वर्ष २००९ की एक घटन...
 
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वर्ष २००९ की एक घटना देहरादून

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श्रीशः उपदंडक
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"बस!" उसने कहा और इल्म पढना शुरू किया! और फिर मेरी तरफ हाथ करके ज़ोर ज़ोर से फूंक मारनी शुरू की! उसके फूंक मारने से मेरे नेत्रों की रौशनी मद्धम पड़ने लगी! मैंने फ़ौरन ही ताम-मंत्र पढ़ा और उसकी काट कर दी! काट होते देखा अल्ताफ़ के जैसे होश उड़ गए!

"क्या हुआ अल्ताफ़?" मैंने कहा!

अल्ताफ़ मुंह बंद किये खड़ा रहा वहाँ!

"क्या हुआ अल्ताफ?" मैंने पूछा,

"कौन हो तुम?" उसने पूछा,

"मै? वही एक खाक़सार आदमजात!" मैंने कहा,

"ये मुमकिन नहीं" उसने कहा,

"क्यों?" मैंने सवाल किया,

"कोई भी आदमजात मेरा ये जाजमी इल्म नहीं काट सकता" उसने हैरानी से कहा,

"काट सकता है, लगता है तुम्हारा कभी साबका नहीं पड़ा ऐसी किसी आदमजात से!" मैंने बताया,

 "तुम ख़ास लगते हो मुझे" उसने कहा,

"वो तुम जानो, अब अफ़िफा को बुलाइये, बस बहुत हो गया" मैंने कहा,

"वैसे तुम क्यों हिमायत ले रहे हो इस लड़के की?" उसने पूछा,

"ये आदमजात, मै आदमजात!" मैंने साधारण सा जवाब दिया,

"अफ़िफा का आशिक़ है ये" उसने कहा,

"एक बात बताओ अल्ताफ, क्या एक आतिशी और इंसान का मेल हो सकता है?" मैंने सवाल किया,

"हो सकता है" उसने कहा,

"कैसे हो सकता है?" मैंने अचरज से पूछा,

"जब तक ये जियेगा तब तक आशिक़ बना रहेगा ये अफ़िफा का" उसने कहा,

"और इसकी रूह को फिर वो पनाह देगी, यही ना?" मैंने पूछा,

"हाँ, ऐसे हो सकता है। उसने कहा,

"नामुमकिन!" मैंने जवाब दिया,

"तुम रास्ते से हट जाओ, बदले में जो चाहिए मिल जाएगा" उसने कहा,

"मुझे नहीं चाहिए कुछ भी तिलिस्मी बदले में अल्ताफ!" मैंने जवाब दिया!

"तिलिस्मी नहीं, असली" उसने कहा,

"नहीं चाहिए" मैंने मना किया,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"ज़मीन दे दूंगा, दौलत बख्श दूंगा इसके बदले" उसने कहा,

"बेमायनी बातें ना करो, अफ़िफा को बुलाओ" मैंने कहा,

"मैं बेमायनी बातें नहीं कर रहा, तुम इंसानों को दौलत से बेहद मुहब्बत हुआ करती है, इसीलिए मैंने पूछा"

 उसने कहा, "मै उनमे से नहीं हूँ" मैंने कहा,

"ज़िद पर ना अड़ो, मान जाओ मेरी बात" उसने कहा,

"ज़िद पर तो तुम लोग अड़े हुए हो, मै नहीं" मैंने कहा,

"हम जिस चीज़ की ख़्वाहिश करते हैं उसको हासिल करते हैं" उसने हाथ के इशारे से मुझे समझाया!

