वर्ष २००९ पुष्कर के...
 
Notifications
Clear all

वर्ष २००९ पुष्कर के पास की एक घटना

143 Posts
1 Users
0 Likes
846 Views
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

बाबा को पानी दिया,

उन्होंने पानी पिया!

मैंने कुछ पल इंतज़ार किया!

“फिर बाबा?” मैंने पूछा,

“अब बाबा ने मंत्र चलाया! और उन साँपों पर थूक दिया!” वे बोले,

फिर से खांसे!

“फिर?” मैंने पूछा,

“वे सभी गायब हो गए!” वे बोले,

“वाह!” मैंने कहा,

उत्सुकता और बढ़ गयी! सनसनी फैला दी बाबा ने ये कहानी सुना कर! बेचैनी का ये आलम कि गर्मी लगनी भी भूल गए हम!

 

“वे सांप सारे गायब हो गए!” वे बोले,

“बाबा कैवट की विद्या कमाल की थी!” मैंने कहा,

“हाँ, कमाल की विद्या था उनकी, असम की विद्या थी उनकी, बहुत माने हुए बाबा थे वो अपने समय के!” वे बोले,

“हाँ, लगता है” मैंने कहा,

“हाँ, बहुत माने हुए थे” वे बोले,

बाबा फिर से उसी समय में खोये!

“अच्छा बाबा, फिर?” मैंने कहा,

“फिर वो बड़ा वाला सांप वहीँ टिका रहा, जैसे सोच रखा हो कि कहीं नहीं जाएगा वो, ये बड़ी मुसीबत थी, बाबा ने मंत्र चलाया और त्रिशूल अपनी विद्या पढ़ते ही भूमि को लगा दिया, त्रिशूल लगाते ही झटका लगा, हम भी अपना संतुलन नहीं रख सके और पीछे झुक गए, लेकिन वो सांप! सांप फुफकारा! गुस्से में! गुस्से में फुफकारा वो! लेकिन फिर भी नहीं हटा!” वे बोले,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

“अरे! बड़ा खतरनाक सांप रहा होगा वो!” मैंने कहा,

“बहुत खतरनाक!” वे बोले,

“फिर बाबा?” मैंने पूछा,

“बताता हूँ” वे बोले,

और बाहर चले गये,

शायद तम्बाकू थूकने गये थे!

हम वहीँ बैठे थे, जैसे अपने गुरु का शिष्यत्व ग्रहण कर रहे हों! शांत परन्तु उत्सुक!

बाबा फिर से वापिस आये,

पानी पिया, और बैठ गए!

“उसके बाद?” मैंने पूछा,

“उसके बाद बाबा ने एक और विद्या चलायी! उन्होंने अपने झोले से एक कपाल निकाला, उसके मुंड पर अस्थि से तीन बार टंकार करी, और उस कपाल को अपने सर पर दोनों हाथों से पकड़ के रखा! और फिर……!” वे बोले,

“फिर?” मैंने पूछा,

उत्सुकता ऐसी कि जैसे मथ दिया हो हमको चाकी के दो पाटों में! बेचैनी ऐसी कि जैसे प्रश्नों के बुलबुले उठ रहे हों दिमाग में! ऐसा हाल!

“फिर बाबा?” मैंने पूछा,

“फिर वो सांप उछला और पीछे जा गिरा! बहुत बड़ा सांप था वो! बहुत बड़ा! किसी ऊँट को भी गिरा दे ऐसा सांप था वो! हमारी तो रीढ़ कंपकंपा गयी उसको पूरा देख कर!” वे बोले,

और यहाँ हम कंपकंपा रहे थे!

