वर्ष २००९ ……गाडी ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर पहुँचने ही वाली थी, करीब एक किलोमीटर या कम ही रहा होगा वहाँ से वो स्टेशन, गाडी पटरियां बदल रही थी,पटरी बदलने की आवाजें शोर मचा रही थीं, गर्मी का समय था और मै नागपुर से आ रहा था, कुछ लोग दरवाज़ा खोल कर वहीँ दरवाज़े के पास खड़े थे, गाडी की रफ़्तार धीरे थे, काफी धीरे, तभी गाडी रुकी, और कुछ लोग घबरा के पीछे हटे और कुछ लोग चिल्लाये, 'कट गया!, कट गया!' शर्मा जी वहीँ से गुजर रहे थे तो उन्होंने भी नीचे देखा, कुछ लोग नीचे भी उतर गए थे, शर्मा जी मेरे पास आये और बोले, "कोई जवान सा लड़का है, आधा कटा पड़ा है"
मैंने भी उठा और दरवाज़े तक गया और उस लड़के को नीचे की तरफ देखा, कमर के ऊपर से कटा था वो, कमर से ऊपर का भाग ट्रैक से बाहर और बाकी भाग ट्रैक के अन्दर पड़ा था, आनन्-फानन में कुछ लोगों ने ट्रेन-अटेंडेंट को इसकी सूचना दी, तो उन्होंने रेलवे पुलिस को खबर कर दी, अब मै भी नीचे उतरा, लड़के ने एक सफ़ेद और नीले रंग की कमीज़ पहने थी, और नीचे जीन्स थी, उसकी आंतें बाहर आ गयी थीं, कलेजा भी बाहर आ गया था, लड़के ने चश्मा पहन रखा था, देखने पर किसी अच्छे परिवार से सम्बंधित लगता था, हत्या का संदेह तो खैर पुलिस जाने, मुझे ऐसा नहीं लगा कि हत्या हुई है, ये संभवतया आत्महत्या का मामला लग रहा था, अब गाडी रुकी रही, पुलिस जांच करने में लगी रही, मै वापिस अन्दर आ गया, और अपनी सीट पर बैठ गया, तभी मेरी नज़र उसी कटे हुए लड़के जैसे एक लड़के पर पड़ी, जो वहाँ पानी की एक टंकी के पास खड़ा था! मै जान गया था! ये इसी लड़के की रूह है! वो चुपचाप हाथों में हाथ फंसाए मेरी तरफ ही देख रहा था! करीब १० मीटर दूर! मैंने नज़र हटा ली उस से! मै किसी और काम में दखलंदाजी नहीं करना चाहता था! करीब तीन चार मिनट के बाद मैंने फिर बाहर देखा तो मेरी खिड़की के बाहर ही खड़ा था! चिंतित सा! चुपचाप! मुझे ही घूरते हुए! मैंने उस से आँखें मिलाईं! वो और करीब आया और कुछ कहने लगा, लेकिन खिड़की ऊंची होने से मै सुन न सका, वो तेज तेज बोला! मै नहीं सुन पाया, पीछे से एक और गाडी गुजर रही थी! अतः मुझे नीचे ही उतरना पड़ा! मै नीचे उतरा और फिर उसी की तरफ चला, थोडा सा आगे, ताकि कोई और न सुन सके, न देख सके, मै वहाँ गया, दो ट्रैक पार किये और उस से पूछा, "क्या है?"
"जी, मेरे पापा से कहना मेरी कोई गलती नहीं" उसने कहा,
"मै नहीं जानता तुम्हारे पापा को?" मैंने कहा,
"जी ए.के.कुशवाहा" उसने कहा,
"तो मै क्या करूँ?" मैंने पूछा,
"आप कर सकते हैं" उसने कहा,
"मुझसे पूछ कर आत्महत्या की थी तूने?" मैंने पूछा,
"और कोई रास्ता नहीं था मेरे पास केवल मरने के अलावा" उसने कहा,
"नाम क्या है तुम्हारा?" मैंने पूछा,
"जी मोहित कुशवाहा" उसने बताया,
"उम्र क्या है?" मैंने पूछा,
"२२ साल" उसने बताया,
तभी शर्मा जी का फ़ोन बजा तो मैंने फ़ोन उठाया और कहा कि मै इसी कटे लड़के से बात कर रहा हूँ, ज़रा इधर देखी, उन्होंने देखा तो माजरा समझ गए!
अब मोहित ने फिर से कहा, "उनसे कहना मेरी गलती नहीं थी"
"कौन सी गलती?" मैंने पूछा,
तभी शर्मा जी का दुबारा फ़ोन आया, ट्रैक साफ़ हो चुका है, गाडी चलने ही वाली है, तब मैंने मोहित को देखा और कहा, "देख मोहित अब मै जा रहा हूँ, मै तेरी कोई मदद नहीं कर सकता अभी, मुझे जाना होगा"
"मेरे पापा को बता दो प्लीज" उसने कहा,
"अभी नहीं बता सकता मै" मैंने कहा,
"मेरे पापा को बता दो" उसने फिर से कहा,
"तुझे सुनाई नहीं देता क्या?" मैंने उस से खीज के कहा,
"मेरे पापा को बता दो प्लीज" उसने अब हाथ जोड़ के कहा,
"ठीक है, मेरे पीछे पीछे आ" मैंने कहा, और वापिस ट्रेन की तरफ लौट पड़ा, मै ट्रेन में चढ़ गया, पीछे देखा तो वो वहाँ नहीं था!