"मै ऐसा नहीं करने दूंगा तुमको" मैंने कहा,

"क्या कर लोगे?" उसने पूछा,

"मै अफ़िफा को उठा ले जाऊँगा और तुम कुछ नहीं कर पाओगे!" मैंने हंस के कहा,

मेरी ये बात सुनकर भड़क गया अल्ताफ! उसने पैंतरा बदला और एक अमल किया! उसके अमल करते ही, मैं रेत से नहा गया! मेरी आँखों में, मुंह में, नाक में और बालों में रेत ही रेत हो गयी! मैंने खखार के गला साफ़ किया, आँखों और नाक से रेत साफ़ की और खंजन-मंत्र पढ़ डाला! रेत का अमल ख़तम हो गया! सब साफ़ हो गया! ठहाके लगाता अल्ताफ वहीं खड़ा खड़ा सिकुड़ के रह गया!

"मैंने कहा ना अल्ताफ! कुछ नहीं चलेगी तुम्हारी! तुम मुझे यहीं रेत में दफ़न करना चाहते थे, ना कर सके!" मैंने हँसते हुए कहा!

वो चौंका तो ज़रूर पर उसने फिर से एक और इल्म का इस्तेमाल किया! हवा में से असंख्य बिच्छू और बर्रे प्रकट हो गए! बिच्छू आये मेरी तरफ तो मैंने यमक्ष-मंत्र पढ के सभी खाक कर दिए! बर्रों के पंख फैल गए कमरे में! अजीब सी दुर्गन्ध फैल गयी वहाँ! मैंने गुस्से से अल्ताफ को देखा! उसने मुझे गुस्से से देखा! अल्ताफ ने दोनों हाथ आपस में मिलाये और घूमते हुए छत तक पहुँच गया! तभी मेरे ऊपर अंगार गिरने लगे! मै हाथों से हटाता जाता और रक्षा-मंत्र पढता जाता! मैंने मंत्र समाप्त किया और अल्ताफ की ओर इंगित किया! अंगार वापिस हो गए और अल्ताफ में समा गए!

"बस अल्ताफ? और कुछ नहीं?" मैंने उसको चुनौती दी!

"ठहर जा!" वो गरजा!

वो नीचे उतरा और फिर हवा में खड़ा हो गया! उसने अपने मुंह से एक फूंक मारी अपने सीधे हाथ पर! मै फ़ौरन समझ गया कि क्या होने वाला है! मैंने तुरंत ही औघड़ी-ढाल-मंत्र पढ़ दिया! हवा में से बहुत सारी बर्छियां प्रकट हो गयीं, अल्ताफ ने हाथ से धक्का देकर उनको मेरी ओर धकेला, बर्छियां आयीं तीर की तरह! मुझसे टकराते ही ओझल हो जातीं! ये देख कर अल्ताफ ने हाथ पटके अपने! मै हंसा! और उस से कहा, "अल्ताफ, कुछ नहीं चलेगा! मान जाओ! अभी शराफत से पेश आ रहा हूँ, नहीं तो कैद होने के लिए तैयार रहो!" मैंने धमकाया उसको!

"मै नहीं डरता ओ आदमजात!" उसने चिल्ला के कहा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"ठीक है तो, फिर देख!" मैंने चुटकी मार के कहा!

अब मैंने शमशान-आरूढा का आह्वान किया! अल्ताफ मुंह बाएं देखता रहा! मैंने हाथों को आह्वान-मुद्रा में नचाया! तभी कमरे में भयानक दुर्गन्ध फैलने लगी! दम सा घुटने लगा अल्ताफ का! कमरे में शमशानी-राख के क़तरे गिरने लगे! अल्ताफ उठा छत की तरफ! कमरे में धुंए जैसा माहौल हो गया! शमशान-आरूढा की सहोदरी काल-तर्पी आने को थी वहाँ! और तभी कमरे में एक आग का गोला प्रकट हुआ! धीरे धीरे आग का वो गोला आकृति लेने लगा एक स्त्री की! काल-तर्पी आ चुकी थी! मैंने प्रणाम किया उसको! वहाँ अल्ताफ मारे डर के गायब हो गया! मैंने काल-तर्पी का अब पक्ष-आह्वान किया और काल-तर्पी ओझल हो गयी! शमशानी-राख और उसके क़तरे भी ओझल हो गए!

