वर्ष २००९ की एक घटन...
 
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वर्ष २००९ की एक घटना देहरादून

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श्रीशः उपदंडक
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दिसम्बर महीने की कडकडाती ठण्ड पड़ रही थी! पिछली रात हलकी-फुलकी बारिश भी पड़ी थी, हवा जैसे शरीर को चीरने के लिए जिद पर अड़ी थी! हम ट्रेन से उतर चुके थे और हमें लेने वाले थे वहाँ आदित्य जी, आदित्य वहाँ अपना व्यवसाय किया करते थे, उसका व्यवसाय तेल-घी से सम्बंधित था, ये बात देहरादून के पास की है, स्टेशन से कोई बीस किलोमीटर ही उनका निवास था, आदित्य जी आये और नमस्कार आदि पश्चात, पहले तो कॉफ़ी पी हमने, थोड़ी राहत महसूस हुई! उसके बाद हम गाड़ी में बैठे और उनके साथ उनके निवास स्थान की ओर चल पड़े! रास्ता बेहद खूबसूरत था, पेड़-पौधे आदि सर्दी की तेज बयार में सुर में सुर मिला रहे थे!

आदित्य जी के सबसे छोटे बेटे तरुण, जिसकी आयु बीस-इक्कीस वर्ष होगी, के साथ एक अजीब सी समस्या थी, आदित्य के अनुसार तरुण के साथ ये समस्या थी कि वो रात्रि-समय अपने बिस्तर से उठ कर बाहर चला जाता था और फिर वहाँ से हँसत हुआ वापिस आ जाता था! आरम्भ में जब ये समस्या पता चली तो उसका इलाज करवाया गया था डॉक्टर्स से! डॉक्टर्स ने उसको नींद में चलने की बीमारी बताई थी और इलाज भी चल रहा था, लेकिन कोई फर्क खास मालूम नहीं पड़ रहा था, जब तरुण के दरवाज़े को बंद कर दिया जाता तो वो उसको पीट पीट कर बुरा हाल कर देता था! उस समय वो किसी को नहीं पहचानता था और सीधे ही बाहर चला जाता था, अमूमन ये समय रात्रि में डेढ़ बजे से ढाई बजे के आसपास का होता था! वो रोज रोज तो ऐसा नहीं करता था, लेकिन हफ्ते में दो बार या अधिक ऐसा किया करता था! आदित्य और उनके कर्मचारियों ने उसकी टोह भी ली थी, वो घर से निकल कर सामने मैदान में एक बड़े से टीले के पास लगे एक लोकाट के पेड़ के पास जाके बैठ जाता था! और ऐसी हरकतें करता था जैसे कि किसी से बातचीत में मशगूल हो! और जब उस से इस बाबत पूछा जाता तो वो कहता था कि उसको याद नहीं, दिन में अक्सर सामान्य रहता था, पूछे जाने पे फिर से चुप्पी साध लेता था! उसके परिवारजन काफी परेशान थे उसकी इस बीमारी से, अब चिकित्सक जो कर सकते थे कर रहे थे! इसी सिलसिले में एक बार आदित्य को उनके ही एक कर्मचारी ने सझाव दिया कि एक बार तरुण का ऊपरी इलाज करवा के देख लो, हो सकता है कि ये समस्या खतम हो जाए, सुझाव सही था, कोई हरज़ा नहीं था! इसीलिए, उन्होंने एक ओझे से संपर्क किया, ओझा काफी पढ़ा-पढ़ाया आदमी था! वो सुनते ही समझ गया कि ये कोई लपेट का मामला है, लेकिन पूरी बात तरुण को देखने से ही पता चल सकती थी! इसीलिए तरुण से मिलने के लिए उसनी अगला दिन निश्चित कर दिया!

अगले दिन जब ओझा पहंचा तरुण से मिलने तो तरुण घर में बैठा टी.वी. देख रहा था, आदित्य ने तरुण को बुलाया, तरुण आया और उनके साथ बैठ गया! दोनों की नज़रें मिलीं, ओझे ने मन ही मन मंत्र पढने शुरू किये, तरुण अपलक ओझे को घूरता रहा! फिर हंसा और वहाँ से उठ के चला गया! आदित्य ने रोकना चाहा तो ओझे ने मना कर दिया!

अब आदित्य ने प्रश्न पूछा ओझे से, "क्या हुआ जी? कुछ पता चला?"

 "हाँ! पता चला!" उसने कहा,

 

"जी क्या?" आदित्य ने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"भयानक लपेट है" ओझा बोला,

"लपेट?" आदित्य ने हैरानी से पूछा,  

"हाँ लपेट!" ओझे ने कहा,

"अब?" आदित्य ने पूछा,

"ये मेरे बसकी बात नहीं है, मैंने उसकी आँखों में कुछ देखा है, वो अपने आपे में नहीं है" ओझा बोला,

ओह, फिर, अब क्या होगा?" आदित्य ने सवाल किया,

"मेरे एक जानकार हैं, वो ये काम कर सकते हैं" ओझे ने बताया,

"कहाँ है वो?" आदित्य ने पूछा,

"यहीं है पास के एक गाँव में" ओझा बोला,

"तो चलिए फिर?" आदित्य ने कहा,

"मै आज बात कर लूँगा उनसे, फिर आपको बताऊंगा" ओझे ने बताया,

"ठीक है, लेकिन जल्दी करना जी" आदित्य ने कहा,

"हाँ, जल्दी करूँगा" ओझा बोला और खड़ा हो गया और फिर वापिस चला गया!

आदित्य के मन पर भारी चोट पहुंची थी! जब आदित्य ने घर में दूसरे लोगों को ये बात बताई तो उसके भी माथे पर शिकन उभर आयीं!

