वर्ष २००८ मुंबई की ...
 
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वर्ष २००८ मुंबई की एक घटना

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श्रीशः उपदंडक
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वर्ष २००८ की बात है ये, कुछ गहत्नाएं अकस्मात ही हो जाया करती हैं, जो पहले से सुनिओजित नहीं की जाती ये घटना भी उन्ही में से एक है, ये घटना है मुंबई की, मैं शर्मा जी के साथ शर्मा जी के किसी कार्य से यहाँ आया था, हम दादर के एक होटल में ठहरेथे, होटल ठीक-ठाक ही था, काम-चलाऊ जिसे कहा जा सकता है, और भीड़-भाड़ वाली जगह पर, हमको बीच वाली मंजिल पर कमरा दिया गया था, हमारे साथ वाले कमरे में शायद फर्नीचर का काम चल रहा था, शोर काफी आता था वहाँ, इसीलिए हम कमरा बंद ही रखते थे, पहले दिन हमने शर्मा जी के कार्य के विषय में घूमते रहे, शाम को वापिस आये, थोडा बहुत खाना खाया और फिर थोडा 'प्रसाद' ले केसो गए, दिन में काफी थक गए थे हम! 

रात करीब ढाई बजे की बात होगी ये, मुझे अपने साथ वाले कमरे में कुछ खटर-पटर की आवाज़ आई, मेरी नींद खुल गयी, मैंने सोचा की शायद कोई बिल्ली वगैरह होगी या होटल-स्टाफ का कोई कर्मचारी आदि होगा! लेकिन फिर से वो आवाजें आती रहीं! कमाल था, रात में आराम कर रहे लोगों को परेशानी हो रही है औरये कर्मचारी अपना काम कर रहा है! मै उठा और लाइट जलाई! कमरे का दरवाज़ा खोल तो शर्मा जी ने अपनी चादरसे अपना मुंह बाहर निकाल, मैंने उनको इशारा करके सो जाने को कहा, और बाहर आ गया, वहाँ अँधेरा था और गैलरी में शेरो वाट के बल्ब जल रहे थे, आखिर में बाहर की तरफ वाली खिड़की के ऊपर एकसीऍफएल लाइट जल रही थी! 

खैर, मैं आगे बढ़ा, कमरा कोई एक मीटर दूर बाएं तरफ था, मै वहीं गया, दरवाज़ा आधा खुला था लेकिन अन्दर अँधेरा था, हैरत वाली बात थी! मैं अन्दर घुस, अन्दरहलकीरौशनी में मैंने देखा की एक लड़का कोई १८-२० साल का, ज़मीन परघुटने टिकाये अपने हाथों से बेड के नीचे कुछ ढूंढ रहा था, थोड़ी थोड़ी देर में वो बेड पर चूसा मारता था! उसने मेरी तरफ देखा भी 

नहीं! मैंने कहा, "क्या खो गया भाई?"                           

"मेरी चाबी" उसने फिर भी मुझे नहीं देखा! 

"तो लाइट क्यूँ नहीं जलाई?" मैंने कहा, 

मैंने दीवार पर देखा तो ट्यूबलाइट तो लगी हुई थी, मैंने आगे बढ़ कर लाइट जलाई, लाइट जल गयी! लाइट जलते ही वो लड़का वहाँ से गायब हो गया! 

"ओह! अब मैसमझा!" मैंने कहा, 

मैंने एक हाज़िर-मंत्र पढ़ा, वो लड़का फिर भी नहीं आया, मैंने लाइट बंद कर दी, वो लड़का अब वहाँ आ गया था और बेड पर 

खड़ा था! 

"मेरी चाबी ढूंढ़ दीजिये, प्लीज!" उसने अपने हाथ जोड़ कर कहा! 

"अच्छा मैं ढूंढ ढूंगा, मेरी बात सुनो ज़रा" मैंने कहा, 

"बोलिए" वो बोला, 


   
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श्रीशः उपदंडक
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मै आगे बढ़ा तो वो पीछे हट गया! मैंने उसको कहा, " डरो मत यार! मै तुमको नहीं पकडूंगा, मुझ पे विश्वास करो!" 

