अब मैंने मग से पानी पिया! कहानी रोचक हो चली थी!
“अच्छा! गड्ढे से वो निकला, वो सुनहरा सर्प!” मैंने पानी पीकर और मुंह पोंछते हुए कहा!
“हाँ, एकदम सुनहरा सर्प! जैसे सोने से बना हो!” बाबा ने कहा,
“अच्छा!” मैंने कहा,
“वो सांप बाबा के सीने तक खड़ा हो गया, और लहराने लगा! बाबा वहीँ खड़े रहे, बिन्ना भी वहीँ डटा रहा! और हम पांच आदमी वहीँ जैसे ज़मीन में गड़ गए ये दृश्य देखते देखते!” वे बोले,
“कमाल का दृश्य होगा वो!” मैंने कहा,
“हाँ, अद्भुत!” बाबा ने कहा,
मैंने भी कल्पना की अब उस दृश्य की!
”फिर?” मैंने फिर से सवाल उछाला!
“अब बाबा ने झोले से कुछ निकाला, कटोरी थी वो, हाँ, कटोरी ही थी, उसमे कुछ रखा और उस सांप के सामने रख दिया, सांप ने कटोरी को देखा और फुंकार मारी, बहुत तेज! मिट्टी उड़ गयी वहाँ की, बिन्ना की खुली आँखों में जा पड़ी!” वे बोले,
“ओह!” मैंने कहा,
“बाबा ने कटोरी और आगे कर दी! सांप ने फिर से फुंकार मारी, इस बार बाबा और बिन्ना पीछे हट गए!” वे बोले,
”अच्छा!” मैंने कहा,
“सांप अब जैसे गुस्से में था, उसने कटोरी को फिर से झुक के देखा और फिर से फुंकार मारी, मतलब साफ़ था, बाबा की वो दी हुई वस्तु उसको स्वीकार नहीं थी!” वे बोले,
“क्या था कटोरी में?” मैंने पूछा,
“पता नहीं, कोई सफ़ेद सी वस्तु थी” वे बोले,
“सफ़ेद सी! अच्छा! नागदौत होगा शायद!” मैंने कहा,
“हो सकता है” वे बोले,
“नागदौत से ऐसे विलक्षण सर्पों को पकड़ा जाता है!” मैंने कहा,
“हाँ, सही कहा तुमने” वे बोले,
तभी वहाँ एक और वृद्ध आ गया, वो भी बैठ गया, सर से अंगोछा खोला और चेहरा साफ़ किया, अब बाबा ने उस से अपनी स्थानीय भाषा में बात की, हमारी बात आधी रह गयी, मुझे अफ़सोस सा हुआ, फिर मैंने देखा उस वृद्ध को वहाँ से जाते हुए, मुझे फिर से कहानी की डोर मिली! अच्छा हुआ!
“ये खाने के लिए आये थे, मैंने खाना मंगवा लिया है, आप खाओगे?” बाबा ने पूछा,
“नहीं, आप खाइये बाबा” मैंने कहा,
“कहाँ खाया जा रहा है ऐसे ताप में!” वे बोले,
“हाँ, ताप बहुत है आज” मैंने कहा,
“यहाँ हर साल यही होता है” वे बोले,
“अच्छा बाबा! फिर क्या हुआ?” मुझे उत्सुकता थी, सो मैंने पूछा लिया!
“हाँ, उस सांप ने कटोरी से मुंह हटाया और फिर उन दोनों को देखते हुए ज़ोरदार फुंकार भरी! बाबा और बिन्ना वहीँ डटे रहे, नहीं हिले! अब बाबा ने मंत्र पढ़ने शुरू किये, बिन्ना ने झोले से कुछ सामान निकाला और बाबा को दिया, बाबा ने वो सामान लिया और फिर उस सांप पर मार दिया फेंक कर! वो सांप तभी नीचे चला गया गड्ढे में!” वे बोले,
“वो वापिस चला गया?” मैंने पूछा,
“हाँ, वापिस” वे बोले,
तभी वो वृद्ध खाना ले आये, दो थालियों में, एक बाबा को दी और एक खुद ने रख ली, हमसे पूछा तो हमने धनयवाद के साथ ना कर दी!
