मित्रगण! आपको ये घटना भले ही विचित्र लगे, लेकिन है एक दम सत्य! ये घटना दिल्ली की ही है, दिल्ली में नदी बहती है यमुना, और इस यमुना नदी के किनारों पर अक्सर लोग खेती किया करते हैं, सरकारी पट्टे पर ये खेत आबंटित होते हैं। दिल में है पुराना किला, हुमायूं का किला और इसको पांडवों का किला भी कहा जाता है, जब आप इस किले से होकर यमुना नदी की तरफ चलें तो एक मार्ग आता है, ये अन्दर किनारे तक जाता है, है कोई ढाई तीन किलोमीटर, यहाँ पर कुछ पौधों की नर्सरियाँ हैं, और फिर आसपास खेत, दूर दूर तक फैले खेत!
वर्ष २००९ की बात है, यहाँ एक व्यक्ति हैं पवन, उन्होंने यहाँ पर कई बीघा खेती ले रखी है, कुछ भूमि अतिरिक भी है तो उन्होंने सोचा कि इसको भी साफ करवा कर इस पर भी सब्जी-भाजी-तरकारी आदि बो ली जाएँ, एक ट्रेक्टर मंगवाया गया, साफ सफाई आरम्भ हुई, दोपहर का वक हो चला था, ट्रेक्टर वाला और उसका सहायक खाना खाने के लिए रुके, एक जगह साफ सी देख वहाँ चादर बिछा खाना खाने लग गए, तभी अचानक वहाँ एक अजीब सा सफेद रंग का सांप आया, सांप फुफकारा तो उनका ध्यान गया! दोनों ने सांप तो बहुत देखे थे लेकिन ऐसा सांप उन्होंने कभी नहीं देखा था! शफ्फाफ! लम्बा-मोटा, कोई ३ मीटर का सांप! हाँ, उसकी रीढ़ पर २ काली रेखाएं बनी हुई थीं! और आँखें एक दम काली! बड़ी बड़ी! इंसानी आँखों जैसी! ऐसा अजीबोगरीब सांप उन्होंने तो पहली बार ही देखा था! सांप सर उठाये खड़ा था! गुस्से में फफकार रहा था! बार बार अपना सर ज़मीन में मारता! जैसे उनको वहाँ से जाने को कह रहा हो! दोनों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी! दोनों वहाँ से भाग खड़े हुए! खाना वहीं छोड़ दिया! दोनों ने ये बात पवन को बतायी, पवन अपने साथ दो आदमियों को लाया और वे साथ में लाठी डंडा भी ले आया! वहाँ सांप होना खतरनाक था, मजदूर औरतें और पुरुष वहाँ काम करते हैं और उनके बच्चे भी वहीं खेलते रहते हैं। किसी को काट ले तो बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती थी! पवन और उसके दोनों साथी वहाँ आये! सांप अभी भी वहीं कुंडली मारे बैठा था! उसको उन तीनों ने देखा तो ठिठक कर खड़े हो गए! सांप था ही अजीबोगरीब! ऐसा सांप तो उन्होंने न कभी देखा था और न कभी सुना ही था! मारे डर के वहीं खड़े हो गए! क्या किया जाए! कहीं देवता न हो! बड़ी विकट स्थिति थी! सांप को ऐसे भी नहीं छोड़ा जा सकता था! लाठी-डंडा मारने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी!
आखिर पवन के साथी रवि ने अपना डंडा उठाया और उस सांप पर आगे बढ़ के दे मारा! डंडा सांप पर पड़ा तो सांप और तेज फुफकारा! सांप के धड पर डंडा पड़ा था, इसीलिए बाख गया था! सांप आगे बढ़ा! अब वे तीनों अपने अपने लाठी-डंडे लेके उस पर टूट पड़े!
करीब १० मिनट तक वो उसको मारते रहे! सांप मर गया! लेकिन कमाल और हैरत की बात ये थी कि सांप की एक भी बूंद रक्त की दिखी नहीं थी! हाँ उसकी आँखें भी खुली हुई थीं! उन तीनों ने जब ये देखा कि सांप मर गया, सभी ने चैन की सांस ली! चलो मुसीबत टल गयी! पवन ने सांप अपनी लाठी पर उठाया और उठा कर बहती नदी में डाल दिया! बड़ा ही भारी सांप था वो! संभाले नहीं संभल रहा था!
सांप नदी में बह गया! ड्राईवर और उसके सहायक ने खाना खाया और काम फिर से शुरू हो गया! साफ सफाई फिर शुरू हो गयी!
खेत चूंकि काफी बड़ा था और नदी में बहता आया कूड़ा-कचरा काफी था अतः ये काम उस दिन नहीं पूरा हो सका, सब वापिस चले गए!
अगले दिन, काम फिर शुरू हुआ! फिर दोपहर के समय ड्राईवर और उसका सहायक खाना खाने एक दूसरी जगह बैठे, जैसे ही एक आद रोटी खायी, बिलकुल कल जिस सांप वहाँ फिर आ गया! फुफकार मारे! सर हिलाए! दोनों की मारे भय के चीख निकल गयी! वे भागे वहाँ से! वे भागे पवन और उसके साथियों के पास! सारी बात बता दी हाँफते हाँफते! पवन और उसके साथियों की भी सिट्टी-पिट्टी गुम! कितने सारे सांप है यहाँ ऐसे? कहीं उसका साथी या साथिन तो नहीं आ गयी? कहीं बदले के लिए तो नहीं आया? या आई? अब क्या होगा? कोई गलती तो नहीं हो गयी? ऐसे ऐसे कई खयाल उनके दिमाग में उछल पड़े!