"अल्ताफ?" मैंने उसको आवाज़ लगाईं!

अल्ताफ हाज़िर हुआ! "अल्ताफ! अभी भी वक़्त है, मान जाओ!" मैंने समझाया,

"ठीक है!" उसने गर्दन नीचे किये हुए कहा,

"इसमें हार-जीत का सवाल नहीं है अल्ताफ, सवाल सिर्फ बेमेल का है" मैंने कहा,

"ठीक है" उसने फिर कहा,

"अब जाओ, अफ़िफा को समझाओ और उसको यहाँ लाओ" मैंने कहा,

"वाजिब है" उसने कहा,

"ठीक है, अब जाओ, समझाओ उसको और यहाँ लाओ" मैंने कहा,

अल्ताफ चुप खड़ा सुनता रहा और फिर हवा के एक तेज झोंके की तरह ओझल हो गया!

अल्ताफ गायब हुआ था! उसको मैंने अफ़िफा को बुलाने को और समझाने को कहा था, अब मुझे उनका बेसब्री से इंतज़ार था! तभी हवा में से अफ़िफा हाज़िर हुई! गुस्से में तमतमाई हुई! गुस्से के मारे बुरा हाल हो गया था उसका! बस उसका चल नहीं पा रहा था! उसने जो चाहा था वो मिल नहीं रहा था बल्कि हाथ से निकलने जा रहा था!

"क्या हुआ अफ़िफा?' मैंने पूछा,

उसने कोई जवाब नहीं दिया! बस चुपचाप खड़ी रही!

"क्या अल्ताफ ने समझा दिया तुमको?" मैंने पूछा,

 कोई जवाब नहीं दिया उसने!

"अगर जवाब नहीं दोगी तो मुझे मजबूर होना पड़ेगा!" मैंने कहा,

कोई जवाब नहीं दिया उसने! मैंने कुछ पल इंतज़ार किया!

"क्यूँ कर रहे हो मेरे साथ ऐसा?" उसने कहा और मेरे थोडा करीब आई!

"मै गलत नहीं कर रहा अफ़िफा, बल्कि जो सच है जो सही है, वही कर रहा हूँ!" मैंने कहा,

 "नहीं, तुम गलत कर रहे हो" उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"क्या गलत?" मैंने पूछा,

"मुझे अलग कर रहे हो उस से" उसने इशारा करके कहा,

"तुम्हे ये गलत लगता है?" मैंने पूछा,

"गलत तो है ही" उसने कहा,

"नहीं, ये गलत नहीं है" मैंने बताया,

"तुम रहम कर दो मुझ पर" उसने कहा,

रहम! ये शब्द सुनकर मै जान गया कि इन्होने हार मान ली है!

"कैसा रहम?" मैंने पूछा,

"मुझे इसके साथ रहने दो" उसने कहा,

"नामुमकिन!" मैंने कहा,

मेरा जवाब सुनकर फिर से बौखलाई वो!

"मान जाइये" उसने कहा,

"नहीं" मैंने जवाब दिया,

"मेरी खातिर" उसने कहा,

"नहीं" मैंने कहा,

"जो चाहे ले लो" उसने कहा,

"नहीं" मैंने जवाब दिया,

"आपको क्या मिलेगा ऐसा करके?" उसने कहा,

"कुछ भी नहीं, लेकिन उसूल मेरे लिए अहम हैं!" मैंने कहा,

"रहम भी कोई शय है या महज़ एक अलफ़ाज़?" उसने कहा,

"मानता हूँ, लेकिन ये गलत है" मैंने कहा,

"क्या गलत है?" उसने फिर से कहा,

"तुम्हारा और एक आदम का बेमेल मेल!" मैंने कहा,

"इसको और इसके घर को कोई कमी नहीं होगी" उसने कहा,

"नहीं मंजूर!" मैंने कहा,

उसने गुस्से से देखा मुझे! अगर मेरी जगह कोई और होता अक्षम-तांत्रिक तो अब तक उसके दो-फाड़ कर दिए होते उसने!

