वर्ष २००९ इटावा उत्...
 
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वर्ष २००९ इटावा उत्तर प्रदेश की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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मेरे एक जानकार हैं, श्रीमान महेंद्र प्रताप, रहते हैं इटावा में, सरकारी नौकरी है और उनका स्थानान्तरण अक्सर होता ही रहता है! ऐसे ही एक बार वो स्थानांतरित होकर यहाँ आये थे यहाँ, मूलतः रहने वाले राजस्थान में हैं लेकिन उनको नौकरी उत्तर प्रदेश में ही मिली थी, अब वो यहीं रहते हैं, उनका परिवार भी उनके साथ ही रहता है, हाँ उनकी बड़ी बेटी राजस्थान में ही रहती है और परीक्षाओं की तैयारी कर रही है, उनके साथ उनकी धर्मपत्नी, पिताजी और उनका सबसे छोटा बेटा शिवम् रहता है! शिवम् की आय उस समय उन्नीस वर्ष ही होगी, ज़हीन दिमाग का, शांत और गंभीर आचरण का लड़का था ये शिवम्! अब पढ़ाई भी वहीं रह कर कर रहा था! माँ-बाप और अपने दादा जी का लाडला लड़का है ये शिवम्!

एक बार की बात है, शिवम् अपने कमरे में बैठा पढ़ रहा था, तभी उसको लगा कि कोई उसके पास खड़ा है, जब उसने पलट कर देखा तो कोई ना था, शिवम् घबराया नहीं और फिर पढने बैठ गया! फिर से उसको ऐसा महसूस हुआ! उसने किताब बंद की और अपने बिस्तर पर लेट गया!

बिस्तर पर लेटा तो निंद्रा ने दस्तक दी, नींद आ गयी उसको! उसने उसी रात एक स्वपन देखा, देखा कि वो एक कमरे में है, जहां एक बड़ा सा बिस्तर है, लम्बे लम्बे शनील के परदे हैं और वातावरण में खुशबू ही खुशबू है! खिड़की से बाहर झाँका तो देखा, उन्मत्त वाय जैसे पेड़ों की चोटियों से वार्तालाप कर रही हैं और बात बात पर वायु से ठिठोली कर हंसने लग जाती हैं!

वो उस बिस्तर पर लेट गया! मुलायम गद्दों ने जैसे उसका अपने हाथ बढाकर स्वागत किया हो! वो लेटा और मदहोश सा हो गया! आँखें बंद हो गयीं उसकी! तभी उसके माथे पर किसी ने हाथ फेरा! उसने आँखें खोलीं! आँखें खोली तो उसने देखा कि एक रूपवान सूंदरी वहाँ खड़ी है! पूर्णतया नगन! सम्पूर्ण कामुक देह और सुगढ़ अंग-प्रत्यंग! घनी एवं खुली श्याम केश राशि!

अब जैसे ही शिवम् ने कुछ कहना चाहा उस सुंदरी ने अपने हाथ से उसके होंठ ढक दिए, शब्द मुंह में ही रह गए! शिवम् ने चित्रों आदि में तो किसी नग्न स्त्री को देखा था परन्तु समक्ष पहली बार ही देख रहा था! कामावेग में वो सब कुछ भूल गया! विस्मित हो गया! उसने नेत्र बंद हुए जा रहे थे बार बार! वो प्रयत्न भी करता तो भी उसके नेत्र उसका ये अनुरोध अस्वीकार कर दिया करते थे! फिर भी शिवम् ने साहस किया और उठ बैठा! और बोला,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"आप कौन हो?" "मै कणिका हूँ" उस स्त्री ने कहा, "कणिका? परन्तु मै नहीं जानता आपको?" उसने कहा, "जान जाओगे, अति शीघ्र!" उसने कहा,

फिर उस सुंदरी ने उसको अपने बाहु-पाश में जकड लिया! शिवम् हतप्रभ रह गया! परन्तु उसके शरीर ने उसका साथ देने से मना कर दिया! और फिर हुई काम-क्रीडा आरम्भ! काम-रत शिवम् सब कुछ भूल गया! वो कौन है? कहाँ से आया यहाँ? ये कणिका कौन है? आदि आदि!

तभी एक झटके से शिवम् की नींद खुली! सब कुछ शिथिल था, सामने दीवार घडी में तीन बजे थे! उसे कुछ असामान्य सा लगा, वो उठा तो देखा उसका वीर्य स्खलित हो गया है! ये कैसे हुआ? इस सोच में उलझ गया शिवम्!

सुबह आई, गंभीर शिवम् और गंभीर हो गया! चाय-नाश्ता नीचे टेबल से उठा कर ऊपर अपने कमरे में ले आया, पीछे पीछे आये दादा जी, बोले, "क्या बात है शिब्बू? आज हमारे साथ नाश्ता नहीं करोगे?" "ऐसा नहीं है दादा जी, रात को नींद नहीं आई, थकावट है, बस यही कारण है!" शिवम् ने टाला! "कोई बात नहीं, पढ़ाई के समय पढ़ाई और आराम के समय आराम, ठीक बेटे?" दादा जी ने कहा, "जी दादा जी" शिवम् ने कहा,

दादा जी भी वहीं बैठ गए अपने नाश्ते के साथ और फिर नाश्ता करते रहे! परंतु कहीं खोया हआ था!

दादा जी ने उसके इस रुख को देखा तो सही परन्तु ध्यान नहीं दिया! हो सकता है कोई पढ़ाई का ही मामला हो!

