अलौकिक सौंदर्य उसका!
लम्बा कद!
सघन केश-राशि!
घुंघराले, कन्धों तक झूलते केश!
चौड़ा वक्ष!
दिव्य आभूषण!
मुस्कुराते हुए!
फिर वहाँ और भी नाग प्रकट हुए!
वे भी अलौकिक!
सभी मुस्कुराते हुए!
लेकिन?
वही प्रश्न?
वो नाग कुमारी कहाँ है?
कहाँ है?
मैं रोक न सका अपने आपको!
मेरे घुटने मुड़ते चले गये!
मैं घुटनों के बल बैठ गया!
शर्मा जी भी बैठ गए!
मैंने हाथ जोड़े!
और मेरे मुंह से निकला मेरा प्रश्न!
“कहाँ है वो?”
उस नाग कुमार ने मुझे देखा!
मुस्कुराया!
“कौन?” उसने पूछा,
“वो जिसको बाबा कैवट ने क़ैद किया था झोले में अपने!” मैंने बताया,
वो मुस्कुराया!
और अपना बायां हाथ आगे किया,
आगे बढ़ा!
और मुझे उठाया!
मैं उठ गया!
उसके दिव्य स्पर्श से मैं शीतल सा हो गया!
मेरी ऊर्जा जैसे स्थिर हो गयी!
“वो!” उसने कहा,
हाथ से इशारा किया,
मैंने देखा,
वहाँ गड्ढे के पास अब एक सुन्दर स्त्री खड़ी थी!
अतुलनीय सौंदर्य!
साक्षात अप्सरा!
अनुपम सौंदर्य!
मैंने देखा तो देखता ही रहा गया!
समझ गया!
क्यों रीझे थे कैवट बाबा उसके सौंदर्य पर!
एक यक्षिणी से भी अनुपम सौंदर्य था उसका!
उसने मुझे देखा,
मुस्कुरायी,
मैं धन्य हुआ!
ओह!
कैसा एहसास था वो!
क्या नाम दूँ?
कैसे लिखूं?
कैसे बयां करूँ?
नहीं कर सकता!
कदापि नहीं कर सकता!
वो मुक्त हो गयी थी!
बाबा कैवट को लात मारने वाले और उसकी विद्यायों का हरण करने वाले उस नाग कुमार ने मुक्त कर लिया था उसको!
ओह!
चालीस साल का बोझ बाबा का अब उतर जाएगा!
मुझे सुकून हुआ!
बहुत सुकून!
जैसे मरते में जान आ गयी हो!
जैसे प्यासे को पानी मिल गया हो!
मैंने सर झुका लिया!
और तभी!
तभी मेरी नज़र वहाँ बैठे संपोले पर गयी!
मेरा मित्र संपोला!
मेरे आंसू निकल पड़े!
मैंने हाथ आगे बढ़ाया,
वो दौड़ के, रेंग कर आगे बढ़ा!
और मेरे हाथ पर चढ़ गया!
मैं उठा!
उसको उठाया!
मेरे आंसू झर झर बह निकले!
उसने फुंकार मारी!
मेरी हथेली पर!
मैंने हाथ आगे बढ़ाया!
और उसको अपने चेहरे से छुआ!
उसने मेरे बाएं गाल पर फुंकार मारी!
मेरी आँखें बंद हुईं!
उसकी गर्म सी फुंकार मेरे शरीर में दहक मचा गयी!
मैंने उसको हटाया वहाँ से!
अपने सामने लाया!
मैं आगे बढ़ा!
उस नाग कुमार के पास!
“ये कौन हैं?” मैंने पूछा, उस संपोले के लिए!
“इनका पुत्र!” वो बोला,
मैंने वहीँ देखा, जहां इशारा किया था, वो एक जोड़ा था! ओह! वहीँ जोड़ा! वहीँ जोड़ा जिसके साथ मेरा द्वन्द हुआ था! जिसको मेरी विद्या ने उठा कर फेंक मारा था! वहीँ जोड़ा! याद आ गया!
सब याद आ गया!
समय जैसे स्थिर हो गया था!
वायु जैसे शिथिल हो गयी थी!
मैं और शर्मा जी जैसे वहीँ के होक रह गये थे!
जैसे मूर्ति बन गए थे!
उस संपोले ने फिर से फुंकार भरी!
मेरा ध्यान उस पर गया!
मैं मुस्कुरा गया!
अब मैंने अपना हाथ नीचे रखा!
वो नीचे उतरा!
और रेंग कर उस नाग कुमार के सामने चला गया,
फिर मुझे देखा!
फुंकार मारी!
अब मैंने हाथ जोड़ लिए!
मेरी आँखें बंद हो गयीं!
और जब खोलीं तो वहाँ कोई नहीं था!
बस वो!
वो संपोला!
मैं आगे बढ़ा! नीचे बैठा,
लेट गया!
मैं मुस्कुराया!
उसने मुझे देखा!
मैंने उसे!
मैंने उसको मन ही मन धन्यवाद किया!
और!
अगले ही पल वो भी लोप हो गया!
मैं चौंका!
वहाँ कुछ पड़ा था!
मैंने उठाया उसके,
ये नाग-सूत्र था!
बाजू-बंध!
ओह!
क्या छोड़ गया था मेरे लिए मेरा मित्र!
मैं खड़ा हो गया!
और तभी वो गड्ढा भरने लगा!
मैं पीछे हटा!
और फिर धीरे धीरे, सारा गड्ढा भर गया!
सब ख़त्म!
सब….
शर्मा जी मेरे पास आये!
मेरे कंधे पर हाथ रखा!
“चलिए अब” वे बोले,
मैं विस्मित सा खड़ा रहा,
फिर हल्के क़दमों से वापिस चल पड़ा!
प्रश्नों के उत्तर मिल गए थे!
और यही बहुत था!
उनकी इस कृपा से मैं ऋणी हो गया उनका!
मित्रगण!
हम उसी दिन वहाँ से निकल पड़े! वापिस आये!
अजमेर पहुंचे!
और फिर वहाँ से दिल्ली!
सारे रास्ते मुझे वो छोटी सी फुंकार की आवाज़ सालती रही!
मुझे बहुत याद आया वो नन्हा सा संपोला!
दिल्ली पहुंचे!
और फिर मैंने अवधेश जी से बात की, उनको सब बता दिया! उन्होंने चंद्रन बाबा को बता दिया, उन्होंने मुझसे बात की और रोते रोते मेरा धन्यवाद किया! आशीर्वाद दिया!
बहुत समय बीत गया है मित्रगण!
मुझे मेरे प्रश्नों के उत्तर मिल गए!
शान्ति हो गयी!
लेकिन मैं उसको नहीं भूल सका!
वो!
संपोला!
नन्हा सा!
और उसकी वो मधुर सी फुंकार!
मधुर!
मुझे आज भी याद है!
अक्सर याद करता हूँ उसको!
कभी अवसर मिला तो एक बार अवश्य ही मिलने जाऊँगा उस संपोले से!
अवश्य ही!
प्राणांत से पहले एक न एक दिन!
अवश्य ही!
साधुवाद!