वर्ष २००९ दिल्ली की...
 
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वर्ष २००९ दिल्ली की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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वर्ष २००९ की गर्मियां समाप्त होने वाली थीं, वातावरण में सर्दी बालिका जैसी अठखेलियाँ करने लगी थी, सर्द हवा कभी कभी बदन में फुरुफुरी छुडवा देती थी! वैसे भी संध्या-समय था! सुबह-शाम सर्दी पाँव पसारने लगी थी और सूर्य से पीछे ही रुक जाने का निवेदन करने लगी थी! मै और शर्मा जी तब हरिद्वार से वापसी कर रहे थे, यहाँ एक मूर्ति की स्थापना और प्राण-प्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में हम यहाँ आये थे, २ दिनों के पश्चात आज हमारी वापसी थी, हम यातायात की कतार में शामिल हुए और मंद गति से दिल्ली की तरफ चल पड़े, रास्ते में चाय पीने के लिए रुकते और फिर चल पड़ते, रात्रि एक बजे से पहले हम दिल्ली में आ गए,

दिल्ली पहुंचे तो फिर से वही दिनचर्या आरम्भ हो गयी, ऐसे ही एक दिन शर्मा जी के पास एक फ़ोन आया, फ़ोन उसनके किसी ख़ास परिचित का था, उन्होंने अपने किसी रिश्तेदार के विषय में बात की थी और ये पूछा था की वो उसको दिल्ली कब भेजें? शर्मा जी ने मुझसे पूछा, मैंने उनको दो दिन बाद का समय दे दिया!

दो दिनों के बाद वो व्यक्ति दिल्ली आ गया हमारे स्थान पर, नाम था किशन, किशन अपने साथ अपने बड़े भाई को भी लेकर आया था, चाय आदि के समय हमारी बातें आरम्भ हुई, शर्मा जी बोले, "बताइये किशन जी, क्या समस्या है आपकी?"

"शर्मा जी, समस्या बड़ी ही विचित्र है, मै बताता हूँ आपको, मेरी पत्नी की समस्या है ये, नाम है स्नेहा, उम्र है ३० साल, शादी को ६ साल हुए हैं, रहने वाली रोहतक की है, और एक संतान है, एक पुत्री है, करीब डेढ़ साल पहले, स्नेहा की तबियत खराब हुई थी, इतनी अधिक खराब की उसको अस्पताल में २ महीनों से ज्यादा भर्ती करवाना पड़ा, लेकिन उसकी तबियत बिगडती चली गयी, डॉक्टर्स ने भी हाथ खड़े कर दिए और कहा की बेहतर होगा की अब इसकी देखभाल कर ली जाए, अब इस से अधिक कुछ नहीं किया जा सकता, इस वजह से हम उसको अपने घर ले आये, एक रात को उसकी तबियत और अधिक खराब हो गयी, हमने वहीँ के एक डॉक्टर को बुलाया, डॉक्टर ने उसको मृत घोषित कर दिया, हमारी आशंका सत्य साबित हो गयी, ये कोई रात ११ बजे का समय होगा, मैंने सभी जगह, स्नेहा के परिवार में और अपने दूर के रिश्तेदारों को फ़ोन कर दिया, मैंने उसका मुंह ढक दिया, और भारी मन से अपने बड़े भाई आदि के पास जाके बैठ गया, मेरी बेटी अभी सो रही थी, सुबह कोई ८ बजे तक स्नेहा के रिश्तेदार आदि आ गए, और मेरे भी, घर में कोहराम मच गया, मोहल्ले के पडोसी भी आ गए, उन सभी ने सांत्वना दी, अब उसको दाह-संस्कार के लिए ले जाना था, उसको नहलाने के लिए नीचे लिटाया गया, और स्नान की तैयारी की गयी, सभी औरतें रो रही थीं, मेरी भी आँखें नम थीं, जब उसको नहलाया जा रहा था, तब एक अचंभित करने वाली बात हुई, स्नेहा ने आँखें खोल दीं! उसने अपने दोनों हाथों से अपना गला पकड़ रखा था और आँखें चौड़ी कर रखीं थीं! उसके हात हटवाये गए और उसको खड़ा किया गया, वो खड़ी हो गयी! इसको सभी ने चमत्कार माना!"

कहानी बेहद विचित्र थी स्नेहा की, लेकिन मुझे एक आशंका हुई, मैंने किशन से पूछा, "किशन, स्नेहा को ऐसी कौन सी बीमारी हो गयी थी कि उसकी मौत हो गयी?