उस दिन शिवम् सारा समय उसी रात्रि के सपने में खोया रहा, ऐसा सपना उसे क्यूँ आया? कभी उस से पहले तो नहीं आया आज तक? क्या कारण हो सकता है? और वो कणिका, ये कौन है? कभी नाम ही नहीं सुना इसका? कौन हो सकती है? ऐसे ऐसे कई और प्रश्न उसके मस्तिष्क में खलबली मचाते रहे! घर में किसी से बात भी नहीं कर सकता था, कैसे बतलाये? ये तो शर्म की बात थी, किस से कहे? उस दिन भी शिवम् ने किसी से कोई बात नहीं की, बस अपने कमरे में ही लेटा रहा, और उसी सपने में ही खोया रहा!

"शिवम्?" तभी नीचे से आवाज़ आई उसकी माँ की, "हाँ मम्मी?" उसने वहीं से जवाब दिया, "बेटा खाना नहीं खाना क्या आज?" उसकी माँ ने पूछा, "अभी खाऊंगा बस थोड़ी ही देर में" उसने जवाब दिया और फिर से लेट गया बिस्तर में,

फिर आधा घंटा बीता, शिवम् उठा और नीचे चला गया, दादा जी भी खाना खा रहे थे, दादा जी ने गौर किया कि शिवम् का व्यवहार बदला बदला सा है, तो उन्होंने पूछा, "क्या बात है


   
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श्रीशः उपदंडक
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शिवम्? परेशान हो, ऐसा लगता है" "जी न...नहीं तो" उसने जवाब दिया, "तो क्या बात है, काफी गंभीर दिख रहे हो?" उन्होंने पूछा, "नहीं कुछ नहीं, पढ़ाई में व्यस्त हूँ मै दादा जी, बस और कोई बात नहीं" उसने बताया, और उसके बाद शिवम् वहाँ से उठा, अपने हाथ धोये और फिर से ऊपर चला गया!

ऊपर आया तो फिर से वही ख़याल सताने लगे उसको! कच्चा मन ऐसा ही होता है, जो छप गया वो आसानी से मिटता नहीं! यही शिवम् के साथ हो रहा था! रात का खाना नहीं खाया उसने, बस अपने पिता जी से कुछ बातें कीं उनके घर आने के बाद और फिर वापिस ऊपर चला आया, टेबल पर किताब पड़ी थी, वहीं जहां कल थी, उसके किताब खोली और फिर से पढने बैठ गया! काफी देर तक पढ़ा शिवम्! लेकिन फिर से अचानक उसे लगा कि कोई और भी मौजूद है वहाँ उस कमरे में, उसने अपने आसपास देखा तो कोई नहीं था! घबराहट तो हुई लेकिन टिका रहा वो वहाँ! फिर से पढना शुरू किया उसने! । थोड़ी देर पढ़ा तो उसको लगा कि उसकी कमर पर किसी ने हाथ लगाया है! वो झटका खा के उठा! पीछे देखा, कोई भी ना था! अब उसको हुई घबराहट! वो बाहर आ गया! साँसें तेज हो गयीं उसकी! तभी ऊपर दादा जी आ गए! एक तश्तरी में कुछ फल लाये थे काट के शिवम् के लिए! शिवम् को भी तसल्ली हुई कि चलो दादा जी आ गए! शिवम् फिर से कमरे में आया और पढाई करने लगा, टेबल पर रखी तश्तरी से फल उठा के खाता रहा! दादा जी भी वहीं बैठ के अपनी किताब पढने लगे!

रात हुई, दादा जी ने किताब रख दी और फिर वहाँ से उठ के चल दिए नीचे अपने कमरे की तरफ! अब फिर से शिवम् को भय सताया लेकिन उसने अपने भय पर काबू किया और पढ़ाई में तल्लीन हो गया! तभी उसकी गर्दन पर किसी ने हाथ रखा! शिवम् ने एक दम से पूछा,"कौन? कौन है यहाँ?" लेकिन कोई जवाब नहीं आया!

अब उसे फिर से भय सताने लगा! उसने किताब बंद की और वहीं टेबल पर हाथ टिकाये बैठा रहा! तभी उसके सर पर हाथ फेरा किसी ने! अब वो सच में ही घबराया! अपने कमरे से बाहर आ गया! फिर नीचे भागा! माँ और पिताजी सो रहे थे, उसने दादा जी का दरवाज़ा खटखटाया, दादा जी उठे और दरवाज़ा खोल और बोले, "अरे क्या हआ बेटा?"

"दादा जी, मुझे लगता है मेरे कमरे में कोई है" उसने तेजी से अन्दर आते हुए कहा,

"कोई? कौन हो सकता है?" दादा जी ने हैरत से पूछा,

"मुझे नहीं मालूम दादा जी" उसने भय से कहा,

"तुमने देखा उसे?" दादा जी ने पूछा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"नहीं, नहीं देखा" उसने बताया,

"फिर तो तुम्हारा वहम होगा बेटे!" दादा जी ने उसके माथे पर हाथ फेरते हुए कहा,

"वहम नहीं दादा जी, सच में कोई है" शिवम् ने बताया,

"तुम्हे कैसे यकीन?" दादा जी ने पूछा,

"जब मै पढता हूँ तो लगता है कि कोई है वहाँ, कोई मेरे सर पर, कमर पर और गर्दन पर हाथ लगाता है" उसने बताया,

"कभी कभार ऐसा हो जाता है बेटे, मन अपने आप ही आशंकाएं उत्पन्न कर देता है,आओ मै भी देखता हूँ कि कौन है वहाँ?" ऐसा कह दादा जी उठे और शिवम् के साथ ऊपर चले!

ऊपर आये तो वहाँ कोई नहीं था!

"लो बेटा, यहाँ तो कोई भी नहीं है?" दादा जी ने कहा,

"दादा जी आप यहीं ठहरिये" शिवम् ने कहा,

"ठीक है बेटे, तुम सो जाओ, मै यहीं बैठा हूँ" दादा जी ने कहा,

फिर शिवम् लेट गया अपने बिस्तर पर और फिर नींद ने उसे आ घेरा!