बड़ी हिम्मत करके वो वहाँ तक गए, सांप वहीं बैठा था कुंडली मारे! एक चीज़ जो उन्होंने देखी थी वो ये थी कि उसके शरीर पर लाठियों के निशान अभी भी मौजूद थे! वहाँ सूजन थी! अब तो वहाँ भय व्याप्त हो गया! अब क्या किया जाए? ये तो वही सांप है जिसको कल मारा था! ये जिंदा कैसे हो गया?
सांप वही बैठा था! कुंडली मारे! सबके होश फाख्ता हो गए! किसी ने कहा मार डालो, किसी ने कहा सपेरों से पकडवा दो, किसी ने कहा फोन करदो वन विभाग को! आखिर में वन विभाग को सूचित किया गया! सांप लगातार २ घंटों तक वहीं बैठा रहा! वन विभाग वाले आ गए! उन्होंने सांप को देखा तो उनको भी आश्चर्य हुआ! ऐसा सांप उन्होंने भी पहले कभी नहीं देखा था! मोबाइल से फोटो लिए गए! आखिर में वन विभाग वालों ने खूब कोशिश की उसको पकड़ने की, लेकिन सफल न हुए! सांप बार बार उनकी छड़ी से बच जाए! तब उनमे से एक ने उसके ऊपर एक चादर डाल दी! और चार आदमियों ने वो सांप पकड़ लिया! सांप काफी भारी था! किसी तरह से पकड़ में आ गया था! पवन और उसके साथियों ने चैन की सांस ली! चलो मुसीबत टल गयी! वन विभाग वाले भी खुश कि शायद नयी प्रजाति का सांप हाथ लगा है! वन विभाग वाले उस सांप को एक टोकरी में डाल कर ले गए!
एक दिन बीता, काम ख़तम हो गया! साफ-सफाई हो गयी थी, ज़मीन खेती लायक हो गयी थी! अब उसमे पानी डाला गया! लेकिन बीच में एक बड़ा सा पत्थर आ गया था, पुराना सा पत्थर, ट्रेक्टर भी हटा सका उसको! खैर, खेती लायक काफी ज़मीन साफ़ तो हो ही गयी थी!
अगले दिन सुबह की बात है, एक मजदूर औरत भागी भागी आई पवन के पास और बताया कि वो आकर देखे कि खेत में क्या है? पवन भी दौड़ा दौड़ा गया! देखा तो आँखें फटी की फटी रह गयीं! पाँव तले पसीना आ गया! खेत के मध्य वो ही सांप बैठा हुआ था कुंडली मारे!
पवन को तो जैसे काठ मार गया हो! वो गिरते गिरते बचा! सिहरन दौड़ गयी सारे बदन में! ये अवश्य ही कोई देवता है! अब मारे गए! अब क्या होगा! क्या किया जाना चाहिए? सर्प-देवता तो हाथ धोके पीछे पड़ गए हैं!
फिर से बैठक हुई, सभी ने निर्णय किया कि इस बार किसी सपेरे से सांप पकडवा दिया जाए! दो आदमी सांप पर नज़र जमाये हए थे एक निश्चित दूरी से! सांप भी वहीं पत्थर के पास बीच में कुंडली मारे बैठा था!
तीन-चार घंटे बीते! दो सपेरे लाये गए! उन्होंने झाड-कबाड़ निकाल अपनी अपनी पोटलियों में से!
पवन ने उसने पूछा, " भाई? क्या ऐसा सांप कभी देखा है आपने?"
"दिख तो अलग ही रहा है, ऐसा तो नहीं देखा कभी" सपेरा बोला
"पकड़ में आ जाएगा न आपके?" पवन ने पूछा,
"हाँ जी क्यूँ नहीं, हमने तो इससे भी बड़े बड़े सांप पकडे हैं" सपेरे ने दंभ से कहा!
"पकड़ लो भाई साहब! इसने तो खाना-पीना हराम कर रखा है हमारा!" पवन ने कहा,
"अभी लो साहब" सपेरा बोला,
तब वो दोनों सपेरे खेत के अन्दर चले गये! सांप के पास जाके जादू-मंतर सा करने लगे! सांप वैसे का वैसा ही बैठा रहा! कोई असर न हुआ उस पर! एक सपेरे ने स्टील की एक डिब्बी से एक पुड़िया निकाली, पुड़िया खोली और एक सफ़ेद सा चूर्ण अपने हाथों पर डाला! और फिर एक कपडे पर छिड़क कर सांप के ऊपर डाल दिया! सांप ने मारी फुकार! दोनों सपेरे पीछे हटे! उनको ऐसे प्रपंच करते करते २ घंटे हो गए लेकिन सांप नहीं पकड़ सके!
तब दोनों सपेरे वापिस लौटे! अपनी पोटली में से एक टोकरी निकाली, टोकरी खोली तो उसमे से निकाला नेवला! सांप को घायल करके पकड़ना चाहते थे वो! नेवला फुदक के बाहर आया! सपेरे ने उसके गले की रस्सी हटाई और हाथ में उठा कर खेत में ले गया!
