दिल्ली: दिल्ली का अपना समद्ध इतिहास रहा है मित्रो! दिल्ली ने बड़े बड़े शहंशाह देखे हैं। साजिशें देखी हैं! काले-ए-आम देखें हैं! जंग देखी हैं! बहुत कुछ ऐसा ही विद्रोह था १८५७ का विद्रोह! प्रथम स्वंत्रता संग्राम! सशत्र-संग्राम! सैनिक-संग्राम!
१२ मई १८ का दिन! मंगलवार का वो दिन! दिल्ली में एक मशहूर जगह पड़ती है, तीस हजारी, जहां जिला सत्र न्यायालय हैं दिल्ली का! लेकिन अधिकाँश दिल्ली वालों को ये भी नहीं पता कि ये नाग कैसे पड़ा! सन १७८३ में ११ मार्च के दिन ३० हजार सिक्ख सिपाही यहाँ एकत्रित हुए थे, उस से पहले उन्होंने सहारनपुर को नजीब-उल-दौला से उन्होंने ग्यारह लाख रुपये लिए थे. उसके बाद वो दिल्ली की तरफ बढ़े, उनका नेतृत्व सरदार बघेल सिंह कर रहे थे, सहारनपुर को जीतने के बाद दिल्ली की ओर बढ़ते हुए, उनको तत्कालीन शासक ज़बिता खान जो कि नजीब-उल-दौला का बेटा और बाद में उसका
उत्तराधिकारी हुआ, से भी एक मोटी रकम मिली थी! ११ मार्च १७८३ के दिन, तत्कालीन मुग़ल शासक शाह आलम द्वितीय को हराया, और लाल किले के दीवान-ए-आम पर कब्ज़ा कर लिया! शाह आलम द्वितीय और सिक्खों के बीच संधि हुई, संधि के अनुसार बोल सिंह ने दिल्ली में सब्जी-गंडी क्षेत्र में एक कर-चुंगी बजायी, शहर में आने वाली किसी भी तस्तु पर रुपये के सोलह आनों में से छह आने, अर्थात ३७.७ प्रतिशत कर लेने का अधिकार प्राप्त हो गया था! इसी वजह से इस स्थान का नाम बाद में तीस हजारी पड़ा!
हाँ, मैं आपको बता रहा था मंगलवार, १२ मई १८५७ का पो दिन, जब विद्रोही सैना दिल्ली आ चुकी थी, ब्रितानी सैनिकों और
और अंग्रेज परिवारों का इसी विद्रोही सेना द्वारा कत्ल होना शुरू हुआ! अंग्रेज परिवार भागे भागे फिर रहे थे, कोई छिप रहा था, कोई करनाल की ओर भाग रहा था और कोई कहीं और उसी समय दिल्ली के तीस हजारी के पास सब्जी-गंडी को जाते समय सीधे हाथ पर एक क्लॉक-टावर पड़ता हैं, ये आज भी हैं वहाँ, और एक पुराना सा चर्च जैसा एक खंडहर! एक पुरानी सी इमारत! ये मैंदान जैसी जगह है, खाली मैंदान! इसी वलॉक-टावर के आसपास एक अंग्रेज प्रेमी जोड़ा आजतक घूमता है! कभी रात्रि-समय कभी दिन में कभी तेज बारिश में और रविवार के दिन सारा समय!
इस प्रेमी-युगल का नाम है स्मिथ एंड बेटा! स्मिथ की उम्र २३-२४ साल और बेटा की कोई २०-२१ साल है!
१८ अक्टूबर २००९ की बात होगी ये, आसपास भी हो सकता है, मैं शर्मा जी के साथ शक्ति नगर से आ रहा था, रविवार का दिन था, मुझे याद है आकाश में बादल वाहए हुए थे, हलकी-फुलकी बरसात हो रही थी, रात का समय था, मदिरा सर पर चढ़ कर बोल रही थी! किसी जानकार के यहाँ एक शादी थी, वहीं से हम रात को निकले शे, समय होगा यही कोई एक या डेढ़ बजे का!