अब शिवम् को आया वही सपना! लेकिन इस बार वहाँ कमरा ना हो कर एक पेड़ था! पीछे नदी बह रही थी! वहाँ उसे शिवम् के अतिरिक्त और कोई ना था! बहत सुन्दर माहौल था वहाँ का! शिवम् जैसे खो सा गया वहाँ! पेड़ की नीचे आया, ये अंजीर का सा पेड़ था, पेड़ को ऊपर की तरफ देखा उसने तो पीछे से किसी लड़की के हंसने की आवाज़ आई! उसने पीछे देखा तो पीछे एक जाना पहचाना सा चेहरा था! वही चेहरा जो उसके साथ पिछली रात को था! उस लड़की ने पास आके शिवम् के गले में अपने हाथ डाल दिए! शिवम् सकपका सा गया! वो लड़की उसको अपने साथ ले गयी! वहीं उसी कमरे में! शिवम् मंत्र-मुग्ध सा चल पड़ा उसके साथ! शिवम् को उस लड़की ने बिस्तर पर गिराया और बोली," कैसे हो शिवम्?"

"मै ठीक हूँ, आप कैसी हैं?" शिवम् ने कहा,

"मै भी ठीक हूँ, आज तुमने बहुत इंतज़ार कराया मुझसे!" उस लड़की ने कहा,

"मै कुछ समझा नहीं?" शिवम् ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"मै तुमको प्यार करती हूँ शिवम्!" उसने कहा और शिवम् का एक चुम्बन ले लिया उसने! होंठों पर!

शिवम् हडबड़ा सा गया! उसने अपने हाथ से अपने होंठ साफ़ किये और लिपस्टिक हटा दी! उसके बाद उस लड़की ने अपने सारे वस्त्र उतारे और फिर शिवम् को भी नग्न कर दिया, हतप्रभ सा शिवम् कुछ ना कर सका! बस कणिका के काम-उन्माद में डूबता चला गया! कामक्रीड़ा आरम्भ हुई! थोड़ी देर में शिवम् स्खलित हुआ! उसकी नींद खुली! वो घबरा के उठा, उसको पता चला कि वो स्खलित हुआ है पिछली रात की तरह, वो गुसलखाने गया, कपड़े बदले

और जब शीशा देखा तो अपने होंठों पर उसे लिपस्टिक लगी दिखाई दी! फिर उसने अपना वो हाथ देखा जिस से उसने वो लिपस्टिक पछी थी! हाथ पर भी लिपस्टिक लगी हुई थी! उसके दिल ने अब जोर जोर से धड़कना आरंभ किया! कोई स्पष्टीकरण नहीं था उसके पास! उसने फ़ौरन ही वो लिपस्टिक साफ़ कर दी अपने हाथ और होंठों से!

अब उसकी हालत खराब हई! जो देखा था वो सच था क्या? अगर वो सपना भी था तो ये लिपस्टिक? ये क्या हो रहा है उसके साथ? आखिर कौन है ये लड़की कणिका? इन्ही ख्यालों ने उसकी नींद उड़ा दी! फिर ना सो सका वो!

सुबह उठा तो चेहरे पर अलकत के भाव थे! नहाया धोया, फिर नीचे आया, नाश्ता किया चुपचाप और फिर बाहर चला गया! दादा जी ने फिर से गौर किया कि शिवम् के साथ कोई समस्या तो अवश्य ही है, लेकिन क्या?

शिवम् एक घंटे के बाद आया, पिताजी जा चुके थे दफ्तर, सीधा अपने कमरे में गया, उसके पीछे दादा जी भी आये, बोले, "शिवम्, मै देख रहा हूँ कि तुम दो दिनों से काफी परेशान हो? मुझे बताओ कि बात क्या है?"

"नहीं दादा जी, ऐसी कोई बात नहीं है" शिवम् ने नज़रें बचाते हुए कहा,

"कोई ना कोई बात तो है, मुझे बताओ, शरमाओ नहीं, कोई बात है ऐसी क्या?" दादा जी ने मर्मात्म्क रूप से प्रश्न किया,

"नहीं तो दादा जी, अगर होती तो अवश्य ही बताता मै" शिवम् ने कहा,

"कल नींद आ गयी थी?" दादा जी ने पूछा,

"हाँ दादा जी" उसने जवाब दिया,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"ठीक है!" दादा जी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा,

उसके बाद दादा जी वहाँ से चले गए! दिन भर शिवम् उस लड़की कणिका के बारे में सोचता रहा!

फिर, शिवम् अपना रात का खाना अपने कमरे में ही ले आया, और वहीं खाया! फिर पढने बैठा! दो घंटे तक पढ़ा! फिर उसके गालों पर किसी ने हाथ रखे! वो उठा और बोला, "कौन है? क्यूँ तंग करते हो मुझे?" कमरे में तेज सुगंध फैली थी!

लेकिन कोई जवाब नहीं मिला उसको! हाँ उसके बाद उसको किसी ने नहीं छुआ! उसके बाद करीब बारह बजे सो गया शिवम्!

शिवम् सोया तो उसको फिर से स्वपन आया! स्वपन में उसने अपने आपको उसी बिस्तर पर पाया! तभी बाहर से कणिका आई अपने बाल संवारती हुई! वो शिवम् के पास आ बैठी! और बोली, "कैसे हो शिवम्?"