अगले दिन ओझा ने आदित्य को फ़ोन किया, वो अपने साथ एक तांत्रिक बाबू को ला रहा था अपने साथ, आदित्य फ़ौरन राजी हो गए और प्रतीक्षा करने लेगे उन दोनों की!

ओझा और वो बाबू तांत्रिक आ गए! आदित्य ने तरुण को बुलाया, तरुण आया और वहाँ बैठ गया!

"कैसे हो बेटे?" बाबू ने पूछा,

"मै तो ठीक हूँ" तरुण ने कहा,

"चलो अच्छा है!" बाबू ने कहा,

"मुझे किसलिए बुलाया है पापा?" उसने अपने पिता जी से पूछा,

"ऐसे ही बेटे" आदित्य ने कहा,

तभी तरुण ने नज़रें मिलाईं बाबू से! बाबू ने भी नज़रें मिलाई!

"पूछो क्या पूछना है?" तरुण खड़ा होते हुए बोला!

"पहले बैठो तो सही?" बाबू ने कहा,

"जल्दी करो" तरुण ने खिन्नता से कहा,

"बैठोगे नहीं?" बाबू ने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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तभी तरुण मुड़ा और अपने कमरे में चला गया वापिस!

"इसका पीछा करना होगा" बाबू ने कहा,

"अच्छा जी" ओझा बोला,

"एक बात बताइये आदित्य जी, ये लड़का रात को कब निकलता है बाहर?' बाबू ने पूछा

"जी कोई पक्का दिन या रात तो है नहीं, कभी भी निकल जाता है" आदित्य ने बताया,

"आपने पीछा किया है इसका?" बाबू ने पूछा,

"हाँ जी" आदित्य ने बताया, "कहाँ जाता है ये?" बाबू ने पूछा,

"आइये मेरे साथ, मै दिखाता हूँ आपको" आदित्य ने कहा और उठे वहाँ से फिर वे दोनों भी उठ गए और उनके पीछे पीछे चल पड़े!

वे लोग बाहर आये, कोई पचास मीटर, वो एक टीला सा था, पत्थर का, वहाँ आसपास लोकाट के पेड़ लगे थे, आदित्य ने उस टीले के पास लगे एक पेड़ के पास उनको ले जाके बताया कि यहाँ आता है और यहाँ बैठ जाता है, करीब एक घंटा! "हम्म! ठीक है आप हट जाइये यहाँ से, मै देख लेता हूँ" उसने कहा,

आदित्य वहाँ से हट गए और वापिस अपने घर की तरफ चल पड़े! घर पहुँचने पर देखा तो कोई तरुण के कमरे, जो कि मकान की पहली मंजिल पर था, की खिड़की के परदे की ओट ले, उन्ही पर दृष्टि जमाये खड़ा था! मारे भय के सिहरन सी दौड़ गयी आदित्य को! वो इसलिए कि तरुण अपने पिताजी के बजाए उन दोनों को देख रहा था कनखियों से! आदित्य भागे तरुण के कमरे के तरफ! कमरे में घुसे तो तरुण वहाँ था ही नहीं! आदित्य ने आवाज़ दी उसे तो उनकी पत्नी ने बताया कि तरुण तो बाहर गया है अभी अभी? अगर तरुण नहाने गया है तो उसके कमरे में कौन है? वो भागे तरुण के कमरे की तरफ! कमरा खुला था, कमरे में घुसे तो वहाँ कोई ना था! खिड़की का पर्दा भी पूरा ढका था!

अब तो जैसे गश खाने के करीब आ गए आदित्य! जब पत्नी को सारी बातें बतायीं तो उनको भी धक्का पहुंचा! ये क्या है? कौन था कमरे में? कुछ पता ना चला! लेकिन आदित्य को हौला बैठ गया इसका! अब वो भागे फ़ौरन बाबू और ओझा के पास! बाबू ने जांच कर ली थी, वहाँ उसे कुछ नहीं मिला था! बाबू वापिस आ ही रहा था कि आदित्य ने घबराते घबराते सारी बात बतला दी बाबू से! बाबू फ़ौरन दौड़ा और सीधा पहुंचा कमरे में! कमरे में कुछ अमल किया लेकिन कुछ ना पता चला! अब बाबू ने तरुण का एक कपडा माँगा! वो रात को क्रिया में देखना चाहता था इसका कारण!

बाबू ने कपडा लिया और चला गया! उनके जाते ही आदित्य गहरी सोच में पड़ गए! ठीक होगा या नहीं तरुण? अपने अनेक रिश्तेदारों से भी इस बाबत बात करी, तो इन्ही रिश्तेदारों में से एक सोरन मेरे जानकार थे, उन्होंने आदित्य से मेरे बारे में बात करी, तब आदित्य ने बताया कि एक ओझा और एक तांत्रिक अभी कपडा लेके गए हैं तरुण का, देखते हैं क्या होता है, उसके बाद वो मुझसे बात करेंगे!

उस रात बाबू क्रिया में बैठा, ओझा भी साथ था उसके, बाबू ने अपना प्रेत हाज़िर किया और फिर उस कपड़े की जांच के लिए उसको रवाना किया, कछ ही क्षणों में वापिस आ गया! बाबू को खबर लगी कि वहाँ कोई बड़ी शक्ति वास कर रही है, और उसके ताप से वो वापिस भाग आया! बाबू ने हार नहीं


   
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श्रीशः उपदंडक
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मानी! उसने एक दीर्घ-क्रिया आरम्भ की, उसने अपना कारिन्दा हाज़िर किया और उसको भेजा! कारिन्दा उड़ा और कुछ देर बाद हाज़िर हुआ! अब कारिंदे ने खुलासा कर दिया कि वहाँ पर एक जिन्नी का वास है! इसका अर्थ ये था कि जिन्नी रीझ गयी है तरुण पर! अब ये एक बड़ी समस्या थी! जिन्न-द्वन्द विद्या नहीं थी बाबू के पास!

