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वर्ष २००९ उड़ीसा की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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उड़ीसा! भारत का एक शांत प्रदेश! वर्ष २००९……मै लिंगराज मदिर के दर्शन हेतु और वहां एक आमंत्रण से पहुंचा था, उस से पहले में खड़गपुर की एक जगह महिषा में ठहरा हुआ था, मुझे ये निमंत्रण एक वयोवृद्ध अघोरी बैजनाथ ने भिजवाया था, बैजनाथ, पुरी में कोरुआ एक जगह है, वहाँ मिलने वाला था, उस दिन अघोरे पंथ में प्रचलित एक विशिष्ट अवसर का दिन था, और उस दिन एक विशिष्ट आयोजन किया गया था बैजनाथ द्वारा! ये बैजनाथ कामाख्या में भी काफी प्रसिद्धि प्राप्त अघोरी था! जब मै खड़गपुर में था, तो एक दिन शर्मा जी के पास एक फ़ोन आया था, मैंने निमंत्रण स्वीकार कर लिया था और बैजनाथ के डेरे पर पहुँच गया था!

बैजनाथ की उम्र कोई ८० वर्ष के आस-पास होगी, सैंकड़ों चेले-चपाटे! और ऐसे ही उसकी चिलम और चेलियाँ!

बैजनाथ कई महंतों और विशिष्ट लोगों केलिए अघोर क्रियाएं किया करता था! बैजनाथ का एक शिष्य हुआ करता था उन दिनों, अमरनाथ! आयु कोई ५५ वर्ष, वैसे तो वो हिमाचल के ऊना का रहने वाला था, लेकिन २२ वर्ष की आयु में गृह-त्याग कर चुका था और अघोर के लिए उसने अपना जीवन समर्पित कर दिया था! मुझसे इसी का फ़ोन आया था, अमरनाथ सदैव मदोन्मत्त रहने वाला, घमंडी और वाचाल किस्म का अघोरी था, लेकिन मेरे सामने चूं करने की उसकी हिम्मत नहीं थी, मेरे दर्जे को देखते हुए भी मुझे केवल 'यशिता' के नाम से संबोधित करता था और मै उसको उसके नाम से! अगर केवल वही मुझे बुलाता तो मै वहाँ कदापि नहीं जाता, लेकिन ये बैजनाथ था, जिसकी वजह से मै यहाँ आया था! जब मै उसके डेरे पर आया तो अमरनाथ मुझे मिला, बोला, "यशिता! मुझे उम्मीद नहीं थी की तू यहाँ आएगा, हालांकि फ़ोन मैंने ही किया था!"

"हाँ, अमरनाथ मै यहाँ नहीं आता, केवल तू जो बुलाता तो! मै यहाँ बैजनाथ से मिलने आया हूँ, और वैसे भी मुझे बैजनाथ से मिले २ वर्ष हो चुके हैं, कहाँ है बैजनाथ?" मैंने पूछा,

"बैजनाथ तो रात तक आएगा, आओ मै आपको किसी से मिलवाता हूँ, कोई जो दक्षिण भारत से आया है और मेरे भक्त हैं!" उसने गर्व से कहा

मै और शर्मा जी उसके साथ चले, वो हमको एक कमरे में ले गया, वहाँ ३ वृद्ध औरतें बैठी थीं, और ३ लड़कियां, ये लड़कियां, २४-२५ वर्ष की रही होंगी, सांवला रंग लेकिन पुष्ट देह, गठीला


