जब मेरी आँखें खुलीं तो मै बिस्तर पर लेटा था, मै उठा, किसी से कुछ नहीं कहा, और स्नानादि के लिए चला गया! वापिस आके सारी बातें बता दीं! अनिल और विनोद के चक्षु खुल गए! कालान्तर में उन्होंने वहाँ एक गौशाला बनवा दी! वो आज भी है! समृद्धि वहाँ पाँव पसारे है! जब तक गौशाला है, तब तक समृद्धि वहाँ रहेगी! आगे 'उसकी' इच्छा!
मित्रो! ये जो शक्तियों का वर्ना मैंने किया है और करता रहता हूँ, उसको केवल तंत्र-प्रवीण, मंत्र-प्रवीण व्यक्ति ही देख सकते हैं! जन साधारण के लिए समय वैसा ही रहता है जैसा चलता रहता है!
आदर-सम्मान अत्यंत आवश्यक है! इसी आदर-सम्मान से मै खाली होने से बच गया था! मै आज भी ह्रदय से ऋषि अत्रांग को नमन करता हूँ!
चंदेलों में विद्याधर, धंग नाम के राजा का प्रपौत्र था! उसका समय १०१७ से १०२९ ईसवी आँका जाता है!
------------------------------------------साधुवाद-------------------------------------------
पुजय्नीय गुरूजी, कोटिशः धन्यवाद जो आपने हमको परमपूज्य ब्रह्मारिशी अत्राँग के श्री चरणों का आशीर्वाद वर्णन दिया 🌹🙏🏻🙏🏻