वो आगे आया और बोला, "मेरी चाबी, यहीं गिरी थी, देख दीजिये प्लीज" 

उसने ऐसा कहा और बेड से उतर कर फिर नीचे झुक कर हाथों से चाबी ढूँढने लगा! 

"वाबी मिल जायेगी भाई! परेशान क्यूँ हो?" मैंने कहा, 

"अगर चाबी नहीं मिली तो मेरे पापा केस में फँस जायेंगे" उसने रोकर कहा, 

"मर जायेंगे? क्यूँ ऐसे कैसे मर जायेंगे?" मैंने कहा 

लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया और अपनी चाभी ढूंढता रहा! मुझे उस पर दया भी आई और गुसा भी मैंने थोडागुस्सेसे कहा, "सुन लड़के, अब अगर तूनहीं बतायेगा, तो मुझे ज़बरदस्ती करनी पड़ेगी" 

वो उठा और घबरा गया! बोला, "मेरी मदद करो प्लीज" 

"अब जब तक तूबतायेगा ही नहीं तो मै तेरी कैसे मदद करूँगा?" मैंने कहा, 

इससे पहले वो कुछ बोलता वो गायब हो गया! 

मै तब अपने कमरे में वापिस आ गया, शर्मा जी जागे ही हुए थे, मैंने उनकोसारी बातें बता दीं! वो भी अचरज में आ गए! बोले, "क्या हुआ? उड़ गया?" 

"हाँ, उसका समय समाप्त हो गया!" मैंने कहा, 

"अब?" वो बोले, 

"कल रात को कुछ करते हैं, लगता है कोई भटकती रूह है किसी लड़के की!" मैंने कहा, 

"कोई होगा बेचारा यहीं कहीं का!" वो बोले, 

"हाँ, है तो कोई बेचारा!" मैंने कहा, 

उसके बाद हम दोनों लेटे और अपनी अपनी चादर ओढ़ कर सो गए! 

सुबह नींद देर सेखुली, ८ बज गए थे और साढे ९ बजे शर्मा जी के काम से जाना था, जल्दी जल्दी नहाए, चाय-नाश्ता किया 

और निकल गए काम पर! 

काम निबटा कर हम कोई २ बजे फारिग हुए, सोचा थोडा घूम ही लिया जाए, आकाश में बादल घिरने लगे थे लेकिन बारिश के आसार नहीं थे, हम समुद्र तक आये और वहाँ पड़ी बेंच पर बैठ गए। समुद्र का शोर बेहद तेज था लेकिन अच्छा लग रहा था सुनने में आगे बड़े-बड़े पत्थर पड़े थे, मै चारों ओर हो रही हरकतों से वाकिफ था, गाड़ियों की कतार लगी हुई थी पीछे सड़क पर, मैं बेंच से उठा और आगे तक आया, अचानक मेरी नज़र सामने एक पत्थर पर पड़ी, वहां वोही लड़का, जो मैंने रात को देखा था, खड़ा था, शून्य-भाव से हमको देख रहा था! मैंने शर्मा जी की आँखों पर देख-मंत्र फूंका, उन्होंने आँखें खोलीं, उनको भी वो दिखाई दे गया! हम उसको देखते रहे, लहरों का पानी जोर मार रहा था लेकिन पानी उसके अन्दर से आर-पार होरहा था! तभी बारिश की हलकी-फुलकी बौछारसी हुई, लड़का गायब हो गया! 

"गुरु जी, इसकी रूह को हमसे कुछ कहना है, मुझे लगता है"शर्मा जी ने कहा, 


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हाँ शर्मा जी!" मैंने गर्दन हिलाई, 

"आज पूछिए इससे इसकी आपबीती, बता देगा" वो बोले, 

"हाँ आज पूछता हूँ इससे आज" मैंने कहा, 

"इसकी उम्र भी ज्यादा नहीं लगती, कोई १८-२० के आसपास ही है" वो बोले, 

"हाँ, मैंने आपको कल बताया तो था" मैंने कहा, 

"करो बैचारे की मदद, न जाने कौन अभागा है। उन्होंने कहा, 

"हाँ शर्मा जी, है तो बेचारा अभागा ही" मैंने समर्थन किया, 

अब हम वहाँ से उठे, बाहर ही दोपहर का भोजन किया और वापिस होटल आ गए, यहाँ आकर देखा तो उस कमरे का दरवाज़ा आज बंद था, ताला लगा हुआ था, हमने एक दूसरे को देखा, तब शर्मा जी नीचे गए, और नीचे जाकर अपना कमरा बदलने को कहा, कहा की हमारा कमरा बदल दिया जाए, हमको वो वाला कमरा दे दिया जाए, लेकिन उन्होंने वो कमरा हमको नहीं दिया, बल्कि कोई और कमरा देने को राजी हो गए। 