   
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श्रीशः उपदंडक
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बदन और ऊंची कद-काठी, उनके देखने के तरीके से साफ़ ज़ाहिर था की वो पुरुष-गमन की आदी हैं! अमरनाथ ने उन वृद्ध स्त्रियों में से एक को उठाया और बोला, "ये है कौशी जोगन! अघोरी रिपुदमन की चिलम! अब मेरी चिलम है! ये अपनी कौड़ी उठाने में समर्थ है! रिपुदमन ने इसको अपने मरने से पहले कौड़ी उठाना सिखा दिया था!" उसने घमंड में कहा था ऐसा, मुझे जतलाना चाहता था वो की अब उसके लिए मुझसे ऊपर निकलना कोई असंभव कार्य नहीं! जब कोई जोगन कौड़ी उठाने में समर्थ होती है तो उसकी कीमत एक हीरे की तरह होती है, कौड़ी, यदि साधना के दौरान, ये जोगन उठा ले तो साधना अवश्य ही पूर्ण होती है! साधक कौड़ी उठायी हुई जोगन के वक्ष पर बैठ कर साधना करे तो सिद्धि अवश्य ही प्राप्त होती है!यही ये अमरनाथ दिखाना चाहता था! मुझे ज़रा हंसी आई और मैंने कहा, "अमरनाथ याद है एक जोगन भद्रा? क्या हुआ उसका? कौड़ी उठायी, साधना आरम्भ हुई!, परन्तु साधना के मध्य में ही कौड़ी बैठ गयी! भद्रा भी मरी और साधक भी!, इसको बोल, कौड़ी उठाने में और कौड़ी उठा के साधने में बड़ा फर्क होता है! इसकी आयु के कारण ऐसा मुझे तो असंभव प्रतीत होता है!" अमरनाथ ने ऐसा मुंह बनाया जैसे कोई कडवी वास्तु खा ली हो! मैंने ऐसा कहा और वहाँ बैठी दोनों लड़कियों के मुख मेरे सम्मुख हो गए! उन्होंने अमरनाथ से मेरा परिचय माँगा, तो उसने नहीं बताया! वो स्वयं मेरे पास आयीं और उनमे से एक बोली, " भद्र! अपना परिचय दें!" मैंने उनको देखा और कहा, "मेरा परिचय इस फ़कीर अमरनाथ से नहीं, स्वयं बैजनाथ से माँगना!" मै पलटा, शर्मा जी का हाथ पकड़ा और बाहर आ गया! बाहर आया तो मेरे एक पुराने परिचित वहाँ मिले वो भी बैजनाथ से मिलने आये थे, सामग्री आदि देने के लिए! मैंने उन्हें बताया की बैजनाथ वहां है नहीं और रात को आएगा, हां, वो चाहें तो अमरनाथ से मिल लें, अभी तो वो ही प्रधान है यहाँ का! उन्होंने धन्यवाद कहा और अमरनाथ के पास चले गए, मै उस डेरे के अति-विशिष्ट प्रांगन में चला गया शर्मा जी को, वहाँ दितिका नाम की एक सेविका से मिला, उसने मुझे और शर्मा जी को एक आरामदेह कक्ष में ठहरा दिया, हम दोनों ने कक्ष में अपना सामान रखा और अपने बैग खोलकर अपने नहाने के बाद पहनने वाले वस्त्र निकाल लिए! पहले मै नहा के आया फिर शर्मा जी, शर्मा जी ने मुझ से कहा, "गुरु जी, ये जो अमरनाथ है, ये साला मुझे बिलकुल पसंद नहीं!"

"छोडो शर्मा जी, ये बैजनाथ का चेला है, प्यारा चेला!" मैंने कहा,

"और बैजनाथ को ये नहीं पता की ये उसकी ही जड़ें काट रहा है!" वो बोले,

"बैजनाथ अब बूढा हो गया है! उसको सहारा चाहिए, बस इसीलिए उसने इसको मुंह लगा रखा है!" मैंने जवाब दिया,

"उसके बाद ये सारा डेरा और पैसा ये अमरनाथ ही लेगा!" वो बोले,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हाँ, समझ लो आज हम आखिरी बार ही यहाँ आये हैं!" मैंने कहा,

इतने में ही एक सेविका आई और दो कप चाय रख गयी! मैंने उसको दो गिलास पानी भी लाने को कहा! मैंने पानी का इंतज़ार किया, वो पानी भी ले आई, मैंने उसको कहा की वो ज़रा दितिका को अन्दर भेजें! थोड़ी देर बात दितिका अन्दर आई, बोली, "जी? आपने बुलाया?"

"हाँ, मुझे बताओ, ये बैजनाथ कहाँ गया हुआ है?" मैंने पूछा,

"वो कल शाम को गए थे, आज शाम तक आ जायेंगे, कहाँ गए हैं, पता नहीं" उसने बताया,

"ठीक है, तुम जाओ अब" मैंने कहा,

मैंने पहले पानी पिया फिर उसके बाद चाय पीनी शुरू की, मैंने शर्मा जी से कहा, "शर्मा जी, बैजनाथ तो शाम तक ही आएगा, चलो थोड़ी देर आराम कर लिया जाए!"

"ठीक है" वो बोले,

मै अपने बिस्तर पर लेता लेकिन शर्मा जी बाहर चले गए, थोड़ी देर बाद अन्दर आये तो २ अनार लेकर आये थे, उन्होंने मुझसे पूछा, मैंने मना कर दिया और मेरी आँख लग गयी,

 

शाम हो चुकी थी जब मेरी आँख खुली, शर्मा जी भी सो रहे थे, मैंने उनको जगाया, हम दोनों तैयार हुए, बाहर गए, देखा तो काफी चहल-पहल थी, बैजनाथ आ गया था शायद! मै सीधा बैजनाथ के कक्ष की ओर चल पड़ा! अन्दर घुसा तो बैजनाथ बैठा हुआ था अपने चेलों के बीच घिरा हुआ! मै वहीँ ठहर गया, उसके चेलों ने मुझे देखा, फिर बैजनाथ ने! बैजनाथ उठा मेरे पास आया! और मेरे गले लग गया! बोला, " आप आ गए, बढ़िया हुआ, अब हम तो दिल्ली जा नहीं सकते, कोई मौका नहीं मिलता वहां जाने का!"

