती फिर से!
लेकिन अब कुछ प्रश्न!
कुछ प्रश्न दिमाग में कोलाहल मचाने लगे!
सच कहता हूँ!
विक्षिप्त सा हो गया मैं उन प्रश्नों से!
पहला.
क्या वो नाग-कन्या अपनी क़ैद से मुक्त हुई?
दूसरा,
नाग कुमार ने क्या किया था बाद में कैवट के साथ?
तीसरा,
बिन्ना का क्या हुआ?
वो तो बाबा के साथ ही था?
चौथा,
दूसरे साथी कहाँ गए?
वे बचे इन बाबा की तरह?
या फिर काल के गाल में समा गए?
ऐसे ऐसे प्रश्न दिमाग में विस्फोट करने लगे!
मैंने बाबा को देखा,
अब बाबा ने पानी माँगा,
मैं दौड़ा दौड़ा भागा पानी लेने के लिए,
उनको पानी दिया,
उन्होंने पानी पिया,
मुंह पोंछा,
और मैंने उनका मुंह तका!
बाकी बचा पानी मैंने पिया!
“बाबा, क्या हुआ फिर?” मैंने पूछा,
“पूरा एक दिन बीत गया था, मेरी बेहोशी कोई सुबह ही टूटी, जब कनपटी गरम कर दी सूरज के प्रकाश ने! मैं उठा, हतप्रभ सा खड़ा हुआ, सबकी देखा, मेरे दोनों साथी वहीँ पड़े थे, मैंने उनको देखा, वे ज़िंदा थे, किसी भी सर्प ने नहीं काटा था हमको! मैं एब्बे को देखा, वो बिन्ना के ऊपर पड़े हुए थे, मैंने उनको जाकर देखा, दोनों जीवित थे! मैंने शुक्रिया अदा किया
ऊपरवाले का! फिर मेरी नज़र गड्ढे पर पड़ी! अब वहाँ कोई गड्ढा नहीं था! वो भर चुका था, हाँ, थाली पड़ी थी वहाँ, सामग्री बिखरी पड़ी थी वहीँ!” वे बोले,
“फिर?” मैंने पूछा,
“मैंने फौरन ही अपने साथियों को जगाया, वे नहीं जागे, मैं ऊपर भागा, वहाँ से दोनों भी नहीं थे, कहाँ गए, कुछ पता नहीं, शायद भाग गए थे वहाँ से, उनको पहले ही भय मार चुका था, हाँ, वे एक मुश्क़ छोड़ गये थे, पानी की, मैंने उसको उठाया, और फिर से ऊपर चढ़ा, नीचे उतरा और सबसे पहले बाबा को मुंह पर पानी छिड़का, वे जागे, होश आया, लेकिन जागकर चुपचाप बैठे रहे, मैंने बिन्ना को भी जगा दिया, वो भी जाग गया, लेकिन वो भी अजीब सी हालत में था, फिर मैंने अपने दोनों साथियों को पानी छिड़क कर उठाया, वे जागे और खड़े हो गए!” वे बोले,
“अच्छा!” मैंने कहा,
वे चुप हुए अब!
मैंने इंतज़ार किया!
उन्होंने पसीना पोंछा!
“फिर बाबा?” मैंने पूछा,
“बाबा को जैसे काठ मार गया था, उन्हें और बिन्ना को कुछ याद नहीं था, लगता था सारी स्मरण-शक्ति हर ली थी उस क्रोधित नाग कुमार ने, स्मरण-शक्ति का ह्रास हो गया था, उन्होंने किसी से बात नहीं की, अब शेष करने के लिए कुछ नहीं था, बस अब वहाँ से वापिस जाना था हमको!” वे बोले,
“ओह..” मैंने कहा,
“हम उसी दिन वहाँ से वापिस हो लिए, बड़ी मुश्किल से हम उन दोनों को अजमेर तक लाये, वहाँ से गाड़ी पकड़ी दिल्ली के लिए और फिर वहाँ से हम उनको यहाँ लाये, वे यहाँ करीब पंद्रह दिन रहे, वो ना किसी से बोलते थे, ना बातचीत ही करते थे, वे जीवित तो थे, परन्तु उनका सब नाश हो चुका था, फिर उनके गुरु उनको ले गए, यहाँ उनका कोई उपचार नहीं हुआ, बिन्ना को भी साथ ले गए, वे चले गए दोनों, और रहा गए हम तीन, वे दोनों जो पानी लेने गए थे कभी ना लौटे!” वे बोले,
“अफ़सोस!” मैंने कहा,
“हाँ! अफ़सोस!” वे बोले,
मैं चुप हो गया!