अब खुलासा हो गया था! ये सब उस जिन्नी के कारण हआ था! लेकिन जिन्नी से लड़ना और उसको पछाड़ना इतना आसान नहीं! बाबू की समझ में ना आया कि क्या किया जाए? तभी उसको अपने एक साथी मौलवी का ध्यान आया, फ़ोन मिलाया तो पता चला कि वो मुरादाबाद में हैं, अभी नहीं आ सकते!

अब बाबू के पास कोई चारा ना रहा! उसने हाथ खड़े कर दिए! साफ़ साफ़ बात सुनकर आदित्य को झटका लगा! तब जाकर सोरन ने मुझसे बात की और मै देहरादून आया! हम गाड़ी में बैठे थे, गाड़ी की रफ़्तार भी बेहद कम थी, भीड़ लगी थी वाहनों की वहाँ, धीमी रफ़्तार से हम भी आगे बढ़ रहे थे, तभी मैंने प्रश्न किया आदित्य से, "अब कैसा है तरुण?"

"गुरु जी, उसकी अपनी अलग ही दुनिया है, ना खाता ना पीता, किसी से बात नहीं करता, हाँ और ना में जवाब देता है" वे बोले,

"हाँ, ऐसा होता है" मैंने कहा,

"गुरु जी, ये जिन्नी क्या होती है?" उन्होंने पूछा,

मैंने उन्हें बता दिया!

"ओह, किस मुसीबत में फंस गया ये लड़का" वे बोले,

"घबराइये नहीं आप" मैंने कहा,

"पता नहीं कहाँ से पीछे लग गयी इसके?" वे बोले,

"अक्सर ऐसा हो जाता है" मैंने बताया,

"वैसे इलाज तो संभव है ना?" वे बोले,

"कोई संशय ना रखिये आप" मैंने कहा,

"धन्यवाद गुरु जी" वे बोले,

गाड़ी रुक गयी, आगे भीड़ थी!

"घर में सारे परेशान हैं, सारे रिश्तेदार" वे बोले,

"लाजमी है" मैंने कहा,

"व्यापार में मन नहीं लग रहा है इस लड़के की वजह से" वे बोले,

गाड़ी फिर चली आगे!

"आप चिंता ना कीजिये!" मैंने कहा और हिम्मत बंधाई!


   
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श्रीशः उपदंडक
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गाड़ी फिर से रुकी, यातायात बहुत था वहाँ, आड़े-तिरछे करके लोग अपनी अपनी गाड़ियां लगाए हुए थे! एक तो सर्दी और ऊपर से ऐसी मुसीबत! खैर, फिर चले, आगे थोडा रास्ता साफ़ मिला तो गाड़ी की रफ्तार बढ़ गयी! और इस तरह से हम आदित्य के घर पहुँच गए! घर काफी बड़ा और अच्छा बना हुआ था! गाड़ी अन्दर खड़ी कर दी गयी! बगीचा शानदार था उनका और मैदान भी काफी बड़ा था! वहाँ कुछ फलदार पेड़-पौधे भी लगे थे!

आदित्य हमे अन्दर ले गए, अन्दर उनकी पत्नी और दो तीन नौकर मिले, आदित्य के दो बड़े लड़के महाराष्ट्र में रह रहे थे, तरुण यहीं अपने माँ-बाप के साथ रहता था, अभी पढ़ाई कर रहा था वहाँ घर से, आदित्य ने हमको घर के एक कमरे में बिठाया, यहाँ हमने अपना सारा सामान रख दिया! थोड़ी देर में उनकी श्रीमती जी कॉफ़ी और नाश्ता ले आयीं स्वयं ही! हमने कॉफ़ी पी और नाश्ता तो फिर आदित्य ने हमे थोडा आराम करने के लिए अकेला छोड़ दिया! मै और शर्मा जी लेट गए! रात में गाड़ी में नींद नहीं आ पायी थी सही, बस थोड़ी ही देर में आँख लग गयी हमारी! जब आँख खुली तो मैंने घडी देखी, करीब ढाई घंटे सो लिए थे, थकावट दूर हो गयी थी! मैंने शर्मा जी को जगाया, वे भी जागे, तब हम दोनों उठकर बाहर गए, बाहर आदित्य ने हमको देखा तो खाना खाने के लिए लिए पूछा, हमने पहले स्नान आदि से निवृत होने को कहा और फिर स्नानादि पश्चात खाना खाया! खाना खाने के बाद थोडा बाहर टहलने के लिए आदित्य से कहा तो आदित्य हमे मैदान में ले गए! उसी मैदान में जहां तरुण रात के समय निकल आया करता था! "यही है वो मैदान?" मैंने आदित्य से पूछा, "हाँ जी" वो बोले,

हम धीरे धीरे कदम बढ़ाते हुए आगे बढ़ते रहे, सामने ही वो टीला आ गया, वहाँ लोकाट के पेड़ लगे थे, बहुत अनुपम दृश्य था वहाँ! "और गुरु जी, ये है वो जगह" आदित्य ने बताया, मैंने जगह का मुआयना किया, सब कुछ सामान्य था वहाँ!