मैं लघु-शंका निवारण हेतु गाडी से उतरा, वहीं की तरफ गया, और शंका-त्याग करने लगा, सहसा मेरी नज़र सागजे पड़ी, सामने कोई ३०-३५ फीट दूर, सफेद कोट में एक मर्द और सफेद लम्बी स्कर्ट में एक औरत दिखाई पड़े! देखते ही लगता था कि ये भारतीय नहीं हैं, भूरे-सुनहरे बाल और लम्बी कद काठी! दोनों एक दूसरे की कमर में हाथ डाले चहलकदमी कर रहे थे, लड़की बीच बीच में रुक कर उस लड़के को भी रोकती और पिर आलिंगनबद्ध हो जाते! मुझे बेहद हैरत हुई! मैं करीब १० मिनट उनको देखता रहा! शर्मा जी ने गाड़ी का हॉर्न बजाय, मैं वापिस गया,हाथ धोये और फिर मैंने शर्मा जो को भी जेचे आने
को कहा, वे नीचे उतरे, मैं उनको वहीं ले गया! कलुष-मंत्र जागत किया और फिर शर्मा जी के जेत्र पोषित किये! और फिर उन्होंने सामने देवा! उनकी भी आँखें फर्टी कि फटी रह गयीं!
"क्या देखा आपने?" मैंने पूछा,
"कोई अंग्रेजी जोड़ा लगता हैं" वो बोले,
"हाँ, अंग्रेज ही है!" मैंने कहा,
"कमाल है गुरु जी कमाल हैं!" उन्होंने कहा,
"हाँ कमाल तो है ही!" मैंने भी कहा,
"पता नहीं कब से हैं ये यहाँ" उन्होंने कहा,
"हाँ, पता नहीं शर्मा जी, आज़ादी से पहले का किरसा लगता है मुझे मैंने कहा,
"हाँ, हो सकता है" उन्होंने कहा,
तभी वे दोनों वापिस आये, हमारी तरफ, हम वहाँ से हट गए, वो आते आते रुके और फिर एक दुसरे का हाथ पकडे टहलने
लगे!
"उन्होंने हमें देख लिया था क्या?" उन्होंने पूछा,
"पता नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगा वैसे" मैंने कहा,
हमने फिर देखा, अब वे दोनों अलग हए और अलग अलग चलने लगे, फिर वापिस पलटे! मैंने घडी देती, दो बज कर बीस मिनट हो रहे थे।
"चलिए शर्मा जी अब" मैंने कहा,
"रुकिए, वे दोनों फिर आपस में बातें कर रहे हैं। उन्होंने कहा,
मैंने देखा, हाँ, तो एक दूसरे का हाथ थामे बातें कर रहे थे! एक दम रिशर खड़े!
फिर मैंने कलुष-मंत्र वापिस लिया और शर्मा जी के साथ गाड़ी में बैठ गया. शर्मा जी को तो बेचैनी सी हो गयी! पांच सात मिनट तक तो गाडी स्टार्ट ही नहीं की! मैंने पूछा, "क्या हुआ शर्मा जी"
"सोच रहा था" वे बोले,
"क्या सोच रहे थे?" मैंने पूछा,
"इन्ही के बारे में" ते बोले,
"इस प्रेमी-जोड़े के बारे में?" मैंने पूछा,
"हाँ जी" उन्होंने कहा,
मुझे थोड़ी हंसी आ गयी!
"क्या जानना चाहते हो अब आप" मैंने पूछा,
"सही, कि कौन हैं वो? कब से हैं यहाँ' बस यही सब कुछ" वो बोले,
"क्या करोगे जानकर" मैंने मुस्कुरा के पूछा,
"कुछ भी नहीं गुरु जी, बस जिज्ञासा है!" उन्होंने कहा,
"अब एक बात बताओ आप, ठीक है, जिज्ञासा हैं, कोई बात नहीं, लेकिन अभी कुछ नहीं कर सकते, बारिश भी हो रही हैं और फिर समय भी अधिक हो गया हैं" मैंने बताया,
"ठीक है फिर, लेकिन एक विनती है" तो बोले,
मैं समझा तो रहा था लेकिन फिर भी पूछ लिया,
"कैसी विनती!" मैंने पूछा,
"एक बार और देखना चाहता हूँ उनको" उन्होंने कहा,
"ओह!! अच्छा! ठीक है" मैंने कहा,
फिर मैंने कलुष-मंत्र पुनः जागृत किया और उनके नेत्र पोषित कर दिए। वे उठे और फिर से गाड़ी से उतर गए और जा पहुंचे
वहीं, उन्होंने उनको देख लिया था, इसीलिए करीब आधे घंटे तक शर्मा जी उनको देखते रहै! फिर वो वापिस आयै! और गाडी में बैठ गए! मैंने फिर पूछा,"देख लिया?"
"हाँ" वो बोले,
"क्या कर रहे हैं बो: टहल रहे हैं!" मैंने पूछा,
"हाँ, अलमस्त, दीन दुनिया से बेखबर!" तो बोले,
"ऐसा ही होता है, ये तभी से ऐसे ही अनवरत शूम रहे हैं! आज तक" मैंजे बताया,
"इनसे बात नहीं हो सकती!" उन्होंने पूछा,
"हो सकती है, लेकिन आज नहीं" मैंने कहा,
"ठीक है, जैसा आप उचित समझौ" वो बोले और गाडी स्टार्ट कर टी, हम आगे बढ़ चले!