"मै ठीक हूँ और आप?" शिवम् ने पूछा,

"तड़प रही हूँ तम्हारे बिना, हमेशा के लिए मेरे हो जाओ शिवम्!" उसने शिवम् के कंधे पर अपना सर रखते हुए कहा,

"लेकिन मै आपको जानता तक नहीं?" शिवम् ने कहा,

"तुम मुझे जानते हो शिवम्" उसने बताया,

"जानता हूँ? कैसे?" शिवम् ने पूछा,

"बाद में बताउंगी ये सब!" उसने कहा और अपने वस्त्र उतारे उसने अब! टकटकी लगाए शिवम् उसको निहारता रहा!

फिर उसने एक एक करके शिवम् के वस्त्र उतारे! और उसके ऊपर बैठ गयी! काम-क्रीड़ा आरम्भ हुई! दोनों के नज़रें आपस में मिली हुईं थी! कणिका बोली,"मुझे अपना बना लो हमेशा के लिए, मैं ऐसे ही असीम आनंद देते रहंगी तुमको! बोलो?"

शिवम् तो कामवेग में ऐसे बह रहा था जैसे किसी तेज नदी का प्रवाह पत्थरों को बहा के ले जाता है! उसके मुंह से निकल ही गया, "हाँ!"

"कहीं नहीं जाओगे ना?" कणिका ने पूछा,

"हाँ, कहीं नहीं!" शिवम् ने कहा,


   
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अब कणिका ने शिवम् को उठा के अपने ऊपर लिया और स्वयं नीचे आ गयी! फिर बोली, "मै हमेशा तुम्हे ऐसे ही आनंद दूँगी, जीवन भर, मेरे ही बनके रहोगे ना?"

"हाँ!" शिवम् ने कहा और वो स्खलित हो गया!

स्खलित हो वो कणिका के ऊपर ही लेट गया! कणिका उसकी कमर पर अपने नाखून चलाती रही! इस से भी शिवम् को आनंदानभूति होती रही!

अचानक से शिवम् की आँख खुली! आँख खुली तो उसने सच में ही अपने को कणिका के ऊपर लेटा पाया! अपने कमरे के बिस्तर पर! उसको हैरत तो हई लेकिन काम हावी था उस पर उसके मस्तिष्क ने काम के आगे हार मान ली!

उसके बाद कणिका उठी और शिवम् को वस्त्र पहनाये! और फिर कुटिल मुस्कान लिए बोली, "अच्छा शिवम्, अब मै चलती हूँ, कल फिर आउंगी,या जब भी तुम चाहो मै आ जाउंगी"

"अभी नहीं जाओ कणिका" शिवम् ने कहा,

"मै यही तो सुनना चाहती थी शिवम्!

अब बस मै और तुम, तीसरा कोई नहीं!" उसने कहा, उसके बाद कणिका ने उसको फिर से उत्तेजित कर दिया और फिर से काम-क्रीड़ा आरम्भ हो गयी! थोड़ी देर बाद शिवम् फिर से स्खलित हुआ! स्खलित होते ही जैसे वो नींद से जागा! वहाँ कोई नहीं था! कोई भी नहीं!

लेकिन अब शिवम् शिवम् नहीं रहा था! अब वो कणिका का दास हो चुका था! उसने घडी देखी, सुबह के चार बजे थे! शिवम् गुसलखाने गया और फिर वापिस आके सो गया! सुबह उठा तो काफी प्रसन्न था! नीचे आया नहाने-धोने के पश्चात! सभी से मिला और नाश्ता भी सही से किया! दादा जी भी शिवम् को प्रसन्न देख प्रसन्न हुए! शिवम् उसके बाद बाहर चला गया! दो घंटे के बाद आया शिवम्! सीधा अपने कमरे में गया! उसे कणिका की बातें याद आयीं! जब मर्जी बुला लेना मुझे, ऐसा कहा था कणिका ने! तब शिवम् ने दरवाज़ा बंद किया अन्दर से और बिस्तर पर लेट गया! और आँखें बंद की! कणिका का नाम लिया और तेज खुशबू के साथ कणिका उसके बिस्तर पर आ गयी! शिवम् ने उसका आलिंगन किया,उसके शरीर के प्रत्येक अंग को टटोला और काम-प्रवाह में बहता चला गया! दोनों काम-क्रीड़ारत थे कि तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई! ये शिवम् के दादा जी थे!


   
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शिवम् तो मदहोश था! हाँ कणिका को ये बहुत अखरा, क्रोध आया उसे! वो फ़ौरन वहाँ से गायब हुई! शिवम् जैसे नींद से जागा, वहाँ दरवाजे पर दादा जी दरवाज़ा खटखटा रहे थे! शिवम् ने फ़ौरन अपने कपड़े पहने! और आवाज़ दी,"आया,

अभी आया" शिवम् ने दरवाज़ा खोला,

दादा जी हैरानी से शिवम् को देखते हुए बोले, "बड़ी देर कर दी, मै कब से बुला रहा हूँ तुमको?"

"नींद लग गयी थी दादा जी, कहिये?" शिवम् ने पूछा,

"तुम्हारी बहन का फ़ोन आया था" दादा जी ने हंस के कहा,

"अच्छा! मीतू का? क्या कह रही थी?" शिवम् ने पूछा,

 "तुम्हारे बारे में पूछ रही थी, पढ़ाई कैसी है शिब्बू की, कैसा है, सेहत का ध्यान रखता है या नहीं आदि" वो बोले,

"अच्छा !" उसने कहा, "और उसने कहा कि वो अगले हफ्ते आ रही है यहाँ!" दादा जी ने बताया,

"अच्छा! ये तो बहुत बढ़िया होगा!" शिवम् ने कह तो दिया लेकिन चिंता घर कर गयी उसके दिमाग में! क्यूंकि बहन के आने के बाद उसको दादा जी के कमरे में सोना होगा फिर! और फिर कणिका?"