"एक बार सोचिये तो सही, मेरी मुहब्बत के दुश्मन बने हो तुम" उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"मै कोई दुश्मन नहीं तुम्हारा" मैंने कहा,

"ये दुश्मनी नहीं तो और क्या है?" उसने कहा,

"नहीं, ये दुश्मनी नहीं जंग-ए-उसूलात है" मैंने कहा,

"नहीं ये कत्ल-ए-मुहब्बत है" उसने कहा,

"तुम आतिश और ये मिट्टी! कैसा मेल?" मैंने समझाया,

क्यूँ चिंता? ये मेरा और मै इसकी?" उसने कहा,

"चिंता? बहुत चिंता है!" मैंने कहा,

"कैसे?" उसने पूछा,

"ये इंसान है, इसे इस दुनिया में ही रहना है, यहीं जीना है और फ़ना होना है" मैंने कहा,

"ये ज्यादती है" उसने कहा,

"तुम्हारी दुनिया में और हमारी दुनिया में बेहद बड़ा फर्क है" मैंने कहा,

"मै ये फर्क मिटा दूंगी" उसने कहा,

"जो नहीं हो सकता उस पर बहस मत करो" मैंने कहा,

"हो सकता है" उसने कहा,

"कैसे?" मैंने पूछा,

"तुम हमारे रास्ते से हट जाओ" उसने कहा,

"वाह!" मैंने हंस के कहा,

"हट जाओ" उसने अब गुस्से से कहा!

मैंने कोई जवाब नहीं दिया बस मुस्कुराता रहा!

"मैंने कहा हट जाओ" उसने फिर गुस्से से कहा,

"तुम हटा दो, मै नहीं हटने वाला" मैंने कहा,

"बहुत पछताओगे" उसने धमकी दी मुझे!

तभी वहाँ दो और जिन्नात प्रकट हुए! एक अल्ताफ और एक दूसरा जो अब पहली बार आया

था।

"अब भी कोई कसर बाकी है अल्ताफ?" मैंने कहा,

"मैंने समझा दिया अफ़िफा को, जितना समझा सकता था" अल्ताफ ने कहा,

"ठीक है, लगता है तुम लोग ऐसे नहीं मानोगे, ठीक है, अब मै तुम्हे दूसरे तरीके से सिखाता हूँ" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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ये सुनते ही अल्ताफ गायब हो गया!

"अफ़िफा, अभी भी वक़्त है" मैंने कहा,

"क्या करोगे?" उसने पूछा, "कैद कर लूँगा तुझको" मैंने कहा,

"बहुत देखे मैंने!" उसने मजाक सा उड़ाया!

अब मैंने मजबूरन तातार-खबीस को हाज़िर करने के लिए शाही-रूक्का पढ़ा! शाही-रूक्का सुनते ही अल्ताफ के साथ आया हआ जिन्न गायब हो गया! अफ़िफा पीछे हट गयी! 'झम्म' की आवाज़ हुई और तातार-खबीस हाज़िर हो गया वहाँ!

तातार को देखते ही अफ़िफा की जान सकते में आ गयी! घबरा के पीछे हटी, बोलती बंद हो गयी! ताक़त की खुमारी में मस्त तातार-खबीस बस मेरे हुक्म का इंतज़ार कर रहा था, मेरे कुछ कहते ही वो फ़ौरन तामील करता! तातार-खबीस ने अफ़िफा के गंध ली! वहाँ अफ़िफा घबरा के सिकुड़ती जा रही थी!

"अब बता अफ़िफा?" मैंने पूछा,

"क्या?" उसने धीरे से कहा,

"कैद होना चाहती है? तेरा हमजात है ये भी, खुश रखेगा!" मैंने मजाक किया उस से!