"क्या हुआ था?" शर्मा जी ने पूछा,
"कुछ नहीं, यही था" मैंने बताया,
"क्या कह रहा था?" उन्होंने पूछा,
"कोई बात होगी, वही बताना चाहता था" मैंने बताया,
"अच्छा, कुछ बताया उसने क्या कुछ?" उन्होंने पूछा,
"नहीं, ट्रेन चलने वाली थी सो मै वापिस आगे, उसको कहा कि मेरे पीछे आये तो अब है नहीं, चला गया" मैंने बताया,
"ओह!" उनके मुंह से निकला,
तभी ट्रेन भी चल पड़ी, मैंने फिर से खिड़की के बाहर देखा तो वहाँ मोहित नहीं था! कुछ ही देर में गाडी ग्वालियर स्टेशन पहुँच गयी, शर्मा जी ने २ कप कॉफ़ी ले ली, हम कॉफ़ी ने लगे, तभी मेरी नज़र फिर से उसी लड़के मोहित पर पड़ी, वो फिर प्लेटफार्म पर एक खाली पड़ी सीट पर सर टिकाये बैठा था, देख मुझे ही रहा था! अब उसकी इस भाव-भंगिमा पर मुझे दया आ गयी, दिल में एक अजीब हूक सी उठ गयी! चुपचाप बैठा था, कभी कभार दोनों हाथों को सर पर रख लेता था, कभी चेहरा दोनों हाथों में ले लेता था, फिर इधर-उधर देखता और फिर मुझे घूरने लग जाता!
अब मुझसे रहा न गया, मैंने बिना उस से पूछे ही, पाश-मंत्र जाप किया और उसको जकड दिया, वो घबरा दिया अब मैंने जाखूल-मंत्र से उसको क़ैद कर लिया और जेब की डिब्बी में डाल लिया! वापिस ट्रेन में बैठ गया, अब जो करना था दिल्ली में ही करना था!
मैंने शर्मा जी से कहा, "शर्मा जी, मैंने उसको क़ैद कर लिया है"
"बहुत अच्छा किया आपने, नहीं तो भटकता कहीं और कोई ऐरा-गैरा गुनिया इसको पकड़ लेता, गत खराब हो जाती इसकी" वो बोले,
"हाँ ये बात तो है शर्मा जी" मैंने बताया,
"शर्मा जी, ये आधुनिक विचारधारा वाले जितना कम देखते हैं उससे भी कम सीखते है और बिना सोचे समझे क़दम उठा लेते हैं" मैंने कहा,
"जी हाँ गुरु जी, यही बात है" वो बोले,
"चलिए देखते हैं क्या कहानी है इस लड़के की भी" मैंने कहा,
"हाँ देखिये आप, हो जाए कुछ इसका भी भला" वो बोले,
इसके बाद हमने कुछ और बातें कीं और फिर सफ़र में ही मशगूल हो गए!
रात को थोडा समय पहले हम दिल्ली पहुंचे और फिर वहाँ से अपने स्थान पर, और फिर आराम करने के लिए चले गए!
सुबह उठे और दैनिक कर्मों में लग गए! शर्मा जी वहाँ से चले गए थे, रात्रि समय वापिस आना था उनको, कुछ सामान भी लाना था!
रात्रि समय वो आगये, सामान भी ले आये! हमने सबसे पहले शमशान-भोग दिया और फिर हम मदिरापान और सामान में व्यस्त हो गए! तभी शर्मा जी को उस लड़के का ध्यान आया, मै तो जैसे भूल ही गया था! वो बोले, "अरे गुरु जी? उस लड़के का क्या हुआ?"
"कौन से लड़के का?" मैंने पूछा,
"वो लड़के मोहित का" उन्होंने याद दिलाया,
"अरे हाँ! मै तो भूल ही गया था, आज ही देखता हूँ मै उसको, याद दिलाने का धन्यवाद" मैंने कहा,
उसके बाद मै अपने क्रिया-स्थल में गया, डिब्बी निकाली और नीचे रख दी, फिर मैंने अलख उठायी और अलख भोग दिया, त्रिशूल अभिमंत्रित किया और गाड़ दिया वहीँ! अब मैंने डिब्बी खोली,
डिब्बी से छिटक कर मोहित बाहर निकला! उसने आसपास देखा, फिर बोला, "मेरे पापा से कह दो मेरी गलती नहीं है"
"हाँ कह दूंगा" मैंने कहा,
"बता दो मेरी गलती नहीं है" उसने फिर कहा,
"हाँ बता दूंगा" मैंने कहा,
"मेरी गलती नहीं है" उसने फिर कहा,
"चुप!!" मैंने डांटा उसे,
वो सहम गया, शांत हो गया, मैंने कहा, "अपना नाम बता, यही नाम है न तेरा मोहित?"