इतना बता के दादा जी चले गए नीचे! जहां मीतू के आने से खुश था वो वहाँ कणिका के मारे दुखी हो गया था! बालक-बुद्धि के समझ से बाहर थी ये बात कि क्या अच्छा है और क्या बुरा!

वो बिस्तर पर बैठा तो कणिका फिर से आई उसके पास! कणिका ने उसको चिंतित देखा तो पूछा, "क्या बात है शिवम्?"

शिवम् ने सारी बातें बता दी उसको! कणिका ने उसको अपने सीने से लगाया और बोली, "कोई नहीं आएगा हमारे बीच!"

उसके बाद उसने उसे फिर से उत्तेजित किया और फिर से काम-क्रीड़ा आरम्भ हो गयी! अब पूर्णरूपेण समर्पित हो चुका था वो कणिका के लिए! ना दिन का ख़याल ना रात का पता! कणिका के काम में रिसने लगा था अब उसका पूरा वजूद! और कणिका उस से अपनी कामवासना पूर्ण करती थी!


   
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फिर एक दिन घर में फ़ोन आया कि मीतू नहीं आ रही, वो नहीं आ पाएगी क्यूंकि उसकी तबियत कुछ खराब है आजकल, ठीक होते ही आएगी वहाँ! यही तो चाहती थी कणिका! और ये चाहता था शिवम्!

शिवम् का हाल अब खराब होने लगा था, पढाई की नहीं जाती थी, किसी से बात भी नहीं करता था, चुपचाप रहता कमरा बंद किये! अब घरवालों को चिंता हुई उसके बदले हुए व्यवहार को देखकर! इसी सिलसिले में उसको एक चिकित्सक के पास ले गए! चिकित्सक ने बताया की उसको खाना आदि सही से ना खाने के कारण कमजोरी आ गयी है, कुछ दवाएं दी गयी रोज पीने खाने के लिए, लेकिन कभी उसको दादा जी खिलाते तो कभी उसके माँ-बाप!

और यहाँ कणिका उसका काम-मर्दन करती रही! कई कई बार दिन में, रात में, जब भी अवसर मिलता वो उसको उत्तेजित करती और काम-मर्दन आरम्भ हो जाता! दिन-ब-दिन सूखता चला गया शिवम्! अब ना खाने का होश और ना पीने का होश! कणिका अपनी युक्ति चल रही थी और ये मासूम शिवम् उसका शिकार होता जा रहा था! समय बीता, सभी को चिंता हुई अब उसकी! चिकित्सीय इलाज कराया गया, कोई फायदा नहीं हुआ उसको! चिकित्सक बदले गए, विशेषज्ञों को दिखाया गया लकिन कोई फायदा नहीं हुआ, शिवम् की हालत दयनीय होती चली गयी! अब क्या किया जाए? आखिर में एक बार दादा जी को ही ख़याल आया कि क्यूँ ना किसी ऊपरी इलाज वाले को दिखाया जाए? वो गए अपने बेटे के साथ, मालूम करने पर एक नौकर ने एक भगत का पता बता दिया था, वो वहीं गए, भगत ने शिवम् का एक कोई भी कपड़ा मंगवाया! अगले दिन वो कपडा लेके गए भगत के पास, भगत ने कुछ पढ़-पढ़ाकर ये पुष्टि कर दी कि उस के साथ अवश्य ही कोई ऊपरी समस्या है! अब ये स वे घबराए! लेकिन भगत ने उनको विश्वास दिलाया कि वो ये काम कर देगा और आज शाम को वो उस लड़के को देखने आएगा! आश्वस्त हो वो दोनों घर आ गए वापिस!

और फिर शाम सात बजे वो भगत आया घर में! घर में उसके घुसते ही उसको सड़े मांस जैसी दुर्गन्ध आई! सर भारी होने लगा, आँखे डबरा सी गयीं! भगत को समझते देर ना लगी कि मामला बेहद गंभीर है, और ये उसके बस का काम नहीं है! ऐसा सुन अब शिवम् के माँ-बाप और दादा जी घबराए! तब उस भगत ने उनको एक और आदमी का पता दिया, वो वहाँ से तीस किलोमीटर दूर रहता था, नाम था देसू बाबा! उसकी पकड़ काफी अच्छी थी और ये भगत उसका ही चेला था! भगत ऐसा बताकर वहाँ से चला गया वापिस! इतने में ही शिवम् नीचे उतरा और बोला," कौन आया था यहाँ?"


   
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"कोई नहीं आया यहाँ" शिवम् के पिता जी ने जवाब दिया,

"कोई तो आया था" शिवम् ने कहा,

"अरे बेटा कोई नहीं आया" दादा जी ने कहा,

"झूठ ना बोलो आप सभी" उसने गुस्से से कहा,

उसका ऐसा कर्कश व्यवहार देख शिवम् की माँ तो रो ही पड़ीं! उसके पिताजी और दादा जी भी अवाक रह गए! और शिवम्, शिवम् पाँव पटकता, गुस्से में ऊपर अपने कमरे में चला गया!

"उस भगत ने सही कह था, इसके साथ अवश्य ही कोई बड़ी समस्या है" शिवम् के पिताजी बोले,

"तो अभी चलो उस भगत के गुरु के पास, ना जाने रात में क्या हो जाए?" दादा जी ने कहा,

उसके बाद वे दोनों उस भगत के गुरु देसू बाबा को लेने चल दिए! वहाँ पहुंचे! देसू बाबा मिला नशे में धुत्त! आधी बात सुनी, आधी समझ में आई! लेकिन फिर भी उसने एक और आदमी बब्बू को भेज दिया! बब्बू ने कुछ सामान डाला झोले में और उनके साथ हो लिया! घर पहुंचे! बब्बो को भी वैसी ही दुर्गन्ध आई! उसने अपने झोले में से भस्म निकाली और अपने माथे पर मल ली और अन्दर चल पड़ा!