"इसको भगाओ यहाँ से" उसने कहा,

"मेरा कहना मानती है?" मैंने कहा,

"हाँ" उसने धीरे से कहा, लेकिन नज़रें नहीं हटायीं उसने तातार-खबीस से!

मैंने अब तातार-खबीस को वापिस भेज दिया!

"मैं ऐसा नहीं करना चाहता था अफ़िफा!" मैंने कहा,

"तुमने अच्छा नहीं किया" उसने कहा,

"मैंने जो भी किया, सही किया, अब जाओ और लौट जाओ अपनी दुनिया में" मैंने कहा,

"मै इस से वाबस्ता हूँ" उसने तरुण की तरफ इशारा किया,

"थीं, अब नहीं अफ़िफा!" मैंने कहा,

"तुमने अच्छा नहीं किया मेरे साथ" उसने कहा,

"मैंने सही किया" मैंने कहा,

"इसके बिना मै क्या करूँगी?" उसने मुझसे पूछा,

"इसकी सारी उम्र तुम्हारे एक दिन के बराबर होगी, दिन भी ढल जाएगा!" मैंने कहा,

"एक बार फिर से सोच लो" उसने कहा,

"जो सोचना था वो सोच लिया!" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"एक तजवीज़ है, मानेंगे?" उसने कहा,

"क्या?" मैंने पूछा,

"मेरा वक़्त मुक़र्रर कर दीजिये इसके साथ" उसने कहा,

"नहीं" मैंने जवाब दिया!

"माह में चंद रोज़" उसने कहा,

"नहीं" मैंने कहा,

"कुछ लम्हे?" उसने कहा,

"नहीं" मैंने जवाब दिया,

"इंसान में तो कई खूबियाँ होती हैं, आप में भी हैं, आप मेरी बात मान लें" उसने कहा,

"मैंने मना किया है ना?" मैंने कहा,

 "मुझे इस से अलग ना कीजिये, आप ही कुछ सुझाइये" उसने कहा,

"वापिस जाओ इसको छोड़ कर" मैंने कहा,

"मैं नहीं जा सकती" उसने कहा,

"ठीक है, मैं फिर से अपना खबीस बुलाता हूँ" मैंने कहा,

"बुला लीजिये, कर लीजिये कैद" उसने कहा,

"तैयार हो?" मैंने कहा,

"हाँ, इस से बेहतर कैद ही है" उसने कहा,

"अफ़िफा, मेरी बात मानो तुम" मैंने फिर से कहा,

"मुझे कुछ नहीं सुनना" उसने कहा,

"ठीक है, बुलाओ अपने रिश्तेदारों को" मैंने कहा,

"किसलिए?" उसने पूछा,

"उनके सामने तुमको कैद करूँगा" मैंने कहा,

वो चुप हो गयी! और तभी वहाँ वे सभी हाज़िर हो गए! अल्ताफ और नवाफ़ ने काफी समझाया उसको! लेकिन वो नहीं मानी!

"अल्ताफ? इसके माँ-बाप कहाँ हैं?" मैंने पूछा,

"शेरिया में" उसने कहा,

"अच्छा, वो नहीं आ पायेंगे यहाँ इसका मतलब" मैंने कहा,

"हाँ" उसने जवाब दिया,


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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"तो क्या मै इसको पकड़ के ले जाऊं?" मैंने कहा,

 "जी आगे इसकी मर्जी" उसने कहा,

"ठीक है, अब जाओ सब लोग जो जाना चाहता है" मैंने कहा,

सभी गायब हो गए! केवल अफ़िफा के अलावा!

"अफ़िफा? अभी भी वक़्त है" मैंने कहा,

"नहीं" उसने रटारटाया जवाब दिया!

मित्रगण! ये होती है जिन्नाती ज़िद! फ़ना होने को तैयार! कैद होने को तैयार! लेकिन अपनी ज़िद छोड़ने को तैयार नहीं!