“फिर?” मैंने पूछा,

“फिर! फिर बाबा भागे उस सांप की तरफ! सांप बेसुध सा पड़ा था, बाबा ने उसके फन पर कुछ वस्तु या सामग्री कहो, गिरायी, सांप जागा और फुफकारा, लेकिन जैसे ही सांप ने बाबा पर प्रहार किया, किसी अभेद्य ढाल ने बाबा की रक्षा की! बाबा वैसे के वैसे ही खड़े रहे! सांप


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

गुस्से में फुफकारता रहा, उसने आसपास की झाड़ियों में भी हलचल कर दी, छोटे-मोटे पत्थर ऊपर से नीचे खिसकने लगे, धूलम-धाल हो गया वहाँ! सांप किसी भी तरह से बाबा को काटना या क्षति पहुंचाना चाहता था, किसी भी तरह से, लेकिन बाबा का कुछ नहीं बिगड़ा! और हम, हम, डोर से लटकी हुई कठपुतलियों के समान सारा दृश्य देखते रहे!” वे बोले,

“सही कहा आपने!” मैंने कहा,

“बहुत डरावना दृश्य था वो!” वे बोले,

“अवश्य ही होगा!” मैंने कहा,

“कोई और होता तो प्राण छोड़ देता उसका चोला वहीँ पर!” वे बोले,

“निःसंदेह!” मैंने कहा,

“ये तो बाबा कैवट का ही प्रभाव था कि हम अभी तक जीवित थे!” वे बोले,

“हाँ बाबा!” मैंने कहा,

“फिर?” मैंने पूछा,

रोक ना सका अपने आपको मैं!

कैसे रुकता! कोई सवाल ही नहीं था रुकने का!

“फिर?” मैंने पूछा,

“अब बाबा ने जैसे उस सांप से कुछ कहा! जैसे कोई बात कही हो! इतना सुन सांप झुंझला गया! वो भागा वहाँ से और सीधा गड्ढे में घुस गया!” वे बोले,

“अच्छा!” मैंने कहा,

“हाँ!” वे बोले,

“फिर?” मैंने पूछा,

“बाबा फिर गड्ढे तक आये और फिर से एक मुट्ठी मिट्टी उठायी, और गड्ढे में फेंक दी! भयानक सी आवाज़ हुई! जैसे फिर से लोहे के बड़े बड़े घन टकराए हों वहाँ!” वे बोले,

”अच्छा!” मैंने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

“हाँ! भयानक आवाज़!” वे बोले,

“आगे?” मैंने पूछा,

“फिर शाम का सा धुंधलका छाने लगा, बदली छा गयी थीं आकाश में, बाबा ने आकाश को देखा, और फिर बिन्ना से कुछ कहा, अब बिन्ना ने हमको पुकार कर कहा कि हम लोग वापिस ऊपर जाएँ! हम ऊपर जाने लगे, वे जो दो आदमी थे, जो डर कर भाग आये थे वहाँ से, वे वहीँ बैठे थे, थोड़ी देर में बाबा भी वहीँ आ गए!” वे बोले,

“अच्छा! मतलब उस दिन की आजमाइश ख़त्म?” मैंने कहा,

“हाँ! ख़त्म” वे बोले,

“अच्छा!” मैंने कहा,

“अब बाबा ने कहा कि अब अधिक समय नहीं है, अब वो पाश फेंकेंगे कल, और नाग कुमार खिंचा चला आएगा वहाँ, फिर उस से लड़कर वे शक्ति हांसिल कर लेंगे! और हम सबको भी कुछ ना कुछ अवश्य ही मिलेगा! एक तरफ तो हमको ख़ुशी थी, और दूसरी तरफ डर के मारे पेट और छाती एक हुए पड़ी थी! लेकिन हमने बाबा का कमाल देख लिया था, तो मन में कोई डर बाकी नहीं रह गया था, और बाबा ने भी सबकी हिम्म्त बंधवाई थी!” वे बोले,

“अच्छा! ये तो है!” मैंने कहा,

“उस रात फिर से हम सुरक्षा घेरे में सो गए, साथ लाये हुए तिलकूट आदि खा कर पेट भरा और फिर कुछ घूँट पानी पिया, अब पानी कम ही था हमारे पास, कल सुबह उन्ही दो आदमियों को पानी ढूंढने जाना था और हमको बाबा के साथ आजमाइश में खड़े रहना था!” वे बोले,

“उस रात सो गए फिर?” मैंने पूछा,

“हाँ! सो गए हम!” वे बोले,

“अच्छा!” मैंने कहा,

तभी अवधेश जी आ गए!

वज्रपात सा हुआ!

क्या करें अब?

कहीं जाने को बोला तो?


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

अब क्या कहेंगे?

वे आये, और बैठ गए!

पानी पिया!