"तो यहाँ आकर वो बैठ जाता है" मैंने पूछा,

"हाँ जी" वे बोले,

मैंने वहाँ की मिट्टी उठाई और सूंघा, कोई दुर्गन्ध या सुगंध नहीं थी वहाँ, केवल ओंस जैसी गंध आई थी उस मिट्टी से! फिर भी मैंने वो मिट्टी उठा के रख ली एक कागज़ में लपेट कर! "आदित्य साहब, पिछली बार कब निकला था रात को यहाँ आने के लिए?" मैंने पूछा,

"गुरु जी, मालूम नहीं, जब से बाबू आया था तब से नहीं देखा हमने" वो बोले,

"हम्म! ठीक है" मैंने कहा,

हम थोडा सा और आगे गए! "अब तरुण कहाँ है?" मैंने पूछा,

"आज सुबह से निकला हुआ है, पता नहीं कहाँ गया है, उसकी मम्मी से पूछ के बता दूंगा" वे बोले,

"कोई बात नहीं" मैंने कहा,

"शर्मा जी, आप एक काम करें, जब भी तरुण आये मुझे इसकी इत्तिला दें, तब तक आप आदित्य जी के साथ ही बैठे रहें" मैंने कहा,

"जी अवश्य" वो बोले,

"ठीक है, अब आप जाइये और इनके साथ बैठिये, मै यहीं रहँगा" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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तब शर्मा जी और आदित्य चले गए वहाँ से!

जब वे चले गए तो मैंने कलुष-मंत्र जागृत किया, मंत्र जागृत हुआ और मैंने फिर नेत्र खोले! कछ भी असामान्य नहीं दिखा वहाँ! अजीब सी बात थी! वो फिर यहीं क्यों आता था रात में? यदि यहाँ कुछ भी था तो मुझे दिख जाना चाहिए था, परन्तु कुछ नहीं दिखा! हैरत की बात थी! मैंने सुश्रुण-मंत्र पढ़ा, परन्तु फिर भी कुछ नहीं हुआ! अब इसका अर्थ स्पष्ट था, यहाँ कुछ भी नहीं है!

अब मै वापिस पलटा वहाँ से, वहीं पहुंचा जहां आदित्य और शर्मा जी बैठे थे, तभी धड़धड़ाते हुए तरुण आया और बिना नमस्कार आदि के फ़ौरन अपने कमरे में चला गया! मै समझ तो गया था कि ये तरुण ही है, फिर भी मैंने आदित्य से पूछा, "यहीं है आपका लड़का तरुण?"

"जी हाँ" वे माथे पर हाथ रख फिर बोले,

"हम्म" मैंने कहा,

"बस जी, इसी की वजह से हम सब परेशान हैं" वे बोले,

"कोई बात नहीं, क्या तरुण से बात हो सकती है?" मैंने पूछा,

"जी मै पूछता हूँ उस से" उन्होंने कहा और उठ कर तरुण के कमरे की ओर चले, थोड़ी देर तक ऊपर ही रहे और फिर नीचे आ गए, आते ही मायूसी उनके चेहरे पर छ थी, मै जान गया था कि तरुण ने मना कर दिया है मिलने से,

"क्या हुआ?" मैंने पूछा,

"मना कर रहा है" वे बोले,

"अच्छा!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा,

"क्या बताऊँ आपको गुरु जी मै" वे दुखी होके बोले,

"एक काम कीजिये, चलिए मेरे साथ उसके कमरे में" मैंने कहा,

"कहीं बदतमीजी न कर दे कोई?" वे घबराए, "कोई चिंता नहीं" मैंने कहा,

"चलिए" वे बोले,

अब हम तीनों चले ऊपर सीढियां चढ़ते हुए, वहाँ पहुंचे तो दरवाज़ा बंद था अन्दर से! आदित्य ने दरवाज़ा खटखटाया तो कोई प्रतिक्रिया न हुई अंदर से!  

"तरुण?" आदित्य ने पुकारा,

कोई आवाज़ नहीं आई अन्दर से!

"तरुण? दरवाज़ा खोलो?" आदित्य बोले,

तरुण ने कोई जवाब नहीं दिया!

"तरुण?" अब चीखे आदित्य! लेकिन कोई प्रतिक्रिया ना हुई!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"तरुण? दरवाज़ा खोलो बेटे?" आदित्य ने दरवाज़े पर हाथ मारके कहा, लेकिन कोई आवाज़ ना आई फिर से अन्दर से!

अब घबराए आदित्य! मैंने उनको देखा, उनके नेत्रों में भय का अन्धकार छाने लगा था! मैंने उनके कंधे पर हाथ रखा और साहस बंधाया!

"तरुण?" अब मैंने पुकारा, आवाज़ फिर नहीं आई!

"तरुण? दरवाज़ा खोलते हो या मै तुडवा दूँ इसको?" मै चिल्लाया,

"चले जाओ यहाँ से" अन्दर से तरुण की आवाज़ आई!

"पहले दरवाज़ा खोलो?" मैंने कहा,

"भाग जाओ" उसने चिल्लाते हुए फिर से कहा,

"दरवाज़ा खोलो पहले?" मैंने कहा,

"चला जा, चला जा?" उसने धमकाया

"पहले दरवाज़ा खोल?" मैंने एक थाप लगा के कहा दरवाज़े पर!

यहाँ अब आदित्य कांपने लगे थे!

"तू?? तू जानता है मुझे?" वो चिल्ला के बोला,

"नहीं, नहीं जानता, तभी तो जानना चाहता हूँ, दरवाज़ा खोल?" मैंने फिर कहा,

"अभी भी कह रहा हूँ, भाग जा, मुझे तंग ना कर" उसने कहा,

"अब, अबकी बार अगर तूने दरवाज़ा नहीं खोला, तो मै तुडवा दूंगा इसको" मैंने कहा,

"मुझे ना धमका?" उसने कहा,

"पहले दरवाज़ा खोल फिर बताता हूँ तुझे!" मैंने कहा,

कुछ देर शान्ति हुई वहाँ! मैंने शर्मा जी और आदित्य को पीछे हटाया और स्वयं भी पीछे हटा,

तभी चरचराता हआ दरवाज़ा खुल गया!