   
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श्रीशः उपदंडक
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"डॉक्टर्स ने बताया कि उसका लीवर खराब हो गया था, उसके लीवर ने काम करना बंद कर दिया था, डॉक्टर्स ने काफी कोशिश की थी उसको ठीक करने की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, आखिर में उन्होंने हाथ खड़े कर लिए"

"और घर में कितने दिन रही अस्पताल से आने के बाद?" मैंने पूछा,

"४ दिन रही घर पर" किशन ने कहा, "अच्छा, तो क्या उसकी तबियत अभी भी खराब है, या दुबारा खराब हो गयी है?" शर्मा जी ने पूछा,

"नहीं शर्मा जी, न तबियत खराब है न कुछ और!" किशन ने कहा,

"फिर? शर्मा जी ने पूछा,

"जब स्नेहा ठीक हो गयी तो सभी रिश्तेदार इसको अजब लीला कह के चले गए! फिर हम सभी ने एक जागरण करवाया, लेकिन स्नेहा जागरण में नहीं आई, वो घर में ही रही, उसका व्यवहार बदल गया था, मेरे प्रति भी, सभी के प्रति भी, वो खाना बनाती थी, लेकिन अब उसके खाना बनाने कि विधि भी अलग हो गयी थी! अब सर पर पल्लू भी नहीं रखती थी, कमरा बंद करके अकेली है लेटी रहती थी"

शर्मा जी ने बात बीच में काटी और बोले, "और उस पुत्री के लिए उसका स्वभाव?"

"वो उस से तो आज भी बेहद प्यार करती है, लेकिन उसको किसी दुसरे नाम से पुकारती है, कहती है पिंकी जब कि उसका नाम निधि है!" किशन ने बताया

अब मेरे मस्तिष्क में कुलबुलाहट होने लगी, अब मुझे कुछ प्रश्नों के उत्तर चाहिए थे अति-शीघ्र! मैंने कहा, "किशन जो मै तुमसे पूछूंगा, उसका उत्तर देना, न कुछ छुपाना, न हेर-फेर करना, वही बताना जो मै पूछूंगा, ठीक है?

"जी ठीक है" किशन ने कहा,

"क्या स्नेहा को अपनी मृत्यु के बारे में मालूम है?" मैंने पूछा,

"हाँ जी, सही समय और तारीख के साथ" उसने बताया,

"किस तरह का भोजन अधिक पसंद करती है?" मैंने पूछा,

"जी वो मीट खाना पसंद करती है अधिक" उसने बताया,

"कौन सा मीट?" मैंने पूछा,

"जी देसी मुर्गे का" उसने बताया,

"किस तरीके के कपडे पहनती है?" मैंने पूछा,

"जी साड़ी अधिक पहनती है" उसने कहा,

"उलटे पल्लू कि या सीधे पल्लू की?" मैंने पूछा,

"उलटे पल्लू की" उसने बताया,

"कभी उसके साथ खाना खाया आपने?" मैंने पूछा,

"हाँ कभी कभार" उसने बताया,

"कई बदलाव देखा आपने?" मैंने पूछा,

"हाँ, पहले वो दो तीन रोटी खाती थी लेकिन अब पांच सात रोटी" उसने बताया,

"एक ख़ास बात और, घर में सभी कि इज्ज़त करती है?" मैंने पूछा,

"हाँ, नमस्ते का जवाब नमस्ते, बस अपनी तरफ से कभी नहीं" उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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अब मैंने उनके बड़े भी को वहाँ से उठवा दिया, मुझे कुछ व्यक्तिगत प्रश्न पूछने थे, मैंने पूछा, " किशन, एक बात बताओ, आपके साथ वो संसर्ग करती है?"

"हाँ" उसने बताया,

"पहले की तरह? मैंने पूछा,

"पहले से कहीं अधिक" उसने बताया,

"पहल कौन करता है?" मैंने पूछा,

"जी वही" उसने बताया,

"और पहले वाली स्नेहा, वो करती थी ऐसा?" मैंने पूछा,

"जी नहीं, पहल मुझे ही करनी पड़ती थी" उसने बताया,

इसका अर्थ स्नेहा के साथ बहुत बड़ी गड़बड़ है! मैंने विचारा! "तो आप मुझसे किस तरीके की मदद चाहते हैं?" मैंने पूछा,