खेत में ले जाके नेवला छोड़ा! नेवले ने सांप को देखते ही कान खड़े किये और मुंह खोला! उसने सांप के चक्कर लगाने शुरू किये! लेकिन जब भी वार करने की सोचता तभी सांप जोर से फुफकारता और नेवला वहाँ से हट जाता! आखिर में नेवले ने भी हार मान ली!
सपेरे मायूस मन से वहाँ से पैसा लौटा कर वापिस आ गए! बताया कि ये कोई मामूली सांप नहीं जान पड़ता! कोई देवता है, इसकी पूजा करके इनसे ही ये स्थान खाली करने को कहो! सांप नहीं हटने वाला!!
अब पवन और उसके साथियों की हुई हालत खराब! देवता को पीट दिया??
जैसे तैसे रात काटी! डर के मारे पवन की आँखों से नींद उडी हुई थी! सुबह सुबह उठ कर ही खेत पर गया, देखा सांप वहाँ नहीं था! उसको थोडा चैन आया कि हो सकता है सर्प-देवता को दया आ गयी हो! ये स्थान हम गरीबों के लिए छोड़ गए हों! उसने ऊपर वाले का लाख लाख धन्यवाद किया!
उसने सब को बताया कि देवता स्थान छोड़ के चले गए हैं! अब कोई चिंता की बात नहीं है! लेकिन किसी ने सुझाया, की सपेरों ने पूजा करने की बात कही थी, इसीलिए शायद वो सर्प-देवता स्थान छोड़ गए हैं। इसीलिए पूजा आवश्यक थी! तभी पूजा करवाने के लिए सभी में सहमति हो गयी!
पंडित जी बुलाये गए! पंडितजी ने कहा कि पूजा का स्थान वहीं होना चाहिए जहां सांप बैठा था! वहाँ स्थान-शुद्धि आवश्यक है! वो भी हो गयी! दोपहर का समय होगा! पूजा चल रही थी! करीब आधा घंटा बीता होगा! सभी वहाँ बैठे हुए हवन में सहयोग दे रहे थे मानसिक रूप से! तभी कोई चिल्लाया, "सांप! वही सांप!" भगदड़ मच गयी! सभी भाग खड़े हुए! पंडित जी भी वहीं अपना बैग छोड़ जहां जगह मिली भाग लिए! अब सांप किसे दिखा किसे नहीं लेकिन जिसको जहां जगह मिली वो वहीं भाग पड़ा!
सांप कहा से आया? किसी को पता नहीं चला! कोई कहता प्रकट हुआ! कोई कहता नदी से निकला! कोई कहता ज़मीन से निकला! सांप आया और उसी जगह बैठ गया जहां वो कल बैठा था! निश्चल, बस कुंडली मारे! हाँ, अब उस पर चोट के निशान नहीं थे, ना ही सूजन!
अब पवन की तो हालत खराब! ये कैसी विपत्ति आ गयी? ये क्या हो गया? किस घडी में ये खेत आबंटित कराये? सर्प-देवता तो पूजन से भी नहीं माने! अब क्या हो?
मजदूर डर के मारे काम पर ना जाएँ! काम ही छोड़ दिया कई मजदूरों ने तो! पवन की समस्या उफान पर थी! सब्जियां खेतों में पाक रही थीं लेकिन मजदूर नहीं मिल रहे थे! वो सांप अपनी मर्जी से आता और चला जाता!
ऐसे ही पवन ने ये समस्या अपने एक मित्र रमेश को बतायी, ये मित्र उसका पलवल में रहता था, उसने सलाह दी कि सारे हथकंडे बेकार हो गए हैं तो किसी ओझा, गुनिया आदि से ही बात कर लो! पवन के मित्र ने उसको ऐसे ही एक ओझे से मिलवा भी दिया! उसने काहानी सुनी और आना तय कर दिया अगले दिन!
खेत पर ओझा अगले दिन रमेश के साथ पहुंचा! उसने पहले सांप को वहाँ देखा! लेकिन उस समय सांप वहाँ नहीं था, ओझा अंतर-मंतर मार कर खेत में गया! वहाँ खेत में चक्कर मारा और फिर उस पत्थर के पास आ के रुक गया! पत्थर को गौर से देखा! उसने पवन और रमेश को इशारा किया वहाँ आने को! दोनों खेत में उतर पड़े! ओझे के पास पहुंचे! ओझे ने कहा, "लग रहा है यहाँ कोई धन गढ़ा है, वो सांप इसकी रक्षा करता होगा"
धन की सुन कर दोनों के मुंह में पानी आ गया!
"तो कैसे निकल सकता है वो धन?" रमेश ने कहा,
"जतन करना पड़ेगा मुझे" ओझा बोला,
"तो करो जतन, देरी क्यूँ?" रमेश ने कहा,
"पहले समझने तो दो मामला भाई" ओझा बोला,
"खूब समझ लो भाई, अब आप ही करोगे ये काम!" रमेश ने कहा,
अभी वो बातें कर ही रहे थे कि पवन ने खेत में आते सांप को देखा! चिल्लाया 'सांप!" पवन भागा, रमेश भागा! बेचारे ओझे को जगह नहीं मिली, वो समझ ही नहीं पाया और वो उसी पत्थर पर चढ़ गया! मारे भय के किल्ली निकल गयी उसकी!