"बैजनाथ सिर्फ तुम्हारे कारण ही मै यहाँ आया हूँ!" मैंने कहा,

बैजनाथ ने मुझे बिठाया, और फिर बोला, "मै जानता हूँ"

"बैजनाथ, इस अमरनाथ को लात लगाओ यहाँ से, भगाओ इसे, मैंने पहले भी कहा था, लेकिन तुमने कोई ध्यान नहीं दिया, तुम्हारे मरने की प्रतीक्षा में है ये!" मैंने कहा,

"हाँ मुझे मालूम है, लेकिन क्या करूँ, मेरी मजबूरी है" उसने कहा,

"ठीक है फिर, तुमने अपनी नियति स्वयं ही चुन ली है, मुझे अब कुछ नहीं कहना! मै कल सुबह यहाँ से निकल जाऊँगा" मैंने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"नहीं नहीं! कल का ही तो आयोजन है, महाभोज है!" उसने कहा,

"नहीं बैजनाथ, मुझे तुमसे मिलना था, मिल लिया, मै कल भुवनेश्वर के लिए प्रस्थान करूँगा" मैंने ऐसा कहा और मै वहां से अपने कक्ष में चला गया! रात्रि-समय मेरे कक्ष में 'भोजन' और मदिरा आ चुकी थी, मैंने अपनी शक्तियों को भोग दिया और फिर भोजन करने बैठा, मैंने और शर्मा जी ने काफी मदिरा पी, उन्मत्त हो गए! थोड़ी बात-चीत हुई और फिर मै लेट गया, तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई, शर्मा जी ने दरवाज़ा खोला, बाहर वही दोनों लड़कियां खड़ी थीं, शर्मा जी ने मुझे देखा, मैंने अन्दर आने का इशारा कर दिया, वो अन्दर आयीं, वे भी मदिरा-भोग करके आयीं थीं! मैं उनको बिताया और पूछा, "कहिये क्या बात है?"

"जी मैंने आपका और अमरनाथ का वार्तालाप सुना था, फिर जैसा आपने कहा था, मैंने बैजनाथ से आपका परिचय पूछा, परिचय मिलने के बाद हम यहाँ आये हैं"

"किसलिए?" मैंने पूछा,

"कुछ कहना है" वो बोली,

"बोलिए" मैंने कहा,

"जी मेरा नाम कणी है और ये मेरी छोटी बहिन अरु" वो बोली,

"अच्छा, तुम रिपुदमन की बेटियां हो?" मैंने पूछा,

"जी नहीं, मै उनकी भतीजी हूँ और ये भी" उसने कहा,

"हाँ, अब बताइये, क्या काम है?" मैंने पूछा,

"जी बात ये है की हमारी माँ अमरनाथ के संपर्क में पिछले ४ साल से है, और हम भी, लेकिन उसने आज तक हमारा प्रयोग ही किया है, करवाया है, लेकिन आजतक कुछ 'दिया' नहीं, अब हम परेशान है, माँ ने बाबा बैजनाथ से भी बात की थी, बैजनाथ ने सुना ज़रूर लेकिन कहा कुछ नहीं, बस इतना की इंतज़ार करो"

"अच्छा! तो आप चाहती हैं की मै बैजनाथ से आपकी सिफारिश कर दूँ?" मैंने प्रश्न किया,

"नहीं, हम चाहते हैं की हम आपके साथ जुड़ जाएँ और आप हमको कुछ दे दो बदले में" कणी ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"बदले में? मै समझा नहीं कणी? तुम मेरे किस काम की?" मैंने कहा, अब कणी ने अरु को देखा और अरु ने कहना शुरू किया अब, " कहने का पर्याय ये था की हम आपकी 'सेवा' करें और आप हमको कुछ दो"

"अरु, सबसे पहले मै आपको एक बात बता दूँ, न तो मै अमरनाथ हूँ और न ही बैजनाथ! और न ही तुम, न कणी और तुमारी वो कौड़ी वाली माँ, मेरे किसी काम की हैं"

"लेकिन आपने हमारी 'सेवा' नहीं देखी है! आपने ऐसी 'सेवा' कहीं नहीं देखी होगी!" कणी ने कहा,