“हाँ जी, चलें अब?” उन्होंने पूछा,

“वो…..ऐसा ही कि बाबा से कुछ बात कर रहे हैं हम, बस आधा घंटा और, उसके बाद चलते हैं, क्यों?” मैंने पूछा,

“ऐसी क्या बात है?” उन्होंने हंसते हुए पूछा,

“है कोई, वो राजस्थान की कहानी है” मैंने कहा,

“अच्छा!” वे बोले,

“हाँ जी!” मैंने कहा,

“चलो ठीक है, आप सुनो, मैं फिर आया अभी!” वे बोले,

“ठीक है!” मैंने खुश होकर कहा,

वे उठे और चले गए!

मैंने घड़ी देखी तो चार का समय हो चला था!

“अच्छा बाबा! फिर बताओ?” मैंने पूछा,

“अगली सुबह हम उठे! जैसे तैसे हाथ-मुंह धोया और फिर बाबा ने बिन्ना के साथ बैठकर कुछ आवश्य सामान निकाला, उसको एक झोले में रखा और हमको साथ लिए, हम चल पड़े उनके साथ, वे दोनों आदमी पानी की तलाश में चले गए जंगल में!” वे बोले,

“अच्छा!” मैंने कहा,

“हाँ!” वे बोले,

“फिर बाबा?” मैंने पूछा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

“फिर हम ऊपर चढ़े! और फिर वहाँ से नीचे उतर गए, गड्ढे तक पहुंचे! अब बाबा ने गड्ढे को अपने त्रिशूल से जैसे कीला, उन्होंने गड्ढे के मुंह पर घेरा बना दिया और कुछ सामग्री डाल दी गड्ढे में और फिर हमको शांत रहने को कह दिया, हम शांत हो कर खड़े रहे!” वे बोले,

और यहाँ हम शांत होकर सुनते रहे ये हैरतअंगेज़ कहानी!

 

“अच्छा बाबा! तो क्या वो नाग कुमार आने वाला था अब? बाबा के अनुसार?” मैंने पूछा,

“बाबा ने यही बताया था, कि आज नाग कुमार को प्रत्य़क्ष कर लेंगे वो, और फिर उस से भी लड़ेंगे और फिर उसके बाद वो शक्ति या कोई अन्य महा-विद्या अवश्य ही प्राप्त कर लेंगे!” वे बोले,

“मानना पड़ेगा बाबा कैवट को!” मैंने कहा,

“हाँ! मानना पड़ेगा!” वे बोले,

“बाबा एक बात और?” मैंने पूछा,

“हाँ?” उन्होंने मुझे देखते हुए पूछा,

“उस नाग कुमार में ऐसा क्या था कि जिसके लिए बाबा देश के एक सिरे से दूसरे सिरे तक खींचे चले आये? मेरा मतलब इतनी दूर?” मैंने पूछा,

“बताता हूँ, बाबा कैवट के जो गुरु थे, वे नाग-कन्यायों के संपर्क में थे, उन्ही से वो जानकारी प्राप्त हुई थी उनको, उन्हीने ने बाबा कैवट को वहाँ से लिए भेजा था, और आप जानते हो, असम तो नाग-स्थान रहा है आरम्भ से ही?” उन्होंने कहा,

“हाँ बाबा! अब समझ आ गया, लेकिन उस नाग कुमार की कोई विशेषता?” मैंने पूछा,

“हाँ, वो विद्या-ज्ञानी है, कई विद्यायों का जानकार! ये बात कैवट बाबा को उनके गुरु ने बताया था! कैवट बाबा हमेशा रक्ताभ्र धारण किये रहते थे गले में, आप जानते हो ना रक्ताभ्र?” उन्होंने पूछा,

“हाँ बाबा! जानता हूँ!” मैंने कहा,

“ये विशेषता थी, अब जानो आप!” वे बोले,

“समझ गया!” मैंने कहा,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

“हाँ!” वे बोले,

“तो वो विद्या-संचरण करने गए थे!” मैंने कहा,

“हाँ!” वे बोले,

“अच्छा बाबा!” वे बोले,

“हाँ!” वे बोले,

“फिर?” मैंने फिर से फिर की रट लगायी!