वे खाना खाने लगे!
आलू-मटर और परमल की सब्जी थी वो, साथ में कुछ दाल और गाज़र कटी हुई, कुछ चावल और रोटियां! वे खाते रहे!
कहानी में ठहराव आ गया!
उत्सुकता सर पर नाचने लगी!
तांडव करने लगी थी!
मेरे और शर्मा जी के सर पर चढ़कर!
अब इंतज़ार करना था उनके भोजन समाप्त करने का! हम बैठे रहे, कहीं अवधेश जी आ जाते तो उनके साथ फिर वापिस जाना पड़ता, पता नहीं कहानी पूरी होती कि नहीं! ये और चिंता सीने में धंसे जा रही थी!
खैर,
उन्होंने खाना खाया!
फिर थाली एक जगह रखी!
और हाथ-मुंह धोने बाहर चले गए!
वहाँ से हाथ अपने अंगोछे से पोंछते हुए वापिस आ आगये, और बैठ गए! अब तक दूसरे वृद्ध ने भी खाना खा लिया था, उसने बाबा की थाली उठायी और बाहर चला गया!
”अच्छा बाबा! वो वापिस चला गया!” मैंने फिर से पूछा,
“हाँ, वापिस गया वो” वे बोले,
“फिर?” मैंने पूछा,
“बाबा और बिन्ना वहीँ खड़े रहे! और तभी वहाँ एक जोड़ा काले सांप का निकला! वे भी बहुत बड़े थे, फुंकार मारते हुए, उनका फ़न इतना चौड़ा कि…..कि…..आपकी छाती को भी ढक ले! बल्कि ज़यादा ही!” उन्होंने मेरी छाती पर अपने दोनों हाथ रखते हुए कहा!
यदि ऐसा था तो सच में वे विशाल रहे होंगे!
‘वो जोड़ा था?” मैंने पूछा,
“हाँ, जोड़ा!” वे बोले,
“अच्छा!” मैंने कहा,
“उस जोड़े ने सर उठाये अपने, फ़न ताने हुए और फिर ज़ोर से फुंकार मारी! बाबा और बिन्ना भी घबरा गए उनकी फुंकार से! और हम तो कांपते हुए सब देख ही रहे थे! बाबा ने बिन्ना से
कुछ कहा, बिन्ना ने झोले से कुछ निकाला और बाबा को दिया, बाबा ने उसको हाथ में ही फोड़ा और उस जोड़े पर फेंक दिया!” वे बोले,
“अच्छा!” मैंने कहा,
“हाँ!” वे बोले,
“फिर?” मैंने पूछा,
“जैसे ही वो वस्तु उस जोड़े पर पड़ी, शायद वो नाग था, नाग उछला और बिन्ना की तरफ बढ़ा, इस से पहले बाबा कुछ करते उसने बिन्ना के शरीर पर बंध लगा दिया, बिन्ना का दम घुट चला, उसकी जीभ बाहर आ गयी!” वे बोले,
“ओह!” मैंने कहा,
वो चुप थे अब!
”फिर बाबा?” मैंने पूछा,
चुप थे वो,
शायद उसी दृश्य में खो गए थे!
“फिर?” मैंने पूछा,
“फिर बाबा ने अपना त्रिशूल लिया और मंत्र पढ़ा, और उस सांप से छुआ दिया, त्रिशूल के छोटे ही वो सांप कुंडली खोले हवा में उड़ चला और दूर जाकर के पेड़ से टकराया! बाबा ने बिन्ना को उठाया, वो उठा, घबराया हुआ, वो नागिन वहाँ उस गड्ढे से भाग चली उस नाग की ओर! नाग और नागिन वहीँ बैठ गए थे कुंडली मारे!” वे बोले!