"और मुझे देखनी भी नहीं है" मैंने कहा,

"एक बार अवसर तो दीजिये?" अरु बोली,

"नहीं कणी और अरु, तुम नहीं समझ रहीं जो मै कहना चाह रहा हूँ, मै अमरनाथ नहीं,जिसे 'सेवा' की आवश्यकता पड़े, और न मै बैजनाथ जो अमरनाथ की सेवा का मोहताज हो! अब आप जा सकती हो यहाँ से!" मैंने कहा,

"लेकिन आप हमारी मदद तो कर ही सकते हो?" अरु ने बोला,

"कैसी मदद?" मैंने पूछा,

"अमरनाथ से पीछा छुडवा दो हमारा, वो हम तीनों को प्रेत-भोग हेतु प्रयोग करता है" कणी न कहा,

"तो इसमें मै क्या कर सकता हूँ? तुमने स्वयं इसकी स्वीकृति दो होगी? मैंने कहा,

"नहीं, नहीं दी स्वीकृति हमने" अरु बोली,

"फिर? फिर ऐसा क्या हुआ?" मैंने पूछा,

"अमरनाथ ने कच्ची कौड़ी वाली जोगन हमारे चाचा को दी, साधना के मध्य कौड़ी बैठ गयी, चाचा का कलेजा फट गया!" कणी ने कहा,

"तो इस से मेरा क्या लेना देना?" मैंने पूछा

 


   
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श्रीशः उपदंडक
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"चाचा की मृत्यु हो गयी, मेरी माँ ने अमरनाथ से शादी कर ली, मेरी माँ का भी २ वर्ष पहले देहांत हो गया, उसके बाद हमारे पास और कोई मार्ग शेष नहीं था, हमे अमरनाथ के अनुसार काम करना पड़ा, विवशतावश" अरु ने कहा,

"अरु और कणी, तुम अमरनाथ की जूठन हो अब, मेरे किसी काम की नहीं बचीं तुम, तुम्हारा गर्भ-वेध हो गया है, अमरनाथ ने कर दिया है, संतान तुम उत्पन्न नहीं कर सकती, सामान्य समाज में तुमसे कोई विवाह नहीं करेगा, तुमने अपने गर्त में जाने का रास्ता स्वयं चुना, अब पछताओ मत!" मैंने कहा,

"हमारी विवशता थी ये" अरु ने कहा, और दोनों की आँखों में आंसू छलक आये!

"अच्छा, तुम मुझसे क्या चाहती हो?" मैंने पूछा,

"आप हमारा अमरनाथ से पीछा छुडवा दें" कणी ने कहा,

"चलो छुडवा भी दिया? कहाँ जाओगी?" मैंने पूछा,

"आपके साथ आपके डेरे पे, जो कहोगे कर लेंगी हम" उन्होंने कहा,

"मै अपने डेरे पर स्त्रियाँ नहीं रखता, घुसने भी नहीं देता!" मैंने कहा,

"तो आप हमको इस जीवन से मुक्त कर दीजिये!" उन्होंने कहा,

"मै कौन होता हूँ मुक्त करने वाला?" मैंने कहा,

"हम आपके पाँव पड़ती हैं, हमको अमरनाथ से छुडवा दीजिये" दोनों बोलीं और मेरे पांवों को पकड़ लिया,

मैंने उनको हटाया और बोला, " मेरे लिए असंभव है ये" और मैंने ये कह के उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया, दोनों भारी मन से उठीं और बाहर जाने लगीं, अभी बाहर जाने ही लगीं थी की वहाँ अमरनाथ आ गया! भड़का और बोला, "हरामजादियों, यहाँ आई हो? मुझसे बिना पूछे?"

ये कह के उसने अरु पर हाथ छोड़ना चाहा, शर्मा जी ने उसका हाथ पकड़ा और पीछे कर दिया, अरु और कणी दर के मारे दोनों आपस में चिपट गयीं और मेरे पीछे खड़ी हो गयीं! अमरनाथ भड़का और बोला, "सुन ओये शर्मा मेरे रास्ते में टांग अदायेगा तो तू ही जानेगा!" मुझसे ये बर्दाश्त नहीं हुआ, मै उठा और जाकर एक करार झापड़ अमरनाथ के सीधे गाल पर जड़ दिया! वो नीचे गिरा, जैसे उठने की कोशिश की, मैंने एक लात और उसके मुंह पे मारी! उसका होंठ


   
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श्रीशः उपदंडक
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फट गया और खून बहने लग गया! वो उठा तो मैंने उसको कहा, "साले नीच, कमीने अगर गलती से भी शर्मा जी को कुछ कहा तो तेरी जुबां खींच के बाहर निकाल दूंगा हलक से!" इतना कह के मैंने उसको कमरे से बाहर धक्का दे दिया! वो गिरा और उठ कर भागा बैजनाथ के यहाँ! रात के साढ़े ग्यारह का वक़्त हुआ होगा!