"हाँ, घर का नाम मीतू" उसने बताया,
"अच्छा! क्या करते हैं तेरे पिताजी?" मैंने पूछा,
"उनकी अपनी दुकान है" उसने बताया,
"किसकी दुकान?" मैंने पूछा,
"बच्चों के खिलौनों की दुकान" उसने बताया,
"अच्छा! और तू क्या करता है?" मैंने पूछा,
"मैंने पढाई ख़तम करके नौकरी की तलाश की, कहीं नहीं मिली तो पापा के दुकान संभालने लगा मै, पापा का हाथ बंटाता था " उसने बताया,
"ठीक है, घर में और कौन कौन है तेरे?" मैंने पूछा,
"मम्मी, पापा, बड़े भाई और एक बड़ी बहन" उसने बताया! "अच्छा, ठीक है, तो फिर ऐसा क्या हुआ?" मैंने पूछा,
"मै बहुत प्यार करता हूँ पापा से, मम्मी से" उसने बताया,
"फिर, क्या बात है?" मैंने पूछा,
"मेरे पापा नहीं करते" उसने बताया,
"तुम्हे कैसे पता?" मैंने पूछा,
"मै जानता हूँ, उन्होंने कभी मेरी बात नहीं सुनी, केवल बड़े भाई की ही सुनी" उसने बताया,
"बड़ा भाई क्या करता है?" मैंने पूछा,
"बड़ा भाई नौकरी करता है" उसने बताया,
"शादी शुदा है?" मैंने पूछा,
"हाँ" उसने बताया,
"तो तेरे से ऐसी क्या गलती हुई?" मैंने पूछा,
"मेरे से कोई गलती नहीं हुई" वो बोला,
"पूरी बात बता, क्या हुआ था?" मैंने पूछा,
"मेरा एक दोस्त है प्रवीण उसके एक मामा हैं, उन्होंने कुछ पैसे देकर उसकी नौकरी लगवाई थी, कुल ४ लाख लेकर, प्रवीण ने मुझसे भी कहा था, मामा से मिलवाया भी था उसने, उसके मामा ने बताया कि ४ लाख रुपये लगेंगे और नौकरी लग जायेगी मेरी, मैंने अपने पापा से कहा, मेरे पापा ने पैसे देने से मना कर दिया, मैंने जिद पकड़ ली, उन्होंने फिर मना किया, मैंने बड़े भाई से कहा, भाई ने पापा से कहा तो उन्होंने एक लाख रुपये देने को कहा, बाकी पैसा बाद में देंगे, नौकरी लगने के बाद, ऐसा कहा, मैंने ये बात अपने दोस्त को बतायी, उसने अपने मामा जी से कहा और फिर बात तय हो गयी, मामा जी को मेरे पापा और बड़े भाई ने एक लाख रुपये दे दिए" उसने बताया और फिर रुआंसा सा मुंह बना के चुप हो गया, मैंने थोड़ी प्रतीक्षा की और जब वो कुछ नहीं बोला तो मैंने फिर कहा, "आगे क्या हुआ?"
"प्रवीण के मामा ने २ महीने कहे थे, कि काम हो जाएगा, लेकिन नहीं हुआ, ४ महीने से ऊपर बीत गए, यहाँ मेरे पापा और भाई मेरे पीछे पड़े थे, कि काम का क्या हुआ? मैंने अपने दोस्त से पूछता था" उसने बताया और फिर चुप हो गया,
"आगे क्या हुआ? और तेरे इस दोस्त प्रवीण के मामा का नाम क्या है?" मैंने पूछा,
"उनका नाम वेद पाल है" उसने बताया,
"कहाँ रहता है वो?" मैंने पूछा,
"वहीँ ग्वालियर में" उसने बताया,
'अच्छा, फिर क्या हुआ?" मैंने पूछा,
"मैंने अपने दोस्त से बात की, वो मुझे अपने मामा के घर ले गया, उन्होंने बताया कि अभी एक महिना और लगेगा, फिर काम हो जाएगा, ये बात मैंने अपने पापा से कह दी, वो भी चुप तो हो गए लेकिन मुझ पर हमेशा फब्तियां कसते रहते थे कि पैसा फंसवा दिया, दिमाग ही नहीं है, कमाएगा तो पता चलेगा कि कैसे कमाया जाता है एक एक पैसा, मुझे खाते-पीते, उठते बैठते ऐसी फब्तियां और ताने सुनने को मिलते रहते" उसने बताया और चुप!