“और जानते हो? तीन महीने बाद कैवट बाबा ने प्राण त्याग दिए, उनकी अस्थियां भी काली पड़ चुकी थीं, ये उस नाग कुमार का प्रभाव था!” वे बोले,
“ओह..कैवट बाबा की एक भूल ने सब तबाह कर दिया!” मैंने कहा!
“हाँ!” वे बोले,
और दीवार के साथ कमर लगा ली!
“बिन्ना बच गया था?” मैंने पूछा,
“हाँ, उसने इसी अवस्था में कोई तीन साल पहले यहीं प्राण त्यागे थे” वे बोले,
“ओह….” मैंने कहा,
और मैं फिर से कहानी में खोया!
मुझे जैसे सदमा सा लग गया ये सुनकर, वो बाबा कैवट और बिन्ना! वे दो आदमी तो कभी आये ही नहीं, कहाँ गए पता नहीं! हाँ, बिन्ना ने तीन वर्ष पहले ही देह-त्याग दी थी, आयु पूर्ण कर ली थी, लेकिन एक ज़िंदा लाश की तरह! बहुत दुखद घटना थी, बहुत दुखद! बाबा जीवित बच गए थे, इसी कारण ये घटना सुनने को मिली थी, ये मेरा सौभाग्य था कि मुझे ये कहानी सुनने को मिली! मेरा अवधेश जी से मिलना साकार हो गया था! हाँ, बाबा की इस कहानी ने मुझे झकझोर दिया था! एक प्रश्न अभी भी लटका हुआ था तलवार की तरह कि क्या वो नाग कन्या, उस नाग कुमार की पत्नी क़ैद से आज़ाद हो सकी या नहीं? चालीस साल हो गए थे! कहीं क़ैद तो नहीं? कहीं नाग कुमार आज भी उसके मुक्त होने की प्रतीक्षा तो नहीं कर रहा? क्या हुआ था वहाँ? मुश्किल ये थी कि बाबा को कुछ याद नहीं था, बस इतना कि कैवट बाबा को लात मारी थी उस नाग कुमार ने, और झोला छीन लिया था, अब? फिर क्या हुआ? क्या हुआ? बड़ी बेसब्री छायी थी!
कैसे पता करूँ?
कहाँ जाऊं?
कैसे पता चले?
क्या किया जाए?
अब क्या हो?
मैंने बाबा को देखा,
वे दीवार से कमर लगाए देख रहे थे मुझे ही!
मैंने भी उन्हें देखा,
उनके वृद्ध हाथ कांपने लगे थे!
वे भी उस प्रश्न के बोझ तले दबे थे!
मैं समझ सकता था!
और ये भी, कि मुझे कहानी क्यों सुनायी उन्होंने!
“बाबा? कहाँ बताया आपने वो स्थान?” मैंने पूछा,
“पुष्कर से दक्षिण में कोई साठ किलोमीटर” वे बोले,
“पुष्कर से दक्षिण” मैंने कहा,
“हाँ” वे बोले,
“पता नहीं अब वहाँ जंगल है वो कि नहीं?” मैंने पूछा,
“होगा” वे बोले,
“दो साल पहले मैं पुष्कर गया था किसी के साथ, तब भी वो वैसा ही था क्षेत्र” वे बोले,
“अच्छा!” मैंने कहा,
एक आस बंधी!
“मुझे और बताइये उस स्थान के बारे में” मैंने कहा,
अब उन्होंने मुझे बताना शुरू किया, कुछ निशानियाँ, कुछ पहाड़ियां या टीले, पथरीले टीले, शर्मा जी ने एक एक निशानी लिख ली, मैंने सारा ब्यौरा बारीकी से दर्ज़ कर लिया! अब मेरे मन में वहाँ जाने की तीव्र इच्छा ने कुलांच भरी!
मैं विचारों में खोया!
जैसे वहीँ पहुँच गया!
वहीँ विचरण करने लगा!
मेरे सामने वो नाग कुमार आया, झोला थामे, मैं चौंका! विचारों से बाहर आया और फिर से विचार किया, अब वो नाग कुमारी दिखायी दी! मन प्रसन्न हो गया!
“सुनो?” बाबा ने कहा,
मैं चौंका!
“जब उत्तर मिल जाए तो मुझे बी बता देना” वे बोले,
“ज़रूर!” मैंने कहा,
”चालीस साल से ये सवाल मेरे मन में खंजर की भांति घुसा है, न निकलता है न निकाला जा सकता है, मुझे उस घटना का आज तक अफ़सोस है, मुझे कभी उत्तर नहीं मिला” वे बोले,
“अब मिलेगा बाबा!” मैंने कहा,
जैसे मैंने ठान लिया था!