मैंने पीछे बैठी दोनों लड़कियों को देखा, दोनों डर के मारे काँप रही थीं, मैंने उनको खड़ा किया, और कहा, "डरो मत!" और फिर मैंने दरवाज़ा बंद कर दिया, अरु ने डर के मारे कहा, " अब ये नहीं छोड़ेगा हमे, नरक बना देगा हमारा जीवन, हमको बचा लीजिये!, बचा लीजिये!" उसने ये शब्द बेहद डर के मारे सहमी सहमी आवाज़ में कहे थे, आंसूं आँखों में तो थे लेकिन आँखों से गिरे नहीं थे, ये भाव मेरे हृदय में छेद कर गया!

मैंने उन दोनों को वहाँ बिठाया, पानी दिया पीने को, कांपते हाथों से उन्होंने पानी पिया, मैंने कहा, "अरु, कणी, मैंने कहा घबराओ मत, वो झाड कुछ नहीं कर पायेगा तुम्हारा! मेरे होते हुए! और न ही ये बैजनाथ! डरो मत, अभी आने वाला है ये झाड और उसका बाप बैजनाथ, यहाँ!"

वही हुआ, बैजनाथ आ गया! अमरनाथ ले आया था उसको! बैजनाथ ने आते ही लड़कियों को देखा और कहा, "ऐ लडकियों! उठो यहाँ से और जाओ अपने स्थान पर!"

मैंने लड़कियों को देखा उन्होंने मुझे, मैंने कहा, "सुन बैजनाथ, ये लडकियां कहीं नहीं जायेंगी! ये अपनी मर्जी से मेरे साथ जायेंगी, जहां मै लेके जाऊँगा इनको"

बैजनाथ की बोलती बंद हो गयी! अमरनाथ पछाड़ खाते-खाते बचा!

 

बैजनाथ ने कहा, " आप क्या करेंगे इनका? आपके तो किसी काम की नहीं ये? ये अमरनाथ की अमानत हैं, वही है मालिक"

"अमानत थीं, मालिक था, अब नहीं!" मैंने कहा,

"लेकिन............." बैजनाथ बोलते बोलते रुक गया,

"सुन बैजनाथ, इस कमीन को बोल की अब एक पल भी मेरे सामने न खड़ा होए, साले को नंगा कर दूंगा अभी, ढपली ही बजाएगा जिंदगी भर!"

बैजनाथ ने ये सुना तो उसकी हवा खिसक गयी! उसने हाथ के इशारे से अमरनाथ को वहाँ से निकल जाने को कह दिया, अमरनाथ खिसिया के वहाँ से चला गया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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लेकिन, मै कह रहा था................." वो बोला

"कि मै इनका क्या करूँगा? यही न? यही पूछ रहा था न तू?" मैंने पूछा,

"हाँ, ये ही मतलब था मेरा" वो बोला,

"अब तेरा कोई मतलब नहीं, और सुन मै सुबह इनको लेके यहाँ से चले जाऊँगा, तू, यहाँ से जाने के बाद, इस दरवाज़े पर दस्तक न देना और सुबह, अपने चेले से कहना, अगर कभी इन लड़कियों की तरफ देखा भी, कभी खबर लेने कि भी सोची तो उसका कलेजा उसकी को खिला दूंगा, अब तू भी निकल यहाँ से, बाहर बोलना कमरे में खाना भिजवा दें"

बैजनाथ सन्न रह गया था! उसकी मेरे से उलझने की औकात नहीं थी, मै चाहता तो उसका ऐसा जवाब देता कि अगले २ साल तो उसको मेरा तात्पर्य समझने में ही लग जाते!

थोड़ी देर बाद खाना आ गया, मैंने कणी और अरु को खाना खिलाया, और पूछा, "सुनो तुम दोनों, तुम अब मेरे साथ सुबह चल रही हो, कोई आपत्ति हो तो बताओ मुझे"

"नहीं गुरु जी, नहीं गुरु जी, कोई आपत्ति नहीं है" उन्होंने खाना खाना खाते हुए ऐसा कहा!