“अब बाबा ने धौज-मंत्र पढ़ा! और हमको अपने पास बुलाया, फिर सबके नेत्र पोषित किये, वे चाहते थे कि हम भी अब वो सब देखें जो आँखों से नहीं दिखायी पड़ता! हमारे नेत्र पोषित हो गए! और दृश्य स्पष्ट हो गया!” वे बोले,

“धौज-मंत्र! अर्थात कलुष!” मैंने कहा,

“हाँ!” वे बोले,

“अच्छा!” मैंने कहा,

“फिर बाबा ने एक मंत्र पढ़ा, एक मुट्ठी मिट्टी उठायी, उसमे थूका और फिर वो मिट्टी उस गड्ढे में फेंक दी!” वे बोले,

“ओह!” मैंने कहा,

“मिट्टी फेंकते ही वहाँ से जो काले रंग का धुंआ निकला, भयानक धुआं, एकदम काला! ज़हरीला धुंआ! कोई सूंघ ले तो केवल कंकाल ही शेष रहे शरीर पर! बाबा ने हमको पीछे हटा दिया, हम पीछे भागे! और तभी वहाँ एक भयानक सर्प प्रकट हुआ! चितकबरा सा सांप, चितकबरा सा ही लगा वो मुझे तो! मोटी मोटी दहकती आखें! भयानक रूप उसका! उसको देखते ही भूमि सरकी पाँव के नीचे से!” वे बोले,

“अच्छा!” मैंने कहा, उत्सुकता ने मुझे डंक मारा अब!

“वो सांप बहुत बड़ा था, गुस्सैल! उसने मुंह फाड़ा तो ज़हर श्लेष्मा के रूप में नीचे गिरा, बाबा पीछे हट गए, बिन्ना को भी पीछे ले लिया! उस सांप के मुंह से झाग टपकने लगा था, हाँ, धुंआ नहीं था अब बिलकुल भी!” वे बोले,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

अच्छा!” दूसरा डंक लगा मुझे अब!

जैसे उसी सांप का!

चितकबरे सांप का!

“अब सांप ने लड़ना शुरू किया जैसे, बाबा के पास आकर उसने फुंकार मारी, बाबा के साफे से बंधी रस्सी जैसे कपड़े की वो कत्तर हिली! सांप की तरह! उनकी मालाएं हिल गयीं, और सच पूछो तो हम सब हिल गए! बहुत डरावना दृश्य था वो! एक से एक सांप आ रहे थे वहाँ! ये सचमुच में भयानक था!” वे बोले,

“होगा! बिलकुल होगा!” मैंने कहा,

“सांप ने कोई क़सर नहीं छोड़ी! वो बाबा के पास आता और जैसे कोई उसको धक्का दे देता, वो गुस्से में फुफकारता और फिर पीछे चला जाता! अब बाबा ने फिर से एक मंत्र पढ़ा, और सांप की तरफ फूंक मार दी! और देखते ही देखते वो सांप वहाँ से गायब हो गया! जैसे शून्य में समा गया हो वो! जैसे वो वहाँ था ही नहीं! जाइए भूमि ने अवशोषित कर लिया हो! हमारी आँखें जितना फट कर देख सकती थीं उतना फट गयीं! अगर बाबा ना होते तो मेरा तो हृदयाघात से प्राण-हरण हो जाता! हल पल हृदय उछलता और गले तक आ जाता, मैं सांस भर कर, थूक गटक कर उसको नीचे करता! पूरे सीने में हृदय के स्पंदन महसूस कर सकता था! ऐसा सबकुछ मैंने पहले सुना ही था, देख पहली बार रहा था!” वे बोले,

फिर बाबा ने मुझे और बताया! मैं आपको वहीँ के दृश्य में ले जाता हूँ, प्रयास किया है, आशा है आप समझ जायेंगे!

गरम हवा चल रही थी, माहौल भी गरम था वहाँ, एक से एक विषधर वहाँ आये थे, एक के बाद एक!

तभी बाबा वहीँ गड्ढे के पास बैठ गए!

“बिन्ना?” बाबा ने कहा,

“हाँ जी?” बिन्ना ने कहा,

“कौआरी के पंख दे तो?” बाबा ने कहा,

कौआरी, एक जल-पक्षी होता है! अक्सर छोटे संपोलों को भोजन बना लेता है!