बैठे बैठे कार्यक्रम बना लिया था!
“मिल जाए” वे बोले,
“मिल जाएगा” मैंने कहा,
“मैं वृद्ध न होता तो आपके साथ चलता, लेकिन अब मेरे शरीर में वो जान नहीं, मैं नहीं जा सकता वहाँ” वे बोले,
“कोई बात नहीं बाबा, आपको खबर कर देंगे हम” मैंने कहा,
अब मैंने शर्मा जी औ अपने नंबर दे दिए उनको लिख कर, उन्होंने देखे वे नंबर और कागज़ मोड़ कर अपनी जेब में रख लिया!
और तभी अवधेश जी आ गए!
वहीँ बैठ गए!
“हाँ जी? अब चले?” उन्होंने पूछा,
“हाँ, चलो” मैंने कहा,
“चलो फिर” वे बोले,
हम उठे,
बाबा ने हमको देखा,
मुस्कुराये!
मैं भी मुस्कुराया!
और फिर उनको नमस्ते कह कर हम निकल दिए वहाँ से!
“ऐसी क्या कहानी थी?” उन्होंने पूछा,
“थी!” मैंने कहा,
“क्या?” उन्होंने पूछा,
“बाबा कैवट वाली” मैंने कहा,
वे रुक गये!
“वही बाबा कैवट? असम वाले?” उन्होंने पूछा,
“हाँ” मैंने कहा,
“नाग कुमार!” वे बोले,
“हाँ!” मैंने कहा,
“हाँ मैंने भी सुनी है वो कहानी” वे बोले,
“आपके मन में प्रश्न नहीं आया?” मैंने पूछा,
“आया!” वे बोले,
”फिर?” मैंने पूछा,
“कभी समय नहीं मिला” वे बोले,
“अच्छा!” मैंने कहा,
“आप पता कर सकते हो?” उन्होंने पूछा,
“हाँ” मैंने कहा,
“हम्म, अच्छा!” वे बोले,
“हाँ, मन में प्रश्न है ये” मैंने कहा,
“सच है! मुझे भी उत्सुकता है” वे बोले,
“आप चलेंगे?” मैंने पूछा,
वे रुके,
“अभी नहीं जा सकता” वे बोले,
मैं समझ गया, वे साधना के पूर्वार्ध में थे,
“कोई बात नहीं” मैंने कहा,
अब हम बाहर आये,
वहाँ हमने ठंडा पिया!
फिर सवारी पकड़ी और उनके निवास के लिए चल पड़े!
वहाँ पहुंचे,
कमरे में गए, जूते खोले और बैठ गए!
“उन बाबा का नाम क्या है?” मैंने पूछा,
“जहां से आये हो अभी?” उन्होंने पूछा,
“हाँ?” मैंने कहा,
“चन्द्रन बाबा” वे बोले,
“अच्छा!’ मैंने कहा,
“बाबा कैवट के साथ थे ये, वहीँ से सीखा बहुत कुछ लेकिन उस घटना के बाद से जैसे मन में एक बोझ बैठ गया, कुछ नहीं किया फिर, आज अपना समय काट रहे हैं, वहीँ रहते हैं” वे बोले,
“ओह” मैंने कहा,
“कभी कुछ नहीं बताते” वे बोले,
“अच्छा” मैंने कहा,
“मैं समझ गया कि कौन सा बोझ!” मैंने कहा,
“मैं भी जानता हूँ” वे बोले,
तभी उनका एक साथी पानी ले आया, हमने पानी पिया! अवधेश साहब ने कमरे में लगे कूलर में पानी भरवा लिया उस साथी से!
हम लेट गए!
मैं भी लेट गया!
वर्ष २००९ पुष्कर के पास की एक घटना – Part 2
Posted on December 1, 2014 by Rentme4nite
मित्रगण!
तीन दिन बीते!
आज जाने का दिन था वापिस! मन में बोझ था, लगता था बाबा के बोझ का आधा हिस्सा मैं ले आया था उसी दिन! बाबा चन्द्रन! हाँ! बाबा चन्द्रन का!
खैर, हम स्टेशन पहुंचे!
अवधेश जी हमको छोड़ने आये थे स्टेशन तक, वे प्लेटफार्म तक आ गए, हम तब गाड़ी में सवार हुए और फिर गाड़ी छूटते वक़्त अवधेश जी गले मिल कर हमसे विदा ले गए! हम चल पड़े दिल्ली की ओर!
सारे सफर में दिल बुझा रहा! मैं बस शर्मा जी से उसी विषय में बातें करता रहा! और कुछ सूझा ही नहीं!
हम दिल्ली पहुंचे,