"जी, बात ये है कि आज से कोई १०-१२ दिन पहले हमारी गली में एक बुज़ुर्ग अघोरी किस्म का साधू आया, वो मेरे घर के सामने खड़ा हुआ और फिर मेरे दरवाज़े के पास खड़ा हो गया, उसने अपना कटोरा मेरे दरवाज़े पर मारा, मैंने उसकी वेश-भूषा देखी तो मुझे अचरज सा हुआ उसको देखके वो अन्दर आ गया था और मेरे कमरे की तरफ देखे जा रहा था, मैंने अपनी जेब से एक पांच का सिक्का निकाला और उसके कटोरे में रखने चला, जब मैंने सिक्का डाला तो उसने अपना कटोरा हटा लिया, सिक्का नीचे गिर गया, मैंने सोचा कि शायद और अधिक पैसे मांग रहा है इसीलिए कटोरा कटा लिया होगा, मैंने अब एक दस का नोट दिया, उसने फिर से कटोरा हटा लिया और मेरा हाथ पकड़ के बाहर ले गया, बाहर ले जाके आस-पास देखा और बोला," अन्दर जो औरत है वो तेरी औरत है?"

"हाँ बाबा, मेरी औरत है" मैंने जवाब दिया,

"घर में मुर्दा रखा हुआ है तूने!!" वो चिल्लाया,

"मुर्दा?????" मैंने कहा,

"हाँ मुर्दा! तूने मुर्दा रखा हुआ है अपने घर में" उसने चिल्ला के फिर दुबारा कहा,

"यकीन नहीं होता न तुझे?" उसने कहा,

"कैसे यकीन होगा बाबा? वो जिंदा है" मैंने कहा,

"जिंदा? अरे तेरी औरत तो कभी की मर गयी!" उसने कहा,

"मर गयी, नहीं बाबा, वो तो जिंदा हो गयी दुबारा, मरने के बाद" मैंने कहा,

"ये ले" उसने कहा और मुझे एक पुडिया दे दी और बोला, " आज जब तू सोने जाएगा तो तू इसको सोने से पहले अपने बिस्तर पर छिड़क दियो, तुझे पता चल जाएगा!" उसने कहा और चल दिया,

मै उसके पीछे भागा, और बोला, "बाबा अगर जो आपने बोला, वो सच है तो, मुझे छुटकारा कौन दिलवाएगा?"

"मै आ जाऊँगा तेरे को बचाने, अभी वक़्त है बाकी, नहीं तोसभी को खा जाएगा ये मुर्दा!" बाबा ने कहा,

बाबा चला गया, मैंने उस रात अपने बिस्तर पर बाबा की दी हुई भस्म बिस्तर पर छिड़क दी, स्नेहा आई रात को, और जैसे ही बिस्तर पर बैठी, एक दम से धडाम नीचे गिर गयी!


   
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श्रीशः उपदंडक
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मैंने उसको देखा, उसकी नब्ज़ बंद हो गयी थी, मै उसके दिल की धड़कन सुनने के लिए नीचे झुक, तो उसने अपने दोनों हाथों से मेरे सर के बाल पकड़ लिए और बोली, "मुझे मारना चाहता था तू? मारना चाहता था तू??"

मै घबरा गया! मैंने अपने बाल छुड़वाए, और बाहर भाग गया! मेरा दिल धक्-धक् कर रहा था जोर जोर से! मुझे पुत्री का ख़याल आया, मै वापिस भाग, अन्दर देखा तो स्नेहा बिस्तर से नीचे फर्श पर मेरी बेटी को अपने कंधे पर सुलाए सो रही है! मै डर गया था! मैंने अपनी पुत्री उस के पास से हटानी चाही, तो उसकी नींद खुल गयी, वो बैठ गयी और बोली, "अब न करना ऐसा!"

मैंने अपनी गर्दन हिलाई, अब वो मुझे अपरिचित से लग रही थी, मै सुबह होने का इंतज़ार करने लगा!