पवन और रमेश दूर खड़े सांप और ओझे को देख रहे थे! ओझा डर के मारे दोहरा हुए जा रहा था!
आखिर में ओझे ने कुछ मंत्र पढ़े! मंत्र पढ़ते ही उसको मारा किसी ने पत्थर से फेंक के खेत के दूसरी ओर! वो मिटटी पर गिरा, इसीलिए चोट नहीं लगी, लेकिन उठते ही वो भागा बाहर की तरफ! सारी ओझाई साफ हो गयी! ओझे को भागते देख, रमेश और पवन भी भाग पड़े ओझे की तरफ!
ओझा संयत हुआ तो ओझा ने बताया कि यहाँ तो बहुत बड़ी ताक़त है! उसके बस में नहीं है कुछ भी! वो जानता है एक आदमी को जो ये काम कर देगा! उसने रमेश और पवन को उस आदमी के बारे में बता दिया!
अगले दिन पवन और रमेश जा पहुंचे उस आदमी के पास! नाम था दीन दयाल, दयाल तांत्रिक! रहता था मथुरा के पास एक गाँव में! रमेश और पवन ने जा के हाथ जोड़े! दयाल अपने चेले-चपाटों के साथ बैठा हुआ था! बोला, "आइये आइये! दिल्ली से आ रहे हैं न?"
"हाँ बाबा जी हाँ!" वे बोले,
"हाँ मुझे उस ओझे ने बता दिया था!" दयाल बोला,
"वो सांप वाली कहानी है न आपकी? खेतों में?" उसने पूछा,
"हाँ जी" पवन बोला,
"तो आपने सब जतन कर लिए सांप हटाने के और वहा उस ओझे को भी पटक के मारा?" वो बोला,
"हाँ जी, काफी दूर!" पवन बोला, "हाँ ऐसा होता है, कोई धन का ही चक्कर होगा" वो बोला,
"पता नहीं जी, वो आप जानो" वो बोला,
"ठीक है, मै कल तो नहीं हाँ परसों आ जाऊँगा आपके पास, थोड़ी तैय्यारी कर लूँ पहले" वो बोला,
"जैसा आप कहें" पवन बोला,
"ठीक है फिर, मै परसों आ जाऊँगा आपके पास" उसने बताया,
पवन ने पेशगी दे दी और वहाँ से वे लौट आये, रमेश अपने यहाँ चला गया और पवन अपने खेतों पर बने झोंपड़े में!
वो सांप लगातार उसी खेत में बैठा रहता, अपनी मर्जी से आता और अपनी मर्जी से जाता! वहाँ कोई भी नहीं जाता डर के मारे!
एक दिन बीता!
अगले दिन वो दयाल बाबा आ गया अपने चेलों के साथ! उसने आते ही काम पर लग जाना उचित समझा! पहले खेत पर गया! वहाँ का मुआयना किया! और जहां सांप बैठता है
अक्सर वहाँ भी गया! उस पत्थर को भी देखा! उसने फिर पवन को बुलाया, पवन डर डर के आगे आया,
दयाल बोला," यहाँ तो है कोई बड़ी ताक़त, पक्का !"
ये सुन पवन डर गया! हलक में थूक गटकने लगा!
"तो आप कुछ कीजिये बाबा" उसने कहा,
"हाँ अवश्य करूँगा, इसीलिए तो आया हूँ!" उसने कहा,
उसके बाद वो वहाँ से वापिस झोपड़े पर आये, तांत्रिक ने कुछ अंतर-मंतर पढ़े! और एक बोतल पानी अभिमंत्रित किया! इसमें एक घंटा लग गया उसे! और पवन से बोला, "आओ मेरे साथ"
बेचारा पवन डर के मारे उठा और उस बाबा के साथ चल पड़ा पीछे पीछे! उसके चार चेले भी चले पीछे पीछे!
दयाल आगे आगे चल रहा था, जैसे ही खेत में उतरा, सामने सांप कुंडली मारे बैठा दिखा! पवन का तो गला खुश्क हो गया और थूक निगलने में भी कठिनाई होने लगी!
"तो ये है वो मरदूद सांप!" बाबा बोला,
"हाँ........हाँ जी" पवन ने कहा,
"कोई बात नहीं, आज इसका काम तमाम!" उसने कहा!
पवन डर के मारे पीछे ही खड़ा रह गया! बाबा और उसके चेले सांप के पास चल पड़े! सहसा बाबा रुक गया! चेलों को भी रोक लिया! और अपने एक चेले से बोला, "किशन, तू पीछे चला जा इसके!"
"अच्छा जी" किशन ने कहा,
"जब तक मै न हटूं तब तक तू भी न हटियो, समझा?" बाबा बोला,
"जी हाँ बाबा जी" किशन ने कहा!
बाबा का चेला किशन सांप के पीछे जा के खड़ा हो गया! सांप अनवरत वैसे ही बैठा रहा! जैसे किसी को देख ही न रहा हो! बाबा आगे बढ़ा! उसने सांप के चारों ओर बोतल के पानी से एक वृत्त बना दिया और मंत्र पढने लगा! सांप को कोई प्रभाव नहीं पड़ा! बाबा ने और मंत्र पढने आरम्भ किये! सांप ने कुंडली खोली और और बाबा की तरफ बढ़ा! लेकिन उस वृत्त
की सीमा को न लांघ सका! वो उठता, फुकारता और फिर वही रह जाता! अब सांप फिर से कुंडली मार के बैठ गया! शांत!