“जंगाल-विद्या का प्रयोग किया बाबा ने!” मैंने कहा,
“हाँ!’ वे बोले,
”फिर?” मैंने पूछा,
“अब बाबा और बिन्ना भाग पड़े उन साँपों के पास! उस जोड़े के पास!” वे बोले,
मैं भी जैसे चला गया था उस जोड़े के पास!
‘फिर?” मैंने पूछा,
“वहाँ जाकर अब बाबा ने जैसे उस जोड़े से बात की, जैसे उस जोड़े ने सारी बात सुनी उनकी! और फिर नागिन ने फुंकार मारी! अस्वीकारोक्ति!” वे बोले,
“बिलकुल!” मैंने कहा,
बाबा ने खांस कर गला साफ़ किया!
मैंने थोड़ा सा पानी पिया!
शर्मा जी ने भी पिया!
बाबा ने भी ले लिया, पानी कम था, लेकिन उन्होंने और के लिए मना कर दिया!
“अच्छा बाबा, आगे?” मैंने पूछा,
“बाबा जैसे ज़िद पर अड़ गए! उन्होंने त्रिशूल दिखाया उनको, वे पीछे हुए!” वे बोले,
”अच्छा!” मैंने कहा,
“सांप फिर से आगे आये!” वे बोले,
चुप हुए!
मैंने इंतज़ार किया!
आखिर मुझे ही बोलना पड़ा!
“फिर बाबा?” मैंने पूछा,
“सांप गुस्से में भभक उठे! नागिन तो जैसे उनको खाने को तैयार! लेकिन बाबा और बिन्ना नहीं हटे वहाँ से!” वे बोले,
“बाबा जीवट वाले थे!” मैंने कहा,
“हाँ! बहुत जीवट वाले!” वे बोले,
“फिर बाबा?” मैंने पूछा,
“तभी नागिन भागी वहाँ से, नाग उसके पीछे पीछे, उनके पीछे बाबा और बिन्ना भागे! सांप गड्ढे में घुस गए!” वे बोले,
‘दोनों?” मैंने पूछा,
“हाँ! दोनों!” वे बोले,
मुझे बड़ी बेसब्री हुई! आगे क्या हुआ? बार बार मैं पूछता रहा! और सच में, मैं भी वहीँ उस दृश्य में खो गया था!
“वे दोनों गड्ढे में घुस गए! फिर से शान्ति हो गयी वहाँ! आगे ना जाने क्या हो, इसी मारे हम साँसें थामे वहीँ देख रहे थे! बाबा और बिन्ना ने थोड़ा इंतज़ार किया, फिर जब कुछ नहीं हुआ तो बाबा ने बिन्ना से झोला लिया और कुछ वस्तु, शायद कोई मिट्टी सी थी, उस गड्ढे में डाल दी, और कुछ मंत्र पढ़े! और फिर!!!” वे बोले,
बोलते बोलते रुक गए वो!
अटक गयीं हमारी साँसें!
फिर!!!
क्या हुआ इस फिर के बाद?
“फिर बाबा?” मैंने पूछा,
“उस गड्ढे से फिर एक सांप निकला, अजीब सा सांप!” वे बोले,
“अजीब? कैसे?” मैंने पूछा,
“हाँ अजीब! मैंने ज़िंदगी में ऐसा सांप नहीं देखा!” वे बोले,
“कैसा?” मैंने पूछा,
“उसके दाढ़ी थी, उसकी भौंए काफी लम्बी लम्बी थीं! फ़न सफ़ेद रंग का था, दाढ़ी भी एकदम दूधिया सफ़ेद थी, वो चुपचाप जीभ निकालते हुए उनको देख रहा था, हाँ, उसकी आँखें ऐसी, ऐसी कंचे जैसी! संतरी आँखें, जैसे लावा दहक रहा हो उनमे!” वे बोले,
”अच्छा!” मैंने कहा,
“हाँ! अब बिन्ना बैठा बाबा के कहने पर, झोले से एक थाली निकाली और कुछ सामान! बाबा जो कहे जा रहे थे वो किया जा रहा था, वो बिन्ना!” वो बोले,
“क्या सामान?” मैंने पूछा,
“पता नहीं, क्या था वो, कंकड़-पत्थर से थे वो सब” वे बोले,
कंकड़-पत्थर? वो किसलिए?