सारी रात मै सो नहीं सका, सुबह काम पर भी जाना था, स्नेहा नहाने गयी थी, नहा के बाहर निकली तो चाय बनाने चली गयी, चाय लेकर आई मैंने चाय पी, पुत्री को विद्यालय भेजा, उसके बाद स्नेहा ने मुझे से कहा, " मुझे यहाँ रहने दे, कोई कोशिश न करना! उस बाबा को मै देख लूंगी, आज आने दे उसको, मै देखती हूँ, तू मेरा आदमी बन के रह, जब तक तेरा जी चाहे, कोई और औरत लानी है तो ले आया, मै नहीं मना करुँगी तुझे, लेकिन अगर मुझे बाहर करने को कहा तो तेरा खून पी जाउंगी, सुन ले कान खोल के!" मै काम पर जाने का बहाना करके घर से बाहर चला गया, लेकिन घर के पास ही अपने एक मित्र की दुकान पर बैठ गया, मै बाबा की प्रतीक्षा करने लगा, कोई दो घंटे के बाद वो बाबा वहाँ आ गया, उसने मुझसे शराब मांगी, मैंने शराब पिलाई उसको, उसके बाद उसने मुझसे कहा, "तेरे को पता चल गया उस मुर्दे के बारे में अब?"

"हाँ बाबा पता चल गया" मैंने बुझे मन से कहा,

"अब तू पीछा छुडाना चाहता है उस मुर्दे से, है ना?" वो बोला,

"हाँ बाबा, मेरा पीछा छुडवा दीजिये बाबा" मैंने कहा,

"अच्छा! क्या सेवा करेगा बाबा की?" बाबा ने पूछा,

"आप बोलिए बाबा,क्या चाहिए आपको?" मैंने कहा,

"रुपये लगेंगे एक लाख!" बाबा ने कहा,

"एक लाख?" मै सकपकाते हुए बोला,

"हाँ, तेरे घरवालों को भी तो बचाना है ना? नहीं तो वो भी मारे जायेंगे!" बाबा ने कहा,

"ठीक है बाबा, बताओ मुझे करना क्या है?" मैंने कहा,

"तुझे कुछ नहीं करना, जो करना है ये बाबा ही करेगा!" उसने कहा और अपना आखिरी गिलास ख़तम कर लिया,

"जी बाबा" मैंने कहा,

"अब चल मेरे साथ अपने घर, देख कमाल बाबा का!" ये कह के बाबा उठ गया और मेरे साथ मेरे घर चल पड़ा!

हम घर पहुंचे, स्नेहा अन्दर अपने कमरे में थी, वो बाबा को देख कर कमरे से बाहर आ गयी, मैंने बाहर वाला घर का मुख्य-दरवाज़ा बंद कर दिया,


   
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श्रीशः उपदंडक
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स्नेहा कमरे से बाहर आ गयी, अपलक उसने बाबा को देखा और मुझे भी, फिर हँसते हुए मुझसे बोली, "तेरे को मैंने मन किया था! लेकिन तू माना नहीं! अब इसको भी ले आया मरवाने के लिए?"

बाबा आगे बढ़ा और बोला, "ओ कमीनी औरत, बहुत खेल दिखाया तूने, बहुत खिलाया इसको तूने, बस आज आखिरी दिन है तेरा!" ये कह के बाबा ने अपने चोले में से कुछ भस्म निकाली और स्नेहा पर फेंक दी! स्नेहा पर कोई असर नहीं हुआ! उसने वो भस्म अपने हाथों से झाड दी!

मै घबरा गया! बाबा भी ठिठक गया! स्नेहा ने कहा, "तेरे जैसे बाबा मैंने बहुत मारे हैं! आज तू भी मरेगा!" वो आगे बढ़ी, बाबा और मै पीछे हते, बाबा ने फ़ौरन बाहर के दरवाज़े की कुण्डी खोली और बाहर भाग गया! मै भी भागा लेकिन मुझे उसने पकड़ लिया और बोली, "सुन, तेरे को मै क्या परेशान कर रही हूँ?" तेरी औरत हूँ मै! तुझे खुश रख रख रही हूँ, तेरी औलाद को पाल रही हूँ! तेरे को और क्या चाहिए?

"बाबा ने बोला तू मुर्दा है" मैंने घबरा के कहा,

"मै तुझे मुर्दा दिखती हूँ?" उसने कहा,

"न...........न.................नहीं तो" मैंने कहा

"क्या मै जिंदा नहीं हूँ?" उसने पूछा,

"ह......ह.............हाँ.........हाँ......हो" मैंने कहा,

"अब आगे से किसी को नहीं बुलाना, चल अन्दर आजा तुझे खुश कर दूँ" उसने हंस के कहा और मेरा हाथ पकड़ के ले गयी अन्दर!

मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था, मुझे अब अपनी मौत साफ़ दिखाई दे रही थी! उसने मुझे बिस्तर पर गिरा दिया और मेरे ऊपर चढ़ गयी! मैंने किसी तरह से अपने को संभाला और भाग कर अपने भी, इनके पास आ गया, मैंने इनको सारी बातें बता दीं, उस दिन मै अपनी पुत्री को विद्यालय से लाया और अपने भी के पास ले आया, आपके परिचित मेरे भाई के रिश्तेदार हैं, उन्होंने आपके बारे में बताया, हमको बचाओ गुरु जी! हमको बचाओ!

"अब स्नेहा कहाँ है?" मैंने पूछा,

"मेरे घर में, मै वहाँ नहीं गया दुबारा" किशन ने कहा,

अब मै सोच में पड़ गया.................... मैंने एक दो बातें और कीं और उनसे मैंने अगले दिन वहाँ उनके भाई राजकुमार के यहाँ पहुँचने को कहा, दिल्ली से कुरुक्षेत्र कोई अधिक दूर नहीं है, मैंने उनको कल का कार्यक्रम निर्धारित करने के विषय में बता दिया, वे दोनों भाई वहाँ से उठे और हमसे विदा ली!

उनके जाने के बाद शर्मा जी ने कहा, "गुरु जी,ये क्या अजीब सा मामला है?"

"हाँ मामला तो अजीब है, लेकिन अनोखा नहीं है, ऐसा होता है, इसको 'स्थानांतरण' कहते है! ये वही मामला है! मैंने कहा,

"स्थानांतरण? वो क्या है" वो बोले,

"मै समझाता हूँ आपको, सुनिए, जब स्नेहा की मृत्यु हुई, उसकी आत्मा का उसकी रोगी-देह से मोह समाप्त हो चुका था, वो स्वेच्छा से मृत्यु-वरण करना चाहती थी, मृत्यु पश्चात ४ घटी तक आत्मा अपनी देह से प्रेम-बंधन में रहती है, वो बार-बार प्रयास करती ही कि वो उस देह


   
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श्रीशः उपदंडक
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में पुनः प्रवेश करे, किन्तु ऐसा हो नहीं पाटा, तब भी वो वहीँ रहती है, वो प्रत्येक सदस्य के आसपास मंडराती रहती है, और फिर जब दाह-संस्कार होता है तो अब भी वो अपनी देह को नहीं छोड़ना चाहती, वहीँ मौजूद रहती है, कपाल-क्रिया के उपरान्त देह में प्रवेश नहीं हो सकता, उसका मोह-भंग हो जाता है, और वो फिर मसान के दूतों के हाथ में आ जाती है, वहाँ उसको उसकी जगह, अर्थात झोंपड़ी दे दी जाती है, वहाँ और भी कई आत्माएं मौजूद रहती है, उनको मृत्यु का कारण ज्ञात रहता है, मसान के पास ये आत्माएं १४ दिनों तक वास करती हैं, मसान उस समय इनका मालिक होता है, अगर उसको कोई आत्मा पसंद आती है तो वो उसको जब तक चाहे रोक के रख सकता है,स्नेहा के बारे में ऐसा ही हुआ, जब स्नेहा की आत्मा देह से मुक्त हुई, तो उसको अपनी देह से, बीमार देह से लगाव नहीं था, वो वहाँ से चली और मसान के दूतों द्वारा पकड़ी गयी, जिस दिन इसकी मृत्यु हुई वो रात्रि समय था, उस दिन अष्टमी तिथि थी, द्वित्या, पंचमी, अष्टमी और चौदस को मसान जागृत रहता है, उसके दूत आत्माएं इकठ्ठा करते हैं, जब स्नेहा कि आत्मा वहाँ पहुंची तो कोई पुरानी आत्मा स्नेहा के शरीर में इसलिए प्रवेश कर गयी क्यूंकि उस को एक तो स्नेहा के बारे में पता चल, दूसरा दाह-संस्कार नहीं हुआ था, तीसरा वो मसान की प्यारी होगी! स्नेहा ने उस अघोरी को भगा दिया! वजह ये, की वो मसान कि ताक़त से लबरेज़ है! समझे आप! वो बाबा अधपका ज्ञान लेकर वहाँ गया था! केवल भस्म से ही लड़ना चाहता था! भस्म को खाक करना मसान के लिए कोई मुश्किल काम नहीं! ये मसान कामिया-मसान कहलाता है! आप समझे अब?"

