ठीक तो वो हो गयी अब तेरा और और उस कमीन रतन का इलाज करना है हमे!” शर्मा जी ने एक लात मारी खींच के बाबा के पेट में! बाबा मारने लगा पलटियां! ‘माफ़ कर दो, माफ़ कर दो, गलती हो गयी!’ बोलता रहा!
शर्मा जी गए उसके पास और उसको उठाया! वो कांपते कांपते उठा, हाथ पेट पर रखते हुए और फिर बोला,” मुझसे गलती हो गयी, माफ़ कर दो”
“तेरी गलती ही तो सुधारने आये हैं हैं हम!” शर्मा जी ने एक और झन्नाटेदार झापड़ दिया बाबा को!
अब बाबा बैठा तख़्त पर ‘हाय हाय’ करता हुआ, लम्बी लम्बी साँसें लेने लगा!
“क्या कहानी बतायी थी उसने तुझे?” अब मैंने पूछा,
“किसने?” उसने पूछा,
“रतन ने तेरे को उस लड़की को मारने में?” मैंने कहा,
“उसने कहा था कि उस लड़की के बाप ने उसको उसका पैसा नहीं दिया, जिसकी वजह से उसकी लड़की की मौत हो गयी, इसीलिए वो बदला लेना चाहता है, वैसा ही जैसा उसके साथ हुआ, इसीलिए वो मेरे पास आया था” बाबा ने नज़रें नीचे करते हुए कहा,
“और फिर तूने उसका लड़की का मारण कर दिया, है न?” मैंने गुस्से से कहा,
बाबा ने कुछ नहीं कहा, बस उंगलियाँ मलते रहा!
“तूने सोचा? कि तेरे ऐसा करने से एक मासूम की जान तो जायेगी ही, तुझे भी कलंक लगेगा?” मैंने कहा,
“इन जैसे हरामजादों को केवल पैसे से मतलब होता है, इंसानियत से नहीं और कलंक का मतलब ये क्या जानें?” शर्मा जी ने कहा और उसके मुंह पर खींच के एक लात जमा दी! बाबा गिरा अब तख्त से नीचे! रोने लगा! माफ़ी मांगने लगा!
“शर्मा जी सही कहा आपने! ऐसे इंसान अगर ऐसे ही अपने इल्म का गलत इस्तेमाल करेंगे तो बहुत से मासूम लोगों को इसका शिकार बनायेंगे, मै इसको इस लायक नहीं छोडूंगा!” मैंने कहा,
“शर्मा जी इस से कहो कि रतन को यहाँ बुलाये, अभी” मैंने कहा,
शर्मा जी ने उसके बाल खींचते हुए उसको ऐसा ही कह दिया, बाबा ने फ़ोन मिलाया, लेकिन रतन ने कहा कि वो पाटण से बाहर है और ये भी पूछा, कि क्या वो लड़की मर गयी?
बाबा ने बताया उसे कि अभी काम चल रहा है और पंद्रह दिनों में काम हो जाएगा!
अब रतन तो बाहर था पाटण से, हाँ ये बाबा हमारे हाथ लग गया था, और अब इसको खाली करना था, मैंने अब उसको वहीँ तख़्त पर बिठाया, और जम्भन-मंत्र पढ़ा! और उस बाबा पर थूक दिया! बाबा उड़ा तख़्त से और दीवार में टकराया! सर फट गया उसका! उसे मालूम तो चल गया कि उसके साथ हुआ क्या है, अब मैंने फिर से तोमाल-मंत्र पढ़ा, वो चिल्लाता रहा, लेकिन मैंने उस पर फिर थूका! अब उसके मुंह, आँख, नाक और कान से रक्त-स्राव आरम्भ हुआ! वो चिल्लाया, रोया, पीटा! उसके सहायक वहाँ आये दौड़े दौड़े! उन्होंने बाबा का हाल देखा तो सन्न रह गए! खून से लथपथ बाबा गर्दन हिलाए जा रहा था, खून के कुल्ले कर रहा था, बीच बीच में ‘माफ़ कर दो, माफ़ कर दो’ कहता जाता था! उसके चेले डरे सहमे वहीँ खड़े थे! शर्मा जी ने उनको मुंह पर ऊँगली रख कर मना कर दिया था! अब मै उस बाबा के पास गया! उसको देखा तो वो भयानक पीड़ा में था! मैंने यामुष-मंत्र पढ़ खाली कर दिया उसे! उसने चार पांच झटके खाए! और फिर उसका रक्त-स्राव बंद हो गया! अब वो आया और मेरे पाँव पड़ गया! ‘मुझे माफ़ का दो, मुझे माफ़ कर दो’ कहता रहा वो!