बिन्ना ने कौआरी के पंख दे दिए बाबा को!

बाबा ने वे पंख थाल में रखे!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

कुछ मंत्र पढ़े!

“ज़रा पच्छकट दे तो?” बाबा ने माँगा,

बिन्ना ने वो भी दिया!

पच्छकट अर्थात आल पौधे की जड़ जो कि रंगाई के काम आती है!

बाबा ने वो भी थाल में रखी!

और मंत्र पढ़े!

“बिन्ना?” बाबा ने कहा,

“हाँ जी?” बिन्ना ने कहा,

“अम्बोधिवल्लभ दे?” बाबा ने कहा,

बिन्ना ने वो भी दी, झोले से निकाल कर!

अम्बोधिवल्लभ अर्थात एक प्रकार का विशेष प्रवाल!

बाबा ने फिर से मंत्र पढ़े!

“ज़रा खम्भारे की मिट्टी दे?” बाबा ने कहा,

अब बिन्ना ने झोले में से एक और पोटली निकाली और खम्भारे की मिट्टी दे दी बाबा को! बाबा ने वो भी रख ली थाली में!

खम्भार! अर्थात जहां पर हाथी रहते हैं, उनकी लीद से सनी मिट्टी! इसके कई तांत्रिक लाभ होते हैं मित्रगण! यदि किसी को फ़ालिज़ मार गया हो, अधरंग हो, सुन्नावस्था हो तो खम्भार को नीम के तेल में डालकर रख दीजिये एक महीना, मिट्टी के बर्तन में, उसके बाद उसको कपड़छन करने के बाद उसको मालिश के प्रयोग में लाएं, रोग कितना भी पुराना हो, ख़त्म हो जाएगा! स्नायु-तंत्र स्वस्थ हो जाएगा!

ये सभी तांत्रिक-प्रयोग की वस्तुएं हैं! बाबा कैवट सबकी तैयारी करके लाये थे, इस से वे उस नाग कुमार को पकड़ सकते थे, आगे मन्त्र-माया थी! विद्याएँ थें!

बाबा ने वो थाली वहीँ रखी और खड़े हुए!

“बिन्ना, खड़ा हो?” वे बोले,


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

बिन्ना खड़ा हुआ!

“जा, वहाँ खड़ा हो जा!” वे बोले, गड्ढे के दूसरी ओर इशारा करके!

बिन्ना वहाँ चला गया!

अब बाबा ने एक काली डोर फेंकी, डोर का गुच्छा, उसकी तरफ!

“उठा ले इसे” वे बोले,

बिन्ना ने उठा लिया!

“अब एक लकड़ी से उसमे बाँध कर गाड़ दे ज़मीन में” बाबा ने कहा,

बिन्ना ने ऐसा ही किया, लकड़ी ली, डोर बाँधी और वहीँ गाड़ दी लकड़ी ज़मीन में!

“अब आजा इधर” वे बोले,

“बिन्ना आ गया उधर” वे बोले,

अब बाबा बैठ गए!

और फिर से एक मंत्र पढ़ते हुए कुछ मिट्टी गड्ढे के अंदर फेंक दी!

फिर से शोर हुआ!

जैसे कोई रहट घूमा हो!

और फिर बाबा ने आँखें बंद कर लीं!

अब हुई क्रिया आरम्भ!

 

बाबा ने अब मंत्र पढ़ने शुरू किये, आँखें बंद करके! अब उनके मंत्र गहन हो चले थे! अब वो वाक़ई उस नाग कुमार को प्रत्यक्ष करना चाहते थे! बहुत खेल खेल लिया था उन्होंने! अब कुछ असल में करने की बारी थी! बाबा मंत्र पढ़ते गए और कुछ सामग्री फेंकते चले गए गड्ढे में! गड्ढे में से आवाज़ें बढ़ती चली गयीं! शोर ऐसा कि कोई भी पशु-पक्षी वहाँ की ओर मुंह नहीं कर रहा था! सभी भय के मारे कहीं ना कहीं छिपे हुए थे! और वे पांच वहीँ टिके हुए थे! तीन तो बुरी तरह से ख़ौफ़ज़दा थे, बस बिन्ना और बाबा ही थे जो बिना किसी भय के वहाँ अपने प्राण दांव पर लगा कर वहीँ बने हुए थे!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

तभी गड्ढे से भयानक शोर उठा!