"तुम्हारे कपडे कहाँ है?" मैंने पूछा,

"वहीँ रखे है" अरु बोली,

"शर्मा जी, आप एक काम करना इनके साथ जाना, इनका जो भी सामान हो वो आप यहाँ ले आइये" मैंने शर्मा जी से कहा,

"जी गुरु जी, मै ले आऊंगा"

उन्होंने खाना खा लिया, मैंने शर्मा जी को उन लड़कियों के साथ भेज दिया, वो अपने साथ अपने कपडे ले आयीं, मैंने उनको अपने बिस्तर पर दोनों को सोने के लिए कह दिया और मै शर्मा जी के साथ लेट गया,

सुबह मेरी नींद खुली, शर्मा जी भी उठ गए, वो दोनों लडकियां बेचारी बेसुध, सो रहीं थीं!

मै और शर्मा जी बाहर आये, बाहर कोई चहल-पहल नहीं थी, सभी सो रहे होंगे! हम थोड़ी देर टहले तो शर्मा जी ने पूछा, "गुरूजी, अब क्या किया जाए? इनका होगा क्या अब??" कहीं भी छोड़ेंगे तो इनका दुरुपयोग तो होगा ही!"

"नहीं शर्मा जी, नहीं होगा ऐसा, आप देखते रहिये!"


   
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श्रीशः उपदंडक
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"जैसी आपकी इच्छा गुरु जी" शर्मा जी ने कहा,

हम अन्दर आये तो कणी नहाने चली गयी थी, अरु बाहर ही बैठी थी, उसने नमस्कार किया, हमने भी!

कणी आई नहा के तो अरु चली गयी नहाने, हम दोनों बाहर आगये और बाहर पड़े एक तख़्त पर बैठ गए, थोड़ी देर बाद दोनों आयीं बाहर, फिर हम अन्दर गए, नहाये-धोये और सामान तैयार कर लिया, मैंने कणी और अरु को भी अपना सामान उठाने को कहा, उन्होंने सामान उठाया, हम चले बाहर की तरफ, अमरनाथ ऊपर छुप कर हमे जाते देख रहा था! मैंने उसको देखा तो एक दम दीवार के पीछे हो गया! मै फिर बैजनाथ से नहीं मिला, हम सभी बाहर आ गए, और मैंने एक लोकल वैन किराए पे ली और मैंने उसको बोला, 'रेलवे स्टेशन"

 

मै उनको कोलकाता ले आया, कोलकाता में अपने एक परिचित के आश्रम में ठहरे, वहाँ मैंने एक काम के व्यक्ति सुरजन को बुलाया, सुरजन शहर से बाहर था, उसने अगले दिन आने को कहा, मैंने कहा कि ठीक है कल वो हमसे आते ही मिल ले,

मै अपने कमरे में ही बैठा था, शर्मा जी के साथ, मैंने कहा, "शर्मा जी, इन लड़कियों का गर्भ-वेधन किया गया है, ये संतान उत्पन्न करने में असमर्थ हैं, मुझे इनका गर्भ-वेधन हटाना होगा!"

"वो कैसे गुरु जी? शर्मा जी ने पूछा,

"हमको एक जवान 'घाड़' चाहिए होगा, उसका और इनका प्रणय करवाना होगा, रमण के दौरान इनके स्तनों से दूध की धार निकलेगी, इनका गर्भ-वेधन दूर हो जाएगा, किन्तु ये घाड़ प्रबल और दोषरहित होना चाहिए, इसीलिए मैंने सुरजन को यहाँ बुलाया है!"

"अच्छा गुरूजी"

"आप एक काम कीजिये, उन दोनों को यहाँ बुलाइए" मैंने कहा,

शर्मा जी उठे और उनको वहाँ बुला लाये, मैंने पहले कणी से पूछा, "कणी, एक बात बताओ, तुमको माहवारी आने में कितने दिन शेष हैं?"

"जी कोई १० दिन" वो बोली,

फिर मैंने अरु से पूछा, "और तुम्हारे?"

"कोई १५ दिन शेष हैं" अरु बोली,


   
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"ठीक है"

"एक बात और बताओ तुम दोनों? क्या कभी गर्भ-धारण किया है किसी ने?"

"नहीं, किसी ने भी नहीं" दोनों बोली,

"अच्छा, एक बात और बताओ तुम दोनों, जैसा मै कहूँगा, तुमको वैसा करना होगा, करोगी?"

"हाँ जी, जैसा आप कहोगे, हम करेंगी" दोनों बोली,

"ठीक है, अब जाओ वापिस अपने कमरे में" मैंने कहा,

वो दोनों अपने कमरे में चले गयीं, मैंने शर्मा जी को कहा, " शर्मा जी आप इस सुरजन से संपर्क में रहो, ये ही हमको एक ऐच्छिक 'घाड़' देगा, इसका काम ही यही है"

"ठीक है गुरु जी, मै संपर्क में रहता हूँ इस के साथ'' शर्मा जी बोले,

दोपहर में मै और शर्मा जी कुछ आवश्यक वस्तुएं लेने चले गए, ये 'घाड़' के लिए था! नए कपडे, नए अंग-वस्त्र आदि आदि!