बाबा उठा और बोला, "आ जाओ पवन और रमेश! काम हो गया! मैंने इसको बाँध लिया!"
पवन और रमेश भाग के आये वहाँ! चेहरे पर खुशी झलक रही थी!
"पकड़ा गया साला आखिर!! रमेश ने कहा!
"हाँ, नाक में दम कर दिया था इसने" पवन ने कहा,
"कोई बात नहीं, अब कहाँ जाएगा ये भाग कर!" बाबा बोला,
अब बाबा घुसा वृत्त के अन्दर! और जैसे ही घुस सांप ने खोली अपनी कुंडली और बाबा पर झपटा! बाबा घबरा के पत्थर पर चढ़ गया! भगदड़ मच गयी! चेले भी भागे लेकिन बाबा को देख उसके चेले वापिस आ गए बाबा के पास! रमेश और पवन भागे वापिस अपने झोंपड़े के अन्दर!
बाबा पत्थर पर खड़ा हुआ था, उसने मंत्र पढ़े शुरू किये, जैसे ही मंत्र पढ़े, उसको भी किसी ने उसको भी उठा के फेंका कोई २० फीट दूर! अब उसके चेले चौके! चेलों को भी उठा उठा के फेंका खेत से बाहर! हडकंप मच गयी! बाबा किसी तरह से उठा, हाथ टूट गया था उसका किसी तरह से अस्पताल ले जाया गया! २ चेलों के भी गंभीर चोटें आयीं थीं! वो भी अस्पताल ले जाए गए! बाबा का हुनर साथ छोड़ गया!
सांप वहीं बैठा रहा! कुंडली मार के! वक़्त बीता, महीना गुजर गया! कोई समाधान न हो सका! खेती तो चौपट थी ही अब मानसिक शान्ति भी चौपट हो गयी!
तो मित्रगण! मेरे पास ये समस्या एक अन्य जानकार के पास से आई थी! इन्होने ने ही मुझे ये सारी कहानी सुनाई थी! मेरे ये परिचत यहीं दिल्ली में ही रहते हैं, नाम है अमित, मैंने सारी समस्यासुनी तो ये तो निश्चित था कि वहाँ कोई समस्या तो अवश्य ही है! मैंने उसने पूछा," अमित जी, क्या वो सांप अब भी वहीं है?"
"हाँ जी, मैंने भी उसको अपनी आँखों से देखा है!" वो बोला,
"किस प्रकार का सांप है?" मैंने पूछा,
"अजीब सा है जी, सफेद रंग का है, काली धारी हैं उस पर" उसने कहा,
"अच्छा! कितना बड़ा है?" मैंने पूछा,
"करीब तीन मीटर का तो होगा ही!" वो बोला,
"ठीक है, देखते हैं!" मैंने कहा,
फिर उसके बाद मैंने उसको भेज दिया और अगले दिन वहाँ जाने का कार्यक्रम बना लिया! शर्मा जी ने पूछा,
"गुरु जी? ये क्या मसला हो सकता है?"
"देखते हैं। वैसे एक बात देखी? सांप वहीं बैठा रहता है, कहीं और नहीं जाता, अपनी मर्जी से आता है, बैठता है फिर चला जाता है, और एक सबसे बड़ी बात! उसने अभी तक किसी को भी नहीं काटा!"
"हाँ ये बात तो है!" वे बोले!
"चलो कल चलते हैं, दर्शन कर लेते हैं उनके भी!" मैंने कहा,
"हाँ जी! बिलकुल" वो बोले,
रात को थोडा बहुत पूजन किया, सर्प-विद्या जागृत की और फिर सो गए!
प्रातःकाल उठे, नहाये धोये और थोडा सा सामान लेकर वहाँ से खेत की तरफ निकल पड़े!
वहाँ रास्ते में ही पवन और रमेश मिल गए! बुझे बुझे से चेहरे!
"प्रणाम गुरु जी" वो दोनों बोले,
"प्रणाम!" मैंने कहा!
मै वहाँ पहुंचा! वहाँ रमेश, पवन और दो तीन मजदूर लोग खड़े थे, मुझे खेत दिखाया गया, खेत थोडा आगे था, मै वहाँ गया! मैंने खेत देखा, खेत के बीच में जहां पत्थर था वो भी बाहर से खड़े हो कर ही देखा, सब कुछ सामान्य सा ही लग रहा था, यूकेलिप्टस के पेड़ और जंगली झाड-झंखाड़ खड़े थे आस पास, लेकिन वहाँ सांप नहीं था! सांप अपनी मर्जी से आता है और अपनी मर्जी से जाता है, ऐसा मुझे पहले से बता दिया गया था! मैंने वहाँ एक चारपाई मंगवा ली, और मै शर्मा जी के साथ वहीं चारपाई पर बैठ गया!
एक घंटा बीता होगा कि वो सांप वहाँ दिखाई दिया! वाकई काफी बड़ा और अजीबोगरीब सांप था वो! पहली बार जो देखे तो ज़मीन में ही गड़ के रह जाए! सांप मुझसे १५ मीटर की दूरी पर होगा, लेकिन उसका आकार काफी बड़ा था! भयावह सांप!