अन संदेह को बल मिला! मैंने शर्मा जी से कहा, "लगता है, उस लड़के का और इस कमरे का आपस में कोई सम्बन्ध है अवश्य!" 

"हाँ मुझे भी यही लग रहा है!" वो बोले, 

"खैर, कोई बात नहीं, हम उसको यहाँ बुला लेंगे" मैंने कहा, 

"ठीक है, आज बुला लीजिये, कल निकलना है शाम को हमने!" वो बोले, 

"अगरसंभव हुआ तो आज ही काम करूँगा, नहीं तो देखा जाएगा" मैंने कहा, 

"हाँ कोई और तरीका निकाल लेना गुरु जी आप" वो बोले! 

"ठीक है शर्मा जी!" मैंने कहा, 

अब मैंने अपने बैग से मदिरा निकाली, साथ में हम कुछ ले ही आयेथे खाने को,सो आराम से खाते-पीते रहे! 

शाम हुई, तो मैंने थोडा जरूरी काम कर लिया, ज़रुरत पड़ सकती थी!! 

हम उस रात खाना खा करसो गए, रात कोरबजे उठना था और उस रूह की आमद का भी समय था वो, सोथोडा आराम करने के लिए हम सो गए. मध्य रात्रि र बजे मेरी और शर्मा जी की नींद खुली, हम उठ गए, रात करीब ढाई बजे फिर से उस कमरे से आवाजें आनी शुरू हो गयीं, यानि के वो लड़का वहाँ आ चुका था, तब मैंने शर्मा जी की आँखों पर देख मंत्र फूंक दिया. मैंने अपना एक महा-प्रेत प्रकट किया और उस लड़के को पकड़ कर लाने के लिए कहा, मेरा प्रेत उस लड़के को उसके बालों से पकड़ कर ले आया! वो लड़का मारे भय के कांपने लगा! मैंने अपने महा-प्रेत को वापिस भेज दिया! मैंने उस लड़के से कहा, "सुनो, डरो नहीं, और मेरेसवालों का जवाब दो!" 

"हाँ..................हाँ.................पूछो आप" वो बोल, 

"डरो नहीं लड़के, मैं अगर चाहता तो तुझे कल रात को या आज दोपहर को ही पकड़ सकता था, लेकिन मैंने तेरा इंतज़ार किया. अब समझा? मै तेरा बुरा नहीं चाहता!" मैंने कहा, 


   
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श्रीशः उपदंडक
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"जी पूछिए" उसने कहा, 

"तेरा नाम क्या है? मैंने पूछा, 

"धीरज" उसने बताया, 

"उम्र?" मैंने पूछा, 

"१९ साल" वो बोला, 

"कहाँ का रहने वाला है? मैंने पूछा, 

"दिल्ली का" उसने बताया, 

"कौन सी चाबी ढूंढता है तू?" मैंने पूछा, 

"मेरी चाबी, मेरे पापा फँस जायेंगे केस में" उसने दुखती आवाज़ में कहा, 

"तेरेसाथ क्या हुआ, ये बता ज़रा?" 

"मैं दिल्ली में रहता था, पढ़ाई कर रहा था, कई दोस्त थे मेरे, मेरी एक मित्र भी थी, अन्नू, मैं बहुत प्यार करता था उससे, लेकिन मेरे मम्मी पापा उस से चिढ़ते थे, वो उनके किसी ऐसे जानकार की लड़की थी जिनसे उनकी दुश्मनी थी, लेकिन मैं प्यार करता था उसे, मैंने अपने मम्मी पापा को ये बात बता रखी थी, मेरा घर में बहुत झगडा होता था, सभी से अपने बड़े भाई 