मैंने फिर रात को दोनों को बुलाया और उनको सब-कुछ बता दिया, उन्होंने हाँ भी कर दी! लेकिन मैंने कहा, "तुम दोनों इसको आसान न समझना!"

"वो कैसे?" कणी बोली,

"अभी बताता हूँ" मैंने कहा,

मैंने थोड़े मंत्र पढ़े और कहना शुरू किया, "सुनो, जब घाड़ तुम्हारे समक्ष आएगा तो उसको दृष्टि से कुछ दिखाई नहीं देगा, और जब दिखाई नहीं देगा तो उसको कामोत्तेजना नहीं होगी, और ये होना अत्यंत आवश्यक है, तुमको स्वयं उसको स्पर्श आदि से उत्तेजित करना होगा, रमण के दौरान यदि तुम हट जाती हो तो क्रिया असफल हो जायेगी!"

"जी हम समझ गए" दोनों ने कहा,

"और सुनो, जब तुम्हारे स्तनों से दुग्द-धारा स्फुटित होगी तो तुम उसको हाथों से या किसी भी प्रकार से रोकोगी नहीं! उसका वीर्य-स्खलन होगा, वो किसी के भी साथ हो, होने देना लेकिन उस समय वहाँ से उठ जाना, नहीं तो अगर वो तुम्हारे गर्भ में गया, तो गर्भ ठहरेगा, गर्भ ठहरा तो शिशु होगा, ये शिशु सदैव कन्या ही होती है, जिसको बोला जाता है 'शाबर कन्या', समझीं तुम?


   
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"हाँ हम समझ गए" दोनों ने गर्दन हिलाई..................

 

अगले दिन सुरजन का फ़ोन आ गया, मैंने सुरजन को बता दिया था कि, ये घाड़ ३० साल की उम्र से कम, मजबूत देह वाला होना चाहिए, काना न हो, अँधा न ह, विकलांग न हो, सर्प-दंश से न मरा हो, अग्नि से जला हुआ न हो, सडा हुआ न हो, घाव-युक्त न हो, अस्त्र-शस्त्र से घात-युक्त न हो! बाकी सुरजन जानता था कि क्या और आवश्यकता है! सुरजन ने बताया कि जैसा घाड़ वो चाहते हैं उनको मिल जाएगा, एक घाड़ है उसके पास! मैंने उसको कहा कि वो ये घाड़ जेतेश्वर के डेरे पर पहुंचा दे रात ११ बजे तक! फिर मैंने जेतेश्वर को फ़ोन करके ताजा मांस और रक्त-कुंद भरने को कह दिया, जेतेश्वर ने हमारे वहाँ पहुँचने से पहले ऐसा करने का वचन दिया!

मै रात १० बजे जेतेश्वर के डेरे पर इन लड़कियों को ले गया! जेतेश्वर मिला, प्रणाम किया और 'कार्य-शाला' कि तरफ इशारा किया उसने! मैंने उन लड़कियों को वहाँ 'कार्य-शाला' में नहाने को कहा, दोनों ने एक साथ नहाना था, उनके नहाते वक़्त मुझे मंत्रोपचार करने थे, घाड़ के पहुँचने से पहले मुझे उनको शुद्ध करना था! मैंने शर्मा जी को वहीँ एक कमरे में ठहरने की सलाह दी और ग़द्द को सुरक्षित 'पूजा-शाला' में रखवाने को कहा, पहले मै कार्य-शाला में गया, मंत्र आदि से स्वयं को सशक्त किया, भस्म-लेप किया और लंगोट धारण कर ली! फिर मैंने उन लड़कियों को बुलाया और उनको नहाने को कहा, वो जब नहाने लगीं तो मै मंत्रोपचार करता रहा, भस्म को अभिमंत्रित करता रहा, जब वो नहा लीं तो मैंने उनको लेटने को कहा, अब उनका देह-पूजन करना था, मैंने वहाँ रक्त-कुंद से रक्त निकालकर उन पर भस्म और रक्त का लेप किया, मंत्रोपचार लगातार जारी थे, कोई आधा घंटा लगा! फिर मैंने उनको उठाया, वो उठ गयी, अब उनको शराब पिलाई, ताकि मदमत्त हो जाएँ! कच्चा मांस खिलाया, आधे घंटे में वो झूमने लगीं! मैंने तब उनपर अष्टांग-सहोदारियों की सवारी करवा दी! वो झूमने लगीं! कभी गिरतीं फिर खड़ी होतीं, फिर गीतीं फिर खड़ी होतीं!