"फिर?" मुझे भी अब उत्सुकता हुई,
"फिर एक महिना और बीता, कुछ नहीं हुआ, फिर कोई एक हफ्ते के बाद मेरे दोस्त का फ़ोन आया कि मामा जी कह रहे हैं कि एक लाख रुपया और दो, तब काम हो जाएगा, ऐसा आगे से आदेश आया है, मैंने अपने पापा से ऐसा ही कहा, वो भड़क गए, गाली गलुज करने लगे, बहुत भला बुरा कहा उन्होंने, और पैसा नहीं दिया, मुझे मानसिक अवसाद हो गया, पापा ने पैसा
वापिस माँगा, मुझे कहा कि कोई नौकरी नहीं करनी, मै जाऊं और वो एक लाख रुपया वापिस ले आऊं" उसने बताया,
"पैसा वापिस मिला?" मैंने पूछा,
"नहीं, उन्होंने कहा कि पैसा वापिस नहीं होगा, या तो पूरा पैसा दो, नौकरी लो या फिर पैसा भूल जाओ, मै रोया, गुहार लगाई, गिड़गिडाया, लेकिन मेरी एक ना सुनी उन्होंने,वो नहीं माने, यही कहा बार बार कि पैसा अब वापिस नहीं होगा, मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गया, क्या करूँ और क्या न करूँ? मै घर कैसे जाऊं, क्या बताऊँ? किस से कहूँ? पापा तो जान से मार देंगे, गाली गलौज करेंगे और पिटाई भी करेंगे, मै क्या करूँ?" उसने कहा और फिर से चुप हो गया,
"तो वेदपाल ने मना कर दिया, तू फिर घर नहीं गया, एक भयानक निर्णय ले लिए और इसीलिए तू कह रहा है कि मै उनको समझाऊं कि तेरी गलती नहीं है? यही ना?" मैंने पूछा,
"हां, आप बताइये, मेरी क्या गलती है?" उसने याचना-भाव में कहा,
"कोई गलती नहीं तेरी, बस ये गलती कि तुझे अच्छे बुरे में फर्क करना नहीं आया" मैंने बताया,
वो चुपचाप खड़ा सुनता रहा! इसीलिए ये लड़का मोहित परेशान था, जब इहलीला समाप्त की तब परेशान और इहलीला समाप्त होने के बाद भी परेशान! जीते जी तो परेशानी ख़तम हो भी जाती, लेकिन अब कैसे हो!!
अब मैंने फिर से उसको सांत्वना दे कर वापिस डिब्बी में डाल लिया! पूछताछ में डेढ़ घंटा लग गया था, सारा नशा काफूर हो गया था! अब मै उठा और स्नान करने चला गया, वापिस आया तो शर्मा जी को सारी बातें बता दीं, जस की तस!
"अफ़सोस! इतनी सी बात पर अनमोल जीवन कुर्बान कर दिया उसने" उन्होंने कहा,
"यहीं तो कच्चापन पता चलता है बुद्धि का शर्मा जी!" मैंने कहा,
"हाँ गुरु जी, कच्चापन ही है ये" वो बोले,
"अब आप बताओ, क्या करना है?" मैंने पूछा,
"कर दो इसकी भी मुसीबत ख़तम गुरु जी, नहीं तो भटकेगा यहाँ वहाँ, वहीँ रेल की पटरियों के पास!" वो बोले,
"और ये वेदपाल? इसका क्या करना है?" मैंने पूछा,
"सब कुछ इसी साले रांड के जंवाई का ही किया हुआ है, इसकी तो ऐसी हालत करो कि आइन्दा से ऐसा कभी ना करे! बताओ लड़के के पैसे मार लिए हरामजादे ने!" उन्होंने कहा,
"हाँ, किया तो इसी कमीन आदमी ने ही है ये सब, ये ऐसा ना करता तो कुछ भी ना होता" मैंने कहा,
"तो ठीक है, आप इस लड़के से पता ले लीजिये, फिर चलते हैं वहाँ" वो बोले,
"मै आज पता ले लूँगा इस से, आज रात को ही, फिर देखते हैं" मैंने बताया,
रात काफी घिर चुकी थी अतः हम सोने चले गए अपने अपने कमरे में उसके बाद,
सुबह उठे तो शर्मा जी अपने किसी काम से बाहर चले गए, मै अपने दूसरे कार्यों में व्यस्त हो गया, कुछ सामान आया था असम से वही जांचने में लगा था,
उस रात मै फिर से क्रिया में बैठा और मोहित को हाज़िर कर उस से उसका और वेदपाल का पता ले लिया, बेचारा फिर भी कहता रहा कि मै उसके पिताजी को समझा दूँ कि उसकी कोई गलती नहीं है!
अगली सुबह शर्मा जी आ गए, मैंने उनको पते बता दिए और उन्होंने वो पते अपनी डायरी में लिख लिए, फिर उन्होंने रेलवे टिकेट भी बुक करवा दिए, यात्रा दो दिनों के बाद की थी, अब शर्मा जी ना कहा, "गुरु जी, सबसे पहले हम किस से मिलें? मोहित के पिता से या वेदपाल से?"