मैंने शर्मा जी और आदित्य को अपने हाथों से वहीं रोका और स्वयं अन्दर चला गया! अन्दर गया तो तरुण बिस्तर पर खड़ा हुआ था, हाथों में एक गमला लिए, ये गमला उसने खिड़की से उठाया था!

मै तुझे अब भी कह रहा हूँ, चला जा यहाँ से?" उसने चीख के कहा,

मैं नहीं हटा और उसको घूर के देखता रहा!

तभी उसने मुझे पर वो गमला फेंक के दे मारा, मैंने बचने की कोशिश की लेकिन गमला फिर भी मेरे उलटे कंधे पर लगा, मोटी जैकेट होने के कारण चोट नहीं आई! और जब अन्दर से तोड़-फोड़ की आवाज़ आयी तो शर्मा जी फ़ौरन कमरे में आये! तरुण ने उस्नको भी घर के देखा!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"आज ना जाओगे जिंदा तुम दोनों" उसने अपनी उँगली हिला हिला के कहा! और फिर आदित्य भी अन्दर आ गए, मैंने आदित्य को बाहर भेज दिया, और शर्मा जी ने दरवाज़ा बंद कर दिया!

इधर तरुण लेट गया बिस्तर पर और ऐसी करवट ली जैसे सो गया हो!

"खड़ा हो जा" मैंने उसको कहा,

"नहीं, मै सो रहा हूँ" उसने कहा,

"खड़ा होता है या नहीं?" मैंने कहा,

"नहीं, क्या कर लेगा?" उसने लेटे लेटे ही पूछा,

"बताता हूँ अभी" मैंने कहा,

अब मैंने उस गमले की एक चुटकी मिट्टी उठाई, उसमे थूका और मसान-मंत्र पढ़ा! मंत्र जागृत हुआ, और मैंने वो मिट्टी लेटे हुए तरुण के ऊपर फेंक दी!

मित्रगण! मिट्टी उसको छूने से पहले ही उसने बिल्ली की तरह से फुर्ती दिखाई और बिस्तर से नीचे गिर गया!

वो उठा! दांत भींचे और दोनों हाथों को मुट्ठी की तरह से बनाए, भागा हमारी तरफ! उसने आते ही मेरे गला पकड़ लिया! शर्मा जी ने काफी कोशिश की लेकिन उसकी पकड़ बेहद मजबूत थी! मैंने किसी तरह से अपना मंह ऊपर किया और अपने हाथ से अपने होठों पर लगा थूक लगाया और उसके माथे पर छुआ दिया! उसने पकड़ ढीली की और सीधा उछल कर गिरा अपने बिस्तर पर! वो गुस्से से फनफना उठा! अब मैंने अपने गले को खांस के ठीक किया और फिर बोला,

" अब तुझे बताता हूँ की मै कौन हूँ और क्या हूँ? तेरी इतनी हिम्मत मुझे हाथ लगाए?"

"जो करना है कर ले" वो गुस्से से बोला,

मैंने अपनी जेब से भस्म की पोटली निकाली, पोटली को देख वो हंसा! मैंने पोटली से एक चुटकी भस्म निकाली और मंत्र पढ़कर अपने माथे पर रगड ली!

मैंने फिर से एक चुटकी भस्म निकाली और उसको महा-ताम से अभिमंत्रित किया! और फिर आगे बढ़ा उसकी तरफ!

"आ जा! मुझे डरा रहा है? आ जा?" उसने हाथों के इशारे से मुझे बुलाया!

अब मै हंसा! उसे मालूम नहीं था महा-ताम क्या होता है!

"आजा! आजा!" उसने चीख के कहा!

मै आगे बढ़ा तो वो बिस्तर से उठ खड़ा हुआ! मैंने वो भस्म उसके ऊपर फेंक मारी! वो चिल्ला के और भड़भडाके लहरियादार तरीके से नीचे गिरा! नीचे गिरते ही कराहने लगा!

"पापा! पापा!" वो चिल्लाया! "पापा! मुझे बचाओ!" वो रोया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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शर्मा जी ने फ़ौरन ही बाहर खड़े आदित्य को वहाँ से जाने को कह दिया, वे वहाँ से घबरा के धीरे धीरे नीचे उतर गए! मै अब आगे बढ़ा और नीचे पड़े तरुण के पास तक पहुँच गया!

"क्या हुआ?" मैंने उसको अपनी लात से छूते हुए कहा,

वो रोता रहा! मैंने अपना जूता उसके गालों पर लगाया! वो फिर तेजी से मेरा जूता हटाते हुए रोया!

"क्या हुआ तरुण?" मैंने पूछा,

"मम्मी??" वो चिल्लाया,

कोई नहीं है यहाँ!" मैंने कहा,

"पापा? भैया?" वो बोला,

"मैंने बताया ना, कोई नहीं है यहाँ?" मैंने कहा,

"पापा? मुझे बचाओ?" वो रोया!

"अबे सुन! अब बुला अपनी माशूका को?" मैंने कहा,

"पापा? ये मुझे मार देंगे?" वो रो रो के चिल्लाया!

"मार तो तुझे वो देगी!" मैंने कहा!

वो एक दम से चुप हुआ और खड़ा हो गया!

वो खड़ा हुआ और मुझे घूरने लगा! "क्या चाहता है?" उसने कहा,

बिलकल धीरे से!

"कुछ भी नहीं!" मैंने भी धीरे से उत्तर दिया!

"यहाँ क्या करने आया है?" उसने पूछा,

"किसी का दीदार करने आया हूँ!" मैंने कहा,

"मारा जाएगा" उसने कहा, फिर से धीरे से!