बब्बू ने शिवम् का कमरा पूछा! इस से पहले कि बब्बू ऊपर जाता शिवम् आ गया नीचे! उसने बब्बू को देखा और बोला, "बब्बू! तू आया है अब?"

ये सुनके तो जैसे वहाँ क़यामत आ गयी! सभी घबरा गए लेकिन बब्बू नहीं इरा! बोला, "हाँ मै ही आया हूँ"

"जिन्दगी से ऊब गया है तू?" शिवम् ने कहा,

"नहीं, तू है कौन?" बब्बू ने पूछा,

"मेरा नाम सुनेगा तो नीचे गिर पड़ेगा!" शिवम् ने कहा,

"अपना नाम तो बता! अगर इतना अकड़ रहा है तो?" बब्बू ने कहा,

"धरमा! धरमा है मेरा नाम!" शिवम् ने कहा, और जोर से हंसा!

अब बब्बू के पाँव तले जमीन सरकी! ये नाम धरमा उसके बाप का नाम था जो कि बब्बू के बचपन में गुजर गया था!


   
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"बकवास मत कर! अपना नाम बता!" बब्बू ने कहा और झोले में से एक माला निकाली और पहन ली! तभी शिवम् के गले से एक आवाज़ निकली!

किसी औरत की आवाज़! "मेरा नाम जानना चाहता है?" शिवम् ने पूछा,

"हाँ, नाम बता अपना?" बब्बू ने कहा,

"मेरा नाम सुनके भागेगा तो नहीं?" शिवम् ने कहा,

"नहीं, नहीं भागने वाला मै" बब्बू ने भी उसी लहजे से कहा,

"तो सुन मेरा नाम है चंडूलिका!" उसने कहा और जोर से अट्टहास लगाया!

ये नाम सुन बब्बू ने ना आव देखा ना ताव! भागा सर पर पाँव रख कर!

"सुनो तुम सब! ये शिवम् मेरा है और मेरा ही रहेगा! अगर इसके और मेरे बीच कोई आया तो जान से मार दूंगी उसको!" शिवम् ने कहा और ऊपर चला गया अपने कमरे में!

नीचे भय का माहौल व्याप्त हो गया! शिवम् की माँ तो बेहोश ही हो जातीं!

मित्रगण! ये चंडूलिका शमशान में वेताल की रखैल होती है! काम-पिपासु! चंडूलिका ही वो महाप्रचंड शक्ति है जो शमशान में अधिकतर साधकों को मौत के घाट उतारती है! इसको बड़ी चुडैल या रानी चुडैल कहते हैं! काम-वासना से ओत-प्रोत रहती है सदा! ये वही चंडूलिका थी!

अब समस्या खुल कर सामने आ गयी थी! रात सारी आँखों में ही काट डाली! डर और भय के माहौल में! अब तो देसू बाबा को लाना ज़रूरी ही था! अतः सुबह दफ्तर न जाकर शिवम् के पिता जी और दादा जी जा पहुंचे देसू बाबा के पास! बाबा को सारा हाल मालूम चल ही चुका था बब्बू से! बब्बू ने सारी बातें तफसील से बाबा को आके बता दी थी! बाबा ने फिर भी शिवम् को देखने और उसका इलाज करने की ठान ही ली! देसू बाबा पहुंचा शिवम् के घर! बब्बू भी आया साथ में! बाबा को भी वहाँ दुर्गन्ध आई काफी! बाबा अन्दर गया, जाके बैठा! लेकिन अब शिवम् नीचे नहीं उतरा! ये बाबा की पहली कामयाबी थी! अब बाबा गया ऊपर बब्बू के साथ! दरवाज़ा खुला था! शिवम् अपने बिस्तर पर ही लेटा था! "आओ देसू बाबा!" शिवम् ने कहा!

"आ गया चडूलिका!" देसू ने कहा,

"अब वापिस कैसे जाएगा?" शिवम् ने हंस के कहा,

"अपने आप चला जाऊँगा मै, तू अपनी बता!" बाबा ने कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"अगर जान प्यारी है तो अभी चला जा वापिस!" शिवम् ने कहा,

"और अगर न जाऊं तो?" देसू ने कहा,

"तो तू पछतायेगा!" शिवम् ने कहा,

वो अब शिवम् के शरीर से बाहर निकली और देसू के ऊपर चढ़ बैठी! देसू ने फ़ौरन कराड़-मंत्र पढ़ा तो वो झटका खा कर उठी वहाँ से! और फिर बब्बू पर सवार हो गयी! अब बब्बू ने देसू का गला पकड़ा और घोंटने लगा! देसू ने पास में पड़ा एक कांच का गिलास बब्बू के सर पर दे मारा! बब्बू नीचे गिरा! देसू भी माहिर खिलाड़ी था! कलुष-मंत्र पढ़ के आया था इसीलिए वो चंडूलिका को प्रत्यक्ष देख पा रहा था! देसू ने तब त्रिहन-मंत्र पढ़ डाला! चंडूलिका तभी लोप हो गयी! देसू ने बब्बू को उठाया, उसकी भौंह फट गयी थी! खून रिस रहा था! और वहाँ शिवम् ढेर पड़ा था बिस्तर पर! तब देसू ने एक माला निकाल कर शिवम् के गले में डाल दी! अब वो यहाँ इसके पास नहीं आ सकती थी!