"सबसे पहले मोहित के पिता जी से मिलना उचित रहेगा" मैंने बताया,
"हाँ ये ही ठीक रहेगा, बातें भी हो जायेंगी" वो बोले,
"ठीक है, आप उनको सारी बातें बता देना, और ये भी कि मोहित क्या समझाना चाहता है उनको" मैंने कहा,
"वो मै बात कर लूँगा, समझा दूंगा उनको" उन्होंने कहा,
"ठीक है, हम चलते हैं वहाँ" मैंने कहा,
और फिर दो दिनों के बाद हम रात की गाडी से ग्वालियर के लिए रवाना हो गए, सुबह जल्दी ही पहुँच गए, नित्य-कर्मों से फारिग हो वहाँ चाय-नाश्ता किया और फिर थोडा सा आराम भी किया, फिर जब सुबह के सात बजे तो हम मोहित के घर के लिए रवाना हो गए! स्टेशन से कोई आठ-दस किलोमीटर दूर घर था उसका, हम वहाँ जा पहुंचे, वहाँ एक आद से पता किया तो उसने मोहित का घर बता दिया,
हम घर के सामने पहुंचे, ये दो मंजिली मकान था, अन्दर कुछ लोग बैठे हुए थे, घर में मातम छाया था, शर्मा जी ने दरवाज़ा खटखटाया, अन्दर से एक लड़का बाहर आया, शर्मा जी ने उस से मोहित के पिता जी को बुलाने को कहा, लड़का अन्दर गया और एक व्यक्ति बाहर आया, यही मोहित के पिता जी थे, शर्मा जी ने उनको बाहर बुलाया और एक तरफ ले गए, अब शर्मा जी ने उनको सारी बातों से अवगत करवाया, सुनकर उनका मुंह खुला का खुला रह गया, आँखों से आंसूं निकल पड़े! रो पड़े बेचारे, फिर मेरा और शर्मा जी का हाथ पकड़ के अन्दर ले गए, उनको यकीन करना ही पड़ा, जो तथ्य हमने उन्हें बताये थे वो एक अजनबी और गैर-प्रांत का व्यक्ति नहीं जान सकता था! उन्होंने अपनी पत्नी को भी बुलवा लिया, उनको सारी बातें बतायीं उन्होंने, सुन कर वो भी रो पड़ीं, शर्मा जी और मैंने उनको चुप करवाया! हिम्मत बंधवाई और फिर मोहित क्या चाहता है वो भी बता दिया! उसके माता-पिता ये सुनकर और रोये! उनको मोहित से कोई गिला-शिकवा नहीं थी, लेकिन उसके गलत कदम उठाने के कारण आहत थे दोनों और उनका पूरा परिवार!
अब शर्मा जी ने उनसे वेदपाल के बारे में पूछा, "क्या वेदपाल आया था यहाँ? या उसका दोस्त प्रवीण?"
"नहीं जी, कोई नहीं आया यहाँ, ना कोई फ़ोन ही आया" उन्होंने कहा,
"अच्छा, और वो पैसा?" शर्मा जी ने पूछा,
"मेरा बड़ा लड़का गया था कल उसके वेदपाल के घर, उसकी बीवी ने बताया कि वेदपाल तो एक काम के सिलसिले में मुंबई गया है, पता नहीं कब लौटेगा" वो बोले,
"अच्छा! मुंबई गया है, ठीक है, हम देख लेंगे कहाँ गया है, आप चिंता ना करें" शर्मा जी बोले! अब हम वहाँ से उठे, मोहित के माता-पिता ने हमे बहुत रोका, बहुत रोका, लेकिन हमने उनको मोहित की इच्छा का हवाला दिया और बताया कि इस वेदपाल की वजह से ही ऐसा हुआ है, इसका इलाज करना बहुत आवश्यक है, ना जाने कितनों के साथ ऐसा किया है आर करेगा, अगर इसको रोका नहीं गया तो और भी कई मोहित ऐसा फैंसला ना ले लें!
हम अब वहाँ से आ गए, अब सीधा वेदपाल के पास ही जाना था, मैंने अब अपने खबीस को मुस्तैद करने की सोची, पहले एक जगह से एक बोतल शराब ली और एक खाली पार्क जैसी जगह में वहाँ शराब का भोग दे दिया, खबीस को नहीं, बल्कि आज्ञा-भोग! किस को दिया, ये नहीं बता सकता मै, चूंकि किसी का अब अहित करना था इसीलिए! इसीलिए मैंने वहां अपना एक मजबूत कालिया-खबीस हाज़िर कर लिया! उसको मुस्तैद रहने के लिए कह दिया और उसको 'छिपा' लिया!
अब थोड़ी सी शराब पीकर हम वेदपाल के घर के लिए निकल पड़े, वेदपाल का घर वहाँ से कोई दस बारह किलोमीटर दूर था, आधा घंटा लग गया भीड़-भाड़ में गुजरते हुए! मैंने शर्मा जी से कहा, "शर्मा जी, हो जाओ तैयार!"
"मै तो तैयार ही हूँ गुरु जी, आप आदेश तो करें!" वो हंस के बोले!
