अपने सभी लोगों को देखा!
"ये तैर चबूतरे पर गाड़े गए थे, जब तक तू नहीं उठेगा तब तक कोई नहीं उठ सकता था, ये बाल खेड़ी के ही हैं और दूसरे वाले उसके गुरु यानी बाप के हैं, और इस रखवाया था दिम्माखाडूने खेड़ी के कहने पर!" मैंने उसको बताया!
उसको कुछ समझ नहीं आया, वो टहला यहाँ से वहाँ! फिर बोला, "फिर ये ज़मीन' कौन हैं यहाँ का मालिक!"
"सिद्धा, बहुत वक्त बीता गया, इस ज़मीन के लिए कितने युद्धहए, कुनबे, खानदान तबाह हो गए, सबका नामोनिशान मिट गया, लेकिज ये ज़मीन यहीं की यहीं है, अब इसका मालिक कोई और है!" मैंने कहा,
वो चुपचाप मेरी बात सुनता रहा! उसको असलियत समझ में आने लगी थी, वो कभी मुझे देखता की अपने लोगों को, सनी डरे-सहमे से साड़े थे, मैं आगे गया, सिद्धा के बिलकुल पास और जाके बोला, "सुनो सिद्धा! अब न सोटा वाली मोठड़ी हैं जिंदा, न दिमाखाडू और नहीं ही कोई और और ना ही तुम सब!" मैंने बताया!
मरी बात सुन वो चौंका!! फिर बोला, "मैं तुम पर कैसे यकीन करें"
"अपने आदमी शेजो, वो ढूंढेंगे खेडीको, अगर मुझ पर यकीन ना हो तो" मैंने कहा,
तो चुप रहा!
मैं आगे बढ़ा, सिद्ध के पास गया और बोला, "सिद्धा! जमाना बीता गया तुझे और तेरे लोगों को सोते सोते, अब ज तेरा कुछ यहाँ बचा है, और ना किसी और का, अब तुम गाजुष नहीं है" मैंने कहा,
उसने चौंक के देखा!
"सुन सिद्धा, कोई मानुष सदा ज़िदा नहीं रहता, उसे एक न एक दिन इस पृथ्वी से जाना ही पड़ता है!" मैंने कहा,
सिद्धा चुपवापसुनता रहा! अपनी तलवार जीवे कर ली!
"और सुन! अब तेरा यहाँ रहना भी ठीक नहीं, रोड़ी के जाल से तो तू बचा रहा पूरे ढाई साल, अब कोई खिलाड़ी तुझे मैंद कर लेगा, अदला-बदला जाएगा, गुलामी करेगा, तेरे लोग भी, आज तेरे यहाँ तेरे बेटे भी हैं और तेरी माँ भी, और तेरी बीवियां भी! जब कोई पकड़ लेगा, तो सब अलग हो जाओगे! कभी न मिलने के लिए!" मैंने उसे बताया!
"तो मैं क्या करूं?" उसने मुझसे पूछा! जो मैं चाहता था, वैसा ही हो रहा था!
"मैं तुम सबको यहाँ से मुक्त कर दंगा! सर्वोच्व-धाम के लिए प्रस्थान कर जाना, वहाँ से आगे निर्णय होगा, यहाँ की सजा से बच जाओगे सिद्धा!"
सिद्धाचौंक पड़ा! उसे मेरी बातों पर यकीन आने लगा था!
"और मेरा खजाना?" उसने पूछा,
"वो यहाँ नहीं है, दिम्माखाडू ने लूट लिया था तब ही" मैंने बताया!
उसने फौरन अपने दो आदमियों को भेज खजाने के लिए, वे गए और तुरंत आये, खाली हाथ!
"अब समझा न? मैं सच कह रहा हूँ सिद्धा!" मैंने कहा,
सिद्धा ने सभी अपने आदमियों से बात की, करीब दस मिनट! फिर मेरे पास आया! बोला, "हम तैयार हैं!"
मेरी खुशी का ठिकाना जा रहा! जैसा चाह हो गया!
मैंने उसी समय एक दिव्य-रेखा अपने त्रिशूल से खींची और सभी को एक एक करके, अपना नाम बोलते हुए उस पार करने
को कहा! सभी ने ऐसा किया और मुक्त होते चले गए!
आखिर में रह गया सिद्धा! उसने मुस्कुरा के मुझे देखा और मैंने भी! वो आगे आया और वो दोनों डिब्बियां मुझे पकड़ादर्दी और रेखा पार कर गया! वो भी मुक्त हो गया!
उसके बाद मैं वहीं बैठ गया! कुछ मंत्रोच्चार आदि किये और वो डिब्बियां अपने पास रख ली!
वापिस आया, सारा सामान समेटा, स्नान किया और फिर थोडा पूजन किया!
रात को हम वहीं सो गए! सुबह अभिनव और राजेश आये, शर्मा जी न सब बता दिया! दोनों पांवों में पद गए! हज़ार बार हाथ जोड़ते रहे! धन्यवाद करते रहे!
उसके बाद हम वापिस दिल्ली रवाना हो गए।
मित्रगण! न जाने अभी इस संसार में कितने सिद्धा और हैं जो अभी भी सो रहे हैं जिनके बारे में पता नहीं! कुछ अनायास ही
टकरा जाते हैं और कुछ के ऊपर से हम गुजर जाते हैं। इस तरह के चबूतरे पूरे उत्तर भारत में यहाँ वहाँ बिखरे पड़े हैं, जंगलों में, गाँवों में, शहरों में, घरों और इमारतों के नीचे! सो रहे हैं, एक न एक दिन जागने के लिए!
वो डिब्बियां है मेरे पास आज भी जिसमें उस दस मरद वाली खेड़ी के बाल हैं और उसके बाप के भी!
ये उस सिद्धा की निशानी हैं, जो ढाई सौ सालों तक सोया था, केवल एक दिन और जागले के लिए! अपनी गक्ति के लिए!
------------------------------------------साधुवाद-------------------------------------------