मै उसका अर्थ समझ गया था! वो जो कोई भी इसके अन्दर था या इसको खेल खिला रहा था, वो अब आने को था मेरे सामने! अब मैंने शर्मा जी को इशारा किया कि वो बाहर चले जाएँ

और दरवाज़ा बंद कर दें बाहर से! शर्मा जी उठे और बाहर चले गए, दरवाज़ा बंद कर दिया बाहर से! "मुझे मरने की चिंता नहीं!" मैंने बात आगे बढ़ाई!

"मजबूत लगता है तू" उसने कहा,

"जांच ले सही तरह से!" मैंने कहा,

"आज का दिन नहीं भूलेगा तू" उसने कहा,

"अच्छा!" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हाँ! तू मरेगा तो नहीं, ज़िन्दा भी नहीं रहेगा!" उसने अब औरत की आवाज़ में ऐसा कहा!

यक़ीनन मैंने उसको बौखला दिया था!

"मै देखना चाहता हूँ ऐसा कौन है जो मेरे साथ ऐसा करेगा!" मैंने जैसे मजाक उड़ाया उसका!

"तेरे जैसे मै देखती आई हूँ!" उसने कहा,

"मेरे जैसा आज पहली बार देखेगी तू!" मैंने कहा,

"इतना गुमान?" उसने कहा,

"गुमान? नहीं! ये मेरा यकीन है!" मैंने कहा,

"अगर मरना नहीं चाहता तो चला जा यहाँ से वरना..............!!" उसने तेजी से कहा!

"वरना? वरना क्या?" मैंने पूछा,

"तेरे टुकड़े हो जायेंगे" उसने कहा,

"अच्छा!" मैंने हंस कर कहा,

"आखिर तूने मरना ही चुना है" उसने कहा,

"हाँ!" मैंने कहा,

"तेरी मर्जी" उसने कहा और फिर तरुण ने एक पछाड़ खाई और बिस्तर पर औंधे मुंह गिर गया! किसी की आमद का एहसास होने लगा! कमरे में अँधेरा सा छा गया! कुछ पल शान्ति रही वहाँ!

और तभी एक रौशनी कौंधी! हरे रंग की रौशनी! ज़मीन से कोई एक फीट ऊपर एक आकृति रूप लेने लगी! आकृति स्पष्ट हुई! मेरे सामने एक जिन्नी प्रकट हो गयी थी! बलिष्ठ देह वाली! लम्बी-चौड़ी औरत! मानव-स्त्री से विभिन्न! उसके बाल ज़मीन से छ रहे थे! स्याह बाल! हाथों में आभूषण रत्न जड़े हुए! नीले रंग के रत्न! उसके प्रकाश से कमरा चकाचौंध हो गया था! बेहद खूबसूरत! ये जिन्नी थी! अब उसने मुझे गुस्से से देखा! "अब नहीं बचेगा तू" उसने गुस्से से कहा!

"तेरी जैसी जिन्नियाँ और जिन्नात भरे पड़े हैं मेरे शमशान के घड़ों में!" मैंने कहा,

शमशान शब्द सुनकर थोडा सा चौंकी वो! जिन्न को सजा देने के लिए शमशान के घड़ों का प्रयोग किया जाता है! ये जानती थी ये बात!

"मेरी जात वालों से साबका नहीं पड़ा होगा तेरा आज तक! तू नहीं जानता मै कौन हूँ!" उसने भड़क कर कहा!

मैंने पोटली से भस्म निकाली और उसमे थूक कर अपने हाथों पर मला और अपने चेहरे पर लगा लिया! मुझे ऐसा करते देखा वो पीछे हटी!

"कौन है तू?" मैंने पूछा,

"मै गुलखल्क हूँ" उसने बताया,


   
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अभी भी उसने अपना नाम नहीं बताया था, महज़ जात बता दी थी, जिन्नाती जात! हाँ उसने जो बताया था गुलखल्क ये जिन्नात काफी पुराने और अपने सरदारों के दीवान हुआ करते हैं! ताक़त से भरपूर! बेपनाह इल्मात हासिल किये हुए जिन्नात! ये वर्तमान ईराक़ और ईरान की तरफ होते हैं!

"अपना नाम बता?" मैंने कहा,

"अफ़िफा" उसने बताया! "इतना अच्छा नाम और इतना बुरा काम?" मैंने हंस के कहा!

अफ़िफा का अर्थ होता है शांत, उच्च, योग्य, स्वच्छ, निर्मल!

"हम जो चाहते हैं करते हैं" उसने जवाब दिया!

"इस बेचारे आदमजात पर ऐसा जुल्म?" मैंने पूछा,

"ये मेरा है, तेरा क्या काम?" उसने धमकाया मुझे!

"अच्छा? तेरा है ये?" मैंने व्यंग्य से कहा!

"हाँ!" उसने कहा,

"चल बहुत हो गया तेरा खेल!" मैंने कहा और भस्म की एक चुटकी ली और उसको उसकी आँखों में देखते हुए अभिमंत्रित किया! और मैंने वो चुटकी उसकी तरफ फेंकी!

जैसे ही भस्म मैंने फेंकी, वो जैसे किसी पारदर्शी शीशे से टकराई और नीचे गिर गयी! उसने अपने इल्म का इस्तेमाल कर डाला था! वो हंसने लगी!

"बस?? इतना ही?" उसने कहा,

"नहीं अफिफा! ये तो फ़क़त एक शुरुआत है!" मैंने कहा,

"जो कर सकता है कर ले!" उसने कहा,

ये मेरे लिए चुनौती के समान था! अब मै थोडा क्रोधित हुआ! मैंने तभी अपने इबु-खबीस को हाज़िर करने के लिए अपने हाथ ऊपर उठाये! और झटके से नीचे किये!

'झाम' की आवाज़ करता हुआ इबु हाज़िर हुआ! यहाँ इबु हाज़िर हुआ वहाँ अफ़िफा गायब हुई! मेरा वार खाली गया!