हम वेदपाल के घर पहुँच गए! पता चला कि वेदपाल सरकारी नौकरी से बर्खास्त किया गया था, अब ज़मीन की खरीद-फरोख्त का काम कर रहा था, बदमाश कहता था अपने आपको! खैर, हम घर पहुंचे तो उसकी पत्नी मिली, शर्मा जी ने बात की तो पता चला कि वो मुंबई गया है, पता नहीं कब आएगा! अब मैंने बात की, मैंने कहा, "देखिये बहन जी, मुझे मालूम है कि वो घर पर ही है, आप उसको बुला दीजिये बाहर, बस! एक दो 'छोटी-छोटी' बातें ही करनी हैं!"
वो इतना सुनके भड़क गयी! एक दो और 'बदमाश' आ गए वहाँ! पूछने लगे कि काम क्या है? किसलिए आये हो? बताओ नहीं तो अच्छा नहीं होगा! उसकी बीवी ने तो पुलिस बुलाने की धमकी ही दे डाली!
मैंने उन सभी से कहा, "ठीक है भाई साहब हम चले जाते हैं, बहन जी क्षमा कीजिये, लेकिन जब हम जाएँ तो कृपया आवाज़ देकर वापिस ना बुलाएं!" मैंने कहा,
"अरे तुम भाड़ में जाओ, हम क्यूँ बुलायेंगे? अब निकलो यहाँ से" उसकी बीवी ने कहा,
अब मुझे भयानक क्रोध आया! मैंने अपना कालिया-खबीस खोल और उसको वेदपाल को ढूँढने और धुनाई करने का हुक्म दिया! खबीस गया अन्दर और हम वहाँ से वापिस चले! हमारे पीछे पीछे कुछ 'बदमाश' भी आये!
खबीस गया अन्दर! वेदपाल टी.वी. देख रहा था, उसके साथ दो और 'बदमाश' भी बैठे थे!, खबीस ने वेदपाल को उसकी गुद्दी से उठाकर फेंक मारा टी.वी. पर! वहाँ किसी को कुछ समझ नहीं आया कि हुआ क्या!! खबीस ने उसको फिर से बालों से पकड़ा और फेंका कमरे से बाहर! वो चिल्लाया,"अरे मर गया, बचाओ मुझे, बचाओ मुझे!"
खबीस फिर आया, उसको उसकी पैन्ट की बेल्ट से पकड़ कर फेंका बाहर! वो बाहर सड़क पर आ कर गिरा! सभी के होश फाख्ता हो गए!! वो चिल्लाये जा रहा था, "भूत! भूत! बचाओ मुझे! बचाओ मुझे!"
भूत शब्द सुनकर सभी 'बदमाश' भागे वहाँ से, उसकी बीवी खड़े खड़े जैसे पत्थर बन गयी! उसके पति के साथ जो हुआ था उस पर उसके देखकर भी यकीन नहीं हो रहा था! मै और शर्मा जी वहीँ रुक गए थे! सारा तमाशा देख रहे थे! अब हम वापिस पलटे! लोग अपने घरों की
बालकोनियों से सारा माजरा देख रहे थे! हम वेदपाल के पास पहुंचे, जो डर के मारे थर थर काँप रहा था! उसकी बीवी ने उसको उठाकर अन्दर कर लिया था, शर्मा जी ने आवाज़ दी, "बहन जी, कुछ और देखना है क्या? इसको बाहर लाती हो या फिर हम लायें इसको बाहर?"
उसकी बीवी भाग कर आई, पाँव पड़ गयी, रुलाई फ़ूट पड़ी! और अन्दर वेदपाल काँपे जा रहा था! उसका एक हाथ फट गया था, कपडे फट गए थे, सर के बाल उखड गए थे! कोहनी छिल गयीं थीं, गुद्दी सूज गयी थी!
अब उसकी बीवी हमें अन्दर ले गयी! बोली, "बाबा जी, इनसे क्या गलती हो गयी?" वो रोये जा रही थी!
"गलती?? गलती तो ये खुद ही बतायेगा अब!" मैंने कहा,
मैंने अब वेदपाल को आवाज़ दी, "ओ वेदपाल? इधर आ ज़रा?" मैंने कहा,
वेदपाल आया कांपते कांपते! मुंह से शब्द नहीं निकले! चाह कर भी नहीं निकले! मैंने उसको वहाँ बिठा दिया और कहा, "सुन, अगर तू चाहता है कि तुझे और मार ना पड़े तो एक दम बोलता जा, बता अपनी बीवी को अपनी गलती"
"क....क.....कौन सी गलती?" उसने पूछा,
"मोहित!" मैंने कहा,
मोहित का नाम सुनते ही उसको करंट लगा! "याद आया? वो मोहित?" मैंने पूछा,
"जी...कौन मोहित?" उसने पूछा,
"लगता है एक बार और कुश्ती करवानी पड़ेगी तेरे से अपने पहलवान की, यहीं खड़ा है वो अभी भी, मेरा इशारा होते ही तुझे छत फाड़ के बाहर फेंक देगा!" मैंने कहा,
"जी....जी....मोहित वो...वो....प्रवीण का दोस्त?" उसने आसपास देखते हुए कहा,
"हाँ, वही, प्रवीण का दोस्त!" मैंने कहा,
"हाँ, याद है" उसने कहा,
"अब अपनी बीवी को बता क्या किया तूने उसके साथ और वो अब कहाँ है?" मैंने कहा,
अब वो सकपकाया! घबराया! मैंने चुटकी बजाकर उसको इशारा करके बोलने को कहा! लेकिन वो नहीं बोला! वो अपनी बीवी के सामने ये बताना नहीं चाता था, बीवी को मालूम नहीं था सारा ये माजरा!