"ठीक है अफ़िफा!" मैंने कहा,

अब मैंने अपने हाथ में पानी लिया और उसको अभिमंत्रित किया! और उस कमरे में छिड़क दिया और लेटे हुए तरुण के माथे पर भी लगा दिया! उसके ऊपर से जिन्नाती-असरात ख़तम होने वाले थे! अब मैंने फिर से शाही-रूक्का पढ़ा और तातार खबीस को हाज़िर कर लिया! अफ़िफा सर झुकाए खड़ी रही! मैंने तातार खबीस को इशारा किया! तातार आगे बढ़ा और अफ़िफा को उसके बालों से पकड़ कर उठा लिया!

अफ़िफा के मुंह से एक भी अलफ़ाज़ ना निकला, लेकिन मेरे दिल में उसकी मुहब्बत के लिए जगह बन गयी! उसकी इस बेपनाह मुहब्बत का ये सिला मिला था उसे! । मैंने चुटकी बजाई! तातार अफ़िफा को पकड़ के ले गया! दोनों ओझल हो गए! कमरे में शान्ति छा गयी!

मै आगे बढ़ा और तरुण को देखा, वो बेसुध लेटा था! मैंने उसके माथे पर हाथ रख कर एक मंत्र पढ़ा! और फिर वहाँ से दरवाज़े की ओर गया, मैंने दरवाज़े को खटखटाया, शर्मा जी फ़ौरन ही आये वहाँ! मुझे सकुशल देख मुस्कुरा दिए!

"हो गया मुहब्बत का किस्सा ख़तम?" उन्होंने पूछा,

"हाँ, मै आपको तफसील से बताऊंगा!" मैंने कहा,

इतने में तरुण के पिताजी दौड़े दौड़े आये! शर्मा जी ने उन्हें बता दिया! और मै वहाँ से अपने विश्राम के कमरे में चला गया! लेटा, तो मन में अभी भी उस जिन्नी अफ़िफा के ख़याल आ रहे थे! मुहब्बत की आग में सुलगती अफ़िफा!

मैं लेटा लेटा अफ़िफा के बारे में ही सोच रहा था! उसकी पाक मुहब्बत के बारे में सोच सोच के मेरे दिल में कहीं हक सी उठने लगती थी! लेकिन मेरे पास और कोई रास्ता नहीं बचा था! वो ज़िद पर अड़ी थी! और मै उसूल पर टिका था! पर हूँ तो एक इंसान ही ना? इंसानी फ़ितरत बड़ी अजीब हआ करती है! पल में क्या और दूसरे पल में क्या! तभी शर्मा जी आये अन्दर! उन्होंने खबर दी कि तरुण को होश आ गया है! वो ठीक है और आदित्य और उनकी पत्नी का रो रो के बुरा हाल है! आदित्य ने फ़ोन पर सभी को तरुण के ठीक होने की इत्तला सभी रिश्तेदारों को दे दी है! मुझे सुकून पहंचा ये सुनकर! अब आदित्य के घर में खुशियों की लहर दौड़ गयी! फिर थोड़ी देर में आदित्य आये और रो पड़े! बहत बहत


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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धन्यवाद किया उन्होंने! उनकी पत्नी भी आ गयीं! लगे मेरे पाँव छूने, लेकिन मैंने पाँव हटा लिए, मेरी उम्र उनसे आधी ही होगी!