सांप अन्दर गया, बीच में कुंडली मार कर वहीं बैठ गया! आधा सर ऊपर किये गर्दन तक!
मैंने वहाँ से पवन और रमेश को हटा दिया! मैंने सर्प-मोहिनी विद्या जागत की और चारपाई
से खड़ा हुआ! और जैसे ही खेत में मैंने पाँव रखा, वहाँ मुझे एक सिहरन सी हुई! एक भय! एक अनजान सा डर! मैंने पाँव पीछे हटा लिया!
मैंने अभय-मंत्र पढ़ा! और अपने कंधे सशक्त किये और शर्मा जी के भी! मैंने फिर पाँव रखा! फिर वैसा ही हआ! मैंने पाँव फिर पीछे हटा लिया! उस ओझे और बाबा ने ये आँका ही नहीं था कि वहाँ है क्या!
मैंने तामस-विद्या जागृत की और उसके प्रयोग हेतु अपनी जिव्हा पर उसका अभिमन्त्रण किया! और फिर मैंने खेत में पाँव रखा! अब कुछ भय महसूस नहीं हुआ! हां! अब बात बन गयी थी! मै आगे गया, शर्मा जी को पीछे ही छोड़ दिया! वहाँ आने को मना कर दिया था!
अब मै, सांप की तरफ बढ़ा! सांप ने कुंडली ढीली की! उसने सर और ऊंचा किया! ज़मीन से कोई ३ फीट तक! मुझे देख उसने फुकार मारी! भयानक फुकार! मेरे पास शक्तियां न होतीं तो मेरी इन्द्रियाँ शिथिल पड़ जातीं! मै आगे बढ़ा! सांप ने और तेज फुकार मारी! मै और आगे बढ़ा! सांप ने अब जोर से फुँकार मारी! मै उसके करीब आ गया कोई ६ फीट तक! मै और आगे बढ़ा! एक फीट! सांप बौखलाया! मै और आगे बढ़ा एक फीट और! सांप जैसे क्रोधित हुआ! उसने एक लम्बी सी पुंकार मारी!
मै और आगे बढ़ा एक फीट और! अब उसके और मेरे बीच केवल तीन फीट का अंतर था! मेरी और उसकी आँखें मिलीं! उसका सर भी स्थिर और मेरा भी! उसकी आँखें बिलकुल इंसानों जैसी थीं मित्रों! हम एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे दो शत्रु आपस में देखते हैं! मै तो आगे बढ़ा! सांप थोडा सा पीछे हटा और चौंक कर और ऊंचा हो गया! वो चाहता तो मेरे माथे पर वार कर सकता था! लेकिन उसने नहीं किया! उसकी पुतलियाँ चौड़ी हुई! मैंने उसको देखते हए सर्प-मोहिनी विद्या का प्रभाव करना चाहा!
परन्तु!
मेरी सर्प-मोहिनी निष्प्रभाव हो गयी! इसका अर्थ ये था, कि यह कोई सर्प था ही नहीं! तो फिर क्या है? मेरा मस्तिष्क घूमा! मित्रो! सच कहता हूँ मै! उस समय मै उस सांप के रहमो करम पर वहाँ टिका था! हालांकि मै उसका वार आपनी तामस-विद्या से सह सकता था, परन्तु मुझे तो ये ज्ञात ही नहीं हो पा रहा था कि वो है क्या? कौन सी योनि है? जो इस रूप में है? ये न भूत है, न प्रेत, न वाचाल-प्रेत, न जिन्न और न कोई छलावा! तो ये है कौन!
मै पीछे हटा, सांप ने मेरे पांवों को देखा! मै और पीछे हटा! उसने फिर मेरी आँखों को देखा! मै भी एकटक देखता रहा! मै धीरे धीर पीछे हटा! और पीछे! और पीछे! हटते हटते खेत के
बाहर आ गया! सांप लगातार मुझे देखता रहा! फिर उसने कुंडली मारी और वहीं बैठ गया! मै बाहर आया! शर्मा जी दौड़े दौड़े आये! बोले, "क्या हुआ गुरु जी?"
"शर्मा जी, अत्यंत भयावह मामला है!" मैंने कहा.
"कैसे, क्या हुआ?" वे अचरज से बोले,
"ये सर्प नहीं है, कोई और है, और ये मै नहीं जानता कि ये क्या है?" मैंने कहा!
मित्रगण! बड़ी अजीब सी स्थिति थी! मै सर्प-मोहिनी से एक से एक खतरनाक सांप को कैद करके जंगल में छोड़ चुका था! मेरी इस सर्प-मोहिनी का तोड़ किसी के पास नहीं था, केवल नागराज वासुकि एवं तक्षक के सिवाय! और आज मै इस सर्प से गच्चा खा गया था! तामस-शक्ति न होती तो वहीं मेरा प्राण-दान संस्कार हो गया होता!
खैर!! मै वहाँ से झोंपड़े में आया! सारी बातें उनको बतायीं! वे लोग बैठे बैठे बातें सुन रहे थे और जब मैंने बातें खतम की तो सारे खड़े हो गए! काटो तो खून नहीं! पवन की तो जैसे हृदय-धमनी ही फटने वाली थी! बोला, "अब क्या होगा जी? हम तो मारे गए?"