मैं उनके मन की व्यथा को भांप तो गया था, लेकिन मैं कुछ बोल नहीं! हम अपने स्थान पर पहुंचे और शर्मा जी भी वहीं ठहर
सुबह समस्त दैनिक कार्यों से निवृत हो कर हम चाय पीने बैठे, शर्मा जी ने कहा, "मुझे अभी भी उन्ही का खयाल आ रहा है गुरु जी!"
"अच्छा!" मैंने भी गर्दन हिलाई,
"गुरु जी, उनसे बात कीजिये आप" उन्होंने समर्पित भाव से ऐसा कहा,
"ठीक है, मैं आपकी बात समझ रहा हूँ, ठीक है, निकालते हैं समय" मैंने कहा,
अब वो खुश हो गए!
"आज दिन में चले वहाँ" उन्होंने पूछा,
"दिन में अगर न मिले तो?" मैंने कहा,
"तो उस स्थान का मुआयना ही कर लेंगे!" तो बोले,
"ठीक हैं, आपकी मर्जी, चलते हैं वहाँ दिन में मैंने कहा,
फिर हमने चाय खतम की और मैं अपने कमरे में गया, वहाँ कुछ मालाएं अभिमंत्रित करके रख दी! दिन में आवश्यकता पड़
सकती थी!
और मित्रो, फिर हम दिन में एक बजे वहाँ के लिए निकल पड़े, वहाँ करीब घंटे भर में पहुंचे, वहीं खड़े हुए जहां कल रात को खड़े हुए थे, लेकिन अब वहाँ कोई न था, सुनसान पड़ा था वो मैंदाज!
हम अन्दर गए, वहाँ कुछ पुरानी खंडहरनुमा इमारतें सीथीं, किसी समय यहाँ बितानी राज में चहल पहल रहती होगी, लोगों
का जमावड़ा रहता होगा, आज सुनसान है ये जगह!
"लीजिये शर्मा जी, यहाँ कुछ भी नहीं हैं अब" मैंने कहा,
"हाँ, ऐसा ही लगता है" तो बोले,
लेकिन हमने मुआयना करना था, अत: घूमते रहे, वहाँ ऐसा प्रतीत होता है कि आप पर कोई नज़र लगाए हुए हैं, किसी भी पल आपको आपके नाम से कोई पुकार देगा! हाँ सन्नाटा अवश्य ही हैं वहाँ!
कुछ देर मुआयना करने के बाद हम वहाँ से वापिस आ गए, अब वहाँ रात को ही आना बेहतर लगा, कोई देखने, कोई टोकने वाला भी नहीं होगा, तो हमने वहाँ राभि को ही आने का निर्णय किया! मैंने शर्मा जी से कहा, "शर्मा जी, दिन में उनकी मौजूदगी नहीं है, वो रात को ही यहाँ आते होंगे"
"हाँ जी, नहीं तो आप को तो दिख ही जाते" वो बोले,
"हाँ, अगर होते तो शर्तिया मैं देख लेता, यहाँ और कोई दसरा भी नहीं है, केवल वे दोनों ही हैं यहाँ" मैंने बताया,
"ठीक है, अब रात को ही देखते हैं, चलिए अब वे बोले,
"हाँ, चलिए" मैंने कहा,
फिर हम वहाँ से वापिस आ गए! अब मैंने रात की सारी तैयारी कर लीं, ज़रुस्त पड़ी तो उनको पकड़ कर भी लाया जा सकता
था!
सत की प्रतीक्षा में दिन नहीं कट रहा था! खैर किसी तरह से दिन कात और फिर मध्य रात्रि हम वहाँ के लिए निकल पड़े! उस दिन मौसम साफ था, और वातावरण में गर्माहट भी थी! हम वहीं पहुँच गए, लेकिन मुझो फिर भी कुछ नहीं दिखाई दिया, वहाँ कोई नहीं था, हमने काफी देर तक इंतजार किया लेकिन कोई नहीं आया वहाँ बड़ी मायसी हुई हमे! हम वापिस लौट पड़े!
