वर्ष २००९ इटावा उत्...
 
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वर्ष २००९ इटावा उत्तर प्रदेश की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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पर चीरा लगा दिया! खून की बूंदे छलछला गयीं! मैंने मंत्र पढ़ते हुए वो रक्त शिवम् के माथे पर लगा दिया

और एक तामसिक-चिन्ह बना दिया! अब शिवम् सुरक्षित था, कुछ समय के लिए! और यही समय मै चाहता था! अब मै वहाँ उन दोनों को बिठा के वहाँ से निकला! उनको सख्ती से । ताकीद किया कि ये अगर बाहर भागना चाहे तो इसको जाने मत देना, भले ही पिटाई का ही सहारा लेना पड़े!

इतना कह मै शर्मा जी के साथ बाहर आया, वहाँ मुझे एक व्यक्ति के पास जाना था, वो इटावा में ही रहता था, नाम था केवल दास, ये दिल्ली भी आया करता था! शर्मा जी ने उसको फ़ोन किया, केवल दास, भाग्य से वहीं मिल गया! मैंने केवल दास से पूछा, कि एक रात के लिए ब्रह्म-शमशान चाहिए, उसके अनुसार ये शमशान इटावा में तो नहीं, हां, उस से थोडा सा दूर है, अब मै फिर से शिवम् के घर आया और उनसे उनकी गाडी मांग ली, सामान था ही हमारे पास, हम चल दिए, रास्ते से केवल दास को लिया और हम ब्रह्म-शमशान की ओर चल पड़े! ये शमशान शहर से बाहर एक गाँव को पार करने के बाद पड़ता है, वहाँ पहुंचे, वहाँ कुछ सिरफिरे औघड़ भी दिखाई दिए! वेश के औघड़ बस! मै उस शमशान के महा-ब्राह्मण से मिला,

केवल दास ने एक स्थान दिलवा दिया! स्थान बढ़िया था! आम लोगों से दूर! कोई टोकने वाला नहीं था वहाँ! मैंने तैयारियां आरम्भ की, सामग्री आदि का भी प्रबंध कर लिया! रात्रि-समय ११ बजे का समय निर्धारित कर दिया मैंने! अब मै तैयार था उस चंडलिका से आमना सामने करने के लिए!

रात्रि समय आया और मैंने अब अलख उठायी! अलख भोग दिया! शर्मा जी और केवल दास को वहीं एक कमरे में बिठा दिया!

अब मैंने मांस उठाया, एक थाल में रखा! शमशान भोग दिया! दिशा शूल किया, यमशूल किया! उद्वर्धन विधि द्वारा शक्ति-सम्पात किया और क्रिया आरम्भ की! मैंने पहले मसान को जगाया! आधे घंटे में मसान पेश हुआ! मैंने मसान से चंडूलिका को बुलाने को कहा! मसान लोप हुआ! फिर खाली हाथ आया! कई मित्र सोच रहे होंगे कि मैंने खबीस क्यूँ नहीं भेजे उसको पकड़ने? खबीस कभी भी गन्दी एवं औघड़ी विद्या के सामने नहीं आते जब तक विवश न हों तो! मै समझ गया! उस शमशान में और भी किसी का वास है! और वो है भद्रांक-वेताल का! इसी का सरंक्षण प्राप्त होता है उस चंडूलिका को! मैंने रणनीति बदली अब! मैंने अब त्रिभंगमर्दनी का आह्वान किया! त्रिभंग-मर्दनी सहोदरी है दश-महाविद्या में से एक की! त्रिभंग-मर्दनी प्रकट हुई! उसका आसन निरंतर घूमता रहता है! उसको उसका


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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भोग दिया! मैंने त्रिभंग-मर्दनी को चंडूलिका को पकड़ने के लिए भेजा! मेरा आग्रह स्वीकार कर वो उड़ चली! और कुछ ही क्षण में! कुछ ही क्षण में वो चंडूलिका मेरे समक्ष थी! मैंने उस पर रिप-पाश डाला और बाँध लिया! त्रिभंग-मर्दनी लोप हुई! शमशान में औघड़ की चलती है और किसी की कदापि नहीं!

"अब बता हरामजादी! अब बता!" मैंने कहा,

वो हंसी जोर से! और जोर से!

उसका ये अट्टहास दरअसल मदद की गुहार थी! गुहार भद्रांकवेताल से! "वो नहीं आएगा मेरे समक्ष!" मैंने कहा,

"क्यों? क्यों नहीं आएगा?" उसने चिल्ला के पूछा,

"क्यूंकि मैंने असितांग-वेताल का आशीर्वाद लिया है! उसको भोग दिया है! इसलिए" मैंने उसको बताया!

अब चंडूलिका असमर्थ हो गयी थी! मै चंडूलिका को कोई दंड भी नहीं दे सकता था! उसका अपना स्थान निर्धारित है उस शमशान में! हाँ बस इतना कर सकता था कि उसको उसी शमशान की ही हद में कैद कर दिया जाए! और यही मैंने किया! अब चंडलिका वहाँ से नहीं निकल सकती थी! अब वो उस शिवम् के पास नहीं जा सकती थी! शिवम् की समस्या अब समाप्त हो गयी थी!

चंडूलिका कैसे बाहर आई? कौन लाया उसको बाहर? चंडूलिका शमशान की महाशक्ति है! ये वहाँ पर मसान के समक्ष और वेताल की रखैल होती है! ये मनुष्य शरीर, किसी स्त्री शरीर में प्रवेश कर, वेताल से सम्भोग करती है! तब वेताल भी किसी मुर्दा शरीर, पुरुष शरीर में प्रवेश कर इसकी काम-क्षुधा शांत करता है! अन्य किसी में भी इसकी काम-क्षुधा को शांत करना बस में नहीं! किसी साधक अवधूत ने इसको साधा और इसको अपनी पत्नी समान रखा! वो इसको बुलाता था, दोनों एक दूसरे से सम्भोग करते! चौरासी वर्ष के उस अवधूत की मृत्यु ऐसे ही एक सम्भोग के दौरान हो गयी! वो इसे ले तो आया परन्तु भेज न सका! ये उन्मुक्त हो गयी! उसी सुबह इसकी नज़र जवान शिवम् पर पड़ी और ये उसके आसपास मंडराने लगी! बस! यही कारण था उस शिवम् के दुर्भाग्य का और आरम्भ का! इसने शिवम् के कोमल हृदय को अपने कामवचन, काम-बाणों से बींध दिया!

वो गिरता चला गया! और यदि मै समय पर नहीं आता तो ये उसके प्राण हर लेती! मै वहाँ से वापिस आया! केवल दास को घर छोड़ा! और फिर शिवम् के पास आया! जब मै सुबह


   
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श्रीशः उपदंडक
(@1008)
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उसके पास आया तो वो खाना खा रहा था! बुरा समय भूल चुका था वो किसी बुरे सपने की तरह!

उसके माँ-बाप और दादा जी ने बहुत आभार प्रकट किया! दान की पेशकश भी की! परन्तु मैंने मना कर दिया! मै वापिस दिल्ली आ गया! उसकी बहन मीतू भी ठीक हो गयी! आज शिवम् इंजीनियरिंग कर रहा है! वो अपने माता-पिता और दादा जी के साथ आता रहता है कभी कभार मेरे पास! शिवम्! मासूम शिवम्!

------------------------------------------साधुवाद-------------------------------------------


   
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