"अब अगर तू नहीं बोला ना, तो तेरी ज़ुबान ऐसी खींचूंगा कि कभी अन्दर नहीं जायेगी, जल्दी बता अब" मैंने धमकाया,
"म....मैंने...मैंने....उस से पैसे लिए थे" उसने कहा,
"कितने पैसे?" मैंने पूछा,
"एक लाख रुपये" उसने बताया,
अब उसकी बीवी चौंकी, उसके होश उड़े, मैंने उसके चेहरे पर विस्मयता के भाव पढ़े! उसको यकीन ही नहीं हुआ!
"अब बता उस लड़के का क्या हुआ?" मैंने जोर से कहा,
अब वो सर झुका के खड़ा हो गया! उसकी बीवी उसके सामने आई अब और बोली, "बताइये ना? बोलते क्यूँ नहीं?" क्या हुआ उस लड़के का?"
उसने कुछ नहीं कहा!
अब उसकी बीवी ने मेरी तरफ देखा, हाथ जोड़े और बोली, "बाबा जी, आप ही बताइये, क्या हुआ उस लड़के का, जिस से इन्होने पैसा लिया था?"
"ये ही बतायेगा, ये ही बतायेगा आपको" मैंने कहा,
"बता वेदपाल, जल्दी बता" शर्मा जी ने पूछा,
वो घबराया अब, बगलें झाँकने लगा, फिर अचानक ही बुक्का फाड़ के रो पड़ा! बोला, "माफ़ कर दो मुझे, माफ़ कर दो, सब मेरी वजह से ही हुआ, मै ही कुसूरवार हूँ मेरी वजह से ही ऐसा हुआ है,
मुझे नहीं पता था ऐसा होगा, अगर मुझे पता होता तो मै ऐसा नहीं करता!" वो रो रो के ऐसा कह रहा था, उसने काफी देर लगाई ऐसा कहने में, सिसकियों पर काबू कर कर के उसने ये सब बताया!
"अब ज़रा ये बता दो उस लड़के का क्या हुआ वेदपाल?" मैंने कहा,
"उसने चलती ट्रेन के आगे कूद के जान दे दी" उसने ऐसा कहा और नीचे बैठ गया, घुटने मोड़ के बैठा! और लगा बुरी तरह रोने, अब उसकी बीवी भी काबू ना कर सकी और वो भी रोने लगी, उनका रोना-धोना सुन आसपास के पडोसी भी घर में आ गए! अच्छाख़ासा तमाशा बन गया वहाँ!
मैंने वेदपाल को वहाँ से उठाया और एक दूसरे कमरे में ले गया, उसकी बीवी भी वहीँ आ गयी!
अब मैंने वेदपाल से पूछा, "सुन वेदपाल, वो पैसे कहाँ हैं? मोहित वाले?"
"यहीं रखे हैं मेरे पास" उसने आंसू पोंछते हुए कहा,
"अगर तू उस दिन उसे दे देता तो वो लड़का ऐसा नहीं करता" मैंने कहा,
"मुझे नहीं पता था कि वो ऐसा कदम उठा लेगा, नहीं तो मै उसको वो पैसा वापिस कर देता, मुझे मेरे बच्चों की कसम बाबा जी" वो अब फिर से रो पड़ा,
"तो तूने पैसे क्यूँ वापिस नहीं किये वेदपाल?" शर्मा जी बोले अब,
"लालच आ गया था मुझे, मै लालची हो गया था" उसे कुबूल किया अब,
"और कितनों के पैसे खाए हैं तूने और वैसी कमाई अपने परिवार को भी खिलाई?" मैंने पूछा,
"मोहित का सुनने के बाद मैंने एक एक करके सभी के पैसे वापिस कर दिए, मेरा यकीन कीजिये आप बाबा जी" वो मेरे पांवों में गिर के रोया अब!
मुझे उसकी बातों में अब सच्चाई सी लगी, उसकी आक्न्हों में सच्चाई छलक रही थी, मैंने उस से कहा, "वेदपाल अपने किये का पछतावा है तुझे?"
"हाँ बाबा जी हाँ, मुझे बहुत दुःख है उसका, उस लड़के का" उसने सिसकते हुए कहा,
"अच्छा, तो जब मोहित का बड़ा भाई कल यहाँ आया था तो तूने मना क्यूँ करवा दिया कि तू मुंबई गया है?"