खैर, वे वहाँ से गए, अब मैंने सारी कहानी सुनाई शर्मा जी को, कहानी के हर मोड़ पर वो गंभीर दिखाई पड़ते! मैंने उन्हें सारी कहानी सुना दी, उनको भी अफ़िफा के बारे में जानकार बेहद अफ़सोस हुआ, बोले, "गुरु जी, इस बेचारी को आजाद कर दो"

"क्यों शर्मा जी, उसने मेरी बात नहीं मानी" मैंने कहा,

"ये तो दोहरी मार हो गयी अफ़िफा पर, एक तो मुहब्बत की मार और दूसरी उसकी बेमियाद कैद" वो बोले,

"हम्म! बात तो सही है, ठीक है, मै इसको अपने स्थान पर आज़ाद करूँगा" मैंने कहा,

"ठीक है गुरु जी, ये सही रहेगा" उन्होंने कहा,

तो मित्रो! ये तय हो गया कि अफ़िफा को आज़ाद करना है! मै भी दिल से यही चाहता था! शर्मा जी के समर्थन से मुझे और सुकून पहंचा!

आदित्य और उनकी पत्नी ने हमको बहुत रोका, लेकिन हम नहीं रुके और उसी रात दिल्ली के लिए बस पकड़ ली, हाँ, जाते जाते मै तरुण को देख आया था, असरात ख़तम हो गए थे उसके ऊपर से, एक डरावना सपना समझ कर उसे भूल जाना था सब! और फिर, वक़्त से बड़ा कोई मरहम नहीं, वक़्त सभी घाव भर देता है!

हम वापिस आ गए अपने स्थान पर! उस दिन हमने आराम किया, लेकिन मुझे अभी भी अफ़िफा की फिक्र थी! अफ़िफा कभी आज तक कैद नहीं हुई होगी, ये उसका पहला वक़्त होगा ऐसा!

मै उसी रात बैठ गया अपने स्थान पर, आज अलख नहीं उठाई, बल्कि मैंने उस स्थान को कीलित कर दिया, अब वो अफ़िफा वहाँ से कहीं नहीं जा सकती थी मेरी मर्जी के बिना!

मैंने अब शाही-रुक्का पढ़ा और तातार खबीस को हाज़िर किया, तातार हाज़िर हआ, मैंने उस से अफ़िफा को हाज़िर करने को कहा, उसने एक झटके से हाथ फटका और डरी-सहमी अफ़िफा हाज़िर हो गयी! वो वहाँ से भागने लगी, लेकिन कीलन में बंध के रह गयी! अब उसकी वहाँ कुछ ना चलनी थी! अब मैंने तातार को वापिस कर दिया, वो गायब हो गया! मै खड़ा हुआ

और अफ़िफा के पास गया, और बोला,

"कैसी हो अफ़िफा?"

उसने कोई जवाब नहीं दिया!

"अफ़िफा?" मैंने फिर से पुकारा,

कोई जवाब नहीं!

"अफ़िफा? मुझ से बात करो?" मैंने कहा,

कोई जवाब नहीं!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"अफ़िफा, अब वो आदमजात नहीं है यहाँ!" मैंने कहा,

 कोई जवाब नहीं! "यहाँ केवल तुम हो और मै वो आलिम, ये मेरी जगह है और यहाँ सिर्फ मेरी चलती है" मैंने बताया उसको!

उसने सर उठा के देखा मुझे!

"अफ़िफा, सुनो, मै चाहूँ तो तुमसे वो सब काम करा सकता हूँ तुम्हारी मर्जी के बिना भी, लेकिन मै इतना कमज़र्फ इंसान नहीं हूँ! मैं चाहता हूँ कि तुम अपने रिश्तेदारों के पास वापिस लौट जाओ और अपनी दुनिया में खुश रहो, कभी किसी आदमजात से नहीं टकराना! तुम्हे पकड़ लेंगे! ता-उम्र उनकी गुलामी करना, तुम्हारी हर बार खरीद-फरोख्त होगी! तुम्हे तब्दील किया जाएगा इंसानी औरत में, फिर तुम्हारे साथ हवस मिटाई जायेगी!" सुना?" मैंने समझाते हुए कहा,

"लेकिन मेरी मुहब्बत?" उसने पूछा,

"तुम्हारी मुहब्बत एक कमज़ोर बुनियाद पर खड़ी थी, ढहना ही था उसको, ढह गयी!" मैंने साफ़ किया,

"मै एक बार दीदार कर सकती हूँ उसका?" उसने बहुत गुहार लगाते हुए कहा,

उसके इस भाव पर मेरे दिल में भी धक्का सा लगा,

"नहीं, अब नहीं" मैंने साफ़ साफ़ कहा,

"सिर्फ एक बार?" उसने कहा,

"नहीं, अब ज़िद ना करो अफ़िफा" मैंने कहा, वो चुप हो गयी!