"मै अभी जांचूंगा, और! और फिर कल आऊंगा!" मैंने कहा,
"जी वो देवता हैं क्या?" रमेश ने पूछा,
"जो भी सकते हैं, कोई स्थानीय देवता" मैंने कहा,
इतना सुनते ही उन दोनों को पेट में हौला उठा! सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे!
मैंने उनको समझा दिया, रात को वहाँ कोई न रुके, सब चले जाएँ! उन्होंने हामी भर ली! हाँ, क्रिया हेतु मै खेत की मिट्टी अवश्य ले आया था!
मै वहाँ से शर्मा जी के साथ वापिस अपने स्थान पर आ गया! सारे रास्ते मुझे उस सर्प की आँखें ही दिखती रहीं! काली डरावनी आँखें!
मैंने तभी क्रिया की सारी वस्तुएं जुटवायीं, सारा सामान का प्रबंध कर लिया था! मुझे बहुत उत्सुकता थी उस रात! ये जानने कि वो है कौन!
मै उस रात क्रिया में बैठा! अलख उठायी! अलख भोग दिया! और सामने एक थाली में कुछ जलते कोयले और लकड़ियाँ डालीं! और उस खेत की मिट्टी भी! फिर कागज़ पर एक शक्ति का नाम लिखा! और उसके सौ टुकड़े किये! एक एक टुकड़ा जलाया, हर १० के बाद कलेजी का भोग अर्पण किया!
शक्ति प्रकट हो गयी! एक प्रबल महाशक्ति! मैंने नमन किया और अपना प्रश्न उसको बता दिया! मेरी शक्ति वहाँ से उडी और वहाँ पहुँच गयी! फिर वापिस आई! उसने जो बताया उसने मेरे कान लाल किये और रोंगटे खड़े कर दिए! मैंने महाशक्ति को नमन कर वापिस भेज दिया!
मित्रगण! उस खेत में एक बेहद प्राचीन स्थान है! बेहद प्राचीन! नाम था वहाँ का चौखंड! वो यमुना नदी में उभरे एक टापू पर बना था! किसने बनाया नहीं पता, लेकिन यहाँ एक शक्ति का वास है तब से! और ये शक्ति न कोई भूत, न कोई प्रेत, न कोई जिन्न, न कोई महाप्रेत और न कोई छलावा ही है! ये है एक राक्षस! राक्षस षषभ! वो क्रूर राक्षस नहीं! भक्त था वहीं पर स्थित एक महाशक्ति का! जो आज भी पूजनीय हैं वहाँ! उनका मंदिर है वहाँ आज भी! रिंग-रोड़ के पार! रविवार वहाँ लोग जाते हैं! मैं भी जाता हूँ! षषभ राक्षस आज सर्प के रूप में ही रहता है वहाँ!
ये सुन के मेरे पाँव तले जमीन खिसक गयी! एक राक्षस से लड़ाई! वो भी प्रबल मायावी और प्रम्हाड़ तामसिक! मैंने मन ही मन राक्षस षषभ से क्षमा मांग ली! मुझे उसने इसीलिए नहीं उठा के फेंका था! उसने मेरी तामस-विद्या देखी होगी! सर्पमोहिनी इसीलिए निष्प्रभाव हुई!
मैं उठा वहाँ से! शर्मा जी को सब बता दिया! उनके भी रोगटे खड़े हो गए! परन्तु षषभ को वहाँ से हटाने के लिए मैं नहीं कह सकता था, हाँ विनती कर सकता था! अत: अपनी कालुष और तामस-विद्या जागरण क्रिया आरम्भ की उस रात! सारी रात हो गयी! शरीर में तामसी-विद्या प्रवेश कर गयी! मै पूर्ण रूप से सशक्त हो गया!
सुबह उठे, नहाने धोने के बाद कुछ फूल-मालाएं खरीदीं! और खेत के लिए रवाना हो गए!
रास्ते में शर्मा जी ने कहा, "गुरु जी, क्या मैं उसको देख सकता हूँ?"
"हाँ! आप भी देख लेना!" मैंने कहा,
ये सुन शर्मा जी को प्रसन्नता हुई और हम द्रुत-गति से वहाँ चल पड़े!
"शर्मा जी, खेत में जाते ही आप मेरे साथ ही खड़े रहना, उन सालों को वहाँ से भगा देना, ठीक है?" मैंने कहा,
"जैसी आज्ञा गुरु जी!" वो बोले!
हम खेत पहुंचे! शर्मा जी ने उन निकृष्ट लोगों को वहाँ से भगा दिया! कह दिया किसी की जान चली जायेगी अगर यहाँ रुक तो! सारे भागे वहाँ से!
अब मै और शर्मा जी वापिस खेत में आये! वहाँ सर्प नहीं था, मैंने पंचाकृति में मालाएं सजा दीं! और वहाँ से वापिस आ गया! झोंपड़े में बैठा! शर्मा जी के नेत्रों को मैंने मन्त्रों से पोषित किया! और फिर हम तत्पर हो गए! तत्पर षषभ राक्षस के लिए! तीन घंटे बीत गए, लेकिन सर्प नहीं आया, मैंने तिथि याद की तो ये अष्टमी थी, शुक्ल पक्ष की, मै जान गया! और प्रतीक्षा की! कोई साढ़े चार घंटे बीते! मैंने देखा दूर खेत में एक सर्प आया है! मैं उठ के गया, शर्मा जी को साथ लिया और खेत में प्रवेश किया!