"हाँ गुरु जी, मै समझ गया अब!" शर्मा जी बोले,

"अभी भी कई बातें हैं, जा छुपी हुई है!" मैंने कहा,

"लेकिन अब भी एक संशय है, ऐसा तो किसी के साथ भी हो सकता है? स्नेहा के साथ एक विशेष क्यूँ?" उन्होंने प्रश्न किया,

"अच्छा प्रश्न पूछा है आपने! दरअसल जब स्नेहा की मृत्यु हुई, तो पहला, किशन ने कोई दिया जला के उसके सिरहाने नहीं रखा, दूसरा उसका स्थान नहीं बदला, मृत-देह का सर बदल दिया जाता है, इसीलिए, तीसरा, उसके सर के नीचे तकिया रहने दिया! वो देह अब खाली थी, इसीलिए उसमे 'काया-प्रवेश' हो गया!" मैंने स्पष्ट किया!

"अच्छा गुरु जी!" उन्होंने कहा,

"अभी कुछ और बातें उस मसान-प्यारी से ही पूछ लेंगे हम!" मैंने कहा,

"ठीक है, बेचारी स्नेहा की भी मुक्ति नहीं हुई, ये स्पष्ट है!" उन्होंने कहा,

"हाँ शर्मा जी, वो बेचारी भी भटक रही होगी या कहीं क़ैद होगी!" मैंने कहा,

उस दिन मैंने कुछ तैयारियां कीं और अगले दिन सुबह निकलने के लिए अलख उठाने चला गया मै! मै अगले दिन शर्मा जी के साथ कुरुक्षेत्र पहुँच गया, पहले राजकुमार के घर गया, वो और किशन घर पर ही मिले, उन्होंने चाय-नाश्ता कराया तो मैंने उनको किशन के घर चलने के लिए कहा, वो दोनों अपनी गाडी में हमको बिठा कर ले गए, हम किशन के घर पहुंचे, दरवाज़ा अन्दर से बंद था, मतलब वो घर पर ही थी, उसने खटखटाया, अन्दर से दरवाज़ा खुला, पहले किशन और राजकुमार अन्दर गए, फिर मै और शर्मा जी, अन्दर मुर्दे जैसी भयानक गंध के भभाके उठ रहे थे!


   
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श्रीशः उपदंडक
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स्नेहा ने पीछे हटकर किशन से कहा, "आज तो तो मारा ही जाएगा कमीन के बच्चे!" उसने वहाँ पड़ा हुआ एक पाइप उठा कर किशन की तरफ फेंका, किशन वहां से हट गया, मैंने किशन और राजकुमार को वहाँ से निकाल दिया और दरवाज़ा बंद कर लिया!

स्नेहा भाग कर अन्दर कमरे में चले गयी, मै भी वहाँ गया, वो जाके एक कोने में खड़ी हो गयी!

मैंने कृत्र-मंत्र पढ़ा! और उसकी तरफ देखा! वो एक ६० साल के आसपास की औरत होगी! बाल सफ़ेद, बिखरे हुए, एक दम मैली-कुचैली! मैल की गर्द जमी थी उसके बदन पर! बदबू ही बदबू!

मैंने उस से कहा, "सुन! बहुत आराम कर लिया! चल अब जाना है तुझे वापिस!"

"नहीं जाउंगी मै!" उसने गर्दन हिलाते हुए कहा!

"जाएगा तो तेरा बाप भी!" मैंने कहा,

"नहीं जाउंगी!" उसने कहा,

मैंने तब एक मंत्र पढ़ा, जेब से नीम्बू निकाला, अभी मंत्रित किया! चाक़ू से मैंने अपने अंगूठे के ऊपर एक हल्का सा चीरा लगाया! और उस पर नीम्बू निचोड़ दिया! वो तड़प उठी!

"मत मार! मत मार मुझे, मत मार मुझे" वो नीचे बैठते हुए बोली!

"काया-प्रवेश किया है तूने!" मैंने कहा,

"हाँ, करना पड़ता है!" उसने कहा!

"अच्छा, कितनों के साथ किया तूने ऐसा?" मैंने पूछा,

"ये तीसरी है" उसने बताया,

"बस अब तेरा ये खेल ख़तम!" मैंने कहा,

"तुझे क्या फायदा होगा?" उसने कहा,

"तू मुझे टटोल रही है? जान रही है? मै कौन हूँ?" मैंने कहा,

"हाँ, मै जान गयी हूँ" उसने बैठे बैठे कहा,

"तेरा नाम क्या है?" मैंने पूछा,

"प्रेमवती" उसने बताया,

"कहाँ की रहने वाली है?" मैंने पूछा

"एटा की हूँ" उसने कहा,

"मसान राजा को बुलाएगी?" मैंने हंस के कहा,

"मसान राजा क्या करेगा तेरे सामने?" उसने अब रोना शुरू किया!