देसू ने बब्बू को सहारा देकर नीचे उतार सीढ़ियों से, बब्बू को रक्त-रंजित देख शिवम् के दादा जी और पिता जी भागे ऊपर! शिवम् ढेर पड़ा था बिस्तर पर! जैसे ही शिवम् के पिता जी ने उसको हाथ लगा कर उठाना चाह तभी उनकी छाती में लात मारी किसी ने, वो पछाड़ खाते हुए नीचे गिरे! उनको गिरता देखा शिवम् के दादा जी चिल्लाए! चिल्लाना सुन कर देसू ऊपर आया सबसे पहले! देसू ने उन दोनों को कमरे से बाहर निकाल और स्वयं लड़ने के लिए तत्पर हो गया चंडूलिका से! उसने चंडूलिका से कहा,

"सुन मसानी, छोड़ दे इस बालक को"

"तू कौन होता है मुझको ये कहने वाला?" वो बोली,

"तेरा इलाज करूँगा मै, ठहर जा तू"

देसू ने कहा और वहाँ बैठ गया, लग गया शक्ति-जागृत करने में! यहीं गलती हुई देसू से! उसको वहाँ शक्ति का आह्वान नहीं करना था! बल्कि शमशान में करना था! अपने कीलित और सिद्ध शमशान में! लेकिन ऐसा नहीं हुआ! मंत्र पढ़ रहे देसू के नेत्र जैसे ही बंद हुए, चंडूलिका ने मारी उसकी पीठ पर लात! मंत्रोच्चार टूट गया उसका! अब बुरा हाल किया उसने उस देसू का, मुंह से खून बहने लगा, उसे दांत भी टूट गए, हाथों की हड्डी भी टूट गयी उस बेचारे की! बेहोश हो गया देसू!

वहाँ बब्बू को होश आया तो बब्बू भागा ऊपर! वो आनन-फानन में खीच के लाया बाहर देसू को, देसू का हाल देखा सभी घबराए और फ़ौरन उसको अस्पताल लेके दौड़े! अस्पताल में


   
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श्रीशः उपदंडक
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भर्ती कराया गया, बब्बू को भी टाँके लगवाने पड़े, उसके बाद शिवम् के पिता जी और दादा जी वापिस घर आ गए!

अब तो शिवम की जिंदगी और मौत का सवाल उठ खड़ा हआ था! अब वो शिवम से डरने लगे थे! और वहाँ वो चंडूलिका शिवम् को छू नहीं पा रही थी, क्यूंकि अभिमंत्रित माला पहना गया था देसू बाबा उसको! उसके कमरे में जाने की किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी! भय का माहौल व्याप्त था! उन तीनों ने जिंदगी में न ऐसा कभी सुना था और नहीं कभी ऐसा देखा ही था, क्या करें किसको बताएं? जान आफत में आन पड़ी थी सभी की!

वहाँ चंडलिका ने आवाज़ दे जगाया शिवम् को! शिवम् जागा तो आलिंगन करने चला उसका! लेकिन वो उसके हाथ न आई! कहा कि वो माला उतार के फेंक दो! कणिका के कामप्रेम में चक्षु एवं बुद्धि हीन हो चुके शिवम् ने माला उतार फेंकी! कमरे से बाहर!

उसके बाद दोनों आलिंगनबद्ध हो गए! बेचारे शिवम् को पता ही नहीं चल सका कि आखिर हुआ क्या है! वो तो काम-पिपासा का शिकार हो ही चुका था कणिका का!

तब मित्रगण! महेंद्र प्रताप सिंह के छोटे भाई जो कि दिल्ली में रहते हैं उन्होंने शर्मा जी से संपर्क किया! उन्होंने सारी बातें बतायीं और ये भी कि ये कोई चंडूलिका का मामला है! शर्मा जी ने ये बात मुझे बतायी, मै मामले की संजीदगी को समझ गया और फिर मैंने वहाँ जाने का निश्चय कर लिया! पहले शर्मा जी ने शिवम् के पिताजी से बात की फिर उसके बाद हम अगले दिन दिल्ली से इटावा के लिए रवाना हो गए! शाम तक हम इटावा पहुँच चुके थे, शिवम् के पिता जी हमे लेने आये थे, आँखों में विपत्ति के भाव भरे थे! नमस्कार आदि से फारिग हुए तो हम अब घर की तरफ चल पड़े! रास्ते में मैंने एक बोतल शराब और आधा किलो बकरे की कलेजी खरीदी, एक जंगल जैसा स्थान देखकर मैंने वहाँ हाथों से एक गड्ढा खोद कर उसमे वो कलेजी और शराब उड़ेल दी! कुछ मंत्र पढ़े और नमन किया! फिर गड्ढा ढक दिया! ये महा-भोग था किसी शक्ति का! जिसकी मुझे आवश्यकता थी!

अब हम घर आये! भयानक बदबू ने मेरे स्वागत किया! ये किसी सड़ी हुई लाश की दुर्गन्ध थी! जैसे हम अन्दर आये सीढ़ियों से शिवम् नीचे आया, मुझसे नज़रें मिली उसकी! वो और मै अपलक घूरते रहे एक दूसरे को! उसके बाद वो वहाँ से वापिस हो गया! मै खतरा भांप गया था! अब मै ऊपर चला उसके कमरे की तरफ! शर्मा जी को नीचे ही रहने दिया! शिवम् का दरवाज़ा खुला था! मैंने ताम-मंत्र पढ़ा और और स्वयं को पोषित किया! मसान-मंत्र से प्राण-रक्षा आवरण धारण किया और मै कमरे के अन्दर गया! मै वहाँ एक कुर्सी पर बैठ गया! शिवम् ने मुझे घूरा और कहा,


   
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श्रीशः उपदंडक
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"तू भी आ गया आजमाने अपने आप को!"