मिट्टी उछली वहाँ की!

बाबा की छाती और बिन्ना की छाती तक धूल-धक्कड़ हो गया!

अब बाबा खड़े हुए!

बिन्ना को भी खड़ा किया,

वो भी खड़ा हुआ!

अब बाबा पीछे हुए, बिन्ना भी पीछे हुआ!

और तभी एक और भयानक सांप वहाँ गड्ढे से बाहर आया!

एकदम सफ़ेद रंग का!

गले में गौ-चरण का चिन्ह लिए!

गले में धारियां थीं उसके!

सुनहरी धारियां!

सूरज के प्रकाश में उसकी धारियां ऐसे चमक रही थीं कि जैसे उसने स्वर्णाभूषण धारण किये हुए हों!

और फिर उसके साथ वहाँ और भी छोटे-बड़े सांप आदि वहाँ गड्ढे से निकलने लगे! हज़ारों सांप! सभी हमको ही देखते हुए!

उस सफ़ेद सर्प ने फन ऊंचा किया, जैसे हमको देखा हो एक ही दृष्टि में! मारे भय के टांगें काँप गयीं! एक सर्प ने भी दंश मारा तो नीचे झुकने से पहले ही प्राण-पखेरू उड़ जायेंगे! और सीधा यमपुरी में ही पनाह मिलेगी!

अब बाबा ने वो थाली उस सफ़ेद सर्प के सामने रखी, उस सर्प ने थाली को देखा, अपनी बिल्लौरी आँखों से नज़र डाली और अपनी जीभ लपलपाते हुए वो अपना मुंह थाली तक लाया, फिर किसी घोड़े के समान उसने फूंक मारी, फुंकार! मिट्टी उड़ चली! और हम खड़े खड़े कांपे! हाथों में पसीना आ गया! खोपड़ी से बहता पसीना रीढ़ पर बह चला, माथे पर बहता पसीना चेहरे से होता हुआ होंठों तक आया, लेकिन भय के मारे पसीना भी नमकीन नहीं लगा!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

ऐसा भय! एक बार को तो मन किया कि भाग जाएँ वहाँ से! हर पल जैसे प्रलय की आहत सुनाई देती थी! हर पल जैसे मौत के परकाले अपना खड्ग हमको दिखा दिखा कर त्रास देते!

तब बाबा ने थाली उठायी और अपने हाथ से खम्भार उठाया, और उस सफ़ेद सर्प को जैसे आदेश दिया! सफ़ेद सर्प उनके समीप आ गया! बाबा ने उस खम्भार से उसके सर पर एक टीका लगा दिया! ये देख कर हमारा मुंह खुला रह गया!

बाबा सच में ही कमाल थे!

अब सांस में साँस लौटी!

अब बाबा आगे बढ़े! अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाये! और फिर जैसे कुछ कहा उन्होंने! शायद कोई मंत्र पढ़ा! वो सफ़ेद सांप लहराता हुआ फिर से अपने गड्ढे में जा घुसा! साथ ही साथ उसके साथी सांप भी! सभी ऐसे दौड़े जैसे चूहों की भीड़!

फिर कुछ पल बीते!

कुछ और पल!

हम आँखें फाड़ कर देखते रहे!

और तभी!

तभी ज़मीन हिली!

हम तो जैसे गिरते गिरते बचे!

बाबा भी सम्भले!

बिन्ना गिर गया था, बाबा ने उसको उठाया!

और तब!

तब!

तब उस गड्ढे से एक विशाल फन वाला एक सुनहरा सांप निकला! वो सांप…..वो सांप दैविक था! सुनहरा! चमकता हुआ! दमदमाता! गुलाबी आँखें थीं उसकी! वो क्रोधित नहीं था बिलकुल भी! उसने अपना फन भी आधा ही खोल रखा था! उसने ना फुंकार मारी और ना ही क्रोध किया! यही था वो नाग कुमार!