"नाटक बंद कर!" मैंने कहा,

"सुन, अगर तू मुझे, ज़बरदस्ती करेगा तो...................." वो कह के चुप हो गयी!

"तो? आगे बोल? आगे बोल? तेरी हिम्मत की दाद देता हूँ!"

"मुझे भगाएगा तो ये ले!" उसने कहा और अपना हाथ चबाने लगी! काया-प्रवेश में देह की रक्षा करना अत्यंत आवश्यक होता है! अभी कभार वो अपने सर फोड़ लेते हैं, हाथ या पाँव का मांस खा जाते हैं! और बाद में पुलिस का भय बना रहता है! मै दौड़ के गया उसके पास मैंने उसके हाथ को खींचा! वो हाथ, मुंह से नहीं निकाल रही थी, शर्मा जी ने वो चाक़ू लेकर


   
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श्रीशः उपदंडक
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उसके दांतों के बीच में लगा के उसका हाथ निकाल दिया! हाथ पर अधिक निशान नहीं पड़े थे!

मैंने उसका एक हाथ पकड़ा और दूसरा हाथ शर्मा ने पकड़ा, शर्मा जी ने किशन को आवाज़ लगायी, वे आ गए, शर्मा जी ने उनको स्नेहा को बाँध देने को कहा! किशन ने फ़ौरन एक चुन्नी से उकसे हाथ और मुंह को कपडे से बाँध दिया! अब उसके पाँव राजकुमार ने बांधे! मैंने किशन और राजकुमार से कह के उसका बिस्तर पर लिट्वा दिया! वो मुंह से गुर्र-गुर्र करती रही! मैंने शर्मा जी से कहा, "शर्मा जी, इसके मुंह का बंधन खोल दो, लेकिन ध्यान से कहीं ये काट ना ले!"

"काटेगी कैसे, इसकी माँ की .................." ये कहते हुए वो उठे और चाक़ू से उसका मुंह बंधन से आज़ाद करा दिया!

अब मैंने किशन से कहा, "किशन अब देखो अपनी 'पत्नी' को!"

किशन घबरा गया वो मेरे पास आ के खड़ा हो गया! मैंने अब स्नेहा से कहा, "सुन अब अपने बारे में जो मै पूछूंगा वो बता देना! नहीं बोलेगी तो समझ ले भस्म कर दूंगा तुझे और तेरे उस खसम कामिया-मसान को!"

वो कुत्ते की तरह गुराई और मुझे काटने के लिए भागी, मैंने एक लात उसकी छाती में मार कर उसको पीछे कर दिया!

"नाम बता इस बेचारे किशन को अपना?"

"स्नेहा, मै तो जी आपकी स्नेहा हूँ" उसने स्नेहा की आवाज़ में कहा!

किशन के होश उड़ गए और मेरे भी! जानते हो क्यूँ मित्रगण? क्यूंकि स्नेहा की रूह को भी इस प्रेमवती ने क़ैद कर लिया था! लेकिन केवल मै और शर्मा जी ही ये बात समझ पाए थे!

"तू ऐसे बाज नहीं आएगी, नहीं आएगी ना?" मै खड़ा हुआ और एक झन्नाटेदार झापड़ लगा दिया उसके गाल पे!

"हाँ हाँ बताती हूँ, मारो मत मुझे!" उसने कहा,

"बता फिर अपनी असलियत!" मैंने कहा,

"मेरा नाम है प्रेमवती, मै एटा की रहने वाली हूँ, ६ सालों से बाहर हूँ, मैंने ही इसकी बीवी के शरीर में प्रवेश किया था, ना ये मेरा पति है और ना मै इसकी कोई बीवी!" उसने बताया!

"एक काम और कर, ज्यादा चालाक ना बन तू! स्नेहा को हाज़िर कर अभी!" मैंने कहा,

"कौन स्नेहा?" उसने मासूमियत का मुंह बनाया!

"अभी बताता हूँ कौन स्नेहा!" मैंने चाक़ू को उठाया और अभिमन्त्रण किया!