से, जीजा जी से, मम्मी पापा से, सभी सेलेकिन मैंने कभी अन्नू को नहीं छोड़ा, बात आगे बढ़ गयी, मेरे पिता जी दिल्ली में अपना बिजली के फैंसी-आइटम्स का काम करते थे, वो डीलर थे, उनके पास काम अच्छा था, एक दिन मेरा और पापा का बहुत झगडा हुआ, उन्होंने कहा की अगर मै अन्नू का साथ नहीं छोड़ सकता तो मै उनका साथ छोड़ दूं मुझे भी गुस्सा आ गया, मै उसी रात बाहर चला गया, घरवालों ने मुझे नहीं ढूँढा, सोचा की मै ठोकर लगते ही वापिस आ जाऊंगा, मै उस रात अपने एक दोस्त के यहाँ ठहरा, वहाँ मैंने अन्जू को सारी बात बता दी, अन्नू मेरा साथ देने को तैयार थी, मैं खुश हो गया, मैं सुबह कोई ११ बजे अपने घर पहुंचा, मुझे घर में मेरी मम्मी मिलीं, बड़ा भाई और पापा जा चुके थे, मम्मी को मैंने लाग-लपेट कर मना लिया, मै नहाने चला गया, माँ ने चाय नाश्ता बनाया, मैंने खाया, उसके बाद मैंने अपनी मम्मी को खाना बनाने के लिए कहा, वोखाना बनाने चली गयीं, जब वोखाना बना रही थीं तो मैं घर की अलमारी के पास गया, वहाँ अलमारी की चाबी पापा की मेज़ से निकाली, अलमारी खोली, वहाँ रखे साढ़े ९ लाख रूपए उठाये और अपने बैग में रखे, मैंने आज ही घर छोड़ना 

था, मै अन्नू के साथ घर छोड़ के जाने वाला था, मैंने खाना भी नहीं खाया, बैग उठाया और सीधे बाहर आ गया, मुझे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन जाना था, अन्नू वहाँ मिलने वाली थी मुझे, मै वहां पहुंच गया" 

इतना कह के वो चुप हो गया, 

"फिर क्या हुआ?" शर्मा जी को जिज्ञासा हुई! उसने फिर कहना शुरू किया, 

"जब मैरेलवे स्टेशन पहुंचा तो मुझे वहाँ अन्नू मिली, लेकिन अपनी माँ के साथ, अन्नू ने कहा की वो मेरे साथ अभी नहीं जा सकती, लेकिन हमारी शादी के लिए वोराजी हैं, ये तोखुशखबरीथे


   
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श्रीशः उपदंडक
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मेरे लिए, लेकिन कुल मिला के बात ये तय हुई की मै पहले अपने पांवों पर खड़ा हो जाऊं, फिर वो शादी करा देंगे, इसके बाद मैंने अन्नू से बात की, उसने भी वही कहा, और वे दोनों वहाँ से चले गए, मै तब अपने एक दोस्त के यहाँ गया, अब मुझे घर नहीं जाना था, मैंने वहाँ, अपने दोस्त की गैर-हाजिरी में उसके कमरे के एक ड्रावर में अपना बैग रख दिया, और ताला लगा दिया,और अपना फ़ोन स्विच ऑफ कर दिया, ताकि घर से कोई फ़ोन न आये, मै सुबह उठा, बैग से ५० हजार रुपये निकाले, अपने दोस्त को २-३ दिनों के बाद आने को कहा, और स्टेशन आ गया,सोचा कोई काम वगैरह करूँगा, मै पहले भोपाल पहुंचा, लेकिन कोई काम रास नहीं आया, मै तब मुंबई चला 