फिर मैंने उस से कहा, ” सुन असमी, तुझे जिंदा छोड़ रहा हूँ, केवल इसीलिए कि तू रतन को सब समझा दे अगर तुझे और रतन को जिंदा रहना है तो!”
“मै कह दूंगा, मै कह दूंगा, मुझे माफ़ कर दो” उसने कहा,
“आज के बाद तू प्रेत तो क्या मच्छर पकड़ने लायक भी नहीं रहेगा, अब जा और कटोरा थाम अपने हाथ में और काट अपना जीवन आगे, बहुत लूट-पाट कर ली तूने!” मैंने कहा,
उसके बाद हम वहाँ से निकले और मै उसका चिमटा उठा लाया वहाँ से! कमरे से निकलते ही उसके चेले भागे बाबा को उठाने!
इतने में दिल्ली से फ़ोन आया, शिल्पा के स्वास्थय में आशा से अधिक लाभ हुआ था, अब डॉक्टर्स उसको तीन दिन और रोकेंगे उसके बाद वो ठीक हो जायेगी! और अस्पताल से छुट्टी लेकर घर चली जायेगी! ये ख़ुशी की खबर थी!
मित्रगण! उसके बाद हम दिल्ली आ गए! हम सीधे अस्पताल पहुंचे! वहाँ शिल्पा चुस्त-दुरुस्त टहल रही थी अपने कमरे में! मुझे देख मुस्कुराई और नमस्ते की! मैंने नमस्ते का जवाब भी
दिया, मै उसके पास गया और उसके सर पे हाथ रखा और कहा, “अब ठीक रहना हमेशा, अब कोई मुसीबत नहीं होगी!”
उसके बाद आँखों में आंसूं लिए शिल्पा की माँ, पिता जी और बड़ा भाई आये और मेरे पाँव छूने लग गए! मैंने उनको उठाया और कहा, “अब शिल्पा बिलकुल ठीक है, थोड़ी कमज़ोर है, उसको खिलाओ पिलाओ फिर से पहले जैसी ही जायेगी!”
“गुरु जी, आपने हमको मरने से बचा लिया सभी को, ये लाडली नहीं रहती ना अगर तो ना जाने कितनी लाशें उस घर से निकलतीं”
“कोई बात नहीं! ऐसा कुछ नहीं होना था! शिल्पा ने जीना ही था! करने वाले को फल मिल गया!” मैंने कहा,
“आपका हम कैसे धन्यवाद करें गुरु जी?” उसके पिता जी बोले,
“धन्यवाद की कोई आवश्यकता नहीं, बस एक काम है आपसे” मैंने कहा,
वो चौंके और फिर बोले, ‘जी बताएं गुरु जी?”
“शिल्पा को जब डॉक्टर्स छुट्टी दें, घर ले जाएँ,फिर उसके दो दिन बाद उस रतन को यहाँ दिल्ली बुलाएं, उसको माल दें, ताकि वो अपना काम करे, अब जो हुआ सो हुआ, बुरा उसके साथ भी हुआ, ये समय की चाल थी, लेकिन आप समर्थ हैं, उसको प्रायश्चित करने का मौका दें!” मैंने कहा,
“जैसी आज्ञा गुरु जी आपकी” उन्होंने कहा,
हफ्ता बीता, शिल्पा घर वापिस आ गयी, उसके दो दिनों के बाद रतन को दिल्ली बुला लिया रोहताश ने, रतन को बाबा ने समझा ही दिया था, रतन वहाँ फूट फूट के रोया! उसको अपनी गलती का एहसास हो गया था! रोहताश ने उसको माल भिजवा दिया! रतन का काम ढर्रे पर आ गया! सब कुछ ठीक हो गया था!
फिर कोई एक महीने बाद मुझे रोहताश के घर से एक निमंत्रण आया, शिल्पा का जन्म-दिन था उस दिन! मै सहर्ष गया! शिल्पा पहले जैसी हो गयी थी! उसने आते ही मेरे पाँव छूने चाहे तो मैंने उसको उठाया और फिर पूछा, “अब कैसी हो शिल्पा?”
“अब मै पहले जैसी हो गयी हूँ!” उसने कहा और मुस्कुराई!
वहाँ मुझे रतन मिला! मुझे पहचान गया था वो! आँखों में पश्चाताप के आंसूं लिए मुझे काफी बातें कीं उसने! उसने अपना पाप कुबूल लिया था!
आज शिल्पा एक दम ठीक है! रतन अपनी बेटी की तरह प्यार करता है उस से! सुना है रोहताश आदि उसके रिश्ता ढूँढने में लगे हैं!
एक और निमंत्रण आने को है!
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