अफ़िफा गायब हो गयी थी! ये जिन्नाती फ़ितरत है! परन्तु वो अधिक समय के लिए गायब नहीं हुई थी! जिन्नात बिना लड़े हार नहीं मानते! मैंने अब इबु को भेज दिया वापिस! कुछ क्षण बीते!

तभी हवा में से एक मजबूत जिन्न प्रकट हुआ! सर पर चोंचदार टोपी पहने हुए! इंसानी उम्र में उसकी उम्र कोई पचास बरस रही होगी! अफ़िफा ने किसी को बुला लिया था! वो हवा में खड़ा मुझे घूर रहा था! स्याह आँखें थी उसकी!

"कौन हो तुम?" मैंने पूछा!

"तो तू ही है वो?" उसने मेरे सवाल का उत्तर नहीं दिया, बल्कि मुझ से ही सवाल किया! मै भी अडिग था!


   
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श्रीशः उपदंडक
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"कौन हो तुम?" मैंने फिर से सवाल किया!

"मेरे सवाल का जवाब दे पहले?" उसने कहा,

"हाँ! मैं ही हूँ वो!" मैंने कहा,

"तेरी इतनी हिम्मत?" वो गुर्राया!

"हिम्मत?? अभी देखी कहाँ तूने मेरी हिम्मत?" मैंने व्यंग्य किया!

"तू नहीं बचेगा अब?" उसने कहा

"वो तेरी अफ़िफा क्यूँ भागी यहाँ से? उसने नहीं बताया?" मैंने फिर से व्यंग्य में कहा!

"बदजात आदमजात!" उसने कहा

"आदमजात! हाँ! हूँ मै आदमजात!" मैंने कहा,

उसके बाद मैंने त्रिल-मंत्र पढ़ा! ये मंत्र ऐसे काम करता है की जैसे किसी कक्ष में से सारी हवा निकाल दी जाए और वहाँ दमघोंटू माहौल हो जाए! ये मंत्र जिन्नात के लिए ही इस्तेमाल किया जाता है! मेरे त्रिल-मंत्र में प्राण जागृत हुए! मैंने पढ़ते हुए उस जिन्न पर थूक दिया! वो झटके से पीछे हुआ और अपना एक हाथ उठाया! उसने मेरे त्रिल-मंत्र की काट की! और काट दिया! मै भी चकित हो गया! उसने मुझ पर अमल करना आरम्भ किया, मुझे सामने एक के दो और दो के चार नज़र आने लगे! मुझे लगा कि मै उल्टा बैठा हूँ! कोई मुझे हिला रहा है! पसीने छूटने लगे मेरे! मेरे मुंह और नाक में पसीने जाते महसूस हुए! भरी सर्दी में भी पसीने आ गए! पेट में मरोड़ उठने लगीं! लगा कि आंते बाहर आने वाली है पेट फाड़कर! तभी मैंने यमाक्ष-डामरी का बीज मंत्र पढ़ा! पढ़ते ही उसका अमल कटा! अपना अमल कटते देखा बौखलाया वो! मै अब संयत हुआ! "बस?" मैंने कहा!

"कौन है तू?" उसने पूछा

"अभी बताता हूँ!" मैंने कहा,

तंगिका-महामंत्र का जाप किया! इस मंत्र से अशरीरी शक्तियां जलने लगती हैं! परन्तु जिन्न नहीं! वो आग से बने हैं! लेकिन इस मंत्र से आपके ऊपर उनका कोई इल्म नहीं चलेगा! इसके बाद मैंने अपनी जेब से एक गदर्भ-दन्त का टुकड़ा निकाला और उसको अभिमंत्रित किया! ये देख वो जिन्न हैरत में रह गया! मैंने वो गदर्भ-दन्त हाथ के बीच में रखा और कहा, "अब सुन और मेरे सवालों का जवाब देता रह!"

वो घबरा गया! अभिमंत्रित गदर्भ-दन्त से जिन्न घबराते हैं! जहां भी टकराएगा वहीं चिपक जाएगा वो! और फिर जाति से बहिष्कृत!

"क्या नाम है तेरा?" मैंने पूछा,

"अल्दूज़िया" उसने गदर्भ-दन्त को ताकते हए जवाब दिया!

"किसने भेजा तुझे यहाँ?" मैंने पूछा,

"अफ़िफा ने" उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"क्यूँ?" मैंने पूछा,

"मुझे बताया, उसको खतरा है" उसने कहा,

"कैसा खतरा?" मैंने पूछा,

"कैद होने का" उसने कहा,

"तू है कौन उसका?" मैंने सवाल किया,

"उसका बड़ा भाई" उसने कहा,

"अच्छा! तो तू आया था उसको बचाने! और खुद फंस गया!" मैंने हँसते हुए कहा!

मैंने इतना ही कहा कि वो झम्म से गायब हो गया! मैंने वो गदर्भ-दन्त फिर से वापिस रख लिया!

ये जिन्नाती चाल भी होती है! मै उनके हर हाव-भाव और कला से परिचित हुआ, अतः अब बाजी का झुकाव मेरी तरफ होने लगा था! तभी! तभी वहाँ दो और जिन्न हाज़िर हुए! पहलवान जिन्न! गुस्सैल जिन्नात!

"ओ आदमजात! चल भाग जा यहाँ से नहीं तो टुकड़े करके रख दूंगा!" उनमे से एक ने कहा,

"अल्यूज़िया कहाँ गया? कायर कहीं का! खुद भाग गया और अपने नौकर भेज दिए!" मैंने मजाक उड़ाया उनकी धमकी का!

"जुबान को लगाम दे!" उनमे से एक बोला!

"बस बस! भभकियां न दिखा! जो करना है कर ले!" मैंने कहा!

मैंने कुतंगिका-मंत्र का जाम पहन रखा था, इसीलिए मैंने कहा ऐसा!