"मुझे डर लग रहा था" उसने बताया,
"कैसा डर?" मैंने पूछा,
"यही कि कहीं मोहित ने कोई सुसाइड-नोट ना लिख छोड़ा हो, जिसमे मेरा नाम लिखा हो, कि मेरे कारण ऐसा हुआ है" उसने बताया,
"अच्छा, और फिर तूने उनके पैसे क्यूँ नहीं भिजवाये घर में उसके?" मैंने कहा,
"जी पैसों का इंतजाम मैंने आज ही किया है, अपने साले से लाया हूँ मै" उसने कहा, "और फिर जब हम आये तो मना क्यों करवाया, क्यों नहीं मिला?" शर्मा जी ने पूछा,
"डर लगा था बाबा जी, पुलिस का मुझे, इसीलिए मै किसी से नहीं मिल रहा था, सभी को मना करवा रहा था" उसने बताया,
"अब एक काम कर वेदपाल, पैसे उठा और चल मोहित के यहाँ, पैसा वापिस कर दे उनको, अभी" मैंने कहा,
"जो वो मार-पीट करेंगे तो?" वो डरा,
"नहीं करेंगे, उनको नहीं पता कि तेरे कारण ऐसा हुआ, वो समझते हैं कि उन्होंने उसके साथ बुरा बर्ताव किया इसी वजह से मोहित ने आत्महत्या की" मैंने बताया,
अब वो थोडा संभला, उसकी बीवी ने भी साथ चलने को कहा, ये अच्छी बात थी, वेदपाल ने अलमारी से पैसे निकाले और शर्मा जी को दे दिए और फिर कपडे पहन लिए दूसरे, उसके बाद हम वहाँ के लिए निकल पड़े, उसके पास अपनी कार थिस इसीलिए उसने गाडी से ही चलने को कहा, गाडी शर्मा जी ने चलाई और रास्ता बताया वेदपाल ने, अब मैंने एक खाली जगह पर गाडी रुकवाई, मै अब मोहित की रूह को भी आगे का मंजर दिखाना छटा था, इसी लिए उसको डिब्बी से निकाल लिया और उसे सब समझा दिया, कोई हरक़त नहीं, कोई जिद नहीं आदि आदि! वो मान गया, खुश हो गया! और फिर उसे डिब्बी में वापिस डाल लिया! और इस तरह से हम मोहित के घर पहुँच गए,
हम अन्दर गए, मैंने चुपके से डिब्बी खोल दी, मोहित की रूह बाहर आ गयी!
मोहित के माता-पिता ने वेदपाल और उसकी बीवी को देखा, उनसे मिले और फिर वेदपाल ने शर्मा जी से पैसे लेकर रोते हुए, क्षमा मांगते हुए वो पैसे मोहित के पिताजी को दे दिए, उसका रोना फिर शुरू हुआ, प्रायश्चित का रोना, साथ की साथ वेदपाल की बीवी का भी रोना!
मैंने मोहित को देखा, वो बेचारा चुपचाप देखे जा रहा था, कभी वेदपाल को, कभी अपने माँ-बाप को, कभी मुझे!
सब कुछ निबट गया!
अब मैंने मोहित के पिता जी को एक अलग जगह बुलाया और चुपके से पूछा, "क्या आपको लगता है इसमें मोहित की गलती थी?" मैंने जानबूझकर ऐसा कहा था, पूछा था क्यूंकि मोहित वहीँ था, खड़ा हुआ, अपने सवाल के उत्तर के इंतज़ार में!
"नहीं गुरु जी, नहीं उसकी गलती नहीं थी, वो मेरी गलती थी, ना मै उस से लड़ता, ना गाली-गलौज करता, ना उसको डराता तो आज वो जिंदा होता गुरु जी" वो ऐसा कहते कहते रो पड़े! मोहित उठाने के लिये आगे बढ़ा तो मैंने आँखें दिखा कर उसको वहीँ रोक दिया!
मित्रगण! उसके बाद वेदपाल जैसे-तैसे अपनी गाडी ले गया, हमारा नंबर और पता भी ले गया! मोहित के माता-पिता ने हमे खूब रोकने की कोशिश की, लेकिन उन नहीं रुके! हाँ, हमारा नंबर और पता उन्होंने अवश्य ही ले लिया! मैंने मोहित को वापिस डिब्बी में डाल लिया था!
वापिस दिल्ली आये, मैंने मोहित की अंतिम इच्छा पूर्ण कर दी थी, अब वो मुक्त होने को तैयार था, मैंने एक नियत और पावन तिथि पर एक क्रिया कर उसको इस संसार से हमेशा के लिए मुक्त कर दिया!
मोहित के माता-पिता और वेदपाल जब भी दिल्ली आते हैं तो मुझसे अवश्य ही मिलते हैं! इसीलिए मित्रो, कभी भी आपका विवेक साथ छोड़े, ऐसा अवसर कभी ना आने दो! एक क्षण में ना जाने क्या क्या हो सकता है! विवेक का साथ थामे रहिये!
------------------------------------------साधुवाद-------------------------------------------