गया, मैंने यहाँ आके ये होटल ले लिया, मैंने उस रात अन्नू को फोन मिलाया, एक पीसी ओसे, फोन अन्नू की माँ ने उठाया, और मुझे अन्नू से बात करने कोसख्त मना कर दिया, मैंने तभी अन्नू को फ़ोन मिलाया, उसने भी मुझे यही कहा! जिसके लिए मैंने अपने माँ-बाप छोड़े, किसी की बात नहीं मानी, अपने बाप के पैसे चुराए, जिंदगी दाव पर लगा दी, उसने मुझे धोखा दे दिया! मैंने शराबखरीदी और होटल में लाया, लेकिन कुछ नहीं हुआ, सोचता रहा, सोचता रहा, लेकिन कोई फैसला नहीं कर पाया, घर मै जा नहीं सकता था, अन्जू ने साथ छोड़ दिया था, मुझे तनाव हो गया, जिंदगी बे-मायनी लगने लगी, मैंने और शराब खरीदी और वो भी पी गया, मेरे दिमाग में हलचल मची थी, मैंने एक बार फिर अन्नू को फोन मिलाया, अन्नू ने फोन नहीं उठाया, तब मैंने एक निर्णय लिया, मैंने फांसी लगा ली खुद को, बगल वाले कमरे में पंखे से लटक कर!" 

"अच्छा, अच्छा, एक बात बताओ, तुमने कहा पापा फँस जायेंगे केस में, वो क्या मामला है?" मैंने पूछा, 

"मेरे पापा सब-डीलरों को सामान देते थे, आगे से लेकर, पापा को साढ़े ९ लाख का सामान देना था, पापा ने उस सब-डीलर 

को अगले दिन माल पहुंचाने को कहा, था, लेकिन पैसे तो मैंने चुरा लिएथे माल कहाँ से देते! उस सब-डीलरने अपना पैसा माँगा, उस समय पापा के पास पैसों का इंतजाम नहीं हो पाया, वो पुलिस कोले आया था, मेरे पापा फँस गए होने मेरी वजह से" वो ये कह के रोने लगा! 

"तो वो वाबी जो तुम ढूंढ रहे हो? वो तुम्हारे दोस्त के ड्रावर की है?" मैंने पूछा, 

"हाँ, मै वो चाबी ढूंढ रहा हूँ, इसीलिए" उसने बताया, 

"अच्छा, धीरज, तुमने फांसी कब लगाई" मैंने पूछा, 

"३० जुलाई कोरात १२ बजे करीब" उसने बताया, 

"यानि की आज ५ महीने हो गए" मैंने कहा, 

"हाँ" वो बोला, 

दर-असल, जब भी कोई व्यक्ति आकस्मिक मौत मरता है तो उसके मस्तिष्क में चल रहा अंतिम विचार स्थायी तौर पर उसकी आत्मा के साथ रहता है! चाहे १० वर्ष हों, या १०० या हज़ार यही इस लड़के के साथ हो रहा था! इसको केवल अपनी चाबी की चिंता थी! क्यूंकि आखिरी समय इसके दिमाग में चाबी से सम्बंधित चेतना इसके मस्तिष्क में मौजूद रही होगी! 


   
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श्रीशः उपदंडक
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"हमारे साथ चलेगा अपने घर?" शर्मा जी ने पूछा, 

"हाँ! हाँ मै चलूँगा! मै चलूँगा! लेकिन मेरी चाबी?" उसने कहा, 

"उसकी चिंता न कर, एक काम कर, हम तुझे अभी पकड़ेंगे विरोध न करना, ठीक है? इससे पहले की शमिया का वक़्त 

खतम हो, ठीक है? शर्मा जी ने कहा, 

"ठीक है, मै चलूँगा अपने घर!" वो खुश होके बोला! 

तब मैंने एक महा-प्रेतसे उसको पकडवा लिया, महा-प्रेत ने उसे अपने चुटीले में बाँध लिया! 

उस रात हम सो नहीं सके, शमिया का वक़्त समाप्त हो गया! मैंने अब फिर से अपना महा-प्रेत बुलाया और धीरज कीरूह को प्रकट किया! वो आ गया! 

मैंने उससे कहा, "एक काम कर धीरज, तू अपना पता बता दे हमको" 

उसने दिल्ली में पटेल नगर का पता अपने घर के पते के साथ साथ अपने माँ बाप और बड़े भाई का नाम भी बता दिया, अब मैंने धीरज को फिरसे वापिस करवा दिया, 

शर्मा जी का सार काम ख़तम हो चुका था, हमने होटल से चेक-आउट किया और रेलवे स्टेशन के लिए रवाना हो गए! 

हम अगले दिन दिल्ली पहुंचे, अपने स्थान पर जाकर मैंने शर्मा जी से कहा, " शर्मा जी, चलो कल इस लड़के के घर चलते है, बोलो क्या विचार है?" 