उनमे से एक आगे बढ़ा और हाथ अपनी ठुड्डी तक ले गया! फिर एक इल्म फूंका उसने! धुंए की एक रेखा चली मेरी ओर और मुझसे टकराते ही भक्क करते हुए गायब हो गयी! ये देख वो दोनों एक दूसरे का चेहरा देखने लगे!

"क्या हुआ?" मैंने पूछा, उनको जैसे वज्रपात सा हुआ!

अब उनमे से एक ने हाथ ऊपर किया, एक छड़ी आई उसके हाथों में! इस छड़ी में रंगबिरंगी सुतलियाँ सी बंधी थीं! उसने छड़ी मेरी ओर की! फिर से एक अंगार की रेखा बढ़ी मेरी तरफ! और मुझसे टकराई! मुझे उसका ताप तो महसूस हुआ उसका अपनी छाती पर! परन्तु कुतंगिका-मंत्र से मेरा रक्षण हुआ! रेखा गायब हो गयी!

ये देख वो अब हैरत में पड़ गए!

"कौन है तू आदमजात? आलिम लगता है" उनमे से एक ने पूछा,

"हाँ मै आलिम ही हूँ!" मैंने बताया,

"क्या चाहता है?" एक बोला,

"अफ़िफा से बोलो इसको छोड़ दे" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"ये तो अफ़िफा ही जाने" उन्होंने कहा,

"तो भेजो उसको यहाँ?" मैंने कहा,

"हमे नहीं पता" उन्होंने कहा,

"तो दफा हो जाओ यहाँ से" मैंने कहा,

वे दोनों गायब हो गए एक ही क्षण में! कुछ समय बीता!

और तब! तब एक और ताक़तवर और जवान जिन्न प्रकट हुआ! करीने से पहने कपडे, चमकदार और खुशबूदार! कमरे में सुलतान गुलाब की महक फैल गयी!

"वाह आदमजात वाह!" उसने कहा!

"शुक्रिया आपका!" मैंने कहा,

"अजीम आलिम हो आप" उसने कहा,

"फिर से शुक्रिया आपका!" मैंने कहा,

"मुसीबत क्या है?" उसने पूछा,

"बताता हूँ आप अपना तारुफ़ तो कराइये पहले?' मैंने हंस के कहा,

"मै अफ़िफा का छोटा भाई हँ नवाफ़!" उसने कहा,

'अच्छा, शुक्रिया!" मैंने कहा!

अब मैंने उसको सारी बात बता दी!

"अच्छा! आप चाहते हैं कि अफ़िफा इस आदमजात को बख्श दे?" नवाफ़ ने कहा,

"हाँ!" मैंने कहा,

"बेहद मुश्किल है ऐसा करना" उसने कहा!

"मुश्किल कैसे? आपका नाम नवाफ़ है, ऊंचा, पवित्र मायने हैं इसके, फिर मुश्किल क्यूँ?" मैंने पूछा!

"मै जहां तक सोचता हूँ ये अफ़िफा का ही फैसला होना चाहिए, मै कुछ नहीं कह सकता, न कुछ कर सकता!" उसने कहा,

"ठीक है नवाफ़! बुलाइये अफ़िफा को" मैंने कहा,

"ठीक है" उसने कहा और पल भर में ओझल हो गया! कुछ क्षण बीते! अफ़िफा हाज़िर हुई!

"आओ अफ़िफा! तुमने तो सारा कुनबा जोड़ लिया यहाँ!" मैंने कहा,

"सुनो आलिम! क्या चाहते हो?" उसने कहा,

"तुम जानती हो" मैंने कहा,

"नहीं, वो तो नामुमकिन है" उसने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"देखो अफ़िफा, मैंने शराफत से अभी तक तुम सबको समझाया है, अगर मैंने ज़बरदस्ती की तो एक भी बचेगा नहीं तुम में से, सभी पकडे जाओगे" मैंने धमकाते हुए कहा!

"मुझे धमकाओ मत!" उसने गुस्से से कहा!

"क्या कर लोगे तुम लोग?" मैंने पूछा,

"कहर टूट जाएगा तुझ पर!" उसने कहा,

"कोशिश कर लो!" मैंने हँसते हुए कहा,

मै जिन्नाती ज़िद से वाकिफ हूँ!

"अब देख तू!" उसने गुस्से से कहा!

एक ही पल में गायब हो गयी!

और फिर प्रकट हुआ वहाँ सफ़ेद दाढ़ी वाला जिन्न!

"आप कौन साहेबान?" मैंने कहा,

उसने कोई जवाब नहीं दिया बस ताकता रहा मुझे हवा में खड़ा हुआ!

"जवाब दीजिये?" मैंने कहा,

"मै अल्ताफ़ हूँ" उसने कहा

"शुक्रिया!" मैंने कहा,

"क्या तुम ही हो वो आदम?" उसने ऊँगली करते हुए कहा मेरी तरफ!

"हाँ, मैं ही हूँ वो" मैंने जवाब दिया,

"अफ़िफा के दुश्मन हो तुम?" उसने पूछा,

"कह सकते हो" मैंने जवाब दिया!

"तुझे क्या चाहिए? दौलत?" उसने लालच दिया!

"इस लड़के की आज़ादी!" मैंने कहा,

"नामुमकिन!" उसने कहा,

"मुमकिन है" मैंने जवाब दिया!

"बस! बहुत हुआ!" उसने कहा,

"अच्छा! अभी तो मैंने कुछ किया भी नहीं" मैंने कहा,

"मुंह पर ताला लगा अब!" उसने कहा!

"नहीं तो?" मैंने उकसाया!

"मुझे लगाना पड़ेगा ज़बरन! "कोशिश कर लो अल्ताफ़!" मैंने कहा,


   
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