वही नाग कुमार!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

जिसके लिए हम यहाँ आये थे!

बाबा यहाँ आये थे असम से!

कैवट बाबा के गुरु का कथन सही हुआ!

ये वही था!

वही नाग कुमार!

बाबा आगे बढ़े!

उन्होंने थाली बढ़ायी आगे!

उसने देखा!

कोई फुंकार नहीं!

उस नाग कुमार ने थाली को देखा! और फिर बाबा को देखा!

बाबा ने थाली नीचे रखी!

सांप आगे आया!

बाबा ने अब एक और मंत्र पढ़ा!

ये प्रत्यक्ष मंत्र था!

और अगले ही पल वो सांप हमे एक राज कुमार की तरह से मानव-भेष में नज़र आया! कैसा दैविक पुरुष!

गौर-वर्ण!

विशाल कद-काठी!

चौड़ा वक्ष-स्थल!

काले सघन केश!

बाबा तो छाती तक भी नहीं आ रहे थे उसकी!

उस कुमार ने आभूषण धारण किये हुए थे!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

स्वर्णाभूषण और बहुमूल्य रत्न जड़े आभूषण!

ऐसा अद्वित्य रूप मैंने कहीं नहीं देखा था! आजतक! किसी तस्वीर में भी नहीं! कभी स्वप्न में भी नहीं!

वो कुमार मुस्कुरा रहा था!

जैसे समक्ष कोई हमारे मुस्कुराते हुए, कोई देव-पुरुष साक्षात खड़ा हो!

पलकें झपकना भूल गयीं!

जिव्हा जैसे मुख में किसी कोने में छिप गयी!

शरीर जैसे हिम जैसा शीतल हो गया!

श्वास जैसे आना-जाना भूल गयी!

हम गड़ गए जैसे ज़मीन में!

तभी!

तभी वहाँ और नाग भी निकले! सभी चमचमाते हुए! दूधिया रंग के वे नाग! वे सभी उस नाग कुमार के इर्द-गिर्द पहरेदार की तरह से खड़े हो गए!

ऐसा दृश्य ना कभी सुना और ना कभी देखा!

ओह! कैसे पल थे वे!

वहाँ हवा में भीनी भीनी सुगंध फ़ैल गयी!

कोई दैविक सुगंध!

पृथ्वी पर ऐसी कोई सुगंध नहीं!

मैंने नहीं सूंघी!

कभी भी!

हम तीन जैसे मंत्रमुग्ध से उसको देखते रहे!

और वहाँ बाबा और बिन्ना उस नाग कुमार के अप्रतिम सौंदर्य को निहारते रहे!


   
ReplyQuote
श्रीशः उपदंडक
(@1008)
Member Admin
Joined: 1 year ago
Posts: 9488
Topic starter  

इतना कह कर बाबा ने आँख बंद कर लीं! बाबा, जिनसे मैंने ये कहानी सुन रहा था, उन्होंने आँखें बंद कर ली थीं!

“मैं समझ सकता हूँ बाबा वो सौंदर्य उस कुमार का!” मैंने कहा,

उन्होंने आँखें खोलीं!

“हाँ! अतुलनीय सौंदर्य था उस कुमार का!” वे बोले,

“हाँ, मैं समझ गया!” मैंने कहा,

“तब बाबा ने अपने झोले से कुछ निकाला और उस नाग कुमार के सामने रख दिया! नाग कुमार ने देखा और फिर मुस्कुराया!” बाबा ने कहा!

“अच्छा बाबा!” मैंने कहा,

“सबकुछ सही चल रहा था लेकिन…….” वे बोले,

“लेकिन क्या बाबा?” मैंने पूछा,

 

“लेकिन क्या बाबा?” मैंने पूछा,

बाबा चुप!

अब जैसे सांस घुटी!

जैसे फेंफड़ों से वायु रिक्त!

जैसे चलते चलते पछाड़ खा ली हो!

“बताओ बाबा?” मैंने पूछा,

बाबा चुप!

एकदम चुप!

क्यों?

“बाबा? लेकिन क्या?” मैंने पूछा,

“बताता हूँ” वे बोले,


   
ReplyQuote
Page 3 / 10
Share:
error: Content is protected !!
Scroll to Top