"हाँ गुरुजी, जैसा आप कहो!" उन्होंने कहा, दर-असल शर्मा जी पुण्य संचित करने में सदैव आगे रहते हैं! 

हम अगले दिन धीरज के घर के लिए निकले! पटेल नगर पहुंचे, पता मालूम किया और उस घर के आगे आ गए, घर-बार बढ़िया लगा हमको तो! शर्मा जी ने घंटी बजाई, घरका मेन-गेट खुला, कुरता पाजामा पहने एक ५०-५५ वर्षीय व्यक्ति ने दरवाज़ा खोला, बोला, "जी कहिये?" 

"Xxxxxx आप ही हैं?" शर्मा जी ने पूछा, 

"जी हाँ, मैं ही हूँ, बताइये?" उसने कहा, 

"आप बुरा न माने तो हम अन्दर आके बात कर सकते हैं? ये आपके ही विषय में है" शर्मा जी बोले, 

"आइये अन्दर आइये, बुरा मानने वाली क्या बात है भाई साहब!" उन्होंने कहा और हमको अन्दर बिठाया, अन्दरधीरज की एक फोटो पर एक माला चढ़ी हुई थी! ये वही धीरजथा!! वही अविवेकी धीरज! 

"जी बोलिए" उन्होंने कहा और पानी मंगवा लिया, पानी लाने वाली धीरज की माता जी ही थीं! 

शर्मा जी ने धीरज की फोटो की तरफ ऊँगली करके कहा, " ये लड़का आपका धीरज ही है न?" 

वो चौक गए! 

"हाँ, भाई साहब, लेकिन आपको कैसे पता?" उन्होंने कहा, इतना सुनके उनकी पत्नी भी वहीं खड़ी ठिठक गयीं! 


   
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श्रीशः उपदंडक
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"क्या इसकी मौत मुंबई में ३० जुलाई को हुई थीXXXXXXXXXX होटल में?" शर्मा जी ने पूछा, 

उनके आंसू छलक गए! बोले, " हाँ भाई साहब, नासमझ लड़का था ये, मेरी बात नहीं मानी इसने" 

धीरज की माँ के भी आंसूछलक पड़े! 

"क्या वजह थी, ज़रा बताएँगे? शर्मा जी ने पूछा, 

उन्होंने अपने आंसू पोंछे और बोले, "वैसे आप बताइये, आप कहाँ से आये हैं? मुंबई से?" 

तब शर्मा जी ने सारी बात, जो बता सकते थे, जो बताये जानी चाहिए थीं, उनकी उत्सुकता के लिए, सब नहीं, वृतांत से उनको बता दी! अब उनके आंसूखुलके सामने आ गए, मै और शर्मा जी कुछ नहीं कर सकते थे! 

धीरज के पिताजी बोले, "महाराज आपका धन्यवाद! आपका धन्यवाद! मेरा सबसे प्यार बेटा था वो! मेरा लाडला बेटा!" वो बेचारे फिररो पड़े, मैंने उनको हिम्मत बंधाई, 

मैंने कहा, " सुनिए, जाने वाला चला गया, आप उसे भूलिए मत, लेकिन रोने से कुछ नहीं होगा, न वो वापिस आएगा, न 

उसका भला होगा, वो बेचारा परेशान है, की आप किसी केस में फँस जाओगे, वो बेचारा आज भी आपके लिए परेशान है, भटक रहा है,रोता है!" 

"मेरा बेटा! मेरा बेटा धीरज!" वो बेचारे बुक्का फाड़ केरोरहे थे, ऐसा माहौल देख कर आसपास के पडोसी भी दरवाज़ा 

खटखटाने लगे, 

शर्मा जी ने फिर से उनको शांत किया और बोले, "सुनिए साहब, मुझे कुछ पूछना है आपसे" 

"जी पूछिए" उन्होंने अपनी आँखें अपने कुर्ते की बाजुओं से पोंछी, 

"धीरज ने बताया था की वो साढ़े ९ लाख रुपये आपके चुरा के ले गया था, और आपके पास एक तकादा वाला आ रहा था, जो 