सांप ने खेत में मालाएं देख कर, मालाओं के मध्य कुंडली मार ली! मेरे आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं! उन्होंने मुझे स्वीकृति दे दी थी!
मै अन्दर गया! सर्प को देखा! आज विनीत स्वभाव में था! मैंने प्रणाम किया! उसने मेरा प्रणाम स्वीकार किया! मै तो यहीं धन्य हो गया!
मै आगे बढ़ा और बोला, " हे असुर नंदन षषभ! मुझे दर्शन दें!"
सर्प ने मुझे देखा और अपनी कुंडली खोली! वो ऊपर उठा और मेरे मस्तक तक आया! एक फुकार मारी! मेरी जटाएं भी हिल गयीं उस फुकार से! लेकिन मै टस से मस न हुआ! सर्प ने फिर शर्मा जी को देखा, फुकार मारी और फिर वापिस हुआ! कुंडली मारी और उसके अगले ही पल!!
मैंने वहाँ एक महा-राक्षस को देखा! करीब ४० फीट ऊंचा! मै उसका मस्तक देख ही नहीं सका! उसका एक पाँव ही मेरे शरीर का आधा! मैंने विनम्र निवेदन किया, "हे असुर नंदन, मै मनुष्य हूँ कृपया मुझ पर दया कीजिये" मैंने हाथ जोड़ कर ऐसा कहा!
षषभ ने आकार छोटा किया, परन्तु तब भी वो नौ दस फीट का! चौड़ा वक्ष! चौड़ा मस्तक! चौड़ा ललाट! बलिष्ट भुजाएं! भुजाओं पर बंधे अस्थि-माल! गले में धारण कृत-माल! दुर्लभ स्वरुप!
मैंने हाथ जोड़ लिए! मैंने कहा, "क्षमा कीजिये महाभट्ट यदि मेरे कारण आपको कोई समस्या हुई हो!"
"नहीं पुत्र नहीं! कोई समस्या नहीं!" षषभ ने अट्टहास लगा कर कहा!
"आप इस सर्प योनि में कैसे?" मैंने पूछा,
"कल्प हैं ये पुत्र!" उसने कहा,
"मै धन्य हुआ!" मैंने कहा,
"आप यहाँ कब से हैं हे महाभट्ट?" मैंने प्रश्न किया,
"मै किरिटासुर का पुत्र हूँ, मेरे दो भ्राता और हैं!"
"आपको कोटि कोटि नमन हे किरिटासुर पुत्र!" मैंने कहा!
"मैं यहाँ सहस्त्रों वर्षों से हूँ, सहस्त्रों वर्षों से, आज तक मानव से वार्तालाप नहीं किया था, समय अंतराल अंतहीन है, आज वार्तालाप कर रहा हूँ! मुझे अच्छा लगा!" उसने कहा,
"आपका अति-धन्यवाद हे किरिटासुर पुत्र!" मैंने कहा,
मेरा वार्तालाप बहुत देर चला! बहुत देर! अंत में षषभ प्रसन्न हो गया!
मैंने उसके चरण छए! उसने मुझे एक ऐसी विद्या प्रदान की कि मै आपको बता नहीं सकता! असमर्थ हुँ! मेरा आज भी उस पर शोधन चल रहा है, नौ वर्ष और शेष हैं उसके शोधन में!
"मै जानता हूँ तुम्हारा उद्देश्य पुत्र! मै सदा से यहीं हूँ! मै रसातल चला जाऊँगा, परन्तु यहाँ कोई भी पापी मनुष्य यदि आया तो मै उसको मृत्यु तुल्य कष्ट दूंगा!" "मुझे स्वीकार है हे महाभट्ट" मैंने कहा!
उसने मुझे आशीर्वाद दिया! शर्मा जी को भी आशीर्वाद दिया!
इतना कह वो लोप हुआ! मै अपने आपको धन्य समझ गौरान्वित महसूस कर रहा था!
मै वहा से उठा और वापिस आया! पवन और रमेश को समझा दिया! उस स्थान पर एक मंदिर बनवाएं! अब सर्प नहीं आएगा! कभी नहीं!
ऐसा ही किया गया! वहाँ एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया गया, वो आज भी वहीं है! वो सर्प आज तक नहीं दिखाई दिया किसी को! परन्तु, मै जानता हूँ वो वहीं है! वहीं! असुरनंदन किरिटासुर पुत्र षषभ!! बकासुर के कुल से सम्बंधित!
आज उस खेत में खेती होती है, पवन की आर्थिक स्थिति बहुत बढ़िया है आज! रविवार वाले दीं वहाँ दिया-बाती करता है वो!
मै भी कभी कभी चला जाता हूँ वहाँ! दिया-बाती करने!
षषभ मुझे आज भी याद हैं! आज भी!
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सिर्फ एक शब्द " अतुलनीय हो आप गुरूजी , आपके श्री चरणों में पुष्प ओर मेरा नमन स्वीकार करें "🌹🌹🌹🌹🙏🏻🌹🌹🌹🌹