"लो शर्मा जी, कोई नहीं मिला" मैंने कहा,
"हाँ गुरु जी" उन्होंने भी भारी मन से ऐसा कहा,
"एक काम करते हैं, हम यहाँ रविवार आये थे, अतः रविवार ही आते हैं यहाँ, हो सकता है, बात बन जाए" मैंने अनुमान लगाया,
"जैसा आप कहें गुरुजी" वो बोले,
"ऐसा होता हैं. किसी विषय समय, दिन अथवा स्थान पर ही प्रेतात्माएं आती हैं" मैंने बताया,
"अच्छा! हाँ आपने बताया थायो बोले,
फिर हम बातें करते करते वापिस आ गए! खाली हाथ! अब रविवार तक प्रतीक्षा करनी थी, अन्य कोई विकल्प शेष नहीं था!
अब किसी तरह से रविवार आया! शर्मा जी मेरे पास दिन में ही आ गए थे माल-पानी के साथ! हमने थोडा बहुत खाया पीया
और उसके बाद रात के बारे में बातें करने लगे, कि कैसे जाना हैं उनके पास, क्या करना हैं, क्या पूछना हैं आदि आदि!
"गुरु जी, तया उम्मीद है, मिल जायेंगे आज?" उन्होंने पूछा,
"मिल जाने चाहिए, आज रविवार है, उस दिन भी रविवार ही था!" मैंजे सुझाया,
"हाँ मिल जाएँ तो बढ़िया रहेगा!" उन्होंने कहा,
"शर्मा जी, मैंने आज से पहले आपको ऐसा उदिम्न नहीं देखा, तया बात है?" मैंने पूछा,
"ऐसे ही गुरु जी, भूत तो बहुत देते, लेकिन अंग्रेज भूत पहली बार ही देशो मैंने!" उन्होंने हंस के कहा!
"कोई बात नहीं! आज मिल गए तो बात शी कर लेना!" मैंने भी हंस के कहा!
तो हँसे और फिर बोले, "न जाने किस समय के होंगे तो!"
"आप मालूम कर लेना!" मैंने कहा!
उसके बाद फिर हम बाते करते रहे, मदिरापान चलता रहा!
और फिर रात हुई। हम वहाँ के लिए निकल पड़े! वहाँ पहुंचे! मैंने अन्दर झाँका! अन्दरतही दोनों वैसे ही एक दूसरे की कमर में हाथ डाले घूम रहे थे!!
"गिल गाए! वो रहे" मैंने कहा!
"मुझे भी दिखाइये ना गुरु जी" शर्मा जी ने बेचैनी से कहा,
मैंने कलुष-मंत्र पढ़ा और उनके जैन पोषित कर दिए! उन्होंने जैन खोले, उनको देखा तो उनको अचरज हुआ! "ओह! पो रहे" उनके मुंह से निकला!
"अन्दर चलें!" मैंने पूछा,
"हाँ हाँ गुरु जी, चलिए!" उन्होंने कहा!
अब मैंने पाश-मंत्र पढ़ा और उसको पोषित किया! अब वो भाग नहीं सकते थे। जब तक मैं न चाहूँ। हम अन्दर गए, उनके पास, उन्होंने हमें देखा, ठिठक कर खड़े हो गए तो! तो हमें और हम उन्हें देखते रहे, कोई " मिनट तक! आपलक! हम आगे बढ़े, वो दोनों एक साथ चिपक गए! वो अंग्रेज ही थे! मैं आगे बढ़ा! लड़की की लम्बाई मुझतक ही थी और लड़का मुझसे करीब तीन चार
इंच लम्बा! अंग्रेजी हिसाब से कटे बाल! छोटे-छोटे! तिरछी निकली मांग! हलकी हलकी पतली पतली मूंछे! सफेद कोट!
और लाइनदार पैंट! पाँव में जूते! उसके बाद मैंने उस लड़की को देखा, छरहरी सी लड़की! सुन्दर चेहरा! दमकता चेहरा! डुंगराले से सुनहरी बाल! और एक लम्बी सफेद स्कर्ट
बातचीत केवल अंग्रेजी में ही हो सकती थी, अत: मैंजे अंग्रेजी में कहा, "तुम दोनों घबराइये नहीं, मैं तुमको परेशान नहीं कमया, शबराइये मत!"
मेरा जवाब सुनकर दोनों ने एक दूसरे को देखा! चिंतित भाव से!
मैं आगे बढ़ा, शर्मा जी भी आगे बढ़े, लड़की ने अपना सर लड़के की छाती में धंसा लिया, लड़के ने उसके सर को अपने दोनों हाथों से ढक लिया! मुझे उनकी इस प्रेमानुभूति से उनके प्रेम के प्रति मेरे हृदय में आदर का भाव उमड़ आया! मैं उनके समीप गया और बोला, " क्या नाम है तुम्हारा?"