मैंने उसको बहुत समझाया! करीब चार घंटे तक समझाता रहा! वो ना-नुकर करती रही,मैंने उसको डराया, धमकाया भी, तब जाकर आखिर में उसे उसूल वाली बातें पसंद आ गयीं, मैंने उसको जिन्नाती क़ायदे-कानून से वाक़िफ़ करा दिया! मै उसको आज़ाद करना चाहता था और यही मेरा मक़सद था!

आखिर में मैंने गुलाब के फूल पर उस से कौल लिया और उसको वहाँ से आज़ाद कर दिया! वो जाने से पहले मुझसे खुश हो कर गयी और कहा, जब उसके माँ-बाप शेरिया से उठ जायेगे, तो वो मुझसे मिलने आएगी! मैंने उसको हंसी-खुशी आज़ाद कर दिया था! मेरे दिल पर धरा बोझ उतर गया था! ऐसा सुकून जैसे दमघोंटू धुएँए से आज़ादी मिली हो और ताज़ा हवा में आ गए हों!

अब जिज्ञासा होगी पाठकों कि अफ़िफा तरुण पर रजु क्यों और कैसे हुई? ये भी मैंने उस से पूछ लिया था!

तरुण अपनी पढ़ाई के सिलसिले में रुड़की गया था, उसने वहाँ जाकर अपना काम किया और फिर वापसी के लिए अपनी गाड़ी निकाली, रास्ते में वो दो जगह रुका, पहली जगह जहां वो रुका था, वहाँ एक पुरानी जिन्नाती-मज़ार है, ये वहीं से तरुण के रूप और यौवन पर फ़िदा हो गयी थी! और ज़िद पकड़ ली थी! ये थी इसकी वजह! खैर, मैंने शर्मा जी को हकीक़त बता दी, वे खुश हुए! और मै भी!

उसके बाद तरुण के साथ कोई ऐसा वाकया नहीं हुआ, वो इंजीनियरिंग करके आज नौकरी कर रहा है! वहाँ सब ठीक है! हाँ, शेरिया से उठने में अभी और दो साल बाकी हैं!


   
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श्रीशः उपदंडक
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बहुत सारे मित्रों ने प्रश्न किया है कि एक बार उस लड़के से पूछ लेना चाहिए था, जैसे कि मैंने तन्वी से पूछा था, मै उसका उत्तर देता हूँ, यदि मै तरुण से पूछता तो वो मना नहीं करता, क्यूंकि उसके ऊपर अफ़िफा के असरात थे, वो अपने आपे में नहीं था! वो वही करता जो अफ़िफा कहती! अगर वो मना करता तो फिर उसकी ज़िन्दगी के लिए खतरा होता, जिन्नात से लड़ना भी था और साथ में तरुण का भी ध्यान रखना पड़ता! जिन्नात अटूट प्रेम करते हैं, यहाँ तक कि उसकी रूह से भी! तरुण को तो ये भी मालूम नहीं था कि उसकी प्रेमिका एक जिन्नी है! अब जहां तक प्रश्न है तन्वी का, तन्वी ने स्वयं अपना मार्ग चुना, खलील ने सारे असरात हटा दिए थे उसके ऊपर से, उसके बाद भी तन्वी ने खलील को चुना! मै क्या करता?

------------------------------------------साधुवाद-------------------------------------------


   
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