की पुलिस ले आया था, उसका क्या हुआ?" शर्मा जी ने पूछा, 

"हाँसाहब वो आया था, मैंने अगले दिन का वायदा किया था उस से, तब मैंने अपने घर के गहने आदि गिरवी रख के पैसे चुका दिया थे" वो बोले, 

"अच्छा, यानि की कोई समस्या नहीं आई थी केस वगैरह की?" शर्मा जी ने पूछा, 

"नहीं साहब इज्ज़त बच गयी हमारी" वो बोले, 

"तो आपको आज धीरज से कोई गिला-शिकवा?" शर्मा जी ने पूछा, 

"ना-समझ बच्चा था जी वो, अरेतू पैसा ले गया, कोई बात नहीं, मुझसे कहता की पापा पैसेखतम हो गए, मै कौनसा उसको जान से मार देता? लेकिन बुद्धि फिर गयी जी उसकी, पता नहीं कैसा निर्णय लिया उसजे?" वो बोले, 

"अगर मै अभी आपको धीरज से मिलवा दूँ तो? उसको माफ़ कर दोगे आप? ध्यान रहे वो आपके लिए ही परेशान है!" मैंने कहा, 


   
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श्रीशः उपदंडक
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वो अचभित हुए! मैंने उन दोनों को धीरज के कमरे में ले जाने को कहा, वो हमको लेके गए, मैंने उनको वहीं बिठा दिया! और काफी उनसे पूछ-ताछ के बाद मैंने अपने महा-प्रेत को प्रकट करके उसकी रूह को आज़ाद करवाया! उसकी रूह आ गयी! आते ही उसने दहाड़ें मारी! 'मम्मी पापा! मुझे माफ कर दो, मुझे माफ कर दो!" लेकिन उसकी ये चीत्कार वो नहीं सुन सकते थे, मैंने धीरज से कहा, "सुनो, चुप हो जाओ तुम, मै तुमको इनसे मिलवा दूंगा, लेकिन इनको छूना मत!" 

"ठीक है, मेरे मम्मी पापासे मेरी बात करवा दोप्लीज"उसने रोतेरोतेकहा, यही बात मैंने धीरजके मम्मी पापा से कही, उन्होंने भी मेरी बात मान ली, और फिर, 

मैंने देख-मंत्र फूंका, पहले शर्मा जी के ऊपर, फिर उसके मम्मी पापा के ऊपर! 

उसके मम्मी पापा दहाड़ मार उठे! यही मै नहीं चाहता था! 

मैंने उनकोसख्ती से कहा, "देखियेरोइये मत, जो बात करनी है, कर लीजिये, तक्त कम है, मेरी विवशता समझिये आप" 

तब धीरज के पिता जी उठे, उन्होंने उसको गले लगाया, मैंने धीरज को स्थूल-तत्त्व दे दिया था, कुछ समय के लिए! माता जी 

का बुरा हाल था! 

मैंने धीरज से कहा, "धीरज! अब अपने पिता जी को उस ९ लाख के बारे में बता दो!" 

धीरज ने सारी बात अपने पिता को बता दी! 

सारी बात बताने के बाद मैंने धीरज को वापिस भेज दिया! अब तो और कोहराम मच गया! "एक बार और बुला दीजिये, गुरु 

जी, एक बार और बुला दीजिये, वो यहाँ ही रह ले!" उसके माता पिताजी ने मेरे पाँव पकड़ लिए! तब मैंने कहा," सुनिए! वो इस भौतिक संसार में आपका पुत्र था, अपना भोग करने आया था, कर लिया! अब उसका औचित्य पूर्ण हो गया, वो अब आपको पहचानेगा भी नहीं उसका मोह-आवरण हट गया, इसके बाद ना वो आपका बेटा ना आप उसके माता-पिता! आपकेवल उसको मुक्त करने की क्रिया करवाएं, और संतोष कर लें!" 

मित्रगण, उसके पश्चात! उसको मुक्त करने से पहले वोए लाख रुपये उनको दिलवा दिए गए! 

उसकी मैंने क्रिया आकरदी! वो मुक्त हो गया! मैंने उसके माता-पिता को जगतकीसच्चाई से अवगत करा दिया! धीरजतो चला गया लेकिन मुझे इस परिवार से जोड़ गया! 

आज भी! 

------------------------------------------साधुवाद!---------------------------------------------


   
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