"स्मिा " उसने बताया,
"और ये" मैंजे लड़की की तरफ इशारा किया,
"मार्गरेट, लेकिन मैं इसको ग्रेटा कहता हुँ।
"अच्छा! तुम्हारी बीवी हैं ये मैंने सवाल किया,
"नहीं, मंगेतर है मेरी" उसने बताया,
"अच्छा, कहाँ के रहने वाले हो तुम?" मैंने पूछा,
"ब्रिटेज" उसने बताया,
"और ये ोटा भी?" मैंने पूछा,
"हाँ, ये भी उसने बताया,
"क्या करते हो तुम?"मैंने पूछा,
"तार-घर में हूँ मैं अवर-लिपिक" उसने बताया,
"कहाँ?" मैंने पूछा,
"लोथियन बाग के पास" उसने बताया,
"और ये छोटा?" मैंने फिर सवाल किया,
"रो अभी जल्दी में ही आई हैं इंग्लैंड से, इसके पिताजी यहाँ आर्मी में डॉक्टर हैं। उसने कहा,
"मतलब घूमने?" मैंने कहा,
"हाँ और मुझसे मिलने" वो बोला,
"अच्छा स्मिथ, और कौन-कौन है यहाँ तुम्हारे अलावा?" मैंने पूछा,
" पहले काफी लोग थे यहाँ, लेकिन विद्रोही सेना ने मार डाला उन्हें, अब और कोई नहीं, हम दो ही हैं, बाकी सारे फ्लैंग-स्टाफ
टावर चले गए हैं" उसने बताया,
पलैग-स्टाफ टावर ये टावर दिल्ली में कमला-जेहरु रिज-एरिया के पास है, जब विद्रोही सेना ने थावा बोला, तो कई यूरोपियन परिवारों ने यहाँ शरण ली थी!
"तो तुम क्यूँ नहीं गए फ्लैंग-स्टाफ टावर? मेरा मतलब तुम दोनों" मैंने पूछा,
"हम यहीं छिपे थे, ग्रेटा के पिता जी आने वाले थे हमको लेने, लेकिन तो नहीं आये, उनसे पहले विद्रोही सेना आ गयी यहाँ उसने बताया,
ओह! तो ये यहाँ छिपे होंगे, विद्रोही-रोला यहीं आ गयी होगी. इन परिवारों का काल करने! ये एक संभावित कारण रहा होगा!
"कितने लोग होंगे यो! मेरा मतलब विद्रोही सेना में" मैंने पूछा,
"करीब हजार से ज्यादा, तलवार और बंदकों के साथ, उन्होंने ही मारा सभी को, अपनी संगीनों से मारा सभी को, भागते हए लोगों को" वो बोला,
अब मैंने बेटा से बात करनी चाही, लेकिन बेटा अपना मुंह छिपाए, स्मिथ की छाती में मुंह धंसाये ही खड़े रही, मैंने फिर से स्मिथ से पूछा," ये बात पयूँ नहीं करना चाहती!"
"वो तुमको विद्रोही सेना में से एक समझ रही है, इसीलिए उसने बताया,
"बेबारी" मेरे मुंह से हिंदी में निकला,
"वया कहा आपने?" स्मिथ ने पूछा,
"कुछ नहीं, कुछ नहीं, तुम बेटा को समझाओ, मैं उनमे से नहीं हूँ, न मेरे साथ खड़े ये मेरे मित्र" मैंने कहा,
अब स्मिथ में कोटा को समझाया, उस से कुछ धीमे धीमे बातें की, लोटा ले धरि धरि अपना सर उठाया और मेरी तरफ देखा, नीली आँखों वाली नोटा अभी भी डरी हुई थी. मैंने कोटा से बात की. मैंने कहा, "नोटा' तुम्हारे पिताजी का नाम क्या हैं?"
"पी. जे. बर्सेस" उसने बताया,
"अच्छा! पिता जी से मुलाकात नहीं हुई तुम्हारी" मैंने पूछा,
"नहीं हुई" उसने बताया,
"तुम भी नहीं गयी थीं पलैंग-स्टाफ टावर" मैंने पूछा,
"जहीं, हमको यहीं रोका गया था" उसने बताया,
"किसने रोका था'" मैंने पूछा,
"कैप्टेन टाइटलर के आदेश आथे" उसने बताया,
इतिहास में दबे नाम खुल के सामने आ रहे थे. मैं अंदाजा लगा सकता था उस दृश्य का जब ये सब घट रहा होगा!
"क्या वक्त था तब!" मैंने पूछा,
"सुबह के आठ बजे का वक्त था" उसने बताया,
"अच्छा ग्रेटा, तुम्हे आये हुए कितने दिन हुए यहाँ?" मैंने पूछा,
"तीन दिन पहले" उसने बताया!