"सुन हरामजादी! न तो मै भगत हूँ, न वो बब्बू और न ही देसू!" मैंने कहा,

शिवम् अट्टहास मार के हंसा! और फिर बोला," मुझे नहीं जानता तू?"

"जानता हूँ, मासूम का खून पीने वाली हराम की जनी! जानता हूँ तुझे! तू चंडूलिका है न, वेताल की रखैल!" मैंने कहा,

"जुबां खींच लूंगी तेरी!"

उसने कहा और मेरी तरफ आया शिवम्, मैंने अपने हाथ में अपना सिद्ध-वरण पहना हुआ था, जैसे ही मेरे सामने आया मैंने एक दिया करारा झापड़ उसके गाल पर! सिद्ध-वरण से छूते ही वो गिरा सीधा बिस्तर पर! चौकड़ी मार के बैठ गया! फिर बोला,

"देख लूंगी तुझे भी! तेरा खून पी जाउंगी मै!" उसने कहा,

"देख हरामजादी, तेरे पास दो रास्ते हैं, पहला, इस लड़के को छोड़ दे, दूसरा नहीं तो तैयार रह तू अपना अंजाम देखने को! तेरा खसम वेताल भी नहीं आएगा बचाने तुझे!" मैंने कहा,

"कौन आएगा बचाने ये तो मै बताउंगी तुझे!"

उसने अब गर्दन हिलानी शुरू की!

इसका अर्थ था वो अब क्रूर रूप में आने को है!

चंडूलिका यदि क्रूर हो जाए तो भयानक कोहराम मचाती है! वेताल और चंडूलिका की जोड़ी तंत्र-जगत में अत्यंत रौद्र मानी जाती है!

अब मैंने भी एवंग, मातंग एवं कुरु-हत्र मंत्र जागृत कर लिए! चंडूलिका यदि क्रोध में किसी के ऊपर चढ़ जाए और उस व्यक्ति का खून चाट ले तो उसको कोई नहीं बचा सकता! व्यक्ति का रक्त जल बन जाता है, मवाद वाले फोड़े हो जाते हैं, कुष्ठ-रोग जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं! कुछ ही दिनों में व्यक्ति सूख जाता है, चर्म अस्थियों से चिपक जाता है! अब शिवम् खड़ा हुआ! और मेरी तरफ अपना लिंग कर मूत्र करने लगा, मैंने एवंग-मंत्र पढ़ा हुआ था अतः मेरा बचाव हो गया! कोई छींटा मुझ पर नहीं गिरा! मूत्र के छींटे यदि गिरते तो मेरे मंत्र प्रभावहीन हो जाते! उनको जागृत करने में समय लगता और इस बीच ये मुझ पर हावी हो सकती थी!

"आज नहीं बच पायेगा तू!" उसने कहा,


   
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"अच्छा! तू कर ले जो करना है!" मैंने भी चेतावनी दी उसको!

"ठीक है! आज तेरा काम ख़तम हो जाएगा!" वो चिल्लाई!

"और मै आज तेरा काम ख़तम कर दूंगा!" मैंने कहा और मै खड़ा हो गया! भुजा में बंधी थैली खोली और उसमे से रक्त मिली भस्म निकाली! फिर अपने माथे पर लगाईं! शिवम् जोर से हंसा! और बोला,"ऐसे खेल मै रोज खेलती हूँ!"

"आज का तेरा आखिरी खेल है!" मैंने कहा,

उसने फिर से अट्टहास लगाया! फिर बोला,

"आज! आज मिला है कोई टकराने वाला!" फिर जोर जोर से साँसे खींची मुंह बंद करके और बोला,

"तेरा खून! तेरा गरम खून! इसकी गंध आ रही है मुझे!"

"तो आगे बढ़ कमीनी!" मैंने कहा और भस्म निकाल कर अपने सीधे हाथ पर रख ली!

मैंने अब अपने हाथ की भस्म अभिमंत्रित की! शिवम् बिस्तर से नीचे उतरा, अपना मुंह फुलाए, मै जानता था कि उसके मुंह में क्या है! उसके मुंह में था रक्त! वो रक्त की बौछार कर मेरे मंत्र को स्तब्ध अथवा शिथिल करना चाहती थी! इस से पहले कि वो मुझ पर बौछार मारे मैंने वो भस्म उस पर दे मारी! भस्म ने उसका मुंह खुलवा दिया, उसका सारा रक्त शिवम् के गले से लेकर नीचे तक आ गया! वो नीचे गिरा और फिर तड़पने लगा! मै उसके पास गया और उसके तड़पते शरीर पर अपना जूता रख के खड़ा हो गया! थोड़ी देर में चंडलिका भाग गयी वहाँ से! शेष रह गया शिवम्!

मैंने अब अपना जूता उस से हटा लिया और फिर शर्मा जी और शिवम् के दादा व पिता जी को ऊपर बुलाया! वे लोग जैसे ही ऊपर आये उनके आंसू निकल पड़े! रक्त देख उन्होंने उसको उठाया, उसके दादा जी बदहवासी में 'डॉक्टर डॉक्टर' कहते रहे! मैंने उनसे कहा,

"घबराइये नहीं, मै ठीक कर दूंगा इसको, बस आप इसको नहलवा दीजिये अभी शीघ्र ही!"

उन्होंने वैसा ही किया! उसको नहलाने ले गए वो और जब उसके कपडे खोले तो पूरे बदन पर नाखूनों के निशान ही निशान थे! घाव बन गए थे वहाँ! मुझे उस लड़के पर बेहद तरस आया! उसको नहलवा दिया, बिस्तर पर लिटवा दिया! मूर्छित से वो अपने बिस्तर पर लेटा रहा! अब मैंने अपना खंजर निकाला और अपना अंगुठा आगे किया, मंत्र पढ़ा और अंगूठे


   
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