"शर्मा जी ज़रा इसकी जुबां खींचो बाहर, या साली की आँख फोड़ दूँ? फिर तो ये किसी काम की नहीं रह जायेगी!" मैंने उसको डराने के लिए कहा!

"ना ना! रुक तो सही, बहुत जिद्दी है तू वैसे!" उसने कहा,

फिर थोड़ी देर में स्नेहा की आमद हो गयी उस पर! उसने अपने जेठ को नमस्ते कहा!

"किशन? कैसे हो? कैसे हो तुम? हमारी बेटी कहाँ है?" उसने पूछा,

"मै ठीक हूँ" वो ये कहते कहते रो पड़ा, मैंने उसकी हिम्मत बंधवाई, मैंने कहा, "किशन, सारे नाते-बंधन टूट गए हैं!"

वो बेचारा चुप हो गया और बोला, "बेटी ठीक है स्नेहा"


   
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श्रीशः उपदंडक
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"मुझे चिंता लगी रहती है इसकी" उसने कहा और एक झटका खाया, अब दुबारा से प्रेमवती की आमद हो गयी!

"अब भी सोच ले, मै भी रहूंगी और ये भी, बोल क्या कहता है बे रंडुए?" उसने किशन को डांटते हुए कहा,

"सुन छिनाल औरत, तेरा तो मै अंत करूँगा बा, बस बहुत हुआ! मैंने कहा, अभिमन्त्रण किया, किशन और राजकुमार को बाहर भेजा और अपना एक महाप्रेत प्रकट किया, उसको इस औरत के रूह को पकड़ने को कहा!

महाप्रेत ने प्रवेश किया और उस प्रेमवती को बाहर खींच लाया!

 

मेरे महाप्रेत ने उसको उल्टा करके, मतलब उसकी दोनों टाँगे ऊपर और सर नीचे करके पकड़ रखा था, मैंने अपने महाप्रेत को उसको क़ैद करके ले जाने को कहा, उसने ऐसा ही किया!

अब स्नेहा मृत थी, मैंने अब उसमे दुबारा स्नेहा की आत्मा को संचारित किया, एल्किन एक मंत्र से उसको तीन दिनों के लिए उस शरीर में क़ैद कर दिया! ये मेडिकल-साइंस के लिए कोमा में जाना कहलाता है, कपाल-क्रिया के बाद वो मुक्त हो जानी थी!

मै उठा, किशन से कहा, "किशन सभी रिश्तेदारों को खबर कर दो, स्नेहा की तबियत खराब है, और आज ही इसको अस्पताल में दाखिल कर दो, तुम्हारी बीवी कब की मर चुकी है, देह से मोह ना पालो, तीसरे दिन इसका संस्कार कर देना!"

"जैसा आप कहो गुरु जी" वो बेचारा वहीँ बैठ गया, फूट फूट के रोया! वो अपना मोह ना त्याग सका!

"किशन, जैसा कहा गया है वैसा करो, इसकी धड़कन ठीक ७२ घंटे बाद बंद हो जायेंगी, ये मृत है!"

मैंने उसको समझा-बुझा दिया! उसने मेरी बात मान ली, जब मै वहाँ से जा रहा था तो उसने मुझसे धन-राशि की बात कही, मैंने कहा, "एक काम करना तेरहवीं वाले दिन एक बड़ा भंडारा करना, मै भी आऊंगा!"

वो बेचारा मेरे पाँव पड़ गया, मैंने उसको हिम्मत बंधाई! और उसके बाद, मै और शर्मा जी वहाँ से वापिस आ गए!

ठीक ७२ घंटे बाद स्नेहा को डॉक्टर्स ने मृत घोषित कर दिया! और मेरे बताये अनुसार उसका दाह-संस्कार कर दिया! कपाल-क्रिया होते ही स्नेहा इस संसार से विदा हो गयी! प्रेमवती को मैंने बाद में क़ैद कर दिया! वो भी शमशान के बरगद के पेड़ पर! ना कभी निकलेगी ना कभी कुछ करेगी!

तेरहवीं वाले दिन मै वहाँ गया! भंडारे में शामिल हुआ!

आज किशन ने दूसरी शादी कर ली है, उसकी बेटी खुश है, हां, मै उसकी दूसरी शादी के निमंत्रण में नहीं जा सका! मुझे ये निमंत्रण दिल्ली से बहुत दूर मिला था! मैंने उसको नए जीवन की शुरुआत की शुभकामनाएं अवश्य ही दीं.

------------------------------------------साधुवाद-------------------------------------------

 


   
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