मै बाहर आया, घाड़ आ चुका था!

मैंने जेतेश्वर के साथ घाड़ को अन्दर रखवाया, और उसका पूजन आरम्भ किया! घाड़ के सारे शरीर को रक्त और मांस की चर्बी से लेपा गया!

उसके जननांग को को छूती हुई मांस के टुकड़ों से बना कमर-बंद पहनाया गया!

उसके शरीर के सारे बालों को जलती लकड़ी से जलाया गया!


   
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श्रीशः उपदंडक
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उसके दोनों कन्धों में एक ६-६ इंच की कीलें घुसेड दी गयीं, ताकि रमण-क्रिया के समय वो किसी की गर्दन या कोई अंग दबा न दे! हाथ चाक़ू से छेद दिए गए!

उसके सर में पीछे की तरफ एक सूराख बना कर अभिमंत्रित रक्त प्रवेश कराया गया!

उसको दोनों आँखों में कीलें ठोक दी गयीं!

उसको नए कपडे पहनाये गए!

फिर उसके बाद उसकी पूजा आरम्भ हुई!

कोई एक घंटे के बाद घाड़ में हरकत हुई! वो उठ बैठा! उसने आस-पास देखा, लेकिन उसको दिखाई नहीं दे रहा था! वो तेज-तेज हिल रहा था! पाँव पटक रहा था!

मैंने उसको मंत्रों से बाँधा! वो शिथिल् हो गया! तेजेश्वर वहाँ से चला गया था!

मै तब कार्यशाला से उन लड़कियों को लेने गया! वो अभी भी झूम रहीं थीं! योनि-स्राव पाँव की एडियों तक आ पहुंचा था! मैंने एक मंत्र पढ़ा और भस्म लेकर उन पर छिड़क दी!

वो होश में आ गयीं! मैंने उनको इशारा किया अपने साथ आने का!

वो आयीं मेरे साथ! मैंने उनको रमण-क्रिया के लिए आदेश दिया, उनको उस घाड़ को उत्तेजित करने में ४० मिनट लग गए! तब सबसे पहले कणी उसके ऊपर लिंग-प्रवेश करा के बैठ गयी! अब मैंने फिर से अष्टांग-भद्रिका की उस पर सवारी करवा दी! १० मिनट रमण पश्चात कणी के स्तनों में से दुग्द-धारा फूट पड़ी, कणी चिल्लाई! मैंने अष्टांग-भद्रिका की सवारी हटा दी! कणी नीचे गिर गयी, योनि से रक्त निकल रहा था! मैंने उसका हाथ खींच कर उसको अलग कर दिया!

फिर अरु का क्रम था, अरु भी उत्तेजित लिंग पर बैठी, मैंने उसके ऊपर फिर से अष्टांग-भद्रिका सवार करा दी, कोई १० मिनट के पश्चात, अरु के स्तनों में से भी दुग्द-धारा फूटी, वो चिल्लाई, मैंने सवारी हटाई, अरु भी नीचे गिरी! फिर मैंने एक ब्रह्म-मोहन मंत्र से घाड़ के ऊपर भस्म डाल दी! घाड़ स्खलित हो गया! कार्य संपन्न हो गया था! स्खलित होते की घाड़ का उद्देश्य समाप्त हो गया था! मैंने उसको एक मृत देह समान वहीँ छोड़ दिया!

मैंने शर्मा जी को बुलाया! हम दोनों ने उन लड़कियों को उठाया और एक अलग जगह ले गए! मैंने फिर उनको जगाया, वो शिथिल सी हो गयीं थी, रक्त-स्राव रुक गया था, मैंने उनको नहाने को भेज दिया और स्वयं भी नहाने चला गया! शेष रात्रि हमने वहीँ काटी!


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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Topic starter  

अगले दिन दोनों ठीक थी! गर्भ-वेधन हट गया था! मै उनको लेके गोरखपुर गया, एक महिला आश्रम में भेजा, उस आश्रम ने ऐसी कन्यायों और दूसरी परित्यकत महिलाओं के पुनर्विवाह के लिए अच्छा योगदान दिया है समाज में! ३ महीनों के पश्चात उनका उड़ीसा के ही दो युवकों से विवाह हो गया! मै उनके विवाह में सम्मिलित हुआ था! शर्मा जी के साथ! बाद में दोनों के संतान हुईं!

उसके बाद मै उनसे कभी नहीं मिला!

----------------------------------साधुवाद---------------------------------

 


   
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