शायद कुछ और होगा, दूर से दिखा नहीं होगा!
नहीं दिख पाया होगा!
“अच्छा बाबा!” मैंने कहा,
“तभी सांप को गुस्सा आया और उसने अपने सर से उस थाली को फेंक मारा! अब भागे वे दोनों उठकर वहाँ से, सांप भी भाग उनके पास उस गड्ढे से निकल कर, हमारी साँसें अटक गयीं! जान निकल गयी हो जैसे, हम पाँचों वहीँ खड़े खड़े कांपने लगे!” वे बोले,
“सांप क्रोधित हो गया?” मैंने पूछा,
“हाँ!” वे बोले,
“फिर?” मैंने पूछा,
“बाबा तो झट से एक पेड़ के ऊपर चढ़ गए, ये कीकर का पेड़ था, बाबा ने बिन्ना को भी आवाज़ दी, लेकिन बिन्ना नहीं चढ़ सका!” वे बोले,
“ओह…फिर?” मैंने पूछा,
“सांप ने उसको घेर लिया, उसने बिन्ना को घूर के देखा, बिन्ना ने हाथ जोड़ लिए और वहाँ ऊपर चढ़े बाबा ने फिर से एक मंत्र पढ़ा और नीचे ज़मीन पर थूक दिया, थूक गिरते ही सांप ने कलाबाजी सी खायी और पीछे गया उड़ कर! जैसे किसी ने उसको उठा कर फेंका हो!” वे बोले,
“अच्छा!” मैंने कहा,
“हाँ!” वे बोले,
अब उन्होंने अपने तम्बाकू की थैली निकाली और तम्बाकू हाथ में निकाला, रगड़ने लगे, चूना डाल कर! थोड़ी देर रगड़मपट्टी कर उसको अपने निचले होंठ तले रख लिया और फिर हाथों से ताली मारते हुए हाथों पर लगा तम्बाकू झाड़ दिया!
“फिर बाबा?” मैंने पूछा,
उन्होंने हाथ के इशारे से कहा कि बताता हूँ!
अपने मुंह से फ़ालतू लगा तम्बाकू उन्होंने बहार जाकर थूक दिया,
और फिर आ बैठे!
“फिर बाबा?” मैंने पूछा,
“वो सांप वहीँ गड्ढे के पास जाकर बैठ गया, कुंडली मार कर! अब बिन्ना और बाबा आगे बढ़े, सांप बाबा का बल पहचान गया था, इसलिए अब उत्सुकता से देख रहा था उनको!” वे बोले,
“हाँ, यही बात है” मैंने कहा,
“उसके बाद फिर से थाली सजायी गयी, और उस सांप के सामने रख दी” वे बोले,
“किसने रखी?” मैंने पूछा,
“बाबा ने” वे बोले,
”अच्छा!” मैंने कहा,
“सांप ने फिर से थाली में सर मारकर थाली गिरा दी, अब बाबा ने एक मंत्र पढ़ा और फिर एक मुट्ठी मिट्टी उठायी, और मन्त्र पढ़ते हुए उस सांप पर दे मारी!” वे बोले,
“फिर?” मैंने पूछा,
“फिर तो सांप बिलबिला गया! कभी इधर फ़न मारे, कभी उधर! कभी खड़ा हो और कभी बैठ जाए!” वे बोले,
“पीड़ा पहुंची उसको” मैंने कहा,
“हाँ!” वे बोले,
“फिर?” मैंने पूछा,
“तब बाबा ने मंत्र वापिस ले लिया, सांप थक गया था, वो फ़न चौड़ा करके बैठ गया वहीँ, अब फिर से थाली सजायी गयी, सांप ने थाली को देखा और फिर एक झटके में ही अंदर चला गया वापिस!” वे बोले,
“अच्छा! भोग नहीं लिया?” मैंने पूछा,
“नहीं” वे बोले,
“ओह” मैंने कहा,
“फिर बाबा वहीँ बैठ गए, अपना त्रिशूल वहीँ रेत में गाड़ दिया, और बिन्ना को भी वहीँ बिठा लिया, बिन्ना भी वहीँ बैठ गया!” वे बोले,
”अच्छा!” मैंने कहा,
अब बाबा चुप!
मुझे बेसब्री!
शर्मा जी भी बेसब्र!
आगे क्या हुआ?
क्या रहा?
फिर?
“फिर बाबा?” मैंने पूछा,
“कोई घंटा बीत गया! कोई नहीं आया फिर वहाँ!” वे बोले,
“कोई नहीं?” मैंने पूछा,
“कोई नहीं” वे बोले,
“फिर बाबा?” मैंने पूछा,
“अब दोपहर हो चली थी! थक गए थे वे दोनों, त्रिशूल वहीँ गड़ा छोड़कर वे उठ गए और फिर हमारी तरफ आने लगे, ऊपर चढ़े और हमारे पास आ गये” वे बोले,
“फिर?” मैंने पूछा,
“हमारे के आदमी के पास मुश्क़ थी, उसमे पानी था, हमने पानी पिया, बाबा ने पहले पिया, वहाँ गर्मी बहुत थी उन दिनों, पानी का पूरा इंतज़ाम था हमारे पास, बाबा अब हमको नीचे ले गए, पेड़ के नीचे बैठ गए” वे बोले,
“अच्छा!” मैंने कहा,
“थोड़ी देर सभी ने झपकी ली, वहाँ गोह ऐसे भाग रही थीं जैसे कुत्ते भागते हैं, हमे देख रुक जाती थीं, लेकिन सुरक्षा घेरे के कारण कोई अंदर नहीं आ सकी!” वे बोले,
“अच्छा!” मैंने कहा,
“फिर हम थोड़ी देर सो गए!” वे बोले,
“हाँ, गर्मी के कारण” मैंने कहा,
“हाँ” वे बोले,
अब वे चुप हुए!
वो चुप होते तो हमारी सांस अटक जाती थी!
ऐसा ही हुआ?
“फिर बाबा?” अब शर्मा जी ने पूछा,
“दिन में कोई चार बजे करीब बाबा नेबिनना को उठाया और फिर से नीचे चले गए, अपना सारा सामान लेकर! हम वहीँ मुस्तैद होकर खड़े रहे” वे बोले,
“अच्छा!” मैंने कहा,
“अब बाबा वहीँ बैठ गए, मंत्र पढ़े और मंत्र पढ़ते ही वहाँ आवाज़ें आना शुरू हो गयीं! बाबा और बिन्ना पीछे हटे! और तभी उसमे से एक और वैसा ही सां निकला!” वे बोले,
“कैसा?” मैंने पूछा,
“वैसा ही, दाढ़ी वाला!” वे बोले,
”अच्छा!” वे बोले,
“बहुत भयानक! एकदम काला भक्क! गुस्से में फुफकारता हुआ! पूछ पटकता हुआ! गुस्से में बहुत!” वे बोले,
“अच्छा!” मैंने कहा,
“हाँ!” वे बोले,
“फिर?” मैंने पूछा,
“और फिर उसी गड्ढे में से कई सांप निकले! चमकीले, चांदी जैसे सांप! भयानक रूप उनका! मोटे मोटे!” वे बोले,
“रक्षपेक्षक!” मैंने कहा,
उनको समझ नहीं आया मेरा शब्द!
“रक्षक सर्प!” मैंने कहा,
“हाँ!” बोले और अब समझे!
कहानी और ज़बरदस्त हो चली थी! अब क्या होगा? बस यही जानना था!