छोटा यहाँ तीन दिन पहले आई थी! और कभी ये न सोचा होगा कि उसकी मृत्यु ने ही उसको यहाँ भारत बुलाया है। अफसोस!
"तुम्हारे साथ और भी कोई आया था बेटा?" मैंने पूछा,
"हाँ, मेरा बड़ा भाई रोनाल्ड" उसने बताया,
"वो कहाँ है अब?" मैंने पूछा,
"वो सुबह सुबह डोरोथी आंटी के साथ फ्लीग-स्टाफ टावर चला गया था" उसने बताया,
"अच्छा! फिर तुम्हे भी जाना चाहिए था, उसने तुमसे पूछा नहीं" मैंने पूछा,
"रोनाल्ड और डोरोथी ने मुझसे जिद की थी, लेकिन मैं नहीं गयी" उसने कहा,
"क्यूँ बेटा?" मैंने पूछा,
"क्युकि सुबह ८ बजे यहाँ रिमथ को आना था, मैं स्मिथ का इंतज़ार कर रही थी, फिर पिताजी का सन्देश भी आया था कि हम कहीं न जाएँ वो आयेंगे और हमको ले जायेंगे, इसीलिए हम रक गए यहाँ" उसने एक ही बार में कह सुनाया, जैसे ये आज सुबह की ही बात हो!
अब मैंने स्मिथ को देवा, स्मिथ बहुत ध्यान से हमें सुन रहा था, बेटा स्मिथ के पीछे गयी और उसके पीछे से हाथ लाकर उसके पेट पर रख दिए, जैसे छुप रही हो!
"स्मिथ? तुम कबसे हो यहाँ इस तार-घर में!" मैंने पूछा,
"मुझे यहाँ आये दो साल बीत गए हैं" उसने अपनी दो उंगलियाँ सामने लाके कहा,
"अच्छा, अच्छा!" मैंने कहा,
मैंने अब शर्मा जी की ओर देखा, तो शर्मा जी समझ गाए मेरा इशारा, अब उन्होंने पूछना शुरू किया," स्मिथ, विद्रोही सेना कब
आई थी यहाँ
"कल ११ मई को, हमे खबर मिली थी कि बितानी सरकार के खिलाफ विद्रोह हुआ है, मैं उस समय लोशियन बाग़ में था, मैं तभी ग्रेटा को लेने भाग था, वहाँ, उसने एक जगह हाथ से इशारा करते हुए बताया,
"अच्छा, जिन लोगों ने यूरोपियन को मारा उनको पहचान लोगे तुम!" शर्मा जी ने पूछा,
"नहीं, नहीं पहचान सकता" उसने कहा,
"क्यूँ स्मिथ?" उन्होंने पूछा,
"उन्होंने मुंह पर कपडा लपेट रखा था" उसने बताया अपने मुंह पर इशारा करके कि कैसे उन्होंने कपडा लेट रखा था!
"अच्छा!" वे बोले,
"क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकता हूँ" स्मिथ ने पूछा,
"हाँ हाँ, क्यूँ नहीं स्मिथ, पूछिए?"
"पया विद्रोह सातम हो गया है!" उसने पूछा,
"हाँ, खतम हो गया है" अब मैंने कहा,
"मुझे डर लग रहा था" उसने धरि से कहा,
"डर! कैंसा डर!" मैंने पूछा,
"मुगल बादशाह ने उस विद्रोही सेना का साथ दिया या नहीं?" उसने पूछा,
"हाँ दिया था" मैंने कहा,
"ओह! फिर ब्रितानी फौज आई?" उसने कहा,
"हाँ, आई थींमैंने कहा,
"ये लोग क्यूँ लड़ते हैं, पता नहीं" उसने कहा,
"हाँ गलत लड़ते हैं" मैंने भी समर्थन किया,
'आप दिल्ली में ही रहते हो?" उसने पूछा,
"हाँ" मैंने कहा,
"किधर!" उसने पूछा,
"यहीं पास में" मैंने बताया,
"ओके, आपसे मिलके अच्छा लगा" उसने कहा,
"हमें शी स्मिथ!" मैंने कहा,
मैं अभी उनसे और बातें करना चाहता था, लेकिन कोटा स्मिथ के दोनों हाथों को पकड़ कर खींच रही थी वहाँ से चलने के लिए, रिमश भी रुकना चाहता था, लेकिन बेटा जहीं मान रही थी! वो लगातार उसको स्तीचे जा रही थी! तब स्मिथ ने उसको मुस्कुराते हुए कहा तो उसने रिमथ के हाथ छोड़ दिए और फिर स्मिथ ने कहा, "माफ कीजियेगा, प्रेयस्-टाइम हो रहा है, अब हम चलेंगे!" उसने कहा,
कोई बात नहीं स्मिथ! आप जाइये!" मैंने कहा,
उन दोनों ने हमें मुस्कुरा के धज्यवाद कहा! मैंने तभी पाश-मंत्र वापिस कर लिया! वे दोनों वहाँ से चल दिए! वे चलते गए, दर
और दूर और फिर ओझल हो गए!
हम कुछ देर वहीं खड़े रहे! विस्मयता के भाव में सो गए! फिर धीमे कदमों से वापिस हए, और गाडी तक जा पहुंचे,
तभी शर्मा जी ने कहा, "ओह! कितना दर्दनाक वाकया है इनका!"
"हाँ शर्मा जी सही कहा आपने" मैंने भी कहा.
"ये दोनों, कब से शाटक रहे हैं!! उपफ्फ! ना जाने कब तक गटोन्गे!" उन्होंने कहा,
"हाँ शर्मा जी, अच्छा चलिए अब यहाँ से!" मैंने कहा,
"हाँ गुरु जी, चल रहा हूँ" उन्होंने धीरे से कहा,
"शर्मा जी, चलो, बहुत काम बाकी हैं, अब मैंने इनको देख लिया है, इनसे बात कर ली है, बस मैं यहीं चाहता था! अब मेरा काम शुरू होता है, ये जानना कि इनके साथ हुआ क्या शा!
"हाँ गुरुजी, १५२ वर्ष का समय बहुत है भटकाव के लिए, मुझे तो बहुत धक्का पहुँच है, उसने बात करके" उन्होंने कहा,
"धक्का ! वो कैसे!" मैंने पूछा,
"अपने मुल्क से इतना दूर! बेचारेकहाँ भटक रहे हैं।" तो बोले.
"ये बात तो है!" मैंने कहा,
"गुरुजी, ना जाने मुझे इनके बारे में जानकर इनसे बहुत सहानुभूति हुई हैं, आप इनकी मदद कीजिये, मैं पाँव पड़ता हूँ
आपके" उन्होंने कहा और मेरे पाँव पकड़ने लगे वो!
"अरे ये क्या कर रहे हैं आप??" मैंने कहा,
उनकी आँखें नामी! बोले, "देखिये न गुरु जी, जिताजती लोग कैसे भी थे, लेकिन अब ये प्रेतात्माएं, अपनी मुक्ति के लिए तरस रही हैं, कर दीजिये मुक्त! जाएँ अगले धाम! बेचारों की तो शादी भी नहीं हुई होगी गुरु जी, सोचिये, सोचिये, प्रेम में एक दूसरे के साथ कहाँ से कहाँ आ गए ये दोनों! बेचारे और वो लड़की बेचारी, तीन दिन पहले आई थी, अपने बाप से मिलने और अपने प्रेमी से मिलने!"
"ठीक है, ठीक है!" मैंने उनसे कहा!
"गुरुजी, स्मिथ का सीधापन और उस लड़की नोटा का अल्हड़पन, दिल में कहीं छू गया हैं मेरे" वो बोले,
"कोई बात नहीं शर्मा जी! इस औघड़ के लिए कुछ असंभव नहीं! जैसा आप कहो तैसा होगा!" मैंने बताया!
"गुरुजी, जब मैं आपसे पहली बार मिला था, तब आप मुझे ऐसे ही लगे थे, जि:स्वार्थ और कर्मठ! हालांकि आप मुझसे उम्र में छोटे हैं लेकिन आपकी एक एक बात मेरे दिल में उतरती चली गयी!" वो बोले,
"शर्मा जी, मेरा कोई दिन ऐसा नहीं गया. जब किसी ने मुझसे ये विद्या सिखाने को नहीं कहा, लेकिन आपने. आजतक नहीं कहा! मैं बस, इसीलिए आपके साथ हूँ! मैंने आपको चुना शर्मा जी!" मैंने कहा,
" मैं धन्य तो तभी हो गया था, जब आपने उस अयोरी को मेरी पत्नी से बहस करते हुए हटाया था! मुझे याद है, आपने कहा था उस साधूसे' चल निकल जा, इससे पहले मैं तुझे एक लात मारूं तेरे मुंह पे', गुरु जी, मैं तो आपका तभी मुरीद हो गया था!"
वो बोले,
"छोडो, कहाँ चले गए आप भी यार! स्थान पर चलो, बहुत काम है मेरा अभी वहाँ!" मैंने कहा!
"जैसी आज्ञा गुरु जी!" ते बोले और फिर हम बातें करते करते अपने स्थान पर आ गए. रास्ते से मैंने ज़रूरत और क्रिया की
सामग्री ले ली थी, मैं जाते ही स्नानघर में घुसा, स्नान किया और फिर तुरंत ही विन्या के स्थान में बैठ गया, मैंने ब्रिज्या आरम्भा की, और फिर से कर्ण-पिशाचिनी का आह्वान किया! कर्ण-पिशाचिनी प्रकट हुई! मैंने उसका नमन किया! अब मैंने उसको उस भोग दिया! उसने भोगस्तीकार किया! अब मैंने उस से अपने प्रश्न किये!
"स्मिथ और बेटा का क्या हुआ?" मैंने पूछा,
कर्ण-पिशाचिनी ने मुझे सब बता दिया!
"पी.जे. बर्सेस का क्या हुआ?"
इसका उत्तर भी मिल गया!
"डोरोथी और रोनाल्ड का क्या हुआ?"
इसका उत्तर भी मिल गया!
मैंने फिर कर्ण-पिशाचिनी को नमस्कार कर वापिस भेज दिया!
मित्रगण! जो मुझे पता चला वो ये था!!
सबसे पहले आरम्भ पी.जे. बर्सेस से करता है! तो एक आर्मी डॉक्टर था. उसको यहाँ आये हुए कोई चार साल हुए थे, जिस दिन ग्रेटा यहाँ आई थी, उससे पहले ब्रितानी आर्मी में भारतीय सैनिकों में विद्रोह की आग भड़क चुकी थी! ११ माय १८५७ को ये विद्रोही सेना दिल्ली आ चुकी थी, जब बर्सेस को ये बात पता चली तो उसने डोरोथी को जो ग्रेटा की आंटी थी, और उस दिन
खेटा अपनी आंटी के साथ ही थी. रोनाल्ड भी वहीं था, रोनाल्ड और डोरोथी वहाँ से आदेश मिलते ही फ्लैंग-स्टाफ टावर रवाना हुए. लेकिन कोटा नहीं गयी थी, क्यूंकि उसका प्रेमी, स्मिथ वहाँ आने वाला था, स्मिथ आया, वो भी फ्लैग-स्टाफ टावर जाने वाले थे लेकिन बर्सेस का सन्देश मिला कि रास्ते में काल-ए-आम हो रहा है, वो वहाँरुकें उसके वहाँ आने तक, इसके बाद बर्सेस का मुकाबला विद्रोही सेना की एक टुकड़ी से हुआ और बर्सेस तो गोली मार दी गयी!
जहां बेटा और स्मिथ ठहरे थे वहाँ भी उनका आक्रमण हुआ, वहाँ और लोगों को बाहर खदेड़ा गया और गोलियों से भून दाल! रिंगथ और होटा भागने की फिराक में एक कमरे की तरफ भागे, लेकिन उसी कमरे के बाहर, उन दोनों को पकड़ लिया गया, वो उस समय एक दूसरे से चिपके हुए थे, लोटा ने डर के मारे अपना सरस्मिथ की छाती में छुपा लिया था, स्मिथ ने भी उसको आलिंगनबद्ध कर लिए था! स्मिथ ने अपनी आँखें बंद का ली थी! तशी विद्रोही सेना ने वारों तरफ से गोलियों की बरसात कर दी, स्मिथ का सर फट गया, उसका बदन छलनी हो गया, लोटा की पीठ और सरसे गोलियां पार होके स्मिथ में समा गी! दोनों आलिंगनबद्ध स्थिति में ज़मीन पर गिर पड़े! रोनाल्ड और डोरोथी फ्लैग-स्टाफ टावर कभी न पहुँच सके रास्ते में विद्रोही सेना की उसी टुकड़ी ने जिसजे बसेंस को मारा था, उनको भी मौत की नींद सुला दिया!
हकीकत बेहद कडवी थी ये मैं स्मिथ और मोटा को कैसे बताता? वो प्रेमी जोड़ा कैसे मानता मेरी बात?
मैंने सारी सव्वाई शर्मा जी को बता दी! उनको बेहद मायूसी हुई! उन्होंने मुझसे कहा कि उनकी मुक्ति का कोई उपाय निकालिए, लेकिन कोई उपाय नहीं मिला!
मित्रो! उसके बाद मैं वहाँ कभी नहीं गया! आज तक नहीं! स्मिथ और नोटा आज भी एक दूसरे की कगर में हाथ डाले नहीं घुग
रहे हैं! केवल रविवार के दिन वहाँ दिखाई देते हैं। दिन में साढ़े चार बजे के बाद! उस दिन चर्च जाने का दिन होता है। जैसा कि स्मिथ ने कहा था 'प्रेयर-टाइम हो गया है।
------------------------------------------साधुवाद-------------------------------------------