“वे चांदी जैसे सांप रक्षक होंगे!” मैंने कहा,
“हाँ, वही थे” वे बोले,
“अच्छा!” मैंने कहा,
“वे करीब बीस रहे होंगे” वे बोले,
”अच्छा” मैंने कहा,
“सभी के सभी चौकस! सभी उन दोनों को घूरते हुए देख रहे थे, कि कब वो हरक़त करें और कब वे टूट पड़ें उन पर!” वे बोले,
”अच्छा!” मैं बोला,
“हाँ” वे बोले,
“उसके बाद बाबा ने मंत्र पढ़ा, और झोले से कुछ निकाल कर उन साँपों पर फेंक दिया, पलक झपकते ही वो सारे चमकीले सांप गायब हो गए!” वे बोले,
”अच्छा!” मैंने कहा,
“हाँ!” वे बोले,
और तभी आवाज़ आ गयी हमे अवधेश जी की! वे आ गए थे मिलकर! अब फंसे हम झंझावात में! कहानी कैसे छोड़ें? क्या कहें?
वे आ गए अंदर!
“चलें?” उन्होंने पूछा,
“अभी?’ मैंने पूछा,
“हाँ?” उन्होंने कहा,
“अभी रुकिए ज़रा” मैंने कहा,
“क्या बात है?” उन्होंने पूछा,
“बाबा से बात कर रहे हैं” मैंने कहा,
“कैसी बात?” उन्होंने पूछा,
“है कोई” मैंने कहा,
“अच्छा, कर लो, मैं आता हूँ फिर थोड़ी देर बाद!” वे बोले,
अब अँधा कहा चाहे?, दो आँखें!
सो मिल गयीं!
वक़्त मिल गया और!
“हाँ बाबा फिर?” मैंने कहा,
“जाओगे नहीं?” उन्होंने पूछा,
“अभी नहीं” मैंने कहा,
“अच्छा!” वे बोले,
“फिर क्या हुआ?” मैंने पूछा,
“अब रह गया वहाँ वो बड़ा सांप! फ़ुफ़कारे, चेतावनी दे, ‘भाग जाओ’ ‘भाग जाओ’ लेकिन बाबा नहीं हुए टस से मस” वे बोले,
“अच्छा!” मैंने कहा,
“अब बाबा ने एक विशेष मंत्र चलाया! सांप के ऊपर एक मुठी मिट्टी उठाकर फेंक दी, सांप जैसे बौरा गया! और फिर गुस्से से अंदर घुस गया!” वे बोले,
“ओह!” मैंने कहा,
“फिर बाबा ने हमको आवाज़ दी, हमको बुलाया, हम डरते डरते नीचे उतरने लगे! हमने बिन्ना को दो बार मौत को गले लगाते देखा था, कहीं ऐसा दुबारा हुआ हमारे साथ तो समझो प्राण वहीँ छूटे!” वे बोले,
“हाँ, भय की बात है” मैंने कहा,
“भय नहीं! वो सांप ही अलग थे! जैसे सर्पलोक के सांप!” वे बोले,
“हाँ जी” मैंने कहा,
“उसके बाद हम नीचे उतरे, बाबा ने हमसे कहा कि गड्ढा घेर के खड़े हो जाओ, डर के मारे तलवों में पसीने छूट गए हमारे तो! खैर, खड़े हो गए!” वे बोले,
“फिर?” मैंने पूछा,
“अब बाबा ने मन्त्र चलाया, और गड्ढे में रुई का एक फाहा फेंका, वो भक्क से जला और राख हो गया!” वे बोले,
“अच्छा!” मैंने कहा,
“हाँ, बाबा ने बताया कि वहाँ कोई शक्ति रक्षा कर रही है उस नाग कुमार की, वो भी आएगा, फाहा इसीलिए फेंका था उन्होंने!” वे बोले,
“अच्छा! जानने के लिए!” मैंने कहा,
“हाँ” वे बोले,
“तब एक और फाहा फेंका उन्होंने एक मंत्र पढ़ते हुए, फाहा फिर से राख हो गया! बाबा ने पीछे हटने को कहा, और एक मुट्ठी मिट्टी डाल दी गड्ढे में! भयानक आवाज़ हुई!” वे बोले,
“कैसी आवाज़?” मैंने पूछा,
“जैसे बड़े बड़े घन, लोहे के टकरा रहे हों एक दूसरे से!” वे बोले,
“कमाल है!” मैंने कहा,
“हाँ, कमाल है” वे बोले,
“फिर?” मैंने पूछा,
“और फिर वहाँ जैसे अँधेरा छा गया!” वे दोनों हाथों से बताते हुए बोले,
“अँधेरा?” मैंने पूछा,
“हाँ अँधेरा!” वो बोले,
“कैसा अँधेरा?” मैंने पूछा,
”एक महादीर्घ सांप निकला वहाँ! बहुत बड़ा फ़न उसका! इतना बड़ा की उसकी परछाईं में हम सब ढक गए!” वे बोले,
“इतना बड़ा?” मैंने पूछा,
“हाँ!” वे बोले,
“उसको देख कर हम सब घबरा गए! उसने फुंकार मारी, हम सभी काँप गए! डर के मारे खून जम गया हमारा तो वहाँ!” वे बोले,
“ये बात तो है!” मैंने कहा,
“हमारे दो आदमी भाग निकले वहाँ से, बाबा ने आवाज़ दी लेकिन वो नहीं रुके, वे डर गए थे, वो ऊपर चढ़ गए, और फिर नीचे उतर गए दूसरी तरफ! और हम यहाँ डरते हुए खड़े रहे, बाबा थे तो भी डर बहुत लग रहा था!” वे बोले,
“सही बात है” मैंने कहा,
“अब बाबा आगे बढ़े, सांप ने अपना फ़न ताना उनके ऊपर, बाबा ने अपना त्रिशूल उठाया और उसको दिखाया, सांप पीछे हटा, बाबा आगे बढ़े, सांप और पीछे हटा, बाबा और आगे बढ़े, अपने त्रिशूल के सहारे वे आगे बढ़ते रहे, सांप वापिस गड्ढे में उतर गया!” वे बोले,
“क्या वो नाग कुमार था?” मैंने पूछा,
“नहीं” वे बोले,
‘तो?” मैंने पूछा,
“वहीँ से था, पहले वालों की तरह” वे बोले,
”अच्छा, एक एक करके आ रहे थे?” मैंने पूछा,
“हाँ” उन्होंने कहा,
तभी बाबा ने पानी माँगा,
शर्मा जी पानी लेने गए,
पानी ले आये,
बाबा को दिया,
उन्होंने पिया और मुंह पोंछा,
बाकी पानी मैंने पी लिया!
“फिर?” मैंने पूछा,
“फिर बाबा गड्ढे के मुहाने पर गये, वहाँ खड़े हुए और कोई मंत्र पढ़ा! भटाक की सी आवाज़ हुई, जैसे कोई फाटक टूटा हो!” वे बोले,
“गड्ढे में से?” मैंने पूछा,
“हाँ” वे बोले,
“क्या हुआ था?” मैंने पूछा,
“आवाज़ दो तीन बार हुई, बाबा ने हमको पीछे जान एको कहा, हम सब पीछे भागे!” वे बोले,
”फिर?” मैंने पूछा,
अब बाबा रह गए वहाँ अकेले!
हम में और उनमे कोई तीस फीट का अंतर रहा होगा!
“अच्छा!” मैंने कहा,
“तभी गड्ढे से छोटे छोटे सांप निकले, ये सभी ज़हरीले थे, धूप में नीले चमक रहे थे! हम घबरा गए! सभी फ़न चौड़ा करके गड्ढे को घेर कर खड़े हो गए!” वे बोले,
“ओह!” मैंने कहा,
“वे सभी भयानक थे” वे बोले और खांसी उठ गयी उन्हें!
शर्मा